बुधवार, 7 अगस्त 2019

फैसले की जल्दी क्या थी ?

जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म करने की ऐसी क्या जल्दी थी, जो अमरनाथ यात्रा बीच में रोक कर इसका फैसला किया गया? सरकार यह फैसला 15 अगस्त को अमरनाथ यात्रा खत्म होने के बाद भी कर सकती थी। संविधान की जो व्यवस्था पिछले 70 साल से भारत राष्ट्र राज्य के गले की फांस बनी हुई थी वह दस दिन और रह जाती तो क्या हो जाता? अगर किसी सामान्य राजनेता की सोच के हिसाब से देखें तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ना था। फैसला दस दिन बाद हो जाता। पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह की नजर से देखें तो इसके कारण बहुत स्पष्ट दिखेंगे। 

पहला कारण यह है कि मोदी और शाह अपने हर फैसले का अधिकतम राजनीतिक लाभ लेने का प्रयास करते हैं। याद करें कैसे नोटबंदी का फैसला नवंबर 2016 में किया गया, जिसके चार महीने बाद उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले थे। भाजपा काले धन के खिलाफ वोट मांग कर सत्ता में आई थी तो उसे नोटबंदी का फैसला मई 2014 में सरकार बनने के तुरंत बाद करना चाहिए था। पर वह फैसला ढाई साल के बाद हुआ। उसका कैसा फायदा भाजपा को उत्तर प्रदेश में मिला और सपा-बसपा जैसी पार्टियों को कैसा नुकसान हुआ, यह सबको पता है। इसी तरह से कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला ऐसे समय में किया गया, जब तीन राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। 

अगर यह फैसला अभी नहीं होता तो सरकार को या तो संसद का अलग से सत्र बुलाना होता या अगले सत्र तक इंतजार करना होता, तब तक राज्यों के चुनाव हो जाते। सो, फैसले की टाइमिंग को गौर से देखें। संसद का सत्र चल रहा था और अमरनाथ की यात्रा भी चल रही थी। इस फैसले के लिए सत्र दस दिन बढ़ाया गया और फिर अमरनाथ यात्रा रोकी गई। अगर किसी सामान्य समय में यह फैसला होता तो इसका इतना माहौल नहीं बनता, जितना अमरनाथ यात्रा रोकने से बना है। इससे पहले कभी भी अमरनाथ यात्रा नहीं रोकी गई थी। तभी जब यात्रा रोकी गई तो पूरे देश में खास कर हिंदू समाज में यह मैसेज गया कि सरकार बहुत बड़ा काम करने जा रही है। यानी काम होने से पहले इ बहुत बड़ा काम होने का मैसेज प्रचारित हुआ। यह प्रचार बाद में फैसला करने पर नहीं मिलता। सो, हर तरह से फैसले के पहले से हाइप बनाई गई। 

फैसले की टाइमिंग इस लिहाज से भी अहम है क्योंकि 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने दूसरे कार्यकाल का पहला स्वतंत्रता दिवस मनाना है। इस मौके पर उनके पास भाषण के लिए इससे अच्छा क्या विषय हो सकता था? इस फैसले के बहाने इस साल तिरंगा यात्रा का माहौल भी कुछ अलग होगा और प्रधानमंत्री के भाषण का मूड भी कुछ अलग होगा। इसका भी राजनीतिक फायदा भाजपा को चुनावों में होगा। 

कुछ दिन पहले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से मुलाकात के बाद कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी ने उनसे कश्मीर में मध्यस्थता करने को कहा था। यह सीधे नरेंद्र मोदी की छवि पर हमला था, जिसका जवाब सिर्फ विदेश मंत्रालय के खंडन से नहीं दिया जा सकता था। जबकि राज्यों के चुनाव से पहले जवाब दिया जाना भी जरूरी थी। कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला करके उसका भी जवाब दे दिया गया। तभी यह प्रचार है कि मोदी ने ट्रंप को मुंहतोड़ जवाब दिया है। 

घरेलू राजनीति के अलावा इस फैसले में जल्दी का सामरिक और कूटनीतिक कारण भी है। अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबान के साथ सहमति बनाई है। अमेरिकी फौज की वापसी के बाद एक तरह से वहां तालिबान की सत्ता बननी है, जिसकी सीधी मार कश्मीर में भारत को झेलनी पड़ेगी। पहले भी तालिबान के राज में भारत ऐसी मार झेल चुका है। तालिबान के राज में बरसों तक अफगान लड़ाके कश्मीर में आकर लड़ते रहे थे। इस वजह से भी बिना देरी किए सरकार ने कश्मीर पर यह अहम फैसला किया। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें