गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019

डॉ. सुमहेन्द्र की स्मृति में समसामयिक चित्रकला शिविर एवं परिचर्चा 4 नवम्बर से

     

जयपुर ।  कलावृत्त (एक रचनात्मक कलाकार मंच) और स्नेहा आर्ट गैलरी, हैदराबाद के सयुक्त तत्वाधान में कलागुरु डा. सुमहेन्द्र शर्मा के 76 वें जन्मदिवस के अवसर पर उनकी स्मृति में चार दिवसीय ‘‘समसामयिक कला शिविर एवं कला परिचर्चा-2019’’ का राजस्थान ललित कला अकादमी के सौजन्य से 4 से 7 नवम्बर तक राजस्थान ललित कला अकादमी परिसर में आयोजित किया जा रहा है।

कलावृत के अध्यक्ष संदीप सुमहेन्द्र ने बताया कि कला शिविर में देश व प्रदेश के प्रख्यात 12 कलाकार कैलाश शर्मा-जयपुर, विरेन्द्र बन्नु-जयपुर, संजीव गोगोई-असम, डा. स्नेहालता प्रसाद-हैदराबाद, अमोल पंवार-पूणे, अनिल गायकवाड़-मध्य प्रदेश, संजय कुमार-उत्तर प्रदेश, रेणुबाला-पठानकोट, विजय नागा-जयपुर, सुमित सेन-जयपुर एवं डा. विभुति पण्डया-उदयपुर। ये सभी कलाकार ‘समसामयिक‘ विषयों पर अपने विचारो को रंग एवं तूलिका के माध्यम से कैनवास पर अभिव्यक्त करेंगे साथ ही कला परिचर्चाओं के तहत अलग-अलग विषयो पर आर. बी. गौत्तम, श्री शैल चोयल, भवानी शंकर शर्मा एवं डॉ. स्नेहलता प्रसाद विचार व्यक्त करेंगे।

स्नेहा आर्ट गैलेरी की संस्थापक डा. स्नेहलता प्रसाद ने कहा कि डा सुमहेन्द्र ने कला एवं कलाकारों के उत्थान के लिये जिस प्रकार जीवन पर्यन्त प्रयास करते रहे मैं उससे बहुत प्रभावित हुं तथा उनके इस उद्वेश्य को पूर्ण करने के लिये कलावृत के साथ सहभागी बनकर प्रयासरत हूँ।

कलावृत के सचिव हमीर सिंह राठौड़ ने बताया की कलावृत द्वारा कला के उत्थान एवं कलाकारों को प्रोत्साहन देने के लिये संस्था द्वारा प्रयास हमेशा जारी रहेगें। आगामी कार्यक्रम में दिसम्बर-2019 माह में मुर्तिकला शिविर प्रस्तावित है।

नेशनल हाईवे टोल मुक्त नहीं, तो स्टेट हाईवे क्यों हो - मुख्यमंत्री

जयपुर। राज्य में स्टेट हाईवे पर निजी वाहनों को टोल शुल्क में छूट देने के पूर्ववर्ती सरकार के बिना सोचे-समझे एवं जल्दबाजी में लिए गए फैसले से प्रदेश में सड़कों की मरम्मत और रखरखाव के कार्य प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में टोल शुल्क की छूट वापस लेने का प्रस्ताव मंत्रीमण्डल द्वारा जनहित एवं राजकोष पर आने वाली बड़ी देनदारी को देखते हुए लिया गया है।

सड़कों पर टोल लगाने का मुख्य उद्देश्य सड़कों का सुदृढ़ीकरण एवं इसके बाद रखरखाव करना है। पूर्ववर्ती सरकार ने 1 अप्रैल, 2018 से राज्य में निजी वाहनोें को 55 स्टेट हाईवे पर लगने वाले टोल शुल्क से छूट प्रदान की थी। इस कारण आधार वर्ष 2017-18 के अनुसार 172 करोड़ रूपये के टोल शुल्क का नुकसान हुआ। इसका प्रदेश में सड़कों की मरम्मत एवं निर्माण कार्यों पर विपरीत असर पड़ा। क्योंकि अनुबंध की शर्तों के उल्लंघन से सम्बन्धित अनुबंधकर्ता द्वारा मरम्मत एवं नवीनीकरण के कार्य भी नहीं कराए जा रहे हैं। साथ ही इस निर्णय से कुछ सड़क परियोजनाओं के नाॅन-वाईबल होने की आशंका है, जिससे निर्माणाधीन सड़कों के कार्य भी भविष्य में प्रभावित होंगे तथा आमजन को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

छूट से पहले पीडब्ल्यूडी, आरएसआरडीसी और रिडकोर की विभिन्न सड़कों पर सालाना टोल शुल्क संग्रहण लगभग 851 करोड़ रूपये था। जिससे सड़कों की निर्माण राशि का पुनर्भरण और मरम्मत कार्य हो रहा था। 

टोल शुल्क को लेकर सरकार और टोल वसूल करने वाले कन्सेशनर के बीच अनुबन्ध होता है। पूर्ववर्ती सरकार ने टोल वसूल करने वाली कम्पनियों को कोई मुआवजा दिए बिना तथा उनकी सहमति के बिना चुनावी वर्ष में चुनाव की वैतरणी पार करने के लिए बिना सोचे समझे एकतरफा निर्णय लेते हुए स्टेट हाईवे पर निजी वाहनों को टोल शुल्क से मुक्त कर दिया। इस कारण सड़क परियोजना के अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन होने से टोल वसूलकर्ता सरकार के खिलाफ न्यायालय में चले गए। उन्होंने न्यायालय से टोल राशि के पुनर्भरण के साथ ही उसका ब्याज भी चुकाने की मांग रखी है। ऐसी स्थिति में राज्य सरकार पर दोहरा वित्तीय भार आने की संभावना है।

नेशनल हाईवे भी नहीं हैं टोल मुक्त

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर भी निजी वाहन टोल शुल्क से मुक्त नहीं हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों पर निजी वाहनों को टोल शुल्क से छूट देने की मांग को केन्द्र सरकार ने भी स्वीकार नहीं किया है। आमजन की पुरजोर मांग के बावजूद केन्द्र सरकार ने भी आजतक इस दिशा में कोई निर्णय नहीं लिया है। ऐसे में राज्य सरकार के लिए ऐसी छूट देना विवेकपूर्ण नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसका सीधा असर सड़क विकास के कार्यों पर ही पड़ता है। जिसका खामियाजा आमजन को भुगतना पड़ता है।

कई देश चाह रहे भाजपा को जानना, अब सिंगापुर ने भाजपा नेताओं को बुलाया

 देश में लगातार दो बार भारी बहुमत से मोदी सरकार बनने के बाद से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का विदेश में भाव बढ़ा है। दुनिया के कई देश भारत में दक्षिणपंथी राजनीति को नई ऊंचाई देने वाली इस पार्टी के बारे में जानने के लिए खासे उत्सुक हैं। चीन, दक्षिण कोरिया के बाद अब सिंगापुर ने भाजपा नेताओं के दल को बुलाया है। उनका दौरा नवंबर में होने वाला है।

भाजपा सूत्रों के मुताबिक, पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव भूपेंद्र यादव के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल सिंगापुर जाने वाला है। इसमें कुछ और नेता शामिल रहेंगे। सिंगापुर के समूचे विकास मॉडल और अर्थव्यवस्था के बारे में भी प्रतिनिधिमंडल अध्ययन करेगा। भाजपा प्रतिनिधिमंडल वहां के राजनीतिक दलों के नेताओं से भी भेंट कर उनकी जिज्ञासाएं शांत करेगा।

इससे पहले, 14 से 19 अक्टूबर के बीच भाजपा का एक प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रीय महासचिव पी. मुरलीधर राव के नेतृत्व में दक्षिण कोरिया गया था। वहां से लौटने के बाद प्रतिनिधिमंडल दक्षिण कोरिया के विकास मॉडल पर रिपोर्ट भी तैयार कर रहा है।

दक्षिण कोरिया से पहले भाजपा नेताओं का दल चीन भी जा चुका है। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल 24 अगस्त को चीन के दौरे पर गया था। तब चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने भाजपा नेताओं को विचारों के आदान-प्रदान के लिए आमंत्रित किया था। 

दक्षिण कोरिया जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में शामिल रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक डॉ. अनिर्बान गांगुली ने आईएएनएस से कहा, "2014 के बाद से भाजपा के बारे में जानने के लिए दुनिया उत्सुक हुई है। इसी कड़ी में दुनिया के कई देश भाजपा नेताओं के दल को विचारों के आदान-प्रदान के लिए आमंत्रित कर रहे हैं।"

उन्होंने कहा, "कुछ ताकतें विदेशों में भाजपा व उसकी विचारधारा के खिलाफ नकारात्मक बातें फैलाने की कोशिश करती हैं। ऐसे दौरों पर विदेशी राजनीतिक दलों से सीधा संवाद होने के कारण निगेटिव नैरेटिव का काउंटर करने में मदद मिलती है। दक्षिण कोरिया के दौरे के दौरान वहां के राजनीतिक दल और उनके थिंक टैंक भाजपा से खासे प्रभावित दिखे।"

भारतीय पत्रकारों की व्हाट्सएप चैट की हुई जासूसी, कंपनी ने खुद की पुष्टि

दिग्गज सोशल मीडिया एप व्हाट्सएप  ने इजरायल की जासूसी कंपनी एनएसओ ग्रुप (NSO) पर गंभीर आरोप लगाया है। इंस्टेंट मैसेजिंग एप ने कहा है कि यह कंपनी भारतीय पत्रकारों और समाजिक कार्यकर्ताओं की जासूसी कर रही थी। व्हाट्सएप ने हैकिंग की पुष्टि करते हुए इजरायली जासूसी कंपनी पर मुकदमा भी ठोका है।  क्या है पूरा मामला...

व्हाट्सएप के अधिकारी ने दिया बयान 

व्हाट्सएप के एक अधिकारी ने कहा है कि एनएसओ कंपनी भारतीय पत्रकारों और मानवधिकार कार्यकर्ताओं की जासूसी  सिस्टम के जरिये कर रही थी। साथ ही, व्हाट्सएप ने एक दर्जन से ज्यादा वकील, प्रोफेसर, दलित कार्यकर्ता और पत्रकारों को इस बारे में सतर्क किया है। वहीं, यूजर्स के डिवाइसेज को मई में सर्विलांस पर लिया गया था।

एनएसओ पर लगाया गंभीर आरोप

व्हाट्सएप ने कहा है कि इजरायली कंपनी एनएसओ ने फेसबुक के स्वामित्व वाली मैसेंजिंग प्लेटफॉर्म सर्विस के माध्यम से पत्रकारों और समाजिक कार्यकर्ताओं की जासूसी की है। साथ ही इंस्टेंट मैसेजिंग एप व्हाट्सएप ने इजरायली कंपनी के खिलाफ मुकदमा भी दायर किया है। गौरतलब है कि एनएसओ ने करीब 1,400 यूजर्स के निजी डाटा को चुराने का आरोप है।

एनएसओ ने आरोप का किया खंडन

एनएसओ ने व्हाट्सएप के लगाए गए आरोपों का खंडन किया है। व्हाट्सएप के मुख्य अधिकारी कैथकार्ट ने कहा है कि वैसे तो एनएसओ कंपनी सरकार के लिए काम करती है, लेकिन हमनें अपनी रिसर्च में पाया है कि 100 से ज्यादा यूजर्स कंपनी के निशाने पर थे।

पेगासस सॉफ्टवेयर ऐसे करता है काम 

एनएसओ ने इस सॉफ्टवेयर को खास तकनीक से तैयार किया है। कंपनी इस सिस्टम के जरिए किसी भी एंड्रॉयड, आईओएस और ब्लैकबैरी के ऑपरेटिंग सिस्टम को आसानी से हैक कर सकती है। 

ऐसे करता है यह सिस्टम काम

ऑपरेटर यूजर के डिवाइस को हैक करने के लिए एक विशेष लिंक पर टैप करने को मजबूर करता है। ऐसा करने से ऑपरेटर को सुरक्षा कवच तोड़ने का पूरा मौका मिलता है। इसके बाद  सिस्टम इंस्टाल किया जाता है। 

अब ऑपरेटर आसानी से यूजर के निजी डाटा को निकाल सकता है। इतना ही नहीं ऑपरेटर फोन हैक करने के बाद कैमरा से टारगेटेड यूजर की फोटो क्लिक कर सकेगा। इसके अलावा एक कॉल के जरिए भी फोन को हैक किया जा सकता है। आपको बता दें कि एनएसओ ने अमेरिका और कैलिफोर्निया के नियमों का उल्लघंन किया है। 

बुधवार, 30 अक्टूबर 2019

अगले चुनावी मोर्चे से पहले

लगभग निरंतर चुनावी मोड में रहनेवाला अपना देश शीघ्र ही झारखंड और दिल्ली के विधानसभा चुनाव देखेगा। बिहार और बंगाल जैसे बड़े और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण राज्यों की बारी भी बहुत दूर नहीं है। अभी संपन्न चुनावों के बाद हरियाणा में तो सरकार बन गयी, लेकिन महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना के बीच रस्साकशी जारी है।

देश की राजधानी होने के कारण दिल्ली वैसे ही राजनीति के केंद्र में रही है, लेकिन ‘आप’ के रूप में राजनीति के नये प्रयोग की सफलता-विफलता का मुकाबला प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता से होने के कारण इस ‘आधे-अधूरे’ राज्य की चुनावी राजनीति मायने रखती है। झारखंड भी राजनीतिक दृष्टि से कम महत्वपूर्ण नहीं है। राज्य गठन के बाद 19 वर्षों में आदिवासी-सपनों और महत्वाकांक्षाओं की राजनीति के हाशिये पर जाने और भाजपाई वर्चस्व स्थापित होने के कारण झारखंड का चुनाव देश की नजर में रहेगा ही।

यहां हम झारखंड की चर्चा छोड़कर दिल्ली की चुनावी राजनीति की विस्तार से चर्चा करना चाहते हैं। उसके कुछ उल्लेखनीय कारण हैं। एक तो यही कि दिल्ली देश की राजधानी है और पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिलने के बावजूद उसकी राजनीति पर देशभर की निगाहें लगी रहती हैं। यह वही दिल्ली राज्य है, जहां कांग्रेस की बुजुर्ग नेता शीला दीक्षित ने लगातार तीन बार चुनाव जीतकर सरकार बनायी और चर्चा बटोरी। यह अलग बात है कि उसी के बाद दिल्ली की राजनीति से कांग्रेस के पांव उखड़े।

इस चर्चा का दूसरा और बड़ा कारण यह है कि ‘आम आदमी पार्टी’ (आप) ने दिल्ली में वैकल्पिक राजनीति का शुरुआती डंका बजाया। पहली बार अल्पमत में होने के बाद सरकार गिरी, तो दूसरे चुनाव में विशाल बहुमत मिला। सरकार बनायी और खूब विवाद खड़े किये। यह तब किया, जब देश में नरेंद्र मोदी की भाजपा को अजेय समझा जा रहा था। ‘आप’ ने ही साबित किया कि आम जनता के मुद्दों की राजनीति करके मजबूत भाजपा को पराजित किया जा सकता है।

भारी बहुमत होने के बावजूद केजरीवाल सरकार का पांच साल का कार्यकाल आसान नहीं रहा। पार्टी में बड़े तीखे वैचारिक मतभेदों के बाद विभाजन हुआ। 

केजरीवाल पर पार्टी के रास्ते से भटकने के आरोप लगे. भ्रष्टाचार के आरोपों में भी पार्टी नेताओं की फजीहत हुई। केजरीवाल के तौर-तरीके विवाद का कारण बने। वास्तव में, ‘आप’ का विवादों से घनिष्ठ नाता बना रहा। उप-राज्यपाल से टकराव की आड़ में केजरीवाल सरकार केंद्र की ताकतवर मोदी सरकार से भिड़ती रही। केजरीवाल देश के अकेले मुख्यमंत्री हैं, जो समय-समय पर मोदी सरकार को निशाने में रखकर सड़क पर धरना-प्रदर्शन और अनशन करते रहे। 

इसके बाद भी केजरीवाल दिल्ली ही नहीं, देश के कई हिस्सों में सराहे जाते हैं। दिल्ली के मध्य-निम्न मध्य और गरीब वर्ग में वे काफी लोकप्रिय हैं। दिल्ली के सरकारी स्कूलों के कायाकल्प की चर्चा देशभर में होती है। दिल्ली में चल रहे मुहल्ला क्लीनिक सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा की व्यापक व्याधि के बीच बड़ी राहत माने जाते हैं। दिल्ली में बिजली सबसे सस्ती है। नगर-बस और मेट्रो में महिलाएं नि:शुल्क यात्रा करती हैं। भ्रष्टाचार मिटाने और पारदर्शिता लाने का उनका वादा भले खरा न उतरा हो, लेकिन कई निर्माण कार्य तय समय और आकलन से कम मूल्य पर पूरे किये जाने की प्रशंसा उनके खाते में गयी।

दिल्ली की अवैध बस्तियों को नियमित करने के मोदी सरकार के ऐलान से स्पष्ट है कि भाजपा केजरीवाल की लोकप्रियता को उनकी राजनीतिक ताकत के रूप में स्वीकार करती है और उनसे स्थानीय मुद्दों पर मजबूती से लड़ने को तैयार है। शायद उसे लगता है कि दिल्ली सरकार के कुछ चर्चित काम भाजपा के भावनात्मक राष्ट्रीय मुद्दों पर भारी पड़ सकते हैं। इसीलिए दिल्ली का मोर्चा बहुत दिलचस्प होगा।

यह सत्य है कि वैकल्पिक राजनीति, मूलभूत बदलाव और पारदर्शिता की नयी हवा लेकर दिल्ली की राजनीति में छा जानेवाली ‘आप’ वह शुरुआती पार्टी नहीं रह गयी है, जिसने देशभर के लिए बड़ी उम्मीदें जगायी थीं। 

उसके कई महत्वपूर्ण साथी आज अलग राह पर हैं। ‘आप’ का अन्य राज्यों में विस्तार विफल ही रहा. पंजाब में शुरुआती कुछ सफलाएं टिक नहीं सकीं। मगर दिल्ली में केजरीवाल सरकार अपने जमीनी कामों के बूते मैदान में डटी है। 

हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दिल्ली की सभी सात सीटें जीतीं, लेकिन इसे विधानसभा चुनाव में सफलता की गारंटी नहीं माना जा सकता। विधानसभा चुनाव के मुद्दे अलग होते हैं। केजरीवाल के उल्लेखनीय काम निश्चय ही उनके पक्ष में जाते हैं. इसलिए भाजपा की कोशिश है कि राष्ट्रीय मुद्दों के अलावा उसके पास दिल्ली के स्थानीय मुद्दों पर लड़ने के प्रभावी हथियार भी रहें।

हरियाणा के परिणाम से उत्साहित कांग्रेस भी पूरी जोर आजमाइश करेगी। लोकसभा चुनाव में ‘आप’ से उसका समझौता चाहकर भी नहीं हो सका था। 

अंतिम समय तक हां-ना चलती रही थी। दिल्ली में आप और कांग्रेस, भाजपा के विरुद्ध बड़ी ताकत बन सकते हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव में वे शायद वे एक-दूसरे का साथ नहीं लेना चाहेंगे। ‘आप’ ने वैसे भी कांग्रेस का जनाधार ज्यादा छीना है। कांग्रेस वहां खुद की जमीन पाने के लिए हाथ-पैर मारेगी। इसलिए लड़ाई त्रिपक्षीय होगी, किंतु यह भाजपा के पक्ष में ही जायेगा, ऐसा नहीं कहा जा सकता। 

भाजपा भावनात्मक राष्ट्रीय मुद्दे निश्चय ही उठायेगी। कश्मीर नया और बड़ा भावनात्मक मुद्दा है, जिसे मोदी सरकार अपनी शानदार कामयाबी के रूप में प्रस्तुत करके लगातार चर्चा में बनाये रखना चाहती है। स्पष्ट भी है कि कश्मीर के बाहर जनता का बड़ा वर्ग, यहां तक कि भाजपा-विरोधी भी, अनुच्छेद 370 खत्म करने के फैसले के साथ है। 

कश्मीर और कश्मीरियों की चिंता किये बगैर इसे मोदी सरकार का साहसी कदम माना जा रहा है। विपक्षी नेताओं की दुविधा यह है कि वे चुनाव सभाओं में इस फैसले का विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाते। उनके पास आर्थिक मंदी में बंद होते कारखाने, बढ़ती बेरोजगारी जैसे बड़े मुद्दे हैं, जिन्हें अब तक भाजपा भावनात्मक मुद्दों से दबाये रखने में कामयाब रही है। 

इसके बावजूद दिल्ली का रण अलग ही होगा और केजरीवाल की ‘आप’ उसमें महारथी की तरह उतरेगी, हालांकि अभी चुनावी मुकाबलों के बारे में निश्चित तौर पर कुछ कहने का समय नहीं आया है। 

नीतीश कुमार फिर बने जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पदभार संभाला। दिल्ली के मावलंकर हॉल में आयोजित पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में नीतीश कुमार को दूसरी बार पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। इस मौके पर कई राज्यों के प्रतिनिधि मौजूद थे।

इस मौके पर उन्होंने उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि पद लेने की मेरी कोई रुचि नहीं है। हम काम करना चाहते हैं। हमारी पार्टी बिहार के अलावा झारखंड, दिल्ली और उत्तर-पूर्व के राज्य में बेहतर प्रदर्शन कर रही है। साथ ही उन्होंने पार्टी को राष्ट्रीय दर्जा दिलाने की दिशा की काम करने पर बल दिया। एक बार फिर मुख्यमंत्री व जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने बिहार को विशेष दर्जा दिये जाने का मामला उठाया।

 उन्होंने कहा कि पिछड़े राज्यों को आगे बढ़ाना है, तो पिछड़े राज्यों को विशेष दर्जा मिलना चाहिए। मालूम हो कि नीतीश कुमार का कार्यकाल दो वर्षों का होगा और अगले साल बिहार विधानसभा चुनाव होना है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने अगले साल होनेवाले विधानसभा में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन की चुनौती होगी। मालूम हो कि बीजेपी ने बिहार में अगले साल होनेवाला विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में ही लड़ने की बात कही है।

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2019

भाजपा ने निकाय चुनाव के लिए 11 सदस्यों की एक समिति गठित की

जयपुर। भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्यालय पर प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया की अध्यक्षता में निकाय चुनावों की तैयारियों के सम्बन्ध में एक बैठक आयोजित की गई।

प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने बताया कि निकाय चुनावों के संचालन, प्रबन्धन एवं चयन के लिए 11 सदस्यों की एक समिति गठित की गई है। जिसमें प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां, प्रदेश संगठन महामंत्री चन्द्रशेखर, नेता प्रतिपक्ष गुलाबचन्द कटारिया, उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़, केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल, गजेन्द्र सिंह शेखावत, सांसद जसकौर मीणा, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी, अरूण चतुर्वेदी होगें। इस पूरे निकाय चुनाव के समन्वयक के लिये पूर्व सांसद एवं वरिष्ठ नेता ओंकार सिंह लखावत एवं प्रदेश महामंत्री वीरमदेव सिंह होगें।

पूनिया ने बताया कि निकाय चुनावों के प्रभारियों की नियुक्ति पूर्व में हो चुकी थी। जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्र में वार्ड स्तर पर रायशुमारी का कार्य प्रारम्भ कर दिया था और प्रत्याशियों के आवेदन लेने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी गई थी। 31 अक्टूबर को दोपहर 02.00 बजे निकाय के 3 लोगों की एक समिति जिसमें जिलाध्यक्ष, जिला संगठन प्रभारी और जिला निकाय प्रभारी की एक बैठक प्रस्तावित रखी गई है। जो कि प्रत्याशियों के पैनल के साथ उपस्थित होगें।

उन्होंने बताया कि निकाय चुनाव के लिये जिला समन्वयक समिति जिसमें प्रदेश पदाधिकारी (जो कि उस जिले में रहता हो), जिलाध्यक्ष, जिला संगठन प्रभारी, सांसद, निवर्तमान जिलाध्यक्ष, महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष, एस.सी./एस.टी. मोर्चें का एक प्रतिनिधि (जैसा जहां का आरक्षण होगा, वैसा वहां का प्रतिनिधि)। इसी तरह निकाय स्तर पर भी एक समिति का गठन किया गया है। जिसमें निकाय प्रभारी, वर्तमान/पूर्व निकाय अध्यक्ष, निकाय क्षेत्र के विधायक/ पूर्व विधायक, महिला मोर्चा जिलाध्यक्ष, एस.सी./एस.टी. मोर्चा के एक प्रतिनिधि जो कि उस निकाय की चुनाव की प्रबन्धन एवं संचालन की सम्पूर्ण व्यवस्था को देखेंगे।

पूनिया ने बताया कि 31 अक्टूबर व 1 नवम्बर को सम्पूर्ण निकायों (2100 के लगभग वार्डों की) चयन की प्रक्रिया को पूर्ण कर लिया जायेगा। उन्होंने बताया कि हमारी प्राथमिकता जो उस वार्ड का स्थाई निवासी होगा उसे ही उस वार्ड का प्रत्याशी बनाया जायेगा। साथ ही अनुभवी के अलावा, अपेक्षाकृत नये लोगों को अवसर मिले ऐसी हमारी कौशिश रहेंगी।

पूनियां ने कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाते हुये कहा कि भाजपा के शासन में निकायों की व्यवस्थित रूप से विकास की जो दिशा थी, उसमें अवरोध पैदा किया गया, बहुत बड़े पैमाने पर ठेकेदारों का भुगतान बकाया चल रहा है, विकास के काम नहीं हुये, पिछले 10 महिनों में शहरी विकास को धक्का लगा है। हमारी तरफ से कांग्रेस के खिलाफ एक चार्जशीट बनाई जायेगी। साथ ही एक विजन डाॅक्यूमेंट भी बनाया जायेगा। जिसमें केन्द्र सरकार की शहरी विकास से सम्बन्धित योजनाऐं और केन्द्र की तरफ से प्रदेश में जो मदद की गई जैसे कि स्मार्ट सिटी, अमृत योजना आदि के तहत जो विकास हुआ उनका एक डाॅक्यूमेंट बनाया जायेगा। 

पूनिया ने बताया कि प्रदेश में जिन 49 जगहों पर निकाय चुनाव है वहां 21 पर भाजपा एवं 21 पर कांग्रेस तथा शेष पर निर्दलीय व अन्य काबिज है। उन्होंने कहा कि निकाय चुनाव में कांग्रेस सरकार के खिलाफ प्रमुख मुद्दे बिगड़ती कानून व्यवस्था और विकासहीन निकाय रहेंगे।

विचारधारा की रेखा धुंधली होने के फायदे

यह कहना जोखिम भरा है कि विचारधाराओं की विभाजक रेखा मिट रही है या धुंधली हो रही है तो यह अच्छी बात है। अगर व्यावहारिक राजनीति और लोकतंत्र के भविष्य के लिहाज से देखें तो समझ में आता है कि अगर विचारधाराओं की विभाजक रेखा धुंधली हो जाए तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छी बात है। पिछले कुछ समय से यह परिघटना भारत और दुनिया भर के देशों में देखने को मिल रही है। अलग अलग विचारधाराओं पर आधारित पार्टियां वैचारिक रूप से अपने को लचीला बना रही हैं। विचारधारा की शुद्धता पर उनका जोर कम हो रहा है। विचारधाराओं का आपस में विलय हो रहा है। हालांकि उनके बुनियादी विचार वहीं होते हैं, जिस पर उनका गठन हुआ होता है पर व्यावहारिक राजनीति के लिहाज से वे समझौते के लिए उन्मुक्त हो रहे हैं।

दुनिया के देशों से गुजर कर यह परिघटना भारत पहुंची है तभी कांग्रेस का कोई नेता यह कहने की हिम्मत कर पा रहा है कि अगर शिव सेना की ओर से प्रस्ताव आएगा तो वह सरकार बनाने के लिए उसको समर्थन देने पर विचार कर सकती है। सोचें, कांग्रेस पार्टी इस प्रस्ताव पर विचार कर सकती है कि शिव सेना को सरकार बनाने के लिए समर्थन किया जाए। पांच साल या दस साल पहले इस बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था। दस साल पहले यह भी नहीं सोचा जा सकता था कि कांग्रेस और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, सीपीएम मिल कर चुनाव लड़ सकते हैं।

कोई चार साल पहले कांग्रेस और सीपीएम ने मिल कर पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव लड़ा था और अब कांग्रेस धुर दक्षिणपंथी, कट्टर हिंदुवादी पार्टी को समर्थन देने पर विचार के लिए तैयार है। कह सकते हैं कि यह प्रदेश कांग्रेस के एक नेता का बयान था और वह भी काल्पनिक स्थितियों पर निर्भर था। पर यह हकीकत है कि आज देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस एक्सट्रीम लेफ्ट से लेकर एक्सट्रीम राइट तक के साथ राजनीति और सत्ता की साझीदारी के लिए तैयार है। यह राजनीति के बुनियादी रूप से बदल जाने का संकेत है। भाजपा भी इस बदलाव का कारण बनी है। पांच साल पहले भाजपा ने जम्मू कश्मीर में मुफ्ती मोहम्मद सईद और बाद में महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ मिल कर सरकार बनाई थी। भारत में उदार और मध्यमार्गी राजनीति का प्रतिनिधित्व करने वाली कांग्रेस धुर वामपंथी और दक्षिणपंथी पार्टियों के साथ तार जोड़ रही है तो धुर दक्षिणपंथ और नस्ली भेदभाव की विचारधारा पर आधारित पार्टी भाजपा ने उस पार्टी के साथ तालमेल किया, जो उसकी विचारधारा के बिल्कुल विरोध में बनी है, विपरीत नस्ल का प्रतिनिधित्व करती है। मुख्यधारा की दोनों बड़ी पार्टियों का यह बदलाव लोकतंत्र के लिए शुभ मानना चाहिए। 

असल में विचारधारा की शुद्धता का आग्रह पार्टियों को आम लोगों से दूर करता है। उससे पार्टियां लोगों को अपने अपने वोट बैंक के रूप में देखना शुरू करती हैं। समाज समग्रता के साथ उनकी नजरों के सामने नहीं होता है। कम्युनिस्ट पार्टियों के लिए अमीर और पूंजीपति लोग दुश्मन होते हैं तो दक्षिणपंथी या नस्ली भेदभाव की विचारधारा पर आधारित पार्टियों के लिए दूसरी नस्ल के लोग कमतर होते हैं और दुश्मन होते हैं। भाजपा और शिव सेना के बारे में यह आम धारणा है कि ये पार्टियां मुस्लिम विरोधी हैं। इसी तरह भाजपा का विरोध करते करते कांग्रेस इतना आगे बढ़ गई थी कि उसके हिंदू विरोधी होने की धारणा बन गई थी।

अभी कांग्रेस अपने को बदल रही है तो भाजपा भी बदल रही है। भाजपा ने घरेलू मोर्चे पर अपने को मुस्लिम महिलाओं के अधिकार का चैंपियन बनाया है तो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मुस्लिम देशों के नेताओं के साथ दोस्ती दिखा कर प्रधानमंत्री मोदी ने यह धारणा बनवाई है कि वे मुस्लिम विरोधी नहीं हैं। अभी यह आंकड़ों से प्रमाणित होना बाकी है पर भाजपा की ओर से पिछले कई चुनावों से दावा किया जा रहा है कि मुस्लिम महिलाएं उसे वोट कर रही हैं। अगर सचमुच ऐसा हो जाए कि मुस्लिम भाजपा को वोट करें, भाजपा हिंदुओं के एकाधिकार वाली पार्टी न रह जाए, कांग्रेस भी हिंदू वोटों की राजनीति करे, समाजवादी व वामपंथी पार्टियां कारोबारियों और पूंजीपतियों को दुश्मन न मानें और सबका साझा लक्ष्य देश का हित हो तो निश्चित रूप से दीर्घावधि में इससे लोकतंत्र को फायदा होगा। दुनिया के पैमाने पर और खास कर विकसित दुनिया में यह परिघटना पहले ही घटित हो चुकी है। वहां जो लिबरल है, वहीं लेबर है, वहीं लेफ्ट है और वहीं सोशलिस्ट भी है और वहीं कंजरवेटिव भी है। वहां विचारधारा के आधार पर पार्टियों की विभाजक रेखा बहुत महीन हो गई है। भारत में भी इसकी शुरुआत हो गई है। पर अभी यह सिर्फ सत्ता को साधने का अवसरवादी तरीका भर है। इसे वैचारिक व व्यावहारिक धरातल पर लाने की जरूरत है।

इस्लामी कलंक का सफाया

‘इस्लामिक स्टेट’ के सरगना अबू बकर अल-बगदादी की हत्या करके अमेरिका ने एक अमेरिकी महिला के साथ हुए बलात्कार और उसकी हत्या का बदला तो ले लिया लेकिन क्या इससे विश्व में फैला इस्लामी आतंकवाद खत्म हो जाएगा? उसामा बिन लादेन तो बगदादी से भी ज्यादा खतरनाक और कुख्यात था लेकिन उसका हत्या से क्या आतंकवाद में कोई कमी आई? इस्लाम के नाम पर चलनेवाले आतंकवाद को रोकने के लिए कुछ और भी बुनियादी कदम उठाने पड़ेंगे। सबसे पहले तो इस्लामी जगत को यह समझना होगा कि आतंकवाद इस्लाम का सबसे बड़ा कलंक है।

इस्लाम की जितनी बदनामी आतंकवाद के नाम पर हुई है, किसी अन्य मजहब या संप्रदाय की नहीं हुई है। आपके नाम में यदि कोई अरबी या फारसी का शब्द आ जाए, बस इतना ही काफी है। आप पर शक की निगाहें उठने लगती है। ऐसा क्यों है ? क्योंकि सारे दहशतगर्द अपने कुकर्म का औचित्य कुरान की आयातों के आधार पर ठहराते हैं। वे दावा करते हैं कि वे जिहादी है, वे ही सच्चे मुसलमान है। उन्हें जिहाद का क, ख, ग भी पता नहीं होता।

‘जिहादे-अकबर’ को माननेवाले के लिए काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह पर काबू करना बेहद जरुरी है। अपने आप को जिहादियों का खलीफा कहनेवाले इन बगदादी और उसामा- जैसे लोगों का चरित्र ऐसा रहा है कि जिसका चित्र सबके सामने खींचने में किसी को भी शर्म आएगी। जरुरी यह है कि पाकिस्तान इन तथाकथित जिहादियों की कड़ी भर्त्सना करे और उन्हें अपने देश से निकाल बाहर करे। 

क्यों करे ? क्योंकि पाकिस्तान दुनिया का एक मात्र देश है, जो इस्लाम के नाम पर बना है। पाकिस्तान के बाद हम आशा करते हैं, सउदी अरब के युवराज मुहम्मद बिन सलमान से, जो अपने देश को इन गुमराह जिहादियों का जन्म स्थान न बनने दे। सउदी अरब ने अब तक इन आतंकवादियों को पाला-पोसा। वे अपने कारनामों से इस्लाम की ही जड़ें खोद रहे हैं।

इसी तरह अमेरिका ने भी अफगानिस्तान में रुस से लड़ने के लिए अल कायदा और आतंकवाद को पनपाया और सद्दाम हुसैन का खात्मा करके पश्चिम एशिया में इस्लामी स्टेट (आईएस) या दाएश को सींचा। नतीजा क्या हुआ ? हजारों लोग मारे गए, वे मुसलमान ही थे लेकिन आतंकवाद की यह आग यूरोप, अमेरिका और भारत को भी झुलसाए बिना नहीं रही। यह जरुरी है कि इस्लाम अपने इस कलंक को धोए वरना सारी दुनिया आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट होते-होते कहीं इस्लाम के विरुद्ध ही मोर्चा खोलने पर मजबूर न हो जाए।

सांप्रदायिक दंगों में बिहार अव्वल क्यों है?

एक साल की देरी से जारी किए गए एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2017 में देश में दंगों की कुल 58,729 वारदातें दर्ज की गईं। इनमें से 11,698 दंगे बिहार में हुए। वर्ष 2017 में ही देश में कुल 723 सांप्रदायिक/धार्मिक दंगे हुए। इनमें से अकेले बिहार में 163 वारदातें हुईं, जो किसी भी सूबे से ज़्यादा है।
इसी साल एक टीवी कार्यक्रम में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि उनके कार्यकाल में सूबे में सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए, लेकिन नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़े न केवल उनके दावे को खारिज कर रहे हैं, बल्कि आंकड़ों से ये भी पता चलता है कि इस मामले में बिहार अव्वल है।

लगभग एक साल की देरी से जारी किए गए एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2017 में देशभर में दंगों की कुल 58,729 वारदातें दर्ज की गई। इनमें से 11,698 दंगे बिहार में हुए।

इस बार एनसीआरबी की रिपोर्ट में सांप्रदायिक/धार्मिक दंगों के लिए अलग कॉलम बनाया गया है और इन्हें सामान्य दंगों से अलग रखा गया है।

आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2017 में देश में कुल 723 सांप्रदायिक/धार्मिक दंगे हुए। इनमें से केवल बिहार में सांप्रदायिक/धार्मिक दंगों की 163 वारदातें हुईं, जो देश के किसी भी सूबे से ज्यादा है। इन दंगों से 214 लोग प्रभावित हुए।

सांप्रदायिक/धार्मिक दंगों के मामले में दूसरे स्थान पर कर्नाटक, तीसरे स्थान पर ओडिशा, चौथे स्थान पर महाराष्ट्र और चौथे स्थान पर झारखंड है। कर्नाटक में सांप्रदायिक/धार्मिक हिंसा की 92 घटनाएं, ओडिशा में 91, महाराष्ट्र में 71 दर्ज की गईं। उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक/धार्मिक दंगों की 34 घटनाएं हुई हैं। 

दिलचस्प बात ये है कि वर्ष 2016 के मुकाबले अन्य राज्यों में इस तरह की वारदातें कम हुई हैं।

एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2016 में सांप्रदायिक हिंसा के मामले हरियाणा अव्वल था। वहां सांप्रदायिक हिंसा की 250 घटनाएं हुई थीं। लेकिन, इसमें काफी कमी आई है। वर्ष 2017 में हरियाणा में सांप्रदायिक हिंसा की महज 25 घटनाएं हुईं. इसी तरह झारखंड में 2016 में सांप्रदायिक हिंसा की 176 वारदातें दर्ज की गई थीं, जो वर्ष 2017 में घट कर 66 पर आ गईं।

लेकिन, इसके उलट बिहार में इस तरह की घटनाएं बढ़ी हैं। वर्ष 2016 में बिहार में सांप्रदायिक हिंसा की 139 घटनाएं हुई थीं, जो वर्ष 2017 के मुकाबले 24 कम थी।

2016 से पूर्व के वर्षों में भी बिहार में सांप्रदायिक हिंसा कम हुई थी। 27 नवंबर 2012 को लोकसभा में इसे लेकर पूछे गए सवालों के जवाब में गृह मंत्रालय की तरफ से दिए गए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2009 और 2010 में बिहार में सांप्रदायिक हिंसा की 40-40 घटनाएं दर्ज हुई थीं। वहीं, वर्ष 2011 में सांप्रदायिक हिंसा की 26 घटनाएं हुई थीं।

वर्ष 2012 में भी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में गिरावट आई थी। आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2012 में बिहार में सांप्रदायिक हिंसा की 21 वारदातें हुई थीं, जिनमें तीन लोगों की मौत हो गई थी।

हालांकि वर्ष 2013 में सांप्रदायिक हिंसा में बढ़ोतरी हुई थी। आंकडे़ बताते हैं कि उस साल सांप्रदायिक हिंसा की 63 घटनाएं हुई थीं।

जानकारों का कहना है कि हाल के वर्षों में बिहार में धार्मिक उग्रता में इजाफा देखा जा रहा है। धार्मिक कार्यक्रमों में खुलेआम भड़काऊ गाने बजाए जाते हैं और आपत्तिजनक नारे लगते हैं। जिनका हश्र दो समुदायों के बीच तनाव और हिंसा के रूप में सामने आ रहा है. एनसीआरबी के आंकड़े इसी ट्रेंड की तस्दीक करते हैं।

उल्लेखनीय है कि पिछले साल ही रामनवमी के वक्त बिहार के आधा दर्जन जिलों में सांप्रदायिक दंगे हो गए थे और दंगों का ट्रेंड कमोबेश एक-सा था. एक जुलूस निकलता है… भड़काऊ गाने बजते हैं… एक अफवाह उड़ती है और फिर भीड़ बेकाबू होकर तोड़फोड़-रोड़ेबाजी शुरू कर देती है।

पिछले साल दुर्गा पूजा में मूर्ति विसर्जन के जुलूस के दौरान सीतामढ़ी शहर में दंगा हो गया था, जिसमें एक मुस्लिम बुजुर्ग की हत्या कर दी गई थी। इस दंगे को लेकर मौके पर तैनात पुलिस पदाधिकारियों ने अपने लिखित बयान में इस बात का जिक्र किया था कि जुलूस में शामिल लोग बेहद आपत्तिजनक नारे लगा रहे थे।

सीतामढ़ी में हुई वारदात के संबंध में जिले के डुमरा प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी मुकेश कुमार ने अपने बयान में लिखा था, ‘मेरे और थानाध्यक्ष (सीतामढ़ी) द्वारा हनुमान जी का मूर्ति का निरीक्षण किया गया। पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा के दोनों दाहिने हाथों पर गरदा (धूल) जैसा निशान बना हुआ था, जबकि दोनों बाएं हाथ सुरक्षित थे।’

उन्होंने अपने बयान में लिखा था कि मूर्ति तोड़ने की अफवाह के बाद भीड़ से एक आदमी माइक लेकर चिल्लाने लगा, ‘ऐ! हिंदू के बच्चों, तुम मउगा हो गए हो। प्रतिमा का हाथ टूट गया है और तुम लोग चुपचाप हो, इसका बदला लो. एक-एक मियां को काट दो, मस्जिद को तोड़ दो।’

बीते 10 अक्टूबर को पटना से सटे जहानाबाद शहर में दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन के वक्त जबरदस्त हिंसा हुई थी। एक से दो व्यक्तियों की मौत हुई. कई धार्मिक स्थलों में तोड़फोड़ की गई थी और तीन दर्जन दुकानें लूट ली गई थीं। हालात इतने नाजुक हो गए थे कि पूरे शहर में कई दिनों तक कर्फ्यू लगी रही और कुछ दिन के लिए इंटरनेट सेवा भी बंद करनी पड़ी थी।

डेढ़ सप्ताह तक जहानाबाद शहर में धारा 144 लागू रही. अब हालात पटरी लौटने जरूर लगे हैं, लेकिन लोगों के जेहन में खौफ अब भी तारी है।

जहानाबाद की हिंसा भी मूर्ति पर पथराव कर उसे क्षतिग्रस्त करने की अफवाह से शुरू हुई थी और देखते ही देखते पूरा शहर जलने लगा। घटनास्थल से आधा किलोमीटर दूर स्थित इलाकों में भी उत्पाती भीड़ ने तोड़फोड़ मचाई थी।

बताया जाता है कि 10 अक्टूबर की सुबह दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के लिए जा रही थी। शहर की कच्ची मस्जिद के पास मूर्ति रोक दी गई थी। उसी वक्त यह अफवाह उड़ी कि मूर्ति पर पत्थरबाजी हुई है, जिससे मूर्ति क्षतिग्रस्त हो गई है।

इसके बाद कुछ लोगों भीड़ चींखती हुई मस्जिद और दुकानों को निशाना बनाने लगी. यह वारदात सुबह 6 बजे के आसपास हुई थी, लेकिन उस वक्त थमी नहीं बल्कि 9 से 11 बजे के बीच अलग-अलग इलाकों में दुकानों को निशाना बनाया गया।

जहानाबाद टाउन थाने के प्रभारी सतेंद्र कुमार साही ने पत्थरबाजी और मूर्ति टूटने की घटना से पूरी तरह इनकार किया और कहा, ‘न मूर्ति पर पत्थर फेंका गया था और न ही मूर्ति टूटी थी।’

इस हिंसा में जिन दुकानदारों की दुकानों को नुकसान पहुंचाया गया है, वे सभी गरीब तबके से हैं। घटना के बाद उनके घरों का चूल्हा मुश्किल से जल पा रहा है।

कच्ची मस्जिद से थोड़ी दूर पचमहला में शमीम अहमद की टेलरिंग की दुकान थी। दंगाइयों ने दुकान तोड़ कर सामान लूट लिया और दुकान को आग के हवाले कर दिया। शमीम अभी तक दुकान शुरू नहीं कर पाए हैं।

वे कहते हैं, ‘12 दिन से दुकान बंद है। दुकान में कुछ भी नहीं छोड़ा गया है कि उसे खोला जाए. दुकान दोबारा चालू करने के लिए सब कुछ खरीदना होगा। उतनी पूंजी नहीं है कि डेढ़-दो लाख लगा दूं। 12 दिन से घर में बैठा हुआ हूं। कर्ज लेकर चूल्हा जल रहा है।’

जानकार बिहार में दंगे की घटनाओं में इजाफे के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व अन्य संगठनों के उभार को जिम्मेदार मानते हैं।

पटना के डीएम दिवाकर कहते हैं, ‘हाल के वर्षों में जिस तरह से धार्मिक कार्यक्रमों में आक्रामकता बढ़ी है। पिछली रामनवमी में पटना में नंगी तलवारें लेकर रामनवमी का जुलूस निकली ना था। इससे साफ है कि भाजपा अब पहले जैसी नहीं है। वह बिहार में खुद को मजबूत कर रही है और दंगे, दो समुदायों में तनाव से उसे मजबूती मिलती है।’

गौरतलब हो कि इस साल 18 मई को राज्य पुलिस के स्पेशल ब्रांच के एसपी ने बिहार के सभी जिलों के डीएसपी को आरएसएस समेत 18 हिंदुत्ववादी संगठनों के बारे में जानकारी इकट्ठा करने को कहा था।

इस पत्र में आरएसएस के साथ ही उससे जुड़े बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद, हिंदू जागरण समिति, धर्म जागरण समन्यव समिति, हिंदू राष्ट्र सेना, राष्ट्रीय सेविका समिति, शिक्षा भारती, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, दुर्गा वाहिनी, स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय किसान संघ, भारतीय मजदूर संघ, भारतीय रेल संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, अखिल भारतीय शिक्षक महासंघ, हिंदू महासभा, हिंदू युवा वाहिनी और हिंदू पुत्र संघ का जिक्र किया गया था।

एसपी ने इस आदेश को गंभीरता से लेते हुए तत्वरित कार्रवाई करने को कहा था। इन संगठनों के बारे पुलिस इसलिए भी जानकारी जुटा रही थी, क्योंकि कई दंगों में इन संगठनों की संलिप्तता सामने आई थी।

बिहार में सांप्रदायिक दंगों को लेकर राजद नेता तेजस्वी यादव ने ट्विटर पर लिखा है, ‘बिहार के कथावाचक सीएम को हार्दिक बधाई। उनके अथक पलटीमार प्रयासों से देशभर में बिहार को दंगों में प्रथम स्थान मिला है। मर्डर में द्वितीय, हिंसक अपराधों में द्वितीय और दलितों के विरुद्ध अपराध में भी बिहार अग्रणी रूप से द्वितीय स्थान पर है। 15 वर्ष से गृह विभाग उन्हीं के जिम्मे है।’

लेकिन, हैरान करने वाले आंकड़ों के बावजूद बिहार सरकार इसको लेकर चिंतित नहीं है। 

कौन हैं भारत के 47वें मुख्य न्यायाधीश

 राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार को जस्टिस एस.ए. बोबड़े को मुख्य न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। 18 नवंबर को राष्ट्रपति कोविंद जस्टिस एस. ए बोबड़े को देश के 47वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ दिलाएंगे। उन्हें अगला CJI नियुक्त करने के लिए मौजूदा मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने सिफारिश की थी। बता दें कि CJI रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। 

जस्टिस एस.ए. बोबड़े के शपथ ग्रहण समारोह में मोदी मंत्रिमंडल के वरिष्ठ मंत्री और शीर्ष अदालत व अन्य उच्च न्यायालयों के कई वरिष्ठ न्यायाधीश शिरकत करेंगे। हाल ही में CJI गोगोई ने केंद्र को पत्र लिखकर जस्टिस बोबड़े को अगला मुख्य न्यायाधीश बनाने की सिफारिश की थी। जस्टिस बोबड़े न्यायपालिका के शीर्ष पद को संभालने वाले सुप्रीम कोर्ट के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश हैं। जस्टिस बोबड़े कई एतिहासिक फैसलों में शमिल रहे हैं। जस्टिस बोबड़े उस संवैधानिक पीठ का हिस्सा हैं जो अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई कर रही है। उनके साथ इस पीठ में मौजूदा चीफ जस्टिस रंजन गोगोई,  जस्टिस नजीर, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस चंद्रचूड़ भी शामिल हैं। पीठ ने मामले की सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया है। आगे बढ़ने से पहले आपको बताते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें।


1978 में हुई करियर की शुरुआत

जस्टिस बोबड़े का जन्म 24 अप्रैल को महाराष्ट्र के नागपुर में हुआ था। उन्होंने नागपुर के विश्वविद्यालय से बी.ए और एल.एल बी की डिग्री हासिल की। अपने किरयर की शुरुआत करते हुए जस्टिस बोबड़े ने वर्ष 1978 में  काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र ज्वाइन किया। इसके बाद उन्होंने बॉम्बे हाइकोर्ट की नागपुर बेंच ने लॉ की प्रैक्टिस की। वर्ष 1998 में  वह वरिष्ठ वकील बन गए।


2013 में संभाली सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर कमान 

जस्टिस बोबड़े को वर्ष 2000 में बॉम्बे हाईकोर्ट में बतौर एडिशनल जज नियुक्त किया गया। बाद में उन्हें मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बनाया गया। 2013 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर कमान संभाली। जस्टिस बोबड़े 23 अप्रैल, 2021 को रिटायर होंगे। इस हिसाब के भारत के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर उनका कार्यकाल 18 महीने का होगा। 


कई एतिहासिक फैसलों का रहे हिस्सा

जस्टिस एस.ए. बोबड़े कई ऐसी संविधानिक पीठ का हिस्सा रहे हैं, जिन्होंने कई एतिहासिक फैसले लिए हैं। आधार कार्य को लेकर जिस संविधानिक पीठ ने आदेश जारी किया था, उसमें जस्टिस बोबड़े भी शामिल थे। अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आधार कार्ड नहीं होने पर किसी भी भारतीय नागरिक को सरकारी सब्सिडी और मूल सेवाओं से वंचित नहीं रखा जा सकता है। साथ ही वह पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का आदेश पारित करने वाली पीठ का हिस्सा थे। उनके साथ इसमें पूर्व मुख्य न्यायाधीश टी.एस. ठाकुर और जस्टिस एके सीकरी भी शामिल थे। 


डाउन संड्रोम पीड़िता की याचिका खारिज

एक महिला जो डाउन संड्रोम से पीड़ित थी, उसने अपने भ्रूण को समाप्त करने की याचिका दायर की थी। जस्टिस बोबड़े ने इस याचिका को इसलिए खारिज कर दिया था, क्योंकि, तब तक भ्रूण 26 हफ्ते का हो गया था। डॉक्टरों ने कहा था कि जन्म के बाद नवजात के जीवित रहने की संभावना है। 

किताब पर प्रतिबंध को रखा बरकरार 


कर्नाटक सरकार ने एक किताब जिसका नाम माता महादेवी था, उसपर प्रतिबंध लगा दिया था। ये प्रतिबंध इसलिए लगाया गया था कि इससे भगवान बासवन्ना के भक्तों की भावना आहात हो सकती है। संविधान पीठ ने भी इस प्रतिबंध को बरकरार रखा, उस पीठ में जस्टिस बोबड़े भी शामिल थे। 

जजों के मतभेदों में निभाई अहम भूमिका

जस्टिस बोबडे ने सुप्रीम कोर्ट के चार जजों- जस्टिस गोगोई, जे चेलमेश्वर, मदन लोकुर और कुरियन जोसेफ (अब सेवानिवृत्त) के बीच मतभेदों को निपटाने में अहम भूमिका निभाई थी। बता दें कि इन सभी ने जनवरी 2018 में तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी।

भारतीय नेताओं को मना करना और यूरोपीय नेताओं को जम्मू कश्मीर जाने देना संसद का अपमान: कांग्रेस

यूरोपीय संघ के 27 सांसदों का प्रतिनिधिमंडल मंगलवार को जम्मू कश्मीर का दौरा कर रहा है। यह शिष्टमंडल अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाए जाने के बाद वहां की स्थिति का आकलन करेगा। अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू कश्मीर के हालात जानने गए कांग्रेस समेत कई दलों के नेताओं को वापस भेज दिया गया था।
यूरोपीय संघ के सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल को जम्मू कश्मीर का दौरा करने की इजाजत देने को लेकर कांग्रेस ने सोमवार को नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि भारतीय नेताओं को वहां जाने की अनुमति नहीं देना और विदेश के नेताओं को इजाजत देना देश की संसद एवं लोकतंत्र का पूरी तरह अपमान है।

पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा, ‘जब भारतीय नेताओं को जम्मू कश्मीर के लोगों से मुलाकात करने से रोक दिया गया तो फिर राष्ट्रवाद के चैम्पियन होने का दावा करने वालों ने यूरोपीय नेताओं को किस वजह से जम्मू कश्मीर का दौरा करने की इजाजत दी?’

उन्होंने आरोप लगाया, ‘यह भारत की संसद और लोकतंत्र का अपमान है।’

जयराम रमेश ने येल यूनिवर्सिटी के एक लेक्चचर और पत्रकार सुशांत सिंह के ट्वीट को रिट्वीट किया है, जिसमें उन्होंने कहा है, ‘27 सांसदों का एक समूह (जो आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल नहीं) में से 22 दक्षिणपंथी दलों से जुड़े हैं. ये एक एनजीओ की ओर से निजी तौर पर भारत आए हैं और उन्हें भारत सरकार द्वारा कश्मीर घाटी ले जाया जा रहा है।’


अनोखा राष्ट्रवाद: प्रियंका गांधी

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने मंगलवार को नरेंद्र मोदी सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि भारतीय सांसदों को रोकना और विदेशी नेताओं को वहां जाने की अनुमति देना अनोखा राष्ट्रवाद है।

उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘कश्मीर में यूरोपीय सांसदों को सैर-सपाटा और हस्तक्षेप की इजाजत। लेकिन भारतीय सांसदों और नेताओं को पहुंचते ही हवाई अड्डे से वापस भेजा गया! यह बड़ा अनोखा राष्ट्रवाद है।’



कश्मीर में यूरोपियन सांसदों को सैर-सपाटा और हस्तक्षेप की इजाजत लेकिन भारतीय सांसदों और नेताओं को पहुँचते ही हवाई अड्डे से वापस भेजा गया! 




कश्मीर के दौरे पर जाएंगे यूरोपियन यूनियन के नेता, पीएम मोदी से की मुलाकात
ईयू का दल मंगलवार को जम्मू कश्मीर का दौरा करने वाला है। सूत्रों ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि प्रतिनिधिमंडल को जम्मू कश्मीर की स्थिति और सीमा पार से पनपने वाले आतंकवाद के बारे में अवगत कराया।


कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी सोमवार को नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधा और दावा किया कि भारतीय सांसदों को रोकने और विदेशी नेताओं को वहां जाने की अनुमति देने में कुछ न कुछ बहुत गलत है।

उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘यूरोप से आए सांसदों का जम्मू-कश्मीर का दौरा करने के लिए स्वागत है जबकि भारतीय सांसदों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी जाती है। कुछ न कुछ ऐसा है जो बहुत गलत है।’



मालूम हो कि यूरोपीय संघ के 27 सांसदों का प्रतिनिधिमंडल मंगलवार को जम्मू कश्मीर का दौरा कर रहा है। यह शिष्टमंडल जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाए जाने के बाद वहां की स्थिति का आकलन करेगा।

ये सांसद जम्मू कश्मीर के स्थानीय लोगों से बातचीत कर उनके अनुभव जानना चाहते हैं।

कांग्रेस के सोशल मीडिया विभाग के प्रमुख रोहन गुप्ता ने कहा, ‘जब भारतीय नेता जम्मू-कश्मीर का दौरा करना चाहते हैं तो तथाकथित राष्ट्रवाद के लिए खतरा पैदा हो जाता है. जब यूरोपीय नेता जम्मू कश्मीर का दौरा करते हैं तो क्या यह राष्ट्रवाद के लिए गौरव की बात है?’

दरअसल, जम्मू कश्मीर का दौरा करने से पहले यूरोपीय संघ के सांसदों के प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की।

मोदी ने इस प्रतिनिधिमंडल से कहा कि आतंकवाद का समर्थन करने और उसे प्रायोजित करने वालों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।

प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, मोदी ने उम्मीद जताई कि यूरोपीय संघ सांसदों का देश के विभिन्न हिस्सों का दौरा उपयोगी होगा और जम्मू कश्मीर की यात्रा से उन्हें जम्मू, कश्मीर और लद्दाख क्षेत्रों की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता की बेहतर समझ हो सकेगी।

इस प्रतिनिधिमंडल में इटली के फुल्वियो मार्तुसिएलो, ब्रिटेन के डेविड रिचर्ड बुल, इटली की जियाना गैंसिया, फ्रांस की जूली लेंचेक, चेक गणराज्य के टामस डेकोवस्की, स्लोवाकिया के पीटर पोलाक और जर्मनी के निकोलस फेस्ट शामिल हैं।

मालूम हो कि इससे पहले जम्मू कश्मीर से ताल्लुक रखने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आज़ाद को जम्मू कश्मीर का दौरा करने से मना कर दिया था। उन्हें हवाई अड्डे से वापस भेज दिया गया था।

इसके बाद आज़ाद ने शीर्ष अदालत से जम्मू कश्मीर में अपने परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों से मिलने की अनुमति भी मांगी थी। आज़ाद का दौरा तब मुमकिन हुआ जब 16 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दी थी।

इसके अलावा बीते अगस्त महीने में जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को केंद्र की मोदी सरकार द्वारा खत्म किए जाने के बाद वहां के हालात का जायजा लेने श्रीनगर पहुंचे विपक्ष के नेताओं को वापस दिल्ली भेज दिया गया था।

आठ राजनीतिक दलों का 11 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल जम्मू कश्मीर के हालात का जायजा लेने के लिए श्रीनगर पहुंचा था। उन्हें वहीं से वापस भेज दिया गया था।

प्रतिनिधिमंडल में आठ राजनीतिक दलों- कांग्रेस, माकपा, भाकपा, द्रमुक, राकांपा, जेडीएस, राजद और टीएमसी के प्रतिनिधि शामिल थे।

प्रतिनिधिमंडल में कांग्रेस नेता राहुल गांधी, गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के महासचिव केसी वेणुगोपाल, सीपीआईएम महासचिव सीताराम येचुरी, डीएमके सांसद तिरुचि शिवा, लोकतांत्रिक जनता दल के नेता शरद यादव, टीएमसी नेता दिनेश त्रिवेदी, सीपीआई महासचिव डी. राजा, एनसीपी नेता मजीद मेमन, राजद नेता मनोज झा और जेडीएस नेता डी। कुपेंद्र रेड्डी आदि शामिल थे।

अनाथ, दिव्यांगों पर सीएसआर का अधिक खर्च करें कंपनियां

राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कंपनियों को सुझाव दिया है कि वे कॉरपोरेट सामाजिक दायित्य (सीएसआर) के तहत अनाथ और दिव्यांग लोगों के कल्याण के लिए अधिक राशि खर्च करें। उन्होंने मंगलवार को कहा कि सीएसआर गतिविधियों के जरिये विकास की चुनौतियों के लिए नवोन्मेषी समाधान ढूंढे जा सकते हैं। यहां पहले राष्ट्रीय सीएसआर पुरस्कार समारोह को संबोधित कर रहे कोविंद ने कहा कि धन का दान करने पर सम्मान मिलता है, उसे जमा करने पर नहीं।



कंपनी कानून, 2013 के तहत सीएसआर प्रावधान एक अप्रैल, 2014 से लागू हुए हैं। इस कानून के तहत कुछ निश्चित श्रेणी की मुनाफा कमाने वाली कंपनियों को अपने तीन साल के औसत शुद्ध लाभ का दो प्रतिशत एक वित्त वर्ष में सीएसआर गतिविधियों पर खर्च करना होता है। राष्ट्रपति ने कहा कि 2014-15 से कंपिनयां हर साल सीएसआर पर 10,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करती हैं।



उन्होंने कहा कि समाज कल्याण गतिविधियों पर खर्च करने के लिए संसाधन, इच्छाशक्ति और रूपरेखा अहम होते हैं। उन्होंने सवाल किया कि हमें किसकी अधिक मदद करनी चाहिए….? साथ ही उन्होंने सुझाव दिया कि अनाथों और दिव्यांगों पर अधिक खर्च किया जाना चाहिए। राष्ट्रपति ने कहा कि 2030 तक प्रत्येक अनाथ की देखरेख की जा सकेगी। अब से राष्ट्रीय सीएसआर पुरस्कार हर साल दो अक्टूबर को दिए जाएंगे।

न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे अगले प्रधान न्यायाधीश होंगे

हाल ही में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने केंद्र सरकार को एक पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट में अपने बाद वरिष्ठतम न्यायाधीश एसए बोबडे को अपना उत्तराधिकारी बनाने की सिफ़ारिश की थी।


जस्टिस शरद अरविंद (एसए) बोबडे भारत के 47वें मुख्य न्यायाधीश होंगे। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उनकी नियुक्ति को मंजूरी दे दी है।

जस्टिस बोबडे मुख्य न्यायाधीय जस्टिस रंजन गोगाई की जगह लेंगे। 17 नवंबर को जस्टिस गोगोई के रिटायर होने के बाद 18 नवंबर को जस्टिस एसए बोबडे मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे। उनका कार्यकाल 18 महीने का होगा।

बीते 18 अक्टूबर को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने केंद्र सरकार को एक पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट में अपने बाद वरिष्ठतम न्यायाधीश एसए बोबडे को अपना उत्तराधिकारी बनाने की सिफारिश की थी।

मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने परंपरा के अनुसार अपने उत्तराधिकारी के रूप में अपने बाद अगले वरिष्ठतम न्यायाधीश के नाम की सिफारिश की थी।

जस्टिस गोगोई ने तीन अक्टूबर 2018 को देश के 46वें चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ ग्रहण किया था। वह आने वाले 17 नवंबर को सेवानिवृत्त हो जाएंगे।

एसए बोबडे मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रह चुके हैं। वह कई महत्वपूर्ण पीठों का हिस्सा रहे हैं। इसके अलावा मुंबई में महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी और नागपुर में महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के वह चांसलर भी हैं।

जस्टिस बोबडे ने नागपुर विश्वविद्यालय से बीए और एलएलबी डिग्री ली है। वह अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में 29 मार्च 2000 को बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ का हिस्सा बने थे।

उन्होंने 16 अक्टूबर 2012 को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली थी। वह 12 अप्रैल 2013 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुए थे।

जस्टिस बोबडे का जन्म 24 अप्रैल 1956 को नागपुर में हुआ था। वह 23 अप्रैल 2021 को रिटायर होने वाले हैं। वह सुप्रीम कोर्ट में चल रहे अयोध्या विवाद, बीसीसीआई और पटाखों के खिलाफ चल रहे मामलों का हिस्सा रह चुके हैं।

सोमवार, 28 अक्टूबर 2019

विधानसभा चुनाव 2019 : दम लगायेंगे दलों के अध्यक्ष, कुछ अध्यक्ष दो जगह से लड़ेंगे चुनाव, पार्टियों की साख भी दांव पर

दीवाली के बाद अब झारखंड की निगाहें भारत के चुनाव आयोग की ओर हैं। राज्य में विधानसभा चुनाव की घोषणा कभी भी की जा सकती है। 

चुनाव की घोषणा आयोग के संभावित दौरे के पहले और बाद दोनों ही परिस्थितियों में की जा सकती है। हालांकि, चुनाव आयुक्तों के दौरे के बाद ही झारखंड में विधानसभा चुनाव घोषणा का कयास लगा रहे हैं। लेकिन, चुनाव आयुक्तों का दल राज्य में चुनाव की घोषणा के बाद भी तैयारियों का जायजा लेने आ सकता है। 

इसके लिए कोई नियम निर्धारित नहीं है।  इधर, राज्य में चुनाव की तैयारियां लगभग पूरी हाे चुकी हैं। सभी 81 विधानसभा क्षेत्रों में आवश्यकतानुसार इवीएम का प्रबंध कर लिया गया है। चुनावी प्रक्रिया के लिए इंक और अन्य आवश्यक चीजों का भी इंतजाम किया जा चुका है।


 विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों की गतिविधि तेज हो गयी है। भाजपा-आजसू के साथ मिल कर गठबंधन में चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है। वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दलों के महागठबंधन की अभी तक तस्वीर पूरी तरफ से साफ नहीं हो पायी है। 

घटक दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर वार्ता जारी है, लेकिन अभी तक स्वरूप तय नहीं हो पाया है। झाविमो के महागठबंधन में नहीं शामिल होने की चर्चा चल रही है। ऐसे में झामुमो, कांग्रेस, राजद मिल कर महागठबंधन बना सकते हैं। विधानसभा चुनाव में विभिन्न दलों के दिग्गज नेता चुनाव मैदान में उतरेंगे। पार्टी अध्यक्ष के साथ-साथ चुनाव में दलों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगेगी. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा भी विधानसभा का चुनाव लड़ सकते हैं। 

इसको लेकर पार्टी के अंदरखाने में गतिविधि तेज हो गयी है। पिछले लोकसभा चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा सिंहभूम लोकसभा से चुनाव लड़े थे, लेकिन वे नहीं जीत पाये। झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन भी चुनाव मैदान में उतरेंगे। पिछले विधानसभा चुनाव में  सोरेन दो सीट दुमका व बरहेट से चुनाव लड़े थे। दुमका में इन्हें लुईस मरांडी ने पराजित किया था। वहीं बरहेट से चुनाव जीते थे। 

हेमंत एक बार फिर दो विधानसभा सीटों से चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे है़ं  कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामेश्वर उरांव भी चुनाव मैदान में उतरेंगे। इनके अलावा कांग्रेस पार्टी के पांचों कार्यकारी अध्यक्ष भी दावेदार हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में श्री उरांव लोहरदगा सीट से दावेदार थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिल पाया था। आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो भी इस बार विधानसभा की दो सीटों से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। वे सिल्ली व डुमरी विधानसभा से चुनाव लड़ सकते हैं। झाविमो अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी पिछली बार राजधनवार व गिरिडीह से जीत नहीं पाये थे। 

 मरांडी के इस बार चुनाव लड़ने को लेकर स्थिति साफ नहीं है़  राजद अध्यक्ष अभय सिंह भी चुनाव लड़ेंगे। हालांकि अभी सीट तय नहीं है। जदयू के प्रदेश अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने शिकारीपाड़ा से चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर दी है।

बिना पिए ही पेट में शराब बना रही ये अनोखी बीमारी, डॉक्टर भी हैं हैरान

आपको यह सुनने में अजीब लग सकता है लेकिन एकदम सच है कि एक नई बीमारी व्यक्ति के पेट में ही अल्कोहल बना रही है। न्यूयॉर्क की मेडिकल यूनिवर्सिटी में हुए अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है। दरअसल, इस अध्ययन से जुड़े डॉक्टरों का कहना है कि मरीज के शरीर में एक फंगस बन रहा है जो कि कार्बोहाइड्रेड को अल्कोहल यानी शराब में तब्दील कर रहा है। इसकी वजह से बिना अल्कोहल के सेवन के ही व्यक्ति के पेट में अल्कोहल बन रही है। इस बात का खुलासा उस वक्त हुआ जब एक व्यक्ति के पेट में बिना अल्कोहल के सेवन के ही अल्कोहल पाई गई। 

 क्या है पूरा मामला? 

अमेरिका में रहने वाले 46 साल के व्यक्ति को पुलिस ने 2014 में शराब पीकर गाड़ी चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया और जुर्माना भी लगाया। लेकिन व्यक्ति ने कहा कि उसने शराब नहीं पी है। डॉक्टर्स ने जांच की तो पता चला उसने शराब नहीं पी है, लेकिन शरीर में अल्कोहल है। इसके बाद उस व्यक्ति के पेट में मौजूद शराब पर अध्ययन किया गया।


न्यूयॉर्क स्थित रिचमंड यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर ने इस पूरे मामले पर अध्ययन किया और जो बात निकलकर सामने आई उसने डॉक्टरों को भी चौंका दिया। दरअसल, स्टडी में पता चला कि उस व्यक्ति को ऑटो ब्रेवरी सिंड्रोम (एबीएस) नाम की बीमारी है। इस बीमारी की वजह से ही बिना पिए उसके शरीर में अल्कोहल का निर्माण हो रहा है।

इस अध्ययन से जुड़े यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस बीमारी को दुर्लभ बताया है। डॉक्टर बारबरा कॉर्डेल का कहना है कि यह बीमारी पिछले 30 साल में सिर्फ पांच लोगों को ही हुई है। इस बीमारी में एक फंगस कार्बोहाइड्रेट को अल्कोहल में बदल रहा है। इसकी वजह से इस शख्स के शरीर में अल्कोहल की मात्रा बढ़ गई थी। दरअसल, जिस शख्स के शरीर में बिना पिए ही अल्कोहल पाई गई थी वह साल 2011 में एक हादसे का शिकार हुआ था। उसके बाद उसने एंटीबायोटिक्स लेनी शुरू की थी और उसे ऑटो ब्रेवरी सिंड्रोम ने उसे जकड़ लिया। इसी वजह से यह शख्स हर बार ब्रीथ एनालाइजर में शराब के नशे में दिखाई देता है।

इस अध्ययन से जुड़े यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस बीमारी को दुर्लभ बताया है। डॉक्टर बारबरा कॉर्डेल का कहना है कि यह बीमारी पिछले 30 साल में सिर्फ पांच लोगों को ही हुई है। इस बीमारी में एक फंगस कार्बोहाइड्रेट को अल्कोहल में बदल रहा है। इसकी वजह से इस शख्स के शरीर में अल्कोहल की मात्रा बढ़ गई थी। दरअसल, जिस शख्स के शरीर में बिना पिए ही अल्कोहल पाई गई थी वह साल 2011 में एक हादसे का शिकार हुआ था। उसके बाद उसने एंटीबायोटिक्स लेनी शुरू की थी और उसे ऑटो ब्रेवरी सिंड्रोम ने उसे जकड़ लिया। इसी वजह से यह शख्स हर बार ब्रीथ एनालाइजर में शराब के नशे में दिखाई देता है।

रविवार, 27 अक्टूबर 2019

अयोध्या पर फैसले से पहले पीएम मोदी की बयानबाजों को नसीहत, एकता का स्वर देश की बड़ी ताकत

पीएम मोदी ने रविवार को प्रसारित मन की बात को संबोधित करते हुए कहा कि 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का राम मंदिर मामले पर जब फैसला आना था तो देश में कुछ बड़बोले लोगों ने क्या-क्या बोला था और कैसा माहौल बनाया गया था। ये सब पांच-दस दिन तक चलता रहा। लेकिन, जैसे ही फैसला आया तो राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, सभी संप्रदायों के लोगों, साधु-संतों और सिविल सोसाइटी के लोगों ने बहुत संतुलित बयान दिया था। न्यायपालिका के गौरव का सम्मान किया। एकता का स्वर, देश को, कितनी बड़ी ताकत देता है उसका यह उदाहरण है। 

अपने संबोधन के दौरान उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि 31 अक्टूबर की तारीख आप सबको जरूर याद होगी। यह दिन भारत के लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की जन्म जयंती का है। सरदार पटेल बारीक से बारीक चीजों को भी बहुत गहराई से देखते थे, परखते थे। सही मायने में वे मैन ऑफ डिटेल थे। इसके साथ ही वे संगठन कौशल में भी निपुण थे।

उन्होंने कहा कि हम सब जानते हैं कि भारत के प्रथम गृह मंत्री के रूप में सरदार वल्लभभाई पटेल ने रियासतों को एक करने का एक बहुत बड़ा भागीरथ और ऐतिहासिक काम किया। सरदार वल्लभभाई पटेल की ये ही विशेषता थी जिनकी नजर हर घटना पर टिकी थी। एक तरफ उनकी नजर हैदराबाद, जूनागढ़ और अन्य राज्यों पर केंद्रित थी, तो वहीं दूसरी तरफ उनका ध्यान सुदूर दक्षिण में लक्षद्वीप पर भी थी।

31 अक्टूबर को हर बार की तरह रन फॉर यूनिटी का आयोजन किया जा रहा है जिसमें समाज के हर वर्ग और हर तबके के लोग शामिल होंगे। 'रन फॉर यूनिटी' इस बात का प्रतीक है कि यह देश एक है। एक दिशा में चल रहा है और एक लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता है। एक लक्ष्य- एक भारत श्रेष्ठ भारत।

पीएम मोदी ने कहा कि पिछली मन की बात में हमने तय किया था कि इस दीपावली पर कुछ अलग करेंगे। मैंने कहा था आइए, हम सभी इस दीपावली पर भारत की नारी शक्ति और उनकी उपलब्धियों को सेलिब्रेट करें, यानी भारत की लक्ष्मी का सम्मान करें।

पीएम मोदी ने इंदिरा गांधी को दी श्रद्धांजलि

उन्होंने कहा कि 31 अक्टूबर को हमारे देश की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा जी की हत्या हुई थी। देश को एक बहुत बड़ा सदमा लगा था। मैं आज उनको भी श्रद्धांजलि देता हूं।

दिवाली की बधाई दी

पीएम मोदी ने देशवासियों को दीप पर्व दीपावली की बधाई दी। उन्होंने कहा कि आजकल दुनिया के अनेक देशों में दिवाली मनाई जाती है। विशेष बात यह है कि इसमें सिर्फ भारतीय समुदाय ही शामिल नहीं होता बल्कि अब कई देशों की सरकारें और वहां के नागरिक दिवाली में शामिल होते हैं।

भारत में फेस्टिवल टूरिज्म की अपार संभावनाएं

पीएम मोदी ने कहा कि दुनिया भर में फेस्टिवल टूरिज्म का अपना ही आकर्षण है। हमारा भारत जो त्योहारों का देश है, उसमें फेस्टिवल टूरिज्म की भी अपार संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास होना चाहिए कि होली हो, दिवाली हो, ओणम हो, पोंगल हो, बिहु हो इन जैसे त्योहारों का का प्रसार करें और त्योहारों की खुशियों में अन्य राज्यों व देशों के लोगों को भी शामिल करें।

गुरु नानकदेव जी के प्रकाश पर्व को लेकर कही ये बात

पीएम मोदी ने कहा कि गुरु नानक जी ने निस्वार्थ भाव से सेवा की। उनके इस सेवाभाव से कई सारे संत भी प्रभावित हुए। गुरुनानक देव जी ने अपना संदेश दुनिया में दूर-दूर तक पहुंचाया। वे अपने समय में सबसे अधिक यात्रा करने वालों में से थे। गुरुनानक देव जी छुआछूत जैसी सामाजिक बुराई के खिलाफ मजबूती के साथ खड़े रहे।

उन्होंने कहा कि अभी कुछ दिन पहले ही, करीब 85 देशों के राजदूत, दिल्ली से अमृतसर गये थे। वहां राजदूतों ने स्वर्ण मंदिर के दर्शन तो किए ही, उन्हें सिख परम्परा और संस्कृति के बारे में भी जानने का अवसर मिला। इसके बाद कई राजदूतों ने सोशल मीडिया पर वहां की तस्वीरें साझा की।

शनिवार, 26 अक्टूबर 2019

डॉक्टरों पर चौंकाने वाला खुलासा, ऐसी है विदेश से एमबीबीएस पढ़कर भारत लौटने वालों की स्थिति

विदेश में एमबीबीएस की पढ़ाई कर भारत लौटने वाले अभ्यर्थियों पर चौंकाने वाला खुलासा।
आधे से ज्यादा डॉक्टर भारत में प्रैक्टिस करने के लायक ही नहीं।
देश में डॉक्टरों को लेकर एक बार फिर चौंकाने वाली बात सामने आई है। इससे पहले केंद्र की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि देश में करीब 57 फीसदी डॉक्टर फर्जी हैं। अब जो रिपोर्ट आई है उसमें विदेश जाकर एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाले भारतीयों के संबंध में खुलासा किया गया है।
बताया गया है कि विदेश से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत लौटने वाले अधिकांश डॉक्टर यहां फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन (FMGE) की परीक्षा पास ही नहीं कर पाते। इस परीक्षा को पास किए बिना वे भारत में मेडिकल प्रैक्टिस नहीं कर सकते। उन्हें लाइसेंस ही नहीं मिलेगा। लेकिन इसे पास करने वालों की संख्या 15 फीसदी से भी कम है।

ये आंकड़े नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशंस (NBE) द्वारा जारी किए गए हैं। एनबीई ही एफएमजीई का आयोजन करती है। 


किस देश से पढ़ने वाले कितने डॉक्टर पास करते हैं ये परीक्षा

एनबीई ने 2015 से 2018 के बीच एफएमजीई देने वाले डॉक्टरों और उनके पास प्रतिशत का अध्ययन किया। इनकी कुल संख्या 61,708 थी। लेकिन इनमें से महज 8,764 अभ्यर्थी ही परीक्ष पास कर पाए। यानी 14.2 फीसदी।

परीक्षा में शामिल होने वाले कुछ अभ्यर्थियों में से 54,055 (करीब 87.6 फीसदी) सात देशों के कॉलेजों से एमबीबीएस करने वाले थे। ये देश हैं - चीन, रूस, बांग्लादेश, नेपाल, यूक्रेन, किर्जिस्तान, कजाखस्तान।

देश परीक्षा में शामिल अभ्यर्थी पास करने वाले अभ्यर्थी पास प्रतिशत

चीन    20,314             2,370                            
                                                                11.67


रूस     11,724           1,512                        12.89


यूक्रेन     8,130              1,224                                   
                                                                  15


बांग्लादेश 1,265                     343                                            
                                                                     
                                                              27.11


नेपाल    5,894                  1,024                                     
                                                            17.68


किर्गिस्तान 5,335                589                               
                                                              11


कजाखत्सान 1,393                   143                           
                                                            10.2


कुल अभ्यर्थी 61,708                8,764                      14.2


इस मामले में मॉरिशस से एमबीबीएस करने वाले अभ्यर्थियों का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा। इस देश से पढ़ने वाले 154 डॉक्टर परीक्षा में शामिल हुए। इनमें से 81 को सफलता मिली। यानी करीब 52 फीसदी सफल हुए।


क्यों सार्वजनिक किए गए ये आंकड़े

नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. विनोद पॉल ने इस संबंध में कहा कि 'आंकड़े इसलिए सार्वजनिक किए गए ताकि अभ्यर्थियों को अभिभावकों को विदेश में सही मेडिकल कॉलेज चुनने और इसका फैसला लेने में मदद मिल सके। अब तक एमबीबीएस के लिए चीन, रूस और यूक्रेन भारतीय छात्रों की पसंदीदा जगहों में शुमार हैं।'

भारत में क्यों असफल हो रहे हैं विदेशों से पढ़े डॉक्टर्स

डॉ. पॉल ने कहा कि 'अभिभावकों और छात्रों को ये ध्यान में जरूर रखना चाहिए कि ज्यादातर विदेशी संस्थानों में प्रशिक्षण की जो गुणवत्ता है, वो काफी नहीं है। खास कर जब भारत में मेडिकल की प्रैक्टिस करने के लिए जरूरी ज्ञान और कौशल के मानकों की बात आती है। इसलिए इस बारे में बेहद ध्यानपूर्वक सोचने और फैसला लेने की जरूरत है। क्योंकि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विदेश से पढ़ाई करने के बाद बड़ी संख्या में अभ्यर्थी भारत में प्रैक्टिस करने से वंचित रह जाते हैं। यह गंभीर मुद्दा है।'  


भारत में एमबीबीएस की कुल कितनी सीटें

डॉ. पॉल के अनुसार, वर्तमान में भारत में एमबीबीएस की करीब 77 हजार सीटें हैं। उन्होंने बताया है कि देश में प्रशिक्षण के अवसर बढ़ाए जाने के लिए तेजी से प्रयास चल रहे हैं। नजदीकी भविष्य में भारत में एमबीबीएस सीटों की संख्या बढ़ाकर करीब एक लाख करने का लक्ष्य है।

देश में बच्चों के खिलाफ रोज हो रहे 350 अपराध

हम बड़ों की दुनिया बच्चों के लिए दिनोंदिन बेरहम होती जा रही है। एक आंकडे़ के मुताबिक देश में हर रोज बच्चों के खिलाफ 350 अपराधाें को अंजाम दिया जाता है। आंकडे़ 2017  के हैं, जिसे हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने जारी किया है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अध्ययन के आधार पर बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था चाइल्ड राइट्स एंड यू (सीआरवाई यानी क्राई) ने कहा हे कि बच्चों के खिलाफ अपराधों के मामले में शीर्ष पर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्य हैं।

क्राई के मुताबिक एनसीआरबी ने जो आंकड़े दिए हैं, उनसे पता चलता है कि 2016-17 के दौरान बच्चों के खिलाफ अपराधों में 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। इसी दौरान पूरे देश में कुल अपराधों में 3.6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। बच्चों के खिलाफ अपराधों के मामले में यूपी और एमपी सबसे आगे हैं। 2016-17 के दौरान दोनों राज्यों में संयुक्त रूप से ऐसे अपराध 14.8 फीसदी या 19 हजार से ज्यादा दर्ज किए गए हैं। झारखंड में जहां 73.9 फीसदी के साथ सबसे ज्यादा बढ़ोतरी (73.9 फीसदी) देखी गई। वहीं, मणिपुर में इस मामले में 18.7 फीसदी के साथ बड़ी गिरावट आई है। क्राई के मुताबिक, 2016 में प्रति लाख पर बच्चों के खिलाफ संज्ञेय अपराध के 24 मामले दर्ज हुए, वहीं 2017 में यह संख्या प्रति लाख पर 28.9 तक जा पहुंची है। वहीं, नाबालिग लड़कियों के प्रति ऐसे अपराधों में 2016 के मुकाबले 37 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई।

एक दशक में 1.8 से 28.9 फीसदी बढे़ बच्चों के खिलाफ अपराध

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, अगर दशक की बात करें तो बच्चों के खिलाफ अपराध बेहद तेजी से बढ़ा है। यह 2007 से 2017 के दौरान 1.8 से बढ़कर 28.9 फीसदी तक जा पहुंचा है। यह बेहद भयावह स्थिति है।

अप्रत्याशित तौर पर बढ़ रहा अपराध

एनसीआरबी आंकड़ों के मुताबिक बच्चों के खिलाफ अपराध के मामले में 2016 में 1,06,958 अपराध दर्ज किए गए तो वहीं, 2017 में 1,29,032 अपराध के मामले दर्ज हुए। क्राई के मुताबिक, बच्चों के खिलाफ अप्रत्याशित रूप से अपराध बढ़ रहे हैं। यह खतरे की घंटी है।

बाल विवाह अब भी बड़ी चुनौती 

क्राई ने एनसीआरबी के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि बाल विवाह देश में अब भी सबसे बड़ी चुनौती है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, देश में करीब 1.2 करोड़ शादीशुदा बच्चे हैं। इनमें से करीब 75 फीसदी लड़कियां हैं। 2017 के एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, बाल विवाह प्रतिबंध कानून, 2006 के तहत 395 मामले दर्ज किए गए। इन अपराधों को दर्ज किए जाने में 21.17 फीसदी का इजाफा हुआ। वहीं, 2017 में ही किशोरों के खिलाफ अपराधों के 2,452 मामले दर्ज किए गए।

दीया जलाएं, अंधकार भगाएं!

क्या आप लक्ष्मीजी से ऐसे प्रार्थना करेंगे?
अंधेरा है! अमावस्या का घनघोर अंधेरा। मानो पुराण कथा का वक्त फिर जिंदा! मां भारती का वह काल। कार्तिक महीने की अमावस्या। तब मां लक्ष्मी रास्ता भूल मृत्युलोक के अंधकार में ठिठकी थीं। उनकी चंचलता और विश्वास का हरण। करें तो क्या करें?

सोचें, मां भारती पर, उसके मनुष्य जातक हिंदुओं पर! सर्वत्र व्याप्त अंधकार! लक्ष्मीजी रूष्ट।मां सरस्वती की बुद्धि-सत्य की वीणा झूठ के नैरेटिव में अवरूद्ध। मां दुर्गा का खड़ग अहंकार, सत्ता के नंगे नाच के आगे भय के अंधकार में थमा हुआ। मनुष्य के मनोभाव से निर्भयता, निडरता, आजादी सब अंधेरे की चिरनिद्रा में विलुप्त! राक्षस जातक के आगे देव-देवियां लाचार!मनुष्य लाचार! मां भारती लाचार! सर्वत्र पसरा हुआ मायावी झूठ और दानवी सिद्धियों का काला अंधियारा। सच को झूठ, झूठ को सच बतलाने वाला महापाप! सदाचार, नैतिकता, मूल्य, संस्कार, विचार और मानव व्यवहार की संपूर्ण उपलब्धियों का सत, व्यवहारऔर धर्म उन नक्षत्रों द्वारा खाया हुआ, जिनका ताल्लुक है रावण की अहंकार रचना वाली कुंडली से!

उफ! राक्षस जातकों का दर्पऔर बनवाया अंधकार! मां लक्ष्मी कैसे उजियारा पाएं? सरस्वती की वीणा से कैसे बुद्धि, ज्ञान, सत्य की झंकार निकले? मां दुर्गा और उनके तमाम हस्त खड़ग उठा कैसे सत्ता के, अहंकार के राक्षसों का मर्दन कर उजियारा बनवाए!तीनों देवियों को अंधकार में कहीं भी तो उजियारे की, दीपक की लौ टिमटिमाती हुई नहीं दिख रही!

और जान लें, अपने पुराणों में राक्षसों से भगवान विष्णु का लड़ना भी मुश्किल हुआ था। देवाधिपति भगवान विष्णु भी माल्यवान,सुमाली औरमाली राक्षसोंको मार नहीं पाए थे। वे बहुत मुश्किल से, संपूर्ण शक्तियों को एकत्र कर उन्हें खदेड़ भर सके थे! तभी सनातनी सत्य है कि असुरों की मायावी सिद्धियों से, झूठ से बने अंधकार की शक्तियों को हरा सकना बहुत मुश्किल हुआ करता है!

कार्तिक अमावस्या के दिन मृत्युलोक के अंधकार में मां लक्ष्मी खड़ी हुई थीं पर मनुष्य नहीं जागे थे। मतलब अंधियारे की नींद में सोए मनुष्यों के भू लोक में मां लक्ष्मी, मां सरस्वती और मां दुर्गा का न स्वंय का रास्ता बनता है और न उनका आशीर्वाद फलता है।

हां, लक्ष्मीजी कार्तिक अमावस्या के दिन अंधकार के साम्राज्य में, लोगों के सोए हुए होने सेमृत्युलोक में रास्ता भटकी थीं। बहुत भटकने और बहुत बाद दूर कहीं उन्हें एक दीपक की लौ टिमटिमाती दिखी। वह दीपक एक वृद्ध महिला का जलाया हुआ था। वह बूढ़ी महिला अपने दायित्व, अपनी बुद्धि से अंधियारे के बीच निर्भयता का दीया जलाए हुए थी! दीये की रोशनी में कर्म का, जीवन के सत्य का, जीवन की सार्थकता का वह चरखा कात रही थी। मां लक्ष्मी ने उस वृद्ध महिला के उजियारे में शरण ली। वे अनुमति मांग बुढ़िया की कुटिया में रूकीं। उन्होंने विश्राम किया। चरखा चलाते-चलाते वृद्धा की आंख लग गई। वह सुबह उठी तो सूर्योदय के उजियारे में उसका घर महल में परिवर्तित था, धन्यधान्य से भरपूर था। उसने उठने पर पाया कि अतिथि महिला जा चुकी है किंतु कुटिया के स्थान पर महल है और वह धनधान्य व श्रीवृद्धि से भरापूरा!वह सत्य के, कर्म के उजियारे को देवी का आशीर्वाद था।एक वृद्धा के कर्म, विश्वास, सत्य के दीये ने लक्ष्मीजी का आश्रय बनवाया तो वृद्धा को शुभ प्राप्त हुआ!

सो सोचें, कार्तिक की अमावस्या पर आज जरूरत क्या?

सिर्फ एक दीये की लौ! मतलब सत्य की लौ! तभी संकल्प ले हम जलाएंगे दीया। निकलेंगे अंधियारे से बाहर! भय और मूर्खताओं से बुद्धि को स्वतंत्र कर बनेंगे हम अभय। हमें वह निर्भयता, वह आजादी मिले जो विचार सके कि अंधेरा क्या है और उजियारा क्या है? लक्ष्मीजी क्यों ठिठकी हुई हैं? हां, जानें इस सत्य को कि लक्ष्मीजी रूठी हुई हैं, उनकी चंचलता खत्म है। इसलिए संकल्प लें, निश्चय बनाएं कि धन, ज्ञान और शक्ति की तीनों रूठी देवियों को फिर मां भारती के जन-जन में लौटा लाना है। धन, ज्ञान और शक्ति का उजियारा बनवाना है। मानव संस्कार लौटाने हैं। सत्य, बुद्धि और साहस को दानवी मायाजाल, फरेब से मुक्त कराना है।

तभी कतई न छोडं़े झूठ के पटाखे! दीया सत्य है तो दीपोत्सव और पटाखे झूठ की जगमग हैं। आज अमावस्या सचमुच झूठ के दर्प में घनघोर अंधियारी है। सो, झूठ से, झूठ की जगमग से रूष्ट लक्ष्मीजी को और न चिढ़ाओ! बस मन का एक दीया जलाओ और अपनी आद्य देवियों से विनम्रतापूर्वक विनती करो कि आप पधारें हमारे घर और हमें और हमारी मां भारती को अंधियारे के दानवों से मुक्ति दिलाएं। हमें भय-बुद्धिहीनता-धन और सुख के दारिद्र से मुक्त करके ले हमें आप अपनी शरण में!

क्या आप लक्ष्मीजी से ऐसे प्रार्थना करेंगे?

आप सभी को मन से दीपावली के संकल्प की ढेरों शुभकामनाएं!

बदले की राजनीति अब बंद हो जाएगी!

महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनावों के नतीजों में एक खास बात नोटिस करने की है। पिछले कुछ दिनों में जितने नेताओं के खिलाफ केंद्र या राज्य सरकार की एजेंसियों ने कोई कार्रवाई की उन सबका प्रदर्शन अच्छा रहा। महाराष्ट्र में एनसीपी ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया तो हरियाणा में भूपेंदर सिंह हुड्डा की कमान में कांग्रेस ने बहुत शानदार प्रदर्शन किया। यहां तक कि बिहार में लालू प्रसाद की पार्टी ने विधानसभा के उपचुनाव में दो सीटें जीत लीं। मध्य प्रदेश में कमलनाथ की कमान में कांग्रेस अपनी एक सीट बढ़ाने में कामयाब रही। ध्यान रहे इन सारे नेताओं के खिलाफ पिछले कुछ दिनों में कोई न कोई कार्रवाई हुई है।

शरद पवार के राजनीतिक करियर में यह पहली बार हुआ कि उनको प्रवर्तन निदेशालय, ईडी की ओर से नोटिस दिया गया। उनका नाम महाराष्ट्र सहकारी बैंक घोटाले में शामिल किया गया। उनके भतीजे अजित पवार और पार्टी के दूसरे नेताओं के खिलाफ तो पहले से कार्रवाई चल रही थी। उनके सबसे करीबी प्रफुल्ल पटेल के खिलाफ कई नए मामले शुरू हो गए। पर कुछ दिन पहले खुद पवार को भी लपेटे में लिया गया। जब उनको नोटिस मिली तो उन्होंने ईडी के दफ्तर तक जाने का फैसला किया। इससे पूरे मुंबई में हलचल मची और मुंबई पुलिस कमिश्नर के अनुरोध पर पवार ने ईडी के दफ्तर तक मार्च का अपना कार्यक्रम स्थगित किया। इस नोटिस ने पवार को ज्यादा आक्रामक बनाया। उन्होंने नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर खुल कर हमले किए। नतीजों से पता चलता है कि उनके खिलाफ कार्रवाई काम नहीं आई। वे पिछली बार की 41 के मुकाबले अपनी पार्टी को 54 सीट जिताने में कामयाब रहे।

यहीं स्थिति हरियाणा में भूपेंदर सिंह हुड्डा के साथ हुई थी। हुड्डा के ऊपर मानेसर जमीन घोटाले, पंचकूली भूखंड आवंटन, एजेएल को जमीन आवंटन जैसे कई मुद्दों में उलझाया गया है। कई केंद्रीय व राज्य सरकार की एजेंसियां उनकी जांच कर रही हैं। कई बार उनके और उनके करीबियों के यहां छापे मारे जा चुके हैं। एक तरफ हुड्डा एजेंसियों के निशाने पर हैं तो दूसरी ओर जेल में बंद ओमप्रकाश चौटाला को लगातार पैरोल मिलती रही और इस दौरान उनको खुल कर चुनाव प्रचार भी करने दिया गया। नतीजा क्या हुआ? हुड्डा कांग्रेस को 31 सीट जिताने में कामयाब रहे, जबकि चौटाला की पार्टी सिर्फ एक सीट जीत पाई।

इसी तरह कमलनाथ के करीबियों के यहां छापे पड़े और उनके भांजे को पकड़ कर जेल में डाला गया है। उधर बिहार में लालू प्रसाद के परिवार के खिलाफ दर्जनों मुकदमे चल रहे हैं और लालू प्रसाद खुद जेल में बंद हैं। पर मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने भाजपा की जीती झाबुआ सीट उससे छीन ली तो बिहार में राजद ने जदयू की जीती दो सीटों पर जीत हासिल की। सो, उम्मीद करनी चाहिए कि भाजपा और उसकी सरकारें इस बात को संज्ञान में लेंगी। हो सकता है कि जिनके खिलाफ कार्रवाई हो रही है उन्होंने सचमुच गड़बड़ी की हो पर जिस अंदाज में उनके खिलाफ कार्रवाई हो रही है, उससे लोगों में यह मैसेज जा रहा है कि कार्रवाई राजनीतिक बदले की भावना से की जा रही है और विरोधियों को परेशान किया जा रहा है। तभी उनको आम लोगों से सहानुभूति मिल रही है।