सत्रहवीं लोकसभा के ऐतिहासिक चुनाव में मतदान के छह चरण पूरे होने के बाद अब सातवें चरण पर निगाहें रहेंगी कि भाजपा को अधिकतम कितनी सीटें मिल सकती हैं। चुनाव प्रचार करीब-करीब समापन पर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भाजपा को जिताने के लिए कुछ और सभाएं करेंगे और उसी तरह भाषण देंगे, जिस तरह वह देते आए हैं। उनकी सरकार चल चुकी है। उसके आखिरी दिन बचे हैं। 23 मई के बाद नई सरकार बनेगी। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का दावा है कि भाजपा इस बार पहले से ज्यादा सीटें जीतने वाली है और एक बार फिर मोदी की सरकार बनेगी। शाह को शुभकामनाएं, लेकिन आसार कुछ अलग हैं।
मोदी सरकार बनने के बाद जब अमित शाह भाजपा अध्यक्ष बने, तब भविष्य का एजेंडा तय हो गया था कि कितने साल तक सरकार में रहना है। मोदी सरकार ने 2022 तक की योजनाएं बनाना शुरू कर दिया था। अमित शाह भाषण में गिनाते हैं कि मोदी सरकार अब तक जनहित की 133 योजनाएं बना चुकी है। लेकिन जनहित की परिभाषा न मोदी सरकार में स्पष्ट है और न ही भाजपा में। अपनी पार्टी को मजबूत बनाए रखने के लिए सरकारी एजेंसियों का उपयोग विरोधियों को प्रताडि़त करने में किया जाए तो यह काम जनहित की परिभाषा में नहीं आता है। देश के लोगों की जमा नकदी जबरन बैंकों में जमा करवा लेना भी जनहित का काम नहीं है। गलत तरीके से जीएसटी लागू करते हुए व्यापारियों को प्रताडि़त करने का काम भी जनहित नहीं है।
सांप्रदायिक भेदभाव भी जनहित की श्रेणी में नहीं आता है। मोदी सरकार ने ऐसे कई काम किए हैं, जो जनहित की श्रेणी में बिलकुल नहीं आते। अधिकांश कार्य जनहित के विपरीत करने वाली मोदी सरकार अब फिर से सत्ता संभालने के लिए जनादेश मांग रही है। मोदी सरकार ने और भाजपा अध्यक्ष ने मिलकर देश में ऐसा माहौल बना दिया है कि लोग हैरान परेशान हैं। भाजपा की हालत यह हो गई है कि उसके प्रतिभाशाली नेताओं को हाशिए पर बैठा दिया गया है, जिससे लोकसभा चुनाव में भाजपा के सामने उम्मीदवारों की भी भारी कमी रही। कई सीटों पर विभिन्न क्षेत्र के लोगों का आयात कर उम्मीदवार बनाया गया।
कई जगह चुनाव जीतने के लिए दलबदल का सहारा लिया गया। जनता उम्मीदवारों के गुणदोष के आधार पर वोट देती है, इसलिए प्रचार किया गया कि उम्मीदवार को मत देखो, मोदी के नाम पर भाजपा को वोट दो। सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल किया गया। विज्ञापन आधारित जितना और जिस तरह का भी प्रचार हो सकता है, वह किया गया। मोदी को भाजपा का सबसे बड़ा ब्रांड बनाकर प्रचारित कर दिया गया। लोकसभा चुनाव के छह चरणों के मतदान के बाद एक तरफ मोदी है और दूसरी तरफ देश की जनता है। अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में जनता का फैसला दर्ज हो चुका है। आखिरी चरण के लिए जोर लगाना बाकी है।
अब तक के रुझान में भाजपा को दो सौ-ढाई सौ सीटें मिलने की संभावना दिख रही है। सौ-सवा सौ सीटें कांग्रेस जीत सकती है। बाकी सीटें क्षेत्रीय पार्टियों को मिलेंगी। भाजपा की तीन सौ से ज्यादा सीटें जीतने की योजना खटाई में है। अब विभिन्न पार्टियों की बैठकें होंगी। गठबंधन का दौर चलेगा। इसमें कांग्रेस की भूमिका अवश्य रहेगी। उम्मीद करनी चाहिए कि कांग्रेस लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ नहीं करेगी, जैसा कि वह पहले कई बार कर चुकी है। यह राहुल गांधी के सामने सुनहरा मौका है कि वह खुद को कितना देशभक्त साबित कर सकते हैं।
चुनाव प्रचार के दौरान बहुत भाषण हुए। चौकीदार चोर है का नारा राहुल गांधी ने लगाया। बाद में सुप्रीम कोर्ट में माफी मांगी। मोदी ने राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा केंद्र में रखा। उन्होंने पाकिस्तान को बदनाम करते हुए भारत में चुनाव जीतने का प्रयास किया। अमित शाह सहित तमाम भाजपा नेताओं ने बालाकोट एयरस्ट्राइक का गलत-सलत प्रचार किया कि बहुत से आतंकी मार दिए, भारी नुकसान कर दिया, पाकिस्तान को चुप कर दिया वगैरह वगैरह। एयर स्ट्राइक में आतंकी मरे हैं, इसको साबित करने के लिए अब तक कहीं न कहीं से खबरें आ रही हैं।
दो महीने से ज्यादा समय तक यह पता नहीं चल पाया कि एयर स्ट्राइक का नतीजा आखिर क्या रहा। कितने लोग मरे, क्या नुकसान हुआ। हालत यह है कि जो मोदी सहित तमाम भाजपा नेता जो कहते हैं, उसको ही सही मानो। इस चुनाव में मोदी सरकार ने सेना के नाम पर चुनाव लड़ने का कीर्तिमान भी बनाया। अंतरिक्ष में उपग्रह नष्ट करने का प्रयोग सफल रहने का श्रेय भी खुद ने लिया। और किसी की बात लोग न सुन पाएं, इसके लिए मोदी और शाह सहित तमाम भाजपा नेताओं ने लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा भाषण देने का रिकॉर्ड भी बनाया। पत्रकारों से परहेज करने वाले मोदी ने प्रमुख अखबारों में एक के बाद एक लंबे इंटरव्यू दिए। टीवी पर भी इंटरव्यू देने में कोई कंजूसी नहीं की।
उन्होंने एक फिल्म स्टार अक्षय कुमार तक को गैर राजनीतिक इंटरव्यू दिया और उसके जरिए राजनीति की। मोदी की ही तरह अमित शाह ने भी इंटरव्यू दिए। विज्ञापन की ताकत के जरिए जिस तरह एक आभामंडल पैदा किया जाता है, वैसा भाजपा ने किया। पूरा चुनाव मोदी केंद्रित रहा। लोग या तो मोदी के समर्थन में हैं, या विरोध में। विरोध में ज्यादा लोग हैं, इसलिए उनमें फूट पैदा करने, एकजुट होने से रोकने के प्रयास भाजपा पूरी ताकत से कर रही है। किसी को विधर्मी तो किसी को राष्ट्रवाद विरोधी बता रही है, लेकिन उसका ज्यादा असर लोगों के दिमाग पर हुआ होगा, ऐसा नहीं लगता।
भाजपा के चुनाव प्रचार की हकीकत यह है कि ज्यादातर उम्मीदवारों ने पैसा खर्च नहीं किया और वे मोदी के भरोसे बैठे रहे। कार्यकर्ताओं के मन में भी यही बात रही कि लोग मोदी के नाम पर वोट दे देंगे, ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है। भाजपा ने मतदाताओं से स्पष्ट शब्दों में कहा कि कमल के निशान पर बटन दबाओ, वोट सीधे मोदी को पहुंचेगा। भाजपा ने उन क्षेत्रों में कम प्रचार किया, जहां पिछले चुनाव में उसे अच्छी सफलता मिली थी। मध्य प्रदेश और राजस्थान में भाजपा ने खुद अपना गणित बिगाड़ लिया। उत्तर प्रदेश में भी उसका आकलन गलत साबित होने वाला है। इस तरह पूरी ताकत लगाने, सारे दावपेचों का इस्तेमाल करने के बावजूद भाजपा बहुमत के करीब नहीं पहुंच रही है। भाजपा के दावपेच अब जनता समझने लगी है, यह 23 मई को घोषित होने वाले चुनाव नतीजों से साबित हो जाएगा।

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