शनिवार, 26 अक्टूबर 2019

दीया जलाएं, अंधकार भगाएं!

क्या आप लक्ष्मीजी से ऐसे प्रार्थना करेंगे?
अंधेरा है! अमावस्या का घनघोर अंधेरा। मानो पुराण कथा का वक्त फिर जिंदा! मां भारती का वह काल। कार्तिक महीने की अमावस्या। तब मां लक्ष्मी रास्ता भूल मृत्युलोक के अंधकार में ठिठकी थीं। उनकी चंचलता और विश्वास का हरण। करें तो क्या करें?

सोचें, मां भारती पर, उसके मनुष्य जातक हिंदुओं पर! सर्वत्र व्याप्त अंधकार! लक्ष्मीजी रूष्ट।मां सरस्वती की बुद्धि-सत्य की वीणा झूठ के नैरेटिव में अवरूद्ध। मां दुर्गा का खड़ग अहंकार, सत्ता के नंगे नाच के आगे भय के अंधकार में थमा हुआ। मनुष्य के मनोभाव से निर्भयता, निडरता, आजादी सब अंधेरे की चिरनिद्रा में विलुप्त! राक्षस जातक के आगे देव-देवियां लाचार!मनुष्य लाचार! मां भारती लाचार! सर्वत्र पसरा हुआ मायावी झूठ और दानवी सिद्धियों का काला अंधियारा। सच को झूठ, झूठ को सच बतलाने वाला महापाप! सदाचार, नैतिकता, मूल्य, संस्कार, विचार और मानव व्यवहार की संपूर्ण उपलब्धियों का सत, व्यवहारऔर धर्म उन नक्षत्रों द्वारा खाया हुआ, जिनका ताल्लुक है रावण की अहंकार रचना वाली कुंडली से!

उफ! राक्षस जातकों का दर्पऔर बनवाया अंधकार! मां लक्ष्मी कैसे उजियारा पाएं? सरस्वती की वीणा से कैसे बुद्धि, ज्ञान, सत्य की झंकार निकले? मां दुर्गा और उनके तमाम हस्त खड़ग उठा कैसे सत्ता के, अहंकार के राक्षसों का मर्दन कर उजियारा बनवाए!तीनों देवियों को अंधकार में कहीं भी तो उजियारे की, दीपक की लौ टिमटिमाती हुई नहीं दिख रही!

और जान लें, अपने पुराणों में राक्षसों से भगवान विष्णु का लड़ना भी मुश्किल हुआ था। देवाधिपति भगवान विष्णु भी माल्यवान,सुमाली औरमाली राक्षसोंको मार नहीं पाए थे। वे बहुत मुश्किल से, संपूर्ण शक्तियों को एकत्र कर उन्हें खदेड़ भर सके थे! तभी सनातनी सत्य है कि असुरों की मायावी सिद्धियों से, झूठ से बने अंधकार की शक्तियों को हरा सकना बहुत मुश्किल हुआ करता है!

कार्तिक अमावस्या के दिन मृत्युलोक के अंधकार में मां लक्ष्मी खड़ी हुई थीं पर मनुष्य नहीं जागे थे। मतलब अंधियारे की नींद में सोए मनुष्यों के भू लोक में मां लक्ष्मी, मां सरस्वती और मां दुर्गा का न स्वंय का रास्ता बनता है और न उनका आशीर्वाद फलता है।

हां, लक्ष्मीजी कार्तिक अमावस्या के दिन अंधकार के साम्राज्य में, लोगों के सोए हुए होने सेमृत्युलोक में रास्ता भटकी थीं। बहुत भटकने और बहुत बाद दूर कहीं उन्हें एक दीपक की लौ टिमटिमाती दिखी। वह दीपक एक वृद्ध महिला का जलाया हुआ था। वह बूढ़ी महिला अपने दायित्व, अपनी बुद्धि से अंधियारे के बीच निर्भयता का दीया जलाए हुए थी! दीये की रोशनी में कर्म का, जीवन के सत्य का, जीवन की सार्थकता का वह चरखा कात रही थी। मां लक्ष्मी ने उस वृद्ध महिला के उजियारे में शरण ली। वे अनुमति मांग बुढ़िया की कुटिया में रूकीं। उन्होंने विश्राम किया। चरखा चलाते-चलाते वृद्धा की आंख लग गई। वह सुबह उठी तो सूर्योदय के उजियारे में उसका घर महल में परिवर्तित था, धन्यधान्य से भरपूर था। उसने उठने पर पाया कि अतिथि महिला जा चुकी है किंतु कुटिया के स्थान पर महल है और वह धनधान्य व श्रीवृद्धि से भरापूरा!वह सत्य के, कर्म के उजियारे को देवी का आशीर्वाद था।एक वृद्धा के कर्म, विश्वास, सत्य के दीये ने लक्ष्मीजी का आश्रय बनवाया तो वृद्धा को शुभ प्राप्त हुआ!

सो सोचें, कार्तिक की अमावस्या पर आज जरूरत क्या?

सिर्फ एक दीये की लौ! मतलब सत्य की लौ! तभी संकल्प ले हम जलाएंगे दीया। निकलेंगे अंधियारे से बाहर! भय और मूर्खताओं से बुद्धि को स्वतंत्र कर बनेंगे हम अभय। हमें वह निर्भयता, वह आजादी मिले जो विचार सके कि अंधेरा क्या है और उजियारा क्या है? लक्ष्मीजी क्यों ठिठकी हुई हैं? हां, जानें इस सत्य को कि लक्ष्मीजी रूठी हुई हैं, उनकी चंचलता खत्म है। इसलिए संकल्प लें, निश्चय बनाएं कि धन, ज्ञान और शक्ति की तीनों रूठी देवियों को फिर मां भारती के जन-जन में लौटा लाना है। धन, ज्ञान और शक्ति का उजियारा बनवाना है। मानव संस्कार लौटाने हैं। सत्य, बुद्धि और साहस को दानवी मायाजाल, फरेब से मुक्त कराना है।

तभी कतई न छोडं़े झूठ के पटाखे! दीया सत्य है तो दीपोत्सव और पटाखे झूठ की जगमग हैं। आज अमावस्या सचमुच झूठ के दर्प में घनघोर अंधियारी है। सो, झूठ से, झूठ की जगमग से रूष्ट लक्ष्मीजी को और न चिढ़ाओ! बस मन का एक दीया जलाओ और अपनी आद्य देवियों से विनम्रतापूर्वक विनती करो कि आप पधारें हमारे घर और हमें और हमारी मां भारती को अंधियारे के दानवों से मुक्ति दिलाएं। हमें भय-बुद्धिहीनता-धन और सुख के दारिद्र से मुक्त करके ले हमें आप अपनी शरण में!

क्या आप लक्ष्मीजी से ऐसे प्रार्थना करेंगे?

आप सभी को मन से दीपावली के संकल्प की ढेरों शुभकामनाएं!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें