भारतीय रिजर्व बैंक और वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज के बाद अब विश्व बैंक ने भी भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की विकास दर का अनुमान कम कर दिया है। विश्व बैंक ने कहा है कि चालू वित्त वर्ष यानी 2019-20 में भारत की विकास दर छह फीसदी रहेगी। हालांकि, दक्षिण एशिया आर्थिक फोकस के ताजा संस्करण में विश्व बैंक ने कहा कि मुद्रास्फीति अनुकूल है और यदि मौद्रिक रुख नरम बना रहा तो विकास दर धीरे-धीरे सुधर कर 2021 में 6.9 फीसदी और 2022 में 7.2 फीसदी हो जाने का अनुमान है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की साझा सालाना बैठक से पहले जारी रिपोर्ट में लगातार दूसरे साल भारत की आर्थिक विकास दर में गिरावट का अनुमान जताया गया है। वित्त वर्ष 2018-19 में विकास दर, वित्त वर्ष 2017-18 के 7.2 फीसदी से नीचे 6.8 फीसदी रही थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019-20 की पहली तिमाही में मांग के मामले में निजी खपत में गिरावट और उद्योग व सेवा दोनों में वृद्धि कमजोर होने से अर्थव्यवस्था में सुस्ती रही।
विश्व बैंक की रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 2018-19 में चालू खाता घाटा बढ़ कर जीडीपी का 2.1 फीसदी हो गया। एक साल पहले यह 1.8 फीसदी रहा था। इससे बिगड़ते व्यापार संतुलन का पता चलता है। रिपोर्ट के मुताबिक 2018-19 में आर्थिक गति और खाद्य पदार्थों की कम कीमत के कारण खुदरा मुद्रास्फीति औसतन 3.4 फीसदी रही। यह रिजर्व बैंक के चार फीसदी के लक्ष्य से ठीक-ठाक कम है। इससे रिजर्व बैंक को जनवरी 2019 से अब तक रेपो दर में 1.35 फीसदी की कटौती करने और मौद्रिक परिदृश्य को बदल कर नरम करने में मदद मिली।
इसमें कहा गया है कि वित्तीय मोर्चे पर पहली छमाही में पूंजी की निकासी हुई। हालांकि अक्टूबर 2018 के बाद रुख बदलने से पिछले वित्त वर्ष के अंत में विदेशी मुद्रा भंडार 411.90 अरब डॉलर रहा। रिपोर्ट में डॉलर के मुकाबले रुपए की खराब स्थिति का जिक्र किया गया है। इसके मुताबिक मार्च से लेकर अक्टूबर 2018 के बीच इसमें 12.1 फीसदी की गिरावट रही। हालांकि उसके बाद मार्च 2019 तक यह करीब सात फीसदी मजबूत हुआ।
विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुस्ती और शहरी क्षेत्रों में युवाओं की बेरोजगारी की ऊंची दर के साथ ही जीएसटी और नोटबंदी ने गरीब परिवारों की समस्याएं बढ़ा दीं। पिछले दिनों कारपोरेट टैक्स में कमी किए जाने की तारीफ करते हुए इसमें कहा गया है कि टैक्स की दर में हालिया कटौती से कंपनियों को मध्यम अवधि में लाभ होगा लेकिन वित्तीय क्षेत्र में दिक्कतें सामने आती रहेंगी।

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