शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018

लोकतंत्र के मंदिर विधानसभा का माखौल उड़ाते हैं हमारे नेता

विधनसभा में  14वीं विधानसभा का यह 10वां सत्र है। वक्त के साथ-साथ विधानसभा में बैठकों की संख्या में कमी आती गई। पिछले 25 सालों की बात करें तो हर सरकार बैठक बुलाने से भागती रही। हर बार सरकार तो बदली लेकिन नहीं बढ़ी तो वो रही बैठकों की संख्या।

इसे सरकारों की उदासीनता कहें या फिर विधायकों के सवालों का डर, हर सरकार विधानसभा सत्र की बैठकें बुलाने में कंजूसी ही दिखाती है। दिसम्बर 1993 में बनी भैरो सिंह शेखावत सरकार से आज 2018 में अपने अतिम वर्ष में प्रवेश कर चुकी वसुंधरा राजे सरकार तक 25 सालों में विधानसभा से सरकारें भागती ही दिखायी दी है।

परम्परा थी कि हो 300 बैठकें, लेकिन सरकारें कर रही है 140
राजस्थान में विधानसभा सत्र बुलाने के बाद ये परम्परा रही थी कि हर साल कम से कम 60 बैठकें विधानसभा में होनी चाहिए लेकिन कोई भी सरकार इस परम्परा का निर्वहन नही कर रही है। इन 25 सालों में 3 बार प्रदेश में भाजपा की सरकार रही है तो दो बार कांग्रेस की लेकिन 25 सालों में केवल सरकारें ही बदली है सरकारों का रवैया एक जैसा ही रहा है।
भैरोसिंह शेखावत वाली सरकार की 10वीं विधानसभा में 5 सालों में 141 बैठकें 
कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार की 11वीं विधानसभा में 5 सालों में 143 बैठकें 
भाजपा की वसुंधरा राजे की 12वीं विधानसभा में 140 बैठकें
कांग्रेस के अशोक गहलोत की 13वीं विधानसभा में तो बैठकों का आंकडा गिरकर 119 बैठकों तक चला गया।
वर्तमान में वसुंधरा सरकार की 14वीं विधानसभा चल रही है। लेकिन विधानसभा के प्रति उदासीनता में सरकार के रवैये में कोई बदलाव नही देखा गया वसुन्धरा सरकार अपने अतिंम बजट सत्र में प्रवेश कर चुकी है और आज तक 118 बैठकें विधानसभा में हुई हैं।

ये है विधानसभा से भागने की वजह सरकारों की
दरअसल विधायकों से सरकार की दूरी हमेशा बनी रहती है। सत्ताधारी दल के विधायक तो किसी तरह से सरकार से अपना काम निकलवा लेतें हैं लेकिन विपक्षी पार्टीयों के विधायक विधानसभा के पटल पर अपनी बात रखकर ही काम करवा सकतें है। ऐसे में विधानसभा के सत्र में सभी विधायक अपने काम और अपने क्षेत्रों के विकास की बात खुलकर रखते है। विधानसभा पटल पर अगर कोई बात रखी जाती है तो सरकार को उसका जवाब देना होता है ऐसे में सरकार नहीं चाहती है कि ज्यादा ​बैठकें विधानसभा में हो और उनकी सरकार को ज्यादा सवालों के जवाब देने पड़ें।राजस्थान में जितनी भी सरकारे रहीं उन सभी ने हर बार सिर्फ लोकतंत्र का मजाक उड़ाया। विधानसभा में परंपरा थी कि साल भर में कम से कम 60 बैठकें तो होनी चाहिए। लेकिन सरकारें इसकी आधी भी बैठकें नहीं करती हैं। इसकी कई वजह है।

विधानसभा में बजट सत्र  है। 14वीं विधानसभा का यह 10वां सत्र है। वक्त के साथ-साथ विधानसभा में बैठकों की संख्या में कमी आती गई। पिछले 25 सालों की बात करें तो हर सरकार बैठक बुलाने से भागती रही। हर बार सरकार तो बदली लेकिन नहीं बढ़ी तो वो रही बैठकों की संख्या।

साल में होनी चाहिए 60 बैठकें होती हैं मात्र 28
राजस्थान में विधानसभा सत्र बुलाने के बाद ये परम्परा रही थी कि हर साल कम से कम 60 बैठकें विधानसभा में होनी चाहिए। लेकिन कोई भी सरकार इस परम्परा का निर्वहन नहीं कर रही है। और औसतन साल भर में करीब 28 बैठकें ही बुलाई जाती हैं।
भैरोसिंह शेखावत वाली सरकार की 10वीं विधानसभा में 5 सालों में 141 बैठक यानि कि हर साल करीब 28 बैठक
कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार की 11वीं विधानसभा में 5 सालों में 143 बैठक यानि कि हर साल करीब 28 बैठक
भाजपा की वसुंधरा राजे की 12वीं विधानसभा में करीब 28 बैठकों के हिसाब से 5 साल में 140 बैठक
कांग्रेस के अशोक गहलोत की 13वीं विधानसभा में तो बैठकों की संख्या 23 के करीब पहुंची औऱ पूरे 5 साल में सिर्फ 119 बैठकें हुई
वर्तमान में वसुंधरा सरकार की 14वीं विधानसभा चल रही है। लेकिन विधानसभा के प्रति उदासीनता में सरकार के रवैये में कोई बदलाव नहीं देखा गया वसुंधरा सरकार अपने अतिंम बजट सत्र में प्रवेश कर चुकी है और आज तक 118 बैठकें विधानसभा में हुई हैं। यानि कि साल के हिसाब से देखें तो ये भी 23-24 के ही करीब है।
आखिर बैठकों से क्यों भागती हैं सरकारें
दरअसल विधायकों से सरकार की दूरी हमेशा बनी रहती है। सत्ताधारी दल के विधायक तो किसी तरह से सरकार से अपना काम निकलवा लेतें हैं।
लेकिन विपक्षी पार्टियों के विधायक विधानसभा के पटल पर अपनी बात रखकर ही काम करवा सकतें है।
ऐसे में विधानसभा के सत्र में सभी विधायक अपने काम और अपने क्षेत्रों के विकास की बात खुलकर रखते है।
विधानसभा पटल पर अगर कोई बात रखी जाती है तो सरकार को उसका जवाब देना होता है।
ऐसे में सरकार नहीं चाहती है कि ज्यादा ​बैठकें विधानसभा में हो और उनकी सरकार को ज्यादा सवालों के जवाब देने पड़ें।

कुल मिलाकर सरकारे सिर्फ सवालों का जवाब देने से बचने के लिए बैठकों की संख्या में कमी कर रही है। इसका मतलब है कि सरकारें जवाब देने से बचना चाहती है। लोकतंत्र में सरकार को विपक्ष का जवाब देना अनिवार्य है। ऐसा न कर सरकारें लोकतंत्र के 'मंदिर' यानि कि विधानसभा का माखौल बना रही हैं। 

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