बुधवार, 18 सितंबर 2019

राष्ट्रीय जलमार्ग विधेयक: भाजपा शासित राज्यों समेत कई अन्य प्रदेशों ने उठाए थे सवाल

राज्यों के जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने की परियोजना का वित्त मंत्रालय और नीति आयोग के साथ मध्य प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार ने कड़ा विरोध किया था। कई अन्य राज्यों ने भी राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने से पहले विस्तृत अध्ययन कराने की मांग की थी।
केंद्र की मोदी सरकार के महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय जलमार्ग विधेयक का मध्य प्रदेश की तत्कालीन भाजपा सरकार ने कड़ा विरोध किया था और इस विधेयक पर सहमति नहीं जताई थी। उस समय शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।

इतनी ही नहीं 24 जुलाई 2015 की एक फाइल नोटिंग के मुताबिक कुल 25 राज्यों में सिर्फ 18 राज्यों ने ही इस विधेयक को लेकर सकारात्मक रुख जताया था। वहीं उत्तर प्रदेश समेत कुछ राज्यों ने जवाब ही नहीं दिया था।

 दस्तावेजों से पता चलता है कि केंद्र ने राज्य सरकारों से सही तरीके से विचार विमर्श के बिना उन राज्यों की नदियों पर राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है।

खास बात ये है कि केंद्र के विधायी विभाग ने पोत परिवहन मंत्रालय को सलाह दी थी कि सभी अंतरमंत्रालय और राज्यों से बातचीत के बाद ही विधेयक तैयार किया जाना चाहिए।

प्राप्त किए गए फाइल नोटिंग और पत्राचारों के मुताबिक कुल सात राज्य ही केंद्र के प्रस्ताव से पूर्णत: सहमत थे. बिहार, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, तेलंगाना जैसे कई राज्यों ने शर्त के साथ सहमति जताई थी।

भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) द्वारा 12 नवंबर 2014 को भेजे गए पत्र और प्राधिकरण के सदस्य आरपी खरे के साथ 30 जून 2015 को हुई बैठक के बाद मध्य प्रदेश के जल संसाधन मंत्रालय ने 16 जुलाई 2015 को लिखे पत्र में इस प्रस्ताव से असहमति जताई और इस काम के लिए खर्च को लेकर चिंता जाहिर की थी।


भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण केंद्र के पोत परिवहन मंत्रालय के अधीन है जो राष्ट्रीय जलमार्गों को विकसित करने का काम कर रहा है। राज्य सरकार ने प्राधिकरण से कहा था कि मध्य प्रदेश के जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करना राज्य के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।

राज्य ने कहा था, ‘मध्य प्रदेश की नदियां वर्षा आधारित या बरसाती हैं। इसलिए इन नदियों में बिना मानसून के इतना बहाव नहीं होता है कि इसमें नौपरिवहन संभव हो सके।’

मध्य प्रदेश की बेतवा, चंबल, माही, नर्मदा, टोंस और वैनगंगा नदी को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने का प्रस्ताव पेश किया गया था। राज्य सरकार ने कहा था कि इसमें से तीन नदियों- नर्मदा, चंबल और टोंस नदी का मध्य प्रदेश के साथ अंतर-राज्यीय पहलू है।

प्रदेश सरकार ने केंद्र को चेताया था कि चंबल नदी में मगरमच्छ पार्क के लिए विशेष पर्यावरणीय सुरक्षा प्राप्त है और इसके तहत इस क्षेत्र में किसी तरह के हस्तक्षेप पर प्रतिबंध है। इसलिए इस क्षेत्र में जलमार्ग बनाना संभव नहीं है।



राज्य सरकार ने यह भी कहा था कि नौपरिवहन के लिए चंबल नदी में न्यूनतम जलस्तर बनाए रखने के लिए पानी छोड़ना पड़ेगा, जिससे सिंचाई पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसके जलते आम जनता का व्यापक विरोध भी झेलना पड़ सकता है।

इन टिप्पणियों के साथ मध्य प्रदेश सरकार ने सुझाव दिया था कि अगर केंद्र सरकार जलमार्गों का निर्माण चाहती है तो वो संभाव्यता अध्ययन की फंडिंग में मदद करे और राज्य जलमार्ग के विकास में सहयोग करे।

हालांकि मध्य प्रदेश सरकार के कड़े विरोध के बाद भी केंद्र सरकार ने इन नदियों पर राष्ट्रीय जलमार्ग बनाने का विधेयक पारित कर दिया। विधेयक में टोंस नदी को छोड़कर अन्य नदियों के मध्य प्रदेश क्षेत्र को शामिल नहीं किया गया है।

आरटीआई के तहत प्राप्त दस्तावेजों के मुताबिक जम्मू कश्मीर सरकार ने किसी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने से पहले विशेषज्ञों के जरिये सर्वेक्षण और संभाव्यता अध्ययन कराने की मांग की थी।

राज्य ने 29 जून 2015 को भेजे अपने पत्र में लिखा है कि राज्य के जलमार्गों का इस्तेमाल मुख्य रूप से पर्यटन के उद्देश्य से किया जाता है। इसे यातायात के लिए प्रयोग में नहीं लाया जाता है। इसलिए किसी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने से पहले विशेषज्ञों द्वारा सर्वेक्षण कराए जाने की जरूरत है।

इसी तरह जम्मू कश्मीर की चेनाब, रावी, इंडस और झेलम नदी को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया है और इसे विकसित किया जाना है।

इसके अलावा झारखंड सरकार ने सुवर्णरेखा और खारकई नदी को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने को लेकर कहा था कि इसे लेकर अभी तक कोई विस्तृत सर्वेक्षण और जांच नहीं हुई है।

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