गुरुवार, 6 दिसंबर 2018

जातिवाद की राजनीति नहीं होनी चाहिए

जमीनी सच्चाई इससे कहीं अलग है। जातिवाद की जमीन पर राजनीति हमेशा फलती-फूलती रही है। यही सच्चाई राजस्थान के रण में भी दिखाई दी है।
जयपुर । स्वस्थ्य लोकतंत्र का तकाजा यह कहता है कि जातिवाद की राजनीति नहीं होनी चाहिए। लेकिन, ये लाइन बस किताब के पन्नों में या भाषण के बोल तक ही अच्छी लगती है। क्योंकि, बात राजनीति की हो और जाति उसमें शामिल नहीं हो ऐसा हो नहीं सकता. इसे दूसरे लहजे में यह भी कहा जा सकता है कि जाति की जमीन पर राजनीति जन्म लेकर बड़ी होती है। इसी जातिगत तानेबाने के आधार पर जीत की राह निकाली जाती है और सियासी दल सत्ता की कुर्सी पर बैठकर राज करते हैं। राजस्थान के रण में भी जातिगत समीकरणों को साधकर चुनाव जीतने की रणनीति भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों ने बनाई है। साथ ही अंदरखाने उन सभी समीकरणों के सियासी नब्ज भी टटोले जाते रहे, जिनसे दलों को बड़ी उम्मीद लगी हुई है।



राजस्थान के रण में सत्ता को लेकर  जारी घमासान अब फैसले के दहलीज तक पहुंच चुकी है। 7 दिसंबर को होने वाले मतदान के दौरान लोकतंत्र के यज्ञ में राज्य की जनता वोटों की आहूति देते हुए सूबे की कमान किसे सौंपनी है इसका फैसला  करेगी। लेकिन, बात अगर अब तक की राजनीतिक समीकरण की जाए तो जनता के मुद्दों से बड़ी कोई चीज रही है तो वो है जाति। क्योंकि, भाजपा हो या कांग्रेस या फिर क्षेत्रिय दल सभी को ये पता है कि जातिगत जमीन पर ही वोट की फसल पककर तैयार होती है। उसे समय से संभालने के साथ ही काट लिया जाए तो सत्ता की सुनहरी कुर्सी के 'राजा' वे ही बनेंगे। पिछले एक महीने से यहां के सियासी मैदान में गरमाई सियासत के बीच राजनीतिक दलों की ओर से ये खेल बखूबी खेला गया है। भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही प्रमुख दलों ने जातिगत जाजम को देखते हुए ही टिकटों से भरी थाली उपहार स्वरूप आगे बढ़ाती रही और सभी को खुश करती रही हैं।



बात चाहे राजपूत, जाट की हो या फिर एससी/एसटी, ब्राह्मण, मुस्लिम और गुर्जर की हर एक समीकरण को साधने के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल अपनी तुरुप चाल चलते रहे। आज हम समझते हैं कि जातिगत समीकरणों को साधते हुए कैसे दोनों दलों ने  सियासत के जाल को बिछाया है। राज्य की आबादी करीब 7.5 करोड़ है। साथ ही कुल 272 जातियां हैं। इनमें 51 फीसदी अन्य पिछड़ा वर्ग हैं, जिसमें 91 जातियां शामिल हैं. वहीं, जिसमें एससी/एसटी की जनसंख्या करीब 31 प्रतिशत है। जबकि, जाटों की कुल आबादी करीब 13 प्रतिशत है। वहीं राजपूत 8 प्रतिशत, ब्राह्मण 6 प्रतिशत, मुस्लिम 8 प्रतिशत और गुर्जर समुदाय की आबादी 6 प्रतिशत है। लेकिन, सियासी रूप से एससी/एसटी, जाट, राजपूत, ब्राह्मण आदि खास माना जाती हैं। दोनों ही दल इन्हीं समीकरण को ध्यान में रखते हुए टिकटों का बंटवारा करते हुए उन्हें साधने में जुटी हुई हैं। आइये हम दोनों दलों के सियासी गणित को समझते हैं।



भाजपाः यूं साध रही समीकरण

2013 के चुनाव में 163 सीटों की प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई भाजपा के सामने  सत्ता को बरकरार रखते हुए कांग्रेस को सियासी पटखनी देने की चुनौती है। इसमें एंटी इंकंबेसी समेत कई ऐसे फैक्टर हैं जो जिसने पार्टी को परेशान कर रखा है। उससे निकलने के लिए पार्टी हर जातिगत समीकरण को साधने की कोशिश की है। टिकट बंटवारे से पहले से नाराज राजपूत समुदाय को पार्टी के संगठन में साधने की कोशिश की। वहीं, टिकट बंटवारे के दौरान पुराने ट्रेंड पर चलते हुए 26 राजपूत नेताओं को टिकट दिया है। जिससे समाज की नाराजगी को दूर करके उन्हें अपने साथ रखा जा सके। इस तरफ पार्टी का जोर इसलिए भी है क्योंकि, राजपूत को भाजपा का कोर वोटर भी है। साथ ही समाज को अंदरखाने साधने के लिए पार्टी के गजेंद्र सिंह शेखावत, गजेंद्र सिंह खींवसर, राज्यवर्धन सिंह राठौड़ समेत कई नेताओं ने मोर्चा संभाल रखा है। वहीं, राज्य के बड़े कौम में से एक जाट समुदाय को भी पार्टी ने टिकट बंटवारे के जरिए साधने की कोशिश की है। 



इस चुनाव में पार्टी ने 31 जाट नेताओं को टिकट दिया है. दरअसल, ये दांव पार्टी ने इसलिए भी खेला है क्योंकि, 2013 के मोदी लहर के दौरान जाटों का साथ भाजपा को अच्छी मात्रा में मिला था। यही वजह है कि इस बार भी पार्टी ने जाटों को साधने के लिए खुले दिल से टिकट दिया है। वहीं, एससी/एसटी वर्ग पर भाजपा की निगाह बनी हुई है. क्योंकि, 2013 के विधानसभा चुनाव में इस वर्ग के लिए रिजर्व कुल 59 सीटों में से पार्टी ने 50 पर जीत दर्ज की थी। साथ ही लोकसभा चुनाव में भी पार्टी इस वर्ग के वोटरों को बड़ा साथ मिला था. यही वजह है कि भाजपा चुनावी आहट होने से पहले ही एससी/एसटी वर्ग को साधता रहा है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से एससी/एसटी एक्ट को लेकर दिए फैसले पर खड़े हुए विरोध के बाद केंद्र सरकार ने एक्ट में संशोधन कर दिया। साथ ही चुनाव के दौरान भी इस वर्ग को साधने के लिए खास ध्यान रखा गया है. वहीं, पार्टी के बड़े नेता मंत्री अर्जुनराम मेघवाल के साथ ही कैलाश मेघवाल, किरोड़ी लाल मीणा समेत अन्य नेता अंदरखाने साधने में जुटे हैं। 



भाजपा की तरफ से इस चुनाव में हिंदुत्व एजेंडे को आगे लेकर  चलने के चलते पार्टी ने केवल यूनुस खान को छोड़कर किसी भी सीट पर मुस्लिम कैंडिडेट को मैदान में नहीं उतारा है। यूनुस को टिकट देने के पीछे भी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की ताकत ही मुख्य कारण रहा है। वहीं, भाजपा ने टिकट बंटवारे के दौरान ब्राह्मण समाज को साधने के लिए 23 सीटों पर टिकट दिया है। इस वर्ग को साधने के लिए पार्टी की तरफ से वरिष्ठ नेता अरुण चतुर्वेदी, महेश शर्मा के साथ ही यूपी के डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा भी लगे रहे। इसके साथ ही पार्टी ने गुर्जर सहित हर वर्ग के फैक्टर पर भी ध्यान बनाए रखा है।

कांग्रेसः यूं बनाई रणनीति

2013 के चुनाव में भाजपा से जबरदस्त मिली मात के बाद 21 सीटों पर सिमटी कांग्रेस इस बार भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए पूरा जोर लगा रही है। कांग्रेस जहां सरकार बदलने के ट्रेंड पर विश्वास करके आगे बढ़ रही है। वहीं, एंटी इंकंबेसी को पूरे चुनाव के दौरान भुनाने में जुटी हुई है। इसके साथ ही कांग्रेस जातिगत समीकरण को भी साधने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। कांग्रेस 2013 में भाजपा के साथ  गए जाटों को इस बार साधने के लिए पूरी तरह से सतर्क बनी हुई है. पार्टी ने 31 जाट नेताओं को टिकट देकर मैदान में उतारा है। साथ ही पार्टी में कई जाट नेताओं को शामिल करके पार्टी इस समुदाय को पूरी तरह से साधने में जुटी है। जाट हमेशा से कांग्रेस के साथ माना जाता है। इस वर्ग को चुनाव में अंदरखाने से साधने के लिए ज्योति मिर्धा, नारायण सिंह, गोविंद डोटासरा, रामेश्वर डूडी आदि जुटे हुए हैं। पार्टी में इस बार मारवाड़ के बड़े राजपूत नेता के तौर पर शामिल हुए मानवेंद्र सिंह के बाद माना जा रहा था कि पार्टी राजपूतों को टिकट बंटवारे में बड़ा दांव खेल सकती है। लेकिन, पार्टी ने भाजपा की तुलना में आधे यानी 13 टिकट राजपूत नेताओं को दिया है. इस वर्ग का साधने के लिए अंदरखाने वरिष्ठ नेता भंवर जितेंद्र सिंह, गोपाल सिंह इडवा, दिग्विजय सिंह, आदि लगे हैं। 



वहीं, कांग्रेस की ओर से 31 प्रतिशत एस/एसटी को भी साधने के लिए लगातार भाजपा को घेरती रही है। चुनाव के दौरान पूरे समाज के रुख को पार्टी की तरफ बनाकर रखने के लिए पार्टी के रघुवीर मीणा, महेंद्र जीत सिंह मालवीय आदि नेता जुटे हुए हैं। दरअसल एससी/एसटी वर्ग 2013 के चुनाव मोदी लहर के दौरान भाजपा के साथ चली गई थी। खास बात यह है कि इस लहर के दौरान कांग्रेस की तरफ से इस वर्ग से उतारा गया एक भी प्रत्याशी जीतकर नहीं आया था। यही वजह है कि इस बार कांग्रेस शुरुआत से ही दलितों के मुद्दे पर सरकार को घेरने में लगी रही है। वहीं, पार्टी की तरफ से मुस्लिम वर्ग को साधने के लिए पार्टी ने  इस बार 15 मुस्लिम नेताओं को मैदान में उतारा है. भाजपा की तरफ से केवल एक ही मुस्लिम को वोट देने पर अंदरखाने पार्टी के नेता इसके जरिए मुस्लिम वोट को अपनी तरफ खींचने में लगे हैं। इस वर्ग को साधने के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में अश्कअली टांक, अहमद पटेल, काजी निजामुद्दीन आदि जुटे हैं। वहीं, गुर्जर वोट बैंक को साधने का काम पीसीसी अध्यक्ष  सचिन पायलट कर रहे हैं।

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