सोमवार, 31 दिसंबर 2018

मशहूर अभिनेता कादर खान का निधन

जाने-माने अभिनेता एवं लेखक कादर खान का 31 दिसंबर को निधन हो गया।  81 वर्षीय खान लंबे समय से बीमार चल रहे थे।  खान कनाडा के एक अस्पताल में भर्ती थे।  उनके बेटे ने बताया कि अभिनेता का अंतिम संस्कार भी वहीं किया जाएगा ।  खान के बेटे सरफराज ने कहा, ‘मेरे पिता हमें छोड़कर चले गए।  लंबी बीमारी के बाद 31 दिसम्बर शाम छह बजे (कनाडाई समय) उनका निधन हो गया. वह दोपहर को कोमा में चले गए थे. वह पिछले 16-17 हफ्तों से अस्पताल में भर्ती थे।  कादर खान के निधन से बॉलीवुड इंडस्‍ट्री को गहरा झटका लगा है। 
उन्होंने कहा, ‘‘उनका अंतिम संस्कार कनाडा में ही किया जाएगा।  हमारा सारा परिवार यहीं हैं और हम यहीं रहते हैं इसलिए हम ऐसा कर रहे हैं।  उन्होंने कहा, ‘‘हम दुआओं और प्रार्थना के लिए सभी का शुक्रिया अदा करते हैं। 

परिवहन मंत्री हफ्ते में एक बार साइकिल से सचिवालय में आएंगे

जयपुर। गहलोत सरकार के परिवहन और सैनिक कल्याण मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास ने सोमवार को सुबह 10.15 बजे शुभ मुर्हुत में पूजा-पाठ के बाद शासन सचिवालय के मुख्य भवन के 2119 कमरें में परिवहन और सैनिक कल्याण मंत्रालय का कार्यभार ग्रहण कर लिया।
इस अवसर पर प्रतापसिंह खाचरियावास ने संवाददाताओं को सम्बोधित करते हुये कहा कि एक घंटा देश और जिंदगी के लिये वे स्वयं प्रत्येक सप्ताह एक दिन साईकिल पर सचिवालय आएंगे। 

खाचरियावास ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को देश और जीवन के लिये दिखावे को छोड़कर कुछ ऐसा करना चाहिये जिससे हम देश के लिये समर्पण कर सकें और अपने आप को स्वस्थ रख सकें। इसी कडी में खाचरियावास ने सप्ताह में एक बार सचिवालय साईकिल पर आने की घोषणा की।खाचरियावास ने इस अवसर पर कहा कि भाजपा की केन्द्र सरकार ने राजस्थान के साथ बहुत बड़ा धोख किया।
साढ़े चार वर्ष पूर्व केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी जयपुर से दिल्ली हाईवे को ठीक करने का वादा करके गये थे, लेकिन आज तक जयपुर से दिल्ली हाईवे ठीक नहीं हुआ, सड़क दुर्घटनाओं के कारण दिल्ली हाईवे पर सैकडों लोगों की मौतें हो गई। दुर्घटना में हुई इन सब मौतों के लिये केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी और भाजपा की केन्द्र सरकार जिम्मेदार है। केन्द्र सरकार के नेताओं ने और राज्य की भाजपा सरकार ने मौज-मस्ती में पांच वर्ष खराब कर दिये, लेकिन दिल्ली हाईवे की दशा नहीं सुधार पाये। पुरानी भाजपा सरकार ने रोडवेज की हालत खराब कर दी, अब बडी चुनौती हमारे सामने हैं ।

सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री डॉ. रघु शर्मा ने मीडियाकर्मियों को दी नववर्ष की शुभकामनाएं

पिंकसिटी प्रेस क्लब में नववर्ष की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सभी मीडियाकर्मियों के लिए नया साल नई रोशनी लेकर आए और उनकी सभी आाशाएं पूरी हों।  
 सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री ने कहा कि मीडिया सरकार के पथ प्रदर्शक का काम करती है। मीडिया भले ही अच्छा काम करने पर सरकार की तारीफ ना करें लेकिन किसी भी कमी को तुरंत सामने जरूर लाए ताकि समय रहते प्रभावी उपाय किए जा सकें।
जयपुर। प्रदेश के चिकित्सा और सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री डॉ. रघु शर्मा ने कहा कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। बिना मीडिया के सहयोग के बेहतर प्रशासन की उम्मीद बेमानी है। उन्होंने नववर्ष की पूर्व संध्या पर प्रदेश के मीडियाकर्मियों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि पत्रकारों से जुड़ी समस्याओं को शीघ्र हल किया जाएगा। 

डॉ. शर्मा रविवार को पिंकसिटी प्रेस क्लब में नववर्ष की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सभी मीडियाकर्मियों के लिए नया साल नई रोशनी लेकर आए और उनकी सभी आाशाएं पूरी हों। उन्होंने कहा कि सरकार जिन वायदों को लेकर सत्ता में आई है और चुनाव घोषणा पत्र में जो-जो भी वायदे किए गए हैं उन्हें जल्द से जल्द जमीन पर उतारा जाएगा। 

चिकित्सा और सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री ने कहा कि मीडिया सरकार के पथ प्रदर्शक का काम करती है। मीडिया भले ही अच्छा काम करने पर सरकार की तारीफ ना करें लेकिन किसी भी कमी को तुरंत सामने जरूर लाए ताकि समय रहते प्रभावी उपाय किए जा सकें। इस अवसर पर डॉ. शर्मा को पिंकसिटी प्रेस क्लब की मानद सदस्यता भी प्रदान की गई। इस दौरान उन्होंने श्री प्रकाश मीडिया कक्ष और ऑडिटोरियम को भी देखा और क्लब के कार्यकलापों के बारे में जानकारी ली। 

इससे पहले पिंकसिटी प्रेस क्लब के अध्यक्ष अभय जोशी ने डॉ. शर्मा का माल्यार्पण कर स्वागत किया वही महासचिव मुकेश चौधरी ने स्मृति चिन्ह भी भेंट किया। इस अवसर पर क्लब के पूर्व अध्यक्ष राधारमण, उपाध्यक्ष देवेन्द्र सिंह सहित अनेक मीडियाकर्मी पर उपस्थित थे। 

रविवार, 30 दिसंबर 2018

साल 2018 में टूटा 10 साल का रिकॉर्ड

 जगहों के नाम बदलने के लिए सरकार को मिले 34 प्रस्ताव राजस्थान की ओर से ऐसे सर्वाधिक सात प्रस्ताव भेजे गए. इसके बाद हरियाणा से छह, मध्य प्रदेश एवं नगालैंड से चार-चार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र से तीन-तीन और केरल से ऐसे दो प्रस्ताव भेजे गए
 देश में स्थानों के नए नामकरण को लेकर जारी बहस के बीच सूचना के अधिकार (आरटीआई) से पता चला है कि साल 2018 के दौरान केंद्रीय गृह मंत्रालय को गांवों, कस्बों, शहरों और रेलवे स्टेशनों के नामों में बदलाव के लिए 34 प्रस्ताव मिले. जगहों के नाम में तब्दीली के प्रस्तावों की यह तादाद सालाना आधार पर पिछले एक दशक में सर्वाधिक है.

मध्यप्रदेश के नीमच निवासी आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने रविवार को बताया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक आला अधिकारी ने उन्हें 20 दिसंबर को सूचना के अधिकार के तहत भेजे जवाब में यह जानकारी दी.

आरटीआई आवेदन पर मुहैया कराए गए आंकड़ों के मुताबिक नाम परिवर्तन के संबंध में केंद्रीय गृह मंत्रालय को साल 2008 में दो, 2010 में तीन, 2011 में 11, 2012 में चार, 2013 में 14, 2014 में भी 14, 2015 में 16, 2016 में 17, 2017 में 25 और 2018 में 34 प्रस्ताव मिले.

यह जानना दिलचस्प है कि साल 2009 में गृह मंत्रालय को इस तरह का एक भी प्रस्ताव नहीं मिला था. इस तरह पिछले 11 सालों में केंद्रीय गृह मंत्रालय को स्थानों के नाम में परिवर्तन के कुल 140 प्रस्ताव मिले.

अलग-अलग एजेंसियों के साथ उचित विचार-विमर्श के बाद इनमें से 127 प्रस्तावों को स्वीकृत करते हुए अनापत्ति प्रमाण जारी किया गया, जबकि 13 अन्य प्रस्तावों पर विचार किया जा रहा है.

आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक ये 13 विचाराधीन प्रस्ताव केंद्रीय गृह मंत्रालय को साल 2018 में ही मिले हैं. वैसे इस वर्ष मंत्रालय ने देश भर के स्थानों के नाम परिवर्तन के 21 प्रस्तावों को हरी झंडी दिखाई.

साल 2018 के दौरान केंद्रीय गृह मंत्रालय को स्थानों के नाम परिवर्तन के प्रस्ताव भेजने में राजस्थान अव्वल रहा. राजस्थान की ओर से ऐसे सर्वाधिक सात प्रस्ताव भेजे गए. इसके बाद हरियाणा से छह, मध्यप्रदेश एवं नगालैंड से चार-चार, उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र से तीन-तीन और केरल से ऐसे दो प्रस्ताव भेजे गए.

कर्नाटक, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, दिल्ली और बिहार से ऐसा एक-एक प्रस्ताव भेजा गया. आरटीआई के तहत बताया गया कि स्थानों के नाम में बदलाव के लिए संबंधित प्रदेश सरकार से प्रस्ताव मिलने पर केंद्रीय गृह मंत्रालय अलग-अलग सरकारी एजेंसियों की मदद से विचार-विमर्श करता है. नाम परिवर्तन को मंजूरी दिये जाने की स्थिति में प्रदेश सरकार को अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी किया जाता है.

ध्यान देने वाली बात ये है कि स्थानों का नाम बदलने के लिए सबसे ज्यादा प्रस्ताव भाजपा शासित राज्यों से भेजे गए थे. बता दें कि बीते महीने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया. इलाहाबाद के अलावा मुगलसराय रेलवे स्टेशन और फैजाबाद का भी नाम बदल दिया गया है. इन्हीं मामलों को लेकर योगी आदित्यनाथ और भाजपा सरकार की काफी आलोचना हुई थी.

विपक्षी दलों का कहना था कि भाजपा सरकार देश में मुस्लिम समुदाय से जुड़े नामों को बदलकर सामाजिक सौहार्द बिगाड़ना चाह रही है. उन्होंने ये भी कहा कि नाम बदलने को लेकर खर्च की जा रही धनराशि जन कल्याण से जुड़ी योजनाओं पर खर्च की जाती, तो देश के हालात में बदलाव आता.

वर्षा 2018 में चुनौती भरी रही सामाजिक समरसता

जैसे प्रकृति धरती को बंजर होने से बचाती है, ठीक वैसे ही साहित्य-कला-संगीत मनुष्यों को. लेखकों, कलाकारों की मौजूदगी समाज को सभ्य बनाती है, तो उनकी दृष्टि हमारे समय और समाज का दस्तावेज भी तैयार करती है.  

दु:स्वप्न जैसा गुजरा यह साल   

साल 2018 एक दु:स्वप्न जैसा गुजरा है. कुछ ही चीजें अच्छी हुईं, नहीं तो बाकी चीजों ने बहुत निराश किया. इस साल ने हमें जो दिखाया है, वह निश्चित रूप से एक लोकतांत्रिक भारत के लिए ठीक नहीं है. 

हमने समाज में सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ते देखा. मुसलमानों और दलितों के प्रति हिंसा और विरोध को बढ़ते देखा. लेखकों, बुद्धिजीवियों और स्वतंत्र विचारकों पर तरह-तरह के दमन देखे. मीडिया को और भी गुलाम बनते हुए देखा. साहित्य, कला और सांस्कृतिक संस्थाओं में जहर फैलते और उन्हें अयोग्य हाथों में जाते देखा. हमने सत्ताधारी दल के विभिन्न मंत्रियों, नेताओं और समर्थकों के ऊटपटांग तर्क और मूर्खतापूर्ण बयानों की बाढ़ देखी, जिसका किसी भी प्रकार की वैज्ञानिकता से कोई संबंध नहीं है. कुल मिला कर अपने प्यारे देश को वैचारिक स्तर पर पीछे जाते देखा. 

भविष्य के जो सवाल हैं, उनके जवाब अतीत में नहीं मिलते हैं. भविष्य के संबंध में अतीत के सिर्फ अनुभव काम आ सकते हैं, अतीत के तथ्य नहीं, लेकिन हमने बीते सालों में देखा कि भारत को किस तरह से उसके भविष्य के सारे जवाब अतीत से खोजने की सिर्फ कोशिशें ही नहीं हुईं, बल्कि जबरन कोशिशें हुईं. हमने देखा कि सत्तारूढ़ शीर्ष नेता किस तरह से एकाधिकारवादी राजनीति कर रहे हैं. यह सब एक दुखद जाल की तरह हमारे समाज पर छाया हुआ है, लेकिन यह भी सुखद है कि प्रतिरोध की आवाजें भी उठी हैं और लोग गलत का विरोध कर रहे हैं. आम जन का घुटन एक व्यापक असंतोष बनकर सामने आ रहा है. 

हमारे देश का सामाजिक ताना-बाना बहुत मजबूत है. यहां जितने अधिक संप्रदाय, जातियां, धार्मिक शाखाएं, संस्कृतियां और इतने तरह के रहन-सहन हैं, शायद ही किसी अन्य देश में हों. इन सबके बीच अंतर्निर्भरता भी बहुत गहरे तक है, चाहे वह काम-काज की हो या फिर रहने-जीने-खाने की. 

एक-दूसरे के बिना काम नहीं चलता है. ऐसे समृद्ध समाज में बीते सालों में ध्रुवीकरण करने की लगातार कोशिशें होती रहीं और बहुसंख्यकवादी वर्चस्व की राजनीति बेहद आक्रामक ढंग से समाज पर लादी गयी. इससे बहुत हमारा सामाजिक ताना-बाना कुछ टूटा है और सामाजिक दरारें आयी हैं, जिन्हें पाटने में अब काफी वक्त लगेगा. फिर भी, अंतत: यह सामाजिक ताना-बाना इतना मजबूत है कि उसकी आत्मा को अभी तक नुकसान नहीं पहुंचा है, जिसकी कोशिशें भ्रष्ट राजनीति करती रही है. 

भारतीय जनमानस को चलानेवाले छोटे-मोटे उद्योग से लेकर बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक सद्भाव देखने को मिलता है, जिसे तोड़ने की कोशिशें हो रही हैं, मगर इसमें इतनी बहुवचनीयता है कि यह नहीं टूट रहा है. हमें आनेवाले साल से यही उम्मीद है कि यह कभी न टूटने पाये. हमारी बहुवचनीयता और विविधता ही हमारी ताकत है, जिसे किसी भी कीमत पर टूटने नहीं देना चाहिए. हिंदी के बड़े कवि रघुवीर सहाय कहते थे- हमारे यहां अनेकता में एकता नहीं है, बल्कि एकता में अनेकता है.

एकता में अनेकता वाले इस समाज को बहुत ज्यादा समय तक बरगलाया नहीं जा सकता है. कुछ समय तक इसे गुमराह किया जा सकता है, लेकिन हमेशा नहीं, क्योंकि समाज की संरचना तो तोड़नेवालों को एक जवाब की तरह है. यही बात इस साल के दु:स्वप्न के सामने एक संबल बनी. 

अब हमारा समाज जवाब देने लग गया है, क्योंकि यह पहचानने लगा है कि उसे बरगलाया जा रहा है. इसलिए नये साल में मुझे यही उम्मीद है कि यह समाज और मजबूती से जवाब देगा और गुमराह करनेवालों को डटकर जवाब देगा. हमारे देश का भविष्य और लोकतंत्र इस बात पर नहीं टिका हुआ है कि वह सांप्रदायिकता के साथ जीये. 

यही वजह है कि बीते सालों में जिन लोगों ने इस समाज पर खतरा पैदा किया है, उन पर भी अब खतरों के बादल मंडरा रहे हैं. मैं समझता हूं कि आगामी साल से हमें इसी बात की उम्मीद होनी चाहिए कि हमें कोई गुमराह न करने पाये और हम एक बेहतरीन लोकतंत्र बनकर दुनिया में बड़ी मिसाल बनकर दिखाएं. हमें हर नये समय से उदार लोकतंत्र और सबको साथ लेकर चलनेवाले लोकतंत्र की जीत होनी चाहिए, हमें इसी बात की उम्मीद करनी चाहिए. 

बरकरार रही असहिष्णुता   



साल 2018 का हाल उसके पिछले सालों की परिणति थी. पूरे साल असहिष्णुता रही, जैसा उसके पिछले सालों में भी देखी गयी थी. एक अजीब तरह का माहौल रहा है. यह बहुत चिंता की बात है और विमर्श का विषय है कि जो देश सहिष्णुता के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है, वहां जरा-सी बात पर कुछ लोग इकट्ठा होकर किसी को मार डालते हैं, मॉब लिंचिंग को अंजाम देते हैं. यह देश के लिए अच्छी बात नहीं है. बड़ा दुखद रहा है यह सब. पूरे साल समाज का माहौल बिगड़ा रहा और ऐसी स्थिति कहीं-कहीं अब भी बनी हुई है. यह हमारे लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है. 

अगर किसी ने कोई जुर्म किया हो, तो कानून के मुताबिक उसको सजा हो, लेकिन भीड़ को कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए. इस एतबार से यह साल ठीक नहीं गुजरा. भीड़ को ही क्या, किसी को भी कानून अपने हाथ में लेने का कोई अधिकार नहीं है. इससे समाज पर बुरा असर पड़ता है. हर हाल में ऐसी गतिविधियाें पर रोक लगायी जानी चाहिए. तभी यह मुमकिन है कि आनेवाले साल का हम बिना किसी संशय के स्वागत कर सकेंगे. 

इस साल सुप्रीम कोर्ट के कुछ बड़े और अहम फैसले आये, जैसे कि धारा 377 और वयस्कता पर फैसले, लेकिन आधार कार्ड और राफेल पर जो फैसले आये, उनसे हमें बहुत निराशा हुई है. हालांकि, इन दोनों ही फैसलों की अब समीक्षा होने जा रही है.

इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि आगामी साल, 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले इतने रेशनल (तर्कसंगत) होंगे कि बौद्धिक लोग और देश की आम जनता भी उन फैसलों का स्वागत करेंगे और कोई भी उन फैसलाें पर संदेह नहीं करेगा. 

कोर्ट से यह उम्मीद तो हमें हमेशा ही होनी चाहिए. लोगों को सबसे ज्यादा अगर किसी पर भरोसा है, तो वह ज्यूडिशियरी (न्यायपालिका) है और लोग यही सोचते हैं कि भले कहीं न्याय न मिले, लेकिन अदालतें उनके साथ न्याय करेंगी. इसलिए अदालतों से तर्कसंगत फैसले आने चाहिए, हम ऐसी उम्मीद करते हैं. 

हमारे देश की एक पुरानी रवायत रही है सहिष्णुता. देश में इतनी विभिन्नताओं के साथ हम विचारों की विभिन्नता भी देखते हैं. हमारे खिलाफ आनेवाले विचारों को भी हम शांतिपूर्वक सुनते हैं और दूसरे के विचारों का सम्मान करते हैं, यही सहिष्णुता हमारे देश में सदियों से रही है. 

इसी का बीते वर्षों में ह्रास हुआ है, जिसे संभाले जाने की जरूरत है. हम सामने वाले को बोलने का हक देते हैं और फिर उसका अहिंसक जवाब भी देते हैं, यही सहिष्णुता है. बीते कुछ वर्षों में तो यह कम हुई और इसकी जगह हिंसा और असहिष्णुता ने ले ली. हम उम्मीद करते हैं कि आगामी साल में ऐसी परिस्थितियां न बनें और हम खुशहाल एवं शांतिपूर्ण भविष्य की ओर तेजी से बढ़ें. 

बीते दिनों अजमेर में एक लिटरेरी फेस्टिवल में बॉलीवुड एक्टर नसीरुद्दीन शाह को शामिल नहीं होने दिया. यह बहुत ही भयानक है कि अब लिटरेरी फेस्टिवल को भी कट्टरपंथी हाइजैक कर लें! चाहे वह किसी भी धर्म के कट्टरपंथी हों, हमारे लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं हैं, क्योंकि हमारा लोकतंत्र स्वतंत्र विचारों का सम्मान करने के लिए जाना जाता है. समाज में हर एक को अपनी हर बात कहने का हक है. 

यह अधिकार उसे हमारे संविधान से मिला है, लेकिन किसी को भी कानून को अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है, पर हो रहा है ठीक उल्टा. जो अपनी बात कहना चाहते हैं, उसे रोका जा रहा है और जो कानून अपने हाथ में ले रहे हैं, उन्हें बढ़ावा मिल रहा है. कुल मिला कर बीते साल के लेखा-जोखा में यही बात सामने आती है कि हम एक लोकतांत्रिक समाज में रहते हैं. 

शनिवार, 29 दिसंबर 2018

वर्ष 2018 की प्रमुख अंतरराष्ट्रीय घटनाएं

यह साल विभिन्न महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों और हलचलों से भरा रहा. अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध से लेकर शरणार्थी संकट तक, सत्ता परिवर्तन से लेकर जलवायु परिवर्तन तक कई ऐसी महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहसों को जन्म दिया अथवा उनकी दिशा बदल दी. साल की प्रमुख अंतरराष्ट्रीय हलचलों पर आधारित 




पोलैंड में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन

पोलैंड में 24वां कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज टु द यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क जलवायु परिवर्तन सम्मेलन संपन्न किया गया. इस सम्मेलन में शामिल देशों के बीच साल 2015 के पेरिस जलवायु समझौते को लागू करने पर सहमति बनी. पेरिस समझौते में विकसित देशों के लिए नियम पर कोई सहमति नहीं थी. इस दौरान मूलतः गरीब देशों और अमीर देशों के कार्बन उत्सर्जन की सीमा को लेकर विवाद भी सामने आया था. 

इसके अलावा इंटरगवर्नमेंटल पैनल (आईपीसीसी) की जलवायु परिवर्तन की रिपोर्ट पर भी देश बंटे हुए हैं. शुरू से ही सऊदी अरब, अमेरिका, कुवैत और रूस ने आईपीसीसी की रिपोर्ट को सिरे से खारिज किया है. सम्मेलन के दौरान पर्यावरण वैज्ञानिकों ने तमाम देशों को लेकर चिंता जाहिर की है, जिसमें ब्राजील और अमेरिका के राष्ट्रवादी राष्ट्रपतियों के जलवायु परिवर्तन पर रवैये की बात उठायी गयी.

आईपीसीसी ने कार्बन उत्सर्जन को लेकर विभिन्न देशों के लिए जो सीमा तय की थी, उस पर कई देशों के बीच अभी भी मतभेद बने हुए हैं. जलवायु परिवर्तन की मुहिम में भारत अग्रणी भूमिका में है. भारत ने सौर ऊर्जा अलायंस बनाया है और वर्ष 2030 तक 30 से 35 प्रतिशत तक कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.

अमेरिका और चीन ट्रेड वार

चीन और अमेरिका विभिन्न मुद्दों पर असहमतियों को आगे बढ़ाते हुए अपनी आर्थिक नीतियों द्वारा एक-दूसरे को हराने में जुटे हुए हैं. इस वर्ष जनवरी में अमेरिका ने सोलर पैनल (ये ज्यादातर चीन से निर्यात होते है) व वाशिंग मशीन पर टैरिफ बढ़ाने की घोषणा की. इसके बाद मार्च में एक बार फिर अमेरिका ने चीन सहित अन्य देशों आयात होनेवाले इस्पात व एल्युमीनियम टैरिफ बढ़ाने की घोषणा की. 

हालांकि इस वृद्धि से व्यापार युद्ध की शुरुआत तो नहीं हुई थी, लेकिन इसकी भूमिका बननी तय हो गयी थी. असल में चीन से निर्यात किये गये वस्तुओं पर अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाये जाने की शुरुआत इस वर्ष जून में तब हुई थी जब चीन ने 34 अरब डॉलर के अमेरिकी वस्तुओं पर 25 प्रतिशत शुल्क बढ़ा दिया, इसी के जवाब में अमेरिकी प्रशासन ने 15 जून को 50 अरब डॉलर के चीनी वस्तुओं पर 25 प्रतिशत शुल्क की वृद्धि कर दी. 

18 जून को एक बार फिर डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के ट्रेंड रीप्रजेंटेटिव को 200 अरब डॉलर के चीनी वस्तुओं की पहचान कर उस पर 10 प्रतिशत का अतिरिक्त कर लगाने का निर्देश दिया. इस संबंध में व्हाइट हाउस से जारी डोनाल्ड ट्रंप के बयान में कहा गया था कि अगर चीन इसके बाद अमेरिकी वस्तुओं पर लगाये जाने वाले टैरिफ में वृद्धि करता है तो अमेरिका 200 अरब डॉलर के चीनी वस्तुओं पर अतिरिक्त शुल्क लगायेगा. 

अमेरिका और चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍थाओं में से हैं और जिस तरह से दोनों देश एक-दूसरे पर ट्रेड वॉर की आड़ में हमले कर रहे हैं, यह बाकी दुनिया के लिए परेशानी का सबब बन चुका है. इस ट्रेड वार का भारत सीधे तौर पर सामना कर रहा है और नुकसान भी उठा रहा है. मेक इन इंडिया प्रोजेक्‍ट पर ट्रेड वार का असर पड़ा है और भारतीय बाजार से निवेशक अपने पैसे निकाल रहे हैं और अमेरिका की तरफ रुख कर रहे हैं. अमेरिका और चीन का यह व्यापार युद्ध शीत युद्ध की तरफ बढ़ चला है.

भारत-अमेरिका व्यापार युद्ध

इस वर्ष के प्रारंभ में भारत से निर्यात किये जानेवाले इस्पात व एल्युमीनियम उत्पादों पर अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाये जाने की एकतरफा घोषणा से भारत को शुल्क के तौर पर अनुमानत: कुल 241 मिलियन डॉलर की राशि का बोझ पड़ गया था. इस प्रभाव को बेअसर करने के लिए भारत ने अमेरिका से आयात होनेवाले चना, मसूर दाल, छिलके वाला बादाम, खोलदार अखरोट, सेब, बोरिक एसिड, फॉस्फोरिक एसिड समेत 29 वस्तुओं पर उसी दर से सीमा शुल्क बढ़ा दिया था.



ब्रेक्जिट को लेकर थेरेसा मे ने जीता विश्वास मत

यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के बाहर आने यानी ब्रेक्जिट को लेकर कठिनाइयों का सामना कर रहीं थेरसा मे को इस वर्ष राहत मिली. महीनों की चर्चा के बाद आखिरकार जून में यूरेापीय संघ से ब्रिटेन के बाहर आने संबंधी विधेयक कानून बन गया और ब्रिटेन को यूरोपीय संघ छोड़ने की अनुमति मिली गयी.

 हालांकि इस मामले में ब्रिटेन का संसद बंटा नजर आया और यूरोपीय संघ से अलग होने के लिए जो मसाैदा प्रस्तावित किया गया था, उससे असहमत होते हुए ब्रेक्जिट मंत्री डोमिनिक राब ने नवंबर में अपने पद से इस्तीफा दे दिया. 

हालांकि ब्रेक्जिट समझौते से नाखुश थेरेसा मे की पार्टी के ही 48 सांसदों ने उनके खिलाफ अविश्वास पत्र दिया था, जिसे इसी दिसंबर में उन्होंने जीत लिया. कंजर्वेटिव पार्टी के कुल 317 सांसदों में से 200 ने उनके पक्ष में जबकि 117 ने विपक्ष में मत दिया.

वैश्विक मंदी की आशंका

इस वर्ष अमेरिकी बैंक लेमैन ब्रदर्स के कर्ज में डूब जाने और उसके बाद वैश्विक मंदी आने के 10 साल पूरे हुए थे. इस बीच ऐसी स्थितियां बनी हैं वैश्विक अर्थव्यवस्था पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. विशेषज्ञों की मानें तो आर्थिक संकट गहराने के आसार हैं, जिससे संपूर्ण वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ सकती है. 

वित्तीय नीतियां, जो अमेरिकी वार्षिक वृद्धि दर की दो प्रतिशत की क्षमता को तीव्र करने के लिए प्रयोग में हैं, वे अस्थिरता पैदा कर रही हैं. अमेरिकी व्यापार युद्ध के अभी और बढ़ने के आसार हैं, जिससे निश्चित रूप से वृद्धि धीमी होगी और मुद्रास्फीति बढ़ेगी. 

इससे बेरोजगारी का दबाव बढ़ेगा और ब्याज दरों में उच्च वृद्धि की जायेगी. इससे दुनिया में वृद्धि दर धीमी होने की आशंका है, क्योंकि अमेरिकी संरक्षणवाद के खिलाफ बाकी देश भी कार्रवाई कर सकते हैं. उभरते बाजारों में पहले से ही अस्थिरता है, ऐसे में संरक्षणवादी नीति व कड़ी मौद्रिक स्थितियां उभरते बाजारों को परेशान करेंगी. मौद्रिक नीतियों और व्यापार युद्ध के कारण यूरोप की आर्थिक वृद्धि भी धीमी होगी. इटली जैसे देशों की लोक-लुभावन नीतियां भी, यूरोजोन के भीतर अस्थिर ऋण गतिशीलता पैदा करेंगी.

 ऐसे में एक और वैश्विक मंदी इटली और दूसरे देशों को यूरोजाेन से बाहर आने के लिए उकसा सकती है. फिलहाल वैश्विक बाजार अस्थिर है. अमेरिका की प्राइस-टू-अर्निंग अनुपात 50 प्रतिशत से अधिक है व निजी इक्विटी वैल्यूएशन भी अत्यधिक हो है. ऐसे में निवेशक यह मान रहे हैं कि यह आर्थिक तेजी धीमी होनी शुरू हो जायेगी. एक बार सुधार होने के बाद संपत्तियों के न बिकने व कम दाम से  संकट ज्यादा गहरायेगा. 

अमेजन के जंगलों पर संकट

अमेजन के जंगलों को लेकर हाल ही में ब्राजील के निर्वाचित राष्ट्रपति जाइर बोलसोनारो ने जोे संकेत दिये हैं, वे पर्यावरण के लिए बेहद घातक साबित हो सकते हैं. अमेजन के जंगलों को खनन, खेती व बांध बनाने की छूट देने के लिए बोलसोनारो कानून में बदलाव करेंगे. हाल ही में एक साक्षात्कार के दौरान ब्राजील के प्रस्तावित कृषि मंत्री तेरेजा क्रिस्टीना ने पुष्टि की कि अमेजन के जंगल के एक बड़े भू-भाग (लगभग फ्रांस जितना बड़ा) को भूमि रूपांतरण के लिए खाेला जायेगा. 

अमेजन के लिए यह बेहद चिंतावाली बात है, क्योंकि इस जंगल की कटाई को रोकने की तमाम राजनीतिक कोशिशों के बावजूद ताजा आंकड़े बताते हैं कि इस वन की कटाई में इजाफा ही हुआ है. विश्व के इस सबसे बड़े जंगल की कटाई में ब्राजील पहले ही रिकॉर्ड कायम कर चुका है. 

हाल ही में एक सेटेलाइट इमेज से यह पता चला है कि बीते एक साल की अवधि में इस जंगल के करीब 8,000 वर्ग किलोमीटर के इलाके (मेक्सिको सिटी से पांच गुना ज्यादा) से पेड़ काटे जा चुके हैं. अगर बोलसोनारो अपने इरादे पर अटल रहे तो न सिर्फ इस वन में रह रहे विविध प्रजातियों पर इसका असर पड़ेगा बल्कि वैश्विक पर्यावरण व महासागर की धाराओं (ओशन करेंट) पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा.

श्रीलंका में तख्तापलट

आर्थिक संकट का सामना कर रहे श्रीलंका में लगभग दो महीने तक राजनीतिक उथल-पुथल मचा रहा और उसे सक्रिय सरकार के बिना रहना पड़ा. राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने नीतिगत मुद्दों पर मतभेदों के चलते प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त कर दिया और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया था. राजपक्षे की सत्ता में वापसी से आशंका थी कि चीन अब श्रीलंका पर अपनी पकड़ मजबूत करेगा, क्योंकि वे चीन करीबी माने जाते हैं. 

महिंदा राजपक्षे के शासनकाल में श्रीलंका, चीन का करीबी था. चीन ने श्रीलंका में गृहयुद्ध के खत्म होने के बाद लाखों डॉलर खर्च किये थे. लेकिन देश में राहत की स्थिति आयी, जब श्रीलंका की उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रपति सिरिसेना के फैसले को 16 दिसंबर को खारिज कर दिया और रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद पर बहाल कर दिया. विक्रमसिंघे भारत समर्थक माने जाते हैं. भारत के लिए श्रीलंका हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर महत्वपूर्ण देश है.

मालदीव में बनी सोलिह सरकार

इस साल भारी उथल-पुथल के बीच मालदीव में राष्ट्रपति चुनाव किये गये. इनके परिणामों में विपक्ष के उम्मीदवार इब्राहीम मोहम्मद सोलिह ने जीत हासिल की और मालदीव के सातवें राष्ट्रपति के रूप में चुने गये. सोलिह ने विवादास्पद निवर्तमान राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को हराकर यह जीत हासिल की थी. 

चुनावों के पहले यहां तक आशंका थी कि यामीन जीत हासिल करने के लिए चुनावों में गड़बड़ियां कर सकते हैं. मोहम्मद सोलिह की जीत उनके समर्थन की वजह से नहीं हुई, अपितु अब्दुल्ला यामीन की विरोध में चल रही हवा के कारण हुई. मोहम्मद सोलिह की जीत की घोषणा होने के बाद पूरे मालदीव में जश्न मनाया गया था. चुनावों में यामीन के सामने विपक्ष द्वारा समर्थित सोलिह के अलावा कोई बतौर उम्मीदवार नहीं खड़ा हुआ था. 

इसका साफ कारण यह था कि ज्यादातर लोगों को यामीन सरकार ने जेल में ठूंस दिया था. अब्दुल्ला यामीन ने राजनीतिक पार्टियों, अदालतों और मीडिया पर कार्रवाई की थी. इस दौरान, यामीन के खिलाफ महाभियोग की कोशिश कर रहे सांसदों पर भी कार्रवाई की गयी. और जब सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनैतिक कैदियों को रिहा करने का आदेश दिया था, तब यामीन सरकार ने चीफ जस्टिस को भी जेल में डाल दिया और फरवरी महीने में 15 दिन के लिए आपातकाल भी लगा दिया था.

इमरान खान बने प्रधानमंत्री

इसी 25 जुलाई को पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली व प्रांतीय एसेंबली के लिए चुनाव हुए. नेशनल एसेंबली के लिए हुए चुनाव में इमरान खान के नेतृत्ववाली पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. इस जीत के साथ ही इमरान पाकिस्तान के इतिहास के पहले ऐसे राजनेता बने जिन्होंने देश के पांचों प्रांतों में जीत दर्ज की. इस जीत के बाद 6 अगस्त को पीटीआई ने आधिकारिक तौर पर प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में उनका चुनाव किया. 17 अगस्त को 176 मतों के साथ वे देश के 22वें प्रधानमंत्री बन गये.

नवाज शरीफ को जेल

इसी महीने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पनामा पेपर धांधली मामले में अदालत ने सात वर्ष की सजा सुनायी. इससे पहले सऊदी अरब में अपनी अल अजीजिया स्टील मिल के लिए आय का स्रोत साबित करने में विफल रहने पर अदालत ने उन्हें सात वर्ष की सजा सुनायी थी, लेकिन आय का स्रोत बताने पर अदालत ने इस मामले में कुछ ही दिन पहले उन्हें बरी कर दिया था. वर्ष 2001 में इस मिल की स्थापना हुई थी. 

मानव तस्करी की शिकार महिलाओं और बच्चों की संख्या बढ़ी

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने बताया कि एनसीआरबी की ओर से मुहैया कराई गई जानकारी के मुताबिक साल 2014 से 2016 की अवधि के दौरान कुल 22,167 बच्चे और 13,834 महिलाएं मानव तस्करी का शिकार हुए हैं 


 केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक साल 2014 से 2016 के दौरान मानव तस्करी की शिकार महिलाओं और बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी हुई.

राज्यसभा में समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद सुरेंद्र सिंह नागर के सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने यह जानकारी दी.

मेनका ने सदन को बताया कि एनसीआरबी की ओर से मुहैया कराई गई जानकारी के मुताबिक साल 2014 से 2016 की अवधि के दौरान कुल 22,167 बच्चे मानव तस्करी का शिकार हुए. उन्होंने वर्षवार ब्योरा देते हुए बताया कि 2014 में 5,985 और 2015 में 7,148 बच्चे मानव तस्करी का शिकार हुए और 2016 में यह आंकड़ा 9,034 तक पहुंच गया.

उन्होंने बताया कि साल 2014 से 2016 के दौरान 13,834 महिलाएं मानव तस्करी का शिकार हुईं. वर्षवार ब्योरा देते हुए उन्होंने कहा कि 2014 में 3843 और 2015 में 4752 महिलाएं मानव तस्करी का शिकार हुईं और 2016 में यह संख्या बढ़कर 5239 हो गई.

मेनका ने कहा कि भारतीय संविधान की 7वीं अनुसूची के तहत ‘पुलिस’ और ‘सार्वजनिक व्यवस्था’ राज्य के विषय हैं. लिहाजा, अवैध मानव व्यापार के अपराध की रोकथाम करने का मूल दायित्व राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासनों का है.

इससे पहले अगस्त माह में उच्चतम न्यायालय ने दो सर्वेक्षणों में बाल देखभाल संस्थाओं में रह रहे बच्चों की संख्या में तकरीबन दो लाख के अंतर संबंधी अनियमितता पर हैरानी जताई थी. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के 2016-17 के सर्वेक्षण में बाल देखभाल संस्थाओं में रहने वाले बच्चों की संख्या क़रीब 4.73 लाख थी जबकि इस साल मार्च में पेश सरकारी आंकड़ों में संख्या 2.61 लाख बताई गई है.

जनघोषणा पत्र बना सरकारी दस्तावेज

हर दिन जन घोषणा-पत्र के बिंदुओं को अमल में लाया जाएगाप्रताप सिंह खाचरियावास
जयपुर। प्रदेश की नई  सरकार की कैबिनेट की बैठक  मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अध्यक्षता में संपन्न हुई पहली बैठक में जनघोषणा पत्र को सरकारी दस्तावेज बनाया गया है। इस घोषणा पत्र को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा। गहलोत सरकार की ओर से किए गए वादों को पूरा करने के लिए निर्देश जारी कर दिए गए है

अब सरकार पूरे पांच वर्ष इन्हीं 418 बिन्दुओं पर काम करेगी। इसके साथ ही किसान कर्ज माफी के ड्राफ्ट का भी कैबिनेट ने अनुमोदन कर दिया है। 

इस जन घोषणा-पत्र में 418 बिन्दु शामिल हैं। कैबिनेट की बैठक के बाद परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा हर दिन जन घोषणा-पत्र के बिंदुओं को अमल में लाया जाएगा। किसान कर्ज माफी के ड्राफ्ट को भी कैबिनेट ने अनुमोदित कर दिया है। 

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

सीधे बिक्री करने वाली कम्पनी और संस्था अब नहीं कर पायेंगी धोखाधड़ी -खाद्य एवं उपभोक्ता मामलात मंत्री

       जयपुर । खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामलात मंत्री  रमेश चंद मीणा ने  बताया कि सीधे बिक्री करने वाली संस्थायें और कम्पनियां अब उपभोक्ताओं और बेरोजगारों से धोखाधड़ी नहीं कर पायेंगी। इसके लिये प्रत्यक्ष बिक्री से जुड़ी व्यापारिक गतिविधियों को राज्य की विधि के अन्तर्गत लाने के लिये विस्तृत नियम बनाये गये हैं। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार उद्योग जगत तथा उपभोक्ताओं के विधिक अधिकारों और हितों की सुरक्षा करने के लिये कृतसंकल्प है और इस बाबत सीधे बिक्री करने वाली संस्थाओं, कम्पनियों एवं विक्रेताओं की गतिविधियों पर निगरानी के लिये विस्तृत दिशा निर्देश जारी किये गये हैं।



       खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामलात शासन सचिव श्रीमती मुग्धा सिन्हा ने बताया कि खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामलात मंत्री द्वारा उपभोक्ताओं को सीधे बिक्री करने वाली संस्थाओं, सेवा प्रदाता प्रतिष्ठानों और मल्टी लेवल मार्केटिंग कम्पनियों के चंगुल से बचाने और उनके अधिकारों एवं हितों की सुरक्षा करने के लिये आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिये थे। इस संबंध में उपभोक्ता हितों का संरक्षण प्राथमिकता से करने के लिये सभी जिला कलक्टर जो जिला उपभोक्ता संरक्षण परिषद् के अध्यक्ष भी हैं को दिशा निर्देश जारी किये गये हैं।



       श्रीमती सिन्हा ने बताया कि प्रदेश में सीधी बिक्री या सेवा प्रदाता का कार्य करने के लिये संस्था, प्रतिष्ठान या कम्पनी को भारत की विधि के अन्तर्गत विधिक रूप से पंजीकृत होना अनिवार्य किया गया है। उन्होंने बताया कि अब ऐसे संस्थाओं को प्रत्यक्ष बिक्री संचालन से जुड़े सभी विक्रेताओं को व्यवसाय के संबंध में उचित एवं सटीक जानकारी साझा करना जरूरी किया गया है।



       शासन सचिव ने बताया कि सभी जिला कलक्टरों को जिले में प्रत्यक्ष बिक्री व्यवसाय से जुड़ी संस्थाओं से उनकी व्यावसायिक गतिविधियों एवं संचालन के संबंध में शपथ-पत्र, घोषणा पत्र तथा अन्य वांछित सूचना प्राप्त करने के निर्देश दिये गये हैं ताकि उपभोक्ताओं एवं बेरोजगारों के हितों का संरक्षण संभव हो सके।



       उन्होंने बताया कि अब कोई भी प्रत्यक्ष बिक्री संस्था या व्यक्ति प्रत्यक्ष बिक्री व्यवसाय की आड़ में धनपरिचालन स्कीम या पिरामिड़ स्कीम में भागीदारी नहीं कर सकेगा तथा उसे उपभोक्ताओं की शिकायतों पर प्रभावी कार्यवाही करनी होगी। उन्होंने बताया कि इसके लिये प्रत्येक संस्था को प्रतितोष निवारण समिति का गठन करना होगा जिसमें आमजन की शिकायतों का उचित संधारण करना होगा तथा मांगे जाने पर शिकायतों के संबंध में की गई कार्यवाही की सूचना संबंधित शिकायतकर्ता को उपलब्ध करानी होगी।

गुरुवार, 27 दिसंबर 2018

वर्ष 2018 की राजनीति में उथल-पुथल मची रही

उतार-चढ़ाव से भरी रही वर्ष 2018 की राजनीति, दल अपने राजनीतिक हित साधने की फिराक में लगे रहे। 
साल 2018 राजनीतिक हलचलों से परिपूर्ण रहा। इस साल कश्मीर से लेकर कर्नाटक तक राजनीतिक उथल-पुथल मची रही, वहीं इस साल हुए चुनावों को 2019 के आमचुनावों से पहले का सेमीफाइनल कहा गया। दिल्ली की सड़कों पर किसान अपना हक मांगते दिखाई दिये और राजनीतिक दल अपने राजनीतिक हित साधने की फिराक में लगे रहे।. साल की प्रमुख राजनीतिक गतिविधियां पर जगजाहिर की ओर से विशेष प्रस्तुति 

विधानसभा चुनाव

कर्नाटक : इस वर्ष मई में कर्नाटक की 222 विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में 104 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी. जबकि सत्ताधारी कांग्रेस को 78 सीटें ही मिलीं। जेडीएस को 37 व बसपा को एक सीटें मिलीं। कांग्रेस व जेडीएस ने यहां मिलकर सरकार बनायी व एचडी कुमारस्वामी राज्य के मुख्यमंत्री बने।


त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड : फरवरी में पूर्वोत्तर के इन तीनों राज्यों के क्रमश: 59-59 सीटों पर चुनाव हुए। त्रिपुरा में भाजपा को जीत मिली व बिप्लब देब मुख्यमंत्री बने वहीं, मेघालय में नेशनल पीपुल्स पार्टी को जीत मिली, कोनराड संगमा मुख्यमंत्री बने। नागालैंड में यूनाईटेड डेमोक्रेटिक पार्टी को जीत हासिल हुई।

मध्य प्रदेश : मध्य प्रदेश के 230 सीटों के लिए हुए चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा को पूर्व के 165 के मुकाबले महज 109 सीटें ही मिलीं, जबकि मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस ने 114 सीटों पर विजय प्राप्त की। अन्य दलों के सहयोग से कांग्रेस ने यहां सरकार बनायी व कमलनाथ राज्य के नये मुख्यमंत्री बने।

छत्तीसगढ़ : इस राज्य में भी भाजपा को कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा। भाजपा 90 विधानसभा सीटों में से महज 15 ही जीत पायी, जबकि कांग्रेस 68 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत से सत्ता में आ गयी। भूपेश बघेल राज्य के नये मुख्यमंत्री बनाये गये।

राजस्थान : इस राज्य के 199 सीटों के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस 99 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. जबकि पिछले चुनाव में 163 सीटें जीतने वाली भाजपा महज 73 सीटों पर सिमट गयी। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक फिर राज्य की सत्ता संभाली।

तेलंगाना : तेलंगाना में सत्ताधारी दल तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) ने विधानसभा चुनाव में 119 सीटों की भारी जीत दर्ज की. के चंद्रशेखर राव एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने।

मिजोरम : मिजोरम में 40 सीटों के लिए हुए चुनाव में मिजो नेशनल फ्रंट ने सर्वाधिक 26 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी को महज पांच सीटें (पिछले चुनाव में 34 सीटें) ही मिलीं।

उपचुनाव (लोकसभा)

इस वर्ष जनवरी में लोकसभा के तीन सीटों के लिए उपचुनाव हुए। इनमें राजस्थान के अजमेर और अलवर में कांग्रेस काे जीत मिली। इससे पूर्व ये दोनों सीटें भाजपा के पास थीं। वहीं पश्चिम बंगाल के उलुबेरिया में हुए उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस अपना सीट बचाने में सफल रही।

उत्तर प्रदेश की दो सीट (गोरखपुर और फुलपुर) और बिहार की एक सीट (अररिया) में इस वर्ष मार्च में उपचुनाव हुए। इस चुनाव में उत्तर प्रदेश की दोनों सीटें भाजपा की हाथ से निकल गयीं। इन सीटों पर इस बार समाजवादी के उम्मीदवार विजयी रहे। वहीं बिहार की अररिया सीट राष्ट्रीय जनता दल ने बरकरार रखी।

मई में एक बार फिर लोकसभा की चार सीटों के लिए उपचुनाव हुए, जहां उत्तर प्रदेश की कैराना सीट भाजपा के हाथों से निकल गयी। राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार यहां विजयी हुए। महाराष्ट्र की दो सीट भंडारा-गोदिया व पालघर के लिए हुए चुनाव में गोदिया सीट भाजपा नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के हाथों हार गयी, जबकि पालघर सीट बचाने में कामयाब रही। वहीं नागालैंड के नागालैंड संसदीय क्षेत्र के लिए हुए चुनाव मे नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) ने अपनी सीट नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के हाथों गंवा दी।
कर्नाटक में इस वर्ष नवंबर में तीन सीटों पर उपचुनाव हुए। बेल्लारी में जहां भाजपा, कांग्रेस के हाथों हार गयी वहीं मांड्या में जनता दल (सेक्युलर) और शिवमोगा में भाजपा अपनी सीट बचाने में कामयाब रही।

महागठबंधन

इसी वर्ष कर्नाटक चुनाव के बाद कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्षी दलों के लगभग सभी नेताओं (बीजू जनता दल के नवीन पटनायक और टीआरएस के चंद्रशेखर राव को छोड़कर) का एक साथ मंच पर आना महागठबंधन का संकेत देता है। संभावना है कि 2019 में होनेवाले लोकसभा चुनाव में भाजपा से मुकाबला करने के लिए ये सभी विपक्षी मिलकर महागठबंधन का निर्माण करेंगे ।

विधानसभा उपचुनाव

इस वर्ष मई में 10 राज्यों के 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश की नूरपुर सीट से समाजवादी पार्टी, पंजाब के शाहकोट से कांग्रेस, बिहार के जोकिहाट से राष्ट्रीय जनता दल, झारखंड के गोमिया और सिल्ली से झारखंड मुक्ति मोर्चा, केरल के चेंगन्नूर से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, महाराष्ट्र के पालुस-कादेगांव से कांग्रेस, मेघालय के अंपाती से कांग्रेस, उत्तराखंड के थराली से भाजपा, पश्चिम बंगाल के महेशतला से तृणमूल कांग्रेस और कर्नाटक के आरआर नगर से कांग्रेस के उम्मीदवार विजयी रहे।

जब राहुल ने गले लगाया  

इस साल राहुल गांधी हमलावर की मुद्रा में रहे हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री सहित दुनिया को तब चौंका दिया, जब जुलाई में सदन की कार्यवाही के दौरान अपना वक्तव्य खत्म करने के बाद वे प्रधानमंत्री मोदी के पास गये और उन्हें गले लगा लिया। 

प्रजा कुटुमी गठबंधन: तेलंगाना विधानसभा चुनाव में तेलंगाना राष्ट्र समिति से मुकाबले करने के लिए कांग्रेस व तेलुगु देशम ने सीपीएम व तेलंगाना जन समिति के साथ मिलकर 'प्रजा कुटुमी' गठबंधन बनाया।

सपा-बसपा गठबंधन : कभी एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे सपा व बसपा, भाजपा से मुकाबला करने के लिए उत्तर प्रदेश में इस वर्ष हुए लोकसभा व विधानसभा उपचुनाव में एक साथ मिलकर लड़े।

जेसीसी-बसपा गठबंधन : छत्तीसगढ़ में हाल में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में अजीत जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने मायावती की बहुजन समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया।

कमल हसन ने बनायी पार्टी 

भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता कमल हसन ने इस वर्ष अपनी राजनीतिक पार्टी शुरू की। उन्होंने अपनी पार्टी का नाम 'मक्कल नीधि मय्यम' रखा, जिसका अर्थ है लोक न्याय केंद्र पार्टी। 

शिवपाल ने छोड़ी सपा

सपा से अलगाव के बाद शिवपाल सिंह यादव ने समाजवादी सेक्युलर मोर्चा गठित करने का आह्वान किया और ‘प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया' नामक पार्टी की घोषणा की।

किसानों का प्रदर्शन

देश में कृषि संकट की स्थिति बनी हुई है और पिछले 20 सालों में तीन लाख से ज्यादा आत्महत्या कर चुके हैं। इस साल देशभर के लाखों किसानों ने मार्च महीने में मुंबई व 29-30 नवंबर को दिल्ली में राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन किया था और सरकार से कर्जमाफी, न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने तथा स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने की मांग की थी। इस मौके पर 200 से ज्यादा किसान संगठन इकट्ठा हुए थे, जिनका महागठबंधन के नेताओं ने भी समर्थन किया. सरकार ने इस साल किसानों के सवाल पर अपनी उदासीनता को लेकर आलोचना झेली है।

नाम बदलने की राजनीति

देश में शहरों, स्टेशन आदि का नाम बदलने की राजनीति सालभर जारी रही. मुगलसराय स्टेशन का नाम बदलकर दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन कर दिया गया, वहीं इलाहाबाद को प्रयागराज, फैजाबाद को अयोध्या कर दिया गया। उत्तर प्रदेश के कई ऐसे शहर हैं, जिनके नाम बदलने के कयास लग रहे हैं। भाजपा विधायक जगन प्रसाद गर्ग ने आगरा का नाम 'आगरावन' या 'अग्रवाल' करने की मांग की है, वहीं मुजफ्फरनगर का नाम लक्ष्मीनगर करने की मांग भाजपा विधायक संगीत सोम ने की है। 

महाराष्ट्र में भाजपा की सहयोगी पार्टी शिवसेना ने औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव करने की मांग की है, वहीं गुजरात सरकार अहमदाबाद का नाम कर्णावती करने पर विचार कर रही है। तेलंगाना में विधानसभा चुनाव प्रचार के बीच यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि अगर भाजपा सत्ता में आती है, तो हैदराबाद का नाम भाग्यनगर और करीमनगर का नाम करीमपुरम कर दिया जायेगा। इस बीच केंद्र सरकार अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के रॉस, नील और हैवलॉक द्वीप का नाम बदलकर क्रमशः नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप, शहीद द्वीप और स्वराज द्वीप कर रही है।

जम्मू-कश्मीर

महबूबा मुफ्ती की पीडीपी और भाजपा की गठबंधन वाली सरकार भाजपा के अलग होने से जून में टूट गयी। इसके बाद भाजपा की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि दोनों पार्टियां खंडित जनादेश में साथ आयीं थीं, लेकिन इस मौजूदा समय के आकलन के बाद महबूबा मुफ्ती की पीडीपी के साथ सरकार चलाना मुश्किल हो गया था। इसलिए भाजपा ने देश का हित चुना।

जम्मू-कश्मीर में साल का दूसरा राजनीतिक भूचाल तब देखने को मिला, जब राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने नवंबर में अचानक जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग कर दी थी, जब महबूबा मुफ्ती और सज्जाद लोन ने सरकार बनाने का दावा पेश किया था। व्हाट्सऐप पर भेजे पत्र में सज्जाद लोन ने कहा था कि उन्हें भाजपा का समर्थन हासिल है और इसके अतिरिक्त, उन्होंने 18 अन्य विधायकों के समर्थन का भी दावा किया था। 

इसी बीच महबूबा मुफ्ती ने भी राज्यपाल को सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए संपर्क करने की कोशिश की थी। महबूबा ने नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के समर्थन से 55 विधायकों का दावा किया था। जिसके बाद विधायकों की खरीद-फरोख्त का हवाला देकर राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने जम्मू-कश्मीर संविधान के अनुसार विधानसभा भंग कर दी थी।

कांटों का ताज मुझे कबुल है

खाचरियास ने कहा कि कहा कि उन्हें परिवहन दिया है इसमें रोडवेज है बड़ी चुनौती है। ये कांटों का ताज है लेकिन जनता ने उन्हें चुनकर भेजा है। इसलिए ये कांटों का ताज मुझे कबुल है
जयपुर। राजस्थान में गहलोत सरकार की फौज अब तैयार  हो गया है। मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास को परिवहन महकमा दिया गया हैं।  रोडवेज विभाग को कांटों के ताज से कम नहीं माना जाता है। प्रताप सिंह ने भी कांटों के ताज को स्वीकार किया  है।

खाचरियास ने कहा कि ये काटों का ताज है लेकिन जनता ने उन्हें चुनकर भेजा है। इसलिए उनकी सरकार की जिम्मेदारी है कि वो हर विभाग को सही से चलाकर जनता को रिलीफ दें। उन्होने कहा कि उन्हें परिवहन दिया है इसमें रोडवेज है बड़ी चुनौती है। पिछली सरकार ने रोडवेज की स्थिति बिगाड़ दी है। रोडवेज से जनता के आवागमन का साधन जुड़ा है। अगर ये मजबूत होगा तो प्राइवेट बस वाले अपनी मनमानी नहीं कर पाएंगे और उस कॉम्पिटीशन में जनता का फायदा होगा।


खाचरियावास ने कहा कि  उन्होंने रोडवेज के कर्मचारीयों से जाकर जो वादा किया था उनको पूरा करेंगे सभी को विश्वास में लेकर काम करेंगे। मुख्यमंत्री ने इतना बड़ा डिपार्टमेंट उन्हें दिया है तो कुछ सोच समझकर ही दिया है रोडवेज एक चैलेंज है लेकिन चैलेंज की उनकी आदत रही है। इसके साथ ही उन्होने कहा कि परिवहन विभाग में जो भी भ्रष्टाचार है उसे दूर करने का प्रयास करेंगे।

बुधवार, 26 दिसंबर 2018

राजस्थान में गहलोत सरकार की फौज तैयार

दो दिन की मशक्कत के बाद आखिरकार गहलोत सरकार ने आकार ले लिया है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आवास पर देर रात तक चली मैराथन बैठक के बाद मंत्रियों को विभागों का बंटवारा कर दिया गया है।

जयपुर। कांग्रेस की गहलोत सरकार ने दो दिन की मशक्कत के बाद आखिरकार आकार ले लिया है। दिल्ली में कांग्रेस हाईकमान राहुल गांधी के साथ हुई मैराथन बैठक के बाद गहलोत सरकार में बने मंत्रियों को मिलने वाले विभागों पर सहमति बन गई. जिसके बाद देर रात 2 बजे विभागों की सूची जारी कर दी गई।  सीएम से लेकर मंत्रालयों के बंटवारे तक हर जगह गहलोत का प्रभाव दिखाई दिया है।


दिल्ली में बुधवार शाम से पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ सीएम गहलोत, डिप्टी सीएम सचिन पायलट, राजस्थान प्रभारी अविनाश पांडे और के सी वेणुगोपाल की  बैठक शुरू हुई. ये बैठक देर रात तक चलती रही. पार्टी के उच्च सूत्रों ने बताया कि बैठक के दौरान विभागों के बंटवारे को लेकर कई बार सियासी पेच फंसते रहे. लेकिन, आखिरकार रात दो बजे सहमति बनने के बाद टी रविकांत के दस्तखत के बाद सूची जारी कर दी गई है. मंत्रियों को किए गए विभागों के बंटवारे के दौरान भी सीएम गहलोत का प्रभाव बखूबी देखने को मिला है। उन्होंने विभागों का बंटवारा अपने हिसाब से ही कराया है।  जिसमें सबसे महत्वपूर्ण  वित्त, कार्मिक और गृह समेत 9 विभाग उन्होंने अपने पास रखा है। जबकि, उप मुख्यमंत्री पायलट को सार्वजनिक निर्माण,पंचायती राज समेत 5 विभाग गए हैं। इसके साथ ही गहलोत ने बीडी कल्ला को बड़ी तवज्जो दी है। गहलोत के पहले कार्यकाल में चिकित्सा मंत्री रहे कल्ला को इस बार बिजली और पानी जैसे दो बड़े महकमे सौंपे गए हैं। साथ ही शांति धारीवाल को यूडीएच मंत्री बनाया गया है। यह तीसरा मौका होगा जब गहलोत सरकार में धारीवाल यूडीएच विभाग का जिम्मा संभालेंगे। 



सीएम गहलोत ने कामकाज के बंटवारे में अजमेर के पूर्व सांसद और केकड़ी विधायक डॉ रघु शर्मा को बड़ी तरजीह दी है। उन्हें चिकित्सा एवं स्वास्थय जैसा बड़ा महकमा संभलवाया गया है। साथ ही उन्हें सूचना एवं जनसंपर्क विभाग भी सौंपा गया है। रघु के पास विधि और संसदीय मामलात विभाग भी दिए गए हैं। यूपीए-2 में केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री रहे लालचंद कटारिया को गहलोत ने कृषि के साथ पशुपालन और मत्स्य विभाग की जिम्मेदारी दी है। पिछली गहलोत सरकार में सहकारिता मंत्री रहे परसादी लाल मीणा इस बार उद्योग विभाग का जिम्मा संभालेंगे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और गहलोत सरकार में दोनों बार मंत्री रहे मास्टर भंवरलाल मेघवाल को इस बार सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग के साथ आपदा राहत विभाग की जिम्मेदारी भी दी गई है।  इस बार गहलोत ने प्रदेश में राज्य मंत्रियों के महकमों को लेकर भी नई शुरुआत की है। हर राज्य मंत्री को इस बार अहम जिम्मेदारी देते हुए किसी एक विभाग का स्वतंत्र प्रभार सौपा गया है।


अब तक कैबिनेट मंत्रियों के अलावा कुछ मंत्रियों को ही स्वतंत्र प्रभारी सौपा जाता रहा है। ऐसे में गहलोत सरकार के राज्य मंत्रियों की बात करें तो सबसे बड़ी जिम्मेदारी गोविंद सिंह डोटासरा को देते हुए उन्हें प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग का स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया है। इसके साथ डोटासरा को पर्यटन और देवस्थान विभाग के राज्य मंत्री के रूप में भी जिम्मेदारी दी गई है।
गहलोत सरकार में यूं हुआ विभागों का बंटवारा ।

सीएम अशोक गहलोत 

वित्त, आबकारी, आयोजना, नीति आयोजन, कार्मिक, सामान्य प्रशासन, राजस्थान राज्य अन्वेषण ब्यूरो, सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार विभाग, गृह मामलात और न्याय विभाग।

डिप्टी सीएम सचिन पायलट
सार्वजनिक निर्माण, ग्रामीण विकास, पंचायती राज, विज्ञान व प्रौद्योगिकी और सांख्यिकी।

केबिनेट मंत्री

बीडी कल्ला
ऊर्जा, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी, भू-जल, कला, साहित्य, संस्कृति और पुरातत्व ।

शांति धारीवाल
स्वायत्त शासन, नगरीय विकास एवं आवासन, विधि एवं विधिक कार्य और विधि परामर्शी कार्यालय, संसदीय मामलात ।

परसादी लाल
उद्योग और राजकीय उपक्रम ।

मास्टर भंवरलाल मेघवाल
सामाजिक न्याय अधिकारिता, आपदा प्रबंधन एवं सहायता ।

लालचंद कटारिया
कृषि, पशुपालन एवं मत्स्य ।

रघु शर्मा
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, आयुर्वेद एवं भारतीय चिकित्सा, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं (ईएसआई) और सूचना व जनसंपर्क ।

प्रमोद जैन भाया
खान, गोपालन ।

विश्वेंद्र सिंह
पर्यटन, देवस्थान ।

हरीश चौधरी
राजस्व, उपनिवेशन, कृषि सिंचित क्षेत्रीय विकास एंव जल उपयोगिता ।

रमेश चंद मीणा
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामले ।

उदयलाल आंजना
सहकारिता, इंदिरा गांधी नहर परियोजना ।

प्रताप सिंह खाचरियावास
परिवहन, सैनिक कल्याण ।

सालेह मोहम्मद
अल्पसंख्यक मामलात, वक्फ और जन अभियोग निराकरण ।

राज्य मंत्री

गोविंद सिंह डोटासरा
शिक्षा-प्राथमिक एंव माध्यमिक शिक्षा(स्वतंत्र प्रभार), पर्यटन, देवस्थान ।

ममता भूपेश
महिला एंव बाल विकास(स्वतंत्र प्रभार), जनअभियोग निराकरण, अल्पसंख्यक मामलात, वक्फ ।

अर्जुन सिंह बामनिया
जनजाति क्षेत्रीय विकास(स्वतंत्र प्रभार), उद्योग राजकीय उपक्रम ।

भंवर सिंह भाटी
उच्च शिक्षा (स्वतंत्र प्रभार), राजस्व उपनिेवेशन कृषि सिंचित क्षेत्रीय विकास एवं जल उपयोगिता ।

सुखराम विश्नोई
वन विभाग (स्वतंत्र प्रभार), पर्यावरण विभाग (स्वतंत्र प्रभार), खाद्य-नागरिग आपूर्ति, उपभोक्ता मामले ।

अशोक चांदना
युवा मामले-खेल (स्वतंत्र प्रभार), कौशल-नियोजन व उद्यमिता (स्वतंत्र प्रभार), परिवहन, सैनिक कल्याण ।

टीकाराम जूली
श्रम विभाग (स्वतंत्र प्रभार), कारखान व बॉयलर्स निरीक्षण (स्वतंत्र प्रभार), सहकारिता, इंदिरा गांधी नहर परियोजना ।

भजनलाल जाटव
गृह रक्षा, नागरिक सुरक्षा (स्वतंत्र प्रभार), मुद्रण-लेखन सामग्री विभाग (स्वतंत्र प्रभार), कृषि विभाग, पशुपालन, मत्स्य।
राजेंद्र सिंह यादव
आयोजना जनशक्ति(स्वतंत्र प्रभार), स्टेट मोटर गैराज विभाग (स्वतंत्र प्रभार), सामाजिक न्याय व अधिकारिता विभाग, आपदा प्रबंधन व सहायता ।

डॉ. सुभाष गर्ग
तकनीकी शिक्षा विभाग (स्वतंत्र प्रभार), संस्कृत शिक्षा (स्वतंत्र प्रभार), चिकित्सा शिक्षा व स्वास्थ्य, आयुर्वेद व भारतीय चिकित्सा, चिकित्सा व स्वास्थ्य सेवाएं ईएसआइ, सूचना व जनसंपर्क ।

शिकस्त खाये हुए सेनापति को लेकर युद्ध में फिर उतरे शाह

    शिकस्त खाये हुए सेनापति को लेकर युद्ध में फिर उतरे  शाह लोकसभा चुनावों के लिए प्रकाश जावड़ेकर को राजस्थान का चुनाव प्रभारी बनाया है। 
 जयपुर । बीजेपी की ओर से लोकसभा चुनावों के लिए प्रभारी और सह प्रभारी की लिस्ट जारी कर दी गई है। इस लिस्ट में राजस्थान की कमान प्रकाश जावड़ेकर को सौंपी गई है। उनके साथ में सुधांशु त्रिवेदी को सह प्रभारी नियुक्त किया गया है।

विधानसभा चुनावों में हार के बाद भी भाजपा ने एक बार फिर से लोकसभा चुनावों के लिए प्रकाश जावड़ेकर को राजस्थान का चुनाव प्रभारी बनाया है। साथ ही सुधांशु त्रिवादी को सह प्रभारी नियुक्त किया गया है। भारतीय जनता पार्टी की ओर से 18 राज्यों के लिए लोकसभा चुनावों के प्रभारी नियुक्त किया गया । इस में आंध्र प्रदेश, असम, बिहार. छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, मणिपुर, नागालैंड, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और चंडीगढ़ के लिए चुनाव प्रभारी और सह प्रभारी नियुक्त किया है।




राजस्थान के दिग्गज नेता ओम माथुर को गुजरात का और भूपेंद्र यादव को बिहार की कमान सौंपी गई है। वहीं थावरचंद गहलोत को उत्तराखंड की जिम्मेदारी दी गई है। उत्तर प्रदेश के लिए तीन लोगों को नियुक्त किया गया है। जिसमें गोवर्धन झडापिया, दुष्यंत गौतम और नरोत्तम मिश्रा को जिम्मेदारी दी गई है। 

मंगलवार, 25 दिसंबर 2018

वर्ष 2018 में कई संवैधानिक संस्थान विवादों में रहे

वर्ष 2018 में कई संवैधानिक संस्थाएं विवादों में रहीं. विवादों के कारण समय-समय पर सरकार और इन संस्थाओं के बीच खींचतान पर सवाल भी खड़े होते रहे. कई ऐसे शिक्षण संस्थान भी अलग-अलग कारणों से खबर का हिस्सा बने रहे. विवादों के बीच यह सवाल भी उठता रहा कि सरकार को संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता का सम्मान करना चाहिए. वहीं, विशेषज्ञों के एक वर्ग ने विवादों को देश के विकास में बाधा बताया तथा सरकार व संस्थाओं के बीच सामंजस्य को सर्वोपरि कहा. ऐसे ही कुछ प्रमुख विवाद की जगजाहिर विशेष प्रस्तुति ...

सीबीआइ  

सीबीआइ का गठन साल 1941 में स्पेशल पुलिस इस्टेब्लिशमेंट के रूप में हुआ था. तब यह संस्था युद्ध और आपूर्ति विभाग के भ्रष्टाचार मामलों की जांच करने का काम करती थी. समय के साथ इसके हिस्से में जांच का दायरा बढ़ता गया और वर्ष 1963 से इसे सीबीआइ के तौर पर जाना जाने लगा. गुजरते साल यह तब खबर का हिस्सा तब बनी, जब अक्तूबर माह में सीबीआइ के डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया गया. इससे पहले इन दोनों अधिकारियों ने एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये थे. 

इसके बाद कार्रवाई करते हुए सरकार ने आलोक वर्मा की जगह नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक बना दिया था. इस मामले दौरान विपक्ष हमलावर हो गया और उसने सरकार पर दखलंदाजी का आरोप लगाया. इसके जवाब में केंद्रीय वित्त मंत्री आरोप को बकवास कहा, वहीं भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी पूर्व सीबीआइ डायरेक्टर आलोक वर्मा को ईमानदार बता दिया और कहा कि सरकार द्वारा की गयी कार्रवाई ठीक नहीं थी. 

जानकारों का मानना है कि इस विवाद और कार्रवाई से सीबीआइ की छवि अदालतों, सरकारों और आम लोगों के बीच बिगड़ी है. ऐसा पहली बार नहीं है, जब सीबीआइ विवादों का हिस्सा बना है. इंदिरा गांधी और उनके बाद की सभी सरकारों के वक्त भी सीबीआइ को सवाल उठते रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार केंद्रीय सतर्कता आयोग मामले की जांच कर रहा है.

सीवीसी

केंद्रीय सतर्कता आयोग का गठन साल 1964 में सरकारी भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के उद्देश्य से किया गया था. यह संस्थान भी गुजरते साल विवादों का हिस्सा बना रहा, जब मुख्य आयुक्त केवी चौधरी की नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी, जिसे बाद उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था.

विवाद और गहरा गया, जब विपक्ष ने सीबीआइ मामले में केंद्रीय सतर्कता आयोग पर सरकार से मिलीभगत करने का आरोप लगा दिया था. भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने भी सीवीसी पर सवाल खड़े किये थे. सरकार ने सबके आरोपों को खारिज करते हुए कहा था कि सीबीआइ की सीवीसी जांच कर रही है और सीवीसी पर न्यायपालिका अपनी नजर रखती है.

चुनाव आयोग 

लोकतंत्र की महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग की स्वायत्तता को बेहद जरूरी माना जाता है. लेकिन, देश का चुनाव आयोग (ईसी) भी उन संस्थाओं में शामिल रहा, जो इस वर्ष विवाद में बनी रहीं. केवल इसी वर्ष नहीं, हालिया कई वर्षों में चुनाव आयोग पर सवाल उठते रहे हैं, जिसमें ज्यादातर ईवीएम में गड़बड़ी से जुड़े रहे हैं. सितंबर में चुनाव आयोग ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की घोषणा थी. 

घोषणा के दिन आयोग ने प्रेस कॉन्फ्रेंस का पूर्व निर्धारित समय अचानक बदल दिया था, जिसके बाद विपक्ष ने चुनाव आयोग पर सवाल उठाया था और आरोप लगाया था कि उसी दिन प्रधानमंत्री की राजस्थान में हुई रैली की वजह से प्रेस कॉन्फ्रेंस का समय बदल लिया गया.

ऐसे ही कुछ हुआ था, जब हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव के समय चुनाव आयोग ने दोनों राज्यों में मतदान की तारीखों की घोषणा एक साथ नहीं की थी. कर्नाटक विधानसभा चुनाव के समय ऐसा भी देखा गया कि कई नेता चुनाव तारीखों की घोषणा चुनाव आयोग की प्रेस कॉन्फ्रेंस से पहले ही करते पाये गये. यह सारी बातें चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगानेवाली हैं. 

ईडी

संवैधानिक संस्था प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी गुजरते साल विवादों में रही. ईडी के एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा वित्त सचिव हसमुख अधिया को एक पत्र भेजा गया था, जिसमें भ्रष्टाचार के आरोप लगाये गये थे. 

इस पत्र को लेकर विवाद की स्थिति बन गयी थी. इस पत्र में भ्रष्टाचार के कई आरोप लगाने वाले अधिकारी राजेश्वर सिंह के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गयी थी. इसके बाद राजेश्वर सिंह ने एक और पत्र लिखकर हसमुख अधिया के खिलाफ लगाये आरोप वापस ले लिए थे. राजेश्वर सिंह पहले कई बेहद बड़े मामलों की जांच से जुड़े रहे थे. 

इस मामले में विवाद की वजह अंदरूनी हाई प्रोफाइल भ्रष्टाचार के मामले का सतह पर आ जाना माना गया था. इस दौरान वित्त सचिव को पत्र लिखने वाले अधिकारी के समर्थन में भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी खड़े हो गये थे और सरकार को चेतावनी दे दी थी. उन्होंने कहा था कि पीसी के विरुद्ध आरोप-पत्र दाखिल न हो, इसलिए ही कार्रवाई की जा रही थी. प्रवर्तन निदेशालय देश में आर्थिक कानून को लागू कराने वाला संस्थान है. इस संवैधानिक संस्थान की स्थापना ही भारत में आर्थिक अपराधों पर रोक लगाने के लिए की गयी है और यह वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधीन काम करता है. इस विवाद से प्रवर्तन निदेशालय की साख पर असर पड़ा है.

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट भी विवाद से अछूता नहीं रह गया था, जब जनवरी महीने में चार वरिष्ठ जजों द्वारा अदालत में प्रशासनिक अनियमितताओं सहित देश में न्यायपालिका की स्थिति को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस किया गया था. इन जजों में वर्तमान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई भी शामिल थे. इसके अतिरिक्त, कांग्रेस ने पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की कोशिश की थी.

आरबीआई

भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना वर्ष 1935 में की गयी थी. यह केंद्रीय बैंक भारतीय अर्थव्यवस्था के अभिभावक के तौर पर काम करता है. वर्ष 2018 के ज्यादातर समय आरबीआई गलत कारणों से खबर में बना रहा और केंद्र सरकार के साथ विवाद की स्थिति बनी रही.

पहली बार यह खींचतान तब सामने आयी, जब आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल वी आचार्य ने अपने एक सभा के दौरान कह दिया कि ‘यदि रिजर्व बैंक की स्वायत्तता कमजोर पड़ी, तो इसके विनाशकारी परिणाम देश भुगतेगा. रिजर्व बैंक के स्वायत्तता खोने से पूंजी बाजार में संकट खड़ा हो सकता है, जबकि इस बाजार से सरकार भी कर्ज लेती है, इसलिए इस बैंक की स्वतंत्रता यथावत रहनी चाहिए. 

जो सरकारें केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करतीं, उन्हें देर-सबेर वित्तीय बाजारों के गुस्से का सामना करना पड़ता है. वे आर्थिक संकट खड़ा कर देती हैं और उस दिन के लिए पछताती हैं, जब उन्होंने एक महत्वपूर्ण नियामक संस्थान की अनदेखी की.' इस बयान के बाद बहस का नया दौर शुरू हो गया और आरबीआई व सरकार के बीच मतभेद टीवी चैनलों के डिबेट का हिस्सा बनने लगे. 

जानकारों के अनुसार इस विवाद की शुरुआत सरकार द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक के अधिनियम सात से संबंधित आरबीआई को चिट्ठी लिखे जाने से हुई. ऐसा भारत के इतिहास में पहली बार हुआ हुआ था, जब किसी सरकार ने अधिनियम सात के इस्तेमाल को लेकर पहल की थी. गौरतलब है कि भारतीय रिजर्व बैंक का अधिनियम सात आरबीआई के संचालन से संबंधित है और आरबीआई का संचालन सरकार द्वारा गठित समिति को सौंपने का अधिकार प्रदान करता है. 

यह मामला और गहराया जब डिप्टी गवर्नर के बयान के प्रत्युत्तर में वित्त मंत्री ने आरबीआई की कार्य-शैली पर सवाल उठाते हुए कहा कि 'जब कांग्रेस की सरकार सत्ता में थी, उस वक्त वर्ष 2008 से 2014 के बीच बैंकों द्वारा अंधाधुंध कर्ज बांटे गये और केंद्रीय बैंक इन कर्जों को वसूलने में नाकाम रहा. इसी के चलते बैंकिग उद्योग में फंसे कर्जों यानी एनपीए की समस्या खड़ी हुई. इससे यह हुआ कि वर्ष 2008 में जो कुल बैंक ऋण 18 लाख करोड़ रुपया था, वह साल 2014 में बढ़कर 55 लाख करोड़ रुपये हो गया. 

उस समय कांग्रेस सरकार ने कहा था कि कुल एनपीए 2.5 लाख करोड़ रुपये है, लेकिन जब मोदी सरकार वर्ष 2014 में सत्ता में आयी और सरकार द्वारा एसेट क्वाॅलिटी रिव्यू किया गया, तो पता चला कि वास्तव में एनपीए 8.5 करोड़ रुपये हैं.' वहीं रिजर्व बैंक के अधिकारी स्वायत्तता के सवाल को ऊपर करते रहे और केंद्र सरकार के अधिनियम सात को लेकर किये पहल को आरबीआई के कामों व संचालन में अतिरिक्त दखल देने की कोशिश की बताते रहे. 

इस दौरान ऐसी अटकलबाजियां भी लगायी जाती रहीं कि सरकार आरबीआई के खजाने से 3.6 लाख करोड़ रुपये इस्तेमाल के लिए लेना चाहती है. हालांकि, सरकार ने बयान जारी करके इसका खंडन कर दिया. जानकारों का कहना था कि सरकार और बैंक के बीच जारी विवाद का एक पहलू राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) समर्थक अर्थशास्त्रियों को आरबीआई के निदेशक मंडल में अस्थायी सदस्यों के बतौर मनोनीत करना भी रहा. जब नवंबर महीने में आरबीआई केंद्रीय समिति की बैठक हुई, तब ऐसा माना गया कि इस विवाद को दूर कर लिया गया है. 

इस बीच दिसंबर में उर्जित पटेल ने निजी कारणों से गवर्नर पद से इस्तीफा दे दिया है और शक्तिकांत दास देश के 25वें गवर्नर के तौर पर चुने गये हैं. हालांकि, भारत के इतिहास में यह पहली बार नहीं हुआ, जब सरकार और आरबीआई के बीच मतभेद सामने आये. जवाहर लाल नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक पूर्व की लगभग सभी सरकारों के कार्यकाल के दौरान छोटे-बड़े विवाद आरबीआई के साथ खड़े हो चुके हैं

शैक्षणिक संस्थानों में भी विवाद

यूजीसी की जगह उच्च शिक्षा आयोग

इसी वर्ष जून-जुलाई में सरकार ने उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी को भंग कर इसकी जगह उच्च शिक्षा आयोग यानी एचईसी बनाने की प्रक्रिया शुरू की. इसके तहत आम और खास लोगों से सुझाव और आपत्तियां मांगी गयीं. यूजीसी को समाप्त करने के लिए सरकार ड्राफ्ट भी तैयार कर चुकी है, जिसके जरिये एक आयोग का गठन किया जाना है, जो देशभर की सभी शैक्षणिक संस्थाओं का मूल्यांकन करेगा.

इसके जरिये शैक्षणिक स्तर पर और शिक्षकों के प्रशिक्षण के साथ ही शोध पर विशेष ध्यान दिया जायेगा. हालांकि यूजीसी की तरह एचईसी को अनुदान देने का अधिकार नहीं होगा और वह सिर्फ शैक्षणिक गतिविधियों पर नजर रखेगी. अनुदान का अधिकार सरकार के पास रहेगा. हालांकि यूजीसी को समाप्त करने के सरकार के फैसले का विरोध हो रहा है. विरोध करने वालों में शिक्षण से जुड़े लोग, छात्र संघ व विपक्षी दल के नेता शामिल हैं. इन लोगों का मानना है कि सरकार का यह कदम शैक्षणिक संस्थानों को अपने नियंत्रण में करने का है.

फंड कटौती से विद्यार्थियों में नाराजगी

जेएनयू में पुस्तकालय की राशि में कमी को लेकर विद्यार्थियों में नाराजगी है. पिछले महीने ही लाइब्रेरी एडवाइजरी कमेटी की मीटिंग में बताया गया था कि लाइब्रेरी का फंड अब 8 करोड़ से घटकर 1.7 करोड़ रुपये हो गया है. हालांकि जेएनयू प्रशासन का इस संबंध में कहना है कि यह राशि विश्वविद्यालय को यूजीसी से नहीं मिल पा रही है और इस प्रकार की कमी सभी विश्वविद्यालय में की गयी है. वहीं जेएनयू छात्र संघ का कहना है कि अनुदान राशि में कटौती जेएनयू की बीआर आंबेडकर लाइब्रेरी का निजीकरण है. प्रशासन ने ई-जर्नल्स व जेस्टॉर, सेज सहित तमाम ई-सब्स्क्रिप्शन के नवीनीकरण नहीं करने का भी फैसला किया है, जिससे विद्यार्थियों की पढ़ाई का नुकसान होगा.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में विवाद 

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) में पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर को लेकर इस वर्ष मई में विवाद खड़ा हो गया. यह मामला तब सामने आया जब अलीगढ़ से बीजेपी सांसद सतीश गौतम ने एएमयू के उप कुलपति (वीसी) तारिक मंसूर को पत्र लिखकर विश्वविद्यालय कैंपस में पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के तस्वीर टंगी होने की बात पूछी थी.

सांसद के पत्र का जवाब विश्वविद्यालय के पीआरओ सैफी किदवई की तरफ से ट्विटर पर दिया गया और कहा गया कि मोहम्मद अली जिन्ना 1938 में अलीगढ़ विश्वविद्यालय आये थे, तभी छात्र संघ द्वारा कई लोगों की तरह उन्हें भी मानद उपाधि व आजीवन सदस्यता दी गयी थी. उसी समय वहां जिन्ना की तस्वीर लगायी गयी थी. सांसद द्वारा पत्र के विरोध में बड़ी संख्या में छात्रों ने प्रदर्शन किया था. इस प्रदर्शन में जामिया मिलिया इस्लामिया, जेएनयू व इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र भी शामिल हुए थे. प्रदर्शन के दौरान पुलिस व छात्रों के बीच हिंसक झड़प भी हुई थी.

जामिया पहुंचा मामला

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) में जिन्ना की तस्वीर को लेकर हुआ विवाद थमा भी नहीं था कि इसने दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय को भी अपनी चपेट में ले लिया था. दरअसल अलीगढ़ की घटना से बौखलाये बीस-पच्चीस लड़कों द्वारा जामिया विश्वविद्यालय के बाहर कथित तौर पर जिन्ना के खिलाफ नारेबाजी करने, पोस्टर लहराने व जामिया के छात्रों के खिलाफ बयानबाजी के कारण कैंपस में तनाव पैदा हो गया था. अपने ऊपर तरह-तरह के आरोप लगाये पर जामिया के छात्र नाराज हो गये थे और प्रदर्शनकारियों से लोहा लेन विश्वविद्यालय की गेट पर पहुंच गये थे, जहां दोनों पक्षों के बीच बहस के साथ-साथ हाथापाई भी हुई थी. 

बीएचयू के जूनियर डॉक्टर व विद्यार्थियों के बीच हिंसक झड़प

इस वर्ष सितंबर में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) का माहौल तब बिगड़ गया जब जूनियर डॉक्टरों व विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र के बीच हुए एक मामूली विवाद ने हिंसक रूप ले लिया था. दरअसल सुंदरलाल अस्पताल में बीएचयू के एक पूर्व छात्र जब अपने परिजन को दिखाने गये तो ड्यूटी पर तैनात जूनियर डॉक्टरों ने मरीज को भर्ती करने से मना कर दिया, जिससे छात्र व डाॅक्टरों के बीच कथित तौर पर तकरार शुरू हो गयी. 

इसके बाद जूनियर डॉक्टरों ने पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी, जिससे पूर्व छात्र की गिरफ्तारी हो गयी. इस बात की भनक जैसे ही वहां के छात्रों को लगी, उन्होंने डॉक्टरों के खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया. देखते-देखते यह मामला बिगड़ गया और डॉक्टरों व छात्रों के बीच मारपीट और पथराव की नौबत आ गयी. 

यहां तक कि पेट्रोल बम भी एक-दूसरे पर फेंके गये. देर रात शुरू हुआ यह विवाद सुबह तक चलता रहा. स्थिति को काबू में करने के लिए पुलिस को लाठियां चलानी पड़ीं. धीरे-धीरे हालात इतने ज्यादा बेकाबू हो गये कि अनहोनी से निबटने के लिए सुरक्षाबलों को तैनात करना पड़ा. हालांकि, कड़ी मशक्कत के बाद किसी तरह स्थिति को नियंत्रित कर लिया गया.

अंडमान निकोबार के तीन द्वीपों के नाम बदलेगी मोदी सरकार

अंडमान निकोबार में रॉस द्वीप का नाम ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस’, नील द्वीप का नाम ‘शहीद’ और हैवलॉक द्वीप का नाम बदलकर ‘स्वराज’ रखा जाएगा. 30 दिसंबर को पोर्ट ब्लेयर की यात्रा पर नरेंद्र मोदी करेंगे घोषणा 


  केंद्र की मोदी सरकार अंडमान निकोबार के तीन द्वीपों के नाम बदलने जा रही है. इन तीन द्वीपों के नाम रॉस, नील और हैवलॉक हैं.

 रॉस द्वीप का नाम ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस’, नील द्वीप का नाम ‘शहीद’ और हैवलॉक द्वीप का नाम बदलकर ‘स्वराज’ रखा जाएगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 30 दिसंबर को पोर्ट ब्लेयर की अपनी यात्रा पर इन द्वीपों के नाम बदलने की औपचारिक घोषणा करेंगे. गृह मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि नाम बदलने को लेकर सारी औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं.

 1943 में आज़ाद हिंद फौज के गठन की 75वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गृह मंत्री राजनाथ सिंह के साथ पोर्ट ब्लेयर में 150 मीटर ऊंचा राष्ट्रीय ध्वज लहराएंगे.

 30 दिसंबर 1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पोर्ट ब्लेयर में भारतीय झंडा फहराया था. माना जाता है कि पोर्ट ब्लेयर पहला क्षेत्र था जो ब्रिटिश शासन से मुक्त हुआ था

मार्च 2017 में भाजपा नेता एलए गणेशन ने राज्यसभा में पर्यटक स्थल हैवलॉक द्वीप का नाम बदलने की मांग की थी. गणेशन ने कहा था कि एक जगह का नाम ऐसे व्यक्ति के नाम पर रखा जाना जो 1857 में भारतीय देशभक्तों के ख़िलाफ़ था, शर्म की बात है.

मालूम हो कि हैवलॉक द्वीप का नाम ब्रिटिश अधिकारी सर हेनरी हैवलॉक के नाम पर रखा गया था. यह इस केंद्र शासित प्रदेश का सबसे बड़ा द्वीप है

राजस्थान में कांग्रेस सरकार आई, बैशाखी के साथ

         अशोक गहलोत की छवि को बिगाडेंगे तो नहीं मास्टर भंवर लाल मेघवाल ?
  सचिन पायलट के रूप में सरकार चलाने की बैशाखी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास है, तो चिंता होना लाजिमी है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इस सरकार में सचिन पायलट के खेमे से कैबिनेट मंत्री बने भंवर लाल मेघवाल, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से पिछले कार्यकाल में हुई अपनी बेईज्जती का बदला नहीं लेंगे और सचिन पायलट को अशोक गहलोत के खिलाफ भडकाते रहेंगे और मौका मिलते ही सचिन पायलट नाम की बैशाखी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से छीन लेंगे

जयपुर। जगजाहिर विशेष संवाददाता। वसुन्धरा सरकार गिरी, गिरनी ही थी, अहंकार गिरता ही है, कांग्रेस सरकार आई, बैशाखी के साथ, सचिन पायलट के नाम की बैशाखी। सचिन पायलट के करीबी रहे मास्टर भंवर लाल मेघवाल को जब कैबिनेट मंत्री पद की शपथ दिलाई, तो चौकन्ना होना लाजिमी था, क्योंकि बडबोले मास्टर भंवर लाल मेघवाल जिनको जल्दी गुस्सा आने के लिये जाना जाता है, जिनके बारे में कहा जाता है कि यह कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को आगे नहीं बढने देते, जब अशोक गहलोत सरकार के पिछले कार्यकाल में मास्टर भंवर लाल मेघवाल शिक्षा मंत्री थे और एक शिक्षक उनके पास अपनी मनपसंद जगह पर स्थानान्तरण की अर्जी लेकर उनके पास गया तो  भंवर लाल मेघवाल ने तुनक कर कहा कि पहले तुम लोग नौकरी की मिन्नतें लेकर आते हो, फिर नौकरी लग जाती है, तो अपनी मनपसंद जगह पर स्थानान्तरण की अर्जी लेकर आते हो, कहो तो तुम्हारी बीबी के घाघरे के नीचे ही स्कूल ​खुलवा दूं । मामला उछलना था, खूब उछला, मीडिया में मामला उछलने से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बडबोले गुस्सैल मास्टर भंवर लाल मेघवाल को बीच रास्ते में ही मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

अब जबकि सचिन पायलट के रूप में सरकार चलाने की बैशाखी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास है, तो चिंता होना लाजिमी है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इस सरकार में सचिन पायलट के खेमे से कैबिनेट मंत्री बने भंवर लाल मेघवाल, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से पिछले कार्यकाल में हुई अपनी बेईज्जती का बदला नहीं लेंगे और सचिन पायलट को अशोक गहलोत के खिलाफ भडकाते रहेंगे और मौका मिलते ही सचिन पायलट नाम की बैशाखी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से छीन लेंगे, लगता है नरेन्द्र मोदी और वसुन्धरा राजे का राजस्थान से उठावना किया नरेन्द्र मोदी और वसुन्धरा राजे के अहंकार ने और अशोक गहलोत सरकार का बीच रास्ते में उठावना करने में कोई कसर नहीं छोडेंगे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के कार्यकाल में मंत्री पद गंवाने वाले वर्तमान में सरकार की बैशाखी बने सचिन पायलट के खेमे के उनके चहेते कैबिनेट मंत्री मास्टर भंवर लाल मेघवाल ।

भाजपा ने ‘‘सुशासन दिवस’’ के रूप में मनाया अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिवस


जयपुर। भाजपा मुख्यालय पर भारत रत्न स्व.  अटल बिहारी वाजपेयी जी का पुष्पांजलि कार्यक्रम रखा गया। जिसमें प्रदेश संगठन महामंत्री चन्द्रशेखर, विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल, डाॅ. अरूण चतुर्वेदी, प्रदेश महामंत्री भजनलाल शर्मा, कैलाश मेघवाल, कालीचरण सराफ, प्रदेश उपाध्यक्ष राजेन्द्र गहलोत, सुनील कोठारी, प्रदेश मंत्री मुकेश दाधीच, जयपुर शहर सांसद रामचरण बोहरा, सुमन शर्मा, सुरेन्द्र पारीक, प्रदेश मीडिया प्रभारी विमल कटियार, मीडिया सम्पर्क प्रमुख आनन्द शर्मा सहित मोर्चा, प्रकोष्ठ, विभाग एवं प्रकल्पों के पदाधिकारी एवं सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने पुष्पांजलि अर्पित की।

इस अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल, प्रदेश संगठन महामंत्री चन्द्रशेखर, प्रदेश उपाध्यक्ष राजेन्द्र गहलोत ने अपने विचार रखें।




प्रदेश संगठन महामंत्री चन्द्रशेखर ने कहा कि स्व.  अटल जी विशेष व्यक्तित्व के धनी थे। वे कवि, लेखक, राजनीतिज्ञ, निश्चल मन, युग पुरूष, भारत रत्न थे। वे राष्ट्र धर्म, पांचजन्य, दैनिक स्वदेश के सम्पादक भी रहे। विपक्षी दलों के दिलों पर भी वे राज करते थे।

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश मीडिया प्रभारी विमल कटियार ने बताया कि आज भारत रत्न स्व.  अटल बिहारी वाजपेयी जी का जन्मदिवस प्रदेशभर के सभी मण्डलों में पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा ‘‘सुशासन दिवस’’ के रूप में मनाया गया।