कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने मुख्यमंत्रियों से बात की है और उनसे कहा है कि वे पार्टी और सरकार के बीच तालमेल बनाएं और घोषणापत्र में किए गए वादों को पूरा करने के लिए काम करें। इससे पहले उन्होंने पार्टी के पदाधिकारियों की बैठक में आंदोलनकारी एजेंडा लाने और सड़क पर उतरने की अपील की थी। पर पार्टी के नेता मान रहे हैं कि न तो मुख्यमंत्री कुछ नया करने जा रहे हैं और पार्टी के पदाधिकारी कोई आंदोलन छेड़ने जा रहे हैं। सब बैठ कर किसी करिश्मे का इंतजार करेंगे या फिर भाजपा में चले जाएंगे। असल में पार्टी के पदाधिकारियों में से ज्यादातर ने अपने सक्रिय राजनीतिक जीवन में कोई आंदोलन देखा ही नहीं है और न उन्हें विपक्ष में रह कर आंदोलन करने की आदत है। इसलिए वहां तो कुछ नहीं होगा।
मुख्यमंत्री भी कुछ नया करेंगे इसमें सबको संदेह है। इसका कारण यह है कि पंजाब और पुड्डुचेरी को छोड़ कर बाकी तीन कांग्रेस शासित राज्यों में सरकार और संगठन में छत्तीस का आंकड़ा है। पार्टी आलाकमान ने ही ऐसा माहौल बना रखा है कि दोनों में तालमेल न हो। राजस्थान में सचिन पायलट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पीछे पड़े हैं तो मध्य प्रदेश में कमलनाथ के पीछे ज्योतिरादित्य सिंधिया लगे हैं। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष बदला तो यह सुनिश्चित किया कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के विरोधी को पार्टी की कमान मिले।
एक कारण यह भी है कि ज्यादातर मुख्यमंत्रियों को पता है कि वे अपनी आखिरी राजनीतिक पारी खेल रहे हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की उम्र 76 साल है। वे इसकी परवाह नहीं कर रहे हैं कि 2022 के चुनाव में क्या होगा। इसी तरह कमलनाथ भी 72 साल के हैं और उनको पता है कि वे जब तक पद पर हैं तभी तक हैं, उसके आगे उन्हें कुछ नहीं मिलने वाला है। पुड्डुचेरी के मुख्यमंत्री वी नारायण सामी भी 72 साल के हैं और अहमद पटेल की कृपा से पिछली बार वे मुख्यमंत्री बन गए। सो, उनका भी प्रयास किसी तरह से 2021 के चुनव तक सीएम बने रहने का है। ले देकर अशोक गहलोत और भूपेश बघेल से कुछ उम्मीद की जा सकती है पर वह भी इस बात पर निर्भर करेगा कि आलाकमान पार्टी संगठन में बदलाव करके उनके साथ तालमेल बनाता है या नहीं।

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