"राजनीतिक क्षेत्र में रहते हुए राजनीति की फिसलन से बचे रहने वाले बहुत ही कम लोग होते हैं और सुंदर सिंह भंडारी उन्हीं लोगों में से एक थे।"
स्वतंत्र राजनीतिक और सामाजिक विश्लेषक आलोक भारद्वाज । भारत राष्ट्र निर्माण के महायज्ञ में अपना सर्वस्व उत्सर्ग कर एक मिसाल कायम करने वाले सरल जीवन और उच्च विचारों के प्रतीक सुंदर सिंह जी भंडारी मातृभूमि के प्रति अपनी समर्पित निस्वार्थ समर्पित कार्यशैली के कारण हमेशा अविस्मरणीय रहेंगे।
सुंदर सिंह भंडारी जी का जन्म 12 अप्रैल 1921 को उदयपुर राजस्थान के एक जैन परिवार में हुआ था। अर्थशास्त्र मैं स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने एलएलबी की उपाधि भी प्राप्त की।
अपने विद्यार्थी जीवन में भी सुंदर सिंह जी भंडारी शिक्षा प्राप्त करने के साथ-साथ समाज हित के कार्यों में रत रहते थे और शैक्षणिक जीवन में ही 1937 में कानपुर में एसडी कॉलेज में अध्ययन के दौरान उनका परिचय परम श्रद्धेय आदरणीय पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी से सहपाठी के रूप में हुआ था ।
दिसंबर 1937 में इंदौर निवासी बालू महाशब्दे सुंदर सिंह भंडारी जी को कानपुर के निकट नवाबगंज की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शाखा में ले गए थे तब से अपने जीवन की अंतिम सांस तक सुंदर सिंह भंडारी जी राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पित आरएसएस की विचारधारा के प्रति वचनबद्ध रहे।
1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई। और 1951 से 1965 तक सुंदर सिंह भंडारी जी ने भारतीय जनसंघ में राजस्थान के महामंत्री का दायित्व निभाया इसी दौरान 1963 में जन संघ के अखिल भारतीय मंत्री पद का दायित्व भी उन्हें दिया गया था।
परम श्रद्धेय पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के देहावसान के बाद 1968 में आदरणीय सुंदर सिंह भंडारी जी को भारतीय जनसंघ का अखिल भारतीय महामंत्री (संगठन) बनाया गया। उन्होंने 1977 तक भारतीय जन संघ के महामंत्री पद पर कार्य किया।
हमेशा अपने कार्यकर्ताओं से जीवन शैली की गरिमा को बनाए रखने का आव्हान करने वाले सुंदर सिंह भंडारी जी को एक ऐसे मूर्तिकार और कार्य कुशल व्यक्तित्व का प्रतीक कहा जा सकता है जिन्होंने मानव समाज और संगठन की प्रतिमा बनाई वह स्वयं कभी भी कलश नहीं बनना चाहते थे और इसी कारण वे अत्यंत स्पष्ट वादी थे अपनी स्पष्ट वादी प्रकृति के कारण ही वे कार्यकर्ताओं में हेड मास्टर के नाम से प्रसिद्ध थे।
सुंदर सिंह भंडारी की 1966 से 1972 तक राजस्थान से राज्यसभा के सदस्य भी निर्वाचित हुए।
सुंदर सिंह जी भंडारी ने हमेशा कार्यकर्ताओं के सामने सरलता सहनशीलता और मित्तव्ययता का उदाहरण प्रस्तुत किया।
अपने जीवन काल में सुंदर सिंह जी भंडारी अटल बिहारी वाजपेई जी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के कार्यकाल में बिहार और गुजरात के राज्यपाल भी रहे, और राज्यपाल के पद पर रहकर भी उन्होंने हमेशा जनहित तथा राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा ।
सादा निश्चल और समर्पित कार्यशैली को अपने जीवन का अखंड हिस्सा बनाकर चलने वाले सुंदर सिंह जी भंडारी प्रकृति से बहुत नरम दिल इंसान थे उन्होंने हमेशा संगठन में अनुशासन की मिसाल कायम करते हुए अनुशासित पार्टी की छवि कायम रखी।
22 जून 2005 को सुबह 5:00 बजे सुंदर सिंह जी भंडारी ने अपनी देह को त्याग कर देवलोक गमन किया और इस दुखद समाचार को सुनकर उस समय पूरे देश में एक शोक की लहर फैल गई थी और यह कहा जा सकता है कि सुंदर सिंह जी भंडारी के निधन से भारत देश ने एक असाधारण निस्वार्थ राष्ट्रवादी व्यक्तित्व गंवा दिया।
भारतीय जनता पार्टी ने सुंदर सिंह जी भंडारी के देहांत से एक कुशल संगठक चिंतक और मार्ग निर्देशक को खो दिया था।
सुंदर सिंह जी भंडारी के देहावसान के समय भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी जी ने कहा था की "राजनीतिक क्षेत्र में रहते हुए राजनीति की फिसलन से बचे रहने वाले बहुत ही कम लोग होते हैं और सुंदर सिंह भंडारी उन्हीं लोगों में से एक थे।"

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें