शनिवार, 23 नवंबर 2019

लोगों की जरूरत को सुनिए,अनुसूचित जाति-अल्पसंख्यकों के उद्धार में जुटिए : प्रधानमंत्री


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को सभी राज्यपालों और उप राज्यपालों से लोगों की जरूरतों को सुनने की अपील की। साथ ही उन्होंने राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के सर्वोच्च सांविधानिक पदाधिकारियों से अल्पसंख्यकों समेत समाज के समूचे वंचित वर्ग के उद्धार के लिए भी जुटने का आग्रह किया। 

यहां राज्यपालों व उप राज्यपालों के 50वें वार्षिक सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री ने खासतौर पर स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और पर्यटन क्षेत्रों की तरफ सभी का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा, इन क्षेत्रों में रोजगार सृजन और गरीबों व अनुसूचित जाति की बेहतरी के नए अवसर इंतजार कर रहे हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से जारी बयान के मुताबिक, पीएम ने कहा कि अपनी सांविधानिक जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए काम करते हुए राज्यपालों और उप राज्यपालों को आम आदमी की आवश्यकताओं के बारे में भी जानना चाहिए।


प्रधानमंत्री ने सभी से राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करते हुए वंचित वर्गों के उत्थान की दिशा में प्रयास करने और मौजूदा योजनाओं व पहलों का लाभ उन तक पहुंचाने के लिए जुटने की अपील की।

मोदी ने कहा कि सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघीय ढांचे को साकार करने में राज्यपाल के पद की विशेष भूमिका है। उन्होंने गौर किया कि 2022 में भारत अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ और 2047 में 100वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है।


ऐसे में प्रशासनिक अमले को देश के आम आदमी के करीब लाने और उन्हें सही राह दिखाने के लिए राज्यपाल की भूमिका और ज्यादा अहम होती जा रही है। उन्होंने सुझाव दिया कि राज्यपाल कार्यालय का उपयोग कुछ खास लक्ष्यों को हासिल करने में किया जा सकता है। इसके लिए उन्होंने टीबी की बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने और 2025 तक देश को इस बीमारी से मुक्त बनाने में मदद करने का उदाहरण भी दिया।

उन्होंने विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के तौर पर भी राज्यपालों की अहमियत की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि इस भूमिका के जरिये राज्यपाल युवाओं के बीच राष्ट्र निर्माण के मूल्यों को विकसित करने और उन्हें अधिक उपलब्धियों की ओर प्रेरित करने में मदद कर सकते हैं।

बता दें कि इस बार वार्षिक सम्मेलन में 17 नए राज्यपाल या उप राज्यपाल भाग ले रहे हैं। इनमें नवगठित केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर व लद्दाख के उप राज्यपाल भी शामिल हैं। प्रधानमंत्री के अलावा इस दो दिवसीय सम्मेलन के पहले दिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उप राष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू, गृह मंत्री अमित शाह और जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी मौजूद रहे।

पांच मुद्दों पर आधारित है इस बार का कार्यक्रम

राज्यपालों व उप राज्यपालों के वार्षिक सम्मेलन के कार्यक्रम को इस बार पांच मुद्दों पर चर्चा के लिए बांटा गया है। इनमें आदिवासी मुद्दा, कृषि सुधार, जल जीवन अभियान, नई शिक्षा नीति और ‘ईज ऑफ लिविंग’ प्रशासन का मुद्दा शामिल है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी सम्मेलन को इस तरह के प्रयोग पर खुशी जाहिर की।


सांविधानिक ढांचे में राज्यपाल और उप राज्यपाल की अहम भूमिका : राष्ट्रपति

देश के सांविधानिक ढांचे में राज्यपालों और उप राज्यपालों की अहम भूमिका है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शनिवार को कहा कि यह भूमिका खासतौर पर तब और अहम हो जाती है, जब देश की प्रगति के लिए सहकारी और प्रतिस्पर्धी संघवाद पर जोर दिया जा रहा है।

राष्ट्रपति यहां राज्यपालों और उपराज्यपालों के दो दिवसीय 50वें वार्षिक सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद सभी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, सभी राज्यपालों को सार्वजनिक जीवन का भरपूर अनुभव है और देश की जनता को इसका अधिकतम लाभ मिलना चाहिए।

उन्होंने कहा, राज्यपाल की भूमिका महज संविधान की रक्षा और उसके संरक्षण तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह लोगों के कल्याण और उनकी सेवा में लगातार बने रहने की प्रतिबद्धता भी है। राष्ट्रपति कोविंद ने कहा, आखिरकार हम सभी जनता के लिए काम करते हैं और उन्हीं के प्रति जवाबदेह हैं।

उन्होंने आदिवासियों के कल्याण के लिए सशक्त संदर्भ देते हुए कहा कि उनका विकास और सशक्तिकरण समावेशी विकास के साथ-साथ देश की आंतरिक सुरक्षा से भी सीधा जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा, राज्यपाल खुद को मिली सांविधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए सरकार को सभी तरह की उचित सलाह दे सकते हैं।

यह उन लोगों के जीवन स्तर में सुधार के लिए आवश्यक है, जो विकास के पैमाने पर अपेक्षाकृत पीछे छूट गए हैं। उन्होंने जल शक्ति अभियान को भी स्वच्छ भारत अभियान की तरह जन आंदोलन बनाने के लिए जुटने की अपील की। साथ ही कहा कि जल संसाधनों का संरक्षण और चतुराई भरा उपयोग देश की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है।

उन्होंने नई शिक्षा नीति का लक्ष्य देश को ‘नॉलेज सुपर पावर’ बनाना बताया और सभी राज्यपालों से विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के तौर पर शोध व नवाचारों को बढ़ावा देने का आग्रह किया।

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