बुधवार, 19 जून 2019

क्या 'एक देश एक चुनाव' से बीजेपी को फ़ायदा होगा

प्रधानमंत्री काफ़ी समय से लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ कराने पर ज़ोर देते रहे हैं। लेकिन इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों की राय बंटी हुई है।भाजपा अपने ही लोगों को इस मुद्दे पर सहमत नहीं कर पाई तो दूसरी पार्टियों को कैसे एकमत कर पाएगी। कब-कब एक साथ हुए चुनाव


 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘एक देश एक चुनाव’ की बैठक में पहुंच गए हैं। इस बैठक में वन नेशन, वन इलेक्शन के अलावा भारत की आजादी के 75 साल, महात्मा गांधी की 150वीं जयंती जैसे मुद्दों पर बात होनी है। इस मीटिंग में कई राजनीतिक दलों के अध्यक्ष भी पहुंच चुके हैं। मीटिंग में एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी पहुंच चुके हैं और सीपीआई के सीताराम येचुरी और सुधाकर रेड्डी के साथ डी राजा भी पहुंच चुके हैं। जम्मू-कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ़्ती भी मीटिंग में पहुंची हैं।

पीएम के द्वारा बुलाई गई मीटिंग में बिहार के सीएम नीतीश कुमार पहुंच चुके हैं और नवीन पटनायक भी पहुंच चुके हैं। सरकार की तरफ से नरेंद्र सिंह तोमर, राजनाथ सिंह, अमित शाह पहुंच चुके हैं और थावरचंद गहलोत भी मीटिंग में आ चुके हैं। राम विलास पासवान भी पहुंचे हैं। जे पी नड्डा भी मीटिंग में पहुंच चुके हैं। फारूक अब्दुल्ला और शरद पवार पहुंचे हैं।



ये नेता नहीं हो रहे शामिल

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बाद अन्य क्षेत्रीय दलों के प्रमुख भी बैठक का हिस्सा बनने से इनकार किया। अब कांग्रेस ने भी बैठक में शामिल होने से मना कर दिया है। ममता के बाद बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की सुप्रीमो मायावती, दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल, तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और डीएमके अध्यक्ष एम.के. स्टालिन ने भी बैठक में नहीं शामिल होने का मन बनाया है। हालांकि, इनमें से कुछ नेता बैठक में अपने प्रतिनिधियों को भेजेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन सभी राजनीतिक दलों के प्रमुखों को बुधवार को एक बैठक में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया है जिनका लोकसभा अथवा राज्यसभा में एक भी सदस्य है। इस बैठक में ‘एक देश, एक चुनाव’ के अलावा कुछ अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी चर्चा होगी।

बैठक में आने से इनका इनकार

कांग्रेस, चंद्रबाबू नायडू (टीडीपी), ममता बनर्जी (टीएमसी), मायावती (बीएसपी)

मायावती ने दी ये दलील

मायावती ने बैठक में शामिल न होने की जानकारी ट्वीट करते हुए लिखा, ‘किसी भी लोकतांत्रिक देश में चुनाव कभी कोई समस्या नहीं हो सकती है और न ही चुनाव को कभी धन के व्यय-अपव्यय से तौलना उचित है। देश में ‘एक देश, एक चुनाव’ की बात वास्तव में गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी, बढ़ती हिंसा जैसी ज्वलंत राष्ट्रीय समस्याओं से ध्यान बांटने का प्रयास व छलावा मात्र है।’

मायावती ने आगे लिखा, ‘बैलट पेपर के बजाय ईवीएम के माध्यम से चुनाव की सरकारी जिद से देश के लोकतंत्र व संविधान को असली खतरे का सामना है। ईवीएम के प्रति जनता का विश्वास चिन्ताजनक स्तर तक घट गया है। ऐसे में इस घातक समस्या पर विचार करने हेतु अगर आज की बैठक बुलाई गई होती तो मैं अवश्य ही उसमें शामिल होती।



 कब-कब एक साथ हुए चुनाव

आज़ादी के बाद देश में पहली बार 1951-52 में चुनाव हुए थे. तब लोकसभा चुनाव और सभी राज्यों में विधानसभा चुनाव एक साथ कराए गए थे।

इसके बाद 1957, 1962 और 1967 में भी चुनाव एक साथ कराए गए, लेकिन फिर ये सिलसिला टूटा।

साल 1999 में विधि आयोग ने पहली बार अपनी रिपोर्ट में कहा कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हों।

साल 2015 में कानून और न्याय मामलों की संसदीय समिति ने एक साथ चुनाव कराने की सिफ़ारिश की थी।

मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक देश एक चुनाव की सोच का समर्थन करते हैं।

इस साल हुए लोकसभा चुनाव से पहले यह कहा भी जा रहा था कि मोदी सरकार लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के बारे में सोच सकती है, हालांकि ऐसा नहीं हुआ।

मोदी सरकार इस साल हुए लोकसभा चुनाव के साथ हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड के विधानसभा के चुनाव भी कराना चाहती थी लेकिन कहा जाता है कि इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने ही अपनी सहमति नहीं जताई थी।

इन राज्यों में बीजेपी की सरकार है और यहां के मुख्यमंत्रियों ने कहा था कि वो समय से पहले अपनी विधानसभा भंग नहीं कर सकते हैं।

इन राज्यों में इस साल चुनाव होने हैं। ये सभी चुनाव कुछ महीनों के अंतर पर कराए जाएंगे। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि भाजपा अपने ही लोगों को इस मुद्दे पर सहमत नहीं कर पाई तो दूसरी पार्टियों को कैसे एकमत कर पाएगी।

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