बुधवार, 15 मई 2019

क्या अब मोदी और शाह के इशारों पर ही चलेगी भाजपा?

सत्रहवीं लोकसभा चुनाव लोकतंत्र में पहली बार कई तरह के सबक देकर जा रहा है। जनता यह सोचने लगी है कि कोई भरोसा करने लायक है या नहीं? जनादेश के लिए इतनी मारामारी क्यों? क्या देश विज्ञापन और प्रचार के आधार पर ही चलेगा? लोकतंत्र के मूल्यों का क्या होगा? जो लोग सरकार बनाने और चलाने का दावा कर रहे हैं, उनका लक्ष्य क्या है? कांग्रेस देश में सरकार चलाती थी और चुनाव के समय जनता को सपने दिखाती थी। कांग्रेस राज करती रही। जनता ने पचास साल बाद विकल्प की तलाश शुरू की। देश में हर तरह की पार्टी ने शासन कर लिया। कांग्रेस, समाजवादी, कम्युनिस्ट के बाद दक्षिणपंथी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार चला रही है और लोकसभा चुनाव में फिर से जनादेश मांग रही है।

2014 के लोकसभा चुनाव तक जनता को खुद पर भरोसा हुआ करता था कि वह सरकार चुन सकती है। मोदी सरकार बनने के बाद पूरी राजनीति बदल गई। नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अमित शाह को प्रमुख सहयोगी बनाया। अमित शाह भाजपा अध्यक्ष बन गए। उसके बाद इन दोनों ने जो दावपेच अपनाए, वे आंखें खोल देने वाले हैं। इन दोनों ने घोषणा की कि कांग्रेस का उन्मूलन करना है। जनता ने बात मानी। कई राज्यों में भाजपा की सरकारें बन गईं। लेकिन लोकतंत्र सवालों के घेरे में आ गया। अमित शाह अपने हिसाब से पार्टी चला रहे हैं। मोदी अपने हिसाब से सरकार चला रहे हैं।

देश के प्रशासनिक ढांचे को तितर-बितर करने का काम हो रहा है। भाजपा को एक नेता के भक्तों के झुंड में तब्दील कर दिया गया है। सोच विचार का सिलसिला गायब है। भाजपा में अब सिर्फ मोदी और शाह के भाषणों के अलावा कुछ नहीं बचा है। ये दोनों कांग्रेस के साथ ही भाजपा का भी उन्मूलन कर रहे हैं। हम जो करेंगे, वह होगा, पार्टी हमारी है। विरोध, मतभेद की कोई जगह नहीं है। लोकसभा चुनाव में जिस तरह प्रचार हुआ, उससे देश के लोकतंत्र की तस्वीर साफ है।

देश की कार्यकर्ता आधारित सबसे बड़ी पार्टी भी दो लोगों की जागीर में तब्दील होती दिख रही है। नोटबंदी हो, जीएसटी हो, पाकिस्तानी इलाके में एयरस्ट्राइक हो, कहीं से कोई सवाल नहीं उठ रहा है। जो सवाल उठा रहे हैं, वे राष्ट्रवाद के विरोधी, पाकिस्तान की भाषा बोलने वाले बताए जा रहे हैं। लोकतंत्र में भाजपा को सांप्रदायिक वैमनस्य के आधार पर चलाने की कोशिश साफ दिखती है। हिंदुत्व आधारित सामाजिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ खुल कर राजनीति के मैदान में है।

उसके स्वयंसेवक भाजपा कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय हैं। चुनाव प्रचार कर रहे हैं। लोगों को घर-घर जाकर समझा रहे हैं कि देश को बचाए रखना है तो मोदी वोट दो। प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह ने जिस तरह प्रचार किया, उसमें इन दोनों के अलावा और किसी बड़े नेता का महत्व भाजपा में नहीं रह गया है। मोदी अपने भाषण में खुद का ही प्रचार करते हैं। वह पार्टी के किसी भी बड़े नेता का नाम नहीं लेते। उम्मीदवार तक का नाम नहीं लेते।

लोगों से करते हैं, कमल के निशान पर बटन दबाओ, वोट सीधे मोदी को पहुंचेगा। जो उम्मीदवार भाजपा ने खड़े कर दिए हैं, भले ही वे नाचने-गाने वाले हों, हत्या जैसे मामले में आरोपी हों, जिनका कोई जनाधार नहीं हो, जिसने कभी पार्षद का चुनाव न लड़ा हो, उनको मोदी के नाम पर वोट दे दो, जिससे कि संसद में भाजपा का बहुमत बना रहे और मोदी की राष्ट्रवादी सरकार चलती रहे। कमल के फूल का नाम इसलिए लेना पड़ता है कि वह भाजपा का चुनाव चिन्ह है।

अगर यह विवशता नहीं होती तो मोदी शायद अपनी फोटो दिखाकर ही वोट मांगते। मोदी का चुनाव प्रचार इस बात का संकेत है कि देश का लोकतंत्र सिर्फ पांच साल में कहां से कहां पहुंच गया है। असंगठित धर्म के लोगों का धर्म के नाम पर राजनीतिक ध्रुवीकरण भाजपा ने कर लिया है। जो लोग धर्म का मर्म नहीं जानते, वे धर्म की ध्वजा उठाए हुए भाजपा का प्रचार करने में जुट गए हैं। हिंदुत्व खतरे में है, हिंदुओं को बचाना है, पाकिस्तान की हेकड़ी निकालना है, तरह-तरह की बातें लोगों के दिमाग में इस कदर ठूंसी जा रही है, जिनका धर्म से कोई संबंध नहीं है। विश्व के सभी धर्म संगठित हैं।

किसी एक भगवान या धर्मगुरु पर आधारित है। इस्लाम पैगंबर मोहम्मद ने चलाया, ईसाई धर्म ईसा मसीह के नाम पर चला, पारसी लोग जरथुस्त्र को मानते हैं, बौद्ध धर्म गौतम बुद्ध पर आधारित है, जैन धर्म महावीर पर आधारित है, सिख धर्म गुरुनानक पर आधारित है। हिंदू धर्म, जिसे सनातन धर्म कहना ज्यादा ठीक है, वह किसी एक धर्मगुरु या देवी-देवता पर आधारित नहीं है। सनातन धर्म में प्रत्येक व्यक्ति को ईश्वर का अंश माना जाता है।

आत्मा परमात्मा से जुड़ी हुई है। परमात्मा के कई स्वरूप हैं। परमात्मा ही इस जगत को संचालित कर रहा है। इतना धार्मिक खुलापन और किसी धर्म में नहीं है। भाजपा उसे अपनी राजनीति चलाने के लिए गलत तरीके से परिभाषित करने में लगी है। वह धर्म को सांप्रदायिकता से जोड़ते हुए राजनीति कर रही है। यह समाज के लिए बहुत घातक है। मोदी और शाह ने पूरी ताकत लगाई थी कि हिंदुओं का शत-प्रतिशत राजनीतिक ध्रुवीकरण हो जाए, लेकिन यह संभव नहीं हो सका। फिर भी एक हद तक वे अपने प्रयासों में सफल है, जिसकी वजह से पूरे देश में मोदी-मोदी का शोर गूंज रहा है।

अब लोकसभा चुनाव का अंतिम चरण बाकी है। करीब नब्बे फीसदी सीटों पर मतदान हो चुका है। कितना ध्रुवीकरण हुआ, कितनी लोकतंत्र की चिंता रही, इसका फैसला 23 मई को आने वाले नतीजों से होगा। भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलना मुश्किल है, फिर भी मोदी और शाह सत्ता में बने रहने की कोशिश अवश्य करेंगे। मोदी और शाह के प्रयास सफल हुए तो भाजपा भी इतिहास का विषय बनते हुए सिर्फ मोदी और शाह के इशारों पर चलने वाली पार्टी बनकर रह जाएगी। देखना है कि लोकतंत्र की राजनीति किस तरह नया मोड़ लेती है। 

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