विधानसभा चुनाव में भी ‘बिहार की धमक’ सुनायी दे रही है। तीन बड़े दलों कांग्रेस-राजद और जदयू ने अपनी रणनीति पूरी तरह बिहार की तिकड़ी या यूं कहें कि ‘झा तिकड़ी’ के हवाले कर दी है।
कांग्रेस की चुनाव अभियान समिति की बागडोर जहां कांग्रेस के नेता और दरभंगा से पूर्व सांसद रहे कीर्ति झा आजाद के जिम्मे है, वहीं बिहार में सत्ताधारी जनता दल (युनाइटेड) ने दिल्ली का चुनाव प्रभारी बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय झा को बनाया है। राजद भी राज्यसभा सांसद मनोज झा को चुनाव प्रभारी बनाकर चुनावी मैदान में उतर रही है। दिल्ली चुनाव में राजद और जद (यू) जहां अपने विस्तार पर जोर दे रही हैं, वहीं कांग्रेस एकबार फिर दिल्ली की सत्ता पर काबिज होना चाहती है।
दिल्ली के कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां पूर्वांचल समाज के लोग अच्छी खासी तादाद में हैं। यही कारण है कि दिल्ली के सभी राजनीतिक दल पूर्वांचली मतदाताओं को साधने के लिए अपने-अपने तरीके से योजनाएं बना रहे हैं। बता दें कि दिल्ली में बिहार और यूपी के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। कहा जाता है कि दिल्ली की तकरीबन 20-22 सीटों पर पूर्वांचल और बिहार के मतदाताओं का प्रभाव है। यही वजह है कि हर पार्टी पूर्वांचल के मतदाताओं पर खास नजर रख रही है।
कांग्रेस-राजद और जदयू की कमान 'झा’ को
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महिलाओं पर भरोसा कम, 10% से भी कम रहा है प्रतिनिधित्व
दिल्ली की सियासत में महिलाओं की भागीदारी नाममात्र की ही दिखती है। दिल्ली विधानसभा गठन के बाद से सबसे ज्यादा सत्ता महिलाओं के हाथों में रही, बावजूद इसके सदन में महिला विधायकों की संख्या गिनी-चुनी ही रही है। 70 सीटों वाली विधानसभा में अभी केवल छह महिला विधायक हैं। राज्य में अब तक छह चुनाव हुए, जिनमें कुल मिला कर 31 महिला विधायक रहीं। यानी केवल 7.4 प्रतिशत हिस्सेदारी।
1993 के चुनावों में 59 महिलाएं थी मैदान में
छह चुनावों में केवल चार महिलाएं ही कैबिनेट मंत्री बनी हैं। यह हाल तब है, जब 1998 से लेकर 2013 तक शीला दीक्षित की तीन बार सरकार रही। महिला मुखिया के होते हुए भी महिलाओं की समुचित भागीदारी सुनिश्चित नहीं हो सकी। यहां तक वे अपने ही दल में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित नहीं करा सकीं। दिल्ली को पढे लिखे और नौकरीपेशा लोगों का राज्य माना जाता है।

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