सोमवार, 15 जनवरी 2018

आज भी हमारी रूढ़ीवादी परंपरा हमारे जड़ में है

हम भले ही कितना भी परिवर्तन की बात क्यों ना कर लें। सच्चाई तो यही है कि आज भी हमारी रूढ़ीवादी परंपरा हमारे जड़ में है। तभी तो बच्चों के पेटों पर गर्म लोहा दागा जाता है।

आपको यह सुनकर दिल दहल जाएगा की ऐसा भी इलाज़ होता है जिसमें बच्चों को दागा जाता है। आज भी ग्रामीण इलाको में छोटे बच्चे को पेट में गर्म लोहे की सीक से दाग कर इलाज किया जाता है। ग्रामीण इसे अपनी पुरानी परम्परा बताते हैं।

बच्चों को पेट दगवाने पहुंचे लोग।

क्या है परम्परा
मकर संक्रांति के दूसरे दिन को ग्रामीण अखंड जात्रा कहते है। इस दिन सुबह सूरज की लालिमा दिखते ही ग्रामीण अपने बच्चों को लेकर इलाके के पुरोहित के घर जाते हैं। यहां बच्चे को पेट में दागा जाता है।

क्या करता है पुरोहित
पुरोहित के घर के आंगन में खटिया बिछा रहता है। पुरोहित लकड़ी की आग में लोहे का पतला सीक गर्म करता है। महिलाएं अपने बच्चे को खटिया पर सुलाती है। कटोरी में रखे तेल को पुरोहित बच्चे के पेट में चार जगह लगाता है। फिर गर्म लोहे की सीक से तेल वाली जगह पर दागता है। बच्चा चीखता है और पुरोहित उसे आशीर्वाद देता है।

क्यों दागते हैं पेट को
पुरोहित छोटू सरदार का कहना है यह हमारी पुरानी परम्परा है, जिसे चिड़ी दाग कहा जाता है। नवजात 21 दिन के बच्चे से लेकर बड़े बच्चों को यह दाग दिया जाता है। पेट में तेल लगाकर ग्राम देवता की प्राथना करते हैं फिर सीक से दागते हैं। दागने को चिड़ी दाग कहते हैं। चिड़ी दाग करने से पेट में कभी बिमारी नहीं होती है।

सुबह से ही लगती है भीड़
पुरोहित के घर में चिड़ी दाग के लिए गांव के बच्चों की भीड़ जमा होती है। ग्रामीण महिला शकुंतला ने बताया कि मकर के दूसरे दिन अखंड जात्रा के दिन ही ऐसा किया जाता है। इससे पेट में कभी दर्द नहीं होता है। हमलोग जब छोटे थे हमे भी चिड़ी दाग दिया गया था।

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