भारत के न्यायालयों में किस तरह की परेशानियां मौजूद हैं, ये हर कोई जानता है। बड़ी मात्रा में मामले लंबित पड़े हैं और कई पद भी खाली हैं। महज जिला स्तर पर ही 2.8 करोड़ मामले सुनवाई के इंतजार में हैं और करीब छह हजार जजों के पद खाली हैं। लेकिन न्यायालयों से जुड़ी सभी परेशानियां यहीं खत्म नहीं होतीं। देशभर की अदालतों में बुनियादी सुविधाओं की भी भारी कमी है। इन्हीं बुनियादी सुविधाओं के बारे में जानने के लिए 665 जिला अदालतों का सर्वे किया गया।
15 राज्यों में आधी से कम हैं बुनियादी सुविधाएं
नेशनल कोर्ट मैनेजमेंट सिस्टम कमिटि को साल 2012 में मुख्य न्यायाधीश और कानून मंत्रालय ने गठित किया था। इस कमिटि ने अदालतों में बुनियादी सुविधाओं की कमी और न्यायपालिका के कार्य करने की क्षमता की पहचान की। ये सर्वे कमिटि द्वारा निर्धारित नौ कारकों के आधार पर किया गया है। ये नौ कारक हैं, अदालत तक पहुंच, कोर्ट परिसर में नेविगेशन, वेटिंग एरिया, साफ-सफाई, बिना किसी बाधा के पहुंच, केस डिस्पले, सुविधाएं, सुरक्षा और वेबसाइट।
कोर्टरूम और न्यायाधीशों के लिए निवास की कमी
उदाहरण के तौर पर मुंबई में 2,248 न्यायाधीशों के लिए महज 1,763 हॉल मौजूद हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में सबसे कम केवल 885 कोर्टरूम हैं, जिनमें से 371 के निर्माण का काम अभी चल रहा है।
कौन आगे कौन पीछे ?
इस मामले में चंडीगढ़ सबसे ऊपर है। इसका स्कोर पूरा 100 फीसदी आया है। सबसे पीछे मणिपुर चंदेल कोर्ट और बिहार का अरवल कोर्ट है। जिन्हें क्रमश: छह और आठ फीसदी स्कोर मिला है। इसके अलावा दिल्ली की जिला अदालतें भी सबसे बेहतर पाई गई हैं।
केरल की बात करें तो इस मामले में केरल ने दूसरा स्थान हासिल किया है। इसके विपरीत बंगलूरू में 77 फीसदी सुविधाएं ही पाई गई हैं। बंगाल का बांकुरा कोर्ट (58 फीसदी) सबसे अच्छा है। जबकि कोलकाता के तीन कोर्ट बुनियादी सुविधाओं के मामले में सबसे पीछे हैं। इनमें से दो अदालतों का स्कोर महज 18 फीसदी रहा है।
कई जिला अदालतों में शौचालय भी नहीं
कोर्ट तक पहुंच: 19 फीसदी अदालत ऐसी हैं, जहां सार्वजनिक परिवहन से नहीं जाया जा सकता। 20 फीसदी में पार्किंग की सुविधा नहीं है।
नेविगेशन: 80 फीसदी अदालतों में गाइड मैप्स की कमी है। 55 फीसदी अदालतों के परिसर में हेल्प डेस्क ही नहीं हैं।
साफ-सफाई: 60 फीसदी अदालतों के शौचाल्य पूरी तरह से कार्य में नहीं हैं। 47 फीसदी अदालतों में हर फ्लोर पर शौचालयों की कमी है।
बिना रुकावट के पहुंच: 73 फीसदी अदालतों में लिफ्ट और रैंप्स नहीं हैं। दिव्यांग लोगों के लिए अलग से शौचालय की सुविधा 89 फीसदी अदालतों में नहीं है। वहीं 98 फीसदी अदालतों में विजुअल एड फीचर्स की कमी है।
सुरक्षा: 89 फीसदी अदालतों के कॉम्पलैक्स एंट्रेंस में सामान की स्कैनिंग की सुविधा नहीं है। 29 फीसदी अदलातों में अग्निशमक की कमी है और 52 फीसदी अदालतों के कॉम्पलैक्स में आपातकालीन निकास की सुविधा नहीं है।
केस डिस्पले: 74 फीसदी अदालतों के प्रवेश और वेटिंग एरिया में इलैक्ट्रोनिक केस डिस्पले की सुविधा नहीं है।
वेटिंग एरिया: 46 फीसदी अदालतों में वेटिंग एरिया की कमी है।
वेबसाइट: 89 फीसदी वेबसाइट में केस ऑर्डर, कैजुएलिट्स और स्टेटस अपलोड किया जाता है।
अन्य सुविधाएं: 39 फीसदी राज्यों में सुविधापूर्ण अदालत परिसर हैं।
इन सबके अलावा अदालतों में फोटो कॉपी की 100 फीसदी, टाइपिस्ट की 98 फीसदी और स्टैंप वेंडर्स की 97 फीसदी सुविधा उपलब्ध है। जबकि बैंक ब्रांच केवल 63 फीसदी और प्राथमिक उपचार केवल 59 फीसदी अदालतों में ही उपलब्ध हैं।

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