गुरुवार, 7 नवंबर 2019

करतारपुर से खुलेगा आगे का रास्ता!

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उम्मीद है कि करतारपुर कॉरीडोर के प्रयोग से आगे का रास्ता खुलेगा। दूसरी ओर पाकिस्तान ने करतारपुर कॉरीडोर के उद्घाटन से पहले प्रचार का एक वीडियो जारी किया है, जिसमें खालिस्तानी आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले की फोटो लगी हुई है। भारत ने इस पर औपचारिक विरोध दर्ज कराया है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने कहा है कि उनको पहले से इस बात का अंदेशा था और वे हमेशा कहते रहे हैं कि इसके पीछे पाकिस्तान का कोई गुप्त एजेंडा है।

भारत में सामरिक मामलों के जानकार ब्रह्म चेलानी का मानना है कि करतारपुर कॉरीडोर का पूरा आइडिया बुनियादी रूप से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के दिमाग की उपज है। उन्होंने इमरान खान की सरकार के जरिए इसे आगे बढ़ाया है और भारत में केंद्र व पंजाब की सरकार धार्मिक वोटों की खातिर इस जाल में फंस रहे हैं। ज्यादातर सामरिक व रक्षा जानकार मान रहे हैं कि यह भारत में खालिस्तानी आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला साबित हो सकता है।

सवाल है कि ऐसी स्थिति में इस प्रयोग या पहल से क्या उम्मीद की जा सकती है? पाकिस्तान इसके जरिए खालिस्तानी आतंकवाद को बढ़ावा देना चाहता है। वह इसके जरिए पैसा कमाना भी चाह रहा है। उसने हर सिख श्रद्धालु से 20 डॉलर वसूलने का नियम बनाया है और भारत के तमाम विरोध के बावजूद इसे बदलने पर राजी नहीं हुआ है। ऊपर से अब उसने यह भी कह दिया है कि हर श्रद्धालु के पास पासपोर्ट जरूर होना चाहिए। पहले माना जा रहा था कि वीजा की जरूरत नहीं है तो पासपोर्ट की भी जरूरत नहीं होगी। भारत में किसी भी पहचान पत्र के आधार पर सिखों को परमिट मिल जाएगा। करीब पौने पांच किलोमीटर का यह कॉरीडोर पाकिस्तान में स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब को भारत के गुरदासपुर में स्थित डेरा नानक बाबा को जोड़ने के लिए बन रहा है। माना जाता है कि गुरू नानक देव जी ने अपने जीवन के आखिर कुछ महीने गुरुद्वारा दरबार साहिब में बिताए थे।

बहरहाल, इस पूरे मामले में पाकिस्तान के रवैए से ऐसा लग रहा है कि वह भारत में सिखों के प्रति केंद्र व पंजाब की मौजूदा सरकार के सद्भाव का अधिकतम फायदा उठाना चाहता है। उसे अपने यहां के सिख श्रद्धालुओं से कोई मतलब नहीं है और न भारत के श्रद्धालुओं से है। वह इस कॉरीडोर की मदद से अपना एजेंडा चलाने का मकसद रखता है और ऊपर से यह कॉरीडोर उसके लिए कमाई का एक साधन अलग बन गया है। इस लिहाज से यह कहना जल्दबाजी है कि इस प्रयोग से आगे का रास्ता खुलेगा। उसी तरह से यह भी मानना जल्दबाजी है कि वह खालिस्तानी आतंकवाद को बढ़ावा देगा और वह बढ़ जाएगा।

ध्यान रहे पाकिस्तान बरसों से खालिस्तानी आतंकवाद को हवा दे रहा है। उसने अनेक खालिस्तानी आतंकवादियों को अपने यहां पनाह दे रखी है। वह ड्रोन के जरिए भारत की सीमा में हथियार और गोला बारूद भी पहुंचा रहा है। पिछले दिनों सीमा से सटे पंजाब के एक गुरुद्वारे में हुए बम विस्फोट के तार भी पाकिस्तान से जुड़े हुए थे। पर यह हकीकत है कि भारत में खालिस्तान का आंदोलन स्थायी रूप से खत्म हो चुका है। अब पंजाब में इसे फिर से भड़का पाना नामुमकिन है। इसलिए पाकिस्तान बेकार के प्रयास कर रहा है। भारत को भी इस मामले में चौकसी बरतनी चाहिए पर सिर्फ इस आशंका की वजह से कॉरीडोर के प्रयोग को फेल नहीं होने देना चाहिए।

सरकार को यह सोचना चाहिए कि अगर धार्मिक मुद्दे की वजह से करतारपुर में कॉरीडोर बन सकता है और दोनों देशों में बातचीत बंद होने के बावजूद इस मुद्दे पर बातचीत हो सकती है तो बाकी मुद्दों पर बातचीत क्यों नहीं हो सकती है? मिसाल के तौर पर भारत में क्रिकेट भी तो धर्म का ही दर्जा रखता है और इसके खिलाड़ियों को भगवान ही माना जाता है। फिर इस बारे में क्यों नहीं बात हो सकती है? यह सिख धर्म और क्रिकेट की तुलना का मामला नहीं है, सिर्फ एक मिसाल है। कहने का मतलब यह है कि अगर सरकार एक मसले पर बात कर सकती है तो दूसरे मसले पर भी कर सकती है। 

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का इशारा इसी ओर था। उन्होंने इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा पर यह इशारा किया कि इससे आगे का रास्ता खुल सकता है। अगर भारत सरकार करतारपुर कॉरीडोर पर नजर रखती है और आतंकवाद की संभावना को काबू करती है तो इससे निश्चित रूप से दोनों देशों के बीच सद्भाव बनेगा। जितनी बड़ी संख्या में सिख श्रद्धालुओं का आना-जाना होगा उतना ज्यादा सद्भाव बढ़ेगा। इस सद्भाव को किसी बड़ी उपलब्धि में बदलने का मौका दोनों देशों के पास होगा। पर यह तभी होगा, जब पाकिस्तान आतंकवाद का निर्यात रोकेगा, सीमा पार से संघर्षविराम का उल्लंघन करके फायरिंग करना बंद करेगा, आतंकवादियों की घुसपैठ रोकेगा और भारत के खिलाफ परोक्ष युद्ध चलाए रखने की मानसिकता बदलेगा। ये सारे काम तुरंत नहीं होने वाले हैं पर इस कॉरीडोर के जरिए उनकी शुरुआत हो रही है। आठ और नौ नवंबर को दोनों देशों में इसका उद्घघाटन होगा। इसे एक अच्छी शुरुआत मान कर उम्मीद करनी चाहिए कि इससे दोनों देशों का रिश्ता एक नई दिशा में बढ़ेगा।

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