बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

विधानसभा में हुई सर्वश्रेष्ठ विधायकों की घोषणा

राज्य विधानसभा में
तेरहवीं और चौदहवीं विधानसभा के लिए सर्वश्रेष्ठ विधायक के नामों की घोषणा की गई। विधानसभा उपाध्यक्ष राव राजेन्द्र सिंह ने इस सदन में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने पर वर्ष 2009 के लिए राजेंद्र राठौड़, 2010 के लिए गुलाबचंद कटारिया, 2011 के लिए अमराराम, 2012 के लिए सूर्यकांत व्यास, साल 2013 के लिए राव राजेंद्र सिंह को सर्वश्रेष्ठ विधायक घोषित किया गया। इसके अलावा 14वीं विधानसभा के
साल 2014 के लिए माणिक चंद सुराणा, 2015 के लिए जोगाराम पटेल, 2016 के लिए गोविंद सिंह डोटासरा, 2017 के लिए बृजेंद्र ओला और 2018 में अभिषेक मटोरिया को सर्वश्रेष्ठ विधायक चुना गया है। इसके साथ ही साल 2003-04 के लिए शांतिलाल चपलोत और साल 2007 के लिए भरत सिंह को सर्वश्रेष्ठ विधायक घोषित किया गया है।
इन सभी विधायकों को आगामी 6 मार्च को विधानसभा में आयोजित सम्मान समारोह में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल प्रशस्ती पत्र देकर सम्मानित करेंगे। 6 मार्च को विधानसभा की कार्यवाही स्थगित होने के तत्काल बाद होगा इस समारोह का आयोजन किया जाएगा। 

'संघ मुख्यालय की इच्छा पर बिहार पुलिस के नए डीजीपी केएस द्विवेदी को नियुक्ति'

आईपीएस अधिकारी कृष्ण स्वरूप द्विवेदी को बिहार का अगला पुलिस महानिदेशक यानी डीजीपी बनाए जाने पर विपक्ष की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है.

नीतीश सरकार ने फ़ैसला किया है कि कृष्ण स्वरूप द्विवेदी आज सेवानिवृत हो रहे पुलिस महानिदेशक पीके ठाकुर का स्थान लेंगे.

केएस द्विवेदी के कार्यकाल के दौरान 1989 के अक्टूबर में भागलपुर में सांप्रदायिक दंगे भड़के थे. भागलपुर के एसपी के रूप में उनका कार्यकाल विवादित रहा था.

1984 बैच के बिहार कैडर के आईपीएस अधिकारी द्विवेदी मूल रूप से उत्तर प्रदेश से हैं. उनका गृह ज़िला जालौन है.

वे अभी बिहार में डीजी (ट्रेनिंग) के पद पर तैनात हैं. द्विवेदी अगले साल 31 जनवरी को रिटायर होंगे.


'संघ मुख्यालय की इच्छा पर नियुक्ति'
उनकी नियुक्ति पर अपनी प्रतिक्रिया में राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा ने
कहा, "केएस द्विवेदी का डीजीपी नियुक्त होना अपने आप में इस बात की दोबारा पुष्टि करता है कि सरकार के महत्वपूर्ण नीतिगत और प्रशासनिक निर्णयों में नीतीश कुमार या जदयू की अब कोई भूमिका नहीं रही है."

"उन्हें अब वो ही करना पड़ रहा है जो नागपुर के संघ मुख्यालय की इच्छा होगी. तत्कालीन एसपी के रूप में 1989 के बर्बर भागलपुर दंगों के दौरान इनकी भूमिका किसी से छिपी नहीं है. उस समय के समाचार पत्रों और मीडिया रिपोर्ट्स देखें तो स्पष्ट होता है कि क्यों तात्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने इन्हें वहां से हटाने का निर्णय किया था."

"संघ की दक्षिणपंथी राजनीतिक विचारधारा से इनकी निकटता इनकी कार्यशैली में तब से लेकर अब तक साफ़ है. इस महत्वपूर्ण पद पर इनकी नियुक्ति हाशिए के लोगों और अल्पसंख्यक समाज में एक डर और ख़ौफ़ की भावना को जन्म देगी."

विपक्ष के आरोपों के जवाब में जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता नीरज कुमार विपक्ष से यह सवाल करते हैं, "अगर ऐसी कोई बात थी तो राष्ट्रीय जनता दल की सरकारों ने उन पर कार्रवाई क्यों नहीं की."

"उनकी नियुक्ति वरीयता के आधार पर हुई है. इसे दंगों से जोड़कर देखना महज़ एक राजनीतिक बयान है और कुछ नहीं. नीतीश कुमार की सरकार ने सांप्रदायिक उन्माद और क़ानून के राज के सवाल पर न कभी राजनीतिक समझौता किया है और न करेगी."


आयोग ने माना ज़िम्मेदार
सन 1989 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा के कार्यकाल में यह दंगा हुआ था. इस घटना के बाद उन्हें मुख्यमंत्री पद भी छोड़ना पड़ना.

इसके बाद कांग्रेस ने डॉक्टर जगन्नाथ मिश्र को राज्य की बागडोर सौंपी. उन्होंने भागलपुर दंगे की जांच के लिए जस्टिस रामानंद प्रसाद कमीशन का गठन किया.

कुछ ही महीनों बाद सरकार बदल गई. लालू प्रसाद की सरकार ने इस आयोग को तीन सदस्यीय बना दिया.

जस्टिस शम्सुल हसन और आरसीपी सिन्हा भी आयोग के सदस्य बनाए गए. साल 1995 में अध्यक्ष और सदस्यों द्वारा अलग-अलग रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी.

इसी साल मॉनसून सत्र में तत्कालीन लालू सरकार ने इसे विधान परिषद में पेश भी किया.

जिस दिन यह रिपोर्ट विधान परिषद में पेश की गई उस दिन वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद वहां मौजूद थे.

वह बताते हैं, "सरकार ने केवल सदस्यों वाली रिपोर्ट ही स्वीकार की थी. जस्टिस शम्सुल हसन और आरसीपी सिन्हा की रिपोर्ट में भागलपुर के तत्कालीन एसपी को भी दंगों के लिए ज़िम्मेदार माना गया था."


समर्थन में निकला था जुलूस
भागलपुर दंगा भारत के सबसे बड़े और चर्चित दंगों में से एक है. इस दंगे में सरकारी आंकड़ों के अनुसार भागलपुर शहर और तत्कालीन भागलपुर ज़िले के 18 प्रखंडों के 194 गांवों के ग्यारह सौ से ज़्यादा लोग मारे गए थे.

सरकारी दस्तावेज़ों के मुताबिक जहां दो महीने से अधिक समय तक यह दंगा चला था वहीं सामाजिक कार्यकर्ताओं और दंगा पीड़ितों के मुताबिक लगभग छह महीने तक दंगे होते रहे थे.

केंद्रीय शांति सद्भावना समिति भागलपुर दंगों से लेकर अब तक दंगा पीड़ितों के न्याय, पुनर्वास के साथ-साथ सामाजिक सदभाव के लिए काम कर रही है.

इससे जुड़े भागलपुर के डॉक्टर फ़ारुख़ अली बताते हैं, "दंगे शुरू होने के ठीक बाद सरकार ने द्विवेदी को बदलने का फैसला कर लिया था. इसी बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी भागलपुर पहुंचे. तब इनके तबादले की ख़बर के विरोध में कर्फ़्यू के बावजूद जुलूस निकाला गया था और तबादला रोकना पड़ा था."

पूरे लालू-राबड़ी शासन काल के दौरान केएस द्विवेदी को कोई अहम ज़िम्मेदारी नहीं दी गई.

साल 1999 में केंद्र में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तो उसी साल फरवरी-मार्च में क़रीब एक महीने के लिए बिहार में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था.

इस दौरान केएस द्विवेदी को मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले के एसपी की अहम ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी.

जानकार इसे भारतीय जनता पार्टी से केएस द्विवेदी की नज़दीकी के रूप में देखते हैं.


एक अन्य आयोग ने नहीं माना दोषी
साल 2005 में जब नीतीश सरकार बनी तो उसने भागलपुर दंगों की दोबारा जांच के लिए 26 फरवरी 2006 को जस्टिस एनएन सिंह आयोग का गठन किया.

आयोग ने 28 अगस्त 2007 को अपनी अंतरिम रिपोर्ट सौंपी. इसी आधार पर बंद किए गए करीब तीन दर्जन मामलों को फिर से खोला गया.

साथ ही अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर ही दंगे में मारे गए लोगों के आश्रितों के लिए बिहार सरकार द्वारा पेंशन योजना शुरू की गई थी.

साथ ही क्षति-पूर्ति मुआवज़ा भी दिया गया था.

यह मुआवज़ा उसी तर्ज पर दिया गया जिस आधार पर केंद्र की तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार द्वारा सिख दंगों के पीड़ितों के लिए मुआवज़े की घोषणा की थी.

2015 के मॉनसून सत्र के आखिरी दिन 7 अगस्त को नीतीश सरकार ने इस एक सदस्यीय भागलपुर सांप्रदायिक दंगा न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट को सदन में रखा था.

रिपोर्ट में 22 मामलों की जांच करते हुए पुलिस अधिकारियों की जवाबदेही तय की गई है. इनमें भारतीय पुलिस सेवा के कई अधिकारी शामिल हैं.

आयोग ने जिन आईपीएस अधिकारियों को दोषी पाया, उनमें भागलपुर ज़िले के तत्कालीन आला पुलिस अधिकारी वी नारायणन, आरके मिश्रा और शीलवर्द्धन सिंह शामिल हैं.




अभी केएस द्विवेदी की छवि पुलिस महकमे के एक ईमानदार, कर्मठ और कड़क अफ़सर की है.

अभी उनके पास केंद्रीय चयन परिषद (सिपाही भर्ती) के अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी भी है.

पुलिस महकमे पर क़रीबी नजर रखने वाले बताते हैं कि इनके कार्यकाल में पुलिस बहाली प्रक्रिया को पहले के मुकाबले बहुत ही पारदर्शी और प्रभावी ढंग से अंजाम दिया गया है.

साथ ही इनके करियर में एक अहम कामयाबी तब दर्ज हुई थी जब 2011 में ये पुलिस महानिरीक्षक (ऑपरेशन) के पद पर थे.

जब बिहार पुलिस ने सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति के तीन सदस्यों को गिरफ्तार किया था.

ये तीन नक्सली नेता थे- पालेंदु शेखर मुखर्जी, विजय कुमार आर्य और वाराणसी सुब्रमण्यम.

कांग्रेस राज्यों में राज्यसभा की सीटें गंवा रही है

कांग्रेस ज्यादातर राज्यों में राज्यसभा की सीटें गंवा रही है। इक्का दुक्का राज्यों में उसको फायदा होगा और बहुत थोड़ी सी जगहों पर वह अपनी सीट बचा पाएगी। पर कांग्रेस में राज्यसभा के लिए भारी होड़ मची है। हर सीट पर कम से कम तीन दावेदार बताए जा रहे हैं। मध्य प्रदेश की एक सीट पर चार दावेदार हैं। झारखंड में अभी तय नहीं हुआ है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा कांग्रेस के लिए सीट छोड़ रही है या नहीं पर तीन दावेदार ताल ठोंक कर रहे हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस की एक सीट के आधा दर्जन दावेदार हैं तो गुजरात में भी कांग्रेस के सारे बड़े नेता राज्यसभा सीट की दावेदारी कर रहे हैं।

झारखंड में कांग्रेस को इस बार उम्मीद है कि जेएमएम उसके लिए सीट छोड़ेगी। इस बारे में जल्दी ही फैसला होगा। पर उससे पहले कांग्रेस की ओर से चार दावेदार खड़े हो गए हैं। अप्रैल में रिटायर हो रहे प्रदीप बालमुचू स्वाभाविक रूप से दावेदार हैं तो उनके करीबी रहे पूर्व राज्यसभा सांसद धीरज प्रसाद साहू भी दावेदार हैं। उनको सबसे मजबूत माना जा रहा है। पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय और अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष रहे पूर्व सांसद रामेश्वर उरांव को भी उनके समर्थक दावेदार बनाए हुए हैं। उनका कहना है कि राज्य में चल रही आदिवासी राजनीति को देखते हुए कांग्रेस को गैर आदिवासी चेहरा नहीं चाहिए।

इसी तरह बिहार में कांग्रेस अपने 27 विधायकों और राजद के बचे हुए नौ-दस वोट के सहारे एक सीट जीत सकती है। हालांकि यह भी तब होगा, जब कांग्रेस एकजुट रहे। पर उससे पहले ही चार नेताओं के नाम की चर्चा शुरू हो गई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉक्टर शकील अहमद और लोकसभा की पूर्व स्पीकर मीरा कुमार को सबसे मजबूत दावेदार बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इनमें से ही किसी को सीट मिलेगी। पूर्व केंद्रीय मंत्री अखिलेश प्रसाद सिंह भी इस एक सीट के दावेदारों में शामिल हैं।

मध्य प्रदेश में कांग्रेस के सत्यव्रत चतुर्वेदी रिटायर हो रहे हैं और मौजूदा गणित के हिसाब से भाजपा को यह एक सीट वापस मिल जाएगी। इस एक सीट के लिए चार उम्मीदवार हाथ पैर मार रहे हैं। बताया जा रहा है कि चतुर्वेदी के अलावा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी इस सीट के दावेदार हैं तो प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव भी पूरा जोर लगा रहे हैं। उनके अलावा महिला कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष शोभा ओझा भी दावेदार हैं। कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश से रिटायर हो रहे प्रमोद तिवारी भी मध्य प्रदेश की एक सीट पर जोर लगा रहे हैं।

मुस्लिम महिलाओं की नासमझी है -जैन मुनि तरूण सागर

जयपुर। केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा में पारित किए जा चुके तीन तलाक बिल का विरोध तेज हो गया है।  मुस्लिम समुदाय की महिलाओं ने तीन तलाक बिल के विरोध में राजधानी जयपुर में खामोश जुलूस निकाला। वहीं जैन मुनि तरूण सागर ने इस मुस्लिम महिलाओं की नासमझी करार दिया है।

ट्रिपल तलाक बिल के विरोध में राजधानी के चार दरवाजा क्षेत्र से मोती डूंगरी रोड स्थित मुस्लिम मुसाफिर खाने तक खामोश जुलूस निकाला गया। जिसमें हजारों की संख्या में मुस्लिम महिलाओं ने हाथों में तख्तियां लेकर बिल को वापस लेने की मांग की।


आपको बता दें कि इस मामले पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का कहना है कि ट्रिपल तलाक बिल की धारा-2 के मुताबिक एक साथ तीन तलाक नहीं होगा। जबकि धारा-3 में तीन तलाक पर तीन साल की सजा का प्रावधान है। ऐसे में मुस्लिम महिलाओं का कहना है कि पति के जेल जाने के बाद तीन साल तक बीवी और बच्चों का खर्चा कौन उठाएगा।

वहीं महिलाओं का विरोध इस बात का भी है कि दुनिया में कानून बनाने से पहले लोगों की राय ली जाती है, लेकिन ट्रिपल तलाक बिल के मामले में समाज के विरोध को भी दरकिनार कर दिया है। जुलूस के हुजूम को देखते हुए जयपुर पुलिस ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजामात किए।



वहीं जैन मुनि तरूण सागर ने​ ट्रिपल तलाक बिल को सही बताते हुए कहा कि ट्रिपल तलाक मुस्लिम महिलाओं के साथ अत्याचार है और जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं वो महिला विरोधी हैं। उन्होंने मुस्लिम महिलाओं की ओर से निकाले गए खामोश जुलूस पर कहा कि मुस्लिम महिलाओं ने दिमाग से काम नहीं लिया है। कुछ कट्टरपंथी लोग महिलाओं को बर्गलाने का काम कर रही है।जबकि सरकार का ये बिल मुस्लिम महिलाओं के हित में है।

अचानक अशोक गहलोत पहली बार बजट सत्र में विधानसभा पहुंचे और सबको चौंका दिया

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आज पहली बार बजट सत्र में विधानसभा पहुंचे....सदन में पहुंचते ही कांग्रेस विधायकों के साथ कुछ सत्ता पक्ष के सदस्यों ने भी मेज थपथपाकर गहलोत का अभिवादन किया....संसदीय कार्यमंत्री राजेन्द्र राठौड़ ने गहलोत के आते ही कहा कि आज सदन में बदली से चांद निकला है.....इस पर भाजपा विधायक घनश्याम तिवाड़ी ने कहा कि चांद तो दो प्रकार के होते हैं एक दूज का औऱ दूसरा चौथ का चांद.....फिर गहलोत ने बोलते हुए कहा कि मेरी गैरमूजौदगी में आपने मुझे याद किया लिहाजा आपकी बात की सम्मान के लिए मैं आया हूं.....गहलोत ने कहा कि हमारे विधायकों ने आपकी धज्जियां उड़ा दी है...बाद में गहलोत से नेता प्रतिपक्ष डूडी के कमरे में घनश्याम तिवाड़ी ने चर्चा की....तिवाड़ी की गहलोत से मंत्रणा के कईं मायने निकाले जा रहे है....बाहर मीडिया से बातचीत करते हुए गहलोत ने राजे औऱ मोदी सरकार पर जमकर हमला बोला....गहलोत ने बजट में की गई घोषणाओं को महज ख्याली पुलाव बताया...वहीं गहलोत ने कार्ति चिदरम्ब की गिरफ्तारी को गलत बताया......वहीं गहलोत ने मोदी के झुंझुनूं के दौरे और बेटी बचाओ बेटी बढाओ अभियान को महज बातें करने का हथकंडा करार दिया...


लगातार सदन की कार्यवाही से दूरी बनाए हुए पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के दिग्गज नेता अशोक गहलोत आज आखिरकार अपनी हाजिरी देने विधानसभा पहुंचे।

राजस्थान विधानसभा में सत्ता पक्ष ने इस बार लगातार पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सदन से दूरी के चलते विपक्ष को आड़े हाथों लिया है। चूंकि हर बार विधानसभा सत्र में अशोक गहलोत अक्सर नजर आते रहे हैं। लेकिन इस बार गहलोत ​बजट सत्र में दिखायी नही दिए।



आखिरकार आज अचानक अशोक गहलोत विधानसभा पहुच गये और सबको चौंका दिया। इस दौरान गहलोत ने औपचारिक रूप से तो कोई बात नही ​की लेकिन इतना जरूर कहा कि बार-बार सदन में यह बात उठ रही थी कि मैं सदन में क्यों नही आ रहा, तो आज आ गया।

बीते कई दिनों से अशोक गहलोत ​बीमार भी रहे इसके अलावा लगातार दौरों के चलते वो सदन में नही आ सके, लेकिन आज गहलोत ने देर से ही सही लेकिन विधानसभा में पहुंचकर अपनी हाजिरी लगवाई।



दरअसल, पांच फरवरी से शुरू हुए विधानसभा के बजज सत्र में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सदन की की कार्यवाही से दूरी बना रखी थी। वहीं उपचुनाव में जीत के बाद कांग्रेस के कई नेता चाहे वो नेता प्रतिपक्ष हों या फिर नव निर्वाचित विधायक, सदन की कार्यवाही से दूर ही रहे।

धूमधाम से सम्‍पन्‍न हुआ श्री देवाय एक्‍यूप्रेशर चि‍कित्‍सा एवं अनुसंधान केन्‍द्र का शिविर


जयपुर । श्री देवाय एक्‍यूप्रेशर चि‍कित्‍सा एवं अनुसंधान केन्‍द्र का 49वॉं स्‍थापना दिवस बुधवार को गोपाल जी का रास्‍ता, खो वालों का चौक स्थित केन्‍द्र पर आयोजित किया गया। इस अवसर पर नि:शुल्‍क एक्‍यूप्रेशर चिकित्‍सा शिविर का भी आयोजन किया गया जिसमें बडी संख्‍या में रोगियों की चिकित्‍सा की गई ।

      प्रारम्‍भ में केन्‍द्र के संस्‍थापक एवं मुख्‍य चिकित्‍सक एक्‍यूप्रेशर रत्‍न शिरोमणि डा. दिग्‍विजय कोठारी ने फीता काट कर चिकित्‍सा शिविर का विविधवत उद्घाटन किया । डा. कोठारी ने बताया कि केन्‍द्र पिछले 48 वर्षों से एक्‍युप्रेशर चिकित्‍सा के क्षेत्र में अपनी सेवाऐं दे रहा है । गोल्‍ड मेडल से सम्‍मानित डा. कोठारी ने बताया कि इस दौरान उन्‍होंने असाध्‍य रोगों की एक्‍यूप्रेशर द्वारा सफल चिकित्‍सा की है । केन्‍द्र से जुडी डा. चन्‍द्रकान्‍ता गुप्‍ता ने बताया कि अब तक केन्‍द्र पर विभिन्‍न रोगों से पीडित लाखों रोगियों का सफल ईलाज किया जा चुका है ।

      इस चिकित्‍सा शिविर में डा. नीलू लालवानी, डा. शिल्‍पा गुप्‍ता, डा. अशोक चौकडीवाल, डा. अतुल कुमार पंड्या ने अपनी सेवाऐं दी । इस अवसर पर दिनेश गुप्‍ता, अर्पित गुप्‍ता, नवल खंडेलवाल, अजय जैन एवं श्रीमती छाया पंड्या आदि भी उपस्थित रहे ।


मंगलवार, 27 फ़रवरी 2018

शेखावाटी उत्‍सव मोमासर केे आयोजन से परम्‍परा को मिलती है एक विशिष्‍ट पहचान


शेखावाटी अंचल के आखिरी छोर जहां से बीकानेर जिले की सीमा प्रारम्भ होती है मोमासर गांव बसा है। 500 वर्षों पहले मूमोजी मोयल (गांव-भोमिया) द्वारा बसाये गये इसे एतिहासिक गांव में लगभग 36 जातियों के लोग रहते हैं। जयपुर से लगभग 250 किमी. एवं बीकानेर से 100 किमी. की दूरी पर बसा यह गांव अपने इलाके में सांस्कृतिक गतिविधियों का केन्द्र हैं। 10000 से 12000 की आबादी वाले इस गांव में तीज, गणगौर, रामदेवजी, और गोगा लोक देवता के मेले प्रतिवर्ष परम्परागत रूप से मनाये जाते है जिसमें आस पड़ौस के गांव ढाणियों के हजारों लोग भाग लेते हैं। लोक देवताओं और तीज त्यौंहार से सम्बन्धित लोक-संगीत एवं परम्परागत खेलों के आयोजन होते हैं।

इस गांव के लोगों की सांस्कृतिक जागरूकता देखते ही बनती है। परम्परागत तीज त्यौंहारों, मेलों, उत्सवों को मनाने में गांव के सभी लोग तन-मन और धन से योगदान देते हैं। सन् 2011 से मोमासर गांव में जयपुर विरासत फाउण्ड़ेशन के सहयोग से ’’शेखावाटी उत्सव-मोमासर’’ का आयोजन किया जाता है जो राजस्थान में लोक-संगीत और कलाकारों का सबसे बड़ा फेस्टिवल बन चुका है। सन् 1941 से यहां प्रतिवर्ष होली के अवसर पर ’’गींदड़-उत्सव’’ का आयोजन किया जा रहा है। यह तीन दिवसीय उत्सव समस्त गांव का उत्सव है जिसमें दिन में तरह-तरह के स्वांग चंग पर फाग गाना एवं हास्य से भरपूर कार्यक्रम गा्रमीणों द्वारा पेश किये जाते है। मोमासर का गींदड़ उत्सव में गांव के हजारों युवा बच्चे एवं वृद्ध इस लोक उत्सव में भागीदारी निभाते है।

गींदड़ उत्सव का आयोजन गांव के एतिहासिक कुंए पर आयोजित किया जाता है। सारी रात चलने वाला यह विचित्र वेषभूषा (स्वांग) का उत्सव नगाड़े, ढोल, क्लारनेट एवं गांयन के तालमेल से प्रारम्भ होता है। हजारों कलाकार ढोल-नगाड़ों की ताल से ताल, डंडे मिलाते है उस पर नृत्य करते है। रात में धीरे-धीरे यह नृत्य परवान चढ़ता हुआ मध्यरात्रि के उपरान्त सभी दर्शकों को मंत्रमुग्ध हो कर देखने को बाध्य कर देता है।

विचित्र वेषभूषा और स्वांग बनने का यह उत्सव अपने आप में एक कार्निवल का रूप ले चुका है और इसमें भाग लेने और देखने देश के कौने-कौने से लोग आने लगे है इस उत्सव का आयोजन जन सहभागिता से किया जाता है।

गांव के निवासी जो अब देश-परदेश में बस गये हैं वो इस परम्परा को नियमित करने हेतू विषेष योगदान दे रहे हैं। सन् 1992 के बाद से यह उत्सव प्रतिवर्ष उतरोत्तर बड़ा और भव्य बनता जा रहा है। एक समय होली के अवसर पर शेखावाटी उत्सव के अनेक बड़े, करूबों और शहरों में आयोजित होने वाले ’’गींदड़-उत्सव’’ लगभग समाप्त प्राय या अव्यवस्थाओं और अपेक्षाओं के शिकार हो गये हैं। वहीं पर ’’गींदड़-उत्सव, मोमासर’’ अपने षानदार आयोजन जनसहभागिता कलाकारों के प्रोत्साहन से इस उत्सव के माध्यम से शेखावाटी क्षेत्र की इस परम्परा को बढ़ावा देते हुए एक विशिष्ट पहचान स्थापित की है।

रंगशिल्‍प द्वारा आयोजित कार्यक्रम में झूमे श्रोता


जयपुर। अहमदाबाद से आई कलाकार हंसा गज्‍जर और सुनील पंजवानी ने भूले बिसरे सदाबहार फिल्मी गीत गाकर श्रोताओं का मन मोह लिया । 
      रंगशिल्प द्वारा पिंकसिटी प्रेस क्लब के सभागार में आयोजित इस फिल्मी गीत संध्या में हंसा ने स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के हिट फिल्मी गीत गाए और लोगों को तालियां बजाने को मजबूर कर दिया। अहमदाबाद के ही सुनील पंजवानी ने मुकेश के दर्दीले गीत गाकर उस दौर की याद ताजा कर दी ।  हंसा ने ''प्यार किया तो डरना क्या'' तुम ही मेरे मंदिर तुम्हीं मेरी पूजा और सुनील पंजवानी ने  मुकेश के मशहूर गीत पानी रे पानी तेरा रंग कैसा और हम तो तेरे आशिक हैं सदियों पुराने तथा दीवानों से यह मत पूछो जैसे गीत गाकर एक बार फिर माहौल में ताजगी भर दी।
      प्रारंभ में रंगशिल्प के सचिव राजेंद्र शर्मा ''राजू '' ने कलाकारों का स्वागत किया साथ ही सतीश यादव और अजय शर्मा ने कलाकारों को पुष्प गुच्छ भेंट कर उनका स्वागत किया। रंगशिल्‍प के अध्यक्ष ईश्वर दत्त माथुर ने कलाकारों का परिचय देते हुए कार्यक्रम का संचालन किया।  कार्यक्रम के अंत तक श्रोता जमे रहे। श्रोताओं  की मांग पर कलाकारों ने उनके पसंदीदा गीत भी प्रस्‍तुत किये।

सोमवार, 26 फ़रवरी 2018

श्री देवाय एक्यूप्रेशर चि‍कित्सा एवं अनुसंधान केन्द्र का 49वॉं स्थापना दिवस 28 फरवरी को


जयपुर । श्री देवाय एक्‍यूप्रेशर चि‍कित्‍सा एवं अनुसंधान केन्‍द्र का 49वॉं स्‍थापना दिवस 28 फरवरी को गोपाल जी का रास्‍ता, खो वालों का चौक स्थित केन्‍द्र पर आयोजित किया गया है ।
      केन्‍द्र के संस्‍थापक एवं मुख्‍य चिकित्‍सक एक्‍यूप्रेशर रत्‍न शिरोमणि डा. दिग्‍विजय कोठारी ने बताया कि केन्‍द्र पिछले 48 वर्षों से एक्‍युप्रेशर चिकित्‍सा के क्षेत्र में अपनी सेवाऐं दे रहा है । गोल्‍ड मेडल से सम्‍मानित डा. कोठारी ने बताया कि इस दौरान उन्‍होंने असाध्‍य रोगों की एक्‍यूप्रेशर द्वारा सफल चिकित्‍सा की है । केन्‍द्र से जुडी डा. चन्‍द्रकान्‍ता गुप्‍ता ने बताया कि अब तक केन्‍द्र पर विभिन्‍न रोगों से पीडित लाखों रोगियों का सफल ईलाज किया जा चुका है ।
      स्‍थापना दिवस पर डा. शिल्‍पा गुप्‍ता, डा. अशोक चौकडीवाल, डा. अतुल कुमार पंड्या अपनी सेवाऐं देंगे । इस अवसर पर दिनेश गुप्‍ता, अर्पित गुप्‍ता नवल खंडेलवाल एवं अजय जैन आदि भी उपस्थित रहेंगे ।
    

राजस्थान में भैंसों और पाड़ों का परिवहन गैरकानूनी नहीं

वसुन्धरा कैबिनेट की आज विधानसभा में बैठक हुई इसमें राजस्थान गोवंशीय पशुधन वध का प्रतिषेध और अस्थायी प्रवर्जन या निर्यात का विनियम अधिनियम 1995 के अधिनियम के ​संशोधित बिल में गोवंश के सा​थ जूडे शब्द भैंस और भैंसवंश शब्द को हटा दिया गया है।

संशोधन को लेकर राष्ट्रपति की ओर से मांगे गये स्पष्टीकरण को साथ जोडा गया है। दरअसल सरकार ने इस बिल को 13 दिसम्बर को हुई कैबिनेट की बैठक में पास कर दिया था। लेकिन इस अधिनियम को पास करवाने के लिए राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजा गया था। राष्ट्रपति की ओर से इस बिल में राज्य सरकार से ये स्पष्टीकरण मांगा था कि गोवंश में क्या भैसं या भैंसवंश भी शामिल होगा।



 कैबिनेट की बैठक में ये इस अधिनियम से भैंस या भैसवंश को हटा दिया गया है ताकि जब ये अधिनियम अस्तित्व में आ जाये तो भैंसों का परिवहन कर रहे वाहनों पर कोई कार्रवाई ना हो। इस अधिनियम के तहत पहले ही ये तय कर दिया गया था कि कोई भी गोवंश की तस्करी करेगा उस व्यक्ती की तुरंत गिरफतारी तो होगी ही इसके साथ ही परिवहन में प्रयुक्त वाहन भी जब्त किया जाएगा।

राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने गिनायीं बिहार सरकार की महत्वपूर्ण उपलब्धियां

बिहार विधानमंडल का बजट सत्र शुरू हो गया है. बिहार के  राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने विधान परिषद और विधानसभा के सदस्यों के संयुक्त सत्र को संबोधित किया और बिहार सरकार की उपलब्धियों के साथ बड़ी योजनाओं के बारे में बात की. राज्यपाल ने बिहार में कानून-व्यवस्था के साथ राज्य सरकार द्वारा विकास के लिए किये जा रहे कार्यों की विस्तार से चर्चा की. इससे पहले राज्यपाल के आगमन के साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विधानसभा अध्यक्ष विजय चौधरी ने उनकी अगवानी की और उसके बाद उनके बुके देकर आभार प्रकट किया. राज्यपाल ने सबसे पहले कहा कि पूरे देश के आलोक में देखें, तो बिहार का स्थान अपराध की श्रेणी में 22वां है. उन्होंने कहा कि राज्य में कानून का राज स्थापित है और इसके लिए राज्य सरकार प्रतिबद्ध है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलती है.

उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार को प्रभावी बनाने के लिए सूबे में निगरानी ने अभियान चलाकर दो दर्जन से ज्यादा लोक सेवकों को गिरफ्तार किया और 2017 में कुल 119 लोगों के खिलाफ कार्रवाई की है. 2017 में 83 से ज्यादा मामलों में रंगे हाथों घूस लेते लोक सेवक गिरफ्तार हुए और उनमें से सात लोक सेवकों की संपत्ति जब्त की गयी है. राज्यपाल ने कहा कि राज्य सरकार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम 2015 को लागू कर उनके परिवार को निश्चित समय सीमा के अंदर निबटाया जा रहा है. अब तक लाखों आवेदनों का निष्पादन किया जा चुका है. उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष की तुलना में 11% बढ़कर 2017 -18 में 87458 करोड़ रुपये हो गया है. राज्य का अपना कर राजस्व 2016- 17 में 23,000 472 रुपये था और वर्ष 2017- 18 में 32000 करोड़ रुपये का राजस्व का अनुमान है. वित्तीय वर्ष 2017- 18 में राजस्व बचत 14555 करोड़ रुपये और राजकोषीय घाटा 18112 करोड़ रुपये अनुमानित है, जो राज्य सकल घरेलू उत्पाद 632180 करोड़ रुपये का 2. 87% होगा.

राज्यपाल ने इस दौरान सरकार की योजनाओं की जमकर तारीफ की और कहा कि बिहार हरेक क्षेत्रों में तेजी से आगे बढ़ रहा है. बिहार में महिला और पुरुषों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई तरह की विकास योजनाएं चलायीं जा रही है. सभी जिलों में महिला हेल्पलाइन की शुरुआत की गयी है. युवाओं के लिए कई कौशल विकास और स्टार्टअप की योजना चलायी जा रही है. उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में भी काफी सुधार हुआ है. बिहार में स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी विकास हुआ है.

उन्होंने कहा कि बिहार में बारामासी सड़कों का निर्माण कार्य चल रहा है. ग्रामीण और शहरी इलाकों के सड़कों के रख-रखाव पर ज्यादा खर्च किया जा रहा है. राज्य में चार हजार से ज्यादा मेगावाट की बिजली परियोजना पर काम हो रहा है. उन्होंने कहा कि राज्य में अवैध बालू उत्खनन को रोकने के लिए बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया जा रहा है. महात्मा गांधी से जुड़े स्थलों के विकास पर काम हो रहा है. चंपारण को और अधिक विकसित किया जा रहा है. मिथिला कला क्षेत्र जैसे संस्थान को मधुबनी में स्थापित किया जा रहा है.

राज्यपाल ने कहा कि बिहार में गुरु गोविंद सिंह के प्रकाश पर्व के मौके पर मनाये गये शुकराना समारोह से बिहार की छवि बदली है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिहार की तारीफ हुई ह ै. उन्होंने कहा कि सहरसा में मंडन मिश्रा से जुड़े स्थलों को विकसित किया जा रहा है. राज्यपाल ने कहा कि बिहार में बिजली के लक्ष्य को 4800 मेगावाट ले जाने की कोशिश हो रही है. साथ उन्होंने कहा कि 15132 करोड़ की लागत से नयी ताप विद्युत परियोजना को शुरू किया गया है. 47 ग्रिडों की संचरण प्रणाली को दुरुस्त करने का काम चल रहा है. ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बेहतर तरीके से करने का काम किया जा रहा है. बिहार में सब्जी की खेती को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री नवाचार योजना के तहत सब्जियों की बिक्री हेतु नयी योजना लायी जा रही है. 

तू इधर-उधर की ना बात कर ये बता कि काफिला क्‍यों लुटा -शत्रुघ्‍न सिन्‍हा


1100 करोड़ के पीएनबी घोटाले पर बीजेपी के वरिष्‍ठ नेता शत्रुघ्‍न सिन्‍हा ने शीर्ष नेतृत्‍व पर शायराना अंदाज में निशाना साधा है. उन्‍होंने लगातार एक के बाद एक ट्वीट कर पीएम मोदी पर परोक्ष रूप से निशाना साधा. उन्‍होंने ट्वीट कर कहा, ''हमारे विद्वान लोगों ने नेहरू शासन से लेकर कांग्रेस के कुशासन तक सबको कोसने के बाद कहा है कि पीएनबी घोटाले के लिए ऑडिटर जिम्‍मेदार हैं...ईश्‍वर का शुक्र है कि उन्‍होंने चपरासी को छोड़ दिया. मूक सवाल ये है कि पीएनबी का वास्‍तविक स्‍वामी होने के बावजूद सरकार पिछले चार-छह सालों से क्‍या कर रही थी?''

इसके बाद अपने दूसरे ट्वीट में उन्‍होंने कहा कि हम शायरी की इन चंद लाइनों के माध्‍यम से सवाल के जवाब की उम्‍मीद करते हैं:
'तू इधर-उधर की ना बात कर ये बता कि काफिला क्‍यों लुटा
मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है'

इसके बाद शत्रुघ्‍न ने कहा, ''क्‍या सर आपके पास इन सवालों का जवाब है?'' बड़े अदब के साथ कहना चाहूंगा कि एक कहावत है, ''ताली कप्‍तान को तो गाली भी कप्‍तान को.''

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

जापान दौरे से लौटे स्वदेश नीतीश कुमार

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जापान की यात्रा करने के बाद  स्वदेश लौट चुके हैं। अपनी चार दिनों की जापान यात्रा पर बिहार और जापान के बीच आपसी संबंधों के साथ कई प्रस्तावों पर सीएम ने विस्तार से चर्चा की।
हस्ताक्षर करते नीतीश कुमार

अपने जापान दौरे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जापान  के  प्रधानमंत्री  के  शिंजो आवे के साथ  मुलाकात की। इस  दौरान दोनों  देशों  के  बीच  मैत्रीपूर्ण  रिश्तों  पर चर्चा हुई। जापान इंटरनेशनल को-ऑपरेशन  एजेंसी  के  माध्यम  से  पटना  को  गया,  बोधगया, राजगीर,  नालंदा  को  जोड़ने  का  काम  चल  रहा  है।  इसका वैशाली तक विस्तार   की जरूरत  पर भी जोर दिया गया। मुख्यमंत्री ने पटना मेट्रो की  डीपीआर व  नालंदा  विश्वद्यालय  में जापान  के  सहयोग  को लेकर  उनके मंत्रिमंडल  सहयोगियों के साथ  विस्तार  से चर्चा की। साथ ही बिहार  से  जापान  के  बीच  सीधी  विमान  सेवा  के  बारे में  भी  चर्चा हुई। उन्होंने हाई  स्पीड रेल  लिंक, पर्यटन,  कृषि,  खाद्य  प्रसंस्करण पर चर्चा की।     


प्रवास के दौरान अंतरराष्ट्रीय  हाई  स्पीड  रेलवे एसोसिएशन  के  अध्यक्ष मासाफुमी  शुकुरी  से  भारतीय  दूतावास  में  मुलाकात की। मासाफुमी  शुकुरी  के  साथ  मुख्यमंत्री  की  बुद्धिस्ट  केंद्रों  को  जोड़ते  हुए  पीस  कॉरिडोर  के  रूप में  विकसित करने पर चर्चा की गयी। मुख्यमंत्री  ने मासाफुमी  शुकुरी  को  इस  संबंध  में  अपने  विषेषज्ञों  के  साथ  आकर  प्री सर्वे  करने का  आमंत्रण  और  सुझाव  दिया।  उन्होंने जापान  में  रहने  वाले  बिहार  के  लोगों  के  साथ  भी  मुलाकात की। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हिरोशिमा शहर भी गये

क्यों नहीं जयपुर में महापड़ाव डाल सकते किसान

राजधानी जयपुर कूच कर रहे किसानों की गिरफ्तारी का मामला प्रदेशभर के साथ विधानसभा में भी गूंजा। विपक्ष ने शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे किसानों पर दमनात्मक कार्रवाई का आरोप लगाया।

विपक्ष ने पर्ची के माध्यम से सरकार पर किसानों के साथ नाइंसाफी करने का आरोप लगाया। आंदोलन कर रहे किसानों को जेल में बंद करने और जयपुर में प्रदर्शन से रोकने के भी आरोप लगाए। जिसके बाद गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने इन सब के बारे में सदन में जानकारी दी।


 इन वजहों से नहीं हो सकता किसानों का महापड़ाव  
राजधानी जयपुर में हाईकोर्ट के आदेशों के तहत किसानों को जयपुर महानगर क्षेत्र में महापड़ाव के लिए अनुमति नहीं है।
4 जुलाई के अंतरिम आदेश में प्रशासन को जयपुर महानगर क्षेत्र में कार्य दिवस के दौरान घनी आबादी क्षेत्रों में किसी भी प्रकार की रैली, जुलूस, प्रदर्शन पर रोक लगाई गई है।
8 दिसम्बर के संशोधित आदेश में अपवाद स्वरूप राजनैतिक और अन्य रैलियों के लिए दोपहर 12 बजे से शाम 4 बजे तक छूट प्रदान की गई।
अखिल भारतीय किसान महासभा ने 17 फरवरी को महापड़ाव के लिए अनुमति मांगी। इसमें समय-सीमा और स्थान का उल्लेख नहीं था।
महापड़ाव इस सीमित घण्टों की अवधि में संभव नहीं हो सकता,इसके लिए अनुमति प्रदान नहीं की गई।


वहीं गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने यह भी जानकारी दी कि 20 फरवरी को महापड़ाव के लिए आने वाले लोगों की समझाइश भी की गई थी। उन्होंने बताया कि अब तक 179 लोगों को न्यायिक अभिरक्षा में लिया गया है, जिनमें से 17 ने जमानत ले ली है। इसके अतिरिक्त लगभग 2000 लोगों और 50 गाड़ियों को रास्ते में रोका गया है।

किसान और सरकार आमने-सामने

राजस्थान में किसान और सरकार आमने-सामने हो गए । हालात मध्यप्रदेश के किसान आंदोलन जैसे बनते जा रहे हैं । सम्पूर्ण कर्ज माफी,सिचांई सहित विभिन्न मांगों को लेकर सड़कों पर उतरे किसानों ने प्रदेश के अधिकांश राजमार्गों पर जाम लगाया।

विधानसभा का घेराव करने जा रहे किसानों को रोकने के बाद उग्र हुए आंदोलनकारियों ने सड़कों पर जाम लगाकर सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। जाम के कारण सड़कों पर चार से पांच किलोमीटर तक वाहनों की लम्बी कतारें लग गई ।किसानों के उग्र आंदोलन की आशंका को भांपते हुए सरकार ने दो दिन पूर्व ही किसान महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमराराम और पूर्व विधायक पेमाराम सहित करीब 100 किसान नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था । इनकी गिरफ्तारी के बाद सरकार को आंदोलन कमजोर होने की उम्मीद थी,लेकिन उग्र किसान गुरूवार को राज्यभर में सड़कों पर उतर गए ।

किसान आंदोलन का अधिक असर सीकर,झुंझुंनू,चुरू और जयपुर जिले में देखने को मिला । जयपुर-बीकानेर और जयपुर-दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर किसान धरना देकर बैठ गए,पुलिस किसानों को उठाने के प्रयास में जुटी रही,लेकिन किसान उठने को तैयार नही है । किसानों को विधानसभा तक पहुंचने से पहले अलग-अलग शहरों और कस्बों में ही किसानों को पुलिस ने रोक दिया । जयपुर शहर के आसपास के किसान पहुंचे तो पुलिस ने गुरूवार को 200 किसानों को गिरफ्तार किया । जयपुर के हसनपुरा इलाके में किसानों ने पड़ाव डाल रखा है । सीकर जिला मुख्यालय और विभिन्न कस्बे गुरूवार को बंद रहे ।


किसान नेताओं का कहना है कि सम्पूर्ण कर्ज माफी सहित अन्य मांगे नहीं माने जाने तक आंदोलन जारी रहेगा,किसान घर नहीं जाएंगे । इधर गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने मीडिया को बताया कि हाईकोर्ट के आदेश के चलते किसानों को जयपुर प्रवेश करने से रोका गया है । विधानसभा में कांग्रेस विधायक गोविंद सिंह डोटासरा ने किसानों से जुड़ा मामला उठाया ।

उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री ने कुछ दिनों पूर्व अपने बजट भाषणा में किसानों के 50 हजार रूपए तक के कर्ज एक बार में माफ करने और फिर आगामी सालों में किसान कर्ज माफी आयोग बनाकर आवेदन के आधार पर कर्ज माफी की घोषणा की थी,लेकिन किसान संगठन और कांग्रेस सम्पूर्ण कर्ज माफी की मांग पर अडे है ।  

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

किसान से जुड़े मुद्दे पर 3-3 जज हुए आमने-सामने

सुप्रीम कोर्ट में अभी भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। जहां पिछले दिनों ही जजों के टकराव की स्थिति बनी थी, वहीं कुछ ही दिनों बाद एक बार फिर से जजों में टकराव की स्थिति बनती दिखाई दे रही है।

दरअसल भूमि अधिग्रहण से जुड़े जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच के फैसले पर जस्टिस मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने रोक लगा दी थी। जस्टिस अरुण मिश्रा ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को चिट्ठी लिखी है।


बड़ी बेंच के गठन का अनुरोध किया
जस्टिस अरुण मिश्रा ने चीफ जस्टिस से बड़ी बेंच के गठन का अनुरोध किया है, जो तय करेगी कि तीन जजों के फैसले को तीन जजों की बेंच कैसे स्टे कर सकती है। क्या ये 'न्यायिक अनुशासनहीनता' का मामला बनता है। स्टे करने वाली बेंच के दो बाकी जज हैं कुरियन जोसेफ और दीपक गुप्ता।


जस्टिस मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने आदेश दिया था
वहीं आठ फरवरी को जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने आदेश दिया था कि अगर  जमीन का मालिक या किसान, सरकार के दिए मुआवजे को स्वीकार नहीं करता तो इस आधार पर अधिग्रहण रद्द नहीं होगा।


पहले भी हो चुकी है टकराव की स्थिति
यहां गौर करने वाली बात ये है कि पिछले दिनों ही सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों ने प्रेस कांफ्रेंस कर जजों में टकराव का मुद्दा जगजाहिर किया था। इन 4 जजों में जस्टिस चेलामेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर व जस्टिस कुरियन जोसेफ ने सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की थी।

क्या है जेड प्लस सिक्युरिटी?...

जब भी बड़े लोगों की सिक्युरिटी की बात होती है तो जेड प्लस, जेड और वाई जैसी सिक्युरिटी के बारे में बात होती है। हालांकि, हर कोई इस बात से शायद ही वाकिफ हो कि आखिर ये सिक्युरिटी होती किस-किस कैटेगरी की हैं और ये किसे मिलती हैं। खतरों को देखते हुए जेड प्लस, जेड, वाई और एक्स कैटेगरी की सिक्युरिटी केंद्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, और सीनियर ब्यूरोक्रेट्स को मिलती हैं। हालांकि, खतरे को देखते हुए ये सम्मानित लोगों और सीनियर पॉलिटिशियंस को भी दी जाती है। क्या है जेड प्लस सिक्युरिटी?...


ये सिक्युरिटी वीवीआईपीज को दी जाती है। जेड प्लस कैटेगरी की सुरक्षा में 36 कमांडोज तैनात होते हैं। इनमें 10 एनएसजी और एसपीजी कमांडो होते हैं। वहीं बाकी 10 पुलिस टीम के लोग होते हैं। पहले घरे की जिम्मेदारी एनएसजी की होती है। वहीं दूसरी लेयर में एसपीजी के कमांडो होते हैं। इन सबके अलावा आईटीबीपी और सीआरपीफ के जवान भी सिक्युरिटी में तैनात होते हैं। जेड प्लस कैटेगरी के सिक्युरिटी के तहत देश के पीएम और पूर्व प्रधानमंत्रियों को एसपीजी कमांडो सिक्युरिटी कवर देते हैं।

किसे दी जाती है ये सिक्युरिटी ?
देश के सम्मानित लोगों और पॉलिटिशियंस को जान का खतरा होने तो उसे सिक्युरिटी दी जाती है। ये सुरक्षा मिनिस्टर्स को मिलने वाली सिक्युरिटी से अलग होती है। इसमें पहले सरकार को इसके लिए एप्लीकेशन देना होता है, जिसके बाद सरकार खुफिया एजेंसीज जरिए होने वाले खतरे का अंदाजा लगाती हैं। खतरे की बात कंफर्म होने पर सुरक्षा दी जाती है। होम सेक्रेटरी, डायरेक्टर जनरल और चीफ सेक्रेटरी की कमेटी ये तय करती है कि संबंधित लोगों को किस कैटेगरी में सिक्युरिटी दी जाए।

कौन देता है सिक्युरिटी ?
पुलिस के साथ-साथ कई एजेंसीज वीआईपी और वीवीआईपी को सिक्युरिटी कवर दे रही हैं। इनमें स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप यानी एसपीजी, एनएसजी, आईटीबीपी और सीआरपीएफ शामिल हैं। हालांकि, खास लोगों की सुरक्षा का जिम्मा एनएसजी के कंधों पर ही होता है, लेकिन जिस तरह से जेड प्लस सिक्युरिटी लेने वालों की संख्या बढ़ी हैं, उसे देखते हुए सीआईएसएफ को भी यह काम सौंपा जा रहा है।

राजगीर, बिहारशरीफ का होगा अपना मास्टर प्लान

वर्ष 2020 तक हर जिला मुख्यालय का अपना मास्टर प्लान होगा. नगर विकास एवं आवास विभाग ने यह लक्ष्य निर्धारित कर प्रमंडलीय आयुक्तों से प्रस्ताव मांगा है. प्रस्ताव मिलने पर विभाग प्रत्येक जिला मुख्यालय का आयोजना क्षेत्र (प्लानिंग एरिया) तय कर आयोजना प्राधिकार के गठन व उसको कार्यान्वित करने की कार्रवाई करेगी. आयोजना क्षेत्र गठित होने से हर जिला मुख्यालय का पृथक मास्टर प्लान होगा. बिहार बिल्डिंग बाइलॉज 2014 के अनुरूप जिलों के मास्टर प्लान को लागू किया जायेगा.

प्लानिंग एरिया के ग्रामीण इलाकों में भी बिल्डिंग बाइलॉज होगा प्रभावी

विभाग के मुताबिक नवगठित सात आयोजना क्षेत्र प्राधिकार राजगीर, बिहारशरीफ, आरा, गया, बोधगया, मुजफ्फरपुर व सहरसा के शहरी इलाकों में बिल्डिंग बाइलॉज प्रभावी है. लेकिन इनके ग्रामीण क्षेत्रों में भी बिल्डिंग बाइलॉज लागू किया जाना है. इसके लिए प्राधिकारों में प्रतिनियुक्त सहायक अभियंता, कनीय अभियंता व अमीनों को ट्रेनिंग भी दी गयी है. जल्द ही ग्रामीण क्षेत्र में भी यह प्रभावी हो जायेगा. इससे ग्रामीण इलाके के लोगों को भी पीएम आवास योजना (शहरी) के तहत किफायती आवास, मलिन बस्ती पुनर्वास व पुनर्विकास आवास नीति 2017 का लाभ मिल सकेगा.

27 शहरों के मास्टर प्लान पर चल रहा काम

सूबे के 38 जिला मुख्यालयों में से फिलहाल 27 शहरों का मास्टर प्लान भारत सरकार की अमृत योजना के तहत तैयार हो रहा है. राजगीर के समेकित मास्टर प्लान की जिम्मेदारी हडको को दी गयी है. अन्य शहरों के मास्टर प्लान की तैयारी के लिए विभाग के स्तर से कंसलटेंट के चयन की प्रक्रिया चल रही है. अमृत मिशन के तहत अर्बन प्लानर्स व अन्य प्रोफेशनल्स की मदद से मास्टर प्लान बनेगा. विभाग के प्रधान सचिव चैतन्य प्रसाद के मुताबिक पटना महानगर क्षेत्र प्राधिकार के स्तर से एरिया डेवलपमेंट स्कीम व जोनल डेवलपमेंटल प्लान के लिए मास्टर कंसलटेंट के चयन की प्रक्रिया की जा रही है. 

मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

अब मोबाइल नंबर 10 अंको से 13 अंको का हो सकता है

आपका मोबाइल नंबर अब बदलने वाला है। जी हां, ये बात आपको हैरान कर सकती है, लेकिन ये सच है। दरअसल, केंद्रीय संचार मंत्रालय ने सभी राज्यों को निर्देश जारी किए हैं। जिसमें ये कहा गया है कि अब मोबाइल नंबर 10 अंको से 13 अंको का हो सकता है। ऐसा माना जा रहा है कि पिछले दिनों दिल्ली में हुई बैठक में इसके ऊपर फैसला लिया गया है। BSNL ने भी इसके लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। इस प्रॉसेस को 31 दिसंबर, 2018 तक सभी नंबर्स के साथ पूरा किया जा सकता है। हालांकि, इसकी शुरुआत 1 जुलाई से ही शुरू हो जाएगी।

अक्टूबर से शुरू होगी प्रॉसेस
डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम (DoT) के मुताबिक मौजूदा सभी 10 अंकों वाले मोबाइल नंबर एक अक्टूबर, 2018 से 13 अंकों वाले नंबर में माइग्रेट होने शुरू होंगे। यह प्रक्रिया 31 दिसंबर तक पूरी हो जानी है। हालांकि ये साफ नहीं किया गया है कि 13 अंकों के मोबाइल नंबर में कंट्री कोड (जैसे भारत का +91 है) भी शामिल होगा या नहीं।

 इस वजह से चेंज होंगे नंबर्स
ऐसा माना जा रहा है कि 10 अंकों से 13 अंकों का मोबाइल नंबर करने के पीछे की वजह अब नए मोबाइल नंबर्स की गुंजाइश नहीं होना है। यानी 10 अंकों की सीरीज लगभग पूरी हो चुकी है। ऐसे में अब इसे 13 अंकों का करके सभी यूजर्स को नंबर्स को अपग्रेड किया जाएगा।

विधानसभा अध्यक्ष को राजस्थान खोज खबर के जयपुर संस्करण की प्रति भेंट

जयपुर । विधानसभा अध्यक्ष  कैलाश मेघवाल  विधानसभा में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान खोज खबर के सीएमडी  विक्रम सिंह राठौड ने जयपुर संस्करण की प्रति भेंट की।
   
इस अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष ने बधाई देते हुए कहा कि लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप में यह समाचार पत्र अपनी अहम भूमिका का निर्वहन करते हुए समाज को शिक्षित करने तथा नव निर्माण में महत्ति भूमिका निभायेगा ।
   
इस अवसर पर समाचार पत्र के प्रबंध संपादक  पूरण सिंह राठौड, स्थानीय सम्पादक  मुकेश चौधरी,  प्रदीप शेखावत, प्रेसक्लब के अध्यक्ष  एल.एल. शर्मा, महासचिव मुकेश मीणा, पत्रकार जसवन्त राठी, किशन सिंह,  रोहित सोनी, अरूण कुमार,श्रीमती अनीता शर्मा, मीनू शर्मा एवं  जयराम शर्मा सहित विधानसभा के जन सम्पर्क अधिकारी राजेन्द्र शर्मा भी उपस्थित थे।
   
प्रारम्भ में पत्र के सीएमडी  राठौड ने विधानसभा अध्यक्ष को पुष्पगुच्छ तथा यथार्थ गीता पुस्तक की प्रति भेंट की ।

गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

कौंसिल ऑफ जर्नलिस्ट्स के संवाद कार्यक्रम में रूबरू हुए वरिष्ठ पत्रकार

जयपुर। आम चुनाव में मिशन मोदी के सहयोगी रहे एवं जाने माने वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेद प्रताप वैदिक ने कहा है कि ‘मोदी सरकार के चार साल का कार्यकाल निराशाजनक रहा है और यदि अब तक की अकर्मण्य सरकार अगले साल में कर्मण्य नहीं हुई तो इसे घातक परिणाम भुगतने पड़ेंगे।’ उन्होंने देश में शिक्षा, न्याय, राजनीति तथा विदेश सभी मामलों में मोदी सरकार को आड़े हाथों लिया।


 डॉ. वैदिक गुरुवार को यहां इंद्रलोक सभागार में कौंसिल ऑफ जर्नलिस्ट्स की ओर से आयोजित संवाद कार्यक्रम में चर्चा कर रहे थे। देश की वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियां और आमजन विषय पर आयोजित इस संवाद कार्यक्रम में डॉ. वैदिक के साथ वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी व जस्टिस विनोद शंकर दवे ने भी वर्तमान राजनीति पर अपने विचार पत्रकारों के साथ साझा किए।


डॉ. वैदिक ने कहा कि ‘आज लोग जब उनसे ये पूछते हैं कि आपने किन लोगों को सत्ता में आने के लिए मदद की और उन सपनों का क्या रहा जो चुनाव से पहले दिखाए गए तो उनके पास कोई जवाब नहीं रह जाता। वर्तमान केन्द्र सरकार को शायद लगता है कि उसका देश में अभी कोई विकल्प नहीं है, लेकिन ये भी सच है कि जनता के समक्ष विकल्प आते देर नहीं लगती। चाहे विकल्प हो या न हो। यदि जनता के लिए ठोस काम नहीं किए तो सरकार पलटते देर नहीं लगेगी।’


उन्होंने कहा कि ‘जिस प्रकार आपातकाल से पहले लगता था कि इंदिरा गांधी का विकल्प नहीं है, लेकिन पता ही नहीं चला कि जनता ने उन्हें भी पटखनी दे दी। यदि वर्तमान राजनीति में कोई गैर दलीय व्यक्ति, जेपी आंदोलन की तरह, आगे आ जाए और अन्य सभी दल उसके साथ हो जाए तो 30 प्रतिशत जनता के वोट लेने वाली सरकार 10 प्रतिशत वोट के लिए भी तरस सकती है।’ उन्होंने माना कि ‘भ्रष्टाचार के बिना राजनीति संभव नहीं है, फिर चाहे मोदी हो या मनमोहन। पानी में रहने वाली मछली पानी पिए बिना रह ही नहीं सकती।’


 वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी ने चर्चा करते हुए कहा कि ‘कारपोरेट्स से करोड़ों रुपए चंदे में लेने वाली पार्टियां वफादारी तो निभाएंगी ही। चुनावी चंदे में मिलने वाला 60 फीसदी चंदा कारपोरेट्स का है। रिपोट्र्स बताती हैं कि इस बार 956 करोड़ रुपए 5 पार्टिंयों को कारपोरेट्स से मिले। इसमें से 705 करोड़ बीजेपी व 198 करोड़ कांग्रेस को मिले हैं। इस पैसे से चुनाव लड़कर सरकार बनाई है तो कीमत तो चुकानी ही होगी।’


वर्तमान पत्रकारिता और सोशल मीडिया के सवाल पर त्रिवेदी ने कहा कि ‘पहले जनता को प्रभावित करने के लिए नेता पत्रकार को सैट करते थे। अब जनता सोशल मीडिया को सच मानती है तो हर पार्टी ने सैकड़ों लोगों की टीम लगाकर फेक आइडेंटिटी के साथ झूठ के पुलिंदे चलाना शुरू कर दिया है। रोज तय होता है कि आज जनता में क्या चलाना है और सामने वाले का क्या काउंटर करना है। पहले लोग अखबार में छपी खबर का भी जल्दी से यकीन नहीं करते थे और अब एक झूठ को इतनी बार चलाया जाता है कि लोग उस पर बिना दिमाग लगाए यकीन कर रहे हैं।’


 संवाद कार्यक्रम के प्रथम सत्र में जस्टिस विनोद शंकर दवे ने वरिष्ठ पत्रकार श्याम माथुर से चर्चा करते हुए पत्रकारिता, राजनीतिक व्यवस्था और आमजन पर विस्तार से वर्तमान हालात पर पीड़ा जताई। उन्होंने कहा कि ‘महात्मा गांधी, पं. नेहरू, सरदार पटेल आदि के योगदान को भुलाया जा रहा है, जबकि इनके योगदान अभूतपूर्व रहे हैं। आरोप लगाए जाते हैं कि पं. नेहरू ने सरदार पटेल को नहीं जीतने दिया। जबकि वास्तविकता ये है कि मोतीलाल नेहरू के गंभीर बीमार होने से परिस्थितियां बनी, जिससे पटेल ने खुद नाम वापस ले लिया।’


उन्होंने कहा कि ‘खुद नेहरू लिखते हैं कि उनसे काबिल व्यक्ति पटेल थे और पता नहीं अब वे नई जिम्मेदारी संभाल पाएंगे या नहीं।’ जस्टिस दवे ने महात्मा गांधी की पत्रकारिता का जिक्र करते हुए कहा कि ‘ट्रायल ऑफ गांधी पुस्तक पढ़ें तो पता चलता है कि गांधी जी की लेखनी का जनांदोलन में कितना गहरा योगदान था।’ उन्होंने कहा कि ‘व्यक्ति पूजा हमारी परम्परा रही है। आज भी ऐसा होता आ रहा है। देवी देवताओं और नेताओं की भक्ति होती है, जबकि भगवान तो सर्वव्यापी है और हर व्यक्ति मैसेंजर ऑफ गॉड है। यदि व्यक्ति पूजा से उपर उठें तो कुछ भला हो सकता है।’


सभी अतिथियों ने संवाद के अनूठे कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि ऐसा कार्यक्रम होते रहने चाहिए। इस पर कौंसिल ऑफ जर्नलिस्ट्स के प्रदेश अध्यक्ष अनिल त्रिवेदी ने कहा कि उनका प्रयास है कि वर्तमान पीढ़ी के पत्रकार साथियों को वरिष्ठ साथियों को पूर्ण मार्गदर्शन मिलता रहे। ऐसे कार्यक्रम निरंतर होंगे। साथ ही डॉ.वैदिक, विजय त्रिवेदी व जस्टिस दवे का आभार जताया कि उन्होंने शॉर्ट नोटिस पर उनका निमंत्रण स्वीकार किया और सभी का उत्तम मार्गदर्शन किया।


कार्यक्रम संयोजक एवं वरिष्ठ पत्रकार योगेश शर्मा ने संचालन करते हुए सभी अतिथियों का विस्तार से परिचय कराया तथा कार्यक्रम की विस्तार से जानकारी दी। कौंसिल ऑफ जर्नलिस्ट्स के संरक्षक धीरेन्द्र जैन ने अतिथियों का स्वागत करते हुए अपने पत्रकारिता के संस्मरण ताजा किए। इस अवसर पर अतिथियों का पुष्प गुच्छ भेंट कर, शॉल ओढ़ाकर व स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया गया। इस अवसर पर अतिथियों का पुष्प गुच्छ भेंट कर, शॉल ओढ़ाकर व स्मृति चिन्ह देकर सम्मान किया गया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में विभिन्न संस्थानों के पत्रकार, संवाददाता, छायाकार उपस्थित थे।


रविवार, 11 फ़रवरी 2018

11 जिलों में पथ व पुल-पुलियों के लिए 416 करोड़ की मंजूरी

पटना : पथ निर्माण मंत्री  नंदकिशोर यादव ने कहा है कि राज्य में पथ निर्माण, पथों के चौड़ीकरण व मजबूतीकरण, आरसीसीपुल बनाने व निर्माण की अन्य योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए चरणबद्ध तरीके से दी जा रही स्वीकृति के क्रम में विभाग ने 11 जिलों के लिए 416 करोड़ रुपये की मंजूरी दी है.
स्वीकृत राशि से मुजफ्फरपुर, दरभंगा, रोहतास, नालंदा, पूर्वी चंपारण, गया, कोसी व सीमांचल के जिले में पथों के रख-रखाव, डायवर्सन बनाने व रोड सेफ्टी के कार्य किये जायेंगे. मोतिहारी के मोतीझील को और भी आकर्षक बनाने की दिशा में 4.87 करोड़ खर्च किये जायेंगे. यादव ने बताया कि सीमांचल में निर्माण कार्य के लिए 228 करोड़ रुपये की विभाग ने स्वीकृति प्रदान की है. 
  कटिहार जिले के आजमनगर पथ के लिए 3.87 करोड़, मुजफ्फरपुर जिले के बसघट्टा-पुपरी पथ के लिए 4.16 करोड़, दरभंगा जिले के विशनपुर-अतरवेल पथ के लिए 4.42 करोड़, पूर्वी चंपारण जिले के मोतीझील के लेक पथ के लिए 4.81 करोड़ की मंजूरी मिली है. रोहतास जिले के डेहरी ऑन सोन के केशोबिगहा-वरुणा-सलुकपुर पथ के लिए 4.78 करोड़ और गया जिले के कंडी नवादा-बुनियादगंज-फल्गु पथ के लिए 99.76 लाख रुपये की विभाग ने स्वीकृति प्रदान की है.
 नालंदा जिले के हिलसा में रामघाट से बेरथू पथ वाया लच्छु बिगहा-बलधा- डियांवा-करायपरसुराय-दीरी के मध्य 18.20 किमी पथ के लिए 72.21 करोड़, मधेपुरा में ग्वालपाड़ा-बिहारीगंज के 9 किमी पथ के लिए 47.04 करोड़, पश्चिम चंपारण के बेतिया के छोटकी पट्टी से राम नगर वाया कपरधिका पथ के मध्य 10.50 किमी पथ के लिए 50.48 करोड़, अररिया के जहांपुर-सोहन्दर-उरलाहा-हसनपुर पथांश में 26.25 किमी पथ के लिए 76.02 करोड़, पूर्णिया में फलका चौक से करन चौक वाया श्रीपुर माली भवानीपुर पथ में 33.20 किमी सड़क के लिए 114 करोड़ और इसी जिले में विशुनपुर-सुपौली पथ में 11 किमी के लिए 33.41 करोड़ रुपये की स्वीकृति दी गयी है.
 मंत्री ने कहा कि पथों के निर्माण के लिए सिलसिलेवार तरीके से मंजूरी का क्रम जारी है.  बाढ़ से क्षतिग्रस्त सड़कों के निर्माण व मरम्मत के साथ-साथ राज्य के उन जिलों में भी पथों के निर्माण व अन्य योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए राशि की स्वीकृति प्रदान की जा रही है.  

शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

संविधान बचाओ न्याय यात्रा में तेजस्वी यादव अपनी राजनीति को एक नया स्वरूप देने की कोशिश की है.

इससे पहले, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी कई मौकों पर दलितों के घर जाकर भोजन किया है. अब इस कड़ी में तेजस्वी यादव का भी नाम जुड़ गया है.


संविधान बचाओ न्याय यात्रा की शुरुआत करने के क्रम में आरजेडी नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव कटिहार पहुंचे. कटिहार में अपने रात्रि प्रवास के दौरान तेजस्वी यादव कुर्सेला प्रखंड के बलथि महेशपुर दलित टोला गए, जहां उन्होंने एक महादलित परिवार के घर रात का भोजन किया.

डोमन राम, महादलित के घर के हालात का जायजा लिया. तेजस्वी ने सबसे पहले शौच करने की इच्छा जताई और डोमन राम के घर के बाहर बने शौचालय में पहुंच गए, लेकिन शौचालय की हालत देखकर उन्होंने बिहार सरकार को जमकर कोसा.

तेजस्वी ने कहा कि बिहार सरकार और केंद्र सरकार शौचालय बनाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, लेकिन इसके बावजूद भी डोमन राम जैसे महादलित को खुद अपने पैसे से शौचालय बनाना पड़ा है. ये शौचालय भी पूरा नहीं बना है, क्योंकि इसमें दरवाजा नहीं है.

इसके बाद तेजस्वी डोमन राम के मिट्टी के घर में गए. तेजस्वी घर की हालत देखकर नीतीश सरकार पर बरस पड़े और कहा कि इंदिरा आवास योजना के तहत सरकार गरीबों को मकान बनाने के लिए पैसे देती है, लेकिन वह पैसे डोमन राम जैसे गरीबों को नहीं पहुंचता है. इसके बाद तेजस्वी ने डोमन राम से पूछा कि क्या उनके घर में नल का पानी आता है या फिर बिजली आती है. इसके जवाब में डोमन राम ने कहा कि यह दोनों चीजें भी उनके घर पर अब तक उपलब्ध नहीं हुई हैं.

इस पर तेजस्वी ने कहा कि बिहार और केंद्र में अब डबल इंजन की सरकार होने के बाद भी गरीबों के लिए कुछ नहीं किया जा रहा है. इसकी वजह से नंदन गांव जैसी घटनाएं हो रही हैं, जहां पर महादलितों ने नीतीश कुमार पर नाराजगी जताते हुए उनके काफिले पर कुछ दिन पहले हमला किया था.

इसके बाद तेजस्वी ने स्थानीय विधायक और सहयोगियों के साथ डोमन राम के घर पर जमीन पर बैठकर रात्रि भोजन किया. भोजन में तेजस्वी को पूरी, आलू गोभी की सब्जी और चावल का खीर परोसा गया.

आजतक से बातचीत करते हुए तेजस्वी यादव ने कहा कि पिछले 12 सालों से नीतीश कुमार दावा कर रहे हैं कि बिहार में विकास का काम हुआ है. खासकर गरीब और महादलितों के लिए हुए विकास की पड़ताल करने के लिए वह महादलित टोला में पहुंचे थे.

गौरतलब है कि, अब तक के अपने छोटे राजनीतिक जीवन में तेजस्वी यादव ने कभी भी किसी महादलित के घर में भोजन नहीं किया है. जब उनसे पूछा गया कि ऐसा करने के लिए उन्हें किसने प्रेरित किया तो तेजस्वी ने कहा, उन्होंने यह सब अपने पिता लालू प्रसाद से सीखा है.

इससे पहले, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी कई मौकों पर दलितों के घर जाकर भोजन किया है. अब इस कड़ी में तेजस्वी यादव का भी नाम जुड़ गया है.

तेजस्वी ने कहा कि अपने न्याय यात्रा के दौरान वह अनदेखी और स्पेशल राज्य का दर्जा नहीं दिए जाने के मुद्दे को उठाएंगे. उन्होंने कहा कि वह नीतीश कुमार और भाजपा के बीच सांठगांठ और बिहार में विकास कार्य नहीं होने के मुद्दे को भी जनता के बीच लेकर जाएंगे.

वहीं, दूसरी तरफ महादलित डोमन राम ने कहा कि तेजस्वी यादव के उनके घर पर आने और भोजन करने को लेकर वह काफी खुश हैं और अब उम्मीद करते हैं कि उनके परिवार का कुछ भला होगा.

दिलचस्प बात यह है कि, आरजेडी को अब तक मुख्य रूप में यादवों और मुसलमानों की पार्टी के रूप में जाना जाता था, जबकि दलित और महादलित पर नीतीश कुमार के पार्टी की पकड़ थी. लेकिन बक्सर के नंदन गांव में जिस तरीके से महादलितों ने अपने इलाके में विकास के कार्य नहीं होने को लेकर पिछले महीने नीतीश कुमार के काफिले पर हमला किया था उसके बाद से ही तेजस्वी दलित और महादलितों के मुद्दे को उठा रहे हैं. 

यही नहीं, नीतीश के काफिले पर हमले के कुछ दिन बाद तेजस्वी यादव महादलितों पर हुए पुलिसिया अत्याचार को लेकर नंदन गांव भी पहुंचे थे. अब न्याय यात्रा की शुरुआत करने से पहले महादलित के घर में भोजन करके उन्होंने अपनी राजनीति को एक नया स्वरूप देने की कोशिश की है.

सड़क दुर्घटना में उप मुखिया की मौत

नालंदा। थाना क्षेत्र के बड़गांव पंचायत के जुआफर के वार्ड सदस्य सह पंचायत का उपमुखिया सूर्यकान्त चौधरी का सड़क दुर्घटना में गुरुवार की देर शाम मौत हो गई। थानाध्यक्ष बिगाउ राम ने बताया कि सूचना मिली कि बड़गांव कुंडलपुर पथ में बेगमपुर के पास गुरुवार की देर शाम सड़क हादसा में एक युवक की मौत हो गई। जिसकी पहचान बड़गांव पंचायत के उप मुखिया जुआफर निवासी सूर्यकान्त चौधरी के रूप में की गई। उप मुखिया अपने बाइक से कुंडलपुर के रास्ते से घर की ओर जा रहे थे। इसी बीच बाइक का संतुलन बिगड़ते ही वे एक ताड़ की पेड़ से टकरा मार दी। इस घटना में उप मुखिया का घटनास्थल पर ही मौत हो गई। पुलिस शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए सदर अस्पताल बिहारशरीफ भेज दिया। उपमुखिया की मौत की खबर से पूरा पंचायत में मातमी सन्नाटा पसर गया है। परिजन का रो रोकर बुरा हाल है।

शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2018

हवाला मामला: पटना में पकड़े गये कारोबारी

तलाशा जा रहा अातंकी कनेक्शन 

हवाला मामले में  पकड़े गये अहमदाबाद के कारोबारी अनिल मित्तल के तार पाकिस्तान के हवाला कारोबारियों से जुड़े हुए हैं. अनिल मित्तल के बरामद मोबाइल व लैपटॉप से पुलिस को कई पाकिस्तान के नंबर मिले हैं. पुलिस ने उन नंबरों का सीडीआर भी निकाला है.

उसका विश्लेषण शुरू कर दिया है. इस कारोबारी ने देश के कई राज्यों में भी पैसों को इधर से उधर किया है. अनिल मित्तल की गिरफ्तारी के संबंध में पटना पुलिस ने अहमदाबाद पुलिस को भी जानकारी दे दी है. अनिल मित्तल के संपर्क में पटना का पंकज कुमार था. पंकज पटना से पैसों को अहमदाबाद में अनिल मित्तल के पास भेजता था. वहां से अनिल मित्तल उसे ठिकाने लगाता था.

तलाशा जा रहा अातंकी कनेक्शन

इन लोगों से पाकिस्तान के हवाला कारोबारी जुड़े हुए हैं, जिसके कारण आतंकी  कनेक्शन के बिंदु पर भी छानबीन की जा रही है. कई बार यह बात सामने आ चुकी  है  कि आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन को भी हवाला के जरिए ही बाहर के  देशों खास कर पाकिस्तान से करोड़ों रुपये आ चुके हैं, जो वे अपने संगठन के  विस्तार में खर्च करते हैं.

पुराने नोटों की अदला-बदली की आशंका : साथ ही अब पटना पुलिस अब इसकी छानबीन में जुटी है कि अनिल मित्तल पुराने नोटों की अदला-बदली में भी शामिल था. अभी तक जो जानकारी पुलिस को हाथ लगी है, उसके अनुसार करोड़ों के पुराने नोट को भी अनिल मित्तल बदल चुका है.
इसमें पंकज ने भी अहम भूमिका निभायी थी. पुलिस को यह भी जानकारी मिली है कि पुराने नोटों को भी चेंज कर विदेशी करेंसी ली जा रही है. पुलिस को इस बात का अंदेशा है कि इन हवाला कारोबारियों ने  विदेशों के बैंकों में पुरानी करेंसी जमा करने का खेल भी खेला है. इस लाइन पर अभी पुलिस जांच कर रही है. 

 क्या है हवाला?

हवाला पैसों का लेनदेन अवैध कारोबार है जिसके जरिये ब्लैक मनी को ठिकाने लगाया जाता है. इसमें किसी भी प्रकार से पैसों के लेनदेन के वैध माध्यम मसलन बैंक, एटीएम आदि का इस्तेमाल नहीं किया जाता. इस प्रकार के लेन-देन में व्यक्तियों के नेटवर्क का इस्तेमाल किया जाता है. हवाला में पैसा देने वाले और लेने वाले  व्यक्ति के बीच  कोई सीधा संवाद नहीं होता. यह काम बिचौलियों के माध्यम से कोड्स के जरिये किया जाता है.

हवाला लेन-देन कैसे होता है भारत में एक राजनीतिक 

पार्टी के नेता मिस्टर नटवर लाल ने बहुत बड़ी मात्रा में कालाधन कमाया है और अब वे इस कालेधन को भारत में नहीं रखना चाहते हैं...
इसलिए उन्होंने इसको स्विट्जरलैंड में जमा करने का फैसला किया है. अब वह किसी तरह एक एजेंट का जुगाड़ करते हैं, जो कि स्विट्जरलैंड में उनका बैंक अकाउंट खुलवा देता है और वहां पर रहने वाले मिस्टर माइकल द्वारा कमाया हुआ 100 करोड़ का काला धन स्विट्जरलैंड की मुद्रा (स्विस फ्रैंक) में ही मिस्टर नटवरलाल के खाते में जमा करा देता है.

अब स्विट्जरलैंड में रहने वाले मिस्टर माइकल ने उसी एजेंट के माध्यम से भारत में अपने किसी परिचित के खाते में मिस्टर नटवरलाल से पैसा लेकर जमा करा दिया है. इस प्रकार इस हवाला कारोबार में शामिल दोनों लोगों ने अपने-अपने काले धन को सफेद कर लिया है.

दरअसल हवाला वह कारोबार है जिसमें कानून के दायरे से बाहर गैरकानूनी रूप से पैसे का एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरण किया जाता है. यह सभी तरह के फाइनेंसियल संस्थाओं और सरकार के नियमों की अनदेखी कर किया जाता है. दलालों के माध्यम से ही करोड़ों की राशि का स्थानांतरण एक राज्य से दूसरे राज्य और एक देश से दूसरे देश में किया जाता है. इसमें दलालों को काफी कमीशन भी प्राप्त होता है. 

  हवाला कारोबार में शामिल रहते हैं तीन लोग 

हवाला कारोबार में तीन लोग अवश्य शामिल होते हैं. पहला जिससे पैसे देता है. दूसरा पैसा लेने वाला होता है और फिर तीसरा वह होता है जो दूसरे से पैसे लेकर किसी को कोड बताने पर अपना कमीशन लेकर भुगतान करता है.

पूरी तरह विश्वास पर निर्भर करता है हवाला कारोबार 

यह कारोबार पूरी तरह से एक-दूसरे के विश्वास पर काम करता है.  इसमें पैसे  भेजने वाला व्यक्ति किसी दलाल को पैसे देता है. पैसे भेजने वाला व्यक्ति  पैसे प्राप्त करने वाले को एक पासवर्ड की तरह या कुछ भी उस से जुड़े कोड दे  देता है. पैसा बिना कोड के किसी को नहीं मिलता. हवाला कारोबार के तहत होने  वाले धन के स्थानांतरण में सरकार  का कोई नियंत्रण नहीं होने की वजह से एक  समानांतर वितीय प्रणाली चलती है. जिससे उस पैसे का इस्तेमाल किस उद्देश्य  से किया जा रहा है, इसकी जानकारी सरकार के पास नहीं होती है. इसका इस्तेमाल  आतंकी गतिविधि में भी हो सकता है. दुनिया भर के जितने भी आतंकवादी संगठन  है या देश विरोधी संगठन है, उनको होने वाली फंडिंग इसी तरह होती है.

 पहले भी पकड़े जा चुके हैं हवाला कारोबारी 

धनबाद में हवाला कारोबारी पकड़े गये थे और यह बात सामने आयी थी कि पटना में 27 अक्बतूर को हुए सीरियल ब्लास्ट के मामले में इंडियन मुजाहिद्दीन को बाहर से पैसे आये थे.

इसके अलावा लखीसराय में पुलिस ने हवाला कारोबार में संलिप्तता चार लोगों को पकड़ा था और उनके आइएसआइ कनेक्शन की जानकारी मिली थी. झारखंड के देवघर निवासी रंजीत कुमार को पकड़ा था और उसके पास से 16 लाख रुपये के साथ ही 36 एटीएम कार्ड बरामद किया गया था. इसके बाद पटना में संचालित हवाला कारोबार के एक कार्यालय में छापेमारी हुई थी. यह जानकारी मिली थी कि इनके तार पाकिस्तान से जुड़े हुए है.

 लॉटरी के काम संचालित होते हैं पाक से 

पूरे बिहार में जालसाजी करने वाले गिरोह सक्रिय है. इसमें पुलिस के हाथ वो लोग ही लगे है, जो कमीशन पर इस धंधे में संलिप्त है. जबकि सरगना पाकिस्तान से बैठ कर गिरोह को संचालित कर रहा है. लॉटरी लगने का प्रलोभन कर रजिस्ट्रेशन मनी के नाम पर एकाउंट में पैसे डलवाना, बैंक अधिकारी बन कर फोन करना और एटीएम कोड जान कर पैसे निकालने वाले गिरोह के तार भी पाकिस्तान से जुड़े है. यहां के लोगों को केवल फर्जी एकाउंट पर पैसे जमा करने व निकालने की जिम्मेदारी होती है.

क्या है दंड का प्रावधान 

हवाला का कारोबार करने वाला मनी लॉन्ड्रिंग, विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (फेरा) व अन्य कर अधिनियम का दोषी पाया जाता है. फेरा कानून के तहत सरकार द्वारा अधिकृत व्यवसायी से ही धन का लेन-देन किया जा सकता है. इस कानून का उल्लंघन करने पर जुर्माना राशि, हवाला कारोबार की राशि का पांच गुना तक और सात साल तक की सजा का प्रावधान है.

 नेपाल में भी करोड़ों के पुराने नोट खपाये जाने की संभावना  

सूत्रों के अनुसार अनिल मित्तल के मोबाइल फोन व लैपटॉप में नेपाल के भी कई कांटेक्ट नंबर मिले हैं.इससे यह आशंका जतायी जा रही है कि काले धन को नेपाल में भी खपाने का काम अनिल मित्तल व पंकज करता था. इसके अलावा अनिल मित्तल पुराने नोटों की भी नये नोट में बदली कर करोड़ों रुपये कमाने की आशंका जतायी जा रही है. पुलिस यह मान कर चल रही है कि नेपाल में काफी दिनों तक भारत के पुराने नोट ही लिये गये. जिसका फायदा हवाला कारोबारियों ने उठाया. इन सभी बिंदु पर पटना पुलिस अनुसंधान कर रही है. पटना पुलिस ने कहा है. दूसरी ओर हवाला कारोबार में संलिप्त अनिल मित्तल, पंकज कुमार व उसके कर्मचारी नंद कुमार व आशुतोष को पटना पुलिस ने जेल भेज दिया है और उसे रिमांड पर भी लिया जायेगा.

विपक्ष के सपने नहीं होंगे पूरे, अगला चुनाव हम जीतेंगे-मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे

जयपुर। तीन उपचुनाव में हुई बीजेपी की हार पर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने सदन में कहा ​कि हम पता करेंगे कि कमी कहां रही है और उस कमी को दूर करते हुए हम वापस जनता का आशीर्वाद प्राप्त करेंगे। विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर सीएम मुख्यमंत्री के सदन में दिए गए रिप्लाई के दौरान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने यह बात कही।

करीब एक घंटे तक सदन में दिए मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने जवाब में राज्यपाल के अभिभाषण को पॉलिसी डॉक्यूमेंट करार दिया और इसमें दी गई सभी जानकारी शत प्रतिशत सही बताई। इस दौरान सीएम राजे विपक्ष के सदस्यों को भी नसीहत देने में पीछे नहीं रही। वहीं सीएम के जवाब के दौरान विधायक घनश्याम तिवाड़ी और ​कांग्रेसी सदस्यों की ओर से जो हुआ उसे भी शर्मनाक करार देते हुए विधानसभा की गौरवशाली परंपरा पर काला धब्बा बताया।

सीएम ने गिनाई योजनाएं, रिफाईनरी पर विपक्ष पर निशाना
सीएम ने सदन में दिए अपने उद्बोधन में भामाशाह, अन्नपूर्णा रसोई योजना, न्याय आपके द्वार, भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना, ग्रामीण गौरव पथ सहित सरकार की विभिन्न योजनाओं और उपलब्धियों को सदन में रखा। राजे ने कहा कि भामाशाह योजना में राजस्थान देश में प्रथम स्थान पर है तो वहीं र्इ-मित्र की संख्या के मामले में राजस्थान में देश के 20 प्रतिशत ई-मित्र है। राजे ने प्रदेश का सबसे ज्यादा नवाचार करने वाला प्रदेश बताया तो वहीं शिक्षा के क्षेत्र में किए गए अमूलचूल परिवर्तन और सुधार से देश में तीसरे स्थान पर पहुंचाने की बात कही।
सीएम के अनुसार चार साल पहले शिक्षा के मामले में राजस्थान की स्थिति देश में 26वें स्थान पर थी। इस दौरान बाड़मेर रिफाइनरी को लेकर सीएम ने कांग्रेस पर निशाना साधा। सीएम राजे ने कहा कि पिछली सरकार जाते जाते आंचार सहिता लगाने से पहले कई शिलान्यास के जरिए कई पत्थर लगा गई लेकिन बिना बजट के इसका कोइ औचित्य नहीं था। रिफाइनरी में तो इतनी जल्दबाजी की कि प्रदेश की जनता का हित तक नहीं देखा।
सीएम ने विपक्ष में बैठे नेता प्रतिपक्ष की ओर इशारा करते हुए कहा कि आपको तो नए एमओयू के लिए पीएम नरेंद्र मोदी और केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान का हृदय से आभार व्यक्त करना चाहिए।

महात्मा गांधी का आपने किया राजनीतिक उपयोग
अपने उद्बोधन में सीएम राजे ने महात्मा गांधी के नाम का भी कई बार जिक्र किया। राजे ने कहा कि कांग्रेस तो साल में दो बार गांधी जी को याद करती है वो भी राजनीतिक फायदा लेने के लिए लेकिन हमारी सरकार ने तो गांधी जी का नाम देशहित के साथ जोड़ा। स्वच्छ भारत अभियान उसका उदाहरण है लेकिन गांधी जी का सियासी इस्तेमाल करने वाले लोग फिर भी गंदगी फैलाने का काम करते है।

सीएम राजे ने ​कांग्रेसी सदस्यों को कहा कि सरकार के अच्छे कामों की वो भी तारीफ करे केवल हर काम की बुराई करना सही नहीं है।
विपक्ष के सपने नहीं होंगे पूरे, अगला चुनाव हम जीतेंगे
सीएम वसुंधरा राजे के पूरे उद्बोधन में हाल ही में आए उपचुनाव के नतीजों का असर दिखा लेकिन हार से उबरकर नया जोश देने का काम भी इस उद्बोधन में दिखा। राजे ने सदन में कहा कि हमारा कार्यकर्ता निष्ठावान है और संगठन मजबूत। राजे ने कहा कि अगले चुनाव में कांग्रेस की जीत के सपने कभी पूरे नहीं होंगे। राजे ने नेता प्रतिपक्ष की ओर ​इशारा करते हुए कहा कि अगले चुनाव के बाद भी हम आपको सदन में इसी जगह मिलेंगे और कांग्रेस सदस्य वहीं अपनी जगह दिखेंगे।

राजे ने कहा ​कि उन्हें अपने कार्यकर्ताओं,बीजेपी संगठन और उसकी नीतियों,केन्द्र और राज्य सरकार की नीतियों पर पूरा विश्वास है और इसी विश्वास हम अगला विधानसभा चुनाव जीतेंगे।

हमारे नेताओं ने लोकतंत्र की सारी सीमाएं लांघ दी है

जयपुर। विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण पर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के जवाब के दौरान वो ही सियासी ड्रामा हुआ जिसका अंदाजा सबको पहले से ही था। नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी के बाद जैसे ही सीएम वसुंधरा राजे का जवाब के लिए पुकारा गया तो सत्ता पक्ष के विधायक घनश्याम तिवाड़ी भी खड़े हो गए और सदन में अपना विरोध जाहिर करने लगे।

उनका आरोप था कि अभिभाषण पर उन्हें जानबूझकर नहीं बोलने दिया गया। उन्होंने कहा कि सीएम नहीं चाहती कि वे बोले लेकिन उनके पास कुछ दस्तावेज है बोलने को। ऐसे में स्पीकर कैलाश मेघवाल ने उन्हें यह कहकर शांत करना चाह कि गुरूवार को जब उनके बोलने का समय था तो वो ही सदन से वॉक ऑउट कर चले गए। ऐसे में अब उन्हें बोलने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

इस पर तिवाड़ी नहीं माने और कहा कि मैं नहीं बोलता लेकिन बैठूंगा भी नहीं। ऐसे में संसदीय कार्य मंत्री राजेन्द्र राठौड़ ने तिवाड़ी के इस व्यवहार की निंदा की और उन्हें वरिष्ठ बताते हुए ऐसा आचरण नहीं करने की सलाह दी। इस पर तिवाड़ी ने कहा कि मैं वरिष्ठ नहीं गरिष्ठ हो गया हूं। इस पर राठौड़ ने यह कहा कि मीडिया में छपने के लिए आप ऐसा कर रहे है।

इस बीच जब तिवाड़ी खड़े रहते हुए अपने विरोध जता रहे थे कि निर्दलीय हनुमान बेनीवाल ने कमेंट किया कि सीएम का अपने विधायकों पर ही नियंत्रण नहीं रहा तो वहीं ​कांग्रेस के विधायक भी इस पर सरकार के खिलाफ टिप्पणी करने लगे। ऐसे में तिवाड़ी ने कहा कि मै चुप रहूंगा पर खड़ा रहकर विरोध करूंगा और यदि आप बोले तो सदन के बाहर चले जाउंगा। ऐसे में स्पीकर ने उन्हें सदन से बाहर जाने को कह दिया।
सदन हो गया आज लाचार- कटारिया
जब घनश्याम तिवाड़ी का विरोध चल रहा था तब सदन में मौजूद गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया ने भी कहा कि आज सदन लाचार नजर आ रहा है। कटारिया ने कहा कि 40 साल में पहली बार ऐसा दृश्य सामने आया है और यह लोकतंत्र के लिए दाग बनेगा। कटारिया ने कहा कि हमारे नेताओं ने आज लोकतंत्र की सारी सीमाएं लांघ दी है और यह लोकतंत्र पर भार बनेगा।

आईना दिखाया है हम, सबको. पैडमैन बने अक्षय कुमार ने

टॉयलेट: एक प्रेमकथा को एक वर्ग ने चापलूसी की पराकाष्ठा कहा था. आलोचक पैडमैन को अब क्या कहेंगे?
 (डॉ. मीना शर्मा .)
कभी दादी, कभी चाची, कहीं स्कूल टीचर की खीज तो कहीं सास की निगाहें, कभी इशारों की ज़ुबान तो कभी फटकार से सहमी लड़कियों की घुटन. उपेक्षा और तिरस्कार ने शरीर से निकले रक्त से ज़्यादा कष्ट दिया है. पैडमैन बने अक्षय कुमार को समाज की ये असल तस्वीर देखने का मौका शायद कभी नहीं मिला हो, लेकिन आज रिलीज़ हुई फिल्म ने बॉलीवुड की जवाबदेही तय करने में बड़ा योगदान दिया है. ढंके बदन के पीछे छिपे चीथड़ों को उधेड़कर रख दिया है. चौतरफा जोखिम के डर को पैड में निचोड़कर आईना दिखाया है हमको, सबको.

आर बाल्की के लेखन ने पुरज़ोर तरीके से स्थापित किया है कि शारीरिक पीड़ा के साथ मानसिक यातना का दर्द झेल रही हिंदुस्तान की बेटियां सिर्फ पैड की उपलब्धता से वंचित नहीं हैं. वह उस बंजर सोच में पल बढ़ रही हैं जहां मासिक धर्म एक शाप है. कहीं बोझ ये कि तीन दिन खाना कौन बनाएगा, कहीं डर ये कि स्कूल में कोई अनपेक्षित हादसा तो नहीं हो जाएगा. ऐसे में क्या हमारा देश पैडमैन के संदेश को आत्मसात कर पाएगा?   

बतौर प्रोड्यूसर, ट्विंकल खन्ना इस बात से उत्साहित हैं कि लोग इस विषय पर खुलकर बात करने का साहस जुटा रहे हैं. वे कहती हैं, 'ये सहभागिता ही सबसे बड़ी उपलब्धि है’. पैडमैन की टीम ने देश में माहौल बनाने का जबर्दस्त काम किया है. बड़े बड़े सितारों ने सोशल मीडिया पर अभियान बना दिया. हालांकि शूटिंग के शुरुआती दिनों में कई बार अक्षय कुमार को झिझक हुई. लेकिन कॉमेडी को मुख्यधारा की फिल्म में अव्वल जगह दिलाने वाले बिंदास नायक ने कहा, ‘तीन घंटे की फिल्म की शूटिंग करना इतना कष्टप्रद है तो हर महीने तीन से सात दिन के इस दर्द को कम करना कितना ज़रूरी है.’ मुद्दे की गंभीरता के मद्देनज़र जितनी संजीदगी दिखाई वह उन्हें मर्दों की भीड़ में अलग खड़ा करती है.

टॉयलेट: एक प्रेमकथा को एक वर्ग ने चापलूसी की पराकाष्ठा कहा था. आलोचक पैडमैन को अब क्या कहेंगे? इस फिल्म की कहानी ने किसी सेना का स्वाभिमान नहीं डिगाया, न ही आंदोलनों की आंधी आई. किसी ने शर्म से झुककर अपनी शूरवीरता को लानत भी नहीं दी. भारतीय समाज का यही दोहरा चरित्र मोदी सरकार के अहम मंत्रियों को वादाखिलाफी के लिए निर्भीक बनाता है.

16 सिंतबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर केंद्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री कर्नल राज्यवर्धन सिंह ने अपने लोकसभा क्षेत्र की स्कूली छात्राओं से बातचीत करते हुए स्कूल में पैड उपलब्ध कराने का भरोसा दिया. मंत्रीजी की बात सुनकर प्रिंसिपल से लेकर छात्राएं उत्साहित हुईं, लेकिन फोटो सेशन के बाद मंत्री ने मुड़कर सुध नहीं ली. वादों से हक़ीकत की ये दूरी इतनी लंबी है इसीलिये केन्द्र सरकार 2019 की बजाय नतीजों के लिए 2024 को तरज़ीह देना शुरू कर चुकी है. मौजूदा सरकार ही क्यों इससे पहले की स्वास्थय योजनाओं में भी मैन्स्ट्रुअल हाइजीन अछूता विषय रहा है. यही वजह है कि ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में महिला स्वास्थ्य के लिहाज से भारत की रैंकिंग 142 वीं है, जो नीचे से तीसरी है.

यही वजह है कि केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी उन विकल्पों को तलाश रही हैं जहां पर्यावरण की स्वच्छता के साथ महिलाओं के स्वास्थ्य को सर्वोच्च जगह मिले. किफायती दामों पर उपलब्धता के साथ सुरक्षित डिसपोजल को पुख्ता करने के लिए वे संबंधित मंत्रियों को लामबंद करने में जुटी हैं. हालांकि महिला एंव बाल विकास मंत्रालय खुद दोयम दर्जे के विभाग के रुप में देखा जाता रहा है. अब तक के मंत्रियों का रवैया भी इस सोच से अछूता नहीं रहा, लेकिन मेनका गांधी की सक्रियता और केन्द्र सरकार के सहयोग से  फिल्म की टीम गांवों में प्रोजेक्टर लगाकर फिल्म दिखाने की योजना बना रही है.

मेनका गांधी कहती हैं, ‘जिस विषय पर प्राथमिकता से विशेष ध्यान देने की ज़रूरत थी वो इतना अनदेखा/ अनछुआ रहा कि आज अक्षय कुमार को पैड पहनकर दिखाना, बताना पड़ रहा है.’

ये बात हमारी उन सांसदों-विधायकों पर भी उतनी ही ईमानदारी से लागू होती है जो राज्यों की मुख्यमंत्री से लेकर देश के सूचना एवं प्रसारण, विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री के पदों पर पहुंचीं, लेकिन अपने विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों की बेटियों और महिलाओं की इस छोटी सी ज़रूरत को नहीं समझ पाईं. देश में एक भी उदाहरण नहीं है जहां किसी जनप्रतिनिधि ने अपने इलाके को मैन्स्ट्रुअल हाइजीन फ्री बनाकर नज़ीर बनाने की ठानी हो. चाहे वो महिला हो या पुरुष. यथास्थितिवादी मात्र बनकर हमारी सरकारें ही देश को नहीं चलाती रहीं, प्रगतिवादी महिलाएं भी अपने हितों/दायरों से बाहर नहीं निकल पाईं. पिछली सदियों में स्त्रीजाति ने स्वयं को दोयम दर्जे की वस्तु होना स्वीकारा. स्वतंत्रता व जिम्मेदरी के बजाय रक्षित, भोग्या, संरक्षित, प्रायः शोषित व यदाकदा पूजित रहना नारी ने स्वयं चुना. और इस सदी में भी ताकतवर पदों पर पहुंचकर ज़िम्मेदारी और जवाबदेही से बचती रहीं.

एक तरफ पीरियड्स के वक्त घरों में महिलाओं को अछूत रखा गया उतना ही सरकारी योजनाओं में उपेक्षित तो दूसरी तरफ गंदगी, संक्रमण से बचाव के बजाय नैपकिन अभिजात्यता का प्रतीक बनकर रह गया. बाजार, पूंजीवाद, विज्ञापन सभी इसे मात्र फ़ैशन की तरह पेश करते रहे. सरकारों ने भी मूकदर्शक बनकर इसे समृद्ध परिवारों तक सीमित रहने दिया. यही वजह है भारत में नैपकिन इस्तेमाल नहीं करने वाली लड़कियों और महिलाओं का प्रतिशत आज 80 फीसदी से ज्यादा है. हालांकि इसका कोई अधिकृत आंकड़ा सरकार के पास नहीं है. लेकिन पैडमैन के शोर के बीच नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 4, में बताया है कि बिहार में 80 प्रतिशत और यूपी में 81 प्रतिशत लड़कियां कपड़े का इस्तेमाल करती हैं.

ग्रामीण महिलाओं को तो रेत, लकड़ी के बुरादे और गोबर के उपलों के बोझ तले ये मुश्किल वक्त निकालना पड़ता है. शरीर के संवेदनशील हिस्से की एक बेहद प्राकृतिक प्रक्रिया आर्थिक और सामाजिक प्रताड़ना के विकृत रूपों में बीमारियों का भी कारण बनती है. इंटरनेशनल रिसर्च जनरल ऑफ सोशल साइंसेस के मुताबिक भारत में 88 प्रतिशत से ज़्यादा महिलाएं रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इन्फेक्शन यानी आरटीई का शिकार हो जाती हैं. सिर्फ इसलिए कि पीरियड्स में असुरक्षित तरीके अपनाने को मजबूर हैं. ऐसे में 125 करोड़ के राष्ट्र की आधी आबादी आज भी नैपकिन के सवाल से दो चार है तो प्रारंभिक ताज्जुब के बाद कोई ज्यादा आश्चर्य क्यों हो?

पैडमैन के असली हीरो, तमिलनाडु के अरुणाचलम मुरुगनाथम ने अपनी बहन और पत्नी की तकलीफ को कम करने की ठानी तो 1998 में कम लागत वाले सैनिटरी पैड बनाने की मशीन का आविष्कार किया. ये दुनिया की सबसे सस्ती 90 हज़ार की मशीन भारत में बनी. एक स्कूल ड्रॉपआउट ने जयश्री इंडस्ट्रीज नाम का नैपकिन बिजनेस खड़ा किया. इसकी 2003 यूनिट्स पूरे भारत में खड़ी कीं. 21000 से ज्यादा महिलाएं यहां काम करती हैं. लेकिन मुरुगनाथम के काम का आंकलन राष्ट्रहित में न उस वक्त की वाजपेयी सरकार ने किया न ही उसके बाद बनी यूपीए की दोनों सरकारों ने. जबकि यूपीए की चेयरपर्सन स्वयं महिला थीं. सरकारों की अनदेखी से ऐसे कई लघु उपक्रम देश के छोटे छोटे हिस्सों में दूसरी कई कुरीतियों को मिटाने के लिये भी बने और मिट गए. लिंग जांच करने वाली सोनोग्राफी मशीन पर लगने वाले ट्रैकर सहित कई उदाहरण इसमें शामिल हैं. 

क्या सरकारों का दायित्व नहीं था 20 करोड़ बेटियों के मरने से पहले डॉक्टर के कमरे में ट्रैकर वक्त पर लगाया जाता? नैपकिन को बुनियादी ज़रूरत बनाकर उपलब्धता को अनिवार्य कराया जाता? लेकिन पूर्ववर्ती सरकारों के घोटालों की काली स्मृति डराती है, वहीं मौजूदा पीएम की अतिसक्रियता के बाद भी धीमी गति निराश करती है. ऐसे में सवाल उठता है कि पैडमैन इस निराशा को कम करने में कारगर साबित होगी? महेश भट्ट से लेकर अनिल कपूर तक के हाथ में दिखा पैड ज़रूरतमंद बेटियों और महिलाओं के धब्बों को धो पाएगा?

राज्यवर्धन जैसे युवा मंत्री ने अपनी बेटी का उदाहरण देते हुए जब राजस्थान के आमेर के सरकारी स्कूल में सैनेटरी पैड उपलब्ध कराने वाली मशीन लगाने का भरोसा दिया तो छात्राओं में एक नई उम्मीद जगी थी. लेकिन मंत्री जी ने सरकारी स्कूल की बेटियों को महज़ बातों से खुश कर दिया. ठीक वैसे ही जैसे बेटा बेटी समानता के नारों से घर परिवार और समाज अब तक करता रहा है. मैं सालों साल इस बात से विचलित रही कि नवरात्रि में बेटियों की पूजा करने वाले लोगों में कन्या भ्रूण हत्या का साहस कहां से आता है? इसीलिये नतीजों की परवाह किए बिना देश और दुनिया का सबसे बड़ा स्टिंग ऑपरेशन किया. 12 साल पहले गर्भवती महिलाओं की जान जोखिम में डालकर किए गए इस ऑपरेशन के वक्त भी और आज भी मेरा सैद्धांतिक मत है कि किसी भी महिला को कोई दूसरा व्यक्ति लिंग जांच और उसकी बच्ची के कत्ल के लिये मजबूर नहीं कर सकता. लेकिन झंझटों से बचने के लिये बेटे के जन्म को चुनने वाली मां भी सामाजिक दबाव का पर्दा ओढ़कर बचना चाहती है. सैनेटरी नैपकिन की मांग भी झंझट न बन जाए इसलिये बहुत बार जानते हुए भी वो अपनी बेटी को चुपचाप गंदगी के गड्डे में ढकेल देती है.   

मुद्दा कोख में पल रही बेटियों को बचाने का हो या बात जीवित बेटियों के संरक्षण की, ज़रूरत इस बात की है कि हम झंझटों से पार पाएं न कि उन्हें अनदेखा कर यथास्थितिवादी बने रहें. पीसीपीएनडीटी एक्ट की सख्ती जितनी ज़रूरी है सरकारी स्कूलों से लेकर कॉर्पोरेट दफ्तरों में वुमन फ्रेंडली एनवायरनमेंट भी उतना ही अनिवार्य है. ऐसे अनगिनत दफ्तर मैंने करीब से देखे हैं जहां महिला टायलेट में गीले हाथ सुखाने के नैपकिन की व्यवस्था कराने के लिये महिलाकर्मियों को काफी मशक्कत करनी पड़ती है.

राधिका आप्टे ने भारतीय लड़कियों/महिलाओं की मनोदशा को समझने की ईमानदार कोशिश की है. शायद हमारी दादी, चाची, सास, टीचर अब ये आत्मनीरिक्षण करें कि आख़िर कब वे शोषित स्त्री से शोषक-तंत्र की पहरेदार, लंबरदार, शोषक बन गईं. कुछ अपवादों को छोड़ दें तो स्वयं वर्जनाओं में पली बढ़ी, आजादी के लिए तड़फी अधेड़/वरिष्ठा/वृद्धा अपने से अगली पीढ़ी को नियंत्रित करने की वृत्ति में उलझकर रह गई. नतीजा ये हुआ कि अपनी पीड़ा को कम करने से वंचित रहीं ये महिलाएं अगली पीढ़ी को घावों से बचा नहीं पाईं.

दरअसल भारतीय समाज की सफाई बनाये रखने की कीमत को न चुकाने व जद्दोजहद से बचने की नीयत कब गंदगी से विकृत घृणा में बदल गई यह कहना बड़ा मुश्किल है. कहने को असल पैडमैन ने क्रांति लाने का काम दो दशक पहले किया था लेकिन वास्तविक योगदान पर मोहर लगाने के लिए अमिताभ बच्चन को उनकी तुलना सुपरमैन, बैटमैन से करनी पड़ी. अक्षय खुले मन से स्वीकार करते हैं कि इस ढके और दबे हुए विषय पर बहस के लिए सिनेमाई छोंक ज़रूरी था. ट्विंकल को भी अपनी कहानी से ज़्यादा भरोसा अक्षय के अभिनय पर था. ठीक वैसे ही जैसे भारतीय महिला को पति के सानिध्य में पर. काश! हर पिता अनिल कपूर की तरह बेटी के भविष्य के प्रति सजग होता और हर पति अक्षय जैसा बावला. उम्मीद करते हैं पैडमैन गांव-गलियारों के चौबारों में पहुंचकर बड़े बदलाव का वाहक बने. और तथाकथित रिश्तों की सांठगांठ के बहाने ही सही, भारत सरकार इसे एक मिशन बनाए.

प्यार के चक्कर में कुंवारे ही नहीं, अब शादीशुदा भी छोड़ रहे हैं. इसमें महिलाएं भी शामिल हैं.

 पुलिस विभाग इसका कारण सामाजिक बदलाव मान रही है 
प्रेम-प्रसंग में घर छोड़ने वालों में  अब सिर्फ कुंवारे ही नहीं हैं. प्यार के चक्कर में  शादीशुदा महिलाएं और पुरुष भी अपना बसा बसाया घर छोड़ रहे हैं.  पुलिस विभाग के आंकड़े इसकी पुष्टि भी करते हैं. पुलिस इसका कारण सामाजिक बदलाव मान रही है. उनका मानना है कि शादीशुदा महिला या पुरुष को अपने जीवन साथी से वह प्यार-सम्मान व भरोसा नहीं मिलता, जिसकी उसे अपेक्षा होती है. ऐसे में वह गैर महिला या पुरुष पर भरोसा जताने लगता है. धीरे-धीरे यही भरोसा प्यार में बदलता है और वह घर छोड़ने जैसा कदम उठाने से भी पीछे नहीं हटती. इसमें महिलाएं भी शामिल हैं.

अपहरण की धाराओं में दर्ज होने लगे मामले

एडीजी सीआईडी विनय कुमार ने बताया कि वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट का आदेश हुआ तो गुमशुदगी वाले मामले भी अपहरण की विभिन्न धाराओं में दर्ज होने लगे. इसके कारण अपहरण के आंकड़े बढ़ गये. उन्होंने बताया कि वर्ष 2017 में 8972 केस अपहरण की विभिन्न धाराओं में दर्ज हुए. इसमें से फिरौती के लिये अपहरण (धारा 364ए) के मात्र 42 केस बिहार भर में दर्ज हुए. इसी तरह, हत्या के लिये अपहरण (धारा 364) के 137 केस दर्ज हुए. भीख मंगवाने के लिये अपहरण (धारा 363ए) के 14 मामले दर्ज हुए. विवाह करने के लिये व्यस्क लड़की-शादीशुदा महिलाओं ने घर छोड़ा. ऐसे 1839 मामले सामने आये.

चूंकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है, इसलिए इस मामले को भी अपहरण की धारा 366 में दर्ज किया गया. भले ही अधिकतर मामलों में महिला ने सहमति से घर छोड़ने की बात कबूल की. 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की के घर छोड़ने के 4525 केस हुए. इनमें से भी 95 फीसदी से अधिक प्रेम-प्रसंग के मामले थे. इन मामलों को भी आईपीसी की धारा 366 ए के तहत दर्ज किया गया. इसे भी अपहरण की श्रेणी में रखा गया.

- बदलाव का असर

एडीजी सीआईडी विनय कुमार कहते हैं, आजकल अपहरण के मामले विभिन्न धाराओं में दर्ज हो रहे हैं. इसमें गुमशुदगी वाले मामले भी शामिल हैं. गुमशुदगी के अधिकतर मामले प्रेम प्रसंग से जुड़े होते हैं. इसमें शादीशुदा महिलाएं और पुरुष भी शामिल हैं. कुल मिलाकर यह सामाजिक बदलाव का असर है. घर में अपने पति से नहीं बन रही तो वह महिला बाहर किसी के साथ दिल लगा लेती है. एक समय ऐसा आता है कि वह घर छोड़ देती है. ऐसा ही पुरुषों के साथ होता है. पुरुष की पत्नी से नहीं बन रही तो वह बाहर लड़की के संपर्क में आता है और घर छोड़ने जैसा निर्णय ले लेता है.

- बोलते आंकड़े

वर्ष 2017 में बिहार पुलिस ने अपहरण की विभिन्न धाराओं में 8972 मामले दर्ज किये. इसमें 1839 ऐसे मामले शामिल हैं, जिसमें शादी के लिये बालिग लड़की ने घर छोड़ा है. खास बात यह कि इसमें शादीशुदा महिलाएं भी शामिल हैं. इसी तरह 18 साल से कम उम्र की लड़कियों के घर छोड़ने का आंकड़ा भी कम नहीं है. 4525 लड़कियों ने पराये मर्द के साथ घर छोड़ा, परंतु परिजनों ने अपहरण की या बहला-फुसलाकर घर से ले जाने की शिकायत थाने में की. 90 प्रतिशत से अधिक मामलों में लड़की अपनी सहमति से घर से प्रेमी के साथ जाती है. यहां भी यह गौर करने वाली बात सामने आयी कि प्रेमियों में अधिकतर शादीशुदा हैं.

‘एक देश, एक चुनाव’ के नाम पर लोकतांत्रिक व्यवस्था खतरे में

सरकारें समस्याओं की जटिलताओं में जाकर उनके समाधान के समुचित प्रयासों का रास्ता छोड़कर कहीं न ले जाने वाले सरलीकरणों के बेहिस जुमलों में उलझने और उलझाने लग जायें तो वही होता है, जो हम इन दिनों प्रायः रोज देख रहे हैं.

इनमें ताजा मामला चुनावों से जुड़ा है, जिनकी अरसे से रुकी पड़ी सुधार-प्रक्रिया को किंचित सार्थक ढंग से आगे बढ़ाने के बजाय ‘एक देश, एक चुनाव’ के जुमले को इस तरह आगे किया जा रहा है, जैसे वक्त की सबसे बड़ी जरूरत वही हो.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो जब भी मन होता है, इस जुमले का जाप करने ही लग जाते हैं, अब उन्होंने अपने इस जाप में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भी शामिल कर लिया है. सो, संसद के बजट सत्र के शुरू में अपने अभिभाषण में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ कराने को लेकर राष्ट्रपति ने भी दोहरा डाला कि सरकारी मशीनरी के बार-बार चुनावों में व्यस्त होने से विकास कार्यों में बाधा आती है.

यों इस जाप के पीछे छिपी नीयत समझने के लिए बहुत बारीकी में जाने की भी जरूरत नहीं और कुछ मोटी-मोटी बातों से ही इसका पता चल जाता है. इनमें पहली बात यह कि अभी तक न देश में एक शिक्षा प्रणाली है, न ही सारे नागरिकों को एक जैसी चिकित्सा सुविधा मिल रही है.

सरकार के सबसे बड़े उपक्रम रेलों में भी एक देश, एक यात्री, एक कोच व्यवस्था का विलोम ही लागू है. सुखों और समृद्धियों के एक जैसे बंटवारे या वितरण की तो बात ही मत कीजिए, उल्टे एक प्रतिशत अमीर 73 प्रतिशत संपत्ति पर काबिज हो गये हैं.

जीएसटी से जुड़े ‘एक देश, एक बाजार, एक कर’ के नारे को सरकार के ‘एक देश, एक चुनाव’ के जुमले की प्रेरणा मानें तो अभी वह ‘एक देश, एक बाजार’ के अपने सपने को भी पूरी तरह जमीन पर नहीं उतार पायी है.

लेकिन इन सारी स्थितियों से उसे कोई असुविधा नहीं महसूस हो रही और वह इस सवाल से भी नहीं जूझना चाहती कि अगर चुनावों की बुरी तरह प्रदूषित प्रक्रिया में सुधार नहीं होता और उनमें धन व बाहुबल, जाति-धर्म, संप्रदाय और क्षेत्र आदि का बढ़ता दखल नहीं रोका जाता तो वे एक बार में निपटा लिये जायें या बार-बार हों, उनसे जुड़ी समस्याएं तो बढ़ने ही वाली हैं.

वह इस तथ्य को भी नहीं स्वीकारती कि मूल समस्या चुनावों के दिनोंदिन खर्चीले और इस कारण विषम मुकाबले में बदलते जाने की है.

ऐसे में ‘बार-बार के’ चुनावों से छुटकारे की बिना पर अगर वह यह कहना चाहती है कि लोग एक बार जिस सरकार को चुन लें, छाती पर मूंग दलने लग जाने पर भी पांच साल तक उसे ढोने को मजबूर रहें तो इसे लोकतांत्रिक कैसे कहा या कैसे सहा जा सकता है?

आखिर हमने लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को सर्वश्रेष्ठ मानकर अंगीकार किया हुआ है या सस्ती होने के कारण? इसे सस्ती करने का तर्क तो, कम से कम वर्तमान परिस्थितियों में, अधिकारों के ऐसे केंद्रीकरण तक ले जा सकता है, जिससे हमारा निस्तार ही संभव न हो.

आज चुनावों के विकास में बाधक होने का तर्क स्वीकार कर लिया गया तो क्या कल समूचे लोकतंत्र को ही विकास विरोधी ठहराने वाले आगे नहीं आ जायेंगे? किसे नहीं मालूम कि विकास हमेशा ही शासक दलों का हथियार रहा है और सरकारों को असुविधा तभी होती है जब उसके लाभों के न्यायोचित वितरण की बात कही जाये.

चूंकि सरकार अपने जाप के आगे किसी की और कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है, स्वाभाविक ही उसके इस संबंधी इरादों को लेकर संदेह घने हो रहे हैं.

हमारे संवैधानिक ढांचे में सामान्य परिस्थितियों में सरकारें पांच साल के लिए चुनी जाती हैं. हां, उनसे जनता का भरोसा उठता है और वे गिरती हैं, तो मध्यावधि चुनाव होते हैं, जिनमें जनता को फिर से अपने विकल्प बताने का मौका मिलता है.

‘एक देश, एक चुनाव’ के नाम पर उसके इस विकल्प को खत्म करने की वकालत कैसे की जा सकती है? उसके नाम पर देश की लोकतांत्रिक विविधताओं और संसदीय व्यवस्था को भी खतरे में कैसे डाला जा सकता है?


ठीक है कि 1952 में पहले आम चुनाव में लोकसभा और सारी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे और बाद में लोकतांत्रिक तकाजों के तहत न सिर्फ राज्यों बल्कि केंद्र में भी मध्यावधि चुनाव हुए, जिनके कारण ये चुनाव अलग-अलग होने लगे.

समय के साथ उनका रूप बदला तो कई कुरूपताएं भी उनसे आ जुड़ीं. अब इन्हीं के बहाने कहा जाने लगा है कि बार-बार चुनावों के कारण सरकारें बार-बार आदर्श चुनाव आचार संहिता के अधीन हो जाती हैं और विकास कार्यों में बाधा पड़ती है.

लेकिन सच पूछिये तो यह एक व्यावहारिक दिक्कत भर है, इसलिए इसके व्यावहारिक समाधान तलाशे जाने चाहिए, जनता को विकल्पहीन बनाने वाले कदम उठाकर नहीं.

यहां याद रखना चाहिए कि कोई भी चुनाव तब तक सच्चे अर्थों में जनादेश की अभिव्यक्ति नहीं कर सकता, जब तक प्रत्याशियों में उसके मुद्दों को लेकर समुचित बहस-मुबाहिसे और प्रतिद्वंद्विता न हो. दूसरे शब्दों में कहें तो यह बहस-मुबाहिसे और प्रतिद्वंद्विता ही उनकी आत्मा होती है.

ऐसे में ‘एक देश, एक चुनाव’ की बात करने वालों को इस बाबत भी अपना पक्ष साफ करना चाहिए कि लोकसभा व विधानसभा के चुनाव साथ-साथ होंगे तो वे इस आत्मा की रक्षा कैसे करेंगे? खासकर, जब इन दोनों चुनावों के न प्रत्याशी एक होते हैं, न परिस्थितियां और न मुद्दे. भावनाएं अलग-अलग होती हैं, सो अलग.

कई राज्यों में विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय आकांक्षाओं के मद्देनजर क्षेत्रीय दल सत्ता के खास दावेदार होते हैं और लोकसभा चुनाव में उनकी वह स्थिति नहीं होती.

पूछा जाना चाहिए कि दोनों चुनाव एक साथ होंगे और केंद्रीय सत्ता की प्रतिद्वंद्विता में शामिल दल राज्यों की विविधवर्णी आकांक्षाओं पर हावी होंगे तो क्या उनमें जनाकांक्षाएं ठीक से अभिव्यक्त हो पायेंगी और देश के लोकतंत्र की सेहत सुधरेगी?

यह सत्ता के विकेंद्रीकरण की ओर ले जाने वाला कदम होगा या निरंकुश प्रवृत्तियों को मजबूत करने वाला?

सवाल फिर वही कि चुनावों में समय की बर्बादी की इतनी ही चिंता है तो उनकी प्रक्रिया के दोष दूरकर उनमें होने वाले अकूत खर्च घटाने के उपाय क्यों नहीं किये जाते? उनके दौरान जनादेश हथियाने के लिए जो धतकरम किये जाते हैं, उन्हें रोकने की ओर ध्यान क्यों नहीं दिया जाता?

क्या चुनावों में दागियों व अपराधियों की भागीदारी को इसलिए बड़ी समस्या नहीं माना जाना चाहिए कि उन्हें लेकर सारे राजनीतिक दलों में संसद तक में सर्वानुमति है और अपराधी या दागी सारे दलों में पाये जाते हैं?

देश के लोकतांत्रिक स्वास्थ्य के लिहाज से तो संसद व विधानमंडलों के समय की गैरजरूरी कार्यों में बर्बादी भी बड़ी चिंता का कारण होनी चाहिए. आखिर चुनाव होते ही इसलिए हैं कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि संसद व विधानसभाओं में बैठकर जनहित व देशहित के अनुकूल फैसले लें और नीतियां बनाएं.

फिर उनके सत्र औपचारिक क्यों होने लगे हैं? आदर्श चुनाव आचार संहिता से डरी हुई सरकार को लोकतांत्रिक आदर्शों का अधिकतम नहीं तो न्यूनतम बोझ तो उठाना ही चाहिए.