सोमवार, 30 अप्रैल 2018

राजस्थान मे भाजपा सरकार बनी भूःमाफिया प्रदेश के 25 जिलों में करोड़ों की भूमि करवा लिया आवंटन

राजस्थान की भाजपा सरकार में सत्ता का कथित दुरुपयोग से भाजपा जिला कार्यालय की जमीन में भाजपा को करीब 38 से 49 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचा है  वैसे सरकार ऐसा करने के लिए अधिकृत है, लेकिन ये सवाल भी बनता है कि जिस तरह मंत्री, अधिकारी या जनप्रतिनिधि के अपबे अधिकारों का इस्तेमाल करके अपने ही रिश्तेदार को फायदा पहुंचना भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है तो क्या भाजपा की राज्य सरकार द्वारा अपनी पार्टी भाजपा को फायदा देने के लिए भूमि की दरें डीएलसी से भी कम करना अनियमितता की श्रेणी में नहीं आता है।   जो जमीन राज्य सरकार ने जिला भाजपा कार्यालय के लिए दी है उसकी दर तो रिहायशी और व्यावसायिक भूमि की वास्तविक डीएलसी दर से भी एक चैथाई है। ऐसे में यदि राज्य के जिलों में भाजपा कार्यालय बनाये जा रहे है और उसके लिए भी इसी तरह जमीनों की दर डीएलसी से भी कम की होगी तो इस आंकड़े के अरबों में पहुंचने में कोई अतिश्योक्ति नही है।


जयपुर। राजस्थान में वसुंधरा सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2016 और 2017 में राजस्थान भाजपा ने प्रदेश के 25 जिलों में करोड़ों रुपए देकर भूमि का आवंटन करवा लिया है। यह भूमि जिला कार्यालयों के लिए आवंटित की गई है। 1000 से 4000 वर्गमीटर तक की भूमि जिला कार्यालयों के निर्माण के लिए खरीदी गई है।


नागौर - भूमि का क्षेत्रफल - 2000 वर्गमीटर, मांग राशि - 27, 32,880/- रुपए

जैसलमेर - भूमि का क्षेत्रफल - 1644.38 वर्गमीटर, मांग राशि - 6,71,750/- रुपए

राजसमंद -भूमि का क्षेत्रफल - 1975 वर्गमीटर, मांग राशि - 1,88,00,730 रुपए

चित्तौड़गढ़-भूमि का क्षेत्रफल - 2787.09 वर्गमीटर, मांग राशि - 2, 63, 62, 813 रुपए

हनुमानगढ़ - भूमि का क्षेत्रफल- 1999.01 वर्गमीटर, मांग राशि - 22,68,572 रुपए

सिरोही - भूमि का क्षेत्रफल-2000 वर्गमीटर, मांग राशि - 1,28,94,000 रुपए

बूंदी - भूमि का क्षेत्रफल- 1635.04 वर्गमीटर, मांग राशि -91,06, 000 रुपए

धौलपुर - भूमि का क्षेत्रफल - 2000 वर्गमीटर, मांग राशि - 99,67,940 रुपए

करौली - भूमि का क्षेत्रफल -1000 वर्गमीटर, मांग राशि - 1,50,50,739 रुपए

दौसा - भूमि का क्षेत्रफल - 1400 वर्गमीटर, मांग राशि - 1, 34, 99, 772 रुपए

टोंक - भूमि का क्षेत्रफल - 185.80 वर्गमीटर, मांग राशि - 92,00, 000 रुपए

डूंगरपुर - भूमि का क्षेत्रफल -1913.61 वर्गमीटर, मांग राशि - 45,10, 962 रुपए

झुंझुनूं - भूमि का क्षेत्रफल- 1793.64 वर्गमीटर, मांग राशि - 1,26,08,175 रुपए

झालावाड़ - भूमि का क्षेत्रफल - 2000 वर्गमीटर, मांग राशि - 2,68,34,364 रुपए

पाली - भूमि का क्षेत्रफल - 2000 वर्गमीटर, मांग राशि - 1,54,65,402 रुपए

बांसवाड़ा - भूमि का क्षेत्रफल 1708 वर्गमीटर, मांग राशि - अभी तय नहीं


उदयपुर -भूमि का क्षेत्रफल - 2100.92 वर्गमीटर, मांग राशि - 65, 00, 225 रुपए

भीलवाड़ा - भूमि का क्षेत्रफल - 3972.77 वर्गमीटर, मांग राशि -61,75,00 रुपए

कोटा - भूमि का क्षेत्रफल - 3000 वर्गमीटर, मांग राशि - 1,72,50,000 रुपए

भरतपुर - भूमि का क्षेत्रफल - 2000 वर्गमीटर -, मांग राशि -2,51,60,490 रुपए

सवाईमाधोपुर - भूमि का क्षेत्रफल - 2000 वर्गमीटर - अभी भू-उपयोग परिवर्तन होना है।

चूरू - भूमि का क्षेत्रफल - 2000 वर्ममीटर - मांग राशि, अभी तय नहीं

बाड़मेर - भूमि का क्षेत्रफल - 2000 वर्मगीटर , मांग राशि - 15,57,184 रुपए

बीकानेर - भूमि का क्षेत्रफल - 2323.42 वर्गमीटर - अभी भू- उपयोग परिवर्तन की होना है।

श्रीगंगानगर - भूमि का क्षेत्रफल - 1912.63 वर्गमीटर, मांग राशि - अभी तय नहीं



कुल मिलाकर अभी तक 25 जिलों में लाखों- करोड़ों रुपए की भूमि का आवंटन हो चुका है।  जालोर और सीकर में निजी भूमि जिला कार्यालयों के लिए ली गई है। वहीं बारां और अजमेर में भूमि आवंटन की प्रक्रियाधीन है।

डीबी गुप्ता बने राज्य के 41वें मुख्य सचिव

मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने उनके नाम की मंजूरी  बूंदी से लौटने के बाद आखिरी वक्त में  उनके नाम की स्वीकृति दी।  गुप्ता 1983 बैच के अधिकारी है।वे रात को आदेश आने तक सचिवलाय में सीएस के चैंबर में मौजूद रहे।



जयपुर। नए मुख्य सचिव डीबी गुप्ता ने सचिवालय में सोमवार रात को कार्यभार संभाल लिया। निवर्तमान मुख्य सचिव एनसी गोयल ने उन्हें चार्ज दिया। इस मौके पर सीएस के स्टाफ और वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों, उनके रिश्तेदार, परिचितों ने बधाई दी। गुप्ता राज्य के 41वें मुख्य सचिव बने हैं।

इस मौके पर मीडिया से बात करते हुए गुप्ता ने कहा कि उनकी पहली प्राथमिकता सरकार की योजनाओं को सही ढंग से क्रियान्वित करना है। वे तय करेंगे कि मुख्यमंत्री की बजट घोषणाओं का जल्द से जल्द क्रियान्वयन किया जाए। संसाधनों की कमी किसी तरह नहीं आने दी जाएगी। अप्रैल में वादा किया था कि सातवें वेतन आयोग की पहली किश्त दी जाएगी वो दे दी गई है। बजट घोषणाओं की सभी फाइलें मंगा ली गई है इसमें 75 फीसदी वित्तीय स्वीकृतियां जारी की जा चुकी है। ब्यूरोक्रेसी में कोई अकेले कुछ नहीं कर सकता। हम टीम बना कर टीम भावना से काम करेंगे।

उन्होंने कहा कि सीएम ने उन पर जो विश्वास जताया है उस पर वे खरा उतरने का प्रयास करेंगे। मंत्री, विधायकों और अफसरों के बीच आ रही कठिनाईयों आपसी बातचीत और वार्ता से सुलझाएंगे। डीबी गुप्ता के साथ उनकी पत्नी,और मेडिकल विभाग में एसीएस वीनू गुप्ता, उनके बच्चे भी साथ थे। गुप्ता ने कार्यभार संभालने के बाद एनसी गोयल के साथ कमरे के बाहर आए और उन्हें कार में बैठा कर विदाई दी।        

आत्मघाती हमले में आठ पत्रकार समेत 25 की मौत

लगातार हो रहे विस्फोट से अफगानिस्तान की सूची दुनिया के खतरनाक जगहों में शामिल हो गयी है. अफगानिस्तान : आत्मघाती हमले में आठ पत्रकार समेत 25 की मौत, इस्लामिक स्टेट ने ली जिम्मेवारी 



अफगानिस्तान के काबुल में सोमवार सुबह एक विस्फोट में आठ पत्रकार समेत 25 लोगों की मौत हो गयी. पहला ब्लास्ट शहर के शहसाद्रक एरिया में सुबह 8 बजे हुआ, इसी इलाके में अमेरिका का दूतावास स्थित है. वहीं थोड़ी दूर में एक और विस्फोट हुआ. बताया जा रहा है कि आत्मघाती हमलावरों ने अफगानी इंटेलीजेंस एजेंसी के दफ्तर के सामने खुद को उड़ा लिया.विस्फोट के बाद इलाके में अफरा - तफरी मच गयी.
इस विस्फोट में एएफपी (एजेंसी फ्रांसे प्रेसे) के शाह मिराई नामक फोटोग्राफर और टीवी पत्रकार गाजा रसूली की भी मौत हो गयी. जहां हमला हुआ वहां नाटो का अफगान हेडक्वार्टर भी है.


काबुल सिटी के पुलिस प्रवक्ता हशमत स्टेनीकाजाई ने सीएनएन से कहा कि दूसरा ब्लास्ट करने वाला शख्स एक कैमरामेन की वेश में था. बता दें कि पिछले दिनों काबुल में एक हमले से 63 लोगों की मौत हो गयी थी. 

रविवार, 29 अप्रैल 2018

भारत के इतिहास में किसी भी राज्य में सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री के रूप में सेवा करने वाले पहले मुख्यमंत्री

सिक्किम के पवन चामलिंग बने भारत के सबसे अधिक समय तक राज करने वाले सीएम, ज्‍योति बसु का रिकॉर्ड तोड़ा


 सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन चामलिंग भारत के इतिहास में किसी भी राज्य में सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री के रूप में सेवा करने वाले पहले मुख्यमंत्री बन गये हैं. पवन चामलिंग ने बिना किसी बाधा के 25 साल का लंबा कार्यकाल पूरा कर लिया. उन्होंने पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु का रिकॉर्ड तोड़ दिया, जिन्होंने 23 साल तक पद संभाला था. इससे पहले सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड ज्योति बसु का ही था.

सत्तारूढ़ सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) के संस्थापक अध्यक्ष पवन चामलिंग दिसंबर 1994 में मुख्यमंत्री बने थे. 'न्यू सिक्किम, हैप्पी सिक्किम' के नारे के साथ, उन्होंने राज्य को बदलने के लिए नीतियों और कार्यक्रमों की शुरुआत की. इस मौके पर उनके समर्थक उन्हें सम्मानति करने के लिए आयोजन आयोजित किया.

सिक्किम में जल्द शुरू होगा पहला सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज

सीएम चामलिंग ने कहा कि जैसा कि मैंने एक व्यक्तिगत मील का पत्थर पार की है, तो मैं उन सभी लोगों को याद रखना चाहूंगा, जो इस यात्रा का हिस्सा रहे हैं. सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मेरा दिल से सिक्किम के लोगों को को धन्यवाद, जिन्होंने मुझे लगातार पांचवे टर्म के लिए जनादेश दिया और मुझ पर विश्वास जताया.

68 साल के सीएम चामलिंग ने कहा कि इस महत्वपूर्ण अवसर पर मैं स्वर्गीय ज्योति बसु जी के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, एक महान राजनेता जिसके लिए मेरे दिल में अपाल सम्मान है और जिनका मुख्यमंत्री पद के रूप में कार्यकाल है, मैं उनका रिकॉर्ड पार कर अपने आप को भाग्यशाली समझता हूं.'

बता दें कि दक्षिण सिक्किम के यांगांग में जन्मे सीएम चामलिंग मैट्रिक पास हैं और उनका दावा है कि उन्होंने खुद से पढ़ाई की है.

टिप्पणियांसिक्किम उपचुनाव : बतौर निर्दलीय उम्मीदवार मुख्यमंत्री के भाई अारएन चामलिंग विजयी

1973 में, जब वह केवल 22 वर्ष के थे, तब उन्होंने राजनीति में अपना कमद रखा. उस वक्त भारत के साथ सिक्किम साम्राज्य के विलय की बात कर रही थी. उसके बाद 1975 में चामलिंग युवा कांग्रेस के ब्लॉक अध्यक्ष बने और 1978 में प्रजातंत्र कांग्रेस के सचिव चुने गए. 1983 में वह यांगांग ग्राम पंचायत इकाई के अध्यक्ष चुने गए. इस तरह से साल 1993 में सीएम चामलिंग ने सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट पार्टी का गठन किया.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मोदी को पत्र लिख कर नेता डाॅ राममनोहर लोहिया को भारतरत्न देने की मांग की है

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता डाॅ राममनोहर लोहिया  को भारतरत्न देने की मांग की है.

इस पत्र में मुख्यमंत्री ने गोवा हवाई अड्डे का नामकरण भी डाॅ लोहिया के नाम पर करने का आग्रह किया है. उन्होंने कहा है  कि लोहिया की पुण्यतिथि 12 अक्तूबर को है. उस तिथि को केंद्र सरकार डाॅ लोहिया को भारतरत्न से सम्मानित करे.

प्रधानमंत्री को लिखे पत्र  में नीतीश कुमार ने भारतीय राजनीति में डॉ लोहिया के योगदानों का सिलसिलेवार उल्लेख  किया है. मुख्यमंत्री ने लिखा है, जब भारत को आजादी मिलनेवाली थी और यह  बड़ा प्रश्न विचारणीय था कि विपक्ष की भूमिका निभाने वाला नेता और  कार्यकर्ता कहां से आयेंगे, जो भारतीय राजनीति को जनोन्नमुख बना सके. 

कांग्रेस की नयी पीढ़ी के युवा नेताओं द्वारा गहन विचार मंथन कर यह निर्णय  लिया गया कि जीवंत विपक्ष की भूमिका निबाहने के लिए एक नये दल का गठन  आवश्यक है. इसी के अनुसार 1948 में डाॅ लोहिया और जयप्रकाश नारायण समेत  अधिकतर समाजवादी नेताओं ने कांग्रेस से संबंध तोड़ लिया.

इसके पहले पटना  में ही 1934 में सभी समाजवादी नेताओं ने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन  किया था. गांधीजी से भी इनके अच्छे संबंध बने रहे. इन नेताओं ने सड़क से  संसद तक संघर्ष का रास्ता अख्तियार किया. नेपाल में लोकतंत्र स्थापित   करने के लिए लोहिया और जयप्रकाश नारायण की अगुआई में सफल आंदोलन चला.

डॉ  लोहिया को अंग्रेज पुलिस ने विद्रोही आजाद रेडियो चलाने के जुर्म में  गिरफ्तार किया. उनको लाहौर फोर्ट जेल में यातनाएं दी गयीं. रिहाई के तुरंत  बाद स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि से डाॅ लोहिया गोवा में अपने मित्र  डाॅ  मेंडिस के घर गये.

वहां पहुंचते ही तमाम भारतीय प्रतिनिधिमंडलों ने आकर  पुर्तगाली पुलिस द्वारा लागू किये जा रहे अमानवीय कायदे-कानूनों और व्यवहार  की जानकारी देकर डाॅ लोहिया को विचलित कर दिया. शीघ्र ही गोवा में जनजागरण,  विरोध प्रदर्शन व कानून भंग के कारण उन्हें गोवा में कैद कर लिया गया.

इस  संघर्ष से गोवा का मुक्ति संग्राम आरंभ हुआ. बड़े पैमाने पर बार-बार विरोध  प्रदर्शनों का सिलसिला बढ़ता गया. साथ ही लोहिया की जेल यात्राएं भी बढ़ती  गयीं.  आजादी के बाद डाॅ लोहिया ने सरकार में शामिल होने के सभी प्रस्तावों  को इन्कार कर दिया.  तत्कालीन केंद्र व राज्य सरकारों की जनविरोधी नीतियों  के विरुद्ध लगातार संघर्षरत रहने के कारण डाॅ लोहिया को आजाद भारत में 11  बार अत्यंत तकलीफदेह स्थितियों में लंबी-लंबी जेल यात्राएं करनी पड़ीं. 

संसद में जवाहरलाल नेहरू की सरकार के विरुद्ध पहले अविश्वास प्रस्ताव और  सिद्धांत नीति पर प्रखर आलोचना  करते हुए डाॅ लोहिया ने समूचे विपक्ष को  गैर कांग्रेसवाद की धुरी पर इकट्ठा किया. अपनी मृत्यु के पहले 1967 में कई  राज्यों में गैर कांग्रेस की सरकारें बनवायीं. यह सिलसिला 1977 में कई  राज्यों में परवान चढ़ा, जब केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकार बनी.

गोवा एयरपोर्ट का नामकरण लोहिया के नाम पर करने का किया अनुरोध

महिलाओं के लिए की थी दरवाजा बंद शौचालयों के निर्माण की मांग

सीएम ने लिखा है िक डाॅ लोहिया  गांवों में स्त्रियों के लिए दरवाजा बंद शौचालयोंके निर्माण की मांग  तत्कालीन सरकार से लगातार करते रहे. खुले में शौच देहात की औरतों के लिए न  सिर्फ शर्मनाक व लज्जाजनक थी, बल्कि यह उनके  स्वास्थ्य पर भी विपरीत  प्रभाव डाल रहा था.

आक्रामक रूप से नेहरू विरोधी होते हुए भी डाॅ लोहिया ने  कहा कि नेहरू सभी गांवों में महिलाओं के लिए शौचालय बनवा दें तो मैं उनका  विरोध करना बंद कर दूंगा. लोहिया गांव की महिलाओं के लिए चिमनीयुक्त और  धुआंमुक्त चूल्हों की तकनीक को प्रत्येक घर की रसोई में पहुंचाने की आवाज  संसद में और सड़कों पर लगातार गूंजती रही. यह उनकी दूरदर्शिता का परिचायक  थी.

सप्तक्रांति का नारा दिया था

सीएम ने पत्र में लिखा है कि लोहिया ने समाजवाद की देशज अवधारणा को भी संपूर्ण रूप से परिभाषित किया. मार्क्स के  बाद अर्थशास्त्र और इतिहास चक्र से डाॅ लोहिया ने मार्क्स के अर्थशास्त्र व  इतिहास का विश्लेषण की समग्र समालोचना की.

 20वीं सदी के पांचवें दशक में ही  नदियों की सफाई, हिमालय बचाओ, जाति व योनि के दो कटघरों, छोटी मशीन की  टेक्नोलॉजी, विश्व सरकार की अवधारणा और शोषण व विषमता के सात कारणों को  दूर करने के लिए डाॅ लोहिया ने सप्तक्रांति का नारा दिया.
पूरे देश में अंग्रेजी हटाओ आंदोलन चलाया था

पत्र में लिखा है िक अमेरिका में रंगभेद नीति का विरोध करने पर डाॅ लोहिया गिरफ्तार हुए. वह  खुद अंग्रेजी और जर्मन भाषा के विद्वान थे. 
मातृभाषाओं को लोक कार्यों व  शिक्षा में प्रोत्साहन व प्राथमिकता देने और अंग्रेजी को सिर्फ ऐच्छिक भाषा  का दर्जा देने के हिमायती थे. उन्होंने अंग्रेजी हटाओ आंदोलन को पूरे भारत  में चलाया. एक साधारण सरकारी अस्पताल में मामूली आपरेशन के बाद इन्फेक्शन  की जटिलताओं और विशेष डाॅक्टरी सुविधा लेने से इन्कार करने के बाद उनकी  मृत्यु हुई.

उनकी इच्छा के अनुसार उनकी अंत्येष्टि दिल्ली के उसी विद्युत  शवदाहगृह में की गयी, जहां लावारिस लोगों का शवदाह किया जाता था. उनका जीवन  सुविधाहीन था. स्वलिखित पुस्तकों के ढेर के अलावा उनके पास कुछ नहीं था.   मुख्यमंत्री ने लिखा है कि डाॅ लोहिया के राष्ट्रीय व 

अंतरराष्ट्रीय योगदान  के उस परिप्रेक्ष्य में केंद्र सरकार की ओर से इस वर्ष उनकी पुण्यतिथि 12  अक्तूबर को भारतरत्न से सम्मानित किया जाये और गोवा हवाई अड्डे का नाम डा  राम मनोहर लोहिया हवाई अड्डा किया जाये.

पिछले वर्ष उनकी मृत्यु के पांच  दशक पूरे हुए हैं. मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से व्यक्तिगत अनुरोध किया  है कि इस प्रस्ताव पर विचार करने के लिए संबंधित मंत्रालय को आवश्यक कदम  उठाने का निर्देश दें.       

नेपाल : भारत की मदद से तैयार पनबिजली परियोजना में विस्फोट, PM मोदी करने वाले थे शिलान्यास

पूर्वी नेपाल में भारत के सहयोग से विकसित एक पनबिजली परियोजना के कार्यालय में आज बम विस्फोट हुआ. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ ही हफ्तों में इसका शिलान्यास करने वाले थे. जिससे पहले यह घटना सामने आई है. नेपाल के संखुवासभा जिले के मुख्य जिला अधिकारी शिवराज जोशी ने बताया कि विस्फोट से इस परियोजना के कार्यालय की चहारदीवारी नष्ट हो गई है.
900 मेगावाट क्षमता के अरुण-3 पनबिजली संयंत्र का कार्यालय काठमांडो से 500 किलोमीटर दूर खांडबरी-9 तुमलिंगटर में है. जोशी ने कहा कि विस्फोट के पीछे किसी अज्ञात समूह का हाथ है. इस परियोजना के 2020 तक चालू होने की संभावना है.यह विस्फोट ऐसे समय हुआ है जब मोदी 11 मई को अपनी आधिकारिक नेपाल यात्रा के दौरान इसका शिलान्यास करने जाने वाले हैं. अधिकारी ने कहा कि घटना में कोई हताहत नहीं हुआ है और कार्यालय मामूली रूप से क्षतिग्रस्त हुआ है. उन्होंने कहा कि जांच के आदेश दे दिए गए हैं और षड्यंत्रकारियों की तलाश की जा रही है.

घटना के बाद इलाके में सुरक्षा मजबूत कर दी गई है. हालांकि अभी तक किसी ने विस्फोट की जिम्मेदारी नहीं ली है. अरुण-3 परियोजना के लिए प्रधानमंत्री मोदी और तब नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोइराला की मौजूदगी में 25 नवंबर 2014 को परियोजना विकास समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. भारत की ओर से इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के सतुलज जल विद्युत निगम ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इस बीच यहां के भारतीय दूतावास ने मामले पर नेपाल के विदेश मंत्रालय से चर्चा की है.

नेपाल में एक माह के भीतर किसी भारतीय संपत्ति पर यह दूसरा हमला है. इससे पहले 17 अप्रैल को विराटनगर में भारतीय दूतावास के क्षेत्रीय कार्यालय के निकट प्रेशर कुकर बम विस्फोट हुआ था. इससे परिसर की दीवार क्षतिग्रस्त हो गई थी. नेपाल में फिलहाल बिजली की कमी है और इस परियोजना से जल विद्युत उत्पादन से मुख्यत: इसकी घरेलू मांगें पूरी होंगी. परियोजना से नेपाल में डेढ़ अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आएगा और हजारों लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे.

दलितों पर हमला, परिवार ने अपनाया बौद्ध धर्म

2016 में कथित तौर पर मृत गाय की खाल निकालने के मामले में दलित परिवार के चार सदस्यों की बांधकर सरेआम की गई थी पिटाई. दो साल बाद मामले के आरोपियों में से एक ने केस वापस लेने की धमकी देते हुए किया हमला.

 गुजरात के गिर सोमनाथ जिले की ऊना तहसील में गोरक्षकों द्वारा 2016 में जिस दलित परिवार के चार सदस्यों को कथित रूप से पीटा गया था, उस परिवार ने सैकड़ों लोगों के साथ रविवार को बौद्ध धर्म अपना लिया है.

गिर सोमनाथ जिले के मोटा समढियाला गांव में ही परिवार ने धर्म परिवर्तन संस्कार में भाग लिया. ये वही गांव है जहां दो साल पहले इन लोगों को पीटा गया था.

इस धर्म परिवर्तन कार्यक्रम से पहले बीती 25 अप्रैल की शाम को रमेश सरवैया और अशोक सरवैया पर दोबारा हमला हुआ. हमला करने वाला उन्हीं आरोपियों में से एक है, जिन्होंने 2016 में परिवार के चार सदस्यों की सरेआम पिटाई की थी. आरोपी अभी ज़मानत पर बाहर है.

बालुभाई सरवैया अपने परिवार के साथ ऊना से अपने गांव मोटा समढियाला लौट रहे थे, तभी किरनसिंह दरबार ने रमेश और अशोक पर हमला किया और धमकाया गया. धर्म परिवर्तन के लिए जरूरी अनुष्ठान सामग्री खरीदने के लिए परिवार ऊना शहर गया था. जिनमें बालू भाई , अशोक भाई, रमेश भाई, वश्राम और परिवार के अन्य सदस्य शामिल थे.

रमेश और वासराम के चचेरे भाई जीतूभाई सरवैया ने बताया कि परिवार एक गाड़ी में गांव लौट रहा था और अशोक और रमेश बाइक पर आगे चल रहे थे, तभी किरणसिंह दरबार ने देख लिया और दोनों पर हमला कर दिया.

ऊना पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर वीएम खुमान ने बताया, ‘रमेश और अशोक को किरणसिंह ने बाइक चलाते हुए देखा. किरण भी बाइक से जा रहा था. किरण ने अपने साथियों को दोनों की तरफ इशारा कर के बताया कि ये दोनों वही हैं जिनकी पिटाई की गई थी. रमेश को समटेर गांव के पास रामेश्वर पाटिया द्वारा रोका गया और मुक़दमा वापस लेने की धमकी दी गई. रमेश के मना करने पर किरण और उसके साथी ने डंडे से रमेश और अशोक पर हमला कर दिया. लेकिन रमेश ने उनका हाथ पकड़ लिया. भीड़ इकट्ठा होने के चलते किरण अपने साथियों के साथ वहां से भाग गया.’

खुमान ने आगे बताया कि किरण और उसका दोस्त फ़रार हैं. एफआईआर दर्ज कर ली गई है और मामले की जांच डीएसपी जेएम चावड़ा करेंगे, जो एससी/एसटी सेल के प्रभारी हैं.

ऊना कांड के बाद चार होमगार्ड को सरवैया परिवार की सुरक्षा में लगाया गया था, लेकिन ऊना जाते वक़्त उनके साथ कोई भी गार्ड मौजूद नहीं था.

पीड़ित परिवार के सदस्य पीयूष सरवैया ने बताया, ‘हमने 20 अप्रैल को जिला कलेक्टर को सूचित किया था कि हम 29 अप्रैल को बौद्ध धर्म अपनाएंगे और हमने कार्यक्रम के लिए अपने समुदाय और अन्य लोगों से समर्थन मांगा था.’

बहरहाल, धर्म परिवर्तन कार्यक्रम के आयोजक ने दावा किया कि इसमें 450 दलितों ने बौद्ध धर्म अपना लिया. सौराष्ट्र क्षेत्र में आयोजित इस कार्यक्रम में 1000 से अधिक दलितों ने हिस्सा लिया.

इस मामले के पीड़ितों बालू भाई सर्विया एवं उनके बेटों रमेश और वश्राम के अलावा उनकी पत्नी कंवर सर्विया ने बौद्ध धर्म स्वीकार किया.

बालू भाई के भतीजे अशोक सर्विया और उनके एक अन्य रिश्तेदार बेचर सर्विया ने बुद्ध पूर्णिमा के दिन हिंदू धर्म त्याग दिया था. ये दोनों भी उन सात लोगों में शामिल थे, जिनकी ख़ुद को गोरक्षक बताने वालों ने कथित तौर पर पिटाई की थी.

मालूम हो कि जून, 2016 में मृत गाय की कथित रूप से खाल उतारने के मामले में सरवैया परिवार के चार सदस्यों समेत सात दलितों की परेड निकाली गई थी और कार से बांधकर जमकर पिटाई की गई थी. घटना का वीडियो वायरल होने के बाद देश में रोष व्याप्त हो गया था.

इसके बाद गुजरात में राज्यस्तर पर दलितों ने आंदोलन किया था. सितंबर में गुजरात सीआईडी ने 43 लोगों को इस संबंध में गिरफ़्तार किया था, जिसमें दो नाबालिग और चार पुलिस वाले भी शामिल थे. चार में से एक पुलिस वाले की सितंबर, 2017 में पीलिया के चलते मौत हो गई.

बालू भाई ने बताया कि उत्पीड़न के एक अन्य पीड़ित देवजी भाई बाबरिया तबीयत ठीक नहीं होने के कारण कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सके. वह पड़ोसी बेदिया गांव के रहने वाले हैं.

रमेश ने कहा कि हिंदुओं द्वारा उनकी जाति को लेकर किये गए भेदभाव के कारण उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार किया.

उन्होंने कहा, ‘हिंदू गोरक्षकों ने हमें मुस्लिम कहा था. हिंदुओं के भेदभाव से हमें पीड़ा होती है और इस वजह से हमने धर्म परिवर्तन का निर्णय किया. यहां तक कि राज्य सरकार ने भी हमारे ख़िलाफ़ भेदभाव किया क्योंकि उत्पीड़न की घटना के बाद जो वादे हमसे किए गए थे, वे पूरे नहीं हुए.’

रमेश ने कहा, ‘हमें मंदिरों में प्रवेश करने से रोका जाता है. हिंदू हमारे ख़िलाफ़ भेदभाव करते हैं और हम जहां भी काम करते हैं, वहां हमें अपने बर्तन लेकर जाना पड़ता है. ऊना मामले में हमें अब तक न्याय नहीं मिला है और हमारे धर्म परिवर्तन के पीछे कहीं-न-कहीं यह भी एक कारण है.’

सरवैया के वकील गोविंद भाई परमार ने बताया कि 43 में से 35 लोगों को ज़मानत मिल चुकी है और मुख्य आरोपी को भी इस शर्त पर ज़मानत दे दी गई कि वो ऊना की सीमा में दाख़िल नहीं होगा.

गोविंद परमार ने बताया कि सरवैया परिवार ने किरण सिंह का नाम एफआईआर में दर्ज नहीं करवाया था. सीआईडी ने वीडियो के आधार पर उसकी पहचान कर गिरफ़्तार किया था. चार्जशीट में नाम भी दर्ज किया था, लेकिन अन्य आरोपियों की तरह उसे भी ज़मानत मिल गई थी.

दलित सामाजिक कार्यकर्ता मंजुला प्रदीप ने द वायर से बातचीत में कहा, ‘हम घटना के बाद सरवैया परिवार की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं. ऊना में केवल 3-4 प्रतिशत दलित हैं. मुझे लगता है कि परिवार का धर्म परिवर्तन करने के निर्णय ने आरोपियों को परेशान कर दिया है, जो खुद को हिंदू धर्म का ठेकेदार समझते हैं. उन्हें हिंदू धर्म में क्यों रहना चाहिए, जब उन्हें उस धर्म में समाज के सबसे निचले स्थान पर देखा जाता है और किसी भी तरह का सम्मान नहीं मिलता.’

बुद्धिस्ट सोसाइटी को इंडिया के अध्यक्ष राजरतन आंबेडकर ने द वायर से बात करते हुए कहा, ‘ऊना के पीड़ित परिवार ने बौद्ध धर्म अपना लिया है. अब हमारा संगठन उनकी पूरी ज़िम्मेदारी का वहन करेगा और सरकारी दस्तावेजों में उनका धर्म हिंदू से बौद्ध करवाएगा. जिस धर्म में इतना अपमान हो उस धर्म का त्याग कर देने में भलाई है.’

वे आगे कहते हैं, ‘बौद्ध धर्म अपनाने की बात भर से इन गोरक्षकों ने उनके परिवार पर फिर हमला कर दिया था. ये हरकत बताती है कि वे लोग कितने डरे हुए हैं. मैं अगले महीने संयुक्त राष्ट्र में ये मुद्दा उठाऊंगा. परिवार के लोगों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ले ली है और जल्द उन्हें बौद्ध धर्म की शिक्षा भी दी जाएगी.’

वैष्णो देवी मार्ग पर खच्चरों, घोड़ों का इस्तेमाल बंद हो : मेनका गांधी

केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती से वैष्णो देवी मार्ग पर खच्चरों, घोड़ों और टट्टू के इस्तेमाल को बंद करने का आग्रह किया है। उन्होंने सामानों की ढुलाई और लोगों को दर्शन के लिए लाने-जाने में काम लाए जा रहे 5000 से अधिक इन पशुओं को चरणबद्ध तरीके से हटाने को कहा है। 
मेनका पशु कल्याण के लिए भी जानी जाती हैं। इस बारे में उन्होंने मुफ्ती को  खत लिखा था। उन्होंने वैष्णो देवी मार्ग पर इन पशुओं की जगह बैटरी चालित वाहनों का इस्तेमाल करने को कहा है। उन्होंने लिखा कि इन पशुओं के मालिकों के जानलेवा ग्लैंडर्स वायरस की चपेट में आने का सबसे ज्यादा खतरा है और इसका दुनियाभर में कहीं भी इलाज नहीं है। इसके संपर्क में आने वाले व्यक्ति की मौत फ्लू जैसे लक्षणों से हो जाती है।

इससे पहले नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी राज्य सरकार को धीरे-धीरे इन्हें हटाने को कहा था। राज्य के मुख्य सचिव ने पुनर्वास योजना भी ट्रिब्यूनल के सामने पेश की थी लेकिन अभी तक इस पर अमल नहीं हो सका है। वैष्णो देवी के दर्शन को जाने वाले कई श्रद्धालु 12-13 किलोमीटर लंबे रास्ते को घोड़ों, गधों, खच्चर और टट्टुओं के जरिए पूरा करते हैं। 

शनिवार, 28 अप्रैल 2018

पोक्सो कानून में संशोधन की योजना बना रही है सरकार

मेनका ने कहा कि बाल यौन शोषण का सबसे अधिक नजरअंदाज किए जाने वाला वर्ग पीड़ित लड़कों का है

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा 12 साल की उम्र तक की लड़कियों से बलात्कार करने वाले दोषियों को मौत की सजा देने वाले अध्यादेश को मंजूरी देने के बाद केंद्र सरकार इस पर विचार कर रहा है.

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कहा कि केंद्र यौन शोषण के शिकार पीड़ित लड़कों को न्याय दिलाने के लिए पोक्सो कानून में संशोधन करने की योजना बना रहा है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा 12 साल की उम्र तक की लड़कियों से बलात्कार करने वाले दोषियों को मौत की सजा देने वाले अध्यादेश को मंजूरी देने के बाद केंद्र सरकार इस पर विचार कर रहा है.

मंत्रालय ने बृहस्पतिवार को कहा , ‘सरकार हमेशा लैंगिक निष्पक्ष कानून बनाने के लिए प्रयासरत रहती है. सरकार ने यौन शोषण के शिकार लड़कों को न्याय दिलाने के लिए पोक्सो कानून में संशोधन का प्रस्ताव दिया है.’ महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने चेंज डॉट ओआरजी पर फिल्म निर्माता इंसिया दरीवाला की एक याचिका का हाल ही में समर्थन किया है जिन्होंने कहा कि लड़कों के यौन शोषण की सच्चाई को भारत में नजरअंदाज किया जाता है. याचिका के जवाब में उन्होंने कहा कि यौन शोषण के शिकार बालकों पर अध्ययन कराया जाएगा जो अपनी तरह का पहला होगा.

यौन शोषण में सबसे अधिक नजरअंदाज पीड़ित लड़कों का..
मेनका ने कहा कि बाल यौन शोषण का सबसे अधिक नजरअंदाज किए जाने वाला वर्ग पीड़ित लड़कों का है. बाल यौन शोषण में लैंगिक आधार पर कोई भेद नहीं है. बचपन में यौन शोषण का शिकार होने वाले लड़के जीवन भर गुमसुम रहते हैं क्योंकि इसके पीछे कई भ्रांतियां और शर्म है. यह गंभीर समस्या है और इससे निपटने की जरुरत है. उन्होंने कहा कि याचिका के बाद उन्होंने सितंबर 2017 में राष्ट्रीय बाल संरक्षण अधिकार आयोग (एनसीपीसीआर) को पीड़ित लड़कों के मुद्दे पर विचार करने के निर्देश दिए.

एनसीपीसीआर ने पिछले साल नवंबर में इस संबंध में कांफ्रेंस की थी.
उन्होंने कहा, ‘कांफ्रेंस से उठी सिफारिशों के अनुसार सर्वसम्मति से यह फैसला किया गया है कि बाल यौन शोषण के पीड़ितों के लिए मौजूदा योजना में संशोधन होना चाहिए ताकि कुकर्म या यौन शोषण का सामना करने वाले लड़कों को भी मुआवजा मिल सकें.

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2018

अब डालमिया ग्रुप का हुआ लालकिला !

अमन बेच देगें. चमन बेच देगें. शहीदों के सर के कफन बेच देगे.कलम के जंबाज अगर सो गए तो वतन के मशीहा वतन बेच देगें। 

गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री ने आधा दर्जन कॉलोनी में की जनसुनवाई


जयपुर । सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री डॉ अरुण चतुर्वेदी ने बुधवार को सिविल लाइन विधानसभा क्षेत्र के वार्ड 22 की आधा दर्जन कॉलोनी में बैठक लेकर जनसुनवाई की  तथा समस्याओं का समाधान करने का अधिकारियों को मौके पर र्निदेश दिए । 

 चतुर्वेदी ने शांति नगर में कुमावत बाड़ी ,भारतेंदु नगर ,जगन्नाथ पुरा ,परिवहन नगर एवं खातीपुरा में जगह-जगह बैठक लेकर जनसुनवाई करते हुए लोगों को विश्वास दिलाया कि जन समस्याओं का शीघ्रता से निस्तारण किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इन कॉलोनियों में सड़कों का पुननिर्माण कराया गया है। वहीं बीसलपुर के बनाने की पहुंचाने की व्यवस्था की है। जन सुनवाई के दौरान गणमान्य लोग उपस्थित थे।

भड़काऊ भाषण देने का केस, भाजपा नेताओं पर सबसे ज़्यादा : एडीआर

नफ़रत फैलाने वाले भाषण देने वाले सांसदों/विधायकों की संख्या के लिहाज से भाजपा शासित उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है. राज्य में सांप्रदायिक हिंसा के मामलों में भी वृद्धि हुई है.


 देश के 58 सांसदों और विधायकों ने घोषित किया है कि उनके ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने वाले भाषण देने के मामले दर्ज हैं. इनमें भाजपा नेताओं की संख्या सर्वाधिक है. आधे से ज़्यादा यानी 27 सांसद और विधायक भाजपा के हैं.

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘लोकसभा के 15 मौजूदा सदस्यों ने अपने ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने वाले भाषण को लेकर मामला दर्ज होने की बात की है. राज्यसभा के किसी भी सदस्य ने अपनी घोषणा में इसका उल्लेख नहीं किया है.’

रिपोर्ट के मुताबिक इन लोकसभा सदस्यों में दस का ताल्लुक भाजपा और एक-एक का संबंध ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ), तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस), पीएमके, एआईएमआईएम और शिवसेना से है.

एडीआर ने चुनाव आयोग के पास जमा सांसदों और विधायकों के शपथ पत्रों का विश्लेषण कर यह रिपोर्ट तैयार की है.

43 मौजूदा विधायकों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने वाला भाषण देने से जुड़े मामले दर्ज हैं. इनमें 17 भाजपा, टीआरएस और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के पांच-पांच (इसमें असदद्दीन ओवैसी भी शामिल हैं), टीडीपी के तीन, कांग्रेस, जदयू, शिवसेना, टीएमसी से दो-दो और डीएमके, बसपा, सपा से एक-एक और दो निर्दलीय विधायक शामिल हैं.

दूसरे दलों की बात करें तो ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन एवं टीआरएस के छह-छह, तेदेपा एवं शिवसेना के तीन-तीन, एआईटीसी, आईएनसी, जदयू के दो-दो, एआईयूडीएफ, बसपा, द्रमुक, पीएमके और सपा के एक-एक सांसदों या विधायकों पर इससे जुड़े मामले दर्ज हैं.

राज्यवार बात करें तो इस मामले उत्तर प्रदेश सबसे आगे हैं. यहां के 15 सांसदों या विधायकों के ख़िलाफ़ ऐसे मामले दर्ज हैं. इसके साथ ही भाजपा शासित उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य है जहां सांप्रदायिक हिंसा के सबसे ज़्यादा मामले दर्ज हैं. यहां 2017 में सांप्रदायिक हिंसा के मामले में 17 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है.

उत्तर प्रदेश के बाद तेलंगाना में 13 मौजूदा सांसदों या विधायकों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने वाले भाषण देने से जुड़े मामले दर्ज हैं. इसके बाद कर्नाटक और महाराष्ट्र में पांच-पांच, बिहार में चार, आंध्र प्रदेश में तीन, गुजरात, तमिलनाडु, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में दो-दो और झारखंड मध्य प्रदेश, राजस्थान, असम और दिल्ली में एक-एक सांसद या विधायकों के ख़िलाफ़ ऐसे मामले दर्ज हैं.

एडीआर ने कहा है कि असदुद्दीन ओवैसी (एआईएमआईएम) और बदरुद्दीन अजमल (एआईयूडीएफ) जैसे नेताओं ने अपनी घोषणा में इससे संबंधित मामला दर्ज होने की बात कही है.

रपट में कहा गया है कि केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री उमा भारती ने भी अपने ख़िलाफ़ इससे जुड़ा मामला दर्ज होने का उल्लेख किया है. इसके अलावा आठ राज्य मंत्रियों के ख़िलाफ़ भी नफ़रत फैलाने वाले भाषण देने का मामला दर्ज है.

किसी भी राज्य ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पूरी तरह से पालन नहीं किया

पुलिस सुधारों को लेकर प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार मामले में साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए निर्देशों पर कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है.


पुलिस सुधारों पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को लेकर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की अनुपालन स्थिति केे एक आकलन में यह खुलासा हुआ है कि शीर्ष अदालत के निर्देशों को पूरी तरह से किसी भी एक राज्य ने लागू नहीं किया है. सरकारों ने इन निर्देशों को या तो अनदेखा किया है या फिर स्पष्ट रूप से मानने से इनकार कर दिया है या फिर निर्देशों की महत्वपूर्ण विशेषताओं को कमजोर कर दिया है.

यह अध्ययन कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव (सीएचआरआई) द्वारा किया गया है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि केवल 18 राज्यों ने 2006 के बाद नए पुलिस एक्ट को पारित किया है जबकि बाकी राज्यों ने सरकारी आदेश/अधिसूचनाएं जारी की हैं लेकिन किसी भी एक राज्य ने अदालत के निर्देशों का पूरे तरीके से पालन नहीं किया है. सीएचआरआई का अध्ययन प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार मामले में 2006 को पुलिस सुधारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी किए गए निर्देशों को लेकर था.

गौरतलब है कि 1996 में उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके पुलिस सुधार की मांग की. याचिका में उन्होंने अपील की थी कि कोर्ट केंद्र व राज्यों को यह निर्देश दे कि वे अपने-अपने यहां पुलिस की गुणवत्ता में सुधार करें और जड़ हो चुकी व्यवस्था को प्रदर्शन करने लायक बनाएं.

इस याचिका पर न्यायमूर्ति वाईके सब्बरवाल की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनवाई करते हुए 2006 में कुछ दिशा-निर्देश जारी किए. न्यायालय ने केंद्र और राज्यों को सात अहम सुझाव दिए.

इन सुझावों में प्रमुख बिंदु थे- हर राज्य में एक सुरक्षा परिषद का गठन, डीजीपी, आईजी व अन्य पुलिस अधिकारियों का कार्यकाल दो साल तक सुनिश्चित करना, आपराधिक जांच एवं अभियोजन के कार्यों को कानून-व्यवस्था के दायित्व से अलग करना और एक पुलिस शिकायत निवारण प्राधिकरण का गठन. कोर्ट के इस दिशा-निर्देश को करीब 12 साल बीत चुके हैं और अब तक कोई कारगर पहल नहीं हो सकी है.

सीएचआरआई ने अपने अध्ययन में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए प्रमुख निर्देशों को राज्यों द्वारा लागू किए जाने की स्थिति की पड़ताल की है.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों में सबसे पहले हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में सुरक्षा आयोग के गठन की बात कही गई थी. ताकि राज्य सरकारें पुलिस पर अनावश्यक दबाव न डाल सकें. रिपोर्ट के मुताबिक देश के 29 राज्यों में से 27 में राज्य सुरक्षा आयोग का गठन पुलिस एक्ट या फिर सरकारी आदेश के जरिए किया गया है. लिखित तौैर पर सिर्फ जम्मू कश्मीर और ओडिशा ने राज्य सुरक्षा आयोग का गठन नहीं किया है.

हालांकि जब हम राज्य सुरक्षा आयोग के गठन की प्रक्रिया को देखें तो कई राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया है. 27 में से छह राज्य असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, पंजाब और त्रिपुरा ने राज्य सुरक्षा आयोग में विपक्ष के नेता को शामिल नहीं किया है.

इसी प्रकार, 18 राज्यों में आयोग में स्वतंत्र सदस्यों को शामिल किया गया है, लेकिन उनकी नियुक्तियों के लिए एक स्वतंत्र चयन पैनल का गठन नहीं किया है. वहीं, बिहार, कर्नाटक और पंजाब के राज्य सुरक्षा आयोग में स्वतंत्र सदस्यों को शामिल नहीं किया गया है.

इसी तरह 29 राज्यों में से केवल आठ राज्य अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल ने सुरक्षा आयोग की वार्षिक रिपोर्ट तैयार की और इसे राज्य विधान मंडल के सामने इसे प्रस्तुत किया.

इसके अलावा डीजीपी व दूसरे वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को लेकर जारी सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश का पालन सिर्फ नगालैंड द्वारा किया गया. 23 राज्यों ने डीजीपी की नियुक्ति को लेकर जारी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर ध्यान नहीं दिया है.

इसी तरह डीजीपी का कार्यकाल कम से कम दो साल होने के निर्देश का पालन सिर्फ चार राज्यों द्वारा किया गया है. वहीं, तीसरे निर्देश इंस्पेक्टर जनरल आॅफ पुलिस, डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल आॅफ पुलिस, सुपरिंटेंडेंट आॅफ पुलिस और स्टेशन हाउस अॉफिसर को कम से कम दो साल के कार्यकाल दिए जाने के निर्देश का पालन सिर्फ छह राज्यों ने किया है.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश आपराधिक जांच एवं अभियोजन के कार्यों को कानून-व्यवस्था के दायित्व से अलग करने का काम 12 राज्यों ने नहीं किया है.

वहीं, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार पुलिस शिकायत निवारण प्राधिकरण का गठन किसी भी राज्य ने नहीं किया है. 12 राज्यों ने अपने यहां पुलिस शिकायत निवारण प्राधिकरण का गठन किया है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं किया है.

इस मामले में याचिकाकर्ता रहे पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह इस बात को स्वीकार करते हैं कि सरकारें अपने फायदे के लिए पुलिस का दुरुपयोग करती हैं. राज्यसत्ता के पास पुलिस ऐसी ताकत है जो विरोधियों से निपटने से लेकर अपनी नाकामी छुपाने तक में काम आती है. यह एक मुख्य वजह है कि जिसके कारण सरकारें पुलिस प्रणाली में सुधार करने के लिए तैयार नहीं हैं.

द वायर से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘सीएचआरआई से पहले 2008 में गठित थामस कमेटी की रिपोर्ट में भी यही बात कही गई थी कि सुप्रीम कोर्ट के गाइडलांइस का राज्यों ने अनुपालन नहीं किया है. पुलिस रिफार्म को लेकर उसी बात को सीएचआरआई भी दोहरा रही है. 12 साल उस फैसले को बीत चुके हैं. पुलिस सुधार न लागू करने की कोशिश खास तौर से ब्यूरोक्रेसी और राजनीतिक तबके की है. सुप्रीम कोर्ट के सामने यह भी दिखाना है कि हम कुछ कर रहे हैं, इसलिए सिर्फ कागज पर कुछ सुधार हो रहा है. पर वास्तव में वह सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का सही से पालन नहीं कर रहे हैं.’

वो आगे कहते हैं, ‘पुलिस सुधार न होने से किसी को फायदा नहीं है. बस ब्यूरोक्रेसी और नेता लोग अपनी जमीदारी छोड़ना नहीं चाहते हैं. अभी वह पुलिस को जैसे चाहे वैसा घुमा सकते हैं. तो वह यही जमीदारी नहीं छोड़ना चाहते हैं. स्थिति यह होनी चाहिए कि पुलिस को किसी गलत काम के लिए ये लोग कहें और वह मना कर दे और ये लोग उसका कोई नुकसान भी न कर पाएं. सही मायने में पुलिस तभी स्वायत्त होगी. अभी के हालात यह हैं कि पुलिस का तबादला कर दिया जाता है. उन्हें कई तरीके से परेशान किया जाता है.’

प्रकाश सिंह कहते हैं, ‘जहां तक बात आजकल पुलिस के सामने आने वाली चुनौतियों को लेकर है तो अगर पुलिस सुधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को लागू होते तो वह निसंदेह बेहतर तरीके से काम करती. अभी उन्नाव वाले मामले में भी यह बात सामने आई कि पुलिस ने एफआईआर नहीं दर्ज किया जो उसे करना चाहिए था. कही न कही वह सत्ताधारी दल के नेताओं के दबाव में थी. दरअसल सत्ताधारी दलों का इशारा हो जाता है तो पुलिस कमजोर पड़ जाती है. वैसे पुलिस सुधार का यह मतलब नहीं है कि पुलिस स्वतंत्र हो जाए. दरअसल पुलिस सुधार का मतलब यह है कि नीति नियंता यह तय कर दे कि पुलिस कौन-से कानून से चलेगी, किस सिद्धांत का पालन करेगी, उसकी भूमिका क्या होगी, उसके ऊपर जिम्मेदारी क्या रहेगी. उसके बाद पुलिस अपने हिसाब से काम करेगी. ’

ड्रग्‍स रैकेट मामला: ममता कुलकर्णी को बड़ा झटका, संपत्ति कुर्क करने का आदेश

विशेष लोक अभियोजक शिशिर हिरे ने बताया कि अभियोजन पक्ष की ओर से अपील किये जाने के बाद अदालत ने कुलकर्णी की इन तीन संपत्तियों को कुर्क करने के निर्देश दिये. अदालत ने 2,000 करोड़ रुपये के मादक पदार्थ से जुड़े मामले में पेश नहीं होने के बाद कुलकर्णी को भगोड़ा घोषित कर दिया.


मादक द्रव्य रोधी (एनडीपीएस) अदालत ने यहां बॉलीवुड की पूर्व अभिनेत्री ममता कुलकर्णी की संपत्ति को कुर्क करने का आदेश दिया है. साल 2016 में ठाणे पुलिस ने कई करोड़ रुपये का कारोबार करने वाले एक मादक पदार्थ गिरोह का पर्दाफाश किया था, जिसमें मुख्य आरोपियों में ममता कुलकर्णी भी शामिल है.
एनडीपीएस की विशेष अदालत के न्यायाधीश एच एम पटवर्धन ने मादक पदार्थ गिरोह मामले में ममता कुलकर्णी के हाजिर नहीं होने के बाद पिछले सप्ताह अभिनेत्री के मुंबई के अलग अलग इलाकों में बने तीन आलीशान फ्लैट्स को कुर्क करने का आदेश दिया था. ममता के इन तीन आलीशान फ्लैट्स की कीमत करीब 20 करोड़ रुपये बतायी जाती है.



विशेष लोक अभियोजक शिशिर हिरे ने बताया कि अभियोजन पक्ष की ओर से अपील किये जाने के बाद अदालत ने कुलकर्णी की इन तीन संपत्तियों को कुर्क करने के निर्देश दिये. अदालत ने 2,000 करोड़ रुपये के मादक पदार्थ से जुड़े मामले में पेश नहीं होने के बाद कुलकर्णी को भगोड़ा घोषित कर दिया.


उल्लेखनीय है कि कुलकर्णी को 2 साल पहले मादक द्रव्य कारोबारी विक्की गोस्वामी से जुड़े इस मामले में मुख्य आरोपी बनाया गया था. पुलिस ने दावा किया था कि वह मादक पदार्थ कारोबार की अवैध गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल थी. ठाणे पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने उस समय कहा था कि पुलिस कुलकर्णी और गोस्वामी के प्रत्यर्पण की कोशिश करेगी.
बताया जाता है कि कुलकर्णी और गोस्वामी के बीच रिश्ता है और वे इस समय अफ्रीका में केन्या में रह रहे हैं. पिछले साल छह जून को ठाणे अदालत ने गोस्वामी और कुलकर्णी को भगोड़ा घोषित कर दिया, जिसके बाद पुलिस ने अदालत से अभिनेत्री की संपत्तियों को कुर्क करने की अपील की.
हिरे ने बताया कि कुलकर्णी की संपत्तियों को कुर्क करने की अपील को लंबित रखा गया था और दोनों फरार अभियुक्तों को अदालत में पेश होने का एक मौका और दिया गया था. हालांकि बाद में यह स्पष्ट होने के बाद कि उनके अदालत के समक्ष उपस्थित होने की संभावना नहीं है, न्यायाधीश ने कुलकर्णी की संपत्तियों को कुर्क करने का आदेश जारी किया.
पुलिस ने अप्रैल 2016 में महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में स्थित एवान लाइफसाइंसेज लिमिटेड के परिसर में छापेमारी की थी, जिसमें करीब 2,000 करोड़ रुपये के मूल्य वाली 18.5 टन इफेड्रिन जब्त की गयी, जिसके बाद इस मादक पदार्थ गिरोह का भंडाफोड़ हुआ था.
पुलिस के मुताबिक इफेड्रिन नियंत्रित मादक पदार्थ है, जिसे कथित तौर पर एवान लाइफसाइंसेस की सोलापुर इकाई से हटाया जा रहा था और प्रसंस्करण के बाद इसे विदेश भेजा गया था.
एफेड्राइन पाउडर का उपयोग सूंघ कर नशा करने के लिये किया जाता है और पार्टियों में लोकप्रिय मादक पदार्थ मेथेम्फेटामाइन का उत्पादन करने के लिए किया जाता है. मादक पदार्थ गिरोह का पता लगाने से ठीक पहले, एवान लाइफसाइंसेस परिसर में 100 किलोग्राम इफेड्रिन बनाया गया था और हवाई मार्ग से केन्या भेजा गया था.
ठाणे पुलिस ने बताया कि इसके लिए गोस्वामी द्वारा कंपनी के एक निदेशक मुकेश जैन को हवाला (धन हस्तांतरण के लिए एक अनौपचारिक चैनल) के जरिये भुगतान किया गया था. पुलिस के मुताबिक जैन कई बार गोस्वामी से मिलने के लिये विदेश गया था.

बुधवार, 25 अप्रैल 2018

शौर्य दिवस के रूप में परमाणु परीक्षण की वर्षगांठ

जयपुर। भारतीय जनता युवा मोर्चा परमाणु परीक्षण के 20 वर्ष पूर्ण होने पर ग्यारह मई का दिन शौर्य दिवस के रूप में मनाएगा। इस दिन प्रदेश के सभी 200 विधानसभा क्षेत्रों में भारतीय जनता युवा मोर्चा की ओर से शौर्य शक्ति स मेलन आयोजित किए जाएंगे। यह जानकारी भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक सैनी भादरा नेबुधवार को भाजपा मु यालय में पत्रकार वार्ता में दी। सैनी ने बतायाकि 11 मई 1998 का दिन भारत के गौरवशाली दिन था। इस दिन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजयेयी की सरकार ने राजस्थान के पोकरण में सफल परमाणु परीक्षण करके यह साबित कर दिया था कि भारत किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है। इस परीक्षण के माध्यम से भारत को परमाणु शक्ति संपन्न बनाया गया है अब इस परीक्षण को 20 वर्ष पूर्ण होने पर भारतीय जनता युवा मोर्चा, शौर्य शक्ति दिवस मनाएगा। इस दिन की तैयारियों को लेकर प्रदेश के सभी विधानसभाओं पर प्रभारी एवं संयोजक और सहसंयोजक बनाए जा चुके हैं। जिसकी प्रथम बैठक 26 अप्रेल को प्रदेश कार्यालय में होगी। इसके बाद 27, 28, 29 एवं 30 अप्रेल को पूरे प्रदेश की सभी विधानसभाओं में तैयारियां बैठक होंगी। इसी क्रम में 4 मई 2018 को पोकरण में एक बड़ा स मेलन आयोजित किया जाएगा। सैनी ने बताया कि 4 मई को पोकरण में एक बड़ा स मेलन आयोजित किया जाएगा, जिसमें पोकरण की रज का पूजन किया जाएगा एवं रज कलश प्रत्येक विधानसभा के लिए वितरित की जाएगी। इस दौरान बड़ी सं या में युवा इस मिट्टी का तिलक लगाकर देश सेवा का संकल्प लेंगे। भाजयुमो प्रदेशाध्यक्ष ने बताया कि सभी 200 विधानसभा से आए संयोजक एवं सह-संयोजक पोकरण की पवित्र मिट्टी को कलश में भरकर अपनी-अपनी विधानसभा में ले जाएंगे और आगामी 10, 11, 12 एवं 13 मई को सभी 200 विधानसभाओं में युवा शक्ति स मेलन आयोजित किए जाएंगे।
प्रत्येक स मेलन में एक हजार से अधिक युवा शामिल होंगे। इस प्रकार दो लाख से ज्यादा युवा इस मिट्टी का पूजन करेंगे।

नाबालिग से बलात्कार मामले में आसाराम को आजीवन कारावास की सज़ा

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की एक नाबालिग से बलात्कार करने के आरोप में जोधपुर की विशेष एसटी-एसटी अदालत ने सुनाया फ़ैसला.

नाबालिग से बलात्कार के एक मामले में गुरुवार को जोधपुर की विशेष एससी-एसटी अदालत ने आरोपी स्वयंभू बाबा आसाराम को दोषी क़रार दिया है.

एक साल के भीतर यह दूसरा मामला है जब किसी स्वयंभू बाबा को बलात्कार के मामले में दोषी क़रार दिया गया है. पिछले साल अगस्त में गुरमीत राम रहीम को भी यौन उत्पीड़न के मामले में दोषी क़रार दिया गया था.

यौन उत्पीड़न, मुख्य तौर पर नाबालिग से बलात्कार करने के बिंदुओं पर जिरह के बाद विशेष न्यायाधीश मधुसूदन शर्मा ने जोधपुर सेंट्रल जेल परिसर में अपना फैसला सुनाया. 77 वर्षीय आसाराम यहां चार साल से अधिक समय से बंद हैं.

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति मामलों की विशेष अदालत ने दो अन्य आरोपियों शिल्पी और शरद को भी दोषी क़रार दिया और अन्य दो प्रकाश और शिव को रिहा कर दिया.

पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘अदालत ने आसाराम को उम्रक़ैद और अन्य दो आरोपियों को 20-20 साल की सज़ा सुनाई है.’

इससे पूर्व कड़ी सुरक्षा के बीच जेल परिसर में सजा की अवधि पर जिरह की गई. राजस्थान उच्च न्यायालय ने निचली अदालत को जोधपुर सेंट्रल जेल परिसर में फैसला सुनाने का आदेश दिया था.

साबरमती नदी के किनारे एक झोंपड़ी से शुरुआत करने से लेकर देश और दुनियाभर में 400 से अधिक आश्रम बनाने वाले आसाराम ने चार दशक में 10,000 करोड़ रुपये का साम्राज्य खड़ा कर लिया था.

आसाराम और शिव, शिल्पी, शरद और प्रकाश के ख़िलाफ़ पॉक्सो अधिनियम, किशोर न्याय अधिनियम और भादंवि की विभिन्न धाराओं के तहत छह नवंबर 2013 को पुलिस ने आरोपपत्र दायर किया था.

पीड़िता ने आसाराम पर उसे जोधपुर के नज़दीक मनाई इलाके में आश्रम में बुलाने और 15 अगस्त 2013 की रात उसके साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया था.

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की रहने वाली पीड़िता मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा स्थित आसाराम के आश्रम में पढ़ाई कर रही थी.

आसाराम मामले में अंतिम सुनवाई अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति मामलों की विशेष अदालत में सात अप्रैल को पूरी हो गई थी और फैसला 25 अप्रैल तक के लिए सुरक्षित रखा गया था.

आसाराम को इंदौर से गिरफ्तार कर एक सितंबर 2013 को जोधपुर लाया गया था और दो सितंबर 2013 से वह न्यायिक हिरासत में है.

समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में पीड़िता के पिता ने कहा, ‘आसाराम दोषी साबित हुए, हमें न्याय मिल गया. मैं उन सभी लोगों को शुक्रगुज़ार हूं जिन्होंने इस लड़ाई में हमारा साथ दिया. अब मुझे उम्मीद है कि उन्हें कड़ी सज़ा मिलेगी. मुझे यह भी उम्मीद है कि उन गवाहों को भी न्याय मिलेगा जिनकी या तो हत्या कर दी गई या फिर अपहरण कर लिया गया.’

उन्होंने कहा कि परिवार लगातार दहशत में जी रहा था और इसका उनके व्यापार पर भी काफ़ी असर पड़ा.

वहीं आसाराम की प्रवक्ता नीलम दुबे ने कहा, ‘हम अपनी लीगल टीम से इस बारे में बातचीत करेंगे फिर आगे की रणनीति तय की जाएगी. हमें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है.’

फ़ैसले के मद्देनज़र जोधपुर जेल के आसपास सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी जहां पहले से निषेधाज्ञा लागू है. क़ानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के मद्देनजर केंद्र ने राजस्थान, गुजरात और हरियाणा सरकारों से सुरक्षा कड़ी करने और अतिरिक्त बल तैनात करने को कहा था. तीनों राज्यों में आसाराम के बड़ी संख्या में अनुयायी हैं.

केंद्रीय गृह मंत्रालय का यह परामर्श डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को पिछले साल अगस्त में बलात्कार के मामले में सज़ा सुनाए जाने के बाद हरियाणा, पंजाब तथा चंडीगढ़ में बड़े पैमाने पर हुई हिंसा के मद्देनज़र भेजा गया था. उस समय हुई हिंसा में 13 लोग मारे गए थे.

जोधपुर की अदालत द्वारा स्वयंभू बाबा आसाराम को दोषी ठहराए जाने के बाद देश में कहीं से भी अभी तक किसी भी अप्रिय घटना का समाचार नहीं है. गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि मंत्रालय वर्तमान स्थिति पर खुद ही नजर रख रहा है और खासकर राजस्थान , गुजरात और हरियाणा की स्थिति पर विशेष तौर पर नजर रखी जा रही है.

अदालत ने वर्ष 2002 के बलात्कार के एक मामले में रहीम को 20 साल की सजा सुनाई थी.

आसाराम पर गुजरात के सूरत में भी बलात्कार का एक आरोप है. वहां दो लड़कियों ने आसाराम और बेटे नारायण साई के खिलाफ बलात्कार और बंदी बनाकर रखने का आरोप लगाया है, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने अभियोजन पक्ष को पांच सप्ताह के भीतर सुनवायी पूरी करने का निर्देश दिया था.

आसाराम ने 12 बार जमानत याचिका दायर की, जिसे छह बार निचली अदालत ने, तीन बार राजस्थान उच्च न्यायालय और तीन बार उच्चतम न्यायालय ने ख़ारिज किया.

इस मामले में अब तक का घटनाक्रम
01 सितंबर 2013: एक नाबालिग के साथ बलात्कार के मामले में जोधपुर पुलिस ने आसाराम को गिरफ़्तार कर जेल भेजा था. पीड़ित के अभिभावकों ने इस संबंध में शिकायत दर्ज कराई थी.

06 नवंबर 2013: जोधपुर पुलिस ने आसाराम और चार सह आरोपियों के ख़िलाफ़ पॉक्सो क़ानून, किशोर न्याय क़ानून और भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत आरोपपत्र दाख़िल किया.

07 फरवरी 2014: जोधपुर की एक अदालत ने बलात्कार, आपराधिक षडयंत्र और अन्य अपराधों के लिए आसाराम के ख़िलाफ़ आरोप तय किए.

11 अगस्त 2016: उच्चतम न्यायालय ने आसाराम को अंतरिम ज़मानत देने से इनकार किया, आसाराम के स्वास्थ्य की जांच के लिए एम्स को मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया.

07 अप्रैल 2018: मामले में अंतिम दलीलें पूरी हो गईं और अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया.

17 अप्रैल 2018: राजस्थान उच्च न्यायालय ने सुनवाई अदालत को आदेश दिया कि वह अपना फ़ैसला जोधपुर केंद्रीय कारागार के अंदर सुनाए ताकि कानून व्यवस्था की स्थिति नहीं बिगड़े.

25 अप्रैल 2018: अदालत ने आसाराम को दोषी क़रार देते हुए उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई.

मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

रेणुका चौधरी का दावा, ‘कांस्टिंग काउच' की संस्कृति से संसद भी अछूती नहीं

कांग्रेस नेता रेणुका चौधरी ने मंगलवार को कहा कि ‘कास्टिंग काउच' एक ऐसी कड़वी सच्चाई है जो सिर्फ फिल्म उद्योग तक सीमित नहीं है. उन्होंने कहा कि इससे हर कार्यस्थल यहां तक कि संसद भी अछूती नहीं है.

रेणुका ने कहा, ‘भारत में वह समय आ गया है जब कहा जाये-मी टू.' उनका यह बयान उस वक्त आया जब बॉलीवुड की जानी-मानी नृत्य निर्देशक सरोज खान ने कास्टिंग काउच की संस्कृति का बचाव किया. पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, यह कड़वी सच्चाई है. यह सिर्फ फिल्म उद्योग में नहीं है. यह हर कार्यस्थल पर होता है. इसकी कल्पना मत करिये कि इससे संसद अछूती है या कुछ अन्य कार्य स्थल इससे अछूते हैं. अगर आप आज पश्चिमी जगत को देखें तो बड़ी अभिनेत्रियां भी सामने आयीं और कहा कि ‘मी टू'. रेणुका के इस बयान के बारे में पूछे जाने पर कांग्रेस प्रवक्ता पीएल पूनिया ने कहा कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है.

पिछले साल हॉलीवुड में यौन शोषण के मामले सामने आने के बाद यौन अपराधियों के खिलाफ ‘मी टू' अभियान शुरू हुआ था. दरअसल, ‘मी टू' अभियान के मद्देनजर दिये गये एक बयान में सरोज खान ने इसके लिए महिलाओं को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि कास्टिंग काउच कोई नयी बात नहीं है. सरोज खान (69) ने टेलीविजन नेटवर्क और सोशल मीडिया पर वायरल हो रही मीडिया के साथ उनकी बातचीत के वीडियो को लेकर फोन पर कहा, ‘मैंने पहले ही कहा है कि मैं माफी मांगती हूं, लेकिन आप वह सवाल नहीं जानते जो मुझसे पूछा गया था और अब इस पर काफी हंगामा हो गया है.'

क्या वामपंथी पालकी के कहार बन कर रह गए हैं?

वामपंथी दल आज़ादी के बाद विकसित अपनी वह छवि नहीं बचा पाए हैं, जिसमें उन्हें सत्ता का सबसे प्रतिबद्ध वैचारिक प्रतिपक्ष माना जाता था. वे परिस्थितियों के नाम पर कभी इस तो कभी उस बड़ी पार्टी की पालकी के कहार की भूमिका में दिखने लगे.

उदारवादी माने जाने वाले सीताराम येचुरी वामपंथी मोर्चे की सबसे बड़ी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की हैदराबाद में हुई 22वीं कांग्रेस में दोबारा महासचिव चुन लिए गए हैं तो बहुत स्वाभाविक है कि वामदलों की सही-गलत रीति-नीति और बढ़ते-घटते प्रभावों से जुड़े वे सारे प्रश्न एक बार फिर पूछे जाने लगें जो उनके पश्चिम बंगाल व त्रिपुरा जैसे गढ़ों के ढहने से पहले से पूछे जाते रहे हैं और इनके ढहने के बाद कहीं ज्यादा प्रखर हो चले हैं.

इन प्रश्नों में सबसे बड़ा तो निश्चित रूप से यही है कि चुनाव नतीजों के लिहाज से वे लगातार पराभव की ओर क्यों जा रहे हैं? इस कदर कि उनके विरोधियों को उन्हें चिढ़ाते हुए यह कहने का मौका हाथ लग रहा है कि आगे चलकर वे विलोपीकरण के शिकार हो जायेंगे या सिर्फ जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय जैसी जगहों पर पाये जाएंगे.

और तो और, उस हिंदी प्रदेश में उनकी प्रतीकात्मक उपस्थिति भी क्यों मुश्किल होती जा रही है, जिसे देश का हृदय प्रदेश कहा जाता है और जिसकी जमीन को वे एक समय अपने लिए बेहद अनुकूल और उर्वर मानते थे? क्यों पश्चिम बंगाल का गढ़ ढहने के बाद से ही यह उम्मीद नाउम्मीद होती चली आ रही है कि कौन जाने गढ़ खो देने के बाद ही वे अपनी संभावनाओं के देशव्यापी विस्तार के लिए खुलकर खेलने का मन बनायें? आखिरकार यह विस्तार उनके लिए जीवन-मरण का प्रश्न क्यों नहीं होना चाहिए?

यों, येचुरी अपने पहले कार्यकाल के दौरान अपनी सारी सदाशयता के बावजूद वामपंथ के जनाधार में प्रकाश करात के महासचिवकाल से ही जारी छीजन रोकने में जिस तरह नाकामयाब रहे हैं, उससे लगता नहीं कि उनके दूसरे कार्यकाल में ही सही, इन प्रश्नों के सही उत्तर हासिल हो पायेंगे.

वाम के नेताओं के लिए इन सवालों के जवाब इसलिए भी कठिन हो चले हैं कि वे संसदीय कहें अथवा चुनावी राजनीति में उतरे तो उसे अपनी क्रांतिकामना के लिए इस्तेमाल करने के मंसूबे से थे, मगर समय के साथ खुद उसके हाथों इस्तेमाल होकर रह गये हैं.

इतना ही नहीं, आजादी के बाद विकसित अपनी वह छवि भी नहीं बचा पाए हैं, जिसमें उन्हें न सिर्फ सत्तारूढ़ कांग्रेस बल्कि प्रायः सारी मध्यवर्गी पार्टियों का सबसे प्रतिबद्ध वैचारिक प्रतिपक्ष माना जाता था.

बाद के बेहिस सत्तासंघर्षों में उक्त पार्टियों की राजनीति विचारधाराओं को लात लगाकर अपना तकिया जाति, धर्म, संप्रदाय और क्षेत्र आदि की विडंबनाओं पर रखने लगी तो वामपंथी दल उससे अलगाव का खतरा उठाने का साहस नहीं प्रदर्शित कर पाये और तत्कालीन परिस्थितियों के नाम पर कभी इस तो कभी उस बड़ी पार्टी की पालकी के कहार की भूमिका में दिखने लगे.

तिस पर कोढ़ में खाज यह कि स्थितियों और परिस्थितियों के आकलन में उन्होंने लगातार गलतियां कीं. मिसाल के तौर पर आजादी के पहले अविभाजित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के इस निर्देश पर अमल के बजाय कि उसे पूरी शक्ति से ब्रिटिश साम्राज्यवाद से लड़ना चाहिए, लगातार ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी के एजेंडे पर चलती रही, जिसके फलस्वरूप स्वतंत्रता संघर्ष में अपनी भूमिका को तार्किक परिणति नहीं दे सकी.

महात्मा गांधी, बाबासाहब आंबेडकर, सुभाषचंद्र बोस और यहां तक कि सरदार भगत सिंह जैसे उस संघर्ष के नायकों के वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन में भी उसने बहुत देरी की. आजादी के बाद माकपा को ज्योति बसु के रूप में देश को पहला वामपंथी प्रधानमंत्री देने का अवसर हाथ लगाा तो उसने साफ इनकार कर दिया. तब वामदलों के विरोधियों व शुभचिंतकों दोनों को कहना पड़ा कि वामदलों की ट्रेन छूट गई है. ज्योति दा को भी बाद में इसे हिमालय जैसी भूल बताना पड़ा.

यह भी वामपंथ द्वारा स्थितियों के गलत आकलन के कारण ही हुआ कि जब उन्हें राजीव गांधी व मनमोहन सिंह प्रवर्तित नई आर्थिक नीतियों से लड़ना चाहिए था, उन्होंने अपनी सारी शक्ति उस सांप्रदायिकता से लड़ने में ही लगा दी जो जनविरोधी आर्थिक नीतियों का ही उत्पाद थी और इस अर्थनीति के साथ ही स्वतः खत्म हो जाती.

क्या आश्चर्य कि उनके लड़ते-लड़ते नई अर्थनीति और सांप्रदायिकता दोनों ‘अजेय’ हो गईं और मनमोहन के राज में अमेरिका से परमाणु करार के विरोध में सरकार से समर्थन वापस लेने का नुकसान भी अकेले वामपंथ को ही उठाना पड़ा.

वामपंथी ऐसी भूलें नहीं करते तो आज प्रायः सारी मध्यवर्गी पार्टियों से निराश देश उन्हें खासी उम्मीद के साथ निहारता. वे कह पाने की स्थिति में होते कि अब हमारी बारी है. लेकिन अभी तो वे विरोधियों की लगातार बढ़ती जा रही घृणा के साथ अपने गढ़ों तक में जनता का कोप झेल रहे हैं और फिर भी अपने अंतर्विरोध नहीं सुलझा पा रहे.

एक ओर नवपूंजीवादी नीतियां देश को निगलने पर आमादा हैं और दूसरी ओर उनसे पूरे दम-खम के साथ दो-दो हाथ करने के बजाय इन संघर्षविमुख दलों ने अपनी क्रांतिकामना को भी कर्मकांड बना डाला है. उनके शिविरों में कर्मकांडों के तौर पर ऐसी कई और चीजें चलती रहती हैं.

मसलन, देश को वामजनवादी विकल्प देने के लिए काम करना, व्यापक वामपंथी एकता के प्रयास तेज करना और गैरवामपंथी दलों से न्यूनतम साझा कार्यक्रम के आधार पर रणनीतिगत समर्थन व सहयोग के रिश्ते बनाना आदि.

इन कर्मकांडों का सच यह है कि वामदलों में एका के बजाय बिखराव बढ़ता जा रहा है और कई कम्युनिस्ट पार्टियां अपने महासचिवों की जेबों में रहकर उनकी बौद्धिक भूख के शमन का जरिया भर रह गई हैं. दूसरी ओर कई वामपंथी पार्टियों के नेता उतने भी प्रतिबद्ध या ‘मेंटली इक्विप्ड’ नहीं रह गये हैं, जितने कभी उनके साधारण कार्यकर्ता हुआ करते थे.

उन्होंने एक दूजे के लिए बुर्जुआ, संशोधनवादी, सुधारवादी और संसदवादी आदि एक से बढकर एक गालियां विकसित कर डाली हैं और उन्हें लेकर अपने ही शिविर में ‘हत्याएं’ करते रहते हैं. माकपा से जुड़े अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक ने छह साल पहले अपनी ही पार्टी की केरल इकाई पर ‘सामंती स्टालिनवाद’ और उदारवाद की वर्चस्वता की शिकार होने की तोहमत लगाई तो कई वाम हलकों को यही समझ में नहीं आया कि वे कहना क्या चाहते हैं.

वहां प्रतिबद्ध और अप्रतिबद्ध का झगड़ा भी ऐसा है कि प्रायः सारी वाम जमातें खुद को ही प्रतिबद्ध मानती हैं. क्या यह वैसे ही नहीं है आजकल कुछ जमातें हर किसी की देशभक्ति पर शक किया करती हैं?

ऐसे में वामदलों को पुनर्जीवन के लिए नये फार्मूलेशनों और रणनीतियों की बेहद सख्त जरूरत है क्योंकि पुरानी कम्युनिस्ट थीसिसों का नए बदलावों के परिप्रक्ष्य में युगानुरूप परीक्षण किए बिना उनकी बात नहीं बनने वाली है.

लेकिन सवाल फिर वही कि क्या येचुरी इस लिहाज से कोई भूमिका निभा पायेंगे? इसका एक जवाब यह भी है कि उनसे मध्यवर्गी पार्टियों के सुप्रीमो जैसी अपेक्षा नहीं ही की जानी चाहिए. सारे ‘पतन’ के बावजूद वामदलों का सांगठनिक ढांचा अभी भी अपने नायकों को, वह महासचिव ही क्यों न हो, निपट निरंकुश होने की इजाजत नहीं देता.

फिर किसे नहीं मालूम कि येचुरी की अपनी पार्टी तक में उनकी राजनीतिक लाइन के विरोधियों की कमी नहीं है. यहां तक कि वे अपने वर्गशत्रु को संदेश और भाजपा के सांप्रदायिक कुशासन मुक्ति की जो बातें कर रहे है, उन्हें लेकर लड़ाइयों की दिशा और रूप पर भी पार्टी आमराय से सम्पन्न नहीं है.

वहां अभी भी बहसें जारी हैं कि भाजपा को अधिनायकवादी माना जाये या फासीवादी और उससे लड़ने के लिए कांग्रेस से कैसे ‘मिला’ जाये, मिला भी जाये या नहीं. येचुरी इसे जरूरी बताते हैं तो प्रकाश करात बेवकूफी. क्या अर्थ है इसका? यही तो कि एक ओर देश में आग लगी हुई है और दूसरी ओर आप इस बौद्धिक विमर्श में उलझे हैं कि उसे बुझाने के लिए कुआं कहां खोदा जाये.

ऐसे ही आचरण की परिणति है कि लगभग एक साथ सक्रिय होने वाली दो जमातों में जिसने कहा कि वह राजनीति से परे रहकर संस्कृति के ही क्षेत्र में काम करेगी, उसने काम करते-करते अपनी राजनीतिक फ्रंट की मार्फत लगभग सम्पूर्ण देश की राजनीति पर नियंत्रण स्थापित कर लिया है और अपने को वाम कहने और संस्कृति के क्षेत्र में काम से परहेजकर चैबीसों घंटे जनपक्षधर राजनीति करने वाली जमात राजनीति के हाशिये में चली जा रही है.

जो दलित व पिछड़े कभी उसके आधार थे, निराश होकर वे आरोप लगा रहे हैं कि वामपंथी दल क्रांति करने नहीं, क्रांति रोकने के लिए प्रतिबद्ध हैं और वर्ग के चक्कर में उन्होंने वर्ण की हकीकतों को किंचित भी नहीं समझा है. जाहिर है कि इस कार्यकाल में भी येचुरी की राह आसान नहीं सिद्ध होने वाली.


राजस्थान जैसे राज्यों के कारण भारत पिछड़ा बना हुआ है

अमिताभ कांत ने कहा कि देश में शिक्षा और स्वास्थ्य के हाल बेहाल हैं. यही वे क्षेत्र हैं जिनमें भारत पिछड़ रहा है. पांचवीं कक्षा का छात्र दूसरी कक्षा के जोड़-घटाव नहीं कर पाता है. शिशु मृत्यु दर बहुत ज़्यादा है.

नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) अमिताभ कांत ने सोमवार को कहा कि देश के दक्षिणी और पश्चिमी राज्य तेजी से प्रगति कर रहे हैं लेकिन बिहार, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के कारण देश पिछड़ा बना हुआ है.

जामिया मिल्लिया इस्लामिया में प्रथम अब्दुल गफ्फार ख़ान स्मारक व्याख्यान के दौरान अमिताभ कांत ने कहा, ‘खासकर कि सामाजिक संकेतकों के मामले में बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों के कारण भारत पिछड़ा बना हुआ है, ‘

उन्होंने आगे कहा, ‘हालांकि, व्यापार में आसानी के मामले में हमने तेजी से सुधार किया है, लेकिन मानव विकास सूचकांक में हम अब भी पिछड़े हैं, 188 देशों में 133वें पायदान पर हैं.’

‘चैलेंजेज ऑफ ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया’ के मुद्दे पर कांत ने कहा कि देश के दक्षिणी और पश्चिमी राज्य बहुत अच्छा कर रहे हैं और तेजी से आगे बढ़ रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘मानव विकास सूचकांक में बेहतर करने के लिए हमें सामाजिक संकेतकों पर गौर करना होगा. हम आकांक्षित जिला कार्यक्रम के जरिये इन चीजों पर काम कर रहे हैं.’

सतत विकास के महत्व पर जोर देते हुए कांत ने कहा, ‘देश में शिक्षा और स्वास्थ्य के हाल बेहाल हैं और यही वे क्षेत्र हैं जिनमें भारत पिछड़ रहा है. हमारे सीखने के परिणाम बहुत बुरे हैं, एक पांचवीं कक्षा का छात्र दूसरी कक्षा के जोड़-घटाव नहीं कर पाता है. पांचवीं कक्षा का छात्र अपनी मातृभाषा तक नहीं पढ़ पाता है. शिशु मृत्यु दर बहुत ज्यादा है.जब तक कि हम इन बिंदुओं पर सुधार नहीं करते, हमारे लिए सतत विकास करना बहुत मुश्किल होगा.’

उन्होंने निर्णय लेने की प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी पर भी बात की. उन्होंने कहा, ‘महिलाओं को अवसर देने के लिए नीतियों को नीतियों को उस हिसाब से बनाने के लिए सचेत प्रयासों की जरूरत है.’

भारत को विकसित देश बनाने के लिए शाह ने मांगा 50 साल

भारत को ग्लोबल लीडर बनाने के लिए अमित शाह ने 50 साल मांगे हैं। कुछ समय पहले भोपाल में पार्टी की एक बैठक में उन्होंने भारत को विकसित देश बनाने के लिए 25 साल मांगे थे। तब मीडिया में इसकी ऐसी रिपोर्टिंग हो गई थी कि उन्होंने अच्छे दिन लाने के लिए 25 साल मांगे हैं। बहरहाल, वह बात आई गई हो गई थी। अब उन्होंने 50 साल का शासन मांगा है, जैसे कांग्रेस का रहा है।

अमित शाह ने कांग्रेस की तरह सिर्फ 50 साल का शासन नहीं मांगा है, बल्कि गांव पंचायतों से लेकर देश की सबसे बड़ी पंचायत यानी संसद तक भाजपा का वर्चस्व मांगा है। उन्होंने कहा है कि पंचायत चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक भाजपा को 50 साल जीतना चाहिए तब जाकर भारत ग्लोबल लीडर बन पाएगा। ध्यान रहे थोड़े समय को छोड़ कर कभी भी कांग्रेस का ऐसा शासन नहीं रहा है। शुरुआती पांच, दस साल तक कांग्रेस का केंद्र और राज्यों में राज करती रही पर उसके बाद हालात बदल गए और एक एक कर राज्यों में दूसरी पार्टियों की सरकारें बनने लगीं। केंद्र में भी कांग्रेस का निर्बाध राज 30 साल तक चल पाया था।

वैसे भी स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव वाले किसी भी लोकतंत्र में एक पार्टी को ऐसा राज नहीं मिल सकता है। भारत जैसी विविधता वाले देश में तो यह मुमकिन ही नहीं है। इसके लिए चीन या क्यूबा की तरह का राजनीतिक सिस्टम बनाना होगा। दूसरे, जिन राज्यों में भाजपा का शासन 15-20 साल से चल रहा है वहां के हालात देख कर तो नहीं लगता है कि 50 साल में भी स्थिति में कोई खास अंतर आ जाएगा। कई लोग यह भी मान रहे हैं कि एंटी इन्कंबैंसी कम करने के लिए भाजपा 50 साल का दांव चल रही है।

फिल्म इंडस्ट्री रोटी तो देती है, रेप करके छोड़ नहीं देती

बॉलीवुड में कास्टिंग काउच के सवाल पर मशहूर कोरियोग्राफर सरोज ख़ान ने दिया बयान, कहा हर क्षेत्र में होता है महिलाओं का शोषण, सिर्फ बॉलीवुड के पीछे क्यों पड़े हैं.


लगभग तीन दशकों से बॉलीवुड की कई सफलतम फिल्मों में नृत्य निर्देशन कर चुकीं वरिष्ठ कोरियोग्राफर सरोज खान ने फिल्म इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच पर बयान दिया है, जिस पर विवाद खड़ा हो गया है. यौन उत्पीड़न के खिलाफ शुरू हुए ‘मी टू’ अभियान के मद्देनजर सरोज खान ने महिलाओं को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि कास्टिंग काउच किसी के लिए भी कोई नई बात नहीं है.

महाराष्ट्र के सांगली में हुए एक कार्यक्रम में कास्टिंग काउच पर उन्होंने कहा, ‘ये चला आ रहा है बाबा आदम के ज़माने से. हर लड़की के ऊपर कोई न कोई हाथ साफ करने की कोशिश करता है. गवर्नमेंट के लोग भी करते हैं. तुम फिल्म इंडस्ट्री के पीछे क्यों पड़े हो? वो कम से कम रोटी तो देती है, रेप करके छोड़ तो नहीं देती.’

सरोज यहीं नहीं रुकीं. उन्होंने कहा कि ये लड़की के ऊपर निर्भर करता है कि वो अपने साथ क्या होने देना चाहती है. अगर उसके पास कला है तो वो अपने आप को क्यों बेचेगी.

सरोज ने कहा, ‘ये लड़की के ऊपर है कि तुम क्या करना चाहती हो. तुम उसके हाथ में नहीं आना चाहती हो तो नहीं आओगी. तुम्हारे पास आर्ट है तो तुम क्यों बेचोगी अपने आप को? फिल्म इंडस्ट्री को कुछ मत कहना. वो हमारा माई-बाप है.’

तेलुगू फिल्म उद्योग में कास्टिंग काउच संस्कृति के खिलाफ निर्वस्र होने वाले अभिनेत्री श्री रेड्डी पर एक पत्रकार के सवाल के जवाब में सरोज खान ने यह प्रतिक्रिया दी थी. इस बयान पर विवाद होने के बाद सरोज ने माफ़ी मांग ली है.

समाचार एजेंसी भाषा से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘मैंने पहले ही कहा है कि मैं माफी मांगती हूं लेकिन आप वह सवाल नहीं जानते जो मुझसे पूछा गया था और अब इस पर काफी हंगामा हो गया है.’

श्री रेड्डी ने सरोज के इस बयान के बाद कहा कि उनकी नजरों में सरोज की इज्ज़त खत्म हो गयी है. समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए श्री ने कहा कि बड़े होने के नाते आपको नई अभिनेत्रियों को सही रास्ता दिखाना चाहिए. यह इशारा गलत है कि आपको प्रोड्यूसर का गुलाम बनकर रहना पड़ेगा.

बॉलीवुड में काम देने के एवज में कलाकारों के यौन शोषण यानी कास्टिंग काउच को अक्सर फिल्म इंडस्ट्री के लोगों द्वारा नकारा जाता रहा है, लेकिन पिछले साल हॉलीवुड से शुरू हुई #MeToo मुहिम के बाद टिस्का चोपड़ा, रणवीर सिंह, इलियाना डीक्रूज़, ऋचा चड्ढा जैसे कई अभिनेता-अभिनेत्री खुलकर सामने आये.

ऋचा ने बीते दिसंबर में कहा था कि कि बॉलीवुड में यौन उत्पीड़न होता है इस बात को स्वीकार करना साहस की बात है लेकिन ऐसा करने वालों का नाम नहीं लिया जा सकता क्योंकि उसके बाद काम मिलने की गारंटी नहीं होती.

उन्होंने यह भी माना कि भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में इस तरह की व्यवस्था नहीं है जिससे कि पीड़ितों को सुरक्षा मिले.

जब उनसे ये पूछा गया कि वे किसी का नाम क्यों नहीं ले रहीं, तब उन्होंने साफ़ कहा कि अगर उन्हें ज़िंदगी भर काम और सुरक्षा मिले तब वे यौन उत्पीड़न करने वालों के नाम का खुलासा कर सकती हैं.

सोमवार, 23 अप्रैल 2018

कानून बनाने से न बलात्कार रूकेंगे और न लूट , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी

दोनों अध्यादेश बेमतलब है। भारत राष्ट्र-राज्य की नासमझी का प्रमाण है। इसलिए कि कानून बनाने से न तो भारत में व्यवस्था सुधरती है और न नागरिकों की समझ बनती है। उलटा होता है। हम लोगों का नंबर एक संकट यही है जो 70 साल की आजादी में अफसरों ने धड़ाधड कानून बनवाएं और लोगों का जीना बरबाद किया। भारत में कानून विचार, समझ पर नहीं बनता है, हल्ले और सनसनी में बनता है। कोई घटना हुई, हल्ला हुआ और आव देखा न ताव कानून बना डाला। इसलिए कानूनों की बाढ़ से बरबादी हुई पड़ी है। शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेश से लौटने के बाद ताबड़तोड़ 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से बलात्कार के दोषियों को मौत की सजा देने का और भगोड़े आर्थिक अपराधियों की तुरत संपत्ति जप्त कराने का जो अध्यादेश बनाया है वह सिर्फ इस हडबडी में है कि हल्ला है, बदनामी है तो सरकार अपने को कुछ करता दिखाएं। नतीजतन अफसरों ने बना डाले दो कानून!

लाख टके का सवाल है कि कठुआ और उन्नाव की बलात्कार घटना क्या हैवानियत पर कानून का डंडा न होने से हुई या नीरव मोदी, मेहुल चौकसी भारत के बैंकों को लूट कर भागे तो क्या ऐसा  कानून के खौफ न बने होने के चलते था? जिसने बलात्कार किया क्या वे बलात्कार के जुर्म पर बने कानून, सजा, बदनामी से अनजान थे? नीरव मोदी, मेहुल चौकसी अरबों रू लूट ले भागे तो क्या जानते नहीं थी कि अपराध कर रहे है और संपत्ति जब्त होगी? सब पता था लेकिन उससे ज्यादा उन्हे यह पता था कि इस देश की व्यवस्था में होना क्या है? य़हा सबकुछ मैनेज है। सालों लगेगें अदालत की कार्रवाई में। लोग, देश सब भूल जाएगें। अदालतों के चक्कर में सच को झूठ और झूठ को सच बना लेगें।

इसलिए होना यह चाहिए था कि बलात्कार का अपराध कोई हुआ है तो उसका निपटारा अदालत में छह महिने-साल के भीतर अनिवार्य बने। अध्यादेश इस बात पर बनना चाहिए कि कुछ अपराध है जिनका अब अनिवार्य तौर पर निपटारा तय समय सीमा में होगा! मगर भारत के किसी प्रधानमंत्री, किसी देश नियंता में यह हिम्मत नहीं है कि वह व्यवस्था पर कानून बना कर ऐसी जबरदस्ती करें कि तय समय सीमा में रिजल्ट दे। जज, अफसर, मंत्री, संस्था को समय सीमा में कानून पर अमल कराने की पाबंदी मे बांधे! ताजा कानून-अध्यादेश में जल्द निपटारे की बात है मगर अमल के लिए अनिवार्य बंदोबस्त, अदालत- पुलिस को पाबंद या ऐसे कामों के लिए अलग अदालते बना देने का फरमान नजर नहीं आया है।

कईयों का मानना है कि पोस्को कानून, महिला दहेज कानून, एससी-एटी एक्ट, मोकोका उन कानूनों की श्रेणी के है जिसके चपेटे में कोई आ गया तो उसके लिए न्याय का यह नैसर्गिक रास्ता खत्म हो जाता है कि जब तक प्रमाण न हो तब तक आरोपी को आरोपी ही माना जाएं। जबकि ये कानून जिस पर लागू हुए वे बिना जांच के सीधे जेल में!  जमानत भी नहीं। मतलब भारत राष्ट्र-राज्य ने अपराध रोकने के लिए कानूनों का जंगल राज भी बनाया हुआ है। ऐसे ही आर्थिक अपराधों में प्रवर्तन निदेशालय याकि ईडी को ऐसे पॉवर, ऐसे कानून से इस एक्स्ट्रीम तक की छूट है कि आरोप बाद में प्रमाणित होते रहेंगे पहले संपत्ति, खाते सब जप्त कर लो!  भ्रष्टाचार, आर्थिक अपराध के खिलाफ मनी लॉड्रीग कानून की भारत में जैसी जो अराजकता है वैसे दूसरे किसी सभ्य, लौकतांत्रिक देश में हो यह अपने को नहीं लगता। हकीकत है इस कानून बनने को बाद हजारों की तादाद में केस, संपत्ति जप्त का काम हुआ होगा लेकिन अदालत में कानून अनुसार आरोप साबित याकि सजा की संख्या शायद दर्जन भी नहीं होगी। यह स्थिति पोस्को कानून, महिला दहेज कानून, एससी-एटी एक्ट, मोकोको आदि उन सब विशिष्ट खास, सख्त कानूनों के संदर्भ में है जिन्हे जघन्यता की चिंता में संसद ने बनाया लेकिन व्यवस्था के दरवाजे पर वे उलटे भ्रष्टाचार या नागरिक के दमन का पर्याय बने हुए है या यह भाव बनवाएं हुए है कि कानून की चिंता छोड़ो व्यवस्था से सब मैनेजेबल है।

तभी कोई हिसाब नहीं है कि बलात्कार के कितने हजार या लाख मामले अदालतों में कितने सालों से सुनवाई में अटके हुए होंगे या दाऊद इब्राहीम की प्रोपर्टी को बेचने का काम अभी भी अटका हुआ है या मनी लॉड्रींग में कोई हसन अली आरोपी बना था जिसकी जांच का अता पता ही नहीं है।

तभी बुनियादी विचारणीय मुद्दा यह होना चाहिए कि बलात्कार की ताजा घटनाओं में अध्यादेश का फैसला क्या सोच विचार से हुआ है या जो हल्ला हुआ है उसमें भी क्या कोई समझ है? आज ही खबर थी 600 पूर्व नौकरशाहों, शिक्षाविदो ने प्रधानमंत्री मोदी को सख्त पत्र लिखा। इससे पहले वैश्विक संस्था आईएमएम की प्रमुख और संयुक्त राष्ट्र प्रवक्ता की टिप्पणी भी सुनने को मिली। इस सबका लबोलुआब यह बनता है कि पीएम याकि सरकार असंवेदनशील है। संदेह नहीं कि देश-दुनिया का हर समझदार व्यक्ति यह जान कर लज्जा महसूस करेगा कि कठुआ और उन्नाव के आरोपी को बचाने की, लीपापोती की कोशिश हुई। उस नाते सबका गुस्सा जायज है लेकिन सरकार और सख्त कानून बनाएं व फांसी का नया कानून बने, इस तरह का हल्ला और उसमें अपनी जान बचाने के लिए ताबड़तोड नया कानून बनाना कुल मिला कर नासमझी है।

तभी कुछ एनजीओं का यह कहना सही है कि बच्चियों के यौन शौषण के मामले परिवार, रिश्तेदारों के बीच होते है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरों के 2016 के आंकडों के अनुसार पोस्को एक्ट में बच्चियों के यौन शौषण के जो मामले आए उनमें 94.6 प्रतिशत रिश्तेदार और जानने वाले लिप्त पाए गए। इसका अर्थ है कि अब फांसी की सजा के प्रावधान से परिवार वाले रिपोर्ट ही नहीं किया करेगें। फांसी की सजा परिवार वालों को रिपोर्ट करने से रोकेगी। इसलिए भी कि इस तरह के मामलो में 18 प्रतिशत से भी कम केस अदालत में प्रमाणित हो पाते है।

अपना मानना था, है और रहेगा कि भारत में समस्या समाज और परिवारों में रिश्तों के लावारिश, मनमाने अंदाज में बदलने से है। समाज असंख्य, चौतरफा कारणों से दबाव में है। उनसे जाने-अनजाने बदल रहा है और जैसे घर-परिवार में रिश्ते बदले है वैसे जातियों के, धर्म के आपसी रिश्ते बदल रहे है। पर बतौर कौम हमें इसकी न सुध है, न अध्ययन है और न समझ है। आधुनिकता, भूमंडलीकरण की जिस झांकी में भारत का समाज, परिवार आज रह रहा है उसमें वह रिश्तों की सहज, सरल, नैसर्गिक तासीर गंवा बैठा है तो समाज रचना की पुरानी चली आ रही वर्जनाओं से पैदा कुंठाओं, भूख का अलग मारा हुआ है। उस नाते समाज सुधार के दस तरह के कामों की जरूरत है लेकिन हमारे आईडिया ऑफ इंडिया में सबकुछ सरकार पर छूटा हुआ है। हर समस्या, हर चीज को कानून बना कर उसकी अराजकता में समाज के रिश्तों को झौक दे रहे है। तभी हिंदू परिवारों के रिश्तों में तलाक की प्रवृति आम बन गई है तो भूख ने अनैतिकता, भ्रष्टाचार को सर्वजनीय बना डाला है।

मैं भटक रहा हूं। पते की बात कानून नहीं व्यवस्था मूल समस्या है। समझ नहीं सनसनी समस्या है। हम इतना हल्ला, इतनी सनसनी बना देंगे कि दुनिया भी सोचने लगेगी कि भारत दुनिया की बलात्कार राजधानी है। जबकि ऐसा कतई नहीं है। बलात्कार के वैश्विक आंकडों में 118 देशों में से भारत 94 वें नंबर पर है। नंबर एक पर दक्षिण अफ्रिका है। उसके बाद के चार देश अफ्रीकी है और छठा देश योरोप का सर्वाधिक विकसित स्वीडन (सचमुच!) है। आस्ट्रेलिया 11वें, अमेरिका 14वें, न्यूजीलैंड 16वें, फ्रांस 27वें नबंर पर है जबकि लिस्ट में भारत 94वें नंबर पर है।

सो कैसे हुआ भारत दुनिया की बलात्कार राजधानी? मगर हम हल्ला, सनसनी ऐसे बनाते है कि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस के ज्ञानी-ध्यानी भी बोल पड़ते है कि भारत तो महिला, दलित, मुस्लिम उत्पीडन वाला नंबर एक देश!

बावजूद इस सबके यह भी तथ्य है कि जिन देशों से मैंने तुलना की है उनमें बलात्कार का मुकद्दमा फटाफट निपटता है। वहां सजा का फैसला तुरत होता है। व्यवस्था और अदालत में वहा सत्य , झूठ और झूठ सत्य नहीं होता। यह सब व्यवस्था में फर्क के कारण है। उस नाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या किसी भी सरकार पर ठिकरा फूटता है तो वह गलत नहीं। भारत की सडी-गली व्यवस्था को कानूनों से नहीं सुधारा जा सकता है उसे डंडा चला कर, उसे खत्म कर नवनिर्माण से ही ठिक बनाया जा सकता है जिसकी समझ बतौर राष्ट्र-राज्य हममें सचमुच में नहीं है!

सीजेआई पर आरोप न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमतर आंकने वाले: नायडू

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ विक्षप की ओर से दिये गये महाभियोग का नोटिस खारिज करते हुए राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि प्रस्ताव में न्यायमूर्ति के खिलाफ लगाये गये आरोप न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमतर आंकने वाले हैं।

नायडू ने आज इस प्रस्ताव को नामंजूर करते हुये अपने आदेश में कहा कि उन्होंने न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ लगाये गये प्रत्येक आरोप के प्रत्येक पहलू का विश्लेषण करने के बाद पाया कि आरोप स्वीकार करने येाग्य नहीं हैं। उन्होंने आरोपों की विवेचना के आधार पर आदेश में लिखा ‘‘इन आरापों में संविधान के मौलिक सिद्धातों में शुमार न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कम करने वाली प्रवृत्ति गंभीर रूप से दिखती है।’’ नायडू ने कहा कि वह इस मामले में शीर्ष कानूनविदों, संविधान विशेषज्ञों, संसद के दोनों सदनों के पूर्व महासचिवों और देश के महान्यायवादी के. के. वेणुगोपाल, पूर्व महान्यायवादी के. पारासरन तथा मुकुल रोहतगी से विचार विमर्श के बाद इस फैसले पर पहुंचे हैं।

नायडू ने विपक्षी सदस्यों द्वारा पेश नोटिस में खामियों का जिक्र करते हुये कहा कि इसमें सदस्यों ने जो आरोप लगाये हैं वे स्वयं अपनी दलीलों के प्रति स्पष्ट रूप से अनिश्चिचत हैं। उन्होंने कहा कि सदस्यों ने न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ कदाचार के आरोप को साबित करने के लिये पेश किये गये पहले आधार में कहा है, ‘‘प्रसाद एजूकेशन ट्रस्ट में वित्तीय अनियमितता के मामले में प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि प्रधान न्यायाधीश भी इसमें शामिल रहे होंगे।’’ इस आधार पर सदस्यों ने कहा कि देश के प्रधान न्यायाधीश को भी मामले की जांच के दायरे में रखा जा सकता है।

नायडू ने आरोपों की पुष्टि के लिये इसे अनुमानपरक आधार बताते हुये कहा कि देश के प्रधान न्यायाधीश को पद से हटाने की मांग करने वाला प्रस्ताव महज शक और अनुमान पर आधारित है। जबकि संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत न्यायाधीश को पद से हटाने लिये कदाचार को साबित करने वाले आधार पेश करना अनिवार्य शर्त है। इसलिये पुख्ता आधारों के अभाव में यह स्वीकार किये जाने योग्य नहीं हैं।

नायडू ने उच्चतम न्यायालय में मुकदमों की सुनवाई हेतु विभिन्न पीठों को उनके आवंटन में प्रधान न्यायाधीश द्वारा अपने प्रशासनिक अधिकारों का दुरुपयोग करने के आरोप को भी अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा कि हाल ही में उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने अपने फैसले में निर्धारित कर दिया है कि प्रधान न्यायाधीश ही मुकदमों के आवंटन संबंधी ‘रोस्टर का प्रमुख’ है। ऐसे में अधिकारों के दुरुपयोग का आरोप भी स्वीकार्य नहीं है।

राज्यसभा के सभापति ने कहा कि पुख्ता और विश्वसनीय तथ्यों के अभाव में पेश किये गये प्रस्ताव को स्वीकार करना अनुपयुक्त और गैरजिम्मेदाराना होगा। उन्होंने इस तरह के आरोप लगाने से बचने की सदस्यों को नसीहत देते हुये कहा ‘‘लोकतांत्रिक व्यवस्था के संरक्षक होने के नाते इसे वर्तमान और भविष्य में मजबूत बनाना तथा संविधान निर्माताओं द्वारा सौंपी गयी इसकी समृद्ध एवं भव्य इमारत की नींव को कमजोर नहीं होने देना हम सबकी यह सामूहिक जिम्मेदारी है।

मोदी को सिर्फ फिर से पीएम बनने की चिंता: राहुल

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बच्चियों से बलात्कार की हालिया घटनाओं, दलितों पर कथित अत्याचार, बैकिंग क्षेत्र में धोखाधड़ी और ‘राफेल घोटाले’ को लेकर आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर निशाना साधा और कहा कि देश जल रहा है, लेकिन मोदी को सिर्फ फिर से प्रधानमंत्री बनने की चिंता सता रही है।

राहुल ने मोदी सरकार में विदेश में देश की छवि धूमिल होने का आरोप लगाया और कहा कि पिछले 70 वर्षों में किसी भी प्रधानमंत्री के कार्यकाल में ऐसी स्थिति नहीं रही। कांग्रेस के 'संविधान बचाओ अभियान’ की शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा, '‘मोदी जी को सिर्फ मोदी जी में दिलचस्पी है और किसी मुद्दे में नहीं। उनको सिर्फ इस बात की चिंता है कि 2019 में वह फिर कैसे प्रधानमंत्री बनेंगे।'' उन्होंने कहा, ‘‘दलित मर जाए, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो, देश जल जाए, महिलाओं के साथ बलात्कार हो, लेकिन नरेंद्र मोदी सिर्फ यही जानना चाहते हैं कि फिर से प्रधानमंत्री कैसे बनेंगे।’’ उन्होंने कहा कि मोदी से अगली बार जनता जीएसटी, नोटबंदी और किसानों के मुद्दे पर जवाब मांगेगी और उनको अपने 'मन की बात' बताएगी। प्रधानमंत्री के एक बयान को लेकर उन पर कटाक्ष करते हुए राहुल ने कहा, ''मोदी जी सोचते हैं कि जो शौचालय साफ करता है या गन्दगी उठाता है, वह यह काम पेट भरने के लिए नहीं करता, बल्कि आध्यात्म के लिए करता है।’’ उन्होंने कहा कि ‘मोदी जी देश के दलित आपसे गुस्सा हैं क्योंकि यह आपकी विचारधारा ऐसी है।’ उन्होंने कहा, "देश का हर व्यक्ति यह समझता है कि इस व्यक्ति (मोदी) के दिल में हिंदुस्तान के दलितों, कमजोरों और महिलाओं के लिए कोई जगह नहीं है।

राहुल ने कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात, जहां भी देखो वहां दलितों के खिलाफ हिंसा बढ़ती जा रही है। ऊना में घटना होती है और वह कुछ नहीं बोलते।" कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ‘‘ संविधान देश के सभी लोगों की रक्षा करता है।.... इस देश में जो भी संस्थाएं हैं वह हमारे संविधान की वजह से हैं, चाहे चुनाव आयोग हो, लोकसभा हो, राज्यसभा हो, विधानसभा हो, आईआईटी हों या आईआईएम हों, जो भी संस्थाएं हैं वो इसी संविधान की देन हैं। संविधान के बिना इस देश में कोई संस्था नहीं बनती।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ आज सभी संस्थाओं में आरएसएस की विचारधारा के लोगों को घुसाया जा रहा है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जनता जज के पास जाती है और न्याय मांगती है। पहली बार जज न्याय मांगने जनता के बीच आये। सुप्रीम कोर्ट को कुचला जा रहा है।

दबाया जा रहा है। संसद नहीं चलने दी जा रही क्योंकि मोदी जी संसद में खड़े होने से घबराते हैं।’’ कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ‘‘नीरव मोदी का मामला है, ललित मोदी का मामला है, विजय माल्या का मामला है, राफेल का मामला है। संसद में 15 मिनट मेरा भाषण करा लें। मैं नीरव मोदी के बारे में बोलूंगा, राफेल के बारे में बोलूंगा। मोदी जी वहां खड़े नहीं हो पाएंगे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘पूरा देश इस बात को जानता है कि राफेल सौदे में घोटाला हुआ है। नीरव मोदी 30 हजार करोड़ रुपये लेकर भाग गया, लेकिन मोदी जी कुछ नहीं बोले।’’ राहुल ने कहा, ‘‘ मोदी जी ने कल अपने सांसदों और विधायकों से कहा कि तुम लोग मीडिया को मसाला देते हो।

उन्होंने कहा कि तुम लोग चुप रहो, सिर्फ मैं बोलूंगा और अपने ‘मन की बात’ करूंगा।’’ कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ‘‘अरूण जेटली जी नहीं बोलेंगे, नितिन गडकरी जी नहीं बोलेंगे, कोई नहीं बोलेगा, सिर्फ नरेंद्र मोदी बोलेंगे और वो भी अपने मन की बात बोलेंगे।’’ उन्होंने कहा, ‘‘पिछले चुनाव में 15-15 लाख रुपये देने, दो करोड़ युवाओं को रोजगार देने और किसानों को राहत देने का वादा किया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। जनता इसका जवाब देगी।’’

राहुल ने कठुआ और उन्नाव की घटना का उल्लेख करते हुए कहा, ‘‘आईएमएफ की प्रमुख ( क्रिस्टीन लेगार्द) ने मोदी जी से कहा कि आपके देश में महिलाओं के खिलाफ एक के बाद एक अत्याचार हो रहा है और आप चुप है। इससे पहले किसी भी दूसरे प्रधानमंत्री से विदेश में कोई ऐसा नहीं बोला।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इनका नारा था ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’। लेकिन अब नारा है बेटी बचाओ और भाजपा से बेटी बचाओ, भाजपा के विधायकों से बेटी बचाओ। आज के हिंदुस्तान की यही सच्चाई है।’’ राहुल ने कहा, ‘‘हम संविधान में बदलाव नहीं होने देंगे। हम सब मिलकर इस देश को नया रास्ता दिखाएंगे।’’

राहुल ने मोदी पर विदेशों में देश की छवि धूमिल करने का आरोप लगाते हुए कहा, ‘‘ पहले दूसरे लोग हमारी तरफ देखते थे और कहते थे कि हम हिंदुस्तान की तरह काम करना चाहते हैं। कांग्रेस ने पिछले 70 साल में पूरी दुनिया में भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाई, लेकिन मोदी जी ने पिछले चार साल में इस प्रतिष्ठा को जबरदस्त चोट पहुंचाई है। हमारी छवि को नुकसान पहुंचाया है।’’

‘संविधान बचाओ अभियान’ की शुरुआत के कार्यक्रम में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत, अहमद पटेल, मोती लाल बोरा, अहमद पटेल, गुलाम नबी आजाद, दिग्विजय सिंह, सुशील कुमार शिंदे, पी एल पूनिया, मुकुल वासनिक, शीला दीक्षित, पीसी चाको, अजय माकन और कई दूसरे वरिष्ठ नेता मौजूद रहे। कांग्रेस के ‘संविधान बचाओ’ अभियान का मकसद संविधान एवं दलितों पर कथित हमलों के मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर जोरशोर से उठाना है। पार्टी ने ‘संविधान बचाओ’ अभियान 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर दलित समुदाय के बीच अपनी पैठ बढ़ाने के प्रयास के तहत शुरू किया है।

मीडिया को अपने बयानों से ‘मसाला’ न दें, इससे पार्टी की छवि ख़राब होती है: मोदी

प्रधानमंत्री ने भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं से कहा कि हम कैमरा देखते ही बयान देने लग जाते हैं. मीडिया जो हिस्सा उपयोगी समझता है, उसका इस्तेमाल करता है. यह उसकी ग़लती नहीं है. हमें ख़ुद को रोकना होगा.

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं से कहा कि उन्हें गैर जिम्मेदाराना बयान देने से बचना चाहिए क्योंकि इस तरह के बयानों से पार्टी की छवि खराब होती है.

पार्टी के सांसदों, विधायकों और अन्य प्रतिनिधियों से बातचीत के दौरान मोदी ने कहा कि कई बार मीडिया के सामने बयान देते हैं और उन्हें मसाला (विवाद पैदा करने के लिए चारा) मुहैया करा देते हैं. फिर विवादों के लिए उसे जिम्मेदार ठहराने का कोई तुक नहीं बनता.

उन्होंने कहा, ‘मीडिया को जिम्मेदार नहीं ठहराइए. वह अपना काम कर रहा है. हमें चाहिए कि हर चीज में नहीं पड़ें और टीवी के सामने खड़े होकर हर मुद्दे पर देश को राह नहीं दिखाते रहें. जिन लोगों को मुद्दों पर बोलने की जिम्मेदारी दी गई है वे बोलेंगे.’

उन्होंने कहा, ‘कई बार हमारे कार्यकर्ता कहते हैं कि मीडिया यह कर रहा है, मीडिया वह कर रहा है. लेकिन क्या हमने सोचा है कि हम अपनी गलतियों से मीडिया को मसाला दे रहे हैं? जैसे कि हम समाज विज्ञानी या विद्वान हों जो हर समस्या का विश्लेषण कर सकते हैं. जब हम कैमरामैन को देखते हैं तो बयान देने लग जाते हैं. मीडिया जो हिस्सा उपयोग समझता है उसका इस्तेमाल कर लेता है, जिससे पार्यटी की छवि खराब होती है. यह मीडिया की गलती नहीं है. हमें खुद को रोकना होगा.’

पार्टी की तरफ से जारी बयान के मुताबिक मोदी ने भाजपा को समाज के पिछड़े तबके से मिले समर्थन को आज रेखांकित किया और कहा कि ओबीसी, दलित और आदिवासी समुदाय से पार्टी के सबसे अधिक निर्वाचित सांसद हैं. उन्होंने कहा कि इसकी पहुंच किसी खास वर्ग, शहरी केंद्रों या उत्तर भारत तक सीमित नहीं है.

मोदी ने पार्टी नेताओं से कहा कि गैर जिम्मेदाराना बयान देने से बचें. उन्होंने कहा कि भाजपा के लिए जनता का समर्थन बढ़ा है इसलिए जिम्मेदारी भी बढ़ी है.

मोबाइल एप्लीकेशन के जरिए पार्टी के सांसदों, विधायकों और अन्य प्रतिनिधियों के साथ बातचीत के दौरान उनका यह बयान सामने आया. दलितों के मुद्दे पर विपक्षी दलों के विरोध के बीच उनका बयान महत्व रखता है.

भाजपा की विज्ञप्ति में मोदी के हवाले से कहा गया कि पार्टी ने ग्रामीण लोगों का दिल जीता और साथ ही झारखंड में स्थानीय निकाय चुनावों में पार्टी की जीत का जिक्र किया.

उन्होंने सांसदों और विधायकों से कहा कि संकल्प लें कि अपने क्षेत्र में पड़ने वाले गांवों की चार-पांच समस्याओं का समाधान करें. उन्होंने 14 अप्रैल से पांच मई के बीच चल रहे ‘ग्राम स्वराज’ अभियान के लिए भी कई निर्देश जारी किए.

मोदी ने कहा कि कांग्रेस की गलतियों के कारण भाजपा सत्ता में नहीं आई है बल्कि यह हमेशा लोगों से जुड़ी रही और अब इसका काम आम आदमी की समस्याओं का समाधान करना है.

उन्होंने कहा कि भाजपा के बारे में विचार हुआ करता था कि यह निश्चित वर्ग और शहरी केंद्रों या उत्तर भारत की पार्टी है लेकिन यह विचार बदल गया है और भाजपा सभी के संपर्क और समग्र संगठन के रूप में उभरी है.

पार्टी ने बयान जारी कर कहा, ‘समाज के सभी वर्गों में हमारा जनाधार बढ़ रहा है और यही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है.’

मोदी ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से कहा कि गांवों में विकास कार्यों के लिए प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करें. उनकी सरकार द्वारा पर्याप्त संख्या में नौकरियों का सृजन नहीं करने की आलोचना पर उन्होंने कहा कि गांवों में जीवनशैली और आजीविका के स्रोत बदले हैं क्योंकि उनकी सरकार ने स्वरोजगार बढ़ाने पर जोर दिया है.

मोदी ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा कि गांवों में सौहार्द्रता बढ़ाएं और गरीबों, किसानों, दलितों और आदिवासियों का विकास करें.

अपनी सरकार की महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य बीमा योजना ‘आयुष्मान भारत’ का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 2022 तक डेढ़ लाख से ज्यादा पंचायतों में स्वास्थ्य केंद्र बनाए जाएंगे और इस कार्यक्रम का उद्देश्य दस करोड़ परिवारों को पांच लाख की बीमा राशि से कवर करना है.

उन्होंने किसानों, युवकों और महिलाओं के लिए अपनी सरकार की योजनाओं का जिक्र किया और पार्टी के सांसदों-विधायकों से इसका प्रचार-प्रसार करने के लिए कहा.

बयान में कहा गया है कि मोदी 26 अप्रैल को वीडियो ब्रिज तकनीक के माध्यम से कर्नाटक में पार्टी कार्यकर्ताओं से बातचीत करेंगे.

उन्होंने कहा कि पार्टी नेता 20 हजार से अधिक गांवों में रात बिता रहे हैं जहां दलितों और आदिवासियों की 50 फीसदी से अधिक आबादी है ताकि कल्याण योजनाओं को जनता तक पहुंचाया जा सके.

उन्होंने कहा कि एक हजार से अधिक केंद्र सरकार से अधिकारी इसी उद्देश्य से 500 जिलों में ठहर रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा कि हाल में एक दिन में 11 लाख से अधिक एलपीजी कनेक्शन बांटे गए. मोदी ने विभिन्न मुद्दों पर निर्वाचित प्रतिनिधियों के सवालों के जवाब भी दिए.

रविवार, 22 अप्रैल 2018

डॉ. चतुर्वेदी ने वार्ड 30 में सुनी जनसमस्याएं

 सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री अरुण चतुर्वेदी ने
वार्ड संख्या 30 कॉलोनी फूटल्या बाग, सिद्धार्थ कॉलोनी एवं जमुना डेरी आदि कॉलोनी में जाकर लोगों की जन समस्याओं को सुना।

डॉ. चतुर्वेदी ने लोगों की जन समस्याओं को सुनकर दूरभाष पर संबंधित अधिकारियों को समाधान करने के लिए आवश्यक दिशा निर्देश भी दिए। उन्होंने कहा की वार्ड संख्या 30 की ज्यादातर कॉलोनियों में सड़कों, नाली सफाई, पेयजल आदि के कार्य कराए गए हैं जिससे लोगों को राहत पहुंचाई गई है। 

जयपुर के एक अस्पताल ने 500 रुपये की दिहाड़ी दिलाने का झांसा देकर ग्रामीणों पर किया ड्रग ट्रायल

जयपुर के एक अस्पताल ने चुरू और भरतपुर से लाए गए तकरीबन 28 ग्रामीणों को एक अनजान टैबलेट दी थी. दवा की वजह से कुछ लोगों के हाथ पैर में दर्द और कुछ लोगों को नशा चढ़ने लगा था.

जयपुर: राजस्थान की राजधानी जयपुर के मालपाणी अस्पताल से ड्रग ट्रायल का एक सनसनीखेज मामला सामने आया है. जहां कुछ गरीब युवकों को काम का झांसा देकर उन पर विदेशी दवाओं का अवैध तरीके से परीक्षण किया गया है.

दैनिक भास्कर के मुताबिक चुरू जिले के डिगारिया गांव से लाए गए 21 लोगों में से 12 लोग अपने गांव लौट चुके हैं. चुरू से लाए गए ग्रामीणों ने बताया कि पलास गांव के शेरसिंह ने उनसे संपर्क किया था और कहा था कि अस्पताल में एक कैंप लगाया जाना है. उसके काम के लिए चलना है. एक दिन के 500 रुपये, खाने-पीने और रहने का बंदोबस्त भी होगा.

गांववालों ने आगे बताया, ‘केवल कैंप का काम और अन्य सुविधाओं को देखते हुए गांव से हम 21 लोग आ गए. हमें एक वार्ड में रोका गया. 19 अप्रैल को सुबह करीब 10 बजे चाय-नाश्ता दिया गया और करीब 11:30 बजे एक-एक टैबलेट यह कहते हुए दी गई कि इस दवा से थकान दूर होगी और खाना आराम से पच जाएगा.’

पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार, मालपाणी अस्पताल में बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों द्वारा विकसित दवा का रोगियों पर ड्रग ट्रायल करने के लिए अस्पताल प्रबंधन ने 28 ग्रामीणों को 500 से 1000 रुपये तक की दिहाड़ी तक का झांसा देकर भर्ती किया और अनजान टैबलेट दी.

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार, जिन लोगों ने दवा ली, उन्हें चक्कर, उल्टी, नींद, बेहोशी और पेशाब नहीं आने की शिकायत हो गई. डॉक्टरों को कहा गया तो उन्होंने कहा कि थोड़ी देर में सब ठीक हो जाएगा. बाद में अन्य लोगों पर भी दवा लेने के लिए दबाव बनाया गया, लेकिन वे किसी बहाने से अस्पताल से निकल गए.

इसके बाद ग्रामीणों ने ही अस्पताल की इस करतूत का खुलासा किया. ग्रामीणों ने इसकी सूचना सुजानगढ़ में हेल्पलाइन चलाने वाले विमल तोषलीवाल को दी. इसके बाद ग्रामीण एकजुट होकर मीडिया के सामने आए और आप बीती सुनाई.

हालांकि पत्रिका से बातचीत में अस्पताल के निदेशक एनके मालपाणी आरोपों को निराधार बताते हुए कहते हैं, ‘हमने रोगियों से सहमति ली है. हम तो मानव सेवा का काम कर रहे हैं. किसी दवा का ट्रायल ही नहीं होगा तो वह बाजार में आएगी कैसे?’

वे आगे कहते हैं, ‘हमारा अधिकृत ट्रायल सेंटर है. कहीं कोई फर्जीवाड़ा नहीं है. ट्रायल में अक्सर कंपनी पैसे देती ही है. पैसा हम नहीं रखते हैं, इसलिए ग्रामीणों को दिए.’

अस्पताल के संचालक अंशुल मालपाणी ने दैनिक भास्कर को बताया कि डॉ. राहुल सैनी अस्पताल में क्लीनिकल ट्रायल के इंचार्ज हैं. वे ही ड्रग ट्रायल कर रहे थे. तो वहीं डॉ. सैनी का कहना है, ‘हमारे यहां क्लीनिकल ट्रायल की जाती है, इसीलिए लोग यहां आए. वे किसके जरिए लाए गए, इसकी हमें जानकारी नहीं है.’

वे आगे बताते हैं, ‘ग्लेक्सो कंपनी की दवा का ऑस्टियो आर्थराइटिस का ट्रायल होना था, लेकिन वह शुरू नहीं हुआ था. हमने कोई दवा नहीं दी. ये लोग झूठ बोल रहे हैं. हम दवा देने से पहले स्क्रीनिंग करते हैं और पता करते हैं कि मरीज को दवा दी जा सकती है या नहीं. इसके बाद ट्रायल करते हैं. तबीयत बिगड़ने की स्थिति नहीं आती.’

वहीं भरतपुर शहर से लाए गए चार लोगों में से फतेह और भागीरथ ने बताया कि भरतपुर का ही महावीर उन्हें काम दिलाने के लिए लेकर आया था. उसने एक दिन का 1000 रुपये दिलाने का आश्वासन दिया था.

भास्कर से बातचीत में महावीर ने कहा, ‘मैं उनको आईपीएल मैच दिखाने के लिए लाया था. उसका एक दोस्त विष्णु अस्पताल में ही काम करता है, इस कारण सबको अस्पताल में रोका गया.

हालांकि महावीर को मैच कब होगा इसकी भी जानकारी नहीं थी. पूछे जाने पर कि मैच कब होगा, उसने जबाव दिया, ‘जब भी होगा, तब देख आएंगे. इसलिए तब तक यहां आ गए.’

गौरतलब है कि ड्रग ट्रायल एक व्यक्ति पर दवा के प्रभावों को जानने का एक तरीका होता है. इसके लिए अस्पताल को सबसे पहले क्लीनिकल एथिकल कमेटी की अनुमति की जरूरत होती है. कमेटी में डॉक्टर, वकील और समाजसेवी शामिल होते हैं.

वहीं, जिस व्यक्ति पर जिस दवा का ट्रायल होना है, वह व्यक्ति उस दवा से संबंधित बीमारी का मरीज होना आवश्यक है. ट्रायल से पहले डॉक्टर और दवा कंपनी के अधिकारी को उस दवा के बारे में मरीज को सारी जानकारी देनी होती है. मरीज की अनुमति के बाद ही ट्रायल किया जा सकता है.