आज की दुनिया के सामने वैसे तो अनेक गंभीर समस्याएं हैं, पर इन सभी समस्याओं को प्रभावित करती हुई एक अधिक व्यापक समस्या यह है कि धरती की जीवनदायिनी क्षमता ही खतरे में है। जिन स्थितियों में धरती पर बहुत विविधता भरा जीवन पिछले लाखों वर्षों से पनप सका, धरती की वह जीवनदायिनी क्षमता खतरे में है। इसकी एक वजह है ग्रीनहाउस गैसों का तेजी से बढ़ना, जिससे धरती पर विभिन्न गैसों की विशेष अनुपात में मौजूदगी प्रभावित हो रही है। इन विभिन्न गैसों के कारण ही पृथ्वी पर इतना विविधता भरा जीवन पनप सका। ग्रीनहाउस गैसों, खासकर कार्बन डाईआक्साईड की बढ़ोतरी से विशिष्ट तौर पर जलवायु परिवर्तन की समस्या और धरती का औसत तापमान बढ़ने की समस्या भी जुड़ी है। इससे जुड़ी हुई बहुत-सी अन्य पर्यावरणीय समस्याएं भी हैं, जैसे जल संकट, वायु प्रदूषण, खाद्य-सुरक्षा का संकट, वन-विनाश, जैव-विविधता का तेज ह्रास, खतरनाक रसायनों व उत्पादों का तेज प्रसार आदि।
दूसरा बड़ा संकट महाविनाशक हथियारों की मौजूदगी से है। एक ओर पृथ्वी पर 14,500 परमाणु हथियार मौजूद हैं, दूसरी ओर उनके आधुनिकीकरण पर अरबों डॉलर का निवेश हो रहा है। नए रोबोट हथियार तेजी से आ रहे हैं, जो आगे चलकर संभवतः इससे भी बड़ा खतरा उत्पन्न कर सकते हैं और मानवीय नियंत्रण से बाहर भी जा सकते हैं। इस संकट के समाधान के लिए हमारे पास बहुत समय नहीं है। विश्व के सबसे प्रतिष्ठित जलवायु वैज्ञानिकों ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि धरती के औसत तापमान वृद्धि को 1.50 डिग्री सेल्सियस तक रोकने के लिए जो बहुत व्यापक बदलाव चाहिए, वह 2020-30 तक पूरे कर लेने चाहिए, अन्यथा यह संकट मानव नियंत्रण से बाहर हो जाएगा। परमाणु हथियारों का उपयोग एक बार हो गया तो यह कहां जाकर रुकेगा, कोई सोच नहीं सकता है।
विभिन्न प्रजातियों के लुप्त होने की रफ्तार बरकरार रही, तो धरती पर जीवन का ताना-बाना किस हद तक अस्त-व्यस्त हो जाएगा, यह नहीं कहा जा सकता। गहरी जरूरत इस बात की है कि धरती की रक्षा का समग्र कार्यक्रम विश्व स्तर पर बने और इसे उच्चतम प्राथमिकता मिले। इसे जन-आंदोलन का रूप भी देना चाहिए। अभी तक विभिन्न जन-आंदोलनों व जन-अभियानों में न्याय, समता, अमन-शांति व लोकतंत्र के मुद्दों को अधिक महत्त्व मिलता रहा है। इन सभी उद्देश्यों को धरती पर जीवन-रक्षा की व्यापक जरूरत से जोड़कर आगे बढ़ाना चाहिए।
धरती-रक्षा की दृष्टि से यह समय बहुत संवेदनशील है, अतः इस विषय पर ध्यान केंद्रित करने के लिए यह बहुत उपयोगी होगा कि 2020-30 को ‘धरती-रक्षा दशक’ के रूप में विश्व स्तर पर मान्यता मिल जाए। हालांकि इस तरह के कुछ अभियान अभी चल रहे हैं, पर उनकी पहुंच बहुत कम लोगों तक है। यह देखते हुए, कि धरती रक्षा के मुद्दों पर विभिन्न प्रमुख देशों की सरकारें समुचित ध्यान नहीं दे रही हैं, यह और भी जरूरी हो जाता है कि एक बड़े जन-अभियान के रूप में ही धरती रक्षा के मुद्दों को विमर्श के केंद्र में लाया जाए। जो मुद्दे सबसे महत्त्वपूर्ण हैं, वे आज हाशिये पर क्यों हैं, यह एक ऐसा सवाल है, जिसके बारे में आगामी दिनों में लोगों को कहीं अधिक सोचना होगा।

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