सोमवार, 30 दिसंबर 2019

मानसिक अवसाद से ग्रस्त है मुख्यमंत्री: डाॅ. सतीश पूनिया


जयपुर। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष डाॅ. सतीश पूनिया ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मानसिक अवसाद से ग्रस्त बताते हुए कहा कि राजस्थान की जनता विकास कार्याें के लिए तरस रही है। किन्तु मुख्यमंत्री राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं गृहमंत्री अमित शाह इनके नामों की माला जपने व इनके बारे में अनर्गल बयानबाजी करने के अलावा दूसरा कोई काम नहीं कर रहे।  

डाॅ. पूनिया ने कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को दिनभर व बार-बार इस प्रकार का विलाप करने से ‘‘शाॅर्ट टर्म मेमोरी लाॅस’’ की बीमारी हो गई है। इसको देखते हुए ही मैंने मुख्यमंत्री से मुलाकात कर उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में सम्पूर्ण जानकारी वाली पुस्तकें भेंट की थी। किन्तु अब लगता है कि आरएसएस के बारे में गलत बयानबाजी करना उनकी दिनचर्या में शुमार हो गया है।

डाॅ. पूनिया ने कहा कि यह सरकार यदि जनता के हित, बुनियादी सुविधाएं, विकास के कार्य करती तो उनका बखान करती। किन्तु विकास के नाम पर प्रदेश में इन्होंने एक ईंट भी नहीं लगाई। इसलिए सरकार अपनी असफलता को छुपाने के लिए व जनता का ध्यान भटकाने के लिए इस तरह की बयानबाजी कर रही है। ऐसा सब करके वे अपने अलाकमान सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी को खुश करने का काम करते हैं।

डाॅ. पूनिया ने कहा कि इन दिनों मुख्यमंत्री को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं मोदी का एक किस्म का फोबिया हो गया और उस भय से आक्रांत होकर वे इसका उल्लेख बार-बार करते हैं। मैं उनको नसीहत देना चाहूंगा कि सरकार को एक साल हो गया है अब तो वे जनता की सुध लें। किसान धर्मपाल सुथार जिसने अभी 8 दिन पहले आत्महत्या करी थी, उस जैसे हजारों परिवारों को न्याय देने की बात करें।

डाॅ. पूनिया ने मुख्यमंत्री गहलोत की दिल्ली यात्रा पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि वो बताएं कि उनकी दिल्ली की यात्राएं कितनी हुई और दिल्ली की उन यात्राओं के दौरान प्रदेश में कितनी घटनाएं हुई, यदि आप मौजूद होते तो उनका संज्ञान लेते, जिससे समय रहते राजस्थान का भला होता।


डाॅ. पूनिया ने कहा कि मुख्यमंत्री द्वारा संसद से पास कानून को यहां लागू नहीं करेंगे इस तरह की बात कहना भारतीय संविधान को चुनौती देना है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस दो टुकड़ों में बंटी हुई है, जिससे मुख्यमंत्री कुर्सी के डर से आशंकित है। सुबह से लेकर शाम तक कुर्सी को बचाने की तिगड़मों से असंतुलित हो गए हैं। मैं उन्हें सलाह देना चाहूंगा कि हमारे राजस्थान के मुख्यमंत्री स्वस्थ रहें इसलिए उन्हें अच्छे डाॅक्टर से ईलाज करवाना चाहिए।


सरकार किसानों की इस बर्बादी को रोकने में नाकाम साबित हुई: डाॅ. पूनियां ने कहा कि पाकिस्तान से प्रदेश में टिड्डी दल के हमले से तीन हजार गांवों में फसलों को भारी नुकसान हुआ है, जिसके कारण 5 लाख हैक्टेयर में करीब 150 करोड़ से ज्यादा कि फसलें टिड्डी दल ने चट कर दी है। सरकार किसानों की इस बर्बादी को रोकने में नाकाम साबित हुई।

मुख्यमंत्री जी के बाड़मेर दौरे पर सवालिया निशान उठाते हुए डाॅ. पूनिया ने कहा कि ‘‘देर से भी आए और दुरूस्त भी नहीं आए’’। मुख्यमंत्री अब गए हैं जब वहां कुछ बचा ही नहीं। उन्होंने कहा कि भाजपा के जनप्रतिनिधि लगातार टिड्डी दल के हमलों को लेकर सरकार से गुहार लगा रहे थे। किन्तु सरकार सचेत नहीं हुई और सरकार की लापरवाही के चलते प्रदेश के किसानों की फसल बर्बाद हो गई।

डाॅ. पूनिया ने कहा कि भाजपा मांग करती है कि सरकार सुनिश्चित करें इससे किसान कर्ज में ना डूबे और शीघ्र गिरदावरी करवाकर बुवाई से लेकर अब तक की पूरी लागत मुआवजे के रूप में किसानों को मिले।

रविवार, 29 दिसंबर 2019

मन की बात: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोले- हमारे युवा अराजकता के खिलाफ, इनसे देश को बहुत उम्मीद

इस साल के आखिरी मन की बात को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागरिकता कानून को लेकर हुई हिंसा पर परोक्ष रूप से चिंता जाहिर की। उन्होंन कहा कि हमारे देश के युवा अराजकता के खिलाफ हैं। इनसे देश को बहुत उम्मीद है।

उन्होंने कहा कि हम सब अनुभव करते हैं कि यह पीढ़ी बहुत प्रतिभाशाली है। यह सोशल मीडिया का युग है। लोग सिस्टम को फॉलो भी करते हैं और अगर सिस्टम सही काम न करे तो बेचैन भी होते हैं और सवाल भी करते हैं। हमारे देश के युवाओं को अराजकता के प्रति नफरत है, वे भेदभाव को पसंद नहीं करते।

पीएम मोदी ने कहा कि  2019 की विदाई के पल हमारे समाने हैं, अब हम न सिर्फ नए साल में प्रवेश करेंगे, बल्कि नए दशक में प्रवेश करेंगे। इसमें देश के विकास को गति देने में वे लोग सक्रिय भूमिका निभाएंगे, जिनका जन्म 21वीं सदी में हुआ है।

कन्याकुमारी विश्व के लिए तीर्थ क्षेत्र बना: पीएम मोदी

स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि हमारा विश्वास युवा पीढ़ी में है। उन्होंने कहा, युवावस्था की कीमत को न तो आंका जा सकता है और न ही उसका वर्णन किया जा सकता है। यह सबसे मूल्यवान कालखंड है। विवेकानंद जी के अनुसार युवा वह है जो ऊर्जा से भरा है और बदलाव की ताकत रखता है। कन्याकुमारी विश्व के लिए तीर्थ क्षेत्र बना हुआ है। स्वामी जी के स्मारक ने हर आयु के लोगों को राष्ट्रभक्ति के लिए प्रेरित किया है।

पूर्ववर्ती छात्र सम्मेलन को लेकर यह कहा

हम अलग-अलग जगह पढ़ते हैं लेकिन पढ़ाई पूरी होने के बाद एल्युमिनाई मीट बड़ा रोचक कार्यक्रम होता है। कभी-कभी ऐसी मीटिंग आकर्षण का कारण बन जाती है। यह पुराने दोस्तों से मिलने के लिए तो होता ही है और अगर इसके साथ कोई संकल्प हो तो उसमें कई रंग भर जाते हैं। 

पश्चिमी चंपारण के भैरवगंज हेल्थ सेंटर की तारीफ की

पीएम मोदी ने पश्चिमी चंपारण के भैरवगंज हेल्थ सेंटर की तारीफ करते हुए कहा कि बिहार के पश्चिमी चंपारण कि एक कहानी मैं बताए बिना रह नहीं सकता हूं। यहां भैरवगंज हेल्थ सेंटर में लोग हेल्थ चेकअप कराने आए। यह कार्यक्रम सरकार का नहीं था बल्कि यह एक स्कूल के पुराने छात्रों द्वारा उठाया गया कदम था। इसका नाम संकल्प 85 था। 1985 बैच के विद्यार्थियों ने एल्युमनाई मीट रखी और कुछ करने का विचार किया।

यूपी के फूलपुर की महिलाओं की तारीफ की, कहा- लोग उनकी बनाई चप्पलों को बहुत पसंद करते हैं

पीएम मोदी ने यूपी के फूलपुर के महिलाओं की तारीफ की। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में कुछ महिलाओं ने पूरे इलाके को प्रेरणा दी। उन्होंने साबित किया कि अगर एकजुटता के साथ काम किया जाये तो सबकी मदद हो सकती है। फूलपुर की महिलाओं ने मिलकर काम करने का संकल्प किया। वे चप्पलें बनाती हैं और लोग इन चप्पलों को बहुत पसंद कर रहे हैं। लोकल प्रॉडक्ट को हमें अपनी शान से जोड़ना चाहिए और साथी देशवासियों के लिए समृद्धि लाने की कोशिश करनी चाहिए।

गांधी जी ने आत्मनिर्भर बनने के लिए यही रास्ता दिखाया था। जिस आजाद भारत में हम सांस ले रहे हैं, इसके लिए बहुत सारे लोगों ने बलिदान दिया है। हम आज आजाद जिंदगी जी रहे हैं। देश के लिए जीवन खपाने वाले अनगिनत लोगों ने बलिदान दिया और आजाद भारत के सपनों को लेकर जिए।

स्थानीय सामान खरीदने का आग्रह किया

पीएम मोदी ने लोगों से स्थानीय सामान खरीदने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि मैंने 15 अगस्त को लालकिले से देशवासियों से एक आग्रह किया था और देशवासियों से स्थानीय सामान खरीदने का आग्रह किया था। आज फिर से मेरा सुझाव है कि क्या हम स्थानीय स्तर पर बने उत्पादों को प्रोत्साहन दे सकते हैं? क्या उन्हें अपनी खरीदारी में स्थान दे सकते हैं?

महात्मा गांधी ने स्वदेशी की इस भावना को एक ऐसे दीपक के रूप में देखा जो लाखों के जीवन को रोशन करता हो। गरीब से गरीब के जीवन में समृद्धि लाता हो। सौ साल पहले गांधी जी ने एक बड़ा जन आन्दोलन शुरु किया। इसका एक लक्ष्य था भारतीय उत्पादों को प्रोत्साहित करना।

क्या हम संकल्प ले सकते हैं कि 2022 तक जब आजादी के 75 वर्ष पूरे होंगे, इन 2-3 साल हम स्थानीय उत्पाद खरीदने के आग्रही बनें? भारत में बना, जिसमें हमारे देशवासियों के पसीने की महक हो, ऐसी चीजों को खरीदने का हम आग्रह कर सकते हैं क्या?

जम्मू-कश्मीर के हिमायत कार्यक्रम का किया उल्लेख

पीएम मोदी ने जम्मू और कश्मीर में चल रहे हिमायत कार्यक्रम का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि हिमायत प्रोग्राम से लोगों की जिंदगी बदल रही है। ग्रामीण इलाके में यह लोगों को आत्मनिर्भर बना रहा है। यह कार्यक्रम लोगों को नौकरी दिलाने का काम कर रहा है। इसने जम्मू-कश्मीर के लोगों को आगे बढ़ाने का काम किया है।

सूर्य ग्रहण के बारे में कहा यह

उन्होंने कहा कि युवा साथियों की तरह मैं भी सूर्य ग्रहण देखने के लिए उत्सुक था लेकिन अफसोस यह रहा कि दिल्ली के आसमान में बादल थे और वह आनंद नहीं ले पाया। हालांकि टीवी पर सुंदर तस्वीरें देखने को मिलीं। मुझे एक्सपर्ट से संवाद करने का मौका भी मिला। मुझे बताया गया कि चंद्रमा पृथ्वी से काफी दूर होता है और सूर्य को पूरी तरह से ढक नहीं पाता है इसलिए एक अंगूठी के आकार का दृश्य देखने को मिलता है।

भारत में खगोल विज्ञान का गौरवशाली इतिहास

पीएम मोदी ने कहा कि भारत में खगोल विज्ञान का गौरवशाली इतिहास रहा है। आपको पता होगा कि भारत के अलग-अलग स्थानों में जंतर-मंतर हैं। इसका खगोल विज्ञान से गहरा संबंध है। महान वैज्ञानिक आर्यभट्ट के बारे में कौन नहीं जानता। उन्होंने दार्शनिक और गणितीय दोनों तरीकों से बहुत सारी जानकारी दी। भास्कर जैसे उनके शिष्यों ने इसे आगे बढ़ाया।

भारत के टेलिस्कोप और इसरो के आदित्य मिशन की जानकारी दी

हमारे पास पुणे के निकट विशालकाय टेलिस्कोप है। लद्दाख में भी पावरफुल टेलिस्कोप है। 2015 में बेल्जियम के प्राइम मिनिस्टर और मैंने नैनीताल में टेलिस्कोप का उद्घाटन किया जो एशिया में सबसे बड़ा है। इसरो एक आदित्य नाम का सैटलाइट भी लॉन्च करने वाला है।

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019

स्थापना दिवस पर कांग्रेस का देशभर में फ्लैग मार्च, 'संविधान बचाओ, भारत बचाओ' का देगी संदेश

कांग्रेस के 134वें स्थापना दिवस के मौके पर पार्टी  देश के अलग-अलग हिस्सों में 'संविधान बचाओ, भारत बचाओ' के संदेश के साथ फ्लैग मार्च निकालेगी। देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी अपने स्थापना दिवस पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कर रही है। 

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी दिल्ली में, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी असम में और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा उत्तर प्रदेश के कार्यक्रमों में शिरकत करेंगे। सोनिया शनिवार सुबह पार्टी मुख्यालय में ध्वजारोहण करेंगी तथा राहुल गांधी गुवाहाटी में एक सभा को संबोधित करेंगे।

दूसरी तरफ, उत्तर प्रदेश की प्रभारी महासचिव प्रियंका लखनऊ में कांग्रेस स्थापना दिवस समारोह में शामिल होंगी। इसके अलावा वह प्रदेश कांग्रेस के नेताओं के साथ भी बैठक करेंगी।

कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल की ओर से जारी बयान के मुताबिक शनिवार को पार्टी की ओर से देश भर में 'संविधान बचाओ, भारत बचाओ' के संदेश के साथ फ्लैग मार्च निकाला जाएगा तथा विभिन्न स्थानों पर पार्टी के नेता संबंधित राज्यों की भाषाओं में संविधान की प्रस्तावना पढ़ेंगे।

नागरिकता संशोधन विधेयक, एनआरसी और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के मुद्दों को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए वेणुगोपाल ने कहा कि जब जब भारत के संविधान को चुनौती दी जाएगी और देश को प्रगति के पथ से उतारने का प्रयास होगा तब तब कांग्रेस पुरजोर ढंग से आवाज उठाएगी।

महिलाओं पर अत्याचार रोकने के लिए उठाए कड़े कदम -मुख्यमंत्री



जयपुर। मुख्यमंत्री  अशोक गहलोत ने कहा कि महिलाओं पर अत्याचार एवं उत्पीड़न किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। राज्य सरकार ने ऎसी घटनाओं को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए हैं और आगे भी इसमें किसी तरह की कमी नहीं रखी जाएगी। राज्य सरकार जघन्य अपराधों के त्वरित अनुसंधान के लिए एक विशेष यूनिट बना रही है, जो जल्द से जल्द तफ्तीश कर पीड़ित को शीघ्र न्याय दिलाना सुनिश्चित करेगी।

 गहलोत शुक्रवार को रविन्द्र मंच सभागार में भारतीय महिला फैडरेशन के 21वें राष्ट्रीय सम्मेलन को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने मॉब लिंचिंग एवं ऑनर किलिंग  के खिलाफ सख्त कानून बनाए हैं। केन्द्र से इन्हें मंजूरी का इंतजार है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार महिला सशक्तीकरण के लिए प्रतिबद्ध है। लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का संकल्प राज्य विधानसभा में पारित किया गया है। 

मुख्यमंत्री ने कहा कि महिलाओं के स्वावलम्बन और सशक्तीकरण से ही समाज विकसित बनता है। ऎसे में जरूरी है कि महिलाएं घूंघट छोडे़ं। पुरूष आगे बढ़कर इस प्रथा को समाप्त करने में सहयोग करें। उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने महिला सशक्तीकरण की मिसाल पेश की। इसी प्रकार पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी की पहल पर हुए 73वें एवं 74वें संविधान संशोधन से महिलाओं को राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिलना सुनिश्चित हुआ। 

 गहलोत ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पैरवी करते हुए कहा कि असहमति का मतलब राष्ट्रद्रोह नहीं है। उन्होंने कहा कि देश को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों की आज और अधिक आवश्यकता है। संविधान की भावना के अनुरूप देश चलना चाहिए ताकि हर व्यक्ति को सामाजिक एवं आर्थिक न्याय मिल सके। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के जरिए आज युवा पीढ़ी को गुमराह किया जा रहा है, स्वस्थ लोकतंत्र की दिशा में यह उचित नहीं है। 

सामाजिक कार्यकर्ता श्री अतुल कुमार अंजान ने कहा कि सांझी संस्कृति और सांझी विरासत हमारे देश का आधार है। उन्होंने कहा कि गांधी हमारे विचारों में कल भी जिंदा थे, आज भी हैं और कल भी रहेंगे। उन्होंने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था में महिलाओं को समान भागीदारी मिलनी चाहिए।

भारतीय महिला फैडरेशन की राष्ट्रीय अध्यक्ष अरूणा रॉय ने कहा कि राजस्थान वह राज्य है, जहां सूचना के अधिकार को सशक्त करने के साथ ही महिला समानता और उन्हें अधिकार देने की दिशा में अच्छा काम हुआ है। उन्होंने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जिसे संविधान और गांधी जी के सिद्धान्तों पर आगे बढ़ाया जाना चाहिए। 

भारतीय महिला फैडरेशन की राष्ट्रीय महासचिव एनी राजा, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रेवती, भंवरी देवी तथा निशा सिद्धू आदि ने भी संबोधित किया। इस अवसर पर देश के विभिन्न राज्यों से आई संगठन की पदाधिकारी, सोशल एक्टिविस्ट आदि भी मौजूद रहे।

शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार की बड़ी पहल

  शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार की बड़ी पहल । विद्यार्थियों में लर्निंग आउटकम को मिलेगा बढ़ावा

सरकारी विद्यालयों में अंग्रेजी एवं विज्ञान विषयों के विशेषज्ञों की मिलेगी सेवायें।छह विभागों में आरओटी एवं एसआईटी की सुविधा कराई जायेगी उपलब्ध   

कृष्णमय वातावरण में 125 कूंचियों ने रचा कृष्णमय संसार



जयपुर । कृष्ण की 16 कलाओं और रूपों को देश के 125 युवा और वरिष्ठ कलाकारों के आपसी योगदान से 125 मीटर कैनवास पर साकार किया। इसमें बाल लीला, किशोर लीला, युद्ध लीला, रासलीला और कृष्ण के विभिन्न रूप दर्शाती लाइव पेंटिंग्स मनमोहक लगी। अवसरा रहा दिल्ली की ट्रेडिशनल आर्ट प्रमोशनल सोसाइटी और द आर्ट बॉस की ओर से जवाहर कला केंद्र के शिल्पग्राम में चल रहे पांच दिवसीय आर्ट फिएस्टा का। फिएस्टा संयोजक रमाकांत खंडेलवाल ने बताया कि फिएस्टा के दूसरे दिन शुक्रवार को "इन चैटिंग कृष्णा" थीम पर आयोजित लाइव पेंटिंग ने शहर की कला को नए आयाम दिए। समारोह में इस्कॉन टेंपल के प्रसिडेंट पंचरत्न दास और बलभद्र दास के अलावा एमएलए प्रशांत बैरवा, फिल्म वितरक राज बंसल और राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित दीपा माथुर मौजूद रही।


इंडिगो विंडो रहा खास

वरिष्ठ कलाकार अशोक आत्रेय द्वारा बनाया गया इंडिगो विंडो समारोह में खासा आकर्षण का केंद्र रहा। राजस्थान की विभिन्न किले, महल, गढ़ और हवेलियों की पुरातत्व शैली से कलाकार ने ठनील रंग में खिड़की नुमा सेल्फी प्वाइंट बनाया है। इसमें कला प्रेमियों द्वारा नीली छाप की राजस्थानी पगड़ी पहन कर फोटो खींचना खुशनुमा रहा।

कलाविद आर बी गौतम, शैलेंद्र भट्ट, अशोक, अमित कल्ला, वीरेंद्र बन्नू, शमी बन्नू, संगीता सेनजी और उमाकांत मीणा ने बंबू सिल्क मीडियम पर परंपरागत सांगानेरी हस्तशिल्प कला का शानदार चित्रण किया। इसमें नील रंगो के ब्रश टाई एंड डाई  तकनीक का उपयोग करते हुए ब्लॉक प्रिंटिंग उकेरी गई। युवा कलाकार मनाशा खाव्या के मीरा कृष्ण थीम पर बनाए स्केच पोट्रेट और वाटर कलर से कैनवास पर उकेर गए डीप थ्रोट भी खास है।

भजनमय रही फिएस्टा की शाम

इस्कॉन टेंपल के बलभद्र दास और डिवोटिज ने फिएस्टा की लाइव म्यूजिक इवनिंग को भजनमय में बना दिया। संकीर्तन में भारत के विभिन्न प्रांतों से आए कलाकारों ने भी भाग लिया।

देश में बेरोजगारी सबसे बड़ी चिंता : सर्वे

देश में बेरोजगारी को लेकर युवा परेशान हैं। एक सर्वे के अनुसार करीब आधे शहरी भारतीय बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर चिंतित हैं। हालांकि 69 प्रतिशत सोचते हैं कि देश सही दिशा में आगे बढ़ रहा है। शोध कंपनी आईपीसोस के ‘दुनिया को क्या चिंतित करती है' विषय पर किये गये सर्वे के अनुसार वित्तीय और राजनीतिक भ्रष्टाचार, अपराध और हिंसा, गरीबी और सामाजिक असमानता तथा जलवायु परिवर्तन अन्य मसले हैं जो देश के नागरिकों को चिंतित करते हैं ।

सर्वे के अनुसार दुनिया में निराशावाद के उलट भारत में नीतियों को लेकर लोगों में उम्मीद है। 69 प्रतिशत शहरी भारतीय मानते हैं कि देश सही रास्ते पर है। वहीं 61 प्रतिशत वैश्विक नागरिकों का मानना है कि देश गलत दिशा में जा रहा है। इसमें कहा गया है, ‘‘सर्वे में शामिल कम-से-कम 46 प्रतिशत शहरी भारतीय बेरोजगारी को लेकर खासे परेशान हैं। अक्टूबर के मुकाबले नवंबर में इसमें 3 प्रतिशत की और वृद्धि हुई है।'' 


सर्वे के मुताबिक, ‘‘कुछ अन्य मसले जो भारतीयों को परेशान कर रहे हैं, उसमें वित्तीय और राजनीतिक भ्रष्टाचार, अपराध और हिंसा, गरीबी और सामाजिक असमानता और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं। '' वहीं दूसरी तरफ गरीबी और सामाजिक असामनता वैश्विक नागरिकों के लिये शीर्ष चिंता का विषय है. उसके बाद बेरोजगारी, अपराध और हिंसा, वित्तीय और राजनीतिक भ्रष्टाचार तथा स्वास्थ्य का स्थान हैं। सर्वे हर महीने 28 देशों में ऑनलाइन माध्यम से किया जाता है। 

मंगलवार, 24 दिसंबर 2019

मोदी कैबिनेट ने एनपीआर अपडेट करने को दी मंजूरी, नहीं देना होगा कोई प्रूफ

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंगलवार को राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को अपडेट करने के लिये 8500 करोड़ रुपये के कोष को मंजूरी दे दी
एनपीआर की कवायद अगले वर्ष अप्रैल से शुरू होगी। एनपीआर देश के स्वभाविक निवासियों की सूची है। इस संबंध में आंकड़ों को अपडेट करने का काम 2015 में घर-घर सर्वे के माध्यम से हुआ था।अपडेट किये गए आंकड़ों के डिजिटलीकरण का काम पूरा हो गया है। अब यह निर्णय किया गया है कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर का काम जनगणना 2021 के साथ असम को छोड़कर सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में किया जायेगा।


केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने बताया 16वीं जनगणना के लिए तैयारी कर ली गयी है। इसबार ऐप के जरिये जनगणना का काम कराया जाएगा। जो 6 महने तक चलेगा। मालूम हो आजादी से  अब तक 8वीं बार जनगणना हुआ है। उन्‍होंने बताया NPR (National Population Register) 2010 में शुरू हुआ। जावडेकर ने बताया इसके लिए कोई कागज, प्रूफ देने की जरूरत नहीं है। एनपीआर में बायोमेट्रिक भी देने की जरूरत नहीं है। उन्‍होंने अभी अंग्रेजों के जमाने की जनगणना है। एनपीआर स्‍कीम का लाभ लोगों को मिलेगा।

 अटल भूजल योजना को मंजूरी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अटल भूजल योजना को मंजूरी दे दी है। इसकी जानकारी केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने प्रेस कॉन्‍फ्रेंस कर दी। उन्‍होंने बताया इस योजना को 5 वर्षों की अवधि के लिए 6000 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय के साथ पॉयलट प्रोजेक्‍ट के तहत गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में शुरू किया जाएगा। उन्‍होंने बताया यह दुनिया का सबसे बड़ा टनल होगा। 

सोमवार, 23 दिसंबर 2019

झारखंड चुनाव परिणाम का संदेश

झारखंड में अब झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेतृत्व में सरकार बनने का रास्ता साफ हो गया है। इस चुनाव परिणाम का संदेश बड़ा है और इसका असर भी दूरगामी है।

इस परिणाम ने यह साफ कर दिया है कि लोग अब आर्थिक बदहाली से परेशान हैं। न सिर्फ झारखंड के लोग, बल्कि देशभर में यह स्थिति है। ग्रामीण इलाकों में नून-रोटी का सवाल हमेशा से एक बड़ा सवाल रहा है, जो चुनाव के समय दिखता है। और झारखंड में तो जल-जंगल-जमीन का मसला हमेशा चुनावी मुद्दा रहा है। यही वजह है कि आदिवासी क्षेत्रों का जबर्दस्त रुझान जेएमम की तरफ रहा और उसकी सीटें बढ़ती चली गयीं। 

भाजपा को इस साल लोकसभा चुनाव में 303 सीटें मिली थीं। फिर भी वह राज्यों में जनाधार खो रही है, तो निश्चित रूप से राज्य के चुनावों में भाजपा अपने राष्ट्रीय फलक से बाहर नहीं आ पा रही है। राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य में सरकार गंवाने का अर्थ है कि भाजपा अपनी स्थानीय पहुंच को भुना नहीं पा रही है। झारखंड परिणाम के मद्देनजर, जेएमम हो या कांग्रेस, दोनों का जनाधार कितना बढ़ा है, यह महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह समझना जरूरी है कि इन्होंने भाजपा के जनाधार को कितना कमजोर किया है?  

महाराष्ट्र में शिवसेना को 124 सीटें देकर भाजपा वहां चुनाव लड़ी, लेकिन बाद में उसने शिवसेना की बात नहीं मानी. भाजपा का वहां स्ट्राइक रेट 70 प्रतिशत था, ऐसे में अगर भाजपा अपने दम पर महाराष्ट्र में चुनाव लड़ती, तो आज वहां उसकी सरकार होती थी। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व आज यही बात सोच रहा है।  

झारखंड में भी भाजपा ने इसी रणनीति को अपनाया और बिना क्षेत्रीय जनाधार को समझे अकेले मैदान में उतरी। उसे यह भी यकीन था कि झारखंड में उसकी सरकार है, तो वह जीत ही जायेगी। भाजपा भूल गयी कि विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीयता को साधे बिना बड़ी जीत हासिल करना संभव नहीं होता। 

चुनाव परिणाम के विश्लेषण में सिर्फ सीटों के गणितीय समीकरण पर बात करना ही काफी नहीं है, रासायनिक समीकरण पर भी बात करना जरूरी है। क्षेत्रीय और जमीनी स्तर पर जब रासायनिक समीकरण अच्छा होगा, तभी सीटों का गणितीय समीकरण अच्छा बनता है। 
कहने का अर्थ यह है कि प्रधानमंत्री मोदी की वहां हुईं रैलियाें में स्थानीय मुद्दों पर कम बात हुई और सारी बातें कश्मीर से 370 हटाने, राममंदिर बनाने और तीन तलाक आदि पर हुईं। कोई भी आसानी से समझ सकता है कि झारखंड में ऐसे मुद्दों की जरूरत क्या है, जब देशभर में रोजगार कम हो रहे हैं, नौकरियां जा रही हैं और वहां आदिवासियों में उनके जल-जंगल-जमीन छीने जाने का डर बढ़ा है। जाहिर है, आदिवासी तो उसी को सरकार में देखना चाहेंगे, जो उनके हक की बात करेगा। 

एक जमाने में इंदिरा गांधी के समय में दक्षिण भारत के राज्यों से कांग्रेस जब हारने लगी, तब  कांग्रेस समझ गयी कि क्षेत्रीय पार्टी के साथ पावर शेयर किये बिना वहां अपनी पकड़ मजबूत करना मुश्किल है।

आज यही बात भाजपा को समझनी होगी, बाकी के राज्यों में अगर अच्छा प्रदर्शन करना है तो। जाहिर है, अगर क्षेत्रीय पार्टी किसी राज्य में मजबूत है, तो उसको राष्ट्रीय पार्टी भी अंगूठा नहीं दिखा सकती। ऐसा करेगी, तो परिणाम महाराष्ट्र जैसा भी हो सकता है और अभी-अभी झारखंड जैसा भी। क्षेत्रीय पार्टी के अपने अस्तित्व का भी सवाल सामने आता है। 

कांग्रेस भी पहले के वर्षों में क्षेत्रीय पार्टियों को अंगूठा दिखाती रही है, जिसका परिणाम यह हुआ है कि वह राज्यों से बेदखल होती चली गयी है। झारखंड के चुनाव के समय आज देश में मुख्य मुद्दा राज्यों का चुनाव नहीं है, बल्कि आर्थिक व्यवस्था के डगमगाने का है, रोजगार का है, महंगाई का है, शिक्षा का है, स्वास्थ्य का है। इन मुद्दों पर अगर राष्ट्रीय पार्टी बात नहीं करेगी, तो उसे हार का सामना करना पड़ेगा। 

नरेंद्र मोदी की जो लोकप्रियता साल 2019 के लोकसभा चुनाव तक थी, उसमें बहुत कमी आयी है। एक समय के बाद मोदी जैसे नेता भी राज्य-स्तर के नेतृत्व की भरपाई नहीं कर सकते और न ही वह राज्य की सरकारों की खामियों की भरपाई कर सकते हैं। यही वजह है कि झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ लोगों में जो गुस्सा था, उसकी भरपाई मोदी नहीं कर पाये। 

एक और महत्वपूर्ण बात इस चुनाव परिणाम से देखी और समझी जा सकती है। जिस तरह से हरियाणा में जाट समुदाय की बहुलता है, लेकिन वहां भाजपा ने एक पंजाबी मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया। 

हालांकि, बीते चुनाव में वह दोबारा सरकार बनाने में कामयाब रही, लेकिन चुनाव के दौरान खट्टर की हालत भी ठीक नहीं थी और मोदी के नाम पर उनको जीत मिल गयी। वहीं महाराष्ट्र में भाजपा ने मराठा समुदाय के प्रतिनिधि को दरकिनार कर ब्राह्मण समुदाय से आनेवाले देवेंद्र फड़णवीस को मुख्यमंत्री बनाया, जिसका संदेश भी गलत गया। यही वजह है कि इस बार के चुनाव में वहां एनसीपी ने अच्छा प्रदर्शन किया, क्योंकि शरद पवार मराठा मानुष की राजनीति को अच्छी तरह समझते हैं। 

इन दोनों राज्यों में पांच साल सरकारें तो चल गयीं, क्योंकि एक उफान था मोदी मैजिक का। जाहिर है, हर मैजिक को एक दिन कमजोर होना ही होता है, क्योंकि जनता तब तक अपने लिए फायदे-नुकसान को सोचने लगती है। इसलिए भाजपा का यह प्रयोग फेल हो गया। झारखंड में भी भाजपा ने किसी आदिवासी प्रतिनिधि के हाथ में राज्य की कमान देने के बजाय ओबीसी समुदाय के रघुवर दास को मुख्यमंत्री बना दिया। आदिवासियों को लगने लगा था कि उनका प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा है। और आज इसी का परिणाम भाजपा के खिलाफ आया है। 

इस वक्त हर राज्य में भाजपा के खिलाफ जमीनी  स्तर पर विपक्ष मजबूती से बढ़ रहा है, लेकिन उतना नहीं बढ़ रहा है कि भाजपा वहां से पूरी तरह साफ हो जाये। राज्य स्तर पर कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले क्षेत्रीय पार्टियों का स्ट्राइक रेट भी बढ़ा है। महाराष्ट्र चुनाव में एनसीपी का स्ट्राइक रेट बहुत अच्छा था। 

इसी तरह झारखंड में भी जेएमम का प्रदर्शन बहुत अच्छा है। यानी राज्य के स्तर पर राजनीतिक विकल्प के रूप में राष्ट्रीय पार्टियों के मुकाबले क्षेत्रीय पार्टियों की ओर देख रहे हैं। झारखंड चुनाव परिणाम का संदेश यही है कि अब आगे राज्यों- बंगाल, दिल्ली, बिहार में होनेवाले चुनावों में भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी। 





कलाओं का मेला 26 से 30 दिसंबर तक जेकेके में

जयपुर । पारंपरिक कलाओं के रंगों से चमक बिखेरने वाले पांच दिवसीय "आर्ट फिएस्टा" के तीसरे संस्करण की शुरुआत इस साल 26 दिसंबर से  जवाहर कला केंद्र के शिल्पग्राम में आयोजित होने जा रही हैं। दिल्ली की ट्रेडिशनल आर्ट प्रमोशनल सोसाइटी और आर्ट ब्राउज़र की ओर से आयोजित फिएस्टा में हिंदुस्तान के विभिन्न प्रांतों की पारंपरिक कलाओं के ढाई सौ कलाकारों की  कलाकृतियों को प्रदर्शित किया जाएगा। समारोह संयोजक रमाकांत खंडेलवाल ने बताया कि फिएस्टा का उद्घाटन राज्य के कला, साहित्य एवं संस्कृति मंत्री बीडी कल्ला द्वारा किया जाएगा। इस बार उत्सव में पिछले साल के मुकाबले काफी कलाकारों को मंच उपलब्ध कराया गया हैं। समारोह समिति की ओर से दिया जाने वाला लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड इस साल पदम भूषण स्कल्पचर आर्टिस्ट राम वी. सुतार, मरणोपरांत नेशनल अवॉर्डी मिनिएचर आर्टिस्ट स्व. वेदपाल शर्मा उर्फ बन्नू जी, मुंबई के वरिष्ठ ट्रेडिशनल आर्टिस्ट पृथ्वी सोनी और मॉडर्न आर्टिस्ट संगीता सोनी को दिया जाएगा।

100 स्टॉल्स पर दिखेंगे कला के रूप

समारोह के दौरान शिल्पग्राम में 100 स्टॉल्स पर राजस्थान सहित देश के विभिन्न प्रांतों की पारंपरिक और समकालीन कलाओं के कलाकारों की कलाकृतियां प्रदर्शित की जाएगी। एक स्टॉल पर एड्स पीड़ित बच्चों द्वारा बनाई गई पेंटिंग्स और तिहाड़ जेल के कैदियों द्वारा सोशल मैसेज के लिए बनाई गई स्केचर और पेंटिंग को प्रदर्शित किया जाएगा। 2 स्टॉल्स पर सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को समर्पित करते हुए उनके पोस्टर, लोबी कार्ड, किताबें और पेंटिंग्स से सजाया जाएगा।

यह कलाकार करेंगे शिरकत

समारोह संयोजक रमाकांत खंडेलवाल ने बताया कि पद्मभूषण और पद्मश्री सम्मानित मोहन वीणा वादक विश्व मोहन भट्ट, अर्जुन प्रजापति, शाकिर अली, तिलक गिताई, महेश राज, सीपी गुप्ता, भारती आर्य, अशोका आत्रे, मोहम्मद इशाक, मनोज दास, रंजीत सरकार, अजय चांडक, शशिकांत, कनुप्रिया राठौड़, वीरेंद्र प्रताप सिंह और नीरज खंडेलवाल सहित पारंपरिक कलाओं की कई हस्ताक्षर अपनी कला का जीवंत प्रदर्शन करेंगे। समारोह में रोजाना एक कलाकार की कृतित्व और व्यक्तित्व पर आधारित टॉक शो भी खास रहेगा।

"इन चैटिंग कृष्णा" थीम पर लाइव पेंटिंग

फिएस्टा में 125 कलाकारों द्वारा 125 मीटर की "इन चैटिंग कृष्णा" थीम पर बनाई जाने वाली लाइव पेंटिंग खास रहेगी। पेंटिंग में भगवान कृष्ण के विभिन्न रूपों को एक क्रम में साकार किया जाएगा।

अल्पसंख्यक पीड़ितों के लिए प्रधानमंत्री मोदी भगवान बनकर आए- शिवराज सिंह चौहान

जयपुर। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज भाजपा प्रदेश मुख्यालय में प्रबुद्धजन सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए कहा कि विपक्षी दल वोट बैंक की राजनीति व तुष्टिकरण के कारण देश में आग लगाना चाहते है।

चौहान ने आगे कहा कि देश के विपक्षी दल मैदान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए देश में भ्रम का माहौल पैदा कर रहे है। जबकि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश के पीड़ित अल्पसंख्यकों के लिए प्रधानमंत्री मोदी भगवान बनकर आए हैं। शायद इन विपक्षी नेताओं को मासूम शरणार्थियों की बहन-बेटियों की चित्कार से कोई वास्ता नहीं है। 

चौहान ने चुटकी लेते हुए कहा कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी देश में कम टिकते है और विदेश में ज्यादा रहते है, तो सोनिया गांधी विधेयक पेश होने के समय तो सदन में एक शब्द नहीं बोली, परन्तु कानून बनने के बाद अपना वीडियो जारी कर आग में घी डालने का काम कर रही है।

चौहान ने राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर हमला करते हुए कहा कि राजस्थान देश का ऐसा राज्य है जहां मुख्यमंत्री स्वयं ‘‘शांति मार्च’’ के लिए नेट बंद, मैट्रो बंद, बस बंद व बाजार बंद कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जयपुर बंद करवाते समय गहलोत शायद भूल गए कि वे राज्य के मुख्यमंत्री है।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष डाॅ. अरुण चतुर्वेदी ने कहा कि पड़ौसी तीन देशों के शरणार्थियों में सबसे अधिक राजस्थान में है और मुख्यमंत्री गहलोत को राजधर्म निभाते हुए इन शरणार्थियों को नागरिकता देने का कार्य करना चाहिए।

कार्यक्रम में भारतीय जनता पार्टी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी, प्रदेश महामंत्री भजनलाल शर्मा, प्रदेश उपाध्यक्ष सुनील कोठारी, विधायक कालीचरण सराफ, अशोक लाहोटी सहित प्रबुद्धजन, पदाधिकारी व कार्यकर्ता उपस्थित थे।

कार्यक्रम के पश्चात् भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पत्रकार वार्ता को सम्बोधित करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से प्रश्न किया कि क्या संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति केन्द्र के कानून को लागू करने से इंकार कर सकता है? देश में कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भय व भ्रम का माहौल पैदा कर रहे है और गहलोत का ‘‘शांति मार्च’’ भी राजस्थान में अशांति फैलाने का प्रयास था। परन्तु राजस्थान की जनता कांग्रेस के झांसे में नहीं आएगी।

रविवार, 22 दिसंबर 2019

मुख्यमंत्री गहलोत की अगुवाई में नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ निकाला शांति मार्च

जयपुर में अल्बर्ट हॉल से गांधी सर्किल तक शांति मार्च में उमड़ा जनसैलाब
जयपुर। राजधानी जयपुर में रविवार को नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ शांति मार्च निकाला गया। इस दौरान शहर के चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात रही। वहीं शांति मार्च में लोग हाथों में तिरंगा और तख्तियां लिए निकले। मार्च शांतिपूर्ण और अहिंसात्मक तरीके से निकाला गया। एहितयातन शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी बंद रखा गया और साथ ही रूट डायवर्जन भी किया गया। हालांक मेट्रो और इंटरनेट बंद होने से लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ा।

नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अगुवाई में कांग्रेस ने रविवार को शांति मार्च निकाला। शांति मार्च सुबह ११ बजे से अल्बर्ट हॉल से शुरू होकर गांधी सर्किल तक निकाला गया। जिसमें हजारों की संख्या में लोग में शामिल हुए। इस शांति मार्च में सीएम अशोक गहलोत, उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के अलावा सीपीआई से तारासिंह सिद्धू, डीके छंगाणी, नरेन्द्र आचार्य, सीपीएम से वासुदेव, बलवान पूनिया, जनता दल यूनाइटेड से शरद यादव, जनता दल सेक्युलर से अर्जुन देथा सहित कई दलों के दिग्गज नेता शामिल हुए। 

इनके अलावा सिविल सोसाइटी से अरुणा राय, कविता श्रीवास्तव, एक्टिविस्ट्स, एनजीओ सहित सर्वधर्म समभाव में विश्वास रखने वाले बुद्धिजीवी वर्ग, सामाजिक संगठन, एडवोकेट्स, डॉक्टर्स, शिक्षक, साहित्यकार, कलाकार, संजीदा वर्ग, कर्मचारी संघ, व्यापार मंडल एवं युवा इसमें शामिल हुए। शांति मार्च को देखते हुए पुलिस प्रशासन की ओर से विशेष तौर से चारदीवारी में सुरक्षा के खास इंतजाम किए गए। शांति मार्च के दौरान सुरक्षा व्यवस्था के लिए 7500 पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं। व्यवस्था बनाए रखने के लिए 13 आईपीएस, 115 आरपीएस, 230 सीआई और 7 हजार कांस्टेबल सहित उपनिरीक्षक स्तर के पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं। शांति मार्च में उपस्थित हर व्यक्ति पर वीडियोग्राफी व सीसीटीवी कैमरों की नजर रही। वहीं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अभय कमांड सेंटर से भी निगरानी रखी गई। अफवाह फैलाने वालों पर पुलिस सख्त रही।

शांति मार्च को देखते हुए शहर में लो फ्लोर बसों का संचालन नहीं हुआ। बसों के बंद होने से रोजाना यात्रा करने वाले 1.5 लाख यात्री प्रभावित हुए।। वर्तमान में शहर में 200 से अधिक बसें चलती हैं। वहीं मेट्रो को सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक बंद रखा गया है। इससे लगभग 8 हजार यात्री प्रभावित हुए। वहीं सुबह 6 बजे से रात 8 बजे तक इंटरनेट बंद रखा है। परकोटे के बाजार बंद होने के जनजीवन प्रभावित हुआ।

चारदीवारी में क्यूआरटी टीम, एसटीएफ और थानों के साथ पुलिस लाइन का जाप्ता भी तैनात है। चारदीवारी में ड्रोन के माध्यम से भी निगरानी रखी गई।

रैली को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री गहलोत ने कहा 'देश संविधान की मूलभावना के आधार पर चलेगा और चलना चाहिए।' गहलोत ने संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को विभाजनकारी फैसला बताते हुए केंद्र से इसे वापस लेने की मांग की।


शांति मार्च से पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने सम्बोधन में कहा 'अपने स्वार्थ के लिए संविधान का गला घोटना ठीक नहीं है।
केंद्र सरकार को जनभावनाओं को समझाना चाहिए। इतनी हिंसा के बाद भी अभी भी धमकाने वाले बयान आ रहे हैँ।' उन्होंने कहा कि 'जामिया मिलिया से शुरू होकर देशभर में आंदोलन छा गया। इसमें सभी धर्मों के लोग प्रभावित होंगे। हिंसा की खबरें सिर्फ भाजपा शासित राज्यों से ही क्यों आ रही है। वहीं केंद्र सरकार की ओर से जिस रूप में सीएए को लागू करने की घोषणा की गई है, उससे अनावश्यक रूप से सामाजिक सौहार्द बिगड़ गया है।' देश में वर्तमान में बने हालातों के मद्देनज़र संविधान और लोकतंत्र की रक्षार्थ सर्वदलीय एवं सर्वसमाज की ओर से शांति मार्च निकाला गया। 

इससे पूर्व सीएए और एनआरसी के विरोध में रविवार सुबह मोतीडूंगरी रोड स्थित मुसाफिरखाना में हजारों की संख्या में लोग जुटना शुरू हो गए। यहां आए लोगों ने सीएए को धर्म के आधार पर भेदभाव करार दिया। साथ ही धर्म के आधार पर नागरिकता देने में भेदभाव को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया। लोगों ने सीएए के मुद्दे पर केन्द्र सरकार के खिलाफ विरोध जताया। मुसाफिरखाना में जुटे लोग यहां से अल्बर्ट हॉल पहुंचे और शांति मार्च में शामिल हुए।

इसके अलावा सीएए और एनआरसी को लेकर शांति मार्च के अलावा विधायकपुरी में भी विरोध प्रदर्शन किया गया। पुलिस ने बताया कि शांति मार्च के अलावा शहर में कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों में लोगों ने नागरिकता संशोधन कानून का विरोध जताया।

नरेंद्र मोदी-अमित शाह, भाजपा, संघ का उद्देश्य हिंदुओं को मूर्ख, गुलाम बनाना है!

देखो, बूझो भावी भारत की फोटो
पता नहीं नरेंद्र मोदी-अमित शाह, भाजपा, संघ ने गुजरे सप्ताह भावी भारत की तस्वीरों को बूझा या नहीं? हां, पांच-दस-बीस साल बाद भारत के जिलों, शहरों में वहीं लगातार हुआ करेगा जैसा हाल में दिल्ली, लखनऊ, मुंबई, कोलकाता, आदि उन दर्जनों जगह दिखा है, जहां नमाजी टोपी- दाढ़ी याकि वह विशेष पहनावे वाली आबादी है, जिसका संकेत देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक जनसभा में कहा था कि नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वालों को उनके पहनावे से जानो। तभी संभव है कि गुरुवार की तस्वीरों में खास पहनावे की भीड़ देख मोदी-शाह मन ही मन उछले हों कि वाह, मुसलमान अब सड़कों पर है तो हमारे हिंदू वोट और पक्के। बन रहा है 2024 में जीत का पक्का रोडमैप! 

बावजूद इसके संभव है कि मोदी-शाह-योगी के दिमाग में भी ख्याल आया हो कि ऐसा यदि भारत में नियमितता से होने लगा, विरोध-प्रदर्शनों ने यदि कश्मीर घाटी वाली दशा को भारत के महानगरों में लाइव बनवा दिया तो आगे क्या होगा? दिल्ली में मंगलवार-बुधवार को जो हुआ और जामिया नगर सीलमपुर, जाफराबाद आदि में पत्थरबाजी, उपद्रव, पुलिस ठुकाई की श्रीनगर जैसी जो तस्वीरें बनीं तो सोचना जरूरी है कि दिल्ली के तुर्कमान गेट के अंदर की पुरानी दिल्ली से ले कर जामिया नगर, सीलमपुर, जाफराबाद, वेलकम, मौजपुर-बाबपुर, गोकुलपुरी आदि की तमाम कच्ची-पक्की मुस्लिम बहुल बस्तियों में नागरिकता के मुद्दे पर यदि स्थायी विरोध पैठ गया तो बंगाल, असम, केरल, मुंबई, हैदराबाद, लखनऊ आदि शहरों की बात तो छोड़ें भारत की राजधानी दिल्ली भी वैश्विक नजरिए में क्या तस्वीरें लिए हुए होगी!

लंगूर हिंदुवादी तर्क दे सकते हैं कि ऐसा न होने देने के लिए ही तो नरेंद्र मोदी-अमित शाह दिन रात एक कर दे रहे हैं। उनमें खौफ बनवा दिया जा रहा है। हिंदुओं का सशक्तिकरण हो रहा है जबकि मुसलमानों को सुधारा जा रहा है। मैसेज बनाया जा रहा है कि देश में रहना है तो मर्यादा में, अनुशासन में रहो। देश-दुनिया में यह मनोविज्ञान बनवा दे रहे हैं कि यह देश हिंदुओं का है और हिंदू जैसे रखेंगे वैसे रहना होगा!

पर हकीकत में इस मनोवैज्ञानिक मिशन का कोर उद्देश्य मुसलमान को आधुनिक, राष्ट्रवादी बनाना व सुधारना नहीं है, बल्कि हिंदुओं को मूर्ख, गुलाम बनाना है तो मुस्लिम आबादी को खोल में ढकेलते हुए, कट्टर, उग्र बनने देना है। मोदी-शाह में इतिहासजन्य हिंदू-मुस्लिम ग्रंथि को सुलझाने की संजीदा समझदारी नहीं है मगर हां, इतिहास के हवाले हिंदुओं को मूर्ख बनाने की चतुराई जरूर है। तभी लगातार हिंदुओं को हल्ले से बताया जा रहा है कि हम हैं तो पाकिस्तान से, मुसलमान से सुरक्षा है। हिंदुओं याद रखो पानीपत की लड़ाई को। दुनिया के तमाम देशों ने याकि चीन से लेकर फ्रांस, डेनमार्क के सभ्य-असभ्य, लोकतांत्रिक-तानाशाह देशों ने मुसलमान को आधुनिक बनाने, उनकी पढ़ाई-लिखाई को मदरसे से बाहर निकलवाने, हिज्ब याकि पहनावे को बदलने के जितनी तरह के जैसे जो भी काम और फैसले किए हैं उसमें से एक काम मोदी-शाह (तीन तलाक के आंशिक कानून को छोड़ कर) के साढ़े पांच सालों में नहीं हुआ है।

काम क्या हुआ? भाषणबाजी, मीडिया नैरेटिव से बात-बेबात मुस्लिम आबादी, पाकिस्तान पर उंगली उठा कर श्मशान बनाम कब्रिस्तान, पाकिस्तान में पटाखों, या उनके पहनावे और पानीपत लड़ाई जैसी जुमलेबाजी से हिंदुओं को गोलबंद बनाने का हुआ। इससे अपने आप मुसलमान मुख्यधारा व राजनीति में अप्रासंगिक होता गया। काम हुआ ओवैसी जैसे नेता को पनपाने का! काम हुआ मुसलमान को गोहत्या, खानपान, लव जिहाद जैसे नेरेटिव से चमकाने का और उन्हें अलग-थलग बनवाने का!

सचमुच मोदी-शाह-संघ-भाजपा और तमाम तरह के हिंदुवादी यदि ईमानदारी से मन ही मन विचार करें तो इस बात का कोई जवाब नहीं होगा कि इन्होंने अपने हिंदू आइडिया ऑफ इंडिया में हिंदू-मुस्लिम ग्रंथि के निदान में ऐसा क्या किया, जिससे मुसलमान बदला या सुधरा?

काम नहीं हुआ लेकिन डर बनाया गया। डर ने दोनों तरफ गोलबंदी बनाई। सेकुलर और सेकुलर विरोधी, हिंदू और मुसलमान, उदारवादी और अनुदारवादी, पृथ्वीराज वाली जमात या जयचंदों की जमात सब अपने-अपने डर, अपनी-अपनी चिंताओं में मन ही मन गांठ बांधते हुए आज इस मुकाम पर हैं कि नागरिक संशोधन कानून की एक चिंगारी सुलगी नहीं कि लोग सड़कों पर उतर आए। मुसलमान तीन तलाक पर बाहर नहीं निकला था क्योंकि मन में महिलाओं के प्रति व्यवहार पर अपराधबोध था। अयोध्या के फैसले पर वह बाहर नहीं निकला क्योंकि इतिहास का जवाब नहीं था लेकिन नागरिकता और एनआरसी ने उन्हें बाहर निकलने का मौका दिया तो इसलिए क्योंकि चाहे-अनचाहे अमित शाह के मुंह से पूरी दुनिया ने (नौ दिसंबर) संसद से सुना है कि -मान कर चलिए एनआरसी आने वाला है।

अपना मानना है कि मोदी-शाह की एनआरसी की सोच भी किसी व्यवहारिक, ठोस कार्ययोजना, मिशन के चलते नहीं है। यह भी कुल मिला कर लोगों को चमकाने वाली हवाबाजी और हिंदू मनोविज्ञान को अपने लिए गोलबंद बनाए रखने का सियासी पैंतरा मात्र है। बावजूद इसके इससे कई सालों, एक-दो दशक लंबा उबाल बन सकता है तो अपने आप यह मुद्दा पक्ष-विपक्ष की राजनीति का दीर्घकालिक अखाड़ा भी होगा और खोल में बंद मुस्लिम आबादी के लिए भी विरोध-प्रतिकार का लंबा जायज मुद्दा बनेगा। दुनिया भी उनके साथ होगी।

पूरे मामले को वोट गोलबंदी वाली चतुराई मानें या राष्ट्र-राज्य के साथ अनचाहा खिलवाड़ जो नागरिकता की बेसिक बात पर मोदी-शाह ने सवा सौ करोड़ लोगों में यह सवाल बना डाला है कि उनके इस देश में जीने की वैधानिकता के क्या प्रमाण हैं? जैसे नोटबंदी से घर-घर विचार हुआ वैसे एनआरसी से भविष्य में घर-घर में विचार होगा। हर व्यक्ति सोचेगा कि वे कैसे रजिस्टर में नाम दर्ज करा अपने को नागरिक लिखवाएं! जेब का पैसा और रहने याकि नागरिक होने के सर्टिफिकेट में पैसा फिर भी बाद की बात है पहले मसला रहने के हक का है। यह बेसिक पहली बात है। इस बेसिक बात को नागरिकता संशोधन कानून में डाले गए ‘मुस्लिम’ शब्द से वह चिंता मिली है, जिसका हिंदू के लिए अलग अर्थ है तो मुसलमान के लिए अलग!

तभी एनआरसी भावी भारत का वह फ्रेमवर्क है, जिसमें वे फोटो खींचा करेंगे जो इस सप्ताह देश के कई शहरों, महानगरों में देखने को मिले है। हां, नोट रखें इस बात को कि गृहयुद्ध वाले सीरिया की राजधानी दमिश्क में भी ऐसे फोटो देखने को नहीं मिले, जैसे इस सप्ताह राजधानी दिल्ली के सीलमपुर-जाफराबाद-जामिया और यूपी के शहरों में देखने को मिले हैं। सोचें, हम कहां से कहां जा रहे हैं और बिना सुध के!

राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के लिए बताना होगा माता-पिता का जन्मस्थान और जन्मतिथि


राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के खिलाफ राज्यों के विरोध के बीच केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसे अपडेट करने के लिए करीब चार करोड़ करोड़ रुपये मांगे हैं। साथ ही अब से इस प्रक्रिया में माता-पिता का जन्मस्थान और जन्मतिथि भी बतानी होगी।

 सूत्रों ने बताया कि गृह मंत्रालय ने कैबिनेट से 2021 की जनगणना के लिए 8,754 करोड़ रुपये और एनपीआर अपडेट करने के लिए 3,941 करोड़ रुपये मांगे हैं। कैबिनेट के अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, जो इस प्रस्ताव को 24 दिसंबर को मंजूरी दे सकते हैं।

एक सूत्र ने बताया, ‘एनपीआर डेटा को को जनगणना के प्रथम चरण के साथ अपडेट किया जाएगा… अपडेशन प्रक्रिया के दौरान कोई बायोमेट्रिक डेटा नहीं लिया जाएगा।’

एनपीआर की इस प्रक्रिया में लोगों को अपने माता-पिता की जन्मतिथि और जन्मस्थान बताना होगा, जो पिछले एनपीआर में नहीं पूछा जाता था- देश भर में प्रस्तावित एनआरसी के संदर्भ में इस पहलू का महत्व बढ़ जाता है।

सूत्रों ने आगे बताया कि एनपीआर अपडेट करने के लिए 21 बिंदुओं की जानकारी मांगी। इसमें माता-पिता की जन्मतिथि और जन्मस्थान, पिछले निवासस्थान, पैन नंबर, आधार (स्वैच्छिक) वोटर आईडी कार्ड नंबर, ड्राइविंग लाइसेंस नंबर और मोबाइल नंबर शामिल होगा।

2010 में हुए पिछले एनपीआर में 15 बिंदुओं की जानकारी मांगी गई थी। इन 15 में  माता-पिता की जन्मतिथि और जन्मस्थान, पिछले निवासस्थान, पासपोर्ट नंबर, आधार, पैन, ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आईडी और मोबाइल नंबर शामिल नहीं थे।

इस बार माता का नाम, पिता का नाम और जीवनसाथी के नाम को एक ही बिंदु में शामिल कर दिया गया है।

क्या है एनपीआर 

महापंजीयक और जनगणना आयुक्त कार्यालय की वेबसाइट के मुताबिक, एनपीआर का उद्देश्य देश के सामान्य निवासियों का व्यापक पहचान डेटाबेस बनाना है। इस डेटा में जनसांख्यिंकी के साथ बायोमीट्रिक जानकारी भी होगी।

अगले साल जनगणना के साथ लाए जाने वाले एनपीआर के संदर्भ में अधिकारी ने कहा कि कोई भी राज्य इस कवायद से इनकार नहीं कर सकता क्योंकि यह नागरिकता कानून के अनुरूप किया जाएगा।

एनपीआर देश के आम निवासियों का रजिस्टर है. इसे नागरिकता अधनियम 1955 और नागरिकता (नागरिकों का रजिस्ट्रीकरण एवं राष्ट्रीय पहचान पत्रों का जारी किया जाना) नियम 2003 के प्रावधानों के तहत स्थानीय (गांव/उपनगर), उप-जिला, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जा रहा है।

भारत के प्रत्येक आम निवासी के लिए एनपीआर के तहत पंजीकृत होना जरूरी है। एनपीआर के उद्देश्यों के लिए आम निवासी की परिभाषा एक ऐसे व्यक्ति के रूप में की गई है, जो किसी स्थानीय क्षेत्र में विगत छह महीने तक या अधिक समय तक रहा हो या जो उस क्षेत्र में अगले छह महीने या अधिक समय तक रहने का इरादा रखता हो।

पश्चिम बंगाल के बाद केरल सरकार ने रोका एनपीआर का काम

पश्चिम बंगाल के बाद केरल सरकार ने भी राज्य में एनपीआर से जुड़े सभी काम रोकने के आदेश दिए हैं. यह आदेश लोगों के बीच पैदा इस आशंका के मद्देनजर लिया गया कि विवादित नागरिकता संशोधित कानून (सीएए)के बाद एनपीआर के जरिए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) लागू किया जाएगा।

मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि सरकार ने एनपीआर को स्थगित रखने का फैसला किया है क्योंकि आशंका है कि इसके जरिए एनआरसी लागू की जाएगी।

मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के कार्यालय ने कहा कि यह कदम इसलिए उठाया गया है क्योंकि एनपीआर संवैधानिक मूल्यों से दूर करता है और यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।

माकपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार की ओर से यह फैसला राज्य के विभिन्न हिस्सों में संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन के बीच लिया गया है।

केरल के प्रधान सचिव (आम प्रशासन) द्वारा जारी आदेश के अनुसार, संशोधित नागरिकता कानून के बीच आम लोगों में एनपीआर संबंधित गतिविधियों के बाद एनआरसी लागू होने की आशंका थी। इसी के चलते एनपीआर का काम रोका गया है।

इससे पहले पश्चिम बंगाल ने भी सीएए के खिलाफ बढ़े गुस्से के बीच एनपीआर को तैयार और अपडेट करने संबंधी सभी गतिविधियों को रोक दिया था। पश्चिम बंगाल सचिवालय द्वारा जारी एक आदेश में कहा गया था कि ‘एनपीआर संबंधी सभी गतिविधियों पर रोक रहेगी. इस संबंध में पश्चिम बंगाल सरकार की मंजूरी के बिना आगे कोई काम नहीं होगा।’

उल्लेखनीय है कि सीएम पिनाराई विजयन ने सीएए की आलोचना करते हुए इसे लोगों की स्वतंत्रता को दबाने की कोशिश करार दिया था और वह सोमवार को कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी यूडीएफ के संयुक्त प्रदर्शन में शामिल हुए थे।

केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने शुक्रवार को कहा कि राज्य सरकारों को सीएए को खारिज करने की कोई शक्ति प्राप्त नहीं है क्योंकि इसे संविधान की सातवीं अनुसूची की संघ सूची के तहत लाया गया है।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें एनपीआर को भी लागू करने से इनकार नहीं कर सकतीं, जो अगले साल लाया जाना है। उनका बयान पश्चिम बंगाल, पंजाब, केरल, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों की उस घोषणा के बाद आया, जिसमें उन्होंने सीएए को असंवैधानिक करार दिया और कहा कि उनके राज्यों में इसके लिए कोई जगह नहीं है।

जनसंख्या नियंत्रण के लिए रोडमैप तैयार करेगा नीति आयोग

स्वतंत्रता दिवस के भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उठाए गए जनसंख्या नियंत्रण के मुद्दे पर काम करते हुए नीति आयोग देश में ‘जनसंख्या नियंत्रण’ के लिए मसौदा तैयार कर रहा है.

शुक्रवार 20 दिसंबर को दिल्ली में नीति आयोग ने पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएफआई) के साथ करवाई गई एक बैठक आयोजित करवाई थी, जिसका विषय ‘जनसंख्या नियंत्रण को लेकर दृष्टिकोण’ था।

संस्थान द्वारा भेजे गए आधिकारिक बयान के मुताबिक इस बैठक में पीएफआई के अलावा विषय से जुड़े जानकार, विशेषज्ञ और अधिकारी के बीच जनसंख्या नियंत्रण की नीति को मजबूत करने और परिवार नियोजन के कार्यक्रमों पर चर्चा की जाएगी।

नीति आयोग को उम्मीद है कि इस बैठक से निकले सुझावों को वो जनसंख्या नियंत्रण पर जल्द जारी किए जाने वाले वर्किंग पेपर में शामिल करेगा।

गौरतलब है कि बीते स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले से दिए गए भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसंख्या विस्फोट पर चिंता जाहिर करते हुए देशवासियों से छोटा परिवार रखने की अपील की थी। साथ ही उन्होंने कहा था कि ‘छोटे परिवार की नीति का पालन करने वाले राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं, यह भी देशभक्ति का एक रूप है।’

इस भाषण के चार महीने बाद आयोग की ओर से इस दिशा में पहला कदम बढ़ाया गया है। आयोग ने बताया, ‘वर्किंग पेपर से भारत के परिवार नियोजन कार्यक्रमों के प्रमुख कमियां दूर करने की उम्मीद है। यह किशोरों और युवाओं, इंटर-डिपार्टमेंटल कन्वर्जेन्स, मांग बढ़ने, गर्भनिरोधक तक पहुंच और देखभाल की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए क्षेत्रीय विषमताओं को दूर करने के लिए सुझाव देगा।’

हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि ‘जनसंख्या विस्फोट’ का सिद्धांत विवादास्पद है क्योंकि इसके 1.37 अरब लोगों के बावजूद भारत में जन्म दर में गिरावट देखी जा रही है। कुछ लोगों का यह मानना भी है कि अगर सरकार लोगों को विवेकपूर्ण तरीके से प्रयोग कर सके, तो बड़ी आबादी का होना भारत के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।

हालांकि नीति निर्धारक इस बात को लेकर ज्यादा चिंतित हैं कि भारत की आबादी का 30 प्रतिशत युवा हैं जो रिप्रोडक्टिव ऐज ग्रुप (प्रजनन आयु वर्ग) में आते हैं, ऐसे में आबादी बढ़ती ही रहेगी।

शनिवार, 21 दिसंबर 2019

करोड़ों खर्च , लेकिन द्रव्यवती परियोजना और बीआरटीएस कोरिडोर के भविष्य का कुछ पता नहीं !


जयपुर । पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के ड्रीम प्रोजेक्ट द्रव्यवती रिवर फ्रंट परियोजना के भविष्य पर ग्रहण लग गया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की चिंता के बाद अब यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने भी साफ कह दिया है कि पहले इस कार्य को हाथ में लेने वाली कंपनी अपना कार्य पूरा करे, फिर उसे बकाया धनराशि जारी होगी। 

इसके बाद देखेंगे, द्रव्यवती नदी परियोजना का क्या करना है। आपको बता दे कि द्रव्यवती नदी परियोजना पर लागत 1800 करोड़ से ज्यादा आ गई है। साथ ही अभी काम अधूरा ही पड़ा है।
साथ ही यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने जयपुर के बीआरटीएस कॉरिडोर के भविष्य पर भी सवालिया निशान लगा दिया। धारीवाल ने कहा कि अभी यह बंद होगा या नहीं, यह कहना अभी ठीक नहीं, लेकिन यह ट्रैफिक के हिसाब से ठीक नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार ने बिना धनराशि की व्यवस्था के कई प्रोजेक्ट हाथ में ले लिए। साथ ही जयपुर विकास प्राधिकरण पर तीन हजार करोड़ के कर्जे का भार छोड़ दिया।

उन्होंने कहा कि जो भी प्रोजेक्ट महत्वपूर्ण नहीं है, वह सभी प्रोजेक्ट बंद होंगे। रही बात मेट्रो परियोजना के चांदपोल से बड़ीचौपड़ के फेज की तो, यह मार्च 2021 में शुरू हो जायेगी। उन्होंने माना कि प्रदेश सरकार में आर्थिक संकट है और केंद्रीय करो का हिस्सा नहीं मिलने से दिक्कत आ रही है। यूडीएच मंत्री ने कहा कि राज्य सरकार नीलामी प्रक्रिया के सरलीकरण के कारण हाउसिंग बोर्ड और जमीनों का ऑक्शन कर रही है, जिससे कि राजस्व में बढ़ोत्तरी हो सके।

मुख्यमंत्री के ऊपर कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी, खुद ही लोगों को भड़का रहे है: डाॅ. पूनिया


जयपुर। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष डाॅ. सतीश पूनिया ने नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ कांग्रेस के प्रदर्शन और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बयानबाजी पर पटलटवार करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री बार-बार संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन कर रहे हैं और जनता को भ्रमित कर मोदी सरकार के खिलाफ भड़का रहे है। 

डाॅ. पूनिया ने कहा कि संविधान की शपथ लेकर सरकार चला रहे मुख्यमंत्री, भारत की संसद के द्वारा पारित कानून के संशोधन को सड़क पर उतर कर चुनौती दे रहे हैं, ये डाॅ. अंबेडकर के बनाएं भारत के संविधान का अपमान है। भारत के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री बार-बार कह चुके हैं कि ये कानून नागरिकता देने का है किसी की भी नागरिकता लेने का नहीं। वर्ष 2003 में राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष की हैसियत से डाॅ. मनमोहन सिंह तब की सरकार से इन विस्थापितों को प्राथमिकता के आधार पर नागरिकता देने की वकालत कर चुके हैं। खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत यूपीए सरकार के गृहमंत्री पी. चिदम्बरम को राजस्थान में रह रहे हिंदू-सिख शरणार्थियों को नागरिकता देने का पत्र लिख चुके हैं, पर अब वोट बैंक के तुष्टिकरण और गांधी परिवार को खुश करने के लिए सीएए का विरोध कर रहे हैं।

डाॅ. पूनिया ने कहा कि ये राजस्थान की जनता का दुर्भाग्य है की उनका चुना हुआ मुख्यमंत्री देश की भावनाओं के खिलाफ बात कर रहा है। धर्म के आधार पर देश के दुर्भाग्यपूर्ण बंटवारे से उपजी एक गम्भीर समस्या जिसकी वजह से पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में लाखों की संख्या में अल्पसंख्यकों की हत्या हुई, जबरन धर्मान्तरण किया गया और उनकी बहन-बेटियों की अस्मत लुटी गई। इस्लामिक देश पाकिस्तान में विभाजन के समय हिंदुओं और बाकी अल्पसंख्यकों की आबादी 23 प्रतिशत थी जो अब 3 प्रतिशत रह गई है, यही हाल बाकी दोनों देशों का है, विभाजन के समय इन लोगों की जान-माल की रक्षा का वादा तब की सरकार के कांग्रेस के नेताओं ने किया था, पर सत्ता का सुख भोगते इन लोगों ने उन मरते लोगों की सुध कभी नहीं ली। आज जब देश की सरकार उन्हें नागरिकता देकर इस देश की मूल परम्परा का पालन कर रही है तो इन कांग्रेस के नेताओं के पेट में दर्द हो रहा है।

डाॅ. पूनिया ने कहा कि मुख्यमंत्री को ये मार्च की नौटंकी छोड़कर, एक जिम्मेदार राजनेता की तरह व्यवहार करना चाहिए। उनके ऊपर कानून व्यवस्था को बनाए रखने की जिम्मेदारी है और वो लोगों को भड़का कर कानून तोड़ने के लिए उकसा रहे हैं। कल उनके खुद के शहर जोधपुर में हिंसक प्रदर्शन हुआ उससे दोषियों के खिलाफ उन्हें सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। लोगों की जान-माल की सुरक्षा मुख्यमंत्री की प्राथमिक जिम्मेवादारी है, ना की गांधी परिवार की भक्ति दिखाने के लिए इस तरह के मार्च की।

इस संशोधित कानून में किसी का अहित नहीं है, केवल अपना सब कुछ लुटा कर, धार्मिक आधार पर पड़ौसी मुस्लिम देशों से भारत में शरण लेने आए अपने ही भाई-बहनों का हित है। जिसका खुले दिल से स्वागत होना चाहिए।

डाॅ. पूनिया ने कहा कि मुख्यमंत्री को प्रदेश के लोगों को आश्वस्त करना चाहिए की राज्य में कानून व्यवस्था किसी भी हाल में नहीं बिगड़ने देंगे। अगर प्रदेश में किसी भी तरह की कानून व्यवस्था की समस्या होती है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी मुख्यमंत्री की होगी।

‘राष्ट्रविरोधी’ व्यवहार बढ़ाने वाली सामग्री को लेकर टीवी चैनलों को सरकार की दूसरी चेतावनी

एडिटर्स गिल्ड की मांग को दरकिनार करते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने शुक्रवार को पिछले दस दिनों में दूसरी बार परामर्श जारी करते हुए सभी टीवी चैनलों से कहा है कि वे ऐसी सामग्री के प्रसारण को लेकर सावधानी बरतें जिनसे हिंसा फैलने की आशंका हो या फिर राष्ट्रविरोधी व्यवहार को बढ़ावा दे रही हों।

राज्यसभा द्वारा नागरिकता (संशोधन) विधेयक को पारित करने के बाद पूर्वोत्तर में भड़के हिंसक प्रदर्शनों की तस्वीरें कुछ टीवी चैनलों के दिखाने के बाद मंत्रालय द्वारा पिछला परामर्श 11 दिसंबर को जारी किया गया था।

 11 दिसंबर को जारी परामर्श का उल्लेख करते हुए नए परामर्श में कहा गया है कि यह देखा गया है कि उपरोक्त सलाह के बावजूद कुछ टीवी चैनल ऐसी सामग्री का प्रसारण कर रहे हैं, जो उसमें निर्दिष्ट प्रोग्राम कोड की भावना के अनुसार नहीं है।

केबल टेलीविजन नेटवर्क्स (नियमन) अधिनियम, 1995 का उल्लेख करते हुए 11 दिसंबर को टीवी चैनलों को जारी किए गए दिशानिर्देश में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने कहा था, ‘एक बार फिर से सभी टीवी चैनलों को सलाह दी जाती है कि वे ऐसी सामग्री के प्रति खासतौर पर सावधानी बरतें, जिनसे हिंसा को प्रोत्साहन मिलता हो या उससे हिंसा भड़कती हो, या कानून-व्यवस्था बनाए रखने में समस्या पैदा होने की आशंका हो या फिर ऐसी घटनाएं जो राष्ट्रविरोधी व्यवहार को बढ़ावा दे रही हों।’

मंत्रालय ने कहा था कि यह परामर्श ‘उन सभी सामग्री पर लागू होता है, जो देश की अखंडता को प्रभावित करती हैं और इसलिए यह सुनिश्चित करें कि ऐसी कोई भी सामग्री प्रसारित न हो जो इन संहिताओं का उल्लंघन करती है।’

जारी परामर्श में आगे कहा गया था, ‘सभी निजी सैटेलाइट टीवी चैनलों से अनुरोध किया जाता है कि वे इस परामर्श का सख्ती से पालन करें।’

हालांकि, मंत्रालय के 11 दिसंबर के परामर्श को वापस लेने की मांग करते हुए एडिटर्स गिल्ड ने कहा था कि वह मानता है कि देश में घटित होने वाली घटनाओं की जिम्मेदार कवरेज के लिए मीडिया की समग्र प्रतिबद्धता पर इस तरह के परामर्श से सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए।

गिल्ड ने एक बयान में कहा था कि मीडिया की जिम्मेदारी है कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से रिपोर्ट करे। गिल्ड इस तरह के परामर्श की निंदा करता है जो स्वतंत्र मीडिया के कामकाज में दखल देती हैं और अनुरोध करता है कि सरकार इसे वापस ले।

पहला परामर्श जारी होने के बाद राज्यसभा में शून्यकाल का नोटिस देने के बाद तृणमूल सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने इसे दूसरा आपातकाल करार देते हुए कहा था कि यह मीडिया सेंसरशिप है और सरकार को मीडिया को धमकाना बंद करना चाहिए।

वहीं, दूसरा परामर्श जारी होने के बाद ब्रायन ने कहा कि यह सूचना पहुंचाने वाले को ही सजा देना है। दूसरा आपातकाल करार देते हुए कहा कि संसद सत्र चलते हुए भाजपा ने यह किया और एक बार फिर से वही कर रही है।

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2019

विपक्ष का रूमानीपना


तमाम सेकुलर खुश हैं। विपक्ष के सभी नेता विरोध-आंदोलन की फुटेज, नैरेटिव से बम-बम हैं। ये सब मुगालते में हैं कि मोदी-शाह के खिलाफ माहौल बन रहा है। जाहिर है विपक्ष में यह तनिक भी विचार नहीं हुआ है कि गृह मंत्री अमित शाह तीन तलाक, अनुच्छेद 370, अयोध्या में मंदिर, नागरिकता कानून में संशोधन और एनआरसी के काम को एक-एक कर आगे बढ़ा रहे है तो ऐसा किसी रोडमैप, सियासी शतरंज में ही हो रहा होगा और इसका राजनैतिक अर्थ क्या है? क्या यह नहीं सोचा जाना चाहिए कि क्यों अमित शाह लगातार वह कर रहे हैं, जिसमें प्रत्यक्ष-परोक्ष हिंदू बनाम मुसलमान बहस, विवाद, नैरेटिव और चिंता सतत पकती जाए!

हिसाब से यह सब ढर्रे में है। यहीं मोदी-शाह की मूल पूंजी है। कांग्रेस-लेफ्ट-सेकुलर सबको सन् 2014 से पहले के अनुभव से समझा हुआ होना था कि नरेंद्र मोदी का ग्राफ तब बनता जाता है जब हिंदू बनाम मुस्लिम चलता रहता है। जब दंगा, झगड़ा और मुसलमानों के साथ भेदभाव का हल्ला हो।

इसे न समझ पाना विपक्ष का वह रूमानीपना है, जिसमें आज के भारत को वह सन् 2014 से पहले वाला समझे हुए है। मतलब हम सन् 2014 से पहले वाले लोकतंत्र में, उसकी सेकुलर तासीर में जी रहे हैं! भारत के हिंदू पहले जैसे ही हैं। सुप्रीम कोर्ट पहले जैसा है। मीडिया पहले जैसा है। राजनीति पहले जैसी है। समाज पहले जैसा है! इसलिए सड़कों पर आंदोलन करती भीड़ देश में नई हवा है और सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं डालेंगे तो सरकार के खिलाफ फैसले होंगे।

ऐसी खामोख्याली, रूमानी सोच के ही चलते आश्चर्य नहीं जो नागरिकता संशोधन बिल का पूर्वोत्तर में सहज-नैसर्गिक विरोध हुआ तो कांग्रेस, लेफ्ट, ममता, मायावती आदि में ऐसा जोश भरा मानो बह्मास्त्र मिल गया हो। कांग्रेस ने देश बचाओ रैली कर डाली। ऐसे ही इससे ठीक पहले हरियाणा और महाराष्ट्र के नतीजों ने भी विपक्ष में यह खामोख्याली बनाई कि नरेंद्र मोदी-अमित शाह का वोट जादू घटने लगा है। तय मानें कि यदि झारखंड और दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा का कमजोर प्रदर्शन हुआ तब भी विपक्ष अपने दिन फिरते हुए समझेगा।

ऐसे सोचना सन् 2014 से पहले के लोकतंत्र में ठीक था। उस लोकतंत्र में मीडिया अपनी असली जिम्मेदारी में था। अदालतें कर्तव्य निर्वहन करते हुए थीं। संस्थाएं याकि चुनाव आयोग, सीवीसी, सीएजी से ले कर सिविल सोसायटी, एनजीओ सब जिंदा थे। आर्थिकी जिंदा थी, उद्योगपति-कारोबारी-पेशेवरों-बाबाओं में बोलने की हिम्मत थी। जिंदा लोकतंत्र में जिंदादिली को पंख लगे हुए थे। 

पर क्या 2014 से पहले वाला लोकतंत्र, जिंदादिली आज है? क्या एक सौ तीस करोड़ लोग और उनमें भी बहुसंख्यक आबादी वैसे सोचती है जैसे 2014 से पहले सोचती थी? वैसा नहीं है और बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक सभी का रूख व दिमागी खांचा बदल गया है तो विपक्ष लाख सिर पीट ले वह जंतर-मंतर पर 2014 से पहले जैसा माहौल बना नहीं सकता है। 2012-13 के वक्त में लोकतंत्र-राजनीति सचमुच आजादी से लबालब भरी हुई थी, तब देश और दुनिया में सभ्य-भले डा. मनमोहन सिंह का राज था और आज राज उन नरेंद्र मोदी-अमित शाह का राज है, उन योगी आदित्यनाथ का है, जिनको देखने का दुनिया का चश्मा भी अलग बना हुआ है। और इस बात को, इस हकीकत को विपक्ष द्वारा बूझ नहीं पाना, तात्कालिक उबाल को हवा समझ लेना भारत की मौजूदा राजनीति की सबसे बड़ी नासमझी है।

नीतीश नहीं हैं किसी मुगालते में


देश भर के प्रादेशिक क्षत्रपों में जो एक-दो नेता किसी भ्रम में नहीं हैं तो उनमें से एक नीतीश कुमार भी हैं। नीतीश कुमार ने ममता बनर्जी के बांग्ला उप राष्ट्रीयता से बहुत पहले बिहारी उप राष्ट्रीयता का दांव आजमाया था। उन्होंने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए बड़ा जोरदार आंदोलन किया था। उन्होंने बिहार में और बाहर भी बिहार दिवस मनाने की परंपरा शुरू कराई थी और बिहार गीत भी लिखवाया था। पर अंततः उन्होंने इससे तौबा कर ली। उनको इसका कोई फायदा नहीं हुआ। उलटे भाजपा के मुकाबले अकेले लड़ कर उन्होंने अपनी भद्द पिटवाई। 2014 के लोकसभा चुनाव में वे उसी हाल में पहुंच गए थे, जिस हाल में 2019 के चुनाव में राजद पहुंची है। 

तभी नीतीश कुमार के सिर से धर्मनिरपेक्षता का भी भूत उतर गया है, बिहारी उप राष्ट्रीयता का मुद्दा भी उन्होंने छोड़ दिया है और सुशासन वगैरह की भी बातें बंद कर दी हैं। अब वे खुद समाज सुधारक बन गए हैं और हिंदुवादी राष्ट्रवाद की लगातार चौड़ी होती धारा में बहने का फैसला कर लिया है। उनको पता है कि अगर वे बिहार के मुसलमानों के लिए भी कुछ करना चाहते हैं तो उसके लिए सत्ता में रहना जरूरी है। और सत्ता में रहने का एकमात्र रास्ता भाजपा के साथ रहना है।

उनके लिए अच्छी बात यह है कि भाजपा बिहार में उनको बड़ा भाई मानती है। उनके एजेंडे पर अमल से इनकार नहीं करती है। उनक अपने हिसाब से काम करने देती है। उनको छोड़ कर भाजपा ने भी खुद को आजमा लिया है। भाजपा के पास उनके मुकाबले कोई ऐसा चेहरा नहीं है। करीब चार दशक की राजनीति में भाजपा ने सुशील मोदी के जिस चेहरे को आगे करके राजनीति की उसके प्रति समाज के बहुत बड़े वर्ग का सद्भाव नहीं है। तभी भाजपा भी नीतीश के प्रति सद्भाव दिखाती है। दोनों एक दूसरे के पूरक बन गए हैं और समझ गए हैं कि एक दूसरे के बिना उनका काम नहीं चलना है।

नीतीश कुमार के तमाम किस्म के मुगालतों से बाहर आ जाने का एक कारण यह भी है कि अब उनकी उम्र 69 साल होने वाली है और प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा उन्होंने छोड़ दी है। एक समय ऐसा था, जब वे नरेंद्र मोदी का विकल्प माने जा रहे थे। पर उनको समझ में आ गया कि अब नब्बे के दशक वाला समय नहीं है और वे बिना किसी बड़े संगठन या ताकत के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते हैं। सो, उन्होंने चुपचाप वापस भाजपा के साथ समझौता कर लिया और अपने लिए सम्मानजक जगह सुनिश्चित कर ली। अब उनका एकमात्र लक्ष्य यह है कि 2020 के अंत में होने वाले चुनाव में जीत कर एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री बन जाएं और 75 साल की उम्र तक पद पर रह कर सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का श्रीकृष्ण का रिकार्ड तोड़ें और फिर रिटायर हों।

हालांकि कई जानकार यह भी मान रहे हैं कि यह सब भी उनका मुगालता ही है क्योंकि चुनाव में क्या होगा, भाजपा क्या करेगी और बिहार की जनता क्या करेगी, इसका किसी को अंदाजा नहीं है। पर नीतीश कुमार कम से कम अभी मान रहे हैं कि बिहार में लोगों का भाजपा के प्रति सद्भाव रहेगा और भाजपा का सद्भाव उनके प्रति रहेगा।

संविधान की लड़ाई का मुगालता


कांग्रेस पार्टी ने अपने मुख्यमंत्रियों से कहा है कि वे नागरिकता कानून के विरोध में सड़क पर उतरें और प्रदर्शन करें। सो, उसके मुख्यमंत्री 28 दिसंबर को संविधान बचाओ मार्च कर रहे हैं। यह सिर्फ कांग्रेस पार्टी नहीं है, जिसको यह मुगालता है कि केंद्र सरकार के हिंदुवादी राष्ट्रवाद के एजेंडे को वह संविधान बचाने के नाम पर काउंटर कर लेगी। कांग्रेस की तरह समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, वामपंथी पार्टियां, डीएमके आदि सबको यह भ्रम है कि संविधान बचाने के नाम पर देश की जनता उनके साथ खड़ी होगी और भाजपा के एजेंडे को फेल कर देगी। इससे जाहिर हो रहा है कि देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी से लेकर तमाम प्रादेशिक क्षत्रपों की नजदीकी और दूर की नजर दोनों खराब हो गए हैं। वे न तो निकट भविष्य का खतरा बूझ पा रहे हैं और भविष्य में आने वाली चुनौती को देख पा रहे हैं।

यहीं कारण है कि ऐसे समय में भी बहुजन समाज पार्टी को लग रहा है कि उसे कांग्रेस के साथ नहीं जाना चाहिए। सपा को लग रहा है कि उसको बसपा के साथ नहीं जाना चाहिए। सीपीएम और सीपीआई को लग रहा है कि उन्हें तृणमूल कांग्रेस के साथ नहीं जाना चाहिए। इस तरह के अनेक छोटे-बड़े प्रादेशिक दल हैं, जो अपनी बिल्कुल क्षेत्रीय राजनीति के सरोकारों से मतलब रख रहे हैं और उनको लग रहा है कि वे एक निश्चित वोट बैंक की वजह से बचे रह जाएंगे। असलियत यह है कि भाजपा ने वोट बैंक की पुरानी और पारंपरिक राजनीति को पूरी तरह से बदल दिया है। 

पहले माना जाता था कि मुस्लिम वोट बैंक और हिंदू जातियों में बंटा है इसलिए हिंदू नहीं, बल्कि उसकी जातियां अलग अलग वोट बैंक हैं। तभी कुछ लोग यादव की राजनीति करते थे तो कुछ लोग कुर्मी की। कुछ जाट की राजनीति करते थे, कुछ मराठों की। कुछ सवर्ण की राजनीति करते थे तो कुछ पिछड़ों की। फिर पिछड़ों अति पिछड़े और दलितों में महादलित का सिद्धांत घुसाया गया। जातियों को उप जातियों और उप जातियों को गोत्र में बांटा गया और इसी आधार पर राजनीति की गई। ऐसा नहीं है कि मुस्लिम जातियों और उप जातियों में नहीं बंटे हैं पर उनको लेकर राजनीति एक समुदाय के तौर पर हुई। सो, देर सवेर यह होना था कि हिंदू भी मुस्लिम मनोविज्ञान में आचरण करना शुरू करे।

व्यावहारिक रूप से ऐसी कोई बात नहीं है, जिससे लगे कि हिंदू को अल्पसंख्यक मनोविज्ञान में आचरण करना चाहिए पर यह एक ऐतिहासिक ग्रंथि है। भारत का मुसलमान इस सोच से बाहर नहीं निकला कि वह इस देश का शासक है और उसने आठ सौ साल तक हिंदुओं पर राज किया है तो हिंदू भी प्रजा होने और दबे होने की अपनी हीन ग्रंथि से बाहर नहीं निकाल पाए। हिंदुवादी संगठन पिछले एक सौ साल से हिंदुओं के मन से यह हीन भावना निकालने के लिए काम कर रहे थे। अब जाकर भाजपा के नए नेतृत्व को इस काम में कामयाबी मिली है। हम और वो की जो भावना दशकों से भड़काई जा रही थी वह भड़क गई है।

ऐसा नहीं है कि देश के सौ करोड़ हिंदू इस भावना में बह रहे हैं। पर जितने भी इस भावना में बह रहे हैं उतने पर्याप्त हैं भाजपा को सत्ता में लाने के लिए। उनके सामने संविधान का जिक्र करना भैंस के आगे बीन बजाने जैसा है। उनके मन में संविधान के प्रति आदर की भावना नहीं है क्योंकि उनको लगता है कि उनके साथ सारे भेदभाव इस संविधान की वजह से हो रहे हैं। उनके लिए संविधान का भाजपा का घोषणापत्र है। उनको आजादी की लड़ाई के समय की भावना मतलब नहीं है और न देश की कथित गंगा-जमुनी तहजीब के प्रचार से कोई लेना-देना है।

जब तक कांग्रेस और दूसरी क्षेत्रीय पार्टियां इस सचाई को नहीं समझेंगी तब तक भाजपा का मुकाबला नहीं कर पाएंगी। पर हकीकत यह है कि समाजवादी पार्टी को लग रहा है कि वह अपने यादव और मुस्लिम वोट के आधार पर अपना अस्तित्व बचा लेगी तो बसपा को लग रहा है कि दलित और मुस्लिम समीकरण उसको बचा लेगा। बिहार में राजद को भी मुस्लिम और यादव का भरोसा है तो दिल्ली में आम आदमी पार्टी को लग रहा है कि प्रवासी और मुसलमान उसको फिर पहले जैसा बहुमत दिला देंगे। लेफ्ट पार्टियां भी सेकुलर वोट के मुगालते में हैं इसलिए ममता बनर्जी पर आरोप लगा रहे हैं कि उनकी वजह से भाजपा को बढ़त मिली है।

उनको इस बात की कतई समझ नहीं है कि जाति को लेकर जैसी रूढ़िवादिता भारतीयों के समाज व्यवहार में है वैसी ही रूढ़िवादिता अब राजनीति में भी आ गई है। पहले हिंदू सामाजिक व्यवहार में अलग होता था और उसका राजनीतिक व्यवहार अलग होता था। राजनीति में वह अपने धर्म और जाति से बाहर जाकर वोट दे सकता था। पर अब उसका यह व्यवहार बदल गया है। वह राजनीतिक मामले में भी पहले हिंदू हो गया है। इस बात को जब तक देश की सारी पार्टियां नहीं समझेंगी, तब तक उनका अपना व्यवहार नहीं बदलेगा। समाज में और हिंदू मनोविज्ञान में आए बदलाव को समझ कर पार्टियों को अपना व्यवहार बदलना होगा। अपनी सोच बदलनी होगी। लोगों को देखने और समझने का नजरिया बदलना होगा।

इस आंदोलन से मोदी-शाह के मजे!

उन्नीस जनवरी को नागरिकता कानून के खिलाफ उत्तर प्रदेश के शहरों, देश के विभिन्न महानगरों में जो विरोध, प्रदर्शन, आंदोलन हुआ वह विपक्ष के लिए आत्मघाती है। बतौर प्रमाण उस शाम योगी आदित्यनाथ का हुंकारा था कि उपद्रवियों को देख लेंगे। उनके चेहरे वीडियो में रिकार्डेड हैं। जो नुकसान हुआ है वह उनसे वसूलेंगे। मतलब मुख्यमंत्री के चेहरे पर घबराहट, परेशानी, कानून-व्यवस्था बिगड़ने का गम नहीं था, पुलिस पर गुस्सा नहीं था, बल्कि उपद्रवियों को मजा चखाने का निश्चय था। अब यह बताने की जरूरत नहीं है कि लखनऊ या संभल जैसे शहरों में उस दिन जो उपद्रव हुआ तो भीड़ का इलाका और चेहरे कौन थे?

और ध्यान रहे योगी की तरह टीवी पर ऐसे असम के मुख्यमंत्री सोनोवाल ने कड़ा रूख नहीं दर्शाया जबकि असम में हिंसा भी हुई, लोग भी मरे, भाजपा विधायकों-मंत्रियों के घर पत्थर फेंके गए और कई इलाकों में सब कुछ ठप्प है!

सो, नागरिकता कानून पर अखाड़ा सज गया है। एक तरफ सेकुलर, उसका झंडाबरदबार विपक्ष और मुसलमान है तो दूसरी और वे मोदी-शाह-योगी हैं, जिनसे हिंदू घरों में मैसेज गया है कि देखो-देखो विरोध-प्रदर्शन करने वालों के चेहरों को, उनके पहनावे को। ये मुसलमान हैं, जिहादी, अलगाववादी-माओवादी हैं।  

जाहिर है जो है वह विपक्ष का प्रधानमंत्री मोदी-गृह मंत्री अमित शाह के बनाए ट्रैप में फंसना है। लेफ्ट, सेकुलर जमात, सोनिया-प्रियंका-लेफ्ट-ममता-मायावती-अखिलेश नहीं बूझ रहे हैं कि टीवी चैनल विरोध-आंदोलन इसलिए दिखला रहे हैं क्योंकि मोदी-शाह चाहते हैं!

हां, हिंदू मानस आंदोलनकारियों को देखते हुए उनमें मुसलमान चेहरे ढूंढें, मोदी-शाह के परंपरागत विरोधी नामों, चेहरों को देखें-सुनें यह रणनीति का अहम हिस्सा है। याद करें प्रधानमंत्री मोदी का जनसभा में लोगों से कहना कि आंदोलनकारियों का पहनावा देखो और समझो कि कौन नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे हैं। इसके बाद फिर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने और खुलासा करते हुए कहा कि छात्र आंदोलन के पीछे जिहादी, अलगाववादी, माओवादी हैं। मतलब महानगरों में लड़के सड़कों पर उतरे या जंतर-मंतर की भीड़ के पीछे नागरिकता के एंगल में मुसलमान को दिखलाना, चर्चा कराना, फोकस बनने देना एक राजनीतिक बिसात है। तभी टीवी चैनलों को छूट मिली हुई है कि दिखाओ भीड़! खूब दिखाओ जामिया में पिटाई या सीलमपुर जैसी जगहों का उपद्रव और मुस्लिम चेहरों से बातचीत।

इस बारीक बात को भी समझा जाए कि नागरिकता बिल का सर्वाधिक विरोध पूर्वोत्तर में है। वहां विरोध-प्रदर्शन में पूरा इलाका ठप्प है। वहां लोग मरे हैं लेकिन टीवी चैनलों का फोकस दिल्ली के जामिया छात्रों पर, लखनऊ में मुस्लिम इलाके की भीड़, दिल्ली, बेंगलुरू, कोलकत्ता, महानगरों के प्रर्दशनों पर है। भारत राष्ट्र-राज्य की चिंता में पूर्वोत्तर की स्थिति पर फोकस रहना चाहिए था लेकिन टीवी चैनलों ने उत्तर भारत की स्थिति पर फोकस बनाया। देश की राजधानी में जामिया में पुलिस की ठुकाई से नैरेटिव को हवा दिलाई गई।

संदेह नहीं कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में मुस्लिम आबादी का हिस्सा है। यह स्वभाविक है। साढ़े पांच साल से जो मन ही मन घुटे हुए थे वे इस मुद्दे से सड़क पर विरोध का मौका पाए हुए हैं। मुसलमान विरोध में बढ़-चढ़ कर भाग ले रहे हैं। लेकिन इसी से मोदी-शाह-भाजपा की पौ बारह है। हिंदू बनाम मुस्लिम की राजनीति का रंग इससे और गहरा बनेगा।

क्या आंदोलन बढ़ेगा? दिल्ली के चुनाव तक टीवी चैनलों से शोर चलता रह सकता है। इस कॉलम में बिल के बवाल से पहले लिख चुका हूं कि सांप्रदायिक धुव्रीकरण के लिए दंगे भी हों तो आश्चर्य नहीं होगा। मोदी-शाह को दिल्ली जीतना है। उस नाते नागरिकता बिल पर जामिया, एएमयू, सीलमपुर आदि के हल्ले से सांप्रदायिकता के तार अपने आप झनझना रहे हैं।

लाख टके का सवाल है कि विरोध-प्रदर्शन में मोदी-शाह के चाहने वाले यूथ-छात्रों, नौजवानों का मोहभंग भी क्या कहीं दर्शाता है। ऐसा पूर्वोत्तर को छोड़ कर कहीं होता हुआ नहीं लगता है। आंदोलन के चेहरे वहीं है जो प्रधानमंत्री मोदी के आइडिया ऑफ इंडिया के पुराने विरोधी हैं। इसलिए जो हो रहा है वह हिंदू वोटों का मजबूतीकरण है और आम मतदाताओं को रोजी-रोटी जैसे मसलों से भटकाए रखना है।

अशोक गहलोत ने आवासन मण्डल को फिर जीवंत किया



जयपुर। मुख्यमंत्री  अशोक गहलोत ने कहा कि हमारी सरकार ने राजस्थान आवासन मंडल को फिर से मजबूत करने का काम किया है। अब मंडल पर यह दायित्व है कि वह आम आदमी के आवास के सपने को साकार करे और खोया विश्वास हासिल करे।

 गहलोत शुक्रवार को राजस्थान आवासन मंडल के मुख्यालय परिसर में मुख्यमंत्री शिक्षक आवासीय योजना, मुख्यमंत्री प्रहरी आवासीय योजना, आतिश मार्केट योजना मानसरोवर के शुभारंभ एवं जयपुर चौपाटी मानसरोवर के शिलान्यास समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने पुरस्कृत शिक्षकों को 10 प्रतिशत रियायती दर पर आवास देने की घोषणा की।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हाउसिंग बोर्ड बंद होने के कगार पर था। करोड़ों की लागत से बने करीब 22 हजार मकान धूल खा रहे थे। हमारी सरकार ने गरीब एवं जरूरतमंद लोगों को आवास मुहैया कराने के लिए बनाई गई इस संस्था को पुनः जीवन्त कर दिया है। इसी का नतीजा है कि कुछ महीनों में ही बड़ी संख्या में आवासन मंडल के मकानों की नीलामी हुई है। 

बेहतर क्वालिटी के मकान बनाकर बदलें आमजन की धारणा 

गहलोत ने कहा कि आवासन मंडल के मकानों की गुणवत्ता को लेकर आमजन में बहुत अच्छी धारणा नहीं है। बोर्ड को बेहतरीन क्वालिटी के मकान बनाकर इस धारणा को बदलना चाहिए। अच्छे मकान बनेंगे तो लोग स्वतः ही उन्हें खरीदने के लिए आगे आएंगे। उन्होंने कहा कि इस संस्था का गठन इस उद्देश्य से किया गया है कि हर जरूरतमंद व्यक्ति को छत मिल सके। इसलिए आवासीय योजनाओं में ऎसे प्रावधान किए जाएं कि व्यक्ति रहने के उद्देश्य से ही मकान खरीदे। उनका बार-बार बेचान नहीं हो।

निकम्मे अफसरों को मिले अनिवार्य सेवानिवृत्ति

मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार में अच्छे काम करने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए और निकम्मे एवं कामचोर अधिकारियों व कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने जैसे सख्त कदम उठाना जरूरी है। अच्छे काम करने वाले और नाकारा कार्मिकों के साथ एक जैसा व्यवहार उचित नहीं है, इससे काम करने वाले लोगों के मन में निराशा का भाव पैदा होता है। कितना ही बड़ा अधिकारी हो उसे यह डर होना चाहिए कि काम नहीं करने पर उसकी नौकरी जा सकती है।

इच्छाशक्ति से निखरा जयपुर का रूप

 गहलोत ने जयपुर को निखारने के लिए उनके पूर्व के कार्यकालों में उठाए गए कदमों का जिक्र करते हुए कहा कि परकोटे में बरामदे खाली करवाने, जेएलएन मार्ग एवं कठपुतली नगर के सड़क विकास के काम दृढ़ इच्छाशक्ति का परिणाम था। घाट की गूणी टनल, जयपुर मेट्रो, एलिवेटेड रोड़ जैसी दूरगामी परियोजनाओं से जयपुर की विश्व स्तर पर पहचान बनी। काबिल अधिकारियाें एवं सरकार की इच्छा शक्ति के कारण ही ये काम संभव हो सके। नये अधिकारियों को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।

पुराने आतिश मार्केट में बनेगी पार्किंग

नगरीय विकास एवं आवासन मंत्री  शांति धारीवाल ने कहा कि मुख्यमंत्री की गांधीवादी सोच के कारण ही राजस्थान आवासन मण्डल फिर से क्रियाशील हो पाया और ई-टेंडरिंग एवं ई-ऑक्शन में राष्ट्रीय कीर्तिमान बनाया। उन्होंने कहा कि आवासन मण्डल को हमारी सरकार और मजबूत बनाएगी। उन्होंने कहा कि चारदीवारी स्थित आतिश मार्केट में आमजन के लिए पार्किंग सुविधा विकसित की जाएगी। उन्होंने कहा कि आवासन मण्डल छोटे शहरों में भी आवासीय योजनाएं लाए। इससे लोगों का बड़े शहरों की ओर पलायन रूकेगा।

35 दिन में नीलाम किये 1010 आवास

मुख्य सचिव  डी.बी गुप्ता ने कहा कि राज्य सरकार की इच्छाशक्ति एवं संकल्प का परिणाम है कि बोर्ड की योजनाओं में आमजन का भरोसा लौट रहा है। आवासन मण्डल के आयुक्त  पवन अरोड़ा ने कहा कि मात्र 35 कार्य दिवसों में 1 हजार दस आवासों की नीलामी से 162 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया गया है। इस अवसर पर आवासन मण्डल की ओर से  गहलोत को मुख्यमंत्री सहायता कोष में एक करोड़ रुपये का चेक भेंट किया गया।

इस अवसर पर परिवहन मंत्री  प्रतापसिंह खाचरियावास, मुख्य सचेतक  महेश जोशी, शिक्षा राज्य मंत्री  गोविंद सिंह डोटासरा, सूचना एवं जनसम्पर्क राज्य मंत्री डॉ. सुभाष गर्ग, विधायक  रफीक खान,  अमीन कागजी, श्रीमती गंगा देवी, पुलिस महानिदेशक  भूपेंद्र सिंह सहित अन्य जनप्रतिनिधि, अधिकारी एवं हाउसिंग बोर्ड के कार्मिक उपस्थित थे।       

विपक्ष को किस बात का इंतजार है


भाजपा विरोधी सारी पार्टियों को लग रहा है कि देश में इस समय सरकार के खिलाफ जनमानस बन रहा है। लोग आंदोलित हैं। नागरिकता कानून के अलावा अर्थव्यवस्था की मंदी, महंगाई और बेरोजगारी ने लोगों को परेशान करके रखा है। इसके बावजूद विपक्ष कोई साझा पहल क्यों नहीं कर रहा है? विपक्ष के तमाम नेता और पार्टियां आखिर किस बात का इंतजार कर रही हैं? किसी और ज्यादा बड़े मौके का या नेता का?

वैसे इससे पहले कई विपक्षी नेताओं की ओर से धुरी बनने का प्रयास हुआ है पर राष्ट्रीय स्तर पर कामयाबी नहीं मिली है। सारे नेता थक हार कर बैठ गए दिखते हैं। किसी समय नीतीश कुमार विपक्ष की धुरी बनते लगते थे पर वे भाजपा के साथ चले गए। फिर चंद्रबाबू नायडू से उम्मीदें थीं पर जगन मोहन से हार कर वे भी अब एनडीए में लौटने का रास्ता बना रहे हैं। के चंद्रशेखर राव ने ममता बनर्जी को आगे करके विपक्षी एकजुटता का प्रयास किया था पर अब लग रहा है कि ममता अपने राज्य में ही घिरी हैं। इस बीच विपक्ष को धुरी बनने वाले नए नेता के रूप में शरद पवार मिल गए हैं। 

महाराष्ट्र के घटनाक्रम के बाद सहज रूप से माना जा रहा है कि वे विपक्षी एकता की धुरी बन सकते हैं। पर वे कब पहल करेंगे, यह कोई नहीं बता रहा है और उससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस उनको राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व सौंपने के लिए राजी होगी? कांग्रेस के एक जानकार नेता का कहना है कि सोनिया गांधी को कोई दिक्कत नहीं है। वे शरद पवार को अब चुनौती नहीं मान रही हैं। वैसे भी पवार की उम्र बहुत ज्यादा हो गई है और सेहत भी बहुत अच्छी नहीं है। तभी अगर वे विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने का प्रयास करते हैं तो कांग्रेस इसका समर्थन करेगी।

पर सवाल है कि कब यह पहल शुरू होगी? क्या विपक्ष झारखंड और दिल्ली के चुनाव नतीजों का इंतजार कर रहा है? विपक्ष के ज्यादातर नेता मान रहे हैं कि इन दोनों राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन खराब होगा और इस बीच अगले तीन महीने में देश की अर्थव्यवस्था भी और बिगड़ेगी। तब विपक्षी एकजुटता का सही समय आएगा। हालांकि कांग्रेस और एनसीपी दोनों के पुराने नेता इसे लेकर बहुत उत्साहित नहीं है। उनका कहना है कि राष्ट्रीय चुनाव में अभी साढ़े चार साल बाकी हैं और तब तक मौजूदा माहौल को बनाए रखना संभव नहीं है। इसलिए वे अभी यथास्थिति के पक्ष में हैं।