मंगलवार, 7 जनवरी 2020

सरकार और मोदी की छवि दांव पर

अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच भारत सरकार की छवि दांव पर लगी है। सरकार के साथ साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पुरानी छवि को बदल कर बेहद कायदे से गढ़ी गई नई छवि भी संकट में है। प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी की छवि गुजरात के मुख्यमंत्री के नाते कारोबार को समझने वाले परंतु कट्टरपंथी नेता वाली थी। यह छवि चीन और कुछ दूसरे देशों को अच्छी लगती थी पर अमेरिका और यूरोप में इसी वजह से उनसे परहेज था। करीब दस साल तक अमेरिका ने इसी छवि की वजह से नरेंद्र मोदी को वीजा देने पर पाबंदी लगा रखी थी। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने पाकिस्तान के तब के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ सहित सभी सार्क देशों के प्रमुखों को अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुला कर अपनी छवि को एक झटके में बदल दिया। उसके बाद वे अचानक नवाज शरीफ से मिलने पाकिस्तान भी पहुंच गए थे।

फिर उन्होंने एक के बाद एक महत्वाकांक्षी योजनाओं की शुरुआत की। इससे उनकी छवि एक डिलीवर करने वाले प्रधानमंत्री और राजनय को समझने वाले नेता की बनी। उन्होंने दुनिया के नेताओं के साथ दोस्ती करनी और दिखानी शुरू की। जिस अमेरिका ने उनको वीजा देने पर पाबंदी लगा रखी थी, उस अमेरिका का राष्ट्रपति पहली बार उन्हीं के कार्यकाल में गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बन कर भारत आया। पिछले राष्ट्रपति बराक ओबामा और मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दोनों के साथ उन्होंने अपने दोस्ताना संबंधों का खूब प्रचार किया। सो, कुल मिला कर अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने अपनी छवि एक विश्व नेता की बनाई।

पर अब उनकी अपनी बनाई विश्व नेता की छवि खतरे में है और साथ ही भारत की उदार, लोकतांत्रिक, समावेशी, सर्वधर्म समभाव वाले देश की छवि भी दांव पर लगी है। नरेंद्र मोदी के दूसरे कार्यकाल में भारत के बारे में दुनिया के देशों को जो मैसेज गया है वह बहुत सकारात्मक नहीं है। नागरिकता कानून ने एक झटके में दुनिया की नजर में भारत की छवि को बदल कर  रख दिया है। एक सेकुलर, उदार और लोकतांत्रिक भारत की छवि दुनिया की नजरों में एक धर्म वाले देश की बन रही है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने यह प्रचार है कि भारत तेजी से हिंदू बहुसंख्या से नियंत्रित होने वाला देश बनने जा रहा है।

भारत की इस छवि का निर्माण वैसे तो नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही शुरू हो गया था। उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद यह बात लोगों के अवचेतन में थी। दुनिया ऐसा मानती थी पर मोदी ने अपने कामकाज से ऐसा कुछ दिखने नहीं दिया। पर दूसरे कार्यकाल की शुरुआत ही इस अंदाज में हुई है कि अवचेतन वाली बात निकल सामने आ गई है। सबसे पहले कश्मीर का विशेष राज्य का दर्ज बदलने का जैसा फैसला हुआ और उसके बाद से राज्य के जैसे हालात हैं, उससे दुनिया में एक उदार, सेकुलर और लोकतांत्रिक देश के नाते भारत की छवि बिगड़ी है। कुछ देशों ने यह जरूर कहा कि यह भारत का आंतरिक मामला है पर जिन देशों ने भी ऐसा कहा उनका कोई न कोई स्वार्थ भारत से जुड़ा हुआ है। बाकी देश या तो इस पर चुप हैं या चिंत जता चुके हैं। अपने बचाव में सरकार के मंत्री याद दिला रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी ने इमरजेंसी के समय कैसा किया था। पर इससे दुनिया के देशों को मतलब नहीं है कि इमरजेंसी के समय कैसा हुआ था और अगर वैसा हुआ था तो अब भी वैसा हो सकता है। इससे घरेलू राजनीति तो प्रभावित हो सकती है पर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति पर असर नहीं होता है।

कश्मीर के बाद नागरिकता कानून का विवाद शुरू हो गया। दुनिया के देश देख रहे हैं कि कैसे भारत में नागरिक सड़कों पर उतरे हैं और सरकार का विरोध हो रहा है। यह भी दुनिया के देश देख रहे हैं कि सरकार इस विरोध से किस अंदाज में निपट रही है। भगवाधारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार और पुलिस के कामकाज भी दुनिया की नजरों में हैं। तभी विश्व बिरादरी में भारत को लेकर चिंता है और आशंका भी है। सरकार इस बात को समझ रही है तभी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि भारत की ओर से दुनिया के देशों को इस बारे में बताया गया है और दुनिया के देश इस बात से सहमत हैं कि यह भारत का आंतरिक मामला है।

पर यह आधी हकीकत है। तकनीकी रूप से कश्मीर पर फैसला और नागरिकता कानून दोनों भारत के आंतरिक मामले हैं इसलिए दुनिया का कोई देश इसमें दखल नहीं दे सकता है। पर दुनिया के देश भारत को लेकर अपना स्वतंत्र नजरिया तो बना सकते हैं। वह नजरिया नकारात्मक बन रहा है। पहली बार ऐसा हो रहा है कि भारत की छवि सेकुलर देश की बजाय धार्मिक कट्टरपंथी देश की बन रही है, उदार की बजाय असहिष्णु देश की बन रही है, सभी धर्मों के प्रति समान भाव वाले देश की बजाय एक धर्म के प्रति विरोध का भाव रखने वाले देश की बन रही है। सामाजिक स्तर पर भारत की बदलती छवि के साथ अगर आर्थिक संकट को जोड़ दें तो ऐसा लगेगा कि जिस भारत गाथा की बात दस साल पहले होती थी वह समाप्त हो चुकी। कहां भारत रूपी हाथी को चीन के ड्रैगन से मुकाबले का समझती थी और कहां भारत खुद ही पाकिस्तान के मुकाबले का देश बनता जा रहा है।

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