कहते हैं कि इतिहास अपने को दोहराता है- त्रासदी की शक्ल में या तमाशे की शक्ल में। कम से कम पी चिदंबरम और अमित शाह के मामले में इतिहास दोहराने की बात जरूर कही जा सकती है। करीब नौ साल पहले यूपीए के दूसरे कार्यकाल में पी चिदंबरम को वित्त मंत्रालय से निकाल कर गृह मंत्री बनाया गया था। उस समय अमित शाह गुजरात के गृह मंत्री थे। तब सीबीआई ने कथित तौर पर फर्जी इनकाउंटर के मामले में अमित शाह को गिरफ्तार किया था। वे जेल में रखे गए थे और बाद में उनको गुजरात से बाहर रहने का आदेश दिया गया था। उस निर्वासन का काफी समय उन्होंने दिल्ली में गुजारा था। तभी उन्होंने दिल्ली में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का मूड समझा था और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दिल्ली कूच की योजना बनाई थी।
बहरहाल, अब नौ साल के बाद अमित शाह देश के गृह मंत्री हैं और पी चिदंबरम एक नहीं, बल्कि दो-दो केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर हैं। सीबीआई और ईडी दोनों उनके और उनके बेटे कार्ति चिदंबरम के पीछे पड़े हैं। मंगलवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने चिदंबरम की अंतरिम जमानत खारिज की और उसके दो घंटे के भीतर सीबीआई और ईडी दोनों चिदंबरम के घर पहुंच गए। सीबीआई ने तो दो घंटे में उनको अपने सामने हाजिर होने का नोटिस दिया। भाजपा के नेता इसे प्राकृतिक न्याय कह रहे हैं और कांग्रेस के नेता बदले की कार्रवाई बता रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि दिल्ली में भाजपा की राजनीति का केंद्र रहे एक वरिष्ठ नेता के बीमार होने और राजनीति व सरकार से दूर होने का सबसे बड़ा नुकसान चिदंबरम को हुआ है। चिदंबरम के खिलाफ जांच करने वाले ईडी के अधिकारी को इनाम के बदले उन्हें दिल्ली से बाहर भेज देने की घटना का जिक्र करके सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी इशारों इशारों में इसका जिक्र किया है।

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