बुधवार, 24 जनवरी 2018

अमित शाह मौन में सोच रहे होंगे कि उनके साथ न्याय नहीं हो रहा

अमित शाह मौन स्यापे में सोच रहे होंगे कि उनके साथ न्याय नहीं हो रहा!  कोई सहानुभूति नहीं दर्शा रहा! क्या वक्त है जब सत्ता का वैभव है लेकिन पाप-पुण्य के खाते में जज लोया की मौत का एक और ग्रहण आ लगा। व्यक्ति और खास तौर पर सार्वजनिक जीवन में सिद्दवी का आकांक्षी जनता में अच्छेपन की पुण्यता के बिना शिखर पर नहीं जाया करता। नरेंद्र मोदी ने हिंदुओं का दिल जीता तो उसमें मार्केटिंग थी कि वे उनके लिए हैं। विरोधी उनके पीछे इसलिए हंै क्योंकि वे हिंदुओं के लिए हंै। हिसाब से वह सब अमित शाह के लिए भी सोचा जाना चाहिए था। मगर हिंदू मनोविश्व में अमित शाह के पिछले चार साल हनुमान, चाणक्य से होते-होते अब इस मुकाम पर है कि इन्होने देश के सिस्टम को अपने, निजी बचाव में झोंका हुआ है। वे देश के लिए नहीं, हिंदू के लिए नहीं बल्कि अपने बचाव के लिए सिस्टम की ऐसी तैसी कर दे रहे हैं!

और इसकी बानगी में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अदालत में वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे का यह दो टूक वाक्य है कि -पूरा सिस्टम एक व्यक्ति को बचाना चाह रहा है- अमित शाह और अमित शाह अकेले को!

इसलिए सोचने वाली बात है कि अमित शाह ने चार सालों में बनाया या गंवाया? नरेंद्र मोदी या हिंदू मानस, हिंदू राष्ट्रवाद, संघ परिवार सबको फिलहाल अलग रखे क्योंकि ये सब अपने-अपने कारणों से वक्त के नायक और वक्त की धाराएं है लेकिन अमित शाह तो अपने कर्म से है। और वह कर्म उन्हे जनता की निगाहों में जो बना दे रहा है वह कुल मिला कर पुण्यता की निजी कमाई के है। तभी आश्चर्य नहीं जो सुप्रीम कोर्ट के पूरे संकट के केंद्र बिंदु अमित शाह बने या बने हुए हैं।

मैं जज लोया के मामले को अमित शाह को घेरने की उधेड़बुन का हिस्सा मानता हूं। इस बात को पहले भी लिख चुका है। बावजूद इसके यह तथ्य तो है कि जज लोया के पिता और बहिन ने जांच की जरूरत कैमरे के सामने बताई। हिसाब से सांच को आंच नहीं की तर्ज पर खुद अमित शाह को महाराष्ट्र सरकार से जांच करवा लेनी थी। यह भी बेतुकी बात है कि जज लोया के बाद अगले जज ने अमित शाह के खिलाफ एनकाउंटर मामले को फटाफट खारिज किया, उन्हे बरी किया तो सीबीआई ने मामले को वही खत्म कर दिया। बाकि मामलों की तरह हाईकोर्ट में आगे अपील नहीं की। यदि सीबीआई करती तो क्या फर्क पड़ता। भारत में कानून जैसे चलता है वैसे चलाते रहते हुए अमित शाह को यह पुण्यता बनानी थी कि वे तमाम अग्निपरीक्षाओं में तपते हुए पुण्यता चाह रहे हंै। जब नरेंद्र मोदी का दस-पंद्रह साल राज है तो भला हड़बड़ाहट की जरूरत क्यों?

लेकिन भारत राष्ट्र-राज्य की सत्ता गुजरात जैसी सत्ता मानी गई। परिणाम सामने है। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद की कुर्सी, और हिंदूओं में हिंदू मर्द होने के भरोसे में जरूर चलते रहेंगे मगर उनकी वह पूंजी आगे अमित शाह को ट्रांसफर हो यह इसलिए मुश्किल है क्योंकि सिस्टम के साथ तोड़फोड़, दुरूपयोग का ठिकरा उन पर फूट रहा है। मामूली बात नहीं जो सुप्रीम कोर्ट के पूरे संकट का फोकल बिंदु जज लोया केस हुआ और उसमें सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने अपनी साख पर आए सवाल में केस को अपनी बैंच में लिया। कल यह आदेश भी हो गया कि मुंबई आदि में इस मामले में जो भी याचिकाएं हंै वे सब उनकी बैंच से नत्थी रहेगी। 

अपना मानना है इस सबसे अमित शाह मन ही मन हिले होंगे। ये चर्चाएं अब देशव्यापी हैं कि जज लोया की मौत संदिग्ध स्थितियों में हुई। जज लोया अमित शाह के मामले की सुनवाई कर रहे थे। वे सख्त जज थे। उनकी मौत की संदिग्ध परिस्थितियों की जांच की अपील में ही चीफ जस्टीस ने सुप्रीम कोर्ट में जूनियर जज को मामला दिया। जल्द खत्म कराने की हड़बड़ी थी। तभी वरिष्ठ जजों ने सिस्टम के सवाल उठाए। जजों ने लोकतंत्र को खतरा बताया।

हां, मीडिया पर कितना ही कंट्रोल हो, पर अमित शाह भी जान रहे होंगे कि उनके बेटे जयशाह और जज लोया की चर्चा हर उस सुधी घर में पहुंची है जहां पुण्यता का हिसाब बनता या बिगड़ता है!

सवाल है क्या कही अमित शाह के प्रति सहानुभूति या समर्थन दिखलाई दे रहा है? क्या यह फील है कि अमित शाह के साथ ज्यादती हो रही है? शायद मैं अकेला हूं जो यह थ्योरी लिए हुए हूं कि अमित शाह भीतर के लोगों की साजिश के मारे हैं। न्यायिक जमात से यदि वे शक के दायरे में आए है तो एक पैटर्न झलकता है। लेकिन लोग किसी और एंगल में इसलिए नहीं सोच रहे हंै क्योंकि धारणा बन गई है कि अमित शाह तो है ही ऐसे! सिस्टम पर दादागिरी अमित शाह की है!  वे ही सीबीआई पर कब्जा रखने वाले, न्यायपालिका- मीडिया- संस्थाओं सबकों गुलाम बना कर अपने हित साधने वाले हैं!

तभी सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस की बैंच के आगे दुष्यंत दवे का बोला यह वाक्य भारी है- पूरा सिस्टम एक व्यक्ति को बचाना चाह रहा है- अमित शाह और अमित शाह अकेले को!

यही नहीं दवे ने आगे यह भी कहा कि महाराष्ट्र सरकार की तरफ से ये जो हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी खड़े हुए हैं इन्हे अपने आपको इस केस से इसलिए अलग करना चाहिए क्योंकि ये अमित शाह के पहले पैरोकार रहे हंै। टेलिग्राफ की रिपोर्टिंग के अनुसार अदालत में हरीश साल्वे अपने पर हुए हमले के बीच इतना ही कह पाए कि मुझे दवे से नैतिकता का सर्टिफिकेट नहीं चाहिए।

तब जस्टीस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की- हमारी आत्मा बाद में यह न कहे कि हमने सब तथ्य नहीं देखें.... हम मामले की तह में जा सत्य पर पहुंचना चाहते हंै। और दूसरे किसी मुद्दे में नहीं भटकना है।.. केस से हरीश साल्वे के हटने की जरूरत की दवे की दलीलों पर जज का कहना था – हम सबकी अपनी आत्मा है। एडवोकेट खुद ही यह तय करें कि उसे मामले में हाजिर होना चाहिए या नहीं! साल्वे ने जब कहां कि जनाब इन एडवोकेट को कोर्ट के बाहर न बोलने को कहा जाए तो दूसरी सीनियर वकील इंदिरा जायसवाल बोली- यह तो मुंह बंद करने का आदेश होगा। जब पदमावत मामले में इस कोर्ट ने अभिव्यक्ति की आजादी का स्टेंड लिया है तो यही कोर्ट अब ऐसा कैसे कह सकती है? इस पर चीफ जस्टिस मिश्रा ने इस बात को बिना शर्त वापिस लेने को कहा और जयसिंह ने वैसा किया। चीफ जस्टिस का यह भी कहना था- क्या हमने कोई मुंह बंद कराने का आदेश दिया? हम कभी ऐसा आदेश नहीं देंगे।

सो पूरी बहस, पूरा मामला चार साल के वैभवपूर्ण, ठसके वाले राज के बाद यह सवाल पैदा किए हुए है कि अमित शाह ऐसे कैसे? गुजरात, दिल्ली और पूरे भारत में अमित शाह ने अपने चेहरे के साथ जिस इमेज का ट्रेडमार्क करवाया है वह हिंदू राष्ट्रवादियों के लिए त्रासद है तो आम जनता के लिए जुगुप्सा पैदा करने वाला! भले इस बात को अमित शाह माने या न माने!

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