याचिका ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ एससी, एसटी आर्गेनाईजेशन ने दायर की है। याचिकाकर्ता ने आज चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष मेंशन करते हुए इस पर जल्द सुनवाई की मांग की। लेकिन कोर्ट ने इस पर जल्द सुनवाई करने से इनकार कर दिया है।
भारत बंद
जब इसे चीफ जस्टिस की कोर्ट में मेंशन किया गया था तब याचिकाकर्ता ने कहा कि देश भर में दलित संगठनों के विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं इसलिए इस पर जल्द सुनवाई की जाए। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि हम नियमित प्रक्रिया के तहत ही सुनवाई करेंगे।
कानून का उद्देश्य ही कमजोर हो जाएगा
आपको बता दें कि आज ही केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दाखिल की है। केंद्र सरकार ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के बाद इस कानून का उद्देश्य ही कमजोर हो जाएगा। अग्रिम जमानत के रास्ते खोलने से इसका अभियुक्त दुरुपयोग करेगा और पीड़ित को धमका सकता है और वो जांच को प्रभावित कर सकता है। केंद्र सरकार ने इस मामले पर खुली अदालत में बहस और सुनवाई की मांग की।
मौलिक अधिकार का हनन नहीं
रिव्यू पिटीशन में केंद्र सरकार ने कहा है कि इस कानून में अभियुक्त को अग्रिम जमानत का हक न देने से धारा 21 में उसे मिले जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन नहीं होता है। एससी, एसटी कानून में ये 1973 में नये अधिकार के तौर पर जोड़ा गया था। सरकार ने कहा है कि अभियुक्त के अधिकारों के संरक्षण के साथ ही एससी, एसटी समुदाय को संविधान में मिले अधिकारों को संरक्षित करना भी महत्वपूर्ण है। कानून का दुरुपयोग उसके प्रावधानों की दोबारा व्याख्या का न्यायोचित आधार नहीं हो सकता है।
लोजपा ने भी रिव्यू पिटीशन दाखिल की
इससे पहले केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की लोजपा ने भी रिव्यू पिटीशन दाखिल की थी। लोजपा के रिव्यू पिटीशन में इस मामले को संविधान बेंच भेजने की मांग की गई है ।
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 20 मार्च को लोकसेवकों के खिलाफ एससी-एसटी एक्ट का दुरुपयोग रोकने के लिए दिशानिर्देश जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि लोकसेवक को गिरफ्तार करने से पहले सक्षम प्राधिकारी से अनुमति लेना जरूरी है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत देने पर कोई रोक नहीं है। निचली कोर्ट इस मामले में अग्रिम जमानत भी दे सकती है।
बेंच ने की पड़ताल
जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यूयू ललित की बेंच ने इस सवाल का पड़ताल किया था कि क्या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) (एससी-एसटी एक्ट) 1989 के प्रावधानों का दुरुपयोग रोकने के लिए सुरक्षात्मक उपाय जारी किए जा सकते हैं ।
कोर्ट ने निर्देश देते हुए कहा था कि अत्याचार अधिनियम के तहत अपराधों के संबंध में गिरफ्तारी के लिए किसी भी अन्य स्वतंत्र अपराध के अभाव में, यदि कोई आरोपी सार्वजनिक कर्मचारी है तो नियुक्ति प्राधिकारी की लिखित अनुमति के बिना और अगर कोई आरोपी एक सार्वजनिक कर्मचारी नहीं है तो जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की लिखित अनुमति के बिना गिरफ्तारी नहीं हो सकती है। ऐसी अनुमतियों के लिए, किए जाने वाले कारणों को दर्ज किया जाना चाहिए और संबंधित कोर्ट में पेश किया जाना चाहिए। मजिस्ट्रेट को दर्ज कारणों पर अपना ध्यान देना चाहिए और आगे हिरासत में रखने की अनुमति केवल तभी दी जानी चाहिए जब दर्ज किए गए कारण मान्य हैं।

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