गुरुवार, 14 नवंबर 2019

ब्रिक्स का 11वां शिखर सम्मेलन : स्थिरता व साझेदारी , भारत के लिए क्‍या है ब्रिक्स की अहमियत

भारत के नजरिये से देखें, तो ब्रिक्स विकासशील देशों के सबसे बड़े मंच के रूप में उभरा है।  ये सभी प्रमुख विकासशील देश विकसित देशों के अक्रामक रवैये का सामना कर रहे हैं, वह चाहे डब्ल्यूटीओ हो या फिर जलवायु परिवर्तन का मसला।  भारत का मानना है कि ब्रिक्स के माध्यम से विकासशील देशों के अधिकारों को संरक्षण मिल सकता है।  ब्रिक्स समूह के सभी पांचों देश जी-20 के भी सदस्य हैं। 

ब्रिक्स समूह के सदस्यों के बीच परस्पर सहयोग

ब्रिक्स के पांच देशों में से तीन देश बीते कुछ वर्षों से आर्थिक चुनौतियों के कठिन दौर से गुजर रहे हैं।  हालांकि, वैश्विक स्तर पर आर्थिक गतिविधियों में उतार-चढ़ाव और तनाव का सीधा असर भारत और चीन जैसे बड़े विकासशील देशों पर सबसे ज्यादा होता है।  

ब्रिक्स सहयोग मुख्य रूप से दो बिंदुओं पर काम करता है, पहला, आपसी हित के मुद्दों पर नेताओं और मंत्रियों के बीच परामर्श और दूसरा व्यापार, वित्त, स्वास्थ्य, शिक्षा, तकनीक, कृषि और सूचना प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक द्वारा आपसी सहयोग।  हालांकि, भारत को एक ओर जहां, चीन और रूस से कदम मिलाकर चलना है, वहीं अमेरिका के साथ मिलकर अपने हितों का संरक्षण भी करना है। 

औपचारिक ब्रिक्स सम्मेलन का पूरा हो चुका है एक दशक

साल 2006 में सेंट पीटर्सबर्ग में आयोजित जी-8 आउटरीच सम्मिट के दौरान रूस, भारत और चीन के नेताओं के बीच औपचारिक तौर पर वार्ता शुरू हुई थी।  इसी वर्ष ब्रिक देशों के विदेश मंत्रियों की पहली बैठक यूएनजीए के दौरान आयोजित की गयी।  पहला ब्रिक सम्मेलन 26 जून, 2009 को रूस के येकाटेरिनबर्ग में आयोजित किया गया था।  तीसरे सम्मेलन के दौरान 14 अप्रैल, 2011 को दक्षिण अफ्रीका भी इस समूह का सदस्य बना, जिससे बाद यह समूह ‘ब्रिक्स’ बन गया।  पिछले वर्ष जोहान्सबर्ग में ब्रिक्स सम्मेलन का दसवां संस्करण संपन्न हुआ। 

प्रधानमंत्री मोदी छठी बार करेंगे शिरकत

11वें ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्राजिलिया पहुंच चुके हैं।  वे साल 2014 से लगातार छठी बार इस बैठक का हिस्सा बनेंगे।  प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी जुलाई, 2014 में फोर्टलेजा, ब्राजील में आयोजित इस बहुपक्षीय बैठक का हिस्सा बने थे।  उनके कार्यकाल में इस सम्मेलन का आयोजन का एक चक्र पूरा हो चुका है। 

आतंकवाद का मुद्दा अहम है ब्राजील सम्मेलन में

आतंकवाद रोधी संयुक्त कार्यबल ने इस वर्ष यह तय किया है कि पांच विभिन्न क्षेत्रों में उप-कार्यबल का गठन किया जायेगा।  जिसमें आतंकवादी फंडिंग, आतंकी उद्देश्यों के लिए इंटरनेट का उपयोग, कट्टरता का मुकाबला, विदेशी आतंकी लड़ाकों का मुकाबला और क्षमता बढ़ोतरी आदि शामिल है।  

पिछले महीने ब्रिक्स देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक में एनएसए अजित डोवाल ने भारत में डिजिटल फॉरेंसिक पर वर्कशॉप की मेजबानी का प्रस्ताव रखा था।  ब्राजील ने इस बार अपने एजेंडे में आतंकवाद के मुद्दे को सबसे ऊपर रखा है। 

आपसी सहयोग को बेहतर बनाने पर होगा जोर : प्रधानमंत्री मोदी

ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल होने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि विश्व की पांच प्रमुख अर्थव्यवस्था के बीच डिजिटल इकोनॉमी, साइंस व टेक्नोलॉजी पर आपसी सहयोग को मजबूत करने पर चर्चा होगी।  

उन्होंने कहा कि आतंक के खिलाफ एक मजबूत तंत्र बनाने पर जोर होगा।  प्रधानमंत्री मोदी ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान ब्राजील के राष्ट्रपति से मिलकर द्विपक्षीय सामरिक सहयोग को बेहतर बनाने पर चर्चा करेंगे।  उन्होंने कहा कि व्यापार और उद्योग ब्रिक्स समूह के बीच संबंधों में सबसे अहम हैं।  वे इस दौरान ब्रिक्स बिजनेस फोरम को संबोधित करेंगे और ब्रिक्स बिजनेस काउंसिल और न्यू डेवलपमेंट बैंक के लोगों से बातचीत करेंगे। 

क्या है ब्रिक्स का अर्थ

ब्राजील, रूस, इंडिया, चीन और दक्षिण अफ्रीका की संयुक्त अर्थव्यवस्था के समूह का संक्षिप्त रूप है- ब्रिक्स. साल 2011 से पहले इस समूह का नाम ब्रिक (ब्राजील, रूस, इंडिया और चीन) था।  तब इसमें दक्षिण अफ्रीका शामिल नहीं था।  ब्रिक के गठन का विचार गोल्डमैन सैक के अर्थशस्त्रियों के दिमाग की उपज थी।  उन्होंने ही तत्कालीन अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए अागामी आधी सदी में वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति के पूर्वानुमान के लिए इस समूह के गठन की योजना तैयार की थी।  

वर्ष 2001 में वैश्विक अर्थव्यवस्था पत्र संख्या 66 ‘द वर्ल्ड नीड बेटर इकोनॉमिक ब्रिक’ में गोल्डमैन सैक एसेट मैनेजमेंट के अध्यक्ष जिम’ओ नील ने पहली बार ब्रिक शब्द का प्रयोग किया था।  उस समय विश्लेषकों ने इस बात का अनुमान लगाया था कि 2050 तक इन चारों देशों की अर्थव्यवस्थाएं सबसे ज्यादा प्रभावी होंगी।  ब्रिक देशों का पहला शिखर सम्मेलन रूस के येकाटेरिनबर्ग में 16 जून, 2009 काे आयोजित किया गया था। 

‘ब्रिक’ ऐसे बन गया ‘ब्रिक्स’

21 सितंबर, 2010 को न्यूयॉर्क में ब्रिक देशों के विदेश मंत्रियों का एक सम्मेलन हुआ था।  ब्रिक समूह में दक्षिण अफ्रीका को शामिल करने की सहमति इसी बैठक में बनी थी।  इसके बाद 2011 में चीन में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में दक्षिण अफ्रीका को भी शामिल कर लिया गया।  दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने के बाद इस समूह का नाम ब्रिक से ब्रिक्स हो गया।  इस समूह की बैठक हर वर्ष किसी न किसी सदस्य देश में आयोजित की जाती है। 

भारत और वर्तमान बैठक

भारत की नजर में ब्रिक्स विकासशील देशों की उम्मीदों और चिंताओं को जाहिर करने का मंच है।  चूंकि इस मंच के पांचों देश जी-20 समूह के भी सदस्य हैं, सो विकसित देशों के सामने विश्व व्यापार संगठन से लेकर जलवायु परिवर्तन तक के मुद्दों पर विकासशील देशों के हितों को रखने में ब्रिक्स की अहम भूमिका है।  पिछले कुछ सालों में ब्रिक्स के तीन देशों की अर्थव्यवस्था की बढ़त की गति कम हुई है।  ऐसे में विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय आपसी सहयोग का महत्व बहुत बढ़ जाता है।  

एक तरफ चीन व रूस तथा दूसरी ओर अमेरिका के साथ संतुलित संबंध बनाये रखने की चुनौती भी भारत के सामने है।  इस हवाले से भी ब्रिक्स एक उपयोगी मंच बन जाता है।  वैश्विक स्तर पर एक-डेढ़ दशक में भारत की भूमिका व्यापक हुई है। 

ब्रिक्स के संदर्भ में एक विशेष आयाम भी भारत के लिए सकारात्मक है।  सदस्य देशों के मौजूदा नेताओं का व्यक्तित्व शक्तिशाली माना जाता है और इन सभी के एजेंडा में राष्ट्रवादी पहलू प्रमुख है।  परस्पर सहयोग के लिए भारत इसे एक सहायक तत्व मानता है क्योंकि पूर्ववर्ती नेताओं की तुलना में वर्तमान नेताओं में अधिक समानताएं हैं।  

भारत के प्रयासों से ब्रिक्स के देश आतंक जैसे बेहद गंभीर मसले पर कड़ा रुख अपना रहे हैं और इस समस्या का सामना करने के लिए आपसी सहयोग के लिए तत्पर हो रहे हैं. वर्तमान बैठक में इसे समुचित दिशा और त्वरा मिलने की आशा है।  भारत की नजर में इस बैठक से ब्रिक्स का दूसरा चरण अब शुरू होगा, जिसके परस्पर सहयोग और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में अधिक सक्रिय और प्रभावी होने की अपेक्षा है। 

ब्रिक्स में असमानता

क्रय शक्ति समता के आधार पर वैश्विक अार्थिक उत्पादन में ब्रिक्स देशों की संयुक्त हिस्सेदारी बढ़ी है।  इसमें भारत और चीन की भूमिका महत्वपूर्ण है। 

ब्रिक्स की जरूरत क्यों?

जिम ओ नील का तर्क रहा है कि दुनिया बदल रही है।  सात देशों के समूह जी7 और मोटे तौर पर, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ((आॅर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट)ओसीईडी) की अग्रणी भूमिका अब निर्विवाद नहीं रह गयी है।  

इन जैसे अधिकांश बहुपक्षीय संस्थानों का गठन तब किया गया था जब दुनिया के अधिकांश हिस्से पर पश्चिमी दुनिया हावी थी।  दूसरे, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक में अमेरिका और यूरोप के जरूरत से ज्यादा प्रतिनिधि हैं।  ऐसे में जापान के साथ मिलकर वे अधिकांश क्षेत्रीय विकास बैंकों को भी नियंत्रित करते हैं।  

वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान यह असंतुलन स्पष्ट तौर पर उभरकर सामने अाया और गैर जी7 देशों की भागीदारी की आवश्यकता महसूस की गयी।  हालांकि, इसके बाद संतुलन कायम करने के तमाम प्रयास हुए लेकिन तब भी बहुत कुछ नहीं बदला और पश्चिमी देशों ने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों को नियंत्रित करना जारी रखा।  यही कारण ब्रिक्स शिखर सम्मेलन को इतना महत्वपूर्ण बनाते हैं। 

यह सम्मेलन गैर ओईसीडी नेताओं को एक ऐसा मंच प्रदान करती है, जहां वे वैश्विक चुनौतियों पर चर्चा कर सकते हैं और वैश्विक संस्थानों के भीतर और बाहर अपने कार्यों को समायोजित कर सकते हैं. ब्रिक्स के छोटे आकार व गैर ओईसीडी नेताओं की अनुपस्थिति के कारण शिखर सम्मेलन में होनेवाली चर्चाओं को आकार देने में मदद मिलती है। 

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