जयपुर। चुनावी साल में राजस्थान भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद पर बदलाव को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। दिल्ली से लेकर जयपुर तक इसके लिए बैठकों का दौर भी चला लेकिन किसी भी नाम पर सहमति अब तक नहीं बन पाई।
राजस्थान बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष को लेकर इस बार भी सबकी निगाहें इसी बात पर टिकी है कि चुनावी साल में क्या इस पद पर सवर्ण समाज का दबदबा कायम रहेगा या फिर चुनावी रणनीति को साधने के लिए भाजपा इस पद पर दलित कार्ड खेलेगी। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद का अब तक का इतिहास तो यही कहता है कि इस पद पर ब्राह्मण समाज सहित सवर्ण जातियों का दबदबा रहा है। और इस वर्ग से आने वाले नेताओं ने प्रदेशाध्यक्ष पद की भूमिका का निर्वाह भी बखूबी निभाया।
हालांकि राजस्थान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर सवर्ण समाज के अलावा अन्य समाजों का प्रतिनिधित्व अब तक नहीं मिल पाया है लेकिन चुनावी साल में इस मिथक के टूटने की संभावना बन रही है। वो इसलिए क्योंकि केंद्र भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर अर्जुन राम मेघवाल के रूप में दलित कार्ड खेलने को बेताब है लेकिन प्रदेश नेता अब तक इस पर सहमत नहीं हुए हैं जिसके चलते यह पेंच अब तक अटका हुआ है।
8 बार ब्राह्मण वर्ग से बना प्रदेश अध्यक्ष
भाजपा के स्थापना दिवस से लेकर अब तक के कार्यकाल में राजस्थान भाजपा को 16 प्रदेशाध्यक्ष मिले। इनमें सर्वाधिक 8 प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मण वर्ग के रहे। सबसे पहले 1981 में हरिशंकर भाभड़ा के रूप में राजस्थान भाजपा को ब्राह्मण वर्ग का प्रदेश अध्यक्ष मिला। उसके बाद भंवरलाल शर्मा, ललित किशोर शर्मा, महेश शर्मा और अरुण चतुर्वेदी भी प्रदेश अध्यक्ष रहे।
इनमें भंवरलाल शर्मा सर्वाधिक 3 बार प्रदेश अध्यक्ष बने तो वहीं हरिशंकर भाभड़ा, ललित किशोर चतुर्वेदी, महेश शर्मा और अरुण चतुर्वेदी एक बार प्रदेश अध्यक्ष रहे। इसके अलवा दो बार कायस्थ और एक-एक बार राजपूत, वैश्य, पंजाबी समाज से प्रदेशाध्यक्ष रहा। वहीं मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी दो बार भाजपा प्रदेशाध्यक्ष रह चुकी हैं।
साल 1980 के बाद से अब तक के कुल कार्यकाल में से आधे से ज्यादा समय करीब 23 साल प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की कुर्सी पर ब्राह्मण समाज का ही वर्चस्व रहा और इसके अलावा जो भी प्रदेश अध्यक्ष बने वह भी सवर्ण समाज से ही आते हैं। मतलब भाजपा की स्थापना के बाद से ही राजस्थान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर सवर्ण समाज का दबदबा रहा है।
अब तक यह रहे प्रदेशाध्यक्ष
1 जगदीश प्रसाद माथुर 10 अप्रैल 1980 से साल 1981 तक
2 हरिशंकर भाभड़ा साल 1981 से जनवरी 1986 तक
3 भंवरलाल शर्मा जनवरी 1986 से दिसंबर 1928 तक
4 ललित किशोर चतुर्वेदी दिसंबर 1928 से जुलाई 1989 तक
5 भंवरलाल शर्मा जुलाई 1989 से मार्च 1990 तक
6 रामदास अग्रवाल मार्च 1990 से दिसंबर 1997 तक
7 रघुवीर सिंह कौशल 18 दिसंबर 1997 से 26 मई 1999 तक
9 गुलाबचंद कटारिया 26 मई 1999 से 17 जून 2000
10 भंवरलाल शर्मा 17 जून 2000 से 14 नवंबर 2002 तक
11 वसुंधरा राजे 14 नवंबर 2002 से 14 दिसंबर 2003 तक
12 ललित किशोर चतुर्वेदी 14 दिसंबर 2003 से 7 फरवरी 2006 तक
1 3 महेश चंद शर्मा 7 फरवरी 2006 से 7 जनवरी 2008 तक
14 ओम प्रकाश माथुर 7 जनवरी 2008 से 13 जनवरी 2009 तक
15 अरुण चतुर्वेदी 13 जुलाई 2009 से 2 फरवरी 2013 तक
16 वसुंधरा राजे 2 फरवरी 2013 से 12 फरवरी 2014 तक
17 अशोक परनामी 12 फरवरी 2014 से वर्तमान में
सोशल इंजीनियरिंग करेगी बीजेपी
चुनावी साल में भाजपा प्रदेशाध्यक्ष बदलना लगभग तय है लेकिन इस बार प्रदेशाध्यक्ष पद पर जो भी बदलाव होगा वो सोशल इंजीनियरिंग को ध्यान में रखते हुए ही किया जाएगा। इस बदलाव के जरिए भाजपा से नाराज चल रहे समाजों को मनाने की कवायद भी होगी और यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि जो भी नेता इस पद पर आए वो आबादी के लिहाज से प्रदेश में मजबूत स्थिति में हो।
ऐसे में अध्यक्ष ब्राह्मण, राजपूत, जाट और एससी वर्ग का हो सकता है। अब तक की परंपरा निभाई गई तो ब्राह्मण सहित आबादी के लिहाज से मजबूत सवर्ण समाज से किसी नेता को इस पद से नवाजा जा सकता है और अब तक की परंपरा टूटी तो अनुसूचित जाति से किसी नेता को प्रदेशाध्यक्ष बनाया जाएगा।
राजस्थान बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष को लेकर इस बार भी सबकी निगाहें इसी बात पर टिकी है कि चुनावी साल में क्या इस पद पर सवर्ण समाज का दबदबा कायम रहेगा या फिर चुनावी रणनीति को साधने के लिए भाजपा इस पद पर दलित कार्ड खेलेगी। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद का अब तक का इतिहास तो यही कहता है कि इस पद पर ब्राह्मण समाज सहित सवर्ण जातियों का दबदबा रहा है। और इस वर्ग से आने वाले नेताओं ने प्रदेशाध्यक्ष पद की भूमिका का निर्वाह भी बखूबी निभाया।
हालांकि राजस्थान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर सवर्ण समाज के अलावा अन्य समाजों का प्रतिनिधित्व अब तक नहीं मिल पाया है लेकिन चुनावी साल में इस मिथक के टूटने की संभावना बन रही है। वो इसलिए क्योंकि केंद्र भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर अर्जुन राम मेघवाल के रूप में दलित कार्ड खेलने को बेताब है लेकिन प्रदेश नेता अब तक इस पर सहमत नहीं हुए हैं जिसके चलते यह पेंच अब तक अटका हुआ है।
8 बार ब्राह्मण वर्ग से बना प्रदेश अध्यक्ष
भाजपा के स्थापना दिवस से लेकर अब तक के कार्यकाल में राजस्थान भाजपा को 16 प्रदेशाध्यक्ष मिले। इनमें सर्वाधिक 8 प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मण वर्ग के रहे। सबसे पहले 1981 में हरिशंकर भाभड़ा के रूप में राजस्थान भाजपा को ब्राह्मण वर्ग का प्रदेश अध्यक्ष मिला। उसके बाद भंवरलाल शर्मा, ललित किशोर शर्मा, महेश शर्मा और अरुण चतुर्वेदी भी प्रदेश अध्यक्ष रहे।
इनमें भंवरलाल शर्मा सर्वाधिक 3 बार प्रदेश अध्यक्ष बने तो वहीं हरिशंकर भाभड़ा, ललित किशोर चतुर्वेदी, महेश शर्मा और अरुण चतुर्वेदी एक बार प्रदेश अध्यक्ष रहे। इसके अलवा दो बार कायस्थ और एक-एक बार राजपूत, वैश्य, पंजाबी समाज से प्रदेशाध्यक्ष रहा। वहीं मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी दो बार भाजपा प्रदेशाध्यक्ष रह चुकी हैं।
साल 1980 के बाद से अब तक के कुल कार्यकाल में से आधे से ज्यादा समय करीब 23 साल प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की कुर्सी पर ब्राह्मण समाज का ही वर्चस्व रहा और इसके अलावा जो भी प्रदेश अध्यक्ष बने वह भी सवर्ण समाज से ही आते हैं। मतलब भाजपा की स्थापना के बाद से ही राजस्थान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर सवर्ण समाज का दबदबा रहा है।
अब तक यह रहे प्रदेशाध्यक्ष
1 जगदीश प्रसाद माथुर 10 अप्रैल 1980 से साल 1981 तक
2 हरिशंकर भाभड़ा साल 1981 से जनवरी 1986 तक
3 भंवरलाल शर्मा जनवरी 1986 से दिसंबर 1928 तक
4 ललित किशोर चतुर्वेदी दिसंबर 1928 से जुलाई 1989 तक
5 भंवरलाल शर्मा जुलाई 1989 से मार्च 1990 तक
6 रामदास अग्रवाल मार्च 1990 से दिसंबर 1997 तक
7 रघुवीर सिंह कौशल 18 दिसंबर 1997 से 26 मई 1999 तक
9 गुलाबचंद कटारिया 26 मई 1999 से 17 जून 2000
10 भंवरलाल शर्मा 17 जून 2000 से 14 नवंबर 2002 तक
11 वसुंधरा राजे 14 नवंबर 2002 से 14 दिसंबर 2003 तक
12 ललित किशोर चतुर्वेदी 14 दिसंबर 2003 से 7 फरवरी 2006 तक
1 3 महेश चंद शर्मा 7 फरवरी 2006 से 7 जनवरी 2008 तक
14 ओम प्रकाश माथुर 7 जनवरी 2008 से 13 जनवरी 2009 तक
15 अरुण चतुर्वेदी 13 जुलाई 2009 से 2 फरवरी 2013 तक
16 वसुंधरा राजे 2 फरवरी 2013 से 12 फरवरी 2014 तक
17 अशोक परनामी 12 फरवरी 2014 से वर्तमान में
सोशल इंजीनियरिंग करेगी बीजेपी
चुनावी साल में भाजपा प्रदेशाध्यक्ष बदलना लगभग तय है लेकिन इस बार प्रदेशाध्यक्ष पद पर जो भी बदलाव होगा वो सोशल इंजीनियरिंग को ध्यान में रखते हुए ही किया जाएगा। इस बदलाव के जरिए भाजपा से नाराज चल रहे समाजों को मनाने की कवायद भी होगी और यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि जो भी नेता इस पद पर आए वो आबादी के लिहाज से प्रदेश में मजबूत स्थिति में हो।
ऐसे में अध्यक्ष ब्राह्मण, राजपूत, जाट और एससी वर्ग का हो सकता है। अब तक की परंपरा निभाई गई तो ब्राह्मण सहित आबादी के लिहाज से मजबूत सवर्ण समाज से किसी नेता को इस पद से नवाजा जा सकता है और अब तक की परंपरा टूटी तो अनुसूचित जाति से किसी नेता को प्रदेशाध्यक्ष बनाया जाएगा।

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