प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निर्माण की बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर धमाके करने में माहिर है। पहले उन्होंने दुनिया की सबसे बड़ी सरदार पटेल की मूर्ति बनाने का ऐलान किया। फिर इंडिया गेट के पास युद्ध स्मारक बनवाया। संसद व नार्थ साउथ एवेन्यू को जगमगाया और अब इस देश के संसद भवन का नया निर्माण करने जा रहे हैं। हालांकि मौजूदा संसद भी अपने आप में आगे रही है।
मौजूदा संसद का निर्माण नई दिल्ली का निर्माण करने वाले प्रसिद्ध वास्तुकार एडविन लुटियन्स और हर्बर्ट बेकर ने 88 साल पहले किया था। इसका निर्माण कार्य 1921 में शुरु हुआ व तब 83 लाख रुपए के खर्च में यह भवन छह सालों में बनकर तैयार हुआ। तत्कालीन अंग्रेज गवर्नर-जनरल एडवर्ड फ्रेडरिक लिण्डले वुड लार्ड इरविन ने इसका उदघाटन किया था। यह गोलकार भव्य इमारत छह एकड़ क्षेत्रफल में फैली हुई है। इसकी परिधि 536 मीटर की है। इसमें 12 दरवाजें है।
इसको देखने से लगता है कि यह पारंपरिक व आधुनिकतावाद का भव्य मिश्रण है। इसका काफी बड़ा भाग वातानुकूलित है व इसमें 6 लिफ्ट लगी हुई है। इसमें संसद भवन, स्वागत का भवन, लाइब्रेरी है। इसे लाल पत्थरो से बनाया गया है। इसके साथ से जाने वाली सड़क अब बंद कर दी गई है। मगर जब तक संसद भवन पर आतंकी हमला नहीं हुआ तब तक इस सड़क से वाहन गुजरते रहे व आम जनता वहां से आ जा सकती थी।
सरकार ने 2009 में ही इसे ग्रेड-1 श्रेणी की राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर दिया था। इसके लिए तब संयुक्त संसदीय समिति स्थायी तकनीकी समितियों का गठन किया गया। इनके अध्यक्ष लोकसभा अध्यक्ष व लोकसभा के महासचिव थे। तब इन समितियों ने इसका मूल स्वरुप बरकरार रखने के लिए इसकी भीड़ भाड़ कम करने की सलाह दी थी।
हालांकि देश के पहले लोकसभा अध्यक्ष जीवी मावलंकर ने 1951 में ही इस भवन को बेहतर बनाने के प्रयास किए थे और वहां देश के राजनीतिक इतिहास को दर्शाने के प्रयास किए गए थे। संसद भवन व उसके प्रांगण में 3 प्रतिमाएं है। इनमें चंद्रगुप्त मौर्य, मोतीलाल नेहरु, इंदिरा गांधी, पंडित रविशंकर शुक्ला की मूर्तियां शामिल है। केंद्रीय कक्ष में 23 पोरट्रेट, उपनिषद, महाभारत, मनुस्मृति आदि से लिए ऋग्वेद वाक्यों को वहां पेंट से उकेरा गया है।
संसद के केंद्रीय कक्ष के गुंबद में अरबी भाषा में लिखा है कि भगवान लोगों की हालत तब तक नहीं बदलेगा जब तक कि वे खुद में परिवर्तन न लाना चाहते है। यहां के पुस्तकालय में 30 लाख पुस्तकें हैं। कंप्यूटर केंद्र है। मीडिया के लिए कक्ष है। संसदीय संग्रहालय पुरात्वत विभाग है। यहां काफी बड़ा सभागार है जिसमें 1067 लोग बैठ सकते हैं। अनेक कान्फ्रेंस हाल है व 212 कार पार्क किए जाने की व्यवस्था है।
इसे पहले हाउस आफ द पार्लियामेंट कहते थे। इसका आकार 11 वीं सदी के चौसट योगिनी मंदिर से प्रभावित है। जबकि कुछ कहते हैं कि इसका गोल होना अशोक चक्र के कारण बनाया गया है।
काफी लंबे अरसे से यह भवन छोटा लगने लगा था इसकी वजह यहां स्टाफ के लिए जगह ले लिया जाना था। समितियों के दफ्तर बनाया जाना आदि था। अतः कांग्रेस सरकार के शासनकाल में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने एक समिति का गठन किया जिसे जगह की कमी व निर्माण संबंधी कमियों का जिक्र करते हुए इसकी जगह नया संसद भवन बनाने की सलाह दी थी। इसके साथ ही इसके राष्ट्रीय धरोहरी स्वरुप को भी सुरक्षित रखा जाना जरुरी है। 5 अगस्त को राज्य सभा के सभापति व उपराष्ट्रपति एम वैंकेया नायडू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नए भवन का निर्माण करने के लिए प्रस्ताव भेजा।
सन् 1911 तक भारत की राजधानी कलकत्ता थी। वहां काउंसिल गवर्नर थे। राजधानी के रुप में दिल्ली को चुने जाने की वजह इसकी हिंदू-मुस्लिम एकता की पुरानी कहानी है। रणनीतिक तौर से भी दिल्ली अहम थी। पर आज तक मेरी समझ में यह बात नहीं आयी कि हमारे संसद भवन में स्थित बाथरुम जितने विशाल है उनका इस्तेमाल किए जाने की व्यवस्था बहुत कम है। करीब 20 गुणित 30 फुट के हाल जैसे इन शौचालय में उनका चार लोगों द्वारा ही उपयोग किए जाने का प्रावधान है। कई बार तो मुझे लगता है कि बाकी की जगह का इस्तेमाल शौचालय का इंतजार करने वाले लोगों द्वारा लाइन लगाने के लिए किया जाता है।
हमारी तुलना में अन्य देशों में संसद भवन काफी पुराने हैं। रोम की सीनेट 1871 से काम कर रही है जबकि अमेरिका की वाशिंगटन डीसी स्थित संसद कैपिटल 1789 से प्रयोग में आ रही है। हमारे शासक रहे व संसद भवन के निर्माताओं के ब्रिटेन वेस्टमिनिस्टर स्थित संसद भवन 1840 से 1870 के बीच बना था व विश्वयुद्ध के दौरान बमबारी के कारण इसे काफी नुकसान पहुंचा था। वहां सदस्यों की तुलना में संसद छोटी है व देर से आने वाले सांसदों को खड़े होकर कार्रवाई में हिस्सा लेना होता है व सूट और टाई पहन कर ही अंदर जाया जा सकता है।
वहां के प्रागंण में वाइन पीने की इजाजत है। ऐसे में यह सवाल उठाना लाजमी है कि क्या वास्तव में हमारी संसद की हालत इतनी खराब है कि उसके पुर्ननिर्माण में करोड़ों रुपए खर्च किए जा सके? मुझे लगता है कि सरकार को पैसे की चिंता नहीं है। उसकी जेब में तो पैसा मानो अम्मा द्वारा बनाए जाने वाले खाने की तरह है जो कितने भी मेहमान क्यों न आ जाए वह कम नहीं पड़ता है।

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