आज नई सरकार के सामने सबसे अहम चुनौति देश को आर्थिक विषमता के समुद्र से उबारने की है, देश में मंदी जहां सबसे ऊँचाई पर है, वहीं देश की राष्ट्रीयकृत बैंकों की हालत अत्यंत गंभीर हो गई क्योंकि बैंकों का लाखों करोड़ रूपया या तो उद्योगपति बटौर कर विदेश भाग गया कर्जा न किसान ने चुकाया न सरकार ने, भारतीय मुद्रा का अब मूल्यन अलग इस सरकार के सामने चुनौती बना हुआ है। इसके साथ आए दिन घटती-बढ़ती जीडीपी दरें सरकार का सबसे बड़ा ‘सिरदर्द’ है। फिर निर्यात क्षेत्र की मंदी पर भी ध्यान देना जरूरी हो गया है।

आज देश में कितनी विसंगतिपूर्ण स्थिति है, एक सत्तारूढ़ पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष अपना पद छोड़कर मंत्री बना है तो दूसरी राष्ट्रीय पार्टी का अध्यक्ष अपने पद पर बने रहने को तैयार नहीं? भारतीय राजनीति का यही मौजूदा आईना है, देश में मोदी जी की सरकार पुनः स्थापित होने से जहां राजनीति का एक वर्ग हर्षोल्लास में डूबा है तो राजनीति का दूसरा वर्ग चुनाव में हारने का ‘सूतक’ पाल रहा है। इस तरह कुल मिलाकर इन दिनों देश का राजनीतिक माहौल एक अजीब स्थिति में पहुंच गया है, आज एक ओर जहां शपथ-ग्रहण जैसे संवैधानिक कार्य में भी राजनीति का प्रवेश कराया जा चुका है तो दूसरी ओर प्रतिपक्ष सभी राजनीतिक मान-मर्यादाओं को खंूटी पर टांग कर अपने मूल दायित्व से विमुख होता जा रहा है।
खैर, यह तो देश के राजनीतिक माहौल का जिक्र हुआ, अब यदि देश में फिर से सत्तारूढ़ हुई मोदी सरकार की बात करें तो अब उसके सामने चुनाव से भी बड़ी चुनौतियां मुंह बाये खड़ी है, इसमें कोई दो राय नहीं कि विश्व के इस सबसे बड़े प्रजातांत्रिक देश में यहां के वोटरों ने एक अजीब उदाहरण पेश किया, न तो भारतीय जनता पार्टी की इस सरकार ने अपने पांच वर्षीय शासनकाल में अपने चुनावी वादे पूरे किए और अपने घोषणा-पत्र की पूर्ति पर ही विशेष ध्यान दिया, उल्टे नोटबंदी व जीएसटी जैसे पीड़ा दायक कदम उठाए, और जब चुनाव आया तो राष्ट्रवाद और सैना के शौर्य के बलबूते पर वोट बटौरने की कौशिश की।
यह बिल्कुल भी संभव नहीं था यदि मोदी जैसे निष्कपट, ईमानदार व नेक प्रधानमंत्री नहीं होते, कुल मिलाकर यदि यह कहा जाए कि देश में भारतीय जनता पार्टी नहीं, बल्कि मोदी जीते है तो कतई गलत नहीं होगा, फिर मोदी जी के भाग्य को पर उस समय भी लग गए जब सामने प्रतिपक्ष जैसी कोई मजबूत दीवार भी नहीं रही, कांग्रेस बचकाने हाथों में खेलती रही और शेष प्रतिपक्षी दल अपनी क्षैत्रीय सीमा तक सीमित रहे, अब ऐसे विकल्प के अभाव में देश का आम वोटर करता भी क्या? जो विकल्प सामने था, उसका ही वरण कर लिया और पांच साल के लिए अपना भाग्य भी सौंप दिया।
अब यह मोदी जी के सामने है कि वे देश को किस डगर पर ले जाए। खैर, जो भी हो, देश में फिर से मोदी जी की सरकार बन ही बई, पांच साल पहले जब पहली बार मोदी जी प्रधानमंत्री बने थे तब उनके सामने दस वर्षीय कांग्रेसी शासन के कथित कचरे को साफ करने की चुनौति थी, इस दौरान मोदी जी ने चाहे डेढ़ सौ से अधिक देशों की यात्राएँ कर देश के विश्व के अन्य देशों से सम्बंध ठीक करने का अभियान चलाया हो, किंतु देश वही खड़े रहने को मजबूर रहा, जहां वो पांच साल पहले खड़ा था, अर्थात समस्याएँ व चुनौतियां यथावत रही, और अब इस बार मोदी जी को अपने ही पांच साला कार्यकाल की समीक्षा करनी है और यहां व्याप्त गंभीर चुनौतियों से रूबरू होना है।
आज देश में चारों ओर चुनौतियाँ नजर आ रही है, फिर वह चाहे बेरोजगारी की चुनौति हो या किसानों की, या कि महंगाई की, ये चुनौतियां कोई आज की नई नहीं है, ये पहले भी थी, जिन पर पिछले पांच सालों में ध्यान नहीं दिया गया। पिछले अर्थात 2014 के चुनाव के समय प्रतिवर्ष दो करोड़ अर्थात् पांच साल में दस करोड़ युवाओं को नौकरी देने का वादा किया गया था, किंतु यह वादा कुछ लाख तक सिमट कर रह गया। यही स्थिति किसान की है, पिछले पांच सालों में पांच लाख से अधिक किसानों ने कर्जा नहीं चुका पाने के कारण आत्म हत्याएं की, इनके कर्जे माफ करने की भी कई बार घोषणाऐं की गई, किंतु यह आत्म हत्याओं का सिलसिला आज भी जारी है।
आज नई सरकार के सामने सबसे अहम चुनौति देश को आर्थिक विषमता के समुद्र से उबारने की है, देश में मंदी जहां सबसे ऊँचाई पर है, वहीं देश की राष्ट्रीयकृत बैंकों की हालत अत्यंत गंभीर हो गई क्योंकि बैंकों का लाखों करोड़ रूपया या तो उद्योगपति बटौर कर विदेश भाग गया कर्जा न किसान ने चुकाया न सरकार ने, भारतीय मुद्रा का अब मूल्यन अलग इस सरकार के सामने चुनौती बना हुआ है। इसके साथ आए दिन घटती-बढ़ती जीडीपी दरें सरकार का सबसे बड़ा ‘सिरदर्द’ है। फिर निर्यात क्षेत्र की मंदी पर भी ध्यान देना जरूरी हो गया है।
जब तक इन प्रमुख मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया जाता तब तक आर्थिक वृद्धि दर में सुधार की कल्पना भी नही की जा सकती। इस प्रकार कुल मिलाकर यदि यह कहा जाए कि देश के हर क्षेत्र में सरकार के सामने चुनौतियों का अम्बार है, तो कतई गलत नहीं होगा विशेषकर यदि सरकार प्राथमिकता के आधार पर आर्थिक, बेरोजगारी और किसानों से जुड़ी चुनौतियों पर ही कुछ सार्थक कदम उठाकर इनसे निपटना शुरू करें तो देश की ही नहीं इस सरकार की भी इसमें भलाई है।
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