शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

तब आगे एनआरसी मुद्दा?

क्या दिल्ली के बाद संशोधित नागरिकता कानून के साथ साथ राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर, एनआरसी का मुद्दा बनेगा? आखिर भाजपा को अगले साल अप्रैल-मई में पश्चिम बंगाल का चुनाव लड़ना है। वहां नागरिकता सबसे बड़ा मुद्दा होगा। ध्यान रहे भले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कह दिया हो कि अभी एनआरसी पर चर्चा नहीं हुई है और सरकार अभी इसे लाने नहीं जा रही है पर पश्चिम बंगाल में भाजपा ने बंगाली भाषा में जो पुस्तिका छपवाई है उसमें लिखा है कि एनआरसी लागू होगा। सो, माना जा रहा है कि दिल्ली के चुनाव के बाद एनआरसी पर फोकस बनेगा, घुसपैठियों को चुन चुन कर बाहर निकालने की बात कही जाएगी। ध्यान रहे भाजपा का शुरू से कहना रहा है कि पहले कांग्रेस और फिर लेफ्ट के शासन में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठियों को पश्चिम बंगाल में बसाया गया है। 

इसमें कुछ हद तक सचाई भी है और यह भी सचाई है कि 29 फीसदी की मजबूत मुस्लिम आबादी की वजह से कई इलाकों में हिंदू लोग परेशान भी हुए हैं। कई इलाकों में आम हिंदू अपनी धार्मिक, सामाजिक मान्यताओं और राजनीतिक रूझानों को लेकर प्रताड़ित होता रहा है। भाजपा ने इसे अपना हथियार बनाया है। तभी पश्चिम बंगाल के लोकसभा चुनाव में उसने चमत्कारिक प्रदर्शन किया। भाजपा की सीटें दो से बढ़ कर 18 हो गईं। अगले साल के विधानसभा चुनाव में भाजपा लोकसभा की सीटों को विधानसभा में कन्वर्ट करने भर की तैयारी नहीं कर रही है, बल्कि बहुमत हासिल करने की तैयारी कर रही है।

सोचें, दिल्ली जैसे छोटे से अर्ध राज्य, जिसकी हैसियत नगरपालिका की तरह की है वहां का चुनाव जीतने के लिए जब हिंदू-मुस्लिम का इतना स्पष्ट राजनीतिक विमर्श बनाया गया है तो पश्चिम बंगाल में क्या होगा? दिल्ली में मुस्लिम आबादी को लेकर बहुत अलगाव वाली धारणा नहीं है और न सांप्रदायिक विभाजन बहुत गहरा है। महानगरीय जीवन शैली में ऐसे विभाजन की गुंजाइश भी कम रहती है। फिर भी दिल्ली में भाजपा ने चुनाव को हिंदू-मुस्लिम, भारत-पाकिस्तान, बालाकोट-शाहीन बाग का मुकाबला बना दिया है तो पश्चिम बंगाल के बारे में कल्पना की जा सकती है वहां क्या होगा? बंगाल से पहले बिहार विधानसभा का चुनाव है। वहां फिलहाल भाजपा का तालमेल जनता दल यू से है। अगर नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के साथ ही मिल कर भाजपा को लड़ना है तब तो दिल्ली का हिंदू-मुस्लिम वाला नैरेटिव ठहरा रहेगा। लेकिन अगर किसी वजह से चुनाव से पहले तालमेल खत्म हुआ तो भाजपा बंगाल से पहले इसकी परीक्षा बिहार में ही करेगी। वहीं पर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का मुद्दा बनेगा और वहां से उसे बंगाल ले जाया जाएगा। फिर हिंदू-मुस्लिम ग्रंथि और पिछले कुछ वर्षों से कराए गए सांप्रदायिक विभाजन की राजनीति की परीक्षा बिहार और पश्चिम बंगाल में होगी।

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