बुधवार, 11 सितंबर 2019

राजस्थान को मिला दिल्ली स्थित उदयपुर हाऊस का कब्जा

जयपुर। राजस्थान सरकार को दिल्ली स्थित उदयपुर हाऊस का कब्जा प्राप्त हो गया है। राज्य सरकार के दिल्ली में आवासीय आयुक्त कार्यालय के अधिकारियों ने हाल ही दिल्ली सरकार के अधिकारियों के साथ आवश्यक कागजी कार्यवाही कर भवन का कब्जा हासिल किया। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान एवं दिल्ली सरकारों को आपसी सहमति से विवाद निपटाने के निर्देश दिए थे। इस पर दोनों सरकारों के प्रतिनिधियों के बीच हुई बैठक में उदयपुर हाउस को राजस्थान सरकार काे साैंपने पर सहमति बनी। राज्य सरकार की तरफ से मुख्य सचिव डीबी गुप्ता बैठक में शामिल हुए थे।


दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में उदयपुर हाउस खाली कर राजस्थान को सौंपने की सहमति का हलफनामा पेश किया और दिल्ली के सिविल लाइंस क्षेत्र में स्थित बेशकीमती उदयपुर हाउस राजस्थान सरकार को वापस मिल गया। इस प्रकार काफी प्रयासों के बाद दिल्ली के सिविल लाइंस में स्थित ऐतिहासिक धरोहर उदयपुर हाउस अब राजस्थान सरकार को मिल गया है। उदयपुर हाउस आज़ादी के 72 वर्षो बाद राजस्थान सरकार का हुआ है।


उदयपुर हाउस को खाली करवाने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित राज्य सरकार की पूरी टीम ने अथक प्रयास कर सफलता हासिल की हैं। सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता डॉ मनीष सिंघवी ने मामले की पैरवी की। सिंघवी इससे पूर्व बीकानेर हाउस को केंद्र सरकार के कार्यालयों से खाली करवाने संबंधित मामले में भी पैरवी कर चुके है व दोनों ही मामलों में उन्हें ऐतिहासिक सफलता प्राप्त करने में सफलता मिली है।

दिल्ली के सिविल लाइंस क्षेत्र में स्थित करीब 12 हजार वर्गमीटर में फैले उदयपुर हाउस की अनुमानित बाजार कीमत करीब 1500 से 2000 कराेड़ रु.आँकी जाती है। आजादी से पहले उदयपुर हाउस दिल्ली में मेवाड़ के यशस्वी महाराणाओं का निवास स्थल था। आजादी के बाद यह संपत्ति केन्द्र से राजस्थान सरकार के हिस्से आ गई । कालान्तर में यहाँ दिल्ली सरकार का लेबर डिपार्टमेंट का कार्यालय खुला,जिसे राजस्थान सरकार ने दिल्ली सरकार को किराये पर दिया था। लेकिन धीरे धीरे दिल्ली सरकार इस पर ऐसे काबिज हो गईं कि उन्होंने 1965 के बाद इसका किराया देना भी बंद कर दिया। यहाँ तक कि दिल्ली सरकार के श्रम विभाग का अपना कार्यालय भवन परिसर बन जाने और उसमें श्रम विभाग के सभी कार्यालय शिफ्ट हो जाने पर भी उदयपुर हाउस को दिल्ली सरकार ने अपने कब्जे में ही रखा और इसे राजस्थान सरकार को सुपर्द नही किया। वरन अन्य कई विकल्प रख दिये।

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजस्थान सरकार की बागडोर संभालने के पश्चात अपने पहले कार्यकाल से ही उदयपुर हाउस को लेने के प्रयास शुरू कर दिये थे। अपने दूसरे कार्यकाल में भी उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से कई बार मुलाकाते की,लेकिन उदयपुर हाउस को लेकर कोई सहमति नही बन पाई। अंतत्वोगत्वा मामला कोर्ट कचहरी तक पहुंच गया। अबकी बार अपने तीसरे कार्यकाल के प्रारम्भ से ही मुख्यमंत्री गहलोत ने उदयपुर हाउस हासिल करने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया एवं आखिर में गहलोत के प्रयास रंग लाये व राज्य सरकार को उदयपुर हाउस हासिल करने में सफलता मिल ही गई।

राजस्थान सरकार को यह बेशकीमती संपत्ति हासिल होने के बाद इसे सिविल लायन्स में स्थित गुजरात सरकार के शाह ऑडिटेरिम व गुजरात समाज गेस्ट हाउस की तर्ज पर राजस्थान से प्रतिदिन अपने काम धन्धो के लिए दिल्ली आने वाले लोगो के विश्राम गृह और राजस्थानी सभागार तथा प्रदेश के हस्तशिल्पियों व हथकरघा प्रदर्शनियो का केंद्र बना कर स्थाई आमदनी व राजस्थानी समुदाय के लोगों की सहलुयित स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है।

बीकानेर हाउस व उदयपुर हाउस का पूरी तरह कब्जा मिलने के बाद राज्य सरकार अब बीकानेर हाउस से पर्यटकों की सुविधा के लिए रोडवेज की वॉल्वो व एस्केनियाँ डीलक्स बस सेवाओं को पुनः शुरू करवाने का प्रयास करेगी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंडिया गेट पर प्रदूषण नियंत्रण व पर्यावरण सुधार के संबंध में दिये गए एक फैसले के बाद इन डीलक्स बसों का संचालन बन्द हुआ था। राज्य के यातायात मन्त्री प्रतापसिंह खाचरियावास ने पिछले दिनों मोके का मुआयना कर इन बसों को पुनः शुरू करवाने के लिए एक पुनर्विचार याचिका पेश करने का भरोसा दिया था।

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