केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए यह सबसे मुश्किल समय है। अपने छोटे से राजनीतिक करियर में उनको ज्यादा मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा है। पार्टी में प्रवक्ता से शुरू करके वित्त मंत्री बनने का उनका सफर सपनों जैसा है। नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में वे वाणिज्य मंत्री बनीं और उसी रक्षा में रक्षा मंत्री भी बन गईं। इतने कम समय में संभवतः दूसरा कोई भी नेता शीर्ष पांच मंत्रियों में नहीं शामिल नहीं हुआ होगा। मोदी की दूसरी सरकार बनने पर वे वित्त मंत्री बन गईं।
पर सपनों के इस सफर में मुश्किलों का दौर शुरू हो गया है। उनकी मुश्किलें दो तरह की हैं। पहली मुश्किल देश की आर्थिकी को लेकर है। वे अपना दूसरा आम बजट पेश करने जा रही हैं और इस समय देश की आर्थिकी बहुत बुरी दशा में है। वे कह सकती हैं कि आर्थिकी को बुरी दशा में पहुंचाने में उनका कोई हाथ नहीं है। आखिर उन्होंने नोटबंदी नहीं की थी और न जीएसटी लागू करने का फैसला उनका था। उनको तो ये दोनों चीजें विरासत में मिली थीं, जिनसे पैदा हुई स्थितियों को संभालना उनके वश में नहीं दिख रहा है।
तभी कहा जा रहा है कि इस बार बजट बनाने के काम में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सक्रिय रूप से हिस्सा ले रहे हैं। बहरहाल, चाहे जिसकी वजह से आर्थिकी की ऐसी दशा हो पर जिम्मेदारी तो वित्त मंत्री पर ही आती है। सो, इस वजह से निर्मला अपने ही मंत्रालय के कामकाज में हाशिए पर गई हैं। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने नीति आयोग में बैठक की। देश के जाने माने अर्थशास्त्रियों ने उन्हें आर्थिकी की दशा-दिशा पर चर्चा की। इस बैठक में गृह मंत्री अमित शाह और सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी तो शामिल हुए पर निर्मला सीतारमण नदारद रहीं। बताया गया कि उसी समय वे भाजपा के कार्यालय में पार्टी कार्यकर्ताओं से बजट पर चर्चा कर रही थीं।
प्रधानंमत्री मोदी ने ही देश के जाने माने उद्योगपतियों से भी बजट के बारे में चर्चा की। इसमें भी निर्मला सीतारमण नहीं थीं। तभी यह कयास भी लगाया जा रहा है कि शायद निर्मला का मंत्रालय बदल सकता है। अगर प्रधानमंत्री उनका मंत्रालय बदलने का फैसला करते हैं तो संभव है कि मंत्रिमंडल फेरबदल टल जाए। अगर मोदी मंत्रिमंडल में फेरबदल बजट सत्र से पहले होती है तो इसका मतलब होगा कि निर्मला वित्त मंत्री बनीं रहेंगी और फेरबदल टलती है तो इसका मतलब होगा कि बजट के बाद वित्त मंत्रालय में बदलाव सहित बड़ी फेरबदल होगी। सो, आर्थिक और राजनीतिक दोनों मोर्चे पर निर्मला को मुश्किल समय देखना पड़ रहा है।

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