रविवार, 4 अगस्त 2019

जम्मू-कश्मीरः जानें, क्या है धारा 370 और 35A का इतिहास

जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा क्यों मिला है? वह भारत के अन्य राज्यों से किस तरह से अलग है? वहां की राजनीति में क्या खास बात है?  इन सारे सवालों का एक मात्र जवाब है, वहां लागू धारा 370 और 35A. धारा 370 और 35A इन दिनों चर्चा में है।  जम्मू से लेकर दिल्ली तक की सियासत में इसे लेकर हो हल्ला मचा हुआ है।  ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी  है कि आखिर धारा 370 है क्या?  

धारा 370 और आर्टिकल 35A के इतिहास को समझेंगे तभी यह समझ पाएंगे कि इसे हटाना कितना मुश्किल या सरल है।  धारा 370 के बारे में विस्तार से तो संविधान की किताब में पढ़ा जा सकता है, लेकिन यहां इतना जानना काफी होगा कि इसके तहत कश्मीर राज्य तीन विषयों में भारतीय संघ से जुड़ा है और बाकी मामलों में उसे स्वायत्तता हासिल है। 

धारा 370 की पूरी कहानी

देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ।  इससे पहले जब अंग्रेज यहां से जा रहे थे तो वे भारत छोड़कर जा रहे थे, किसी रियासत को नहीं।  स्वाभाविक ही ये सभी रियासतें मिलाकर भारत ही थीं।  जब रियासतें भारत में ही थीं तो विलय का कोई मतलब ही नहीं बनता।  जब भारत से रियासतें बाहर हैं ही नहीं तो कैसा विलय? लेकिन फिर भी विलय का प्रारूप बनाया गया, 
क्योंकि भारत के दो हिस्से किए जा रहे थे।  एक का नाम पाकिस्तान और दूसरे का नाम हिंदुस्तान हुआ।  ऐसे में विलय पत्र जरूरी था। 

प्रारूप बनाकर 25 जुलाई 1947 को गवर्नर जनरल माउंटबेटन की अध्यक्षता में सभी रियासतों को बुलाया गया।  इन सभी रियासतों को बताया गया कि आपको अपना विलय करना है।  वह हिंदुस्तान में करें या पाकिस्तान में, यह आपका निर्णय है।  उस विलय पत्र को सभा में बांट दिया गया।  यह विलय पत्र सभी रियासतों के लिए एक ही फॉर्मेट में बनाया गया था जिसमें कुछ भी लिखना या काटना संभव नहीं था। 

बस उस पर रियासतों के प्रमुख राजा या नवाब को अपने नाम पता, देश का नाम और सील लगाकर उस पर दस्तखत करके इसे गवर्नर को देना था और गवर्नर को यह निर्णय लेना था कि कौन सा राजा किस देश के साथ रह सकता है।   26 अक्टूबर 1947 को जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराजा हरिसिंह ने अपनी रियासत के भारत में विलय के लिए विलय-पत्र पर दस्तखत किए थे। 

माउंटबेटन ने 27 अक्टूबर को इसे मंजूरी दी।  न इसमें कोई शर्त शुमार थी और न ही रियासत के लिए विशेष दर्जे जैसी कोई मांग।  इस वैधानिक दस्तावेज पर दस्तखत होते ही समूचा जम्मू और कश्मीर, जिसमें पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाला इलाका भी शामिल है, भारत का अभिन्न अंग बन गया।  बाद के वर्षों में सरदार पटेल की पहल पर रियासत और राज्य दोनों के ही कानून एक हो जो केंद्र के संविधान के अधीन थे।  

इस तरह से आय़ा धारा 370

17 अक्टूबर 1949 को एक एक ऐसी घटना घटी जिसके कारण आजतक  जम्मू और कश्मीर विवाद का विषय है।  दरअसल, संसद में गोपाल स्वामी अयंगार ने कहा कि हम जम्मू और कश्मीर को नया आर्टिकल देना चाहते हैं।  तब महाराजा हरिसिंह के दीवान रहे गोपाल स्वामी अयंगार भारत की पहली कैबिनेट में मंत्री थे।  संसद में उनसे जब यह पूछा गया कि क्यों?
तो उन्होंने कहा कि आधे कश्मीर पर पाकिस्तान ने कब्जा कर लिया है और इस राज्य के साथ समस्याएं हैं।  आधे लोग उधर फंसे हुए हैं और आधे इधर तो अभी वहां की स्थिति अन्य राज्यों की अपेक्षा अलग है तो ऐसे में वहां के लिए फिलहाल नए आर्टिकल की जरूरत होगी, क्योंकि अभी जम्मू और कश्मीर में पूरा संविधान लागू करना संभव नहीं होगा।   अस्थायी तौर पर उसके लिए 370 लागू करना होग।  जब वहां हालात सामान्य हो जाएंगे तब इस धारा को भी हटा दिया जाएगा।  फिलहाल वहां धारा 370 से काम चलाया जा सकता है। 

उल्लेखनीय है कि सबसे कम समय में चर्चा के बाद यह आर्टिकल संसद में पास हो गया।  यह संविधान में सबसे आखिरी में जोड़ी गई धारा थी।  भारतीय संविधान के 21वें भाग का 370 एक अनुच्छेद है।   इस धारा के 3 खंड हैं. इसके तीसरे खंड में लिखा है कि भारत का राष्ट्रपति जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा के परामर्श से धारा 370 कभी भी खत्म कर सकता है।  हालांकि अब तो संविधान सभा रही नहीं, ऐसे में राष्ट्रपति को किसी से परामर्श लेने की जरूरत नहीं। 


यहां यह समझने वाली बात यह है कि धारा 370 भारत की संसद लेकर आई है और वहीं इसे हटा सकती है।  इस धारा को कोई जम्मू और कश्मीर की विधानसभा या वहां का राजा नहीं लेकर आया, जो हटा नहीं सकते हैं।  यह धारा इसलिए लाई गई थी, क्योंकि तब वहां युद्ध जैसे हालात थे और उधर (पीओके) की जनता इधर पलायन करके आ रही थी।  ऐसे में वहां भारत के संपूर्ण संविधान को लागू करना तत्कालीन प्रधानमंत्री शायद प.जवाहर लाल नेहरू ने उचित नहीं समझा था। 

जम्मू कश्मीर के पास क्या विशेष अधिकार हैं

- धारा 370 के प्रावधानों के मुताबिक संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है। 

- किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की सहमति लेनी पड़ती है।

- इसी विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती।  राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है। 

- 1976 का शहरी भूमि कानून भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता। 

- भारत के अन्य राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते। 

- भारतीय संविधान की धारा 360 यानी देश में वित्तीय आपातकाल लगाने वाला प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता। 

दिल्ली समझौता और  धारा 35 A 

जम्मू-कश्मीर के भारत में शामिल होने के बाद शेख अब्दुल्ला वहां के अंतरिम प्रधानमंत्री बने।  1952 में जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला और भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बीच एक समझौता हुआ, जिसे दिल्ली समझौता कहा जाता है।  इस दिल्ली समझौते के तहत संविधान की धारा 370 (1) (D) के तहत भारत के राष्ट्रपति को जम्मू और कश्मीर के ‘राज्य विषयों’ के लाभ के लिए संविधान में “अपवाद और संशोधन” करने की ताकत देती है। 

इसका इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 14 मई 1954 को एक आदेश के जरिए धारा 35 A को लागू किया।  ये धारा जम्मू-कश्मीर की सरकार और वहां की विधानसभा को जम्मू-कश्मीर का स्थायी नागरिक तय करने का अधिकार देती है।  इसी धारा के आधार पर 1956 में जम्मू कश्मीर ने राज्य में स्थायी नागरिकता की परिभाषा तय कर दी, जो अब सबसे बड़ी विवाद की जड़ है। 

डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने किया था विरोध

पंडित जवाहर लाल नेहरू कैबिनेट में उद्योग और आपूर्ति मंत्री रहे डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने धारा 370 का कड़ा विरोध किया था।  डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू कश्मीर को एक अलग दर्जा दिए जाने के विरोधी थे।  इस के लिए उन्होंने ‘एक देश में दो वि‍धान, दो नि‍शान और दो प्रधान नहीं चलेगा’ का नारा दिया।  मतभेदों के कारण उन्होंने मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था।  इसके बाद उन्होंने नई राजनैतिक पार्टी ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना की थी।  

वर्ष 1953 में श्यामा प्रसाद बिना परमिट के जम्मू कश्मीर की यात्रा पर निकले थे।   ऐसा करने के लिए उन्हें 11 मई 1953 को गिरफ्तार कर लिया गया गया था।  गि‍रफ्तारी के कुछ दि‍न बाद ही 23 जून 1953 को उनकी रहस्‍यमय परिस्थितियों में मौत हो गई।  बता दें कि 370 के मुताबिक कश्मीर में बिना  परमिट यात्रा करना अवैध था, जिसे बाद में हटा दिया गया। 

आर्टिकल 35A में लिखा है

1. जम्मू-कश्मीर का स्थायी नागरिक वह व्यक्ति है, जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के 10 वर्षों से राज्य में रह रहा हो, साथ ही उसने वहां संपत्ति हासिल की हो। 

2. भारत के किसी अन्य राज्य का निवासी जम्मू और कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं बन सकता है और इसी कारण वो वहां वोट नहीं डाल सकता है। 

3. राज्य किसी गैरकश्मीरी व्यक्ति को कश्मीर में जमीन खरीदने से रोकता है। 

3. अगर जम्मू और कश्मीर की कोई लड़की किसी बाहर के लड़के से शादी कर लेती है तो उसके सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं, साथ ही उसके बच्चों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं। 

4. राज्य सरकार किसी कानून को अपने हिसाब से बदलती है तो उसे किसी भी कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है। 

5. कोई भी बाहरी व्यक्ति राज्य में व्यापारिक संस्थान नहीं खोल सकता है।  

जानकारों के भी हैं अपने-अपने तर्क

यह माना जाता है कि भारत की संसद, राज्यसभा और राष्ट्रपति मिलकर धारा 370 और आर्टिकल 35A को हटाने की शक्ति रखते हैं। 

संविधान के जानकारों के मुताबिक संविधान में 35 (a) का जिक्र है, जो जम्मू-कश्मीर से जुड़ा हुआ नहीं है।  राष्ट्रपति ने जम्मू-कश्मीर से जुड़ा जो आदेश दिया है, वो आर्टिकल 35 (A) है। 

वहीं संविधान में जब-जब संशोधन किया जाता है, उसका जिक्र संविधान की किताब में किया जाता है।  अब तक के हुए संशोधनों में आर्टिकल 35 (A) का जिक्र नहीं है।  हालांकि इस धारा को संविधान के परिशिष्ट (अपेंडिक्स) में शामिल किया गया है। 

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