देश के संघीय ढांचा में महत्वपूर्ण बदलाव आया। अब तो देश के अधिकांश राज्यों में भी जेपी आंदोलन से निकले नेताओं का शासन है।
आज से 44 साल पहले 26 जून, 1975 को हिंदुस्तान के लोकतांत्रिक इतिहास का एक काला अध्याय रचा गया। 25 जून की आधी रात में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व इंदिरा गांधी की अनुशंसा पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल के आध्यादेश पर हस्ताक्षर किया। इसके दो प्रमुख कारण थे।
एक, भ्रष्टाचार, मंहगाई, बेरोजगारी और शिक्षा के सवाल पर पूरा देश लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आंदोलित था, जिसे लोकतांत्रिक तरीके से संवाद और विमर्श के रास्ते हल करने के बजाय सरकार दमनकारी नीति अपना रही थी, जिससे आंदोलन और भी उग्र होता जा रहा था और दूसरा, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के दो निर्णय जिसके अनुसार दो भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध होने से इंदिरा जी की लोकसभा की सदस्यता समाप्त हो गयी थी।
पहला आरोप चुनाव के समय सरकारी सेवक की सेवाओं का उपयोग व दूसरा सरकारी पैसे से चुनावी सभा का प्रबंध करना था। इन निर्णयों के खिलाफ इंदिरा जी का अपील सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन था, भ्रष्टाचार से कलंकित व्यक्ति को पीएम के पद से इस्तीफा की मांग जोर पकड़ रही थी। इंदिराजी को यह स्वीकार नहीं था। उच्च सदन को निलंबित कर आंतरिक असुरक्षा का नाम लेकर आपातकाल लागू कर दिया गया। संपूर्ण देश और दुनिया में इस अलोकतांत्रिक कृत्य की बड़ी आलोचना हुई।
तानाशाही के खिलाफ व लोकतंत्र की बहाली के लिए भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी और शिक्षा के सवाल के अलावा प्रतिनिधि वापसी का अधिकार व गैर कांग्रेसवाद का आंदोलन बुलंद हुआ और 1977 में कांग्रेस की करारी हार हुई। जनता पार्टी की सरकार बनी। देश के संघीय ढांचा में महत्वपूर्ण बदलाव आया। अब तो देश के अधिकांश राज्यों में भी जेपी आंदोलन से निकले नेताओं का शासन है।

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