एनसीपी-कांग्रेस और शिवसेना के नेता विश्वास जता रहे हैं कि साझा न्यूनतम कार्यक्रम बना कर तीनों पार्टियां अपने सभी विधायकों के दस्तखत के साथ राज्यपाल के आगे सरकार बनाने का दावा जल्दी पेश कर देंगे। बावजूद इसके लगता नहीं कि मोदी सरकार महाराष्ट्र में विपक्ष की सरकार बनने देंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह किसी सूरत में महाराष्ट्र में शिवसेना के हाथों सत्ता सुपुर्द नहीं होने दे सकते। यों भी अब उद्धव ठाकरे को सबक सिखाना और शिवसेना को खत्म करना प्राथमिक लक्ष्य होगा। फिर महाराष्ट्र आर्थिक और राजनीतिक तौर पर इतना बड़ा और अहम प्रदेश है कि विपक्ष के हाथ में सत्ता जाना बरदाश्त नहीं हो सकता।
तो क्या होगा? या तो तीनों पार्टियों के विधायकों का दलबदल करवा कर विपक्ष के दावे के वक्त राज्यपाल के आगे भाजपा भी दावा करेगी कि हमारे पास बहुमत है, हम सरकार बनाएंगे। तो नंबर एक पार्टी होने के नाते राज्यपाल भाजपा को न्योता देंगे। ध्यान रहे कि चुनाव नतीजों के बाद न तो भाजपा ने राज्यपाल के आगे औपचारिक तौर पर सरकार बनाने का दावा किया था और न बतौर बड़ी पार्टी सरकार बनाने के लिए राज्यपाल ने औपचारिक न्योता दिया। उस प्रक्रिया को छोड़े रखना आगे के विकल्प के लिए था।
सो, कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना तीनों पार्टियों के विधायकों पर डोरे डाले जा रहे होंगे। विपक्ष की तीनों पार्टियां जब तक तैयारी कर राज्यपाल के यहां दावा करने की स्थिति में होंगी तब तक इनके विधायक टूटे हुए होंगे या भाजपा सीधे प्रफुल्ल पटेल के जरिए शरद पवार को ही पटा कर सरकार बनाने की रणनीति में दावा तैयार कर चुकी होगी। प्रफुल्ल पटेल का टेंटुआ केंद्र सरकार के शिकंजे में है।
मगर केंद्र सरकार ने चुनाव से पहले शरद पवार को ईडी का जो डंडा दिखाया था तो उससे वे इतने चिढ़े हुए हैं कि अभी भी वे गंभीरता से एलायंस बनाने की कोशिश में दिख रहे हैं। वही सब कुछ करवाते लगते हैं। उनके चलते राज्यपाल के आगे तीनों पार्टियों का कायदे से दावा बन सकता है।
तब रोकने के लिए फार्मूला जम्मू-कश्मीर वाला होगा। मतलब जैसे वहां पीडीपी-एनसीपी-कांग्रेस दावा करते उससे पहले ही विधानसभा भंग। फैक्स मशीन खराब हो जाए या राज्यपाल अस्वस्थता में मिलने का टाइम नहीं दें और अचानक हालातों के मद्देनजर विधानसभा को भंग करने का फैसला। दिल्ली विधानसभा के साथ ही महाराष्ट्र में भी चुनाव। ध्यान रहे अमित शाह माने हुए हैं कि शिवसेना लोगों की नब्ज पढ़ने में फेल है। मतलब शिवसेना ने जो किया है वह धोखा है और जनता आगे शिवसेना को माफ नहीं करेगी। सो, अयोध्या में मंदिर फैसले की नई आंधी में महाराष्ट्र में फिर चुनाव कराए जाएं तो भाजपा का अपने दम पर बहुमत तय और शिवसेना को हिंदू मजा चखाएं।
महाराष्ट्र में लोगों का मूड जानने, सर्वे आदि का काम चल रहा होगा तो तोड़फोड़ की चौतरफा संभावनाएं भी तलाशी जा रही होगीं। पते की बात है कि शरद पवार और कांग्रेस ने मोदी-शाह को समझते हुए भी शिवसेना की और लपकने में फुर्ती नहीं दिखाई। गलती उद्धव ठाकरे की भी थी जो पवार के समझाने के बावजूद केंद्र सरकार से अपना मंत्री तुरंत नहीं हटाया। उहापोह और भाजपा से उम्मीद में कई दिन जाया किए। कुछ लोगों के अनुसार भाजपा अंततः उद्धव ठाकरे को भी मैनेज कर सकती है। संघ-भाजपा के कुछ लोग लगे हुए हैं मगर अब यह बहुत मुश्किल है। उससे ज्यादा आसान और संभव प्रफुल्ल पटेल-शरद पवार या कांग्रेस को परोक्ष अंदाज में इस बात के लिए मैनेज कर सकना है कि शिवसेना से एलायंस संभव नहीं हो पाए।

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