भारत में अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही नौकरशाही का ढांचा काम करता है। उसमें संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा के जरिए चुने गए अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों का वर्चस्व होता था। इसमें भी भारतीय प्रशासनिक सेवा यानी आईएएस अधिकारियों का ही दबदबा होता है। पिछले पांच साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे थोड़ा ढीला किया। उन्होंने आईएएस की बजाय दूसरी अखिल भारतीय सेवाओं से अधिकारियों को लाकर संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के पदों पर नियुक्त करना शुरू किया। इससे आईएएस बिरादरी में हड़कंप मचा। कई ऐसे पद, जो आमतौर पर आईएएस के लिए आरक्षित थे, उन पर राजस्व व रेलवे सेवा के अधिकारी नियुक्त हुए। सीवीसी से लेकर ईडी तक की नियुक्तियों में यह प्रयोग हुआ। ध्यान रहे मोदी सरकार में पहली बार राजस्व सेवा के किसी अधिकारी को सीवीसी बनाया गया। यह अच्छा हुआ या बुरा वो अलग बहस का विषय है, पर बदलाव की शुरुआत हुई।
प्रधानमंत्री मोदी ने नौकरशाही में दूसरा बड़ा और लगभग क्रांतिकारी माने जा सकने वाला बदलाव यह किया कि उन्होंने निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को लाकर सीधे संयुक्त सचिव के स्तर पर नियुक्त करने की व्यवस्था बनवाई। पहले चरण में एक साथ नौ लोगों को संयुक्त सचिव नियुक्त किया गया। ये सभी निजी क्षेत्र में काम करने का अनुभव लिए हुए हैं और अपने अपने विषय के विशेषज्ञ हैं। जल्दी ही ये अधिकारी अपना कामकाज संभालने वाले हैं। लैटरल एंट्री के नाम पर निजी क्षेत्र के अनुभवी पेशेवरों को सरकार में लाने का यह पहला प्रयोग नहीं है। पर पहले यह अपवाद के तौर पर होता था, जैसे मनमोहन सिंह को उनकी आर्थिक विशेषज्ञता के आधार पर वित्त सचिव बनाया गया था। लेकिन लैटरल एंट्री की व्यवस्था सांस्थायिक रूप नहीं ले पाई थी। नरेंद्र मोदी की सरकार उसे सांस्थायिक बनाने जा रही है। यानी तमाम विरोध के बावजूद आगे यह प्रक्रिया चलती रहेगी।
दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी इसका और विस्तार करने जा रहे हैं। सरकार के कामकाज में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले उप सचिव और निदेशक स्तर के अधिकारियों की नियुक्ति भी निजी क्षेत्र से होगी। बताया जा रहा है कि कुल नियुक्तियों में से करीब 60 फीसदी नियुक्तियां बाहर से होंगी। इसका मतलब होगा कि उप सचिव और निदेशक स्तर पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों की नियुक्ति होगी वे इनके मातहत भी हो सकते हैं।
खबरों के मुताबिक पिछले दिनों कार्मिक मंत्रालय ने एक बैठक की थी, जिसमें सचिव ने एक प्रस्ताव बनाने को कहा। इसके मुताबिक निजी क्षेत्र के चार सौ विशेषज्ञों को सेंट्रल स्टाफिंग स्कीम के तहत उप सचिव और निदेशक स्तर पर नियुक्त किया जाए। ध्यान रहे सरकार में कामकाज की मुख्य कड़ी ये अधिकारी होते हैं। राज्यों से प्रतिनियुक्ति पर केंद्र में आने वाले आईएएस अधिकारी भी इन्हीं पदों पर नियुक्त होते हैं और प्रमोशन पाकर आईएएस बने अधिकारी भी इन्हीं पदों पर पहुंचते हैं। अगर सरकार निजी क्षेत्र से चार सौ लोगों को इन पदों पर नियुक्ति करेगी तो अनेक प्रशासनिक अधिकारी उनके नीचे काम करेंगे।
इस व्यवस्था को लेकर कई किस्म के सवाल उठ रहे हैं। आरक्षण की व्यवस्था इससे खत्म हो जाएगी क्योंकि ये नियुक्तियां सिंगल पोस्ट रिक्रूटमेंट की योजना के तहत होंगी, जिनमें आरक्षण नहीं लागू होता है। दूसरी आलोचना यह भी है कि इससे बड़ी कंपनियों के लिए काम कर चुके उनके कर्मचारी सरकारी कामकाज के सिस्टम में शामिल हो जाएंगे। इससे निजी क्षेत्र को अनुचित लाभ लेने का मौका मिलेगा। बहरहाल, इसका क्या फायदा होगा या नुकसान क्या होगा, उसका आकलन नियुक्ति होने और उनके कामकाज की पहली रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा। पर हकीकत यह है कि दुनिया के ज्यादातर विकसित देशों ने अपने यहां ऐसी व्यवस्था रखी है। कहीं भी नौकरशाही का ऐसा लौह ढांचा नहीं है, जिसमें कोई बाहरी व्यक्ति सेंध नहीं लगा सके। वैसे भी भारत में आजादी के पहले से प्रशासन की यहीं व्यवस्था काम कर रही है और उसका नतीजा सबके सामने है। इसलिए अगर इसे बदल कर दूसरी व्यवस्था आजमाने में कोई हर्ज नहीं है। अगर उसके नतीजे अनुकूल नहीं होंगे तो उसे भी बदला जा सकता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने 12 वरिष्ठ अफसरों को जबरन रिटायर करने के बाद एक और बड़ा कदम उठाते हुए आय कर विभाग में स्वच्छता अभियान चलाते हुए सरकार ने 15 वरिष्ठ अधिकारियों को जनबरन सेवानिवृत्ति दे दी है। इसमें मुख्य आयुक्त, आयुक्त और अतिरिक्त आयुक्त स्तर के अधिकारी भी शामिल हैं।
डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स के नियम 56 के तहत वित्त मंत्रालय ने इन अफसरों को सरकार ने समय से पहले ही घर भेज दिया है। नरेंद्र मोदी सरकार 2.0 में सरकारी विभागों की सफाई यानी नाकारा अफसरों को निकालने का सिलसिला लगातार जारी है। मंगलवार को फिर सरकार ने 15 सीनियर अफसरों को जबरन रिटायर करने का निर्णय लेकर सबको चौका दिया है।
पहले भी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभालते ही बडा निर्णय ले लिया था। गत सप्ताह 12 वरिष्ठ अफसरों को वित्त मंत्रालय ने जबरन रिटायर कर दिया था। डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल ऐंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स के नियम 56 के तहत वित्त मंत्रालय ने इन अफसरों को समय से पहले ही रिटायरमेंट दे रही है।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें