शनिवार, 7 दिसंबर 2019

बढ़ती यौन हिंसा और प्रताड़ना के साये में आधी आबादी

महिलाओं के विरुद्ध बढ़ते अपराधों पर समूचे देश में क्षोभ व क्रोध है। पुलिस व न्यायिक प्रक्रिया में संवेदना और संसाधन की कमी को दूर करने के साथ सामाजिक एवं राजनीतिक स्तर पर जागरूकता की जरूरत है। कानून बनाने से समस्या का समाधान सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है। उन कानूनों को समुचित और समयबद्ध जांच के साथ लागू करना प्रशासनिक व न्यायिक प्रणाली का उत्तरदायित्व होना चाहिए।

आधी आबादी को यौन हिंसा व प्रताड़ना के आतंक के साये से बाहर निकालने के लिए नागरिक, सरकार और संस्थाओं की परस्पर सहभागिता आवश्यक है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो द्वारा साल 2017 की रिपोर्ट को बीते अक्तूबर में जारी किया गया। यह रिपोर्ट भारत में महिला सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करती है। आंकड़े दर्शाते हैं कि देश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में वृद्धि हुई है। 

क्रूरता के 30 प्रतिशत मामले में करीबी

महिलाओं के खिलाफ क्रूरता के दर्ज मामलों में 33.2 प्रतिशत में महिला के पति या रिश्तेदार शामिल रहे हैं। इन अपराधों में 27.3 प्रतिशत मामले सीधे यौन हमले से जुड़े थे। अपहरण व बहला-फुसलाकर भगा ले जाने के 21.0 प्रतिशत और बलात्कार के 10.3 प्रतिशत मामले दर्ज किये गये थे 2017 में।

3.5 लाख से ज्यादा मामले

3,59,849 मामले दर्ज हुए 2017 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के, जबकि 2016 में 3,38,954 मामले दर्ज किये गये।

86,001 शारीरिक हिंसा से जुड़े मामले थे महिलाओं के खिलाफ, जो शारीरिक हिंसा के मामले का 8.7 प्रतिशत था।



76,741 महिलाओं को अपहृत किया गया 2017 में, जिसमें 42,326 बच्चियां और 34,415 वयस्क शामिल थीं, कुल अपहृत (1,00,555) व्यक्तियों में।

96,650 अपहृत व्यक्ति बरामद किये गये थे जिनमें 71,929 महिलाएं थीं 2017 में।

वर्ष 2017 में यौन हमले की संख्या 86,001 थी देशभर में, जाे कुल आईपीसी अपराध का 2.8 प्रतिशत था। 2016 में यह 84,746 और 2015 में 82,422 थी।



जबरन शादी के इरादे से महिलाओं के अपहरण के 30,614 मामले सामने आये थे 2017 में जबकि बलात्कार के प्रयास के 4,154 मामले दर्ज किये गये थे इस वर्ष।

महानगरों में अपराध

27.9 प्रतिशत अपराधों में शामिल थे महिलाओं के पति या उसकी करीबी। शील भंग के इरादे से किये गये हमलों का प्रतिशत 21.7 था, जबकि अपहरण और बहला-फुसलाकर भगा ले जाने व बलात्कार का प्रतिशत क्रमश: 20.5 और 7.0 था।

दुनिया भर में चिंताजनक स्थिति

52 प्रतिशत महिलाएं ही यौन संबंधों, गर्भ निरोधकों और स्वास्थ्य देखभाल में अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं।
दुनिया में 75 करोड़ महिलाओं की शादी 18 वर्ष से पहले कर दी जाती है, वहीं 20 करोड़ लड़कियों को जननांग विकृति से गुजरना पड़ता है।



वर्ष 2012 में दुनियाभर में महिलाओं की प्रति दो में से एक की हत्या उनके माता-पिता या परिजनों ने की।
दुनियाभर में होनेवाली सभी मानव तस्करी में 71 प्रतिशत महिलाएं और लड़कियां शामिल हैं। इनमें चार में तीन महिलाएं और लड़कियां यौन शोषण का शिकार होती हैं।

प्रजनन क्षमतावाली महिलाओं की मृत्यु व अक्षमता का एक कारण हिंसा है, जो कैंसर से हाेनेवाली मृत्यु जितना ही गंभीर है। साथ ही, यह संयुक्त रूप से यातायात दुर्घटना और मलेरिया से बड़ा अस्वस्थता का कारण है।


महिलाओं को कानून का कितना संरक्षण

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) कानून बच्चों को सुरक्षा देने के उद्देश्य से बनाया गया था। लैंगिक भेद के बिना संरक्षण देनेवाला यह विशेष प्रकार का कानून है। 

इसके अलावा भारतीय दंड संहिता में भी एेसे अपराधों के लिए कानूनी प्रावधान हैं। साल 2013 में निर्भया मामले के बाद गठित जस्टिस वर्मा समिति की अनुशंसा पर इस कानून में संशोधन किया गया था। प्रत्येक महिला को यौन उत्पीड़न से मुक्त और सुरक्षित वातावरण देने के मकसद से 2013 में एक व्यापक और सख्त कानून ‘कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध एवं निवारण) अधिनियम (पीओएसएच कानून)’ बनाया गया।

क्या है महिलाओं के खिलाफ हिंसा

 1993 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा महिलाओं के खिलाफ हिंसा उन्मूलन पर जारी एक बयान में कहा गया कि लैंगिक आधार पर महिलाओं के साथ किया गया ऐसा कृत्य, जिससे शारीरिक, यौन या मनोवैज्ञानिक क्षति पहुंचती हो या आजादी खतरे में पड़ती हो, वह सार्वजनिक या निजी जीवन में हो, वह महिला के खिलाफ हिंसा माना जायेगा।

सामाजिक कलंक और डर की वजह से नहीं होती रिपोर्ट

सामाजिक कलंक और डर की वजह से कई बार दुर्व्यवहार के मामलों की रिपोर्ट नहींं किये जाते। इससे सच्चाई सामने नहीं आ पाती। सामान्य तौर पर अपराध की वजह से महिलाओं पर शारीरिक, यौन और मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है।

< पति या प्रेमी द्वारा हिंसा (मारपीट, मानसिक शोषण, दुर्व्यवहार, यौन शोषण आदि) < यौन हिंसा और उत्पीड़न (बलात्कार, अवांछित यौन संबंध, बाल यौन शोषण, जबरन विवाह, पीछा करना, साइबर उत्पीड़न)। <मानव तस्करी (गुलामी, यौन शोषण) <मादा जननांग विकृति <बाल विवाह

ज्यादातर आरोपित परिचित

बलात्कार के कुल दर्ज मामलों में 93.1 प्रतिशत में आरोपित परिचित था। 16,591 ऐसे मामलों में आरोपित पारिवारिक मित्र, नियोक्ता, पड़ोसी था और 10,553 मामले में आरोपी दोस्त, ऑनलाइन दोस्त, लिव-इन पार्टनर या परित्यक्त पति था।

32 प्रतिशत मामलों में आरोप हुए साबित

वर्ष 2017 में देशभर में बलात्कार के कुल 46,986 मामलों की जांच हुई, जिसमें आरोप पत्र दायर करने की दर 86.6 थी। इस मामले में कुल 1,46,201 मामलों की सुनवाई हुई और 5,822 लोग इस मामले में आरोपी साबित हुए। इस प्रकार आरोप सिद्धि की दर 32.2 रही। वर्ष 2016 में हमारे देश में जहां बलात्कार के 1,46,201 मामलों की सुनवाई हुई वहीं, 2015 में 1,37,458 मामलों की सुनवाई हुई। इन दोनों ही वर्षों में आरोप सिद्धि की दर क्रमश: 25.5 और 29.4 प्रतिशत रही।

सामाजिक सुधार के लिए शुरू हो मुहिम

बचपन से ही लैंगिक समानता और महिला अधिकारों के प्रति लड़के और लड़कियों को जागरूक किया जाये, ताकि भावी पीढ़ी के विचारों में बदलाव लाया जा सके।
अपराध की शिकार महिला को उबारने के लिए सामुदायिक स्तर पर पहल हो, इसके लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाया जा सकता है।

स्थानीय स्तर पर लोगों को कानूनी पहलुओं और अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाये।
उचित काउंसेलिंग के माध्यम से मनोवैज्ञानिक स्तर पर मदद पहुंचायी जा सकती है।
घरेलू हिंसा के मामलों को निबटाने के लिए हर जिले में विशेष अदालतों का गठन किया जाये।
कानून व्यवस्था कड़ा करने और उसे लागू करने के लिए सरकार के ठोस कदम उठाना चाहिए।

महिलाओं के खिलाफ अपराध में बिहार-पश्चिम बंगाल शीर्ष 10 राज्यों में

महिलाओं के खिलाफ 2017 में देशभर में दर्ज 3,59,849 अपराधों में 14,711 मामलों के साथ बिहार 10वें स्थान पर रहा।

स्थान राज्य अपराध के मामले

1 उत्तर प्रदेश 56,011    2 महाराष्ट्र 31,979   3 पश्चिम बंगाल 30,992  4 मध्य प्रदेश 29,788 5 राजस्थान 25,993   6 असम 23,082    7 ओडिशा 20,098     8 आंध्र प्रदेश 17,909  9 तेलंगाना 17,521    10  बिहार 14,711

बलात्कार मामले मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 

वर्ष 2017 में हमारे देश में बलात्कार के कुल 32,559 मामले दर्ज किये गये थे। 5,562 मामलों के साथ मध्य प्रदेश पहले, 4,246 के साथ उत्तर प्रदेश दूसरे और 3,305 के साथ राजस्थान तीसरे स्थान पर था।

न्यायिक व्यवस्था की खामियां

भारत में रोजाना 90 से अधिक बलात्कार की घटनाएं होती हैं, लेकिन दोषियों को सजा देने की कम दर चिंताजनक है। वर्ष 2017 में 1.27 लाख से अधिक मामले विभिन्न अदालतों में लंबित थे। उस साल सिर्फ 18,300 मामलों में कार्रवाई पूरी हुई थी। 

हम 2012 के आंकड़ों को देखें, तब 20 हजार से ज्यादा मामलों में कार्रवाई पूरी हुई थी, जबकि 1.13 लाख मामले अदालतों में लंबित थे। वर्ष 2002 और 2011 के बीच दोषियों को सजा मिलने की दर करीब 26 फीसदी थी, जिसमें बाद के वर्षों में सुधार देखा गया। हालांकि 2016 में यह दर 25 फीसदी हो गयी थी, पर 2017 में यह बढ़कर 32 फीसदी से कुछ अधिक हो गयी। वर्ष 2017 में बच्चों के बलात्कार के 90 फीसदी यानी 51.5 हजार मामले लंबित थे। 

उस साल कुल 1,46,201 बलात्कार के मामले अदालतों में थे, लेकिन मात्र 18,333 मामलों का ही निपटारा हो सका। जिन 18 हजार से कुछ अधिक मामलों में सुनवाई पूरी हुई थी, उनमें से केवल 5,822 मामलों में दोषियों को सजा हो सकी, जबकि 11,453 मामलों में आरोपित बरी हो गये और 824 मामलों में अरोपियों को अपराधमुक्त कर दिया गया।

बच्चों के विरुद्ध बढ़े 20 फीसदी अपराध

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट (2017) के मुताबिक, जहां कुल अपराधों में 3.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, वहीं बच्चों के खिलाफ अपराधों में 20 फीसदी की वृद्धि हुई है। सबसे अधिक मामले उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में दर्ज किये गये थे। वर्ष 2016 और 2017 के बीच झारखंड में ऐसे अपराधों में 73.9 फीसदी की भयावह वृद्धि हुई। 

यौन हिंसा के 99 फीसदी मामले दर्ज नहीं होते

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे, 2015-16 की रिपोर्ट के मुताबिक, यौन हिंसा के 99.1 फीसदी मामले पुलिस तक पहुंच ही नहीं पाते। एक महिला के अपने पति से पीड़ित होने की आशंका किसी अन्य व्यक्ति की तुलना में औसतन 17 गुना अधिक होती है। इस सर्वे में करीब सात लाख महिलाएं शामिल हुई थीं, जिनमें से लगभग 80 हजार महिलाओं से यौन व शारीरिक हिंसा के बारे में विस्तार से जानकारी जुटायी गयी थी। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें