कांग्रेस पार्टी ने लगता है कि सोच लिया है कि वह अपनी गलतियों से सबक नहीं लेगी और एक ही गलती दोहराती रहेगी। उसने छह महीने पहले भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हुए कीर्ति आजाद को दिल्ली का प्रदेश अधय्क्ष बनाने का फैसला किया है। हालांकि अभी इसकी घोषणा नहीं हुई है। यह सही है कि कीर्ति आजाद के पिता कांग्रेस में रहे हैं और बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं। यह भी सही है कि दिवंगत भागवत झा आजाद कांग्रेस के पहले परिवार के करीब रहे हैं पर यह भी सही है कि कीर्ति आजाद कभी कांग्रेस में नहीं रहे और वे राजनीति में उतरे तो 1993 में भाजपा की टिकट पर विधायक हुए। इसलिए वे न तो कांग्रेस की संस्कृति जानते हैं और न कांग्रेस के नेताओं के साथ उनका कोई तालमेल या परिचय है। इसलिए उनको अध्यक्ष बनाने के फैसले से संगठन को बड़ा नुकसान होगा।
जिस तरह से उनको बिहार की दरंभगा सीट से टिकट नहीं मिली तो झारखंड के धनबाद भेजा गया लड़ने और वे बुरी तरह हारे उसी तरह दिल्ली में भी उनकी कमान नहीं चलने वाली है। उनको पहले झारखंड का अध्यक्ष बनाने की चर्चा चली थी पर वहां लोगों के विरोध के बाद उनको दिल्ली का अध्यक्ष बना दिया गया। संगठन के अलावा चुनावी राजनीति के लिहाज से भी यह बहुत गलत दांव है। क्योंकि दिल्ली में पहले से भाजपा के पास मनोज तिवारी के रूप में ब्राह्मण और प्रवासी नेता अध्यक्ष है।
ध्यान रहे सवर्ण मतदाताओं का रूझान स्वाभाविक रूप से भाजपा की ओर रहा है। बाकी प्रवासी जिसमें मुस्लिम भी शामिल हैं वे आप के साथ जुड़े हैं, कम से कम विधानसभा चुनाव में। दूसरे, भाजपा के प्रवासी अध्यक्ष की वजह से उसके पारंपरिक मतदाता नाराज हैं पर कांग्रेस में भी प्रवासी अध्यक्ष हुआ तो उनके पास कोई विकल्प नहीं रहेगा कि वे पारंपरिक तरीके से भाजपा को वोट करें या आप के साथ जाएं। तीसरे, निजी तौर पर कीर्ति आजाद अब भी मुख्यमंत्री के बेटे और विश्व कप जीतने वाली भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा होने के हैंगओवर से बाहर नहीं निकल पाए हैं इसलिए वे पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ मिल कर काम कर पाएंगे, इसमें संदेह है।

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