पहले चुनाव के दौरान कहा जाता था कि हर पार्टी जीतने के लायक उम्मीदवार उतारेगी। ऐसे उम्मीदवारों की खोज होती थी और दूसरी पार्टियों से भी ऐसे उम्मीदवार पार्टियों में लाए जाते थे। अब भी पार्टियां कहती हैं कि टिकट देने का एकमात्र पैमाना चुनाव जीतने की क्षमता है। पर भाजपा ने इस पैमाने को बदल दिया है। अब वह जीतने में सक्षम नेता की तलाश नहीं करती है, बल्कि जीते हुए नेताओं को ही अपनी पार्टी में शामिल कर लेती है। सोशल मीडिया में इन दिनों यह मजाक खूब चल रहा है कि पहले कहा जाता था कि ईवीएम में बटन किसी का दबाओ वोट भाजपा को जाता है पर अब कहा जाता है कि ईवीएम से वोट देकर किसी को जिताओ वह विधायक, सांसद भाजपा में चला जाता है।
ताजा मिसाल सिक्किम की है, जहां सिक्किम डेमोक्रेटिक मोर्चा के 10 विधायक भाजपा में चले गए। राज्य में हाल में हुए विधानसभा चुनाव में 32 सीटों में से किसी सीट पर भाजपा दूसरे स्थान पर भी नहीं रही। उसको 32 सीटों पर कुल 57 सौ वोट मिले। लेकिन अब उसके पास दस विधायक हैं और वह विधानसभा में मुख्य विपक्षी पार्टी है। राज्य में सत्तारूढ़ सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के जैसे हालात हैं और मुख्यमंत्री जिन मुश्किलों में घिरे हैं, हैरानी नहीं होगी अगर कुछ दिन में भाजपा वहां सरकार बना ले।
बहरहाल, एसडीएफ छोड़ने वाले विधायकों ने कहा कि वे नरेंद्र मोदी की नीतियों से प्रभावित होकर भाजपा में गए हैं। सवाल है कि तीन महीने पहले लोग मोदी की नीतियों से प्रभावित नहीं हुए और भाजपा को वोट नहीं दिया। पर तीन महीने में विधायक ही नीतियों से प्रभावित हो गए। इसी तरह आंध्र प्रदेश में भाजपा को विधानसभा की एक भी सीट नहीं मिली पर टीडीपी के चार राज्यसभा सांसद भाजपा में शामिल हो गए। सो, आंध्र में भले भाजपा का एक भी विधायक या एक भी लोकसभा सांसद नहीं है पर चार राज्यसभा सांसद हैं। ऐसे ही गोवा में भाजपा तीन साल पहले 12 सीटों पर जीती थी पर अब उसके पास 27 विधायक हैं और 17 सीटों पर जीती कांग्रेस के पास सिर्फ पांच विधायक बचे हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें