जयपुर। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार ने तीन दिन पहले अपने ही सरकार के निर्णय को बदलते हुए बड़ा फैसला लिया था। इसमें अब पार्षद के चुनाव में हिस्सा लिए बिना अथवा यह चुनाव हारा हुआ व्यक्ति भी मेयर , सभापति और पालिकाध्यक्ष चुना जा सकेगा। ये नियम वैसे ही हैं जैसे लोकसभा और विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ने वाले और चुनाव हारने वाले प्रत्याशी भी मंत्रिमंडल के सदस्य, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बन जाते हैं। इसके बाद छह माह के अंदर वापस चुनकर आना पड़ता है।
वैसे ही नगर निकाय में चुनाव हारने या चुनाव नहीं लड़ने के बाद भी मेयर, सभापति और पालिकाध्यक्ष बन सकते हैं। इसके बाद वापस चुनाव लड़कर आना पड़ेगा। अभी चुनाव लड़कर वापिस आने की समय सीमा तय नहीं हुई है। इस प्रकार का नियम लागू करने वाला राजस्थान देश में पहला राज्य बन गया है।
यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल की मंजूरी के बाद राज्य सरकार ने राजस्थान नगरपालिका (निर्वाचन) नियम, 1994 में संशोधन करते हुए नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया। 15 अक्टूबर काे ही सरकार ने निकाय प्रमुख चुनाव की नीति को बदल दी और इनका चुनाव जनता की बजाय पार्षदाें से कराने का निर्णय किया था। वर्तमान व्यवस्था के तहत किसी वार्ड से चुनाव जीतकर आने वाले पार्षदों में से ही सर्वसहमति से पार्टी की तरफ से तय कैंडिडेट को ही महापौर, सभापति या पालिकाध्यक्ष चुना जाता है। महापौर-सभापति का चुनाव निर्वाचित सदस्यों-पार्षदों की पहली बैठक में ही किया जाएगा। इसमें अध्यक्ष-सभापति-महापौर के निर्वाचन के लिए दावेदारी जताने वाला भी भाग ले सकेगा, लेकिन अगर जीता हुआ नहीं है ताे मतदान में भाग नहीं लेगा।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें