मंगलवार, 16 जनवरी 2018

आखिर छात्रों की आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ने की वजह क्या है?

गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया कि एक चौथाई मामलों में परीक्षा में नाकामी आत्महत्या की प्रमुख वजह थी। इसके अलावा प्रेम में नाकामी, उच्च-शिक्षा के मामले में आर्थिक समस्या, बेहतर रिजल्ट के बावजूद नौकरी नहीं मिलना और विभिन्न क्षेत्रों में लगातार घटती नौकरियां भी छात्रों की आत्महत्या की प्रमुख वजह के तौर पर सामने आई हैं। विशेषज्ञों में इस बात पर आम राय है कि उम्मीदों का भारी दबाव छात्रों के लिए एक गंभीर समस्या बन कर उभरा है।

ये सूचना सचमुच गहरी चिंता पैदा करने वाली है कि भारत में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या कर रहा है। एक तरफ ये समस्या तेजी से बढ़ रही है, वहीं इन किशोरों की मदद के लिए प्रशिक्षित कर्मी नहीं हैं। क्या तथ्य परेशान करने वाला नहीं है कि 130 करोड़ की आबादी वाले देश में सिर्फ 5000 मनोचिकित्सक हैं? केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक ताजा रिपोर्ट में से ये जाहिर हुआ कि 2014 से लेकर 2016 तक 26 हजार से ज्यादा छात्रों अपनी जिंदगी खत्म कर ली। 2016 में लगभग साढ़े नौ हजार छात्रों ने आत्महत्या कर ली। छात्रों की आत्महत्या के मामले में देश के सबसे समृद्ध राज्यों में शामिल महाराष्ट्र पहले नंबर पर है। इसके बाद पश्चिम बंगाल और फिर तमिलनाडु का स्थान है। उन तीन वर्षों में तमिलनाडु, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में ऐसे मामले तेजी से बढ़े। इन आंकड़ों से साफ है कि देश में ये समस्या गंभीर होती जा रही है। आखिर छात्रों की आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ने की वजह क्या है? विशेषज्ञों का कहना है कि पढ़ाई का लगातार बढ़ता दबाव और प्रतिद्वंद्विता के कारण ज्यादातर छात्र मानसिक अवसाद से गुजरने लगते हैं। इनमें से कई आत्महत्या कर लेते हैं।

गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया कि एक चौथाई मामलों में परीक्षा में नाकामी आत्महत्या की प्रमुख वजह थी। इसके अलावा प्रेम में नाकामी, उच्च-शिक्षा के मामले में आर्थिक समस्या, बेहतर रिजल्ट के बावजूद नौकरी नहीं मिलना और विभिन्न क्षेत्रों में लगातार घटती नौकरियां भी छात्रों की आत्महत्या की प्रमुख वजह के तौर पर सामने आई हैं। विशेषज्ञों में इस बात पर आम राय है कि उम्मीदों का भारी दबाव छात्रों के लिए एक गंभीर समस्या बन कर उभरा है।

हालांकि ताजा आंकड़ों से यह साफ नहीं है कि किस स्तर के छात्र ज्यादा मानसिक अवसाद से गुजर रहे हैं, लेकिन यह साफ है कि जीवन में कुछ नहीं कर पाने की आशंका का उन पर गहरा मानसिक दबाव रहता है। सवाल है कि आखिर साल-दर-साल गहरी होती इस समस्या पर अंकुश कैसे लगाया जाए? स्पष्टतः इसके लिए घर से ही शुरुआत करनी होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि स्कूलों और उच्च-शिक्षण संस्थानों में भी काउसेंलिंग की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। इससे स्थिति गंभीर होने से पहले ही छात्रों को बचाया जा सकेगा। दरअसल, अभिभावकों को भी उचित परामर्श की आवश्यकता है, जिससे वे अपनी उम्मीदों का भारी बोझ बच्चों पर ना लादें। 

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