शनिवार, 21 सितंबर 2019

धारणा की लड़ाई जीतने का शो

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव नहीं लड़ना है और न देश में इस समय लोकसभा के चुनाव होने हैं फिर क्यों अमेरिका के ह्यूस्टन में मोदी का इतना मेगा शो आयोजित हो रहा है? यह लाख टके का सवाल है जिसका जवाब आसान नहीं है। यह असल में राजनीति से ज्यादा कूटनीति का एक हिस्सा है। हालांकि इसमें राजनीति भी है। ध्यान रहे प्रधानमंत्री मोदी ने प्रवासी भारतीयों की भावनाओं और उनकी ‘देशभक्ति’ को कई बार घरेलू राजनीति में भुनाया है। इस बार उसका इस्तेमाल कूटनीति के लिए किया जा रहा है। 
भारत को असल में धारणा के स्तर पर कई लड़ाइयां जीतनी है। 
म्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को खत्म करने के बाद राज्य में पिछले डेढ़ महीन से कर्फ्यू जैसे हालात हैं। दुनिया मानवाधिकारों का मुद्दा बना रही है। खुद अमेरिका के कई संगठन चाहते हैं कि कश्मीर में पाबंदियां हटाई जाएं, नेताओं को रिहा किया जाए और लोकतंत्र बहाल हो। संयुक्त राष्ट्र संघ में भी कश्मीर का मुद्दा उठाया जा चुका है। भारत सरकार लगातार दुनिया को बता रही है कि यह भारत का अंदरूनी मामला है और इसलिए दुनिया को इसमें दखल नहीं देना चाहिए। पर ऐसा लग रहा है कि वह मैसेज दूर तक नहीं जा रहा है। तभी दुनिया की ऊर्जा राजधानी कहे जाने वाले ह्यूस्टन में एक मेगा शो करके दुनिया के सबसे प्रभावशाली भारतीयों की भीड़ जुटा कर प्रधानमंत्री को दुनिया को यह मैसेज देना है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और सरकार ने वहां जो भी किया वह अंदरूनी मामला है।
दूसरा मैसेज पाकिस्तान को आतंकवादी देश साबित करने का है। भारत हर दोपक्षीय और बहुपक्षीय मंच से ऐसा कहता रहा है। पर यहीं बात प्रधानमंत्री मोदी अमेरिकी शहर में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ खड़े होकर कहेंगे तो उसकी गूंज दूर तक सुनाई देगी। संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक से ठीक पहले होने वाले हाउडी मोदी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री आतंकवाद का मुद्दा उठाएंगे और पड़ोसी देश को इसके लिए जिम्मेदार ठहराएंगे। अमेरिकी नागरिक भी अपने को इससे जोड़ेंगे। ट्रंप को अपनी रैली में बुला कर मोदी ने यह धारणा बनवाई है कि भारत ज्यादा करीबी दोस्त है। 
तीसरा मैसेज अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के साथ तनाव और कारोबारी संबंधों में बढ़ रही दूरी पर देना है। ह्यूस्टन में मोदी की रैली में ट्रंप के शामिल होने से अपने आप यह धारणा बनेगी कि भारत और अमेरिका का दोस्ती किसी दूसरे देश के मुकाबले बेहतर है और दोनों देश अपने कारोबारी मतभेदों को भी दूर कर लेंगे। ध्यान रहे अमेरिकी उत्पादों पर भारत में लगने वाले शुल्क को लेकर ट्रंप की बार विरोध जता चुके हैं और मोदी का मजाक भी उड़ा चुके हैं। अमेरिका ने भारत को मिलने वाले तरजीही देश का दर्जा खत्म किया हुआ है। अमेरिकी सांसदों ने इसे फिर से बहाल करने की मांग की है। संभव है कि ह्यूस्टन की रैली में ट्रंप इसे फिर से बहाल करने का ऐलान कर दें। यह भारत की बड़ी जीत होगी। 
चौथा मैसेज भारत की घरेलू आर्थिकी को लेकर देना है। भारत में और दुनिया भर में यह मैसेज है कि भारत की अर्थव्यवस्था मंदी का शिकार हो गई है। तभी दुनिया के निवेशकों ने भारत से पैसा निकालना शुरू कर दिया है। ट्रंप के साथ रैली करके और ट्रंप की किसी बड़ी घोषणा के जरिए भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था के बारे में बन रही धारणा को भी बदलना है। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह एक बूस्टर डोज साबित हो सकता है।

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