शेखावाटी अंचल के आखिरी छोर जहां से बीकानेर जिले की सीमा प्रारम्भ होती है मोमासर गांव बसा है। 500 वर्षों पहले मूमोजी मोयल (गांव-भोमिया) द्वारा बसाये गये इसे एतिहासिक गांव में लगभग 36 जातियों के लोग रहते हैं। जयपुर से लगभग 250 किमी. एवं बीकानेर से 100 किमी. की दूरी पर बसा यह गांव अपने इलाके में सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र हैं। 10000 से 12000 की आबादी वाले इस गांव में तीज, गणगौर, रामदेवजी, और गोगा लोक देवता के मेले प्रतिवर्ष परम्परागत रूप से मनाये जाते है जिसमें आस पड़ौस के गांव ढाणियों के हजारों लोग भाग लेते हैं। लोक देवताओं और तीज त्यौंहार से सम्बन्धित लोक-संगीत एवं परम्परागत खेलों के आयोजन होते हैं।

इस गांव के लोगों की सांस्कृतिक जागरूकता देखते ही बनती है। परम्परागत तीज त्यौंहारों, मेलों, उत्सवों को मनाने में गांव के सभी लोग तन-मन और धन से योगदान देते हैं। सन् 2011 से मोमासर गांव में जयपुर विरासत फाउण्ड़ेशन के सहयोग से ’’शेखावाटी उत्सव-मोमासर’’ का आयोजन किया जाता है जो राजस्थान में लोक-संगीत और कलाकारों का सबसे बड़ा फेस्टिवल बन चुका है। सन् 1941 से यहां प्रतिवर्ष होली के अवसर पर ’’गींदड़-उत्सव’’ का आयोजन किया जा रहा है। यह तीन दिवसीय उत्सव समस्त गांव का उत्सव है जिसमें दिन में तरह-तरह के स्वांग चंग पर फाग गाना एवं हास्य से भरपूर कार्यक्रम गा्रमीणों द्वारा पेश किये जाते है। मोमासर का गींदड़ उत्सव में गांव के हजारों युवा बच्चे एवं वृद्ध इस लोक उत्सव में भागीदारी निभाते है।
गींदड़ उत्सव का आयोजन गांव के एतिहासिक कुंए पर आयोजित किया जाता है। सारी रात चलने वाला यह विचित्र वेषभूषा (स्वांग) का उत्सव नगाड़े, ढोल, क्लारनेट एवं गांयन के तालमेल से प्रारम्भ होता है। हजारों कलाकार ढोल-नगाड़ों की ताल से ताल, डंडे मिलाते है उस पर नृत्य करते है। रात में धीरे-धीरे यह नृत्य परवान चढ़ता हुआ मध्यरात्रि के उपरान्त सभी दर्शकों को मंत्रमुग्ध हो कर देखने को बाध्य कर देता है।
विचित्र वेषभूषा और स्वांग बनने का यह उत्सव अपने आप में एक कार्निवल का रूप ले चुका है और इसमें भाग लेने और देखने देश के कौने-कौने से लोग आने लगे है इस उत्सव का आयोजन जन सहभागिता से किया जाता है।
गांव के निवासी जो अब देश-परदेश में बस गये हैं वो इस परम्परा को नियमित करने हेतू विषेष योगदान दे रहे हैं। सन् 1992 के बाद से यह उत्सव प्रतिवर्ष उतरोत्तर बड़ा और भव्य बनता जा रहा है। एक समय होली के अवसर पर शेखावाटी उत्सव के अनेक बड़े, करूबों और शहरों में आयोजित होने वाले ’’गींदड़-उत्सव’’ लगभग समाप्त प्राय या अव्यवस्थाओं और अपेक्षाओं के शिकार हो गये हैं। वहीं पर ’’गींदड़-उत्सव, मोमासर’’ अपने षानदार आयोजन जनसहभागिता कलाकारों के प्रोत्साहन से इस उत्सव के माध्यम से शेखावाटी क्षेत्र की इस परम्परा को बढ़ावा देते हुए एक विशिष्ट पहचान स्थापित की है।

इस गांव के लोगों की सांस्कृतिक जागरूकता देखते ही बनती है। परम्परागत तीज त्यौंहारों, मेलों, उत्सवों को मनाने में गांव के सभी लोग तन-मन और धन से योगदान देते हैं। सन् 2011 से मोमासर गांव में जयपुर विरासत फाउण्ड़ेशन के सहयोग से ’’शेखावाटी उत्सव-मोमासर’’ का आयोजन किया जाता है जो राजस्थान में लोक-संगीत और कलाकारों का सबसे बड़ा फेस्टिवल बन चुका है। सन् 1941 से यहां प्रतिवर्ष होली के अवसर पर ’’गींदड़-उत्सव’’ का आयोजन किया जा रहा है। यह तीन दिवसीय उत्सव समस्त गांव का उत्सव है जिसमें दिन में तरह-तरह के स्वांग चंग पर फाग गाना एवं हास्य से भरपूर कार्यक्रम गा्रमीणों द्वारा पेश किये जाते है। मोमासर का गींदड़ उत्सव में गांव के हजारों युवा बच्चे एवं वृद्ध इस लोक उत्सव में भागीदारी निभाते है।
गींदड़ उत्सव का आयोजन गांव के एतिहासिक कुंए पर आयोजित किया जाता है। सारी रात चलने वाला यह विचित्र वेषभूषा (स्वांग) का उत्सव नगाड़े, ढोल, क्लारनेट एवं गांयन के तालमेल से प्रारम्भ होता है। हजारों कलाकार ढोल-नगाड़ों की ताल से ताल, डंडे मिलाते है उस पर नृत्य करते है। रात में धीरे-धीरे यह नृत्य परवान चढ़ता हुआ मध्यरात्रि के उपरान्त सभी दर्शकों को मंत्रमुग्ध हो कर देखने को बाध्य कर देता है।
विचित्र वेषभूषा और स्वांग बनने का यह उत्सव अपने आप में एक कार्निवल का रूप ले चुका है और इसमें भाग लेने और देखने देश के कौने-कौने से लोग आने लगे है इस उत्सव का आयोजन जन सहभागिता से किया जाता है।
गांव के निवासी जो अब देश-परदेश में बस गये हैं वो इस परम्परा को नियमित करने हेतू विषेष योगदान दे रहे हैं। सन् 1992 के बाद से यह उत्सव प्रतिवर्ष उतरोत्तर बड़ा और भव्य बनता जा रहा है। एक समय होली के अवसर पर शेखावाटी उत्सव के अनेक बड़े, करूबों और शहरों में आयोजित होने वाले ’’गींदड़-उत्सव’’ लगभग समाप्त प्राय या अव्यवस्थाओं और अपेक्षाओं के शिकार हो गये हैं। वहीं पर ’’गींदड़-उत्सव, मोमासर’’ अपने षानदार आयोजन जनसहभागिता कलाकारों के प्रोत्साहन से इस उत्सव के माध्यम से शेखावाटी क्षेत्र की इस परम्परा को बढ़ावा देते हुए एक विशिष्ट पहचान स्थापित की है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें