क्या विदेशियों को शांति भंग करने व नशे में आत्महत्या करने के लिए
नदी में कूद कर जान देने की भारत में छूट है ?
वरिष्ठ पत्रकार-सत्य पारीक शिप्रा पथ थानाधिकारी सुरेन्द्र यादव की बहादुरी की अच्छी खासी चर्चा शहर में है उनकी बहादुरी को सलाम करते हुए प्रेसक्लब ने उनके साथी बहादुर सिपाही के साथ पुरुषकृत कराया है , जिसके आयोजित कार्यक्रम में जयपुर जिले के जिलाधीश जगरूप सिंह यादव व एस पी योगेश दाधीच उपस्थित थे , इस कारण इन्हें पुरष्कृत कराने वालों का कोई कसूर नहीं । कसूर है तो दोनों वरिश्ठ अधिकारियों का जिन्होंने घटना की समीक्षा करने की अनदेखी करते हुए अखबार में प्रकाशित दोनों पुलिस वालों की बहादुरी के समाचार को ही अधिकृत मान कर उन्हें समानित किया जो जनकी लापरवाही है ।
जिस बहादुरी के लिए उन्हें पुरष्कृत किया गया वो क्या है ? उसकी चर्चा की जाए , बहादुरी ये कि एक विदेशी /एन आर आई महिला / लड़की नशे में धुत होकर मानसरोवर क्षेत्र में नवनिर्मित द्रियावती नदी में छलांग लगाई जो आत्महत्या का मुकदमा दायर करने व उसे गिरफ्तार करने की धाराओं वाला है , उसने शांति भंग और आत्महत्या का प्रयास किया है क्या उसे पुलिस ने गिरफ्तार किया ? नहीं किया तो क्यों नहीं किया अब तक ! पता नहीं ?
जहां से उसे पानी में से निकाला गया वहां पानी की गहराई तीन साढ़े तीन फीट से अधिक चश्मदीद लोगों के अनुसार है इस कारण डूब कर मरने की बात सिरे से ही खारिज लगती है जिसकी पुष्टि उसे पानी से निकालने वाले इंस्पेक्टर और सिपाही की वर्दी कर रही है जो कमर से नीचे तक भीगी हुई थी , बचाने की बात तब आती जब पानी में कूदने वाले को कम से कम सात फीट पानी या उससे अधिक में से डूबते हुए को बचाया जाता है मगर वहां ऐसा नहीं था जिसे डूबते को बचाने का नाम दिया जाए व बचाने वाले को अपनी जान जोखिम में डालने कर बचाव करना कहा जाए वह तो शायद खुशी खुशी पानी में हठखेलियां करने उतरी थी जिसे डूबने का प्रयास कहा गया है । ऐसा क्यों
सवाल उठता है कि क्या इंस्पेक्टर और सिपाही ने जिस डूबती हुई को बचाया था उन्हें तैरना आता है ? अगर आता है तो उनकी वर्दी पूरी क्यों नहीं भीगी हुई थी , क्या बचाते समय दोनों पुलिस वालों के सिर पर टोपी थी अगर टोपी थी तो वो पानी में क्यों नहीं गिरी ? क्या दुर्घटना स्थल पर नदी में बहाव है या पानी ठहरा हुआ है ? क्या बचाने वालों को किसी ने घटना की जानकारी दी या वे वहां पहले से ही मौजूद थे ।
अगर सूचना पर पुलिस वाले गये तो तैराकों को क्यों नही अपने साथ ले गये ? घटना स्थल पर मौजूद लोगों से क्या जानकारी ली गई कूदने वाली के बारे में , अगर वो नशे में धुत थी तो उसे बचा कर हस्पताल ले जाकर मेडिकल कराकर गिरफ्तार करना चाहिए था या नहीं ? अगर नहीं तो क्या विदेशियों को शांति भंग करने व नशे में आत्महत्या करने के लिए नदी में कूद कर जान देने की भारत में छूट है ?

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