शनिवार, 31 अगस्त 2019

दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी क्या करे ?

किसी जमाने में चीन और रुस की कम्युनिस्ट पार्टियां दुनिया की सबसे बड़ी पार्टियां हुआ करती थीं, क्योंकि इन देशों में दूसरी पार्टियों को जिन्दा ही नहीं रहने दिया जाता था। इनके करोड़ों सदस्य होते थे। रुस में दो करोड़ और चीन-जैसे सबसे बड़े देश में नौ करोड़ सदस्य लेकिन अब दुनिया चाहे तो अपने दांतों तले उंगली दबाए क्योंकि भारत-जैसे लोकतांत्रिक देश में भाजपा के 18 करोड़ सदस्य हो गए हैं। 

पिछले दिनों चले सदस्यता अभियान में भाजपा ने अपने 11 करोड़ सदस्यों में लगभग 7 करोड़ नए सदस्य जोड़ लिये। वह जितने जोड़ना चाहती थी, उससे ढाई गुना ज्यादा जुड़ गए। किसी जमाने में कांग्रेस भारत की ही नहीं, दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी पार्टी हुआ करती थी लेकिन वह अब बस सबसे पुरानी ही रह गई है। 

भारत में नागरिकों को पूरी आजादी है कि वे सैकड़ों पार्टियों में से किसी के भी सदस्य बन सकते हैं लेकिन भाजपा में सदस्यता की यह बाढ़ क्यों आ रही है ? क्योंकि वह सत्तारुढ़ है और साधारण लोगों को उसका भविष्य उज्जवल और सबल दिखाई पड़ रहा है। इसके अलावा कश्मीर के पूर्ण विलय ने आम भारतीयों के दिल में नई रोशनी भर दी है। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद लोग भाजपा में इसलिए नहीं आ रहे हैं कि वे भाजपा की विचारधारा से सम्मोहित हैं। 

सदस्यता की इस बाढ़ से गदगद भाजपा नेताओं को यह पता होना चाहिए कि सत्ता से हटते ही उनके लिए उमड़ी हुई यह बाढ़ लौटती लहरों की बारात बन जाएगी। इसीलिए बेहतर होगा कि इन करोड़ों नए सदस्यों को काम पर लगाया जाए। इन्हें सिर्फ वोट और नोट के लिए इस्तेमाल न किया जाए। इनसे कहा जाए कि ये आदर्श नागरिक बनकर दिखाएं। इन्हें पेड़ लगाने, स्वच्छता अभियान चलाने, दहेज और रिश्वत लेने-देने का विरोध करने, नशाबंदी, प्लास्टिकबंदी, स्वभाषा आंदोलन, जातिवाद-उन्मूलन, पाखंड-खंडन, सांप्रदायिकता और सामूहिक हिंसा परित्याग आदि के अभियान चलाने के लिए प्रेरित किया जाए। 

यदि भाजपा के 18 करोड़ सक्रिय सदस्य जागरुक होकर काम करें तो देश के 130 करोड़ लोगों के लिए वे प्रेरणा के स्त्रोत बन जाएंगे। नौकरशाही पर टिकी सरकारें तब सचमुच लोकशाही के सहारे चला करेंगी। भारत में सामाजिक परिवर्तन का एक चमत्कारी दौर शुरु हो जाएगा।

शुक्रवार, 30 अगस्त 2019

वित्त मंत्री सीतारमण का ऐलान : पीएनबी, यूनाइटेड बैंक और ओरिएंटल बैंक समेत कई बैंकों का होगा आपस में विलय

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने  सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के भविष्य को लेकर घोषणा करते हुए कहा कि पंजाब नेशनल बैंक, यूनाइटेड बैंक, ओरिएंटल बैंक, यूनियन बैंक, कॉरपोरेशन बैंक, आंध्रा बैंक, इंडियन बैंक, इलाहाबाद बैंक, केनरा बैंक और सिंडिकेट बैंक का विलय किया जायेगा। इन बैंकों के विलय के बाद एक बड़ा बैंक बनेगाट। एक हफ्ते के अंदर अपनी दूसरी प्रेस वार्ता में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि देश के बैंकिंग क्षेत्र में कई बड़े सुधार किये गये। बैंको ने उपभोक्ताओं के हित में घोषणाएं कीं।



यूनियन बैंक के साथ आंध्रा बैंक और कॉरपोरेशन बैंक का विलय होगा। विलय के बाद ये देश का सबसे बड़ा पांचवां बैंक हो जायेगा। केनरा बैंक और सिंडिकेट बैंक में विलय होगा और यह देश का सबसे बड़ा चौथा सरकारी बैंक होगा, जिसकी पूंजी 15.20 लाख करोड़ होगी। पंजाब नेशनल बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और यूनाइटेड बैंक का विलय होगा और यह बैंक देश का दूसरा सबसे बड़ा सरकारी बैंक हो जायेगा। इसका सालाना कारोबार 17.95 लाख करोड़ का होगा। इसके अलावा, इंडियन बैंक और इलाहाबाद बैंक का आपस में विलय होगा। इंडियन बैंक और इलाहाबाद बैंक के विलय से 8.08 लाख करोड़ रुपये के कारोबार के साथ सार्वजनिक क्षेत्र का 7वां बड़ा बैंक बनेगा।

वित्त मंत्री ने कहा कि पंजाब नेशनल बैंक को 16,000 करोड़, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया को 11,700 करोड़, बैंक ऑफ बड़ौदा को 7,000 करोड़, केनरा बैंक को 6,500 करोड़ रुपये, इंडियन बैंक को 2,500 करोड़ रुपये मिलेंगे. इसके अलावा, इंडियन ओवरसीज बैंक को 3,800 करोड़, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया 3,300 करोड़, यूको बैंक 2,100 करोड़ रुपये, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया को 1,600 करोड़ और पंजाब एंड सिंध बैंक को 750 करोड़ रुपये मिलेंगे।

उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था को पांच लाख करोड़ डॉलर तक पहुंचाने को लेकर काम जारी है और इसके लिए हम प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने कहा कि बड़े कर्ज पर नजर बनाये रखने के लिए निगरानी संकेत एजेंसी का गठन किया जायेगा। इसके तहत 250 करोड़ से अधिक पर निगरानी संकेत एजेंसी की नजर बनी रहेगी।

वित्त मंत्री ने कहा कि 18 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 14 बैंकों का मुनाफा बढ़ा है और देश के बैंकों में गैर-निष्पादित आस्तियों (एनपीए) में कमी आयी है. इसके अलावा, उन्होंने बैंकों के कर्मचारियों को आश्वस्त भी किया है कि बैंकिंग सेक्टर में और खासकर सरकारी बैंकों में कर्मचारियों की छंटनी नहीं की जायेगी।

इसके साथ ही, उन्होंने यह भी का कि देश के आठ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने ब्याज दरों को रेपो रेट से जोड़ लिया है। मेरे पिछले ऐलान के बाद चार एनबीएफसी ने अपने समस्याओं का समाधान बैंकों के जरिये किया है। उन्होंने कहा कि हमें वित्तीय क्षेत्र के लिए मजबूत आधार तैयार करना होगा। उन्होंने कहा कि देश में करीब तीन लाख फर्जी कंपनियां बंद की गयीं और भगोड़ों पर कार्रवाई जारी रहेगी। उन्होंने यह भी कहा कि नीरव मोदी जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए हमारी नजर बनी रहेगी।

खतरे में पृथ्वी की जीवनदायिनी क्षमता

आज की दुनिया के सामने वैसे तो अनेक गंभीर समस्याएं हैं, पर इन सभी समस्याओं को प्रभावित करती हुई एक अधिक व्यापक समस्या यह है कि धरती की जीवनदायिनी क्षमता ही खतरे में है। जिन स्थितियों में धरती पर बहुत विविधता भरा जीवन पिछले लाखों वर्षों से पनप सका, धरती की वह जीवनदायिनी क्षमता खतरे में है। इसकी एक वजह है ग्रीनहाउस गैसों का तेजी से बढ़ना, जिससे धरती पर विभिन्न गैसों की विशेष अनुपात में मौजूदगी प्रभावित हो रही है। इन विभिन्न गैसों के कारण ही पृथ्वी पर इतना विविधता भरा जीवन पनप सका। ग्रीनहाउस गैसों, खासकर कार्बन डाईआक्साईड की बढ़ोतरी से विशिष्ट तौर पर जलवायु परिवर्तन की समस्या और धरती का औसत तापमान बढ़ने की समस्या भी जुड़ी है। इससे जुड़ी हुई बहुत-सी अन्य पर्यावरणीय समस्याएं भी हैं, जैसे जल संकट, वायु प्रदूषण, खाद्य-सुरक्षा का संकट, वन-विनाश, जैव-विविधता का तेज ह्रास, खतरनाक रसायनों व उत्पादों का तेज प्रसार आदि।

दूसरा बड़ा संकट महाविनाशक हथियारों की मौजूदगी से है। एक ओर पृथ्वी पर 14,500 परमाणु हथियार मौजूद हैं, दूसरी ओर उनके आधुनिकीकरण पर अरबों डॉलर का निवेश हो रहा है। नए रोबोट हथियार तेजी से आ रहे हैं, जो आगे चलकर संभवतः इससे भी बड़ा खतरा उत्पन्न कर सकते हैं और मानवीय नियंत्रण से बाहर भी जा सकते हैं। इस संकट के समाधान के लिए हमारे पास बहुत समय नहीं है। विश्व के सबसे प्रतिष्ठित जलवायु वैज्ञानिकों ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि धरती के औसत तापमान वृद्धि को 1.50 डिग्री सेल्सियस तक रोकने के लिए जो बहुत व्यापक बदलाव चाहिए, वह 2020-30 तक पूरे कर लेने चाहिए, अन्यथा यह संकट मानव नियंत्रण से बाहर हो जाएगा। परमाणु हथियारों का उपयोग एक बार हो गया तो यह कहां जाकर रुकेगा, कोई सोच नहीं सकता है। 

विभिन्न प्रजातियों के लुप्त होने की रफ्तार बरकरार रही, तो धरती पर जीवन का ताना-बाना किस हद तक अस्त-व्यस्त हो जाएगा, यह नहीं कहा जा सकता। गहरी जरूरत इस बात की है कि धरती की रक्षा का समग्र कार्यक्रम विश्व स्तर पर बने और इसे उच्चतम प्राथमिकता मिले। इसे जन-आंदोलन का रूप भी देना चाहिए। अभी तक विभिन्न जन-आंदोलनों व जन-अभियानों में न्याय, समता, अमन-शांति व लोकतंत्र के मुद्दों को अधिक महत्त्व मिलता रहा है। इन सभी उद्देश्यों को धरती पर जीवन-रक्षा की व्यापक जरूरत से जोड़कर आगे बढ़ाना चाहिए।

धरती-रक्षा की दृष्टि से यह समय बहुत संवेदनशील है, अतः इस विषय पर ध्यान केंद्रित करने के लिए यह बहुत उपयोगी होगा कि 2020-30 को ‘धरती-रक्षा दशक’ के रूप में विश्व स्तर पर मान्यता मिल जाए। हालांकि इस तरह के कुछ अभियान अभी चल रहे हैं, पर उनकी पहुंच बहुत कम लोगों तक है। यह देखते हुए, कि धरती रक्षा के मुद्दों पर विभिन्न प्रमुख देशों की सरकारें समुचित ध्यान नहीं दे रही हैं, यह और भी जरूरी हो जाता है कि एक बड़े जन-अभियान के रूप में ही धरती रक्षा के मुद्दों को विमर्श के केंद्र में लाया जाए। जो मुद्दे सबसे महत्त्वपूर्ण हैं, वे आज हाशिये पर क्यों हैं, यह एक ऐसा सवाल है, जिसके बारे में आगामी दिनों में लोगों को कहीं अधिक सोचना होगा।

गुरुवार, 29 अगस्त 2019

मेघवाल ने अनुसूचित जाति उपयोजना के कार्यो की प्रगति की समीक्षा की

जयपुर। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री भंवर लाल मेघवाल की अध्यक्षता में आज गुरूवार को शासन सचिवालय के कांफ्रेंस हॉल में अनुसूचित जाति उपयोजनान्तर्गत गठित राज्य स्तरीय समिति स्टीयरिंग कमेटी की बैठक आयोजित की गई।

बैठक में अनुसूचित जाति उपयोजना के अन्तर्गत वर्ष 2018-19 में हुए व्यय की विभागवार समीक्षा तथा वर्ष 2019-20 के प्रावधान और व्यय की समीक्षा की गई। 

बैठक में मेघवाल ने विभागवार संचालित विभिन्न योजनाओं के अन्तर्गत अनुसूचित जाति के लाभार्थियों की जानकारी विस्तार से प्राप्त की। उन्होंने विभिन्न विभागों के अधिकारियों को निर्देश दिये कि वे उनके द्वारा संचालित परियोजनाओं को क्रियान्वित करते समय इस बात का ध्यान रखें कि उनका लाभ गांव, ढाणी और छितराई हुई आबादी में बसने वाले अनुसूचित जाति वर्ग को पहुंचे। उन्होंने कहा कि इस योजना का उद्देश्य सिर्फ वित्तीय प्रावधान किये जाने तक सीमित नहीं है बल्कि इसका भौतिक लाभ स्पष्ट दिखाई भी दे यह सुनिश्चित किया जावे। उन्होंने कहा कि इस योजना का उद्देश्य गरीब को गणेश मानकर सच्चे अथोर्ं में उसकी सेवा करना है। 

उल्लेखनीय है कि सभी विभागों को अपनी वार्षिक योजना में अनुसूसूचित जाति की जनसंख्या 17.83 प्रतिशत के अनुपात में वित्तीय प्रावधान करने के निर्देश हैं। इसके तहत राज्य के कुल बजट में से विभिन्न विभागों का कुल 21079.48 करोड़ रूपये उपयोजना के अन्तर्गत प्रावधान है। 

मेघवाल ने अधिकारियों को अगली बैठक तीन माह पश्चात् आयोजित करने के निर्देश प्रदान करते हुए भौतिक प्रगति की विस्तृत जानकारी के साथ उपस्थित होने के लिये कहा। 

बैठक में अभय कुमार, प्रमुख शासन सचिव, सहकारिता एवं आयोजना, अखिल अरोरा, प्रमुख शासन सचिव, सामजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग सहित अन्य विभागों के वरिष्ठ अधिकारीगण मौजूद रहे। 

पटना हाईकोर्ट के जज ने कहा- भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देती है न्यायपालिका

पटना उच्च न्यायालय के जज न्यायमूर्ति राकेश कुमार के तत्काल प्रभाव से केसों की सुनवाई करने पर रोक लग गई है। पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने नोटिस जारी करते हुए कहा है कि न्यायमूर्ति राकेश कुमार किसी भी केस की सुनवाई नहीं कर सकेंगे। उन्होंने अपने वरिष्ठ और मातहतों के काम करने के तरीके पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा था कि लगता है कि उच्च न्यायालय प्रशासन ही भ्रष्ट न्यायिक अधिकारियों को संरक्षण देता है।  


न्यायमूर्ति राकेश कुमार ने पूर्व आईपीएस अधिकारी रमैया के मामले की सुनवाई के दौरान अपने सहयोगी न्यायधीशों पर मुख्य न्यायधीश के आगे-पीछे रहने का आरोप लगाया था। सुनवाई के दौरान उन्होंने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय से रमैया की जमानत खारिज होने के बाद उन्हें निचली अदालत से जमानत मिलने पर सवाल उठाए थे। उन्होंने पूछा था कि निचली अदालत ने कैसे उन्हें (रमैया को) जमानत दे दी। 

 सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि जिस अधिकारी को भ्रष्टाचार के मामले में बर्खास्त किया जाना चाहिए उसे  मामूली सजा देकर छोड़ा जा रहा है। माना जा रहा है कि न्यायमूर्ति राकेश कुमार की तल्ख टिप्पणी के मद्देनजर उन्हें सभी केसों की सुनवाई करने से रोका गया है। उन्होंने कहा कि रमैया की अग्रिम जमानत की याचिका उच्च न्यायलय और उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दी थी। इसके बाद उन्होंने निचली अदालत से तब जमानत ली जब निगरानी विभाग के नियमित जज छुट्टी पर थे। उनके बदले जो जज कार्यभार संभाल रहे थे उनसे जमानत कैसे ली गई।

न्यायमूर्ति कुमार ने कहा कि जिस न्यायिक अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध हो जाते हैं उन्हें बर्खास्त करने की बजाए मामूली सजा देकर छोड़ दिया जाता है। स्टिंग में यदि कोई अदालती कर्मचारी रिश्वत लेते हुए पकड़ा जाता है तो उसपर भी कोई कार्रवाई नहीं होती। उन्होंने खुद स्टिंग का स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी है। इस दौरान उन्होंने सरकारी बंगलों पर होने वाली फिजूलखर्ची का भी जिक्र किया।

उन्होंने कहा कि जजों के सरकारी बंगलों को सजाने के लिए करदाताओं के करोड़ों रुपये खर्च कर दिए जाते हैं। न्यायमूर्ति कुमार ने अपने आदेश की प्रति सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम, प्रधानमंत्री कार्यालय, कानून मंत्रालय और सीबीआई निदेशक को भी भेजने का भी अदालत में आदेश दिया। न्यायमूर्ति राकेश कुमार चारा घोटाला मामले में सीबीआई के वकील रह चुके हैं।

दहक रहे हैं अमेजन के जंगल, चरम पर है विनाश

ब्राजील के अमेजन जंगलों में फैली आग की लपटें मानवजनित विनाश को भयावह रूप दे रही हैं। दुनिया का सबसे बड़ा यह उष्णकटिबंधीय वन ऑक्सीजन का बड़ा स्रोत तो है ही, साथ ही अरबों टन कॉर्बन डाइ ऑक्साइड को अवशोषित कर धरती पर जीवन को आसान बनाने में मददगार भी है।
दक्षिण अमेरिकी भू-भाग पर 55 करोड़ हेक्टेयर में फैले इन वनों में जारी अग्नि विनाशलीला से न केवल तीन करोड़ से अधिक आदिवासियों के लिए संकट उत्पन्न हो गया है, बल्कि पारिस्थितिकीय असंतुलन का भी खतरा मंडरा रहा है।

जलवायु परिवर्तन की गंभीर होती चुनौतियों के बीच दुनियाभर के तमाम जंगलों में आग लगने की घटनाएं भविष्य के लिए खतरनाक संकेत हैं। जंगली आग से पर्यावरण को नुकसान, अमेजन समेत विभिन्न हिस्सों में लगी आग और इससे उपजे संकट ...

हर मिनट एक फुटबॉल मैदान जितना जंगल आ रहा चपेट में

इस गर्मी अमेजन के जंगल में लगी आग अभी तक नहीं बुझ पायी है। प्रतिदिन लाखों टन कार्बन डाइ-ऑक्साइड वातावरण में फैल रहा है। लेकिन, वैज्ञानिकों में इससे अधिक आग के फैलाव को लेकर चिंता है। 

उनका मानना है कि इस आग में अवैध वनों की कटाई जैसा ही इजाफा होता जा रहा है, जो भयावह है। अगर ऐसा ही रहा तो जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से बचानेवाले जंगलों से दुनिया वंचित हो जायेगी।

ब्राजील के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च (आइएनपीइ) के अनुसार, यह आग प्रति मिनट एक फुटबॉल मैदान जितने क्षेत्र को अपनी चपेट में लेती जा रही है। सेटेलाइट से प्राप्त प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष जून में वनों के नष्ट होने में 90 प्रतिशत और जुलाई में 28 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है।

अमेजन धरती की जलवायु प्रणाली का एक प्रमुख घटक है। यह संपूर्ण वातावरण के लगभग एक चौथाई कॉर्बन को नियंत्रित करता है और प्रतिवर्ष हम जितना कार्बन डाइ-ऑक्साइड छोड़ते हैं, उसका पांच प्रतिशत यह खुद ही अवशोषित कर लेता है। 

लेकिन अगर वनों की कटाई या उसका नष्ट होना इसी तरह जारी रहा, तो वैश्विक तापमान को नियंत्रित रखने का प्रयास विफल हो जायेगा। वैज्ञानिक इस बात को लेकर चिंतित हैं कि इस आग के कारण अमेजन वन के कुछ हिस्से सूखे और जंगली घास के मैदान में बदल सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो यह न केवल दक्षिण अमेरिकी लोगों के लिए, बल्कि दुनिया के लिए भयावह परिणाम ला सकता है

चरम पर विनाश

ब्राजील के साओ पाउलो यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक, कार्लोस नोब्रे का कहना है कि अब हम चरम बिंदु के बहुत करीब पहुंच चुके हैं। अगर हमने इस बिंदु को पार कर लिया तो यह बदलाव अपरिवर्तनीय होगा। यह रुझान विशेष रूप से खतरनाक है, क्योंकि एक दशक से अधिक समय तक विश्व के इस सबसे बड़े वर्षावन को संरक्षित करने के प्रयास के बाद हम इस बिंदु के करीब पहुंचे हैं।

अन्य हिस्सों में भी झुलस रहे जंगल

अमेजन जैसे ही हालात दुनिया के अन्य हिस्सों में भी हैं। साइबेरिया के जंगल में 21 हजार मील क्षेत्र आग की चपेट में आ गया था। रूस के सामने जंगली आग का यह सबसे भयावह साल है। 
कैनरी द्वीप में जंगलों में लगी आग की वजह से 8000 से अधिक लोगों को विस्थापित होना पड़ा।

अलास्का में बीते हफ्ते फिर से आग भड़क गयी, इस मौसम में आग लगने का लंबा सिलसिला चलता है।
डेनमार्क ने ग्रीनलैंड में भड़की आग को नियंत्रित करने के लिए अग्निशमन दल भेजा। अधिकारियों का मानना है कि आग का यह सिलसिला पूरे सर्द मौसम में चल सकता है। इससे ग्रीनलैंड में जमी बर्फ के पिघलने की प्रक्रिया और तेज हो सकती है।

वर्ष 2018 में कैलीफोर्निया सबसे विनाशकारी जंगली आग की चपेट में था। तुलनात्मक रूप से इस बार अभी तक कोई बड़ी घटना नहीं हुई है, लेकिन आग की आशंका अभी भी बरकरार है।

जंगलों में आग लगने की घटनाओं के पीछे बड़ी वजह इस वर्ष दुनिया के तमाम हिस्सों में तापमान और सूखापन भी बढ़ना है। अमेजन के जंगलों में लगी आग यह दर्शाती है कि इस ग्रह को मानव जाने-अनजाने में कैसे तबाह करने पर आमादा है।

औसत तापमान वृद्धि है समस्या

इस जुलाई महीने का औसत वैश्विक तापमान 20वीं सदी के औसत से 1.71 डिग्री फॉरेनहाइट से अधिक था. पिछले जुलाई में अधिकतम तापमान रिकॉर्ड स्तर पर था। नीदरलैंड, जर्मनी, बेल्जियम जैसे देशों में हर साल तापमान के नये रिकॉर्ड बन रहे हैं। 

जिन क्षेत्रों में आग विकराल रूप धारण की हुई है, जैसे साइबेरिया, अलास्का और केनरी द्वीप का पिछले महीने का तापमान अधिक था। अलास्का और कैनरी द्वीप में इस वर्ष सूखे की चपेट में भी रहा। बढ़ती उष्णता और कम होती नमी की वजह से वनस्पतियां सूख रही हैं। इसमें बड़ी भूमिका मानवीय गतिविधियों की भी है।

अनियंत्रित आग में झुलस रहे हैं बोलिविया के जंगल

पिछले 18 अगस्त से 23 अगस्त के बीच बोलिविया के विशिष्ट प्रकार के चिक्विटैनो जंगलों में लगी आग से आठ लाख एकड़ जंगल नष्ट हो चुका है। बीते दो वर्षों में यह नुकसान सर्वाधिक है। विशेषज्ञों का मानना है कि आग से हुए इस पारिस्थितिकीय नुकसान की भरपाई में दो सदी लग जायेगी। 

आग की लपटों की वजह से 500 से अधिक जंगली प्रजातियों को नुकसान पहुंचा है। बोलिविया के जंगल को दुनिया का सबसे बड़ा स्वस्थ उष्णकटिबंधीय शुष्क जंगल के तौर पर जाना जाता है। यहां स्थानीय लोगों के अलावा तमाम तरह के जंगली जीवों का ठिकाना है। इसमें तेंदुआ, विशालकाय आर्मेडिलो और टैपीर जैसे जीवों का निवास स्थल है। चिक्विटैनो जंगल कुछ ऐसी प्रजातियों का ठिकाना है, जो धरती पर अन्यत्र कहीं नहीं पाये जाते।

भारत में बढ़ी जंगलों की आग लगने की घटनाएं

भारत के जंगलों में आग लगने की घटनाओं में पिछले छह वर्षों के दौरान 158 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। बीते वर्ष सरकार द्वारा बताया गया कि देश में जंगली आग की 35,888 घटनाएं हुई। 

सर्दियों और मॉनसून पूर्व अवधि में लंबे समय तक सूखा रहने से वन्य क्षेत्रों के तापमान में वृद्धि हो जाती है, जो आग लगने का बड़ा कारण बनता है। भारत में औसत वार्षिक तापमान में बीती सदी के मुकाबले 1.2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो चुकी है। जलवायु परिवर्तन की वजह से सूखापन बढ़ रहा है। जंगलों में आग लगने की घटना की पीछे बड़ी वजह मिट्टी और वातावरण में नमी खत्म हो जाने से उत्पन्न सूखा है।

उत्तराखंड के जंगलों में आग से नुकसान : उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की घटनाएं हर साल होती हैं। इससे राज्य के वन्य क्षेत्र के साथ-साथ जंगली जीवों को क्षति पहुंचती है और धुएं के गुबार से प्रदूषण फैलता है। इस वर्ष उत्तराखंड में 1400 से अधिक मामलों में 2000 से ज्यादा जंगलीय भूमि पर तबाही हुई है। उत्तराखंड के अलावा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओड़िशा समेत कई राज्यों के जंगल में आग लगने की घटनाएं सामने आती हैं।

आग लगने की वजह : उत्तराखंड में देवदार वृक्षों के घने जंगल हैं। उनकी सूखी पत्तियों में आसानी से आग पकड़ लेती है, जो जंगल की सतह पर तेजी से फैलती है।

जंगलों के लिए प्राकृतिक विविधता है जरूरी


जंगल में आग पकड़ने का एक ही कारण है- एकल प्रजाति के पेड़ों का विस्तार। जंगल कोई खेत नहीं हैं, जहां एक तरह के पेड़ लगा दिये जायें। पहले विविध प्रकार के पेड़-पौधों से भरे प्राकृतिक जंगलों को मनुष्यों ने काटना शुरू किया और फिर सरकारों ने एक ही तरह के पेड़ों का पौधारोपण शुरू किया. इसका नतीजा आज दिख रहा है। 

भारत में विविध प्रकार के पेड़-पौधों के जंगल थे, जिनको अंग्रेजों ने काटकर फर्नीचर में लगा दिया और फिर चीड़ के जंगलों का विस्तार करना शुरू कर दिया। वे यह भूल गये कि जंगल कभी मानव-निर्मित नहीं हो सकता, उसके लिए प्राकृतिक विविधता की जरूरत होती है, जो प्रकृति-प्रदत्त हो। मानव-निर्मित चीड़ के जंगल तो खेत की तरह हैं, अगर वहां आग लगेगी, तो उसे कोई बचा नहीं पायेगा। प्राकृतिक जंगल नाना प्रकार के पेड़ों के समुदायों का निर्माण करते हैं, जैसे भारत में हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई आदि समुदाय हैं। 

वहां जब एक प्रजाति के पेड़ों पर कोई बीमारी लगती है, तो दूसरी प्रजाति के पेड़ उस बीमारी को रोकने में समर्थ होते हैं। ठीक इसी तरह, पुराने जमाने में प्राकृतिक जंगलों के एक समुदाय में आग लगती थी, तो दूसरे समुदाय उस आग को बढ़ने से रोक देते थे। आज ऐसा संभव नहीं है। चाहे अमेजन के जंगल हों या फिर उत्तराखंड के, इनमें एकल प्रजाति के पेड़ों का ही विस्तार है, जो आग लगने पर नष्ट होने से रोक पाने में सक्षम नहीं हैं। 

इसका एक ही उपाय है कि जंगलों की प्रकृति को न छेड़ा जाये और मानव-निर्मित जंगल का विस्तार न किया जाये। जंगल का जीवन उसकी विविधता पर टिका हुआ है। उसकी विविधता नष्ट होगी, उसके किनारे बहनेवाली नदियों को दूषित किया जायेगा, तो जंगल खत्म होते चले जायेंगे।

बीस हजार मील कम हुआ अमेजन वन क्षेत्र

वर्ष 2004 में ब्राजील की तत्कालीन सरकार ने वनों के विनाश को रोकने के लिए ज्यादा से ज्यादा क्षेत्र को संरक्षित और जनजातीय लोगों के लिए आरक्षित करने जैसे कदम उठाये थे। 

इस दौरान नियम का उल्लंघन करनेवालों पर जुर्माना लगाया गया या उन्हें गिरफ्तार किया गया। इन एहतियाती कदमों से 2012 तक वन क्षेत्र के नुकसान में 75 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई। जलवायु वैज्ञानिक नोब्रे की मानें तो, राष्ट्रपति जैर बोलसोनारो के सत्ता में आने के कुछ महीने बाद, मई से वनों की कटाई में तेज वृद्धि हुई है. इस वर्ष अब तक 2,000 वर्ग मील जंगल कम हो चुके हैं।

इन वजहों से कम होते जा रहा है अमेजन वन क्षेत्र

प्राकृतिक तौर पर अमेजन शायद ही कभी जलता है। लेकिन आइएनपीइ ने अकेले इसी महीने अमेजन वन में 25,000 से अधिक बार आग लगने की घटना की गणना की है। लपटों से निकलने वाला धुआं इतना घना था कि यहां से एक हजार मील दूर साओ पाउलो शहर में दिन में ही अंधेरा छा गया।

लेकिन यह कोई नयी बात नहीं है। मई, जून और जुलाई में प्राप्त उपग्रह चित्रों में, वनों की कटाई में वृद्धि देखी गयी। वन में आग लगने से पहले ही यह चित्र लिये गये थे। नासा के गोड्डर स्पेस फ्लाइट सेंटर के बायोस्फेरिक साइंसेज लेबोरेटरी के प्रमुख डॉग मोर्टन के मुताबिक, अमेजन के ऊंचे-ऊंचे पेड़ों को गिराने के लिए कुल्हाड़ी या मैचेट की बजाय अब लोग बुल्डोजर और जंजीर लगे विशाल ट्रैक्टरों का उपयोग करते हैं। 

इतना ही नहीं, एक ही साथ बड़े पैमाने पर हजारों एकड़ वन जमीन को कृषि कार्यों के लिए मंजूरी दे दी गयी है. इस जमीन का उपयोग पशु चारागाह के तौर पर या सोयाबीन जैसी फसल उगाने के लिए किया जाता है। 

कुछ तथ्य

यह वन क्षेत्र धरती की सतह का कुल चार प्रतिशत हिस्सा है। अमेजन वर्षावन विश्व के कुल बचे जंगल का 60 प्रतिशत अकेले बनाता है।
प्रतिवर्ष दुनिया के वनों द्वारा वातावरण से हटाये गये 2.4 अरब टन कॉर्बन के एक चौथाई हिस्से को अमेजन वन अवशोषित करता है। यह लगभग 86 अरब टन कार्बन, या एक तिहाई से अधिक कार्बन अवशोषित करता है।

अमेजन कुल पौधों और जानवरों की प्रजातियों में से 30 प्रतिशत का घर है. इसमें 16 हजार प्रजातियों के 390 अरब पेड़ हैं, जो धरती के बायोमास का 10 प्रतिशत हिस्सा हैं। अमेजन नदी विश्व की सबसे लंबी नदी है।
अमेजन वन का 60 प्रतिशत हिस्सा ब्राजील में है, जबकि इसका 40 प्रतिशत हिस्सा बोलिविया, पेरु, पराग्वे, इक्वाडेार, उरुग्वे, उत्तरी अर्जेंटीना, उत्तरी-पश्चिमी कोलंबिया और गुयाना तक फैला हुआ है।
इस वर्ष के पहले सात महीने में वनों के विनाश में 67 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
2019 में ब्राजील के जंगलों में लगने वाली आग की संख्या वर्ष 2013 से दुगनी से ज्यादा है

बुधवार, 28 अगस्त 2019

अपनी कमियों को देखे कांग्रेस

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने चंद रोज पहले बयान दिया कि कांग्रेस अपने रास्ते से भटक गयी है। हुड्डा की गिनती ऐसे नेताओं में कतई नहीं होती, जो कांग्रेसी विचार में रचे-पगे हों या उसके मूल्यों का बड़ा सम्मान करते हों। वह तो कांग्रेस का निकट भविष्य अनिश्चित देख कर अपने लिए नया रास्ता तलाशने का आधार बनाने के लिए यह बात कह गये। किंतु यह बात विचारणीय तो है ही कि कांग्रेस का रास्ता क्या था? अगर वह भटकी है, तो क्या वह सायास है? और अंतत: किस रास्ते वह भारतीय राजनीति में पुनर्स्थापित हो सकती है?

कांग्रेस ने अपने इतिहास में कुछ रास्ते बदले हैं। बहुत पीछे न जाएं, तो भी कोई नहीं मानेगा कि गांधी और नेहरू की कांग्रेस वही थी, जिसका नेतृत्व लंबे समय तक इंदिरा गांधी ने किया। राजनीति में अचानक आ पड़े राजीव गांधी ने भी इंदिरा की कांग्रेस का रास्ता जाने-अनजाने बदल दिया था। राजीव के बाद हाशिये पर जा पड़ी कांग्रेस को सोनिया गांधी ने पुनर्जीवित तो किया, लेकिन उन्होंने जिन समझौतों का रास्ता अपनाया, उसने आज कांग्रेस को वहां ला पटका है, जहां फिलहाल उसे रास्ता ही नहीं सूझ रहा। राहुल ने जो रास्ता पकड़ा, उसमें वह खुद ही भटक गये और फिलहाल मैदान छोड़ बैठे हैं।

तब भी एक कांग्रेस हमारे बीच है, क्योंकि इस देश की अनेक विविधताएं उस विचार की जड़ों को सींचने का काम करती रहेंगी और विविधताएं इस देश का प्राण हैं। भारतीय जनता पार्टी कितनी ही ताकतवर क्यों न हो जाये और कांग्रेस जैसा आचरण भी करने लगे, तब भी अपने मूल चरित्र के कारण भाजपा इस देश की कांग्रेसी विरासत का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकती। 

अगर आज कई पुराने कांग्रेसी नेता और बड़ी संख्या में कांग्रेसी मतदाता भाजपाई हो गये हैं, तो उसका कारण कांग्रेसी विचार का क्षय नहीं है। कारण है इतने सारे लोगों को उस विचार का अप्रासंगिक लगना। इसके लिए जिम्मेदार भाजपा का उत्तरोत्तर उभार नहीं, बल्कि पार्टी के रूप में कांग्रेस की अपनी भटकन है। अपने मूल्यों से कांग्रेस की दिशाहीनता और जनता से क्रमश: बढ़ते अलगाव के कारण ही भाजपा बहुत तेजी से उभरती चली गयी।

हिंदू राष्ट्र और कट्टर हिंदुत्व का विचार इस देश में आजादी मिलने के बहुत पहले से था। साल 1925 में स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्वतंत्रता के बाद और भी सक्रिय होता गया। साल 1980 में जनसंघ के भाजपा बन जाने के बाद संघ का मूल विचार विस्तार पाने लगा। लेकिन इस पूरे दौर में वह कांग्रेसी विचार और उसके संगठन पर हावी नहीं हो सका था। बात सिर्फ इतनी नहीं थी कि कांग्रेस तब तक आजादी दिलानेवाली पार्टी के रूप में सम्मानित थी, बल्कि उसके पास अपने विचार को पालने-पोषते रहनेवाला संगठन था। 

किसी भी प्रांत के किसी भी शहर-कस्बे-गांव चले जाइए, कांग्रेसी कार्यकर्ता ही नहीं, कांग्रेसी विचार में आस्था रखनेवाले लोग खूब मिल जाते थे। अस्सी के दशक से यह दृश्य बदलना शुरू हुआ। उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे बड़े राज्यों सहित लगभग हर राज्य में कांग्रेस का संगठन सिकुड़ना शुरू हुआ और संघ फैलने लगा। 

आज कांग्रेसी कार्यकर्ता या कांग्रेस समर्थक बहुत ढूंढने पर ही मिलेंगे, जबकि संघ के स्वयं सेवक चप्पे-चप्पे पर। यह निर्विवाद है कि आज की भाजपा का देशव्यापी आभामंडल संघ के परिश्रम की देन है। दूसरी तरफ कांग्रेस सेवा दल का नाम भी नयी पीढ़ी नहीं जानती होगी। कांग्रेसी नेतृत्व ने देखते-बूझते यह हो जाने दिया, तो खोट कांग्रेसी विचार का नहीं है। कमी पार्टी के भीतर है, उस तरफ वह कब देखेगी?

एक दौर में बहुचर्चित हुए श्याम बेनेगल के टीवी धारावाहिक ‘भारत एक खोज’ के पहले एपीसोड में एक गांव के दौरे में ‘भारत माता की जय’ के नारे लगा रहे ग्रामीणों से नेहरू पूछते हैं- ‘ये भारत माता कौन है, किसकी जय चाहते हैं आप?’ कोई कहता है यह धरती, कोई कहता है नदी, पर्वत, जंगल सब भारत माता है। नेहरू समझाते हैं- ‘सो तो है ही। लेकिन इससे भी अहम जो चीज है वह है इस सरजमीं पर रहनेवाली अवाम। भारत के लोग। हम-आप सब भारत माता हैं।’

यह नारा आज और भी जोरों से लगने लगा है, लेकिन क्या उसके वही मायने रह गये हैं? अगर वही मायने नहीं रह गये हैं, तो पूछना कांग्रेस से ही होगा न, या संघ को दोष देने से मुक्त हो जायेंगे? ‘भारत माता की जय’ की नेहरू की व्याख्या आज क्यों बदल गयी? इतने वर्षों में नारों के मायने बदले जा रहे थे, तब कांग्रेस क्या कर रही थी? गिलहरी ने खेत जोता, बोया, गोड़ा-निराया और फसल पकने पर काट कर घर ले आयी। कौआ डाल पर बैठा कांव-कांव करता रह गया!

अब ताजा उदाहरण लीजिए। अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के मोदी सरकार के फैसले पर कांग्रेस के कई नये-पुराने नेता उसके आधिकारिक रुख से सहमत नहीं हैं। कई ने सरकार के फैसले का स्वागत कर दिया। कांग्रेस का क्या रुख होना चाहिए और क्यों, क्या इस पर पार्टी कार्यसमिति या शीर्ष नेताओं ने मंथन किया? पार्टी के भीतर से असहमतियां आने के बाद ही सही, कोई विमर्श हुआ या अब भी हो रहा है?

कांग्रेस के कई नेताओं ने कहा कि वे जनमत के साथ हैं और जनमत सरकार के फैसले के पक्ष में है। यह विचित्र बात है। कांग्रेस जैसी पार्टी जनमत के साथ बहती जायेगी या जनमत बनाने का काम करेगी? अनुच्छेद 370 पर आज जो जनमत है, वह आरएसएस-भाजपा ने वर्षों की मेहनत से बनाया है। उस जनमत का साथ देकर तो उनके ही रास्ते पर चलना हुआ। आपका रास्ता क्या था? आपने पार्टी के भीतर ही एक राय कायम नहीं की। जनमत बनाना तो बड़ी बात हो गयी। उसके लिए कार्यकर्ताओं की समर्पित फौज और मजबूत संगठन चाहिए। यह पुरानी पूंजी कांग्रेस खोती चली गयी और नये सिरे से जमीन पर पैर जमाने के प्रयास हुए ही नहीं।

इस देश की विविधता में ही कांग्रेस के पुनर्जीवन के बीज छुपे हैं। भाजपा के उग्र हिंदुत्व की काट के लिए उदार हिंदू चोला धारण करना उन उपजाऊ बीजों की अनदेखी करना है। नकल से असल को कैसे हरायेंगे? कांग्रेस पार्टी का ह्रास 2014 में नहीं, उससे बहुत पहले शुरू हो गया था। कांग्रेस को वापसी की शुरुआत अपने नये आविष्कार से करनी होगी- अपने मार्ग, मूल विचार और ऐसे नेता का लोकतांत्रिक चयन, जिसके पीछे वैचारिक आधार पर संगठन खड़ा हो सके।

गैर सरकारी संस्थान सावधान- भूपेश

जो एनजीओ अच्छा प्रदर्शन नहीं करेंगे उनके साथ एमओयू को बीच में भी समाप्त किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि जिन एनजीओ का बेहतरीन प्रदर्शन होगा उनके एमओयू की अवधि को आगे के लिए बढ़ाया जाएगा। उन्होंने कहा कि एनजीओ सीएसआर एक्टीविटीज को ज्यादा प्रभावी तरह से निष्पादित करें।
जयपुर । महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती ममता भूपेश ने कहा है कि गैर सरकारी संस्थान(एनजीओ) फील्ड में प्रभावी तरह से कार्य कर लक्षित वर्ग को लाभान्वित करें। उन्होंने कहा कि प्रस्तुतिकरण और पेपर वर्क तो सभी एनजीओ बहुत अच्छा करते हैं किन्तु उसका फील्ड में प्रभाव उस स्तर पर नहीं दिखता। उन्होंने कहा कि यदि एनजीओ इस ओर ध्यान देकर जमीनी स्तर पर अपनी योजनाओं को अमली जामा पहनाएं तो अपेक्षित परिणाम प्राप्त् हो सकते हैं।

श्रीमती भूपेश ने मंगलवार को महिला अधिकारिता विभाग में महिला एवं बाल विकास की योजनाओं से जुड़े गैर सकराकरी संस्थाओं के साथ आयोजित  बैठक को सम्बोधित करते हुए उक्त विचार व्यक्त किए। 

महिला एवं बाल विकास मंत्री ने आयुक्त महिला अधिकारिता विभाग श्री पी.सी. पवन तथा निदेशक समेकित बाल विकास सेवाएं श्रीमती सुषमा अरोड़ा की उपस्थिति में आयोजित बैठक में कहा कि कई एनजीओ अच्छा कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि महिला एवं बाल विकास विभाग लगातार अच्छा कार्य कर रहा है जिसके चलते राष्ट्रीय पोषण मिशन में राज्य को प्रथम पुरस्कार मिला है। वहीं बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ में भी राज्य को आगामी 6 सितम्बर को लगातार तीसरे वर्ष प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।

श्रीमती भूपेश ने कहा कि जो एनजीओ अच्छा प्रदर्शन नहीं करेंगे उनके साथ एमओयू को बीच में भी समाप्त किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि जिन एनजीओ का बेहतरीन प्रदर्शन होगा उनके एमओयू की अवधि को आगे के लिए बढ़ाया जाएगा। उन्होंने कहा कि एनजीओ सीएसआर एक्टीविटीज को ज्यादा प्रभावी तरह से निष्पादित करें। उन्होंने कहा कि एनजीओ द्वारा केवल आंगनबाड़ी में रंगरोगन ही न करवाया जाए वरन भवन निर्माण में भी सहयोग किया जाए। उन्होंने कहा कि राज्य को सीएसआर फण्ड ज्यादा मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि अच्छा सहयोग प्रदान करने वाले संस्थानों को सम्मानित करने की भी योजना है। 

इस अवसर पर आयुक्त महिला अधिकारिता  पी.सी.पवन ने विभागीय उपलब्धियों की जानकारी दी। वहीं निदेशक समेकित बाल विकास सेवाएं श्रीमती सुषमा अरोड़ा ने बताया कि पिछले वर्ष तक हमारे लिए पोषण त्यौहार था , लेकिन इस वर्ष पोषण व्यवहार है। उन्होंने कहा कि हम आंगनबाड़ियों को एक्टीविटी केन्द्र और वाइब्रन्ट बनाना चाहते हैं। उन्होंने बताया कि हम पोषण माह और आंगनबाड़ी अभियान चलायेंगे।

सोमवार, 26 अगस्त 2019

मोदी सरकार ने मनमोहन सिंह की एसपीजी सुरक्षा हटाई, मिलती रहेगी ‘जेड प्लस’ सुरक्षा

एसपीजी संरक्षण देश में दिया जाने वाला सर्वोच्च सुरक्षा कवच है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की एसपीजी सुरक्षा हटाए जाने के बाद अब यह सुरक्षा कवर केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को ही प्राप्त है
सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को प्राप्त एसपीजी सुरक्षा वापस ले ली है। अधिकारियों ने सोमवार को यह जानकारी देते हुए बताया कि 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे सिंह को ‘जेड प्लस’ सुरक्षा मिलती रहेगी।

एसपीजी सुरक्षा वापस लेने का फैसला विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों द्वारा समीक्षा किए जाने के बाद लिया गया है। ‘जेड प्लस’ सुरक्षा केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) द्वारा दी जाने वाली उच्चतम सुरक्षाओं में से एक है।

गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘वर्तमान सुरक्षा कवर समीक्षा खतरे की आशंका पर आधारित एक आवधिक और पेशेवर अभ्यास है जो विशुद्ध रूप से सुरक्षा एजेंसियों द्वारा पेशेवर मूल्यांकन किए जाने पर आधारित है। डॉक्टर मनमोहन सिंह को ‘जेड प्लस’ सुरक्षा मिलती रहेगी।’

विशेष सुरक्षा समूह (एसपीजी) द्वारा प्रदान की गई सुरक्षा वापस लेने का निर्णय कैबिनेट सचिवालय और गृह मंत्रालय की विभिन्न खुफिया एजेंसियों से मिली सूचनाओं के आधार सहित तीन महीने तक समीक्षा किए जाने के बाद लिया गया।

विशेष सुरक्षा समूह (एसपीजी) संरक्षण देश में दिया जाने वाला सर्वोच्च सुरक्षा कवच है। सिंह की एसपीजी सुरक्षा हटाए जाने के बाद अब यह सुरक्षा कवर केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उनके पुत्र राहुल गांधी और पुत्री प्रियंका गांधी को ही प्राप्त है।

 एसपीजी अधिनियम, 1988 के अनुसार, साल 2014 में प्रधानमंत्री का पद छोड़ने के बाद सिंह एक साल के लिए एसपीजी कवर के हकदार थे। उनकी एसपीजी सुरक्षा कवर उनके और उनकी पत्नी गुरशरण कौर पर खतरों को देखते हुए हर साल समीक्षा के बाद बढ़ा दिया जाता था। सिंह की बेटी को एसपीजी सुरक्षा मिली हुई थी लेकिन साल 2014 में उन्होंने स्वेच्छा से उसे छोड़ दिया था।

साल 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद एसपीजी अधिनियम में संशोधन कर कम से कम 10 साल के लिए सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिवारों के लिए किए जाने की व्यवस्था की गई थी।

हालांकि, अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने एसपीजी की कार्यप्रणाली एक समीक्षा की थी और पूर्व प्रधानमंत्रियों पीवी नरसिम्हा राव, एचडी देवगौड़ा और आईके गुजराल की एसपीजी सुरक्षा हटा ली थी।

साल 2003 में वायपेयी सरकार ने एक बार फिर से एसपीजी अधिनियम की समीक्षा की और उसमें संशोधन किया। इसके तहत पूर्व प्रधानमंत्रियों को 10 साल के लिए मिलने वाली सुरक्षा को घटाकर एक साल कर दिया गया। वहीं, सालाना समीक्षा के आधार पर सुरक्षा कवर बढ़ाने का प्रावधान किया गया।

हालांकि, साल 2004 में पद छोड़ने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को साल 2018 में उनके निधन तक एसपीजी सुरक्षा मिलती रही थी।

रविवार, 25 अगस्त 2019

झारखंड और बिहार के अभ्रक खदान क्षेत्र में पांच हजार बच्चे शिक्षा से दूर, अनेक बाल मजदूर

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग द्वारा झारखंड और बिहार के अभ्रक खदान वाले इलाकों में बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर किए गए सर्वेक्षण में ये खुलासा हुआ है
बिहार और झारखंड के अभ्रक खदान वाले जिलों में छह से 14 साल के करीब पांच हजार बच्चे स्कूली शिक्षा से दूर हैं। कुछ बच्चों ने परिवार की आय बढा़ने के लिए बाल मजदूरी शुरू कर दी है। यह खुलासा एक सरकारी रिपोर्ट में हुआ है।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने यह सर्वेक्षण भारत में कार्यरत अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसी ‘टेरे डेज होम्स’ की रिपोर्ट के बाद किया।

इसमें कहा गया था कि बिहार और झारखंड की अभ्रक खदानों में 22,000 बाल मजूदर काम कर रहे हैं।

एनसीपीसीआर के सर्वेक्षण में पाया गया कि अभ्रक खदान वाले इलाकों में बच्चों के लिए अवसरों की कमी है। इन बच्चों ने परिवार की आय बढ़ाने के लिए मजदूरी करना शुरू कर दी है। यह सर्वेक्षण झारखंड के कोडरमा और गिरिडीह एवं बिहार के नवादा जिले में किया गया।

एनसीपीसीआर ने कहा, ‘सर्वेक्षण के मुताबिक झारखंड के इन इलाकों में छह से 14 साल के 4,545 बच्चे स्कूल नहीं जाते।’

झारखंड और बिहार के अभ्रक खदान वाले इलाकों में बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य’ पर किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक बिहार के नवादा जिले में भी इस आयु वर्ग के 649 बच्चे स्कूल नहीं जाते।

सर्वेक्षण के मुताबिक स्कूल नहीं जाने की वजह महत्वाकांक्षा की कमी, अरुचि और अभ्रक एकत्र करना है। इसमें यह भी पाया गया कि कोडरमा की 45, गिरिडीह की 40 और नवादा की 15 बस्तियों में छह से 14 साल के बच्चे अभ्रक के टुकड़े एकत्र करने जाते हैं।

अधिकारियों ने बताया कि अभ्रक के टुकड़े बेचकर होने वाली आय से इलाके के कई परिवारों का गुजारा चलता है।

अधिकारियों ने कहा, ‘कई परिवारों को लगता है कि बच्चों को स्कूल भेजने का कोई फायदा नहीं है और इसके बजाए वे बच्चों से अभ्रक एकत्र कराने और बेचने को प्राथमिकता देते।’

गौरतलब है कि भारत अभ्रक के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है और झारखंड और बिहार देश के प्रमुख अभ्रक उत्पादक राज्य हैं। अभ्रक का इस्तेमाल इमारत और इलेक्ट्रॉनिक सहित विभिन्न क्षेत्रों में होता है। यहां तक कि अभ्रक का इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधन और पेंट उत्पादन में भी होता है।

आयोग ने कहा कि अभ्रक खनन की आपूर्ति श्रृंखला और उद्योग को बाल मजदूरी से मुक्त कराया जाना चाहिए।

एनसीपीसीआर ने कहा, ‘कोई भी बच्चा अभ्रक खनन प्रक्रिया और उसको एकत्र करने के काम में नहीं होना चाहिए। गैर सरकारी संगठन/ विकास एजेंसियां स्थानीय प्रशासन और उद्योगों के साथ मिलकर अभ्रक की आपूर्ति श्रृंखला को बाल मजदूरी से मुक्त करें।’

आयोग ने बच्चों से अभ्रक खरीदने वालों पर सख्त कार्रवाई करने की सिफारिश करते हुए कहा कि झारखंड और बिहार के अभ्रक खदान इलाके में प्रशासन को बाल मजदूरी खत्म करने के लिए विशेष अभियान चलाना चाहिए।

एनसीपीसीआर ने इन इलाकों में बच्चों के कुपोषण का भी मुद्दा भी रेखांकित किया। सर्वेक्षण के दौरान गिरिडीह और कोडरमा की क्रमश: 14 और 19 फीसदी बस्तियों में कुपोषण के मामले दर्ज किए गए। बिहार के नवादा की 69 फीसदी बस्तियों में कुपोषण के मामले सामने आए।

कश्मीर: मीडिया प्रतिबंध का समर्थन करने के प्रेस काउंसिल के कदम की पत्रकार संगठन ने की आलोचना

प्रेस काउंसिल ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर राष्ट्रीय हितों का हवाला देते हुए जम्मू कश्मीर में मीडिया पर लगे प्रतिबंधों का समर्थन किया था
भारत में मान्यता प्राप्त पत्रकारों के एकमात्र संगठन प्रेस एसोसिएशन ने भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) के उस कदम पर गहरी आपत्ति जताई है जिसमें पीसीआई अध्यक्ष जस्टिस चंद्रमौली कुमार प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट में कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन द्वारा दायर याचिका में हस्तक्षेप करने की मांग की है।

 पीसीआई अध्यक्ष ने परिषद को बताए बिना ही मामले में दखल देने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मांगी थी, जिससे पीसीआई के कम से कम दो सदस्य नाराज हो गए।

पीसीआई की ओर से यह अनुरोध  वकील अंशुमन अशोक ने किया था। अपने आवेदन में पीसीआई ने संचार माध्यमों पर प्रतिबंध को न्यायोचित ठहराते हुए कहा कि सुरक्षा कारणों से मीडिया पर तर्कसंगत रोक लगाई गई है।

पीसीआई ने कहा कि चूंकि भसीन की याचिका में एक तरफ पत्रकारों…मीडियाकर्मियों के निष्पक्ष एवं स्वतंत्र रिपोर्टिंग के अधिकार पर चिंता जताई गई है, वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रीय एकता और संप्रभुता का मामला है, इसलिए परिषद् का मानना है कि इसे अपना विचार उच्चतम न्यायालय के समक्ष पेश करना चाहिए और प्रेस की स्वतंत्रता के साथ ही राष्ट्र हित में उनकी याचिका पर निर्णय करने में सहयोग करना चाहिए।

10 अगस्त को भसीन ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल करके जम्मू कश्मीर में मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंधों को चुनौती दी थी। उन्होंने राज्य में मोबाइल, इंटरनेट और लैंडलाइन सेवाओं पर लगाए गए सभी प्रतिबंधों में तत्काल ढील देने की मांग की थी ताकि पत्रकार अपना काम कर सकें।

प्रेस एसोसिएशन के दो सदस्य जयशंकर गुप्ता और सीके नायक ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि ऐसे गंभीर मामले में परिषद को विश्वास में नहीं लिया गया। बता दें कि, परिषद के अध्यक्ष गुप्ता और परिषद के महासचिव नायक दोनों पीसीआई के भी मौजूदा सदस्य हैं।

उन्होंने एक बयान जारी करते हुए कहा कि 22 अगस्त को पूरे दिन काउंसिल की मीटिंग चली थी और उस दौरान इस याचिका का कोई जिक्र नहीं हुआ था, जिसे मीटिंग के दौरान ही सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया था।

बयान में कहा गया कि बैठक में जम्मू-कश्मीर में मीडिया की स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए सदस्यों ने प्रस्ताव भी पेश किया था। उन्होंने दावा किया कि इस मामले पर न तो विचार किया गया और न ही इस पर सदस्यों के विचार मांगे गए। जम्मू-कश्मीर में मीडिया की स्थिति को देखते हुए परिषद ने एक कमेटी का गठन भी किया था लेकिन अध्यक्ष ने कभी भी किसी लिखित याचिका की चर्चा नहीं की।

बयान में आगे कहा गया कि पीसीआई के दो मुख्य उद्देश्य प्रेस की स्वतंत्रता बनाए रखना और पत्रकारिता की गुणवत्ता में लगातार वृद्धि करना है। लेकिन पांच अगस्त के बाद से जम्मू-कश्मीर में ना ही कोई अखबार प्रकाशित हो पाया है और ना ही कोई न्यूज एजेंसी अपना काम कर पाई है।

मीडिया पर लगे प्रतिबंध का समर्थन करने पर आउटलुक मैगजीन के पूर्व संपादक और पीसीआई के पूर्व सदस्य कृष्णा प्रसाद ने पीसीआई के कदम की आलोचना की और कहा कि यह जिम्मेदारियों को त्यागने की शर्मनाक हरकत है।

 ‘लोगों के नाम पर संसद के प्रावधान के तहत गठित हुई प्रेस काउंसिल अगर एक स्वतंत्र मीडिया को देश की स्वायत्तता के खतरे के रूप में देखती है और अगर उसे लगता है कि विशेष परिस्थिति में पाठकों और दर्शकों को अंधेरे में रखा जा सकता है तो यह भारतीय लोकतंत्र के लिए दुख का दिन है।’

शनिवार, 24 अगस्त 2019

असली मसला प्रक्रिया का है

लोकतंत्र के मजबूत होने और फलने-फूलने की एकमात्र जरूरी शर्त यह होती है कि उसकी संस्थाएं नियम और प्रक्रिया के तहत काम करती रहें। जब संस्थाओं के नियम टूटते हैं और कामकाज में प्रक्रिया का पालन नहीं होता है तो उन संस्थाओं का इकबाल धीरे धीरे खत्म होने लगता है। कई बार यह काम अनजाने में होता है और कई बार जान बूझकर ऐसा किया जाता है। भारत और पाकिस्तान दोनों आज जिस स्थिति में हैं वह अपनी संस्थाओं के कारण हैं और अमेरिका. ब्रिटेन या दूसरा कोई विकसित देश जिस स्थिति में है वह भी अपनी संस्थाओं के कारण ही है। विकसित देशों में न प्रशासन व्यक्ति केंद्रित होता है और न संस्थाएं व्यक्तियों के अधीन होती हैं। वहां व्यक्ति व्यवस्था का हिस्सा होता है और जो कुछ भी होता है वह एक निश्चित प्रक्रिया के तहत होता है, जिससे लोगों का भरोसा बना होता है। वहां ये आरोप नहीं लगते हैं कि संस्थाएं किसी खास मकसद से कोई काम कर रही हैं। 

अमेरिका, इजराइल, जापान, ब्रिटेन जैसे अनेक विकसित और सभ्य देशों में पक्ष और विपक्ष के नेताओं पर अलग अलग किस्म के आरोप लगे। कभी यह सुनने को नहीं मिला कि आरोपी नेता की पार्टी के लोग कहें कि उन्हें फंसाया जा रहा है या साजिश हो रही है। संस्थाओं की जांच पर कभी सवाल नहीं उठे। ऐसे भरोसे से संस्थाओं का निर्माण होता है और उनसे लोकतंत्र मजबूत होता है। 

पर पाकिस्तान या बनाना रिपब्लिक कहे जाने वाले लैटिन अमेरिकी, अफ्रीकी देशों की नियति है कि वहां मजबूत लोकतांत्रिक संस्थाओं का निर्माण नहीं हुआ। न्यायपालिका, जांच एजेंसियां, मीडिया, विधायिका आदि का स्वतंत्र और निष्पक्ष स्वरूप नहीं बना। तभी जिसकी सरकार बनी यानी जिसके हाथ में लाठी आई उसने अपने हिसाब से संस्थाओं का इस्तेमाल किया। पाकिस्तान के तीन हुक्मरानों के राजकाज और उनकी नियति की मिसाल दी जा सकती है। बेनजीर भुट्टो, नवाज शरीफ और परवेज मुशर्रफ तीनों बेहद ताकतवर रहे। पर तीनों के ऊपर सत्ता से हटने के बाद भ्रष्टाचार के आरोप लगे। जेल काटनी पड़ी। देश निकाला झेलना पड़ा। ऐसा इसलिए है क्योंकि विधायिका, न्यायपालिका, सेना, जांच एजेंसियां किसी का भी स्वतंत्र व निष्पक्ष ढांचा नहीं बना और न इनका स्वरूप अराजनीतिक रहा। 

संयोग से भारत में काफी हद तक संस्थाओं का स्वरूप अराजनीतिक रहा और उनका बुनियादी सिद्धांत स्वतंत्रता व निष्पक्षता वाला रहा। पर यह स्थिति तभी तक रही, जब तक देश में मोटे तौर पर एक पार्टी का शासन रहा। जब तक कांग्रेस का कोई मजबूत और स्थायी विकल्प नहीं था। कांग्रेस को अकेले शासन करना था इसलिए उसे संस्थाओं से ज्यादा छेड़छाड़ की जरूरत नहीं थी और न एकाध अपवादों को छोड़ कर हमेशा विपक्ष के पीछे पड़े रहने की जरूरत थी। पिछले दो-तीन दशक से जब से कांग्रेस कमजोर हुई है और भाजपा के रूप में स्थायी विपक्ष पैदा हुआ है तब से संस्थाओं का चरित्र प्रभावित होने लगा है। 

अरुण जेटली के इन फैसलों को हमेशा रखेगी याद

 भाजपा के कद्दावर नेता अरुण जेटली का शनिवार को निधन हो गया. अरुण जेटली ने दोपहर 12.07 मिनट पर AIIMS में अंतिम सांस ली, वे 9 अगस्त से यहां भर्ती थे।


पेशे से सफल वकील अरुण जेटली भारतीय राजनीति में अपने पीछे कई यादें छोड़ गये हैं। वित्त मंत्री रहते हुए जेटली ने देश की अर्थव्यवस्था, कालाधन, भ्रष्टाचार, नोटबंदी, डिजिटल ट्रांजैक्शन, जीएसटी, एसबीआई और बैंक ऑफ बड़ौदा में कई बैंकों का विलय जैसे कई बड़े फैसले लिये थे। नोटबंदी (Demonetisation) और जीएसटी (GST) जैसे बड़े फैसला सबसे अहम है।

गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स (GST)

GST यानी गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स को अब तक का सबसे बड़ा टैक्स रिफॉर्म माना जाता है। देश में जीएसटी के रूप में 'एक देश, एक कर' देने में जेटली ने अहम भूमिका महत्‍वपूर्ण निभायी थी। पूरे देश में 1 जुलाई 2017 को आधी रात से जीएसटी लागू हो गया था। GST लागू होने के बाद शुरुआत में तमाम अड़चनें आयीं लेकिन तत्कालीन वित्त मंत्री जेटली ने धैर्य के साथ काम लिया और जीएसटी फाइलिंग प्रक्रिया को आसान बनाने के साथ-साथ टैक्स दरों को संशोधित कर आम उपभोक्ताओं को फायदा पहुंचाने वाला बनाया।

नोटबंदी (Demonetisation)

8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चलन में मौजूद 500 और एक हजार रुपये के नोट को बंद कर दिया था। जेटली के वित्त मंत्री रहते हुए नोटबंदी का ऐतिहासिक फैसला लिया गया था। नोटबंदी करने का फैसला लेने में जेटली की अहम भूमिका रही थी। सरकार के इस अभूतपूर्व कदम की जानकारी पीएम के अलावा केवल जेटली और कुछ चुनिंदा लोगों को ही थी। 

इंसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड (IBC)

कर्ज न चुकाने वाले बकायेदारों से निर्धारित समय के अंदर बकाये की वसूली के लिए अरुण जेटली इनसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड (Insolvency and Bankruptcy Code, 2016) लेकर आये। पहली बार यह बिल 21 दिसंबर 2015 को प्रकाशित हुआ था। लोकसभा और राज्यसभा से पारित होने के बाद 28 मई 2016 को यह बिल लागू हुआ था। इस बिल के लागू होने के बाद बैंकों और अन्य लेनदारों को दिवालिया कंपनियों से वसूली में मदद मिल रही है। पिछले दो सालों में इंसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड के तहत प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर लगभग तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की फंसी हुई संपत्तियों का निस्तारण किया गया है।

बैंकों का एकीकरण (Bank Consolidation)

बैंकों का एकीकरण बेशक जेटली के महत्वपूर्ण फैसलों में शामिल है. स्टेट बैंक में उसके पांच असोसिएट बैंकों और भारतीय महिला बैंक का विलय हो, चाहे देना बैंक और विजया बैंक का बैंक ऑफ बड़ौदा में विलय, इन फैसलों से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की सेहत में सुधार हुआ. पहले की लगभग सभी सरकारों ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को मजबूत बनाने की जरूरत बतायी, लेकिन यह काम जेटली के नेतृत्व में ही शुरू हुआ।

एफडीआई का उदारीकरण (FDI Liberalization)

अरुण जेटली ने वित्त मंत्री रहते हुए निवेशकों को लुभाने और निवेश की रफ्तार को बढ़ाने के लिए FDI के नियमों को आसान किया. FDI नियमों में ढील के पक्षधर जेटली की कोशिशों से डिफेंस, इंश्योरेंस और एविएशन जैसे सेक्टर भी FDI के लिए खोले गए। FIPB (फॉरेन इन्वेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड) को भंग किया गया। इसका उल्लेखनीय असर भी दिखा। 2014 में जहां भारत में 24.3 अरब डॉलर की FDI आयी थी, जो साल दर साल लगातार बढ़ते हुए 2019 में 44.4 अरब डॉलर तक पहुंच गई। इसका श्रेय जेटली को ही जाता है।

शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

दिल्ली में क्यों सरेंडर करते हैं यूपी, बिहार और हरियाणा के नामी बाहुबली बदमाश

बिहार के बाहुबली विधायक अनंत सिंह के दिल्ली के साकेत कोर्ट में सरेंडर करने के बाद एक बार फिर ये सवाल उठ रहा है कि आखिर क्यों यूपी और बिहार के बाहुबली विधायक, सांसद और बदमाश दिल्ली की अदालतों में ही सरेंडर करना मुनासिब समझते है। ऐसा क्या कारण है कि उन प्रदेशों की पुलिस उन तक पहुंच भी नहीं पाती है और वो सीधे दिल्ली की अदालत में सरेंडर करने के बाद जेल चले जाते हैं और वहां सुरक्षित जीवन बिताने लगते है।

यूपी, हरियाणा और बिहार के एक दर्जन से अधिक बदमाश अब तक दिल्ली की अलग-अलग अदालतों में सरेंडर कर चुके हैं। कई बार ये बातें भी सामने आ चुकी है कि यूपी और बिहार के बदमाशों की दिल्ली पुलिस की स्पेशल स्टाफ के कुछ अधिकारियों से साठगांठ रहती है इस वजह से वो अपने यहां उनका सरेंडर करा देते हैं। बदले में बदमाश कंपनी उनकी कई तरह से लाभ भी पहुंचाती है। दिल्ली और यूपी पुलिस के कुछ बडे़ अधिकारी इन बाहुबली बदमाशों के दिल्ली में सरेंडर करने के अलग-अलग कारण भी बताते हैं।



अधिकारियों ने बताई ये वजहें

दिल्ली पुलिस के पास यूपी और बिहार के बदमाशों का कच्चा चिट्ठा नहीं होता है इस वजह से उनको अपने यहां सरेंडर कराने में बहुत अधिक मशक्कत नहीं करानी पड़ती है, यदि यहां पर भी उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज हों तो सरेंडर कराना आसान नहीं होता। मगर अभी तक यही देखने में आया है कि जो बदमाश यहां की अदालत में सरेंडर करते हैं उनके खिलाफ यहां पर कोई भी बड़ा मुकदमा दर्ज नहीं होता है।

- यूपी और बिहार के बदमाशों का कच्चा चिट्ठा और उनके काले कारनामों की लंबी लिस्ट दिल्ली पुलिस के पास नहीं होती है, इस वजह से उनका यहां पर सरेंडर करना आसान होता है। इसके अलावा एक बड़ा कारण ये भी है कि इन बदमाशों के पास दिल्ली में कोई मुकदमा दर्ज नहीं होता है, वो यहां पर आसानी से सरेंडर करने के बाद जेल जाकर वहां पर जीवन बिताते हैं। यदि वो अपने राज्य में सरेंडर करें तो वहां की पुलिस उनका एनकाउंटर भी कर सकती है, इसके अलावा उनको अपने राज्य की कानून व्यवस्था पर भी अधिक भरोसा नहीं होता है, इस वजह से वो दिल्ली का रुख करते हैं।

डीजीपी प्रकाश सिंह, यूपी पुलिस

जिन राज्यों के बदमाश होते हैं वहां के पुलिस रिकार्ड में उनका नाम दर्ज होता है, वो वहां पर अपने को असुरक्षित महसूस करते है। इस वजह से वो दूसरे राज्यों में सरेंडर करने की प्लानिंग करते हैं, यदि किसी बाहुबली की सरेंडर करने की प्लानिंग फेल हो जाती है तो ये उसकी प्लानिंग की कमी होती है, अन्यथा सभी आराम से सरेंडर कर पाते हैं।

अजयराज शर्मा, पूर्व सीपी, दिल्ली पुलिस

यूपी और बिहार में सरकारें बदलने के बाद अब वहां की सरकारें काफी सख्त हो गई है। आए दिन बदमाशों के सरेंडर हो रहे है। वो इससे घबराए होते है। इस वजह से वो वहां की पुलिस से भी बचना चाहते हैं। जब सरेंडर करना होता है तो दिल्ली का रुख करते है। यहां उनके खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं होता वो आसानी से सरेंडर कर पाते हैं। सरेंडर करने के बाद वो आसानी से जेल चले जाते हैं और वहां सुरक्षित रहते है इसके अलावा यहां पर हर स्तर की जूडिशरी मौजूद है। मीडिया भी यहां बहुत एक्टिव रहता है। सभी लोग सचेत रहते हैं इस वजह से बदमाशों और बाहुबलियों के लिए यहां सरेंडर करना हर तरह से मुनासिब रहता है।





अनंत सिंह ने बिहार में सरेंडर करने की अफवाह फैलाई, पहुंच गए दिल्ली

बिहार पुलिस मोकामा के बाहुबली विधायक अनंत सिंह को गिरफ्तार करने के लिए सरगर्मी से तलाश करती रह गई, उधर वो दिल्ली के साकेत कोर्ट पहुंच गए और वहां सरेंडर कर दिया। बिहार के कोर्ट में अनंत सिंह के सरेंडर की अफवाह गुरुवार को ही सामने आयी थी। विधायक के सरेंडर करने को लेकर यहां बिहार पुलिस अलर्ट रही, पुलिस उनको गिरफ्तार करने के लिए पटना कोर्ट के बाहर नजर रख रही थी लेकिन वे दिल्ली के साकेत कोर्ट सरेंडर करने पहुंच गए। अनंत सिंह ने बिहार के किसी कोर्ट को छोड़कर दिल्ली के साकेत कोर्ट को चुना और शुक्रवार की दोपहर बाद वहां पहुंचकर सरेंडर कर दिया। अब उसके बाद उन्हें न्यायिक हिरासत में लिया जाएगा।

तीन वीडियो किया था जारी, न्यायालय पर जताया था भरोसा

अनंत सिंह 17 अगस्त से ही फरार चल रहे थे। विधायक के पैतृक गांव नदवां में AK-47 और 2 हैंड ग्रेनेड मिलने के बाद UAPA एक्ट के तहत बाढ़ थाने में FIR दर्ज की गई थी। इस मामले में पुलिस लगातार उन्हें तलाश रही थी। लेकिन उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकी थी। अनंत सिंह ने फरारी के दौरान ही तीन वीडियो जारी किया था, जिसमें उन्होंने न्यायालय पर भरोसा जताते हुए कहा था कि वो सरेंडर करेंगे। कहा था कि उन्हें बिहार पुलिस पर भरोसा नहीं है। अनंत सिंह ने पुलिस पर आरोप लगाया था कि उन्हें साजिश के तहत फंसाने का काम कर रही है। उन्होंने पुलिस के अलावा कुछ राजनेताओं पर भी साजिश कर फंसाने का आरोप लगाया था।

अनंत सिंह का क्या है पूरा मामला

पुलिस ने बाहुबली विधायक अनंत सिंह के पैतृक गांव नदवां स्थित घर से छापेमारी में एके-47 के साथ 2 हैंड ग्रेनेड की बरामदगी की थी। अवैध हथियार की बरामदगी के बाद विधायक और केयर टेकर के खिलाफ यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था। केस दर्ज होने के बाद पुलिस देर रात विधायक अनंत सिंह को गिरफ्तार करने बड़ी संख्या में उनके पटना स्थित सरकारी आवास पहुंची थी। तब तक विधायक एक माल रोड स्थित सरकारी आवास छोड़ फरार हो चुके थे। पुलिस की कई टीम विधायक को खोजने के लिए खाक छान रही थी और अनंत सिंह ने अब तक पुलिस को चुनौती देते हुए एक-एक कर तीन वीडियों जारी किया था। इस वीडियो में मोकामा विधायक ने पुलिस के सामने सरेंडर करने से साफ इनकार कर दिया था। अंतिम वीडियो में बाहुबली विधायक ने स्पष्ट किया कि पुलिस के बजाए कोर्ट में सरेंडर करेंगे। 





दिल्ली में क्यों सरेंडर करते हैं बदमाश 


मुन्ना बजरंगी, अनिल दुजाना व सुंदर भाटी समेत कई गैंगों के बदमाशों ने बड़ी वारदातों को अंजाम देने के बाद दिल्ली पुलिस के सामने सरेंडर किया है। यहां तक की कई ने एनकाउंटर के डर से भी सरेंडर किया था। यूपी, बिहार और हरियाणा के दर्जनों बदमाश और बाहुबली विधायक अपने यहां की पुलिस के सामने सरेंडर नहीं करते हैं। अक्सर यही देखने में आया है कि इन राज्यों के बाहुबली बदमाश, नेता दिल्ली में ही सरेंडर करने की गणित बिठा लेते हैं। इसमें उनकी दिल्ली पुलिस के अधिकारियों से अच्छी सेटिंग भी मानी जाती है। पुलिस इन बदमाशों का सरेंडर कराने के बाद समय-समय पर उनका इस्तेमाल करती है। जब वो दिल्ली पुलिस की मदद करते हैं तो बाद में अपना जीवन बचाने के लिए दिल्ली पुलिस की भी मदद लेते हैं। 





लाखों और हजारों के इनाम वाले बदमाश कर चुके सरेंडर


यूपी, बिहार और हरियाणा जैसे राज्यों में हजारों और लाखों के इनाम वाले बदमाश हमेशा ही दिल्ली की अदालतों में सरेंडर करना पसंद करते हैं। दरअसल दिल्ली पुलिस इन तीनों राज्यों में बदमाशों से अपने नेटवर्क को मजबूत करने के लिए कहीं न कहीं इन बदमाशों के संपर्क में रहती है। कई बार दिल्ली में अपराध करने के बाद बदमाश भागकर इन राज्यों के बाहुबलियों के अड्डे पर ही शरण लेते हैं। तब पुलिस को इनकी मदद की जरुरत पड़ती है। ऐसे मौकों पर बदमाश पुलिस की मदद करते है। इसी वजह से जब बदमाशों को अपनी जिंदगी बचानी होती है या अपने किसी साथी का सरेंडर कराना होता है तो वो दिल्ली पुलिस की मदद लेते हैं। पुलिस वहां आराम से इनका सरेंडर करवा देती है।  

बाबरी विध्वंस: विशेष जज का कार्यकाल बढ़ाने पर यूपी सरकार दो हफ्ते में आदेश दे- सुप्रीम कोर्ट

इस मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत 12 लोग आरोपी हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने साल 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले की लखनऊ में सुनवाई कर रहे विशेष न्यायाधीश का कार्यकाल बढ़ाने के बारे में उत्तर प्रदेश सरकार को दो सप्ताह के अंदर आदेश जारी करने के लिए शुक्रवार को कहा।

जस्टिस आरएफ नरीमन तथा जस्टिस सूर्य कांत की पीठ ने कहा कि 27 जुलाई को विशेष जज ने एक नया पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने खुद को सुरक्षा मुहैया कराए जाने सहित पांच अनुरोध किए हैं।

पीठ ने राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ऐश्वर्या भाटी से सभी पांच अनुरोधों पर दो सप्ताह के अंदर विचार करने के लिए कहा. साथ ही पीठ ने कहा कि ये अनुरोध तर्कसंगत प्रतीत होते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 19 जुलाई को विशेष जज का कार्यकाल मामले की सुनवाई पूरी होने तथा फैसला सुनाए जाने तक बढ़ा दिया था। बहरहाल, राज्य सरकार को इस संबंध में आदेश जारी करना है जो उसने अब तक नहीं किया है।

विशेष जज को सर्वोच्च अदालत ने नौ माह के अंदर फैसला सुनाने के लिए भी कहा था।

बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत 12 लोग आरोपी हैं। इन तीनों के अलावा सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व भाजपा सांसद विनय कटियार और साध्वी रितंभरा पर भी 19 अप्रैल 2017 को षड्यंत्र के आरोप लगाए थे।

इस मामले में तीन अन्य नामी आरोपियों गिरिराज किशोर, विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल और विष्णु हरि डालमिया की सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई और उनके खिलाफ कार्यवाही बंद कर दी गई है।

अयोध्या में छह दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचे के विध्वंस की घटना से संबंधित दो मुकदमे हैं। पहले मुक़दमे में अज्ञात ‘कारसेवकों’ के नाम हैं जबकि दूसरे मुक़दमे में भाजपा नेताओं पर रायबरेली की अदालत में मुकदमा चल रहा था।

19 अप्रैल, 2017 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पीसी घोष और जस्टिस आरएफ नरीमन की बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा आरोपियों को बरी किए गए फैसले खिलाफ सीबीआई द्वारा दायर अपील को अनुमति देकर आडवाणी, जोशी, उमा भारती समेत 12 लोगों के खिलाफ साजिश के आरोपों को बहाल किया था।

शीर्ष अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए रायबरेली और लखनऊ की अदालत में लंबित मुकदमों को मिलाने और लखनऊ में ही इस पर सुनवाई का आदेश दिया था।

कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि मामले की कार्रवाई प्रतिदिन के आधार पर दो सालों में पूरी की जाए।

पीठ ने कहा कि राजस्थान के राज्यपाल होने के नाते मामले के एक आरोपी कल्याण सिंह को संवैधानिक प्रतिरक्षा या बचाव प्राप्त होगा, लेकिन जैसे ही वह पद त्यागते हैं उनके खिलाफ अतिरिक्त आरोप दायर किए जाएंगे। सिंह सितंबर में राज्यपाल के पद से हटेंगे।

पिछले साल 30 मई को विशेष सीबीआई भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सहित 12 लोगों के ख़िलाफ़ आरोप तय किए थे।

गुरुवार, 22 अगस्त 2019

इंद्राणी मुखर्जी ने ईडी को दिया था बयान, चिदंबरम ने हमसे अपने बेटे कार्ती के कारोबार में मदद करने और भुगतान विदेशों में करने को कहा था

पूर्व वित्त मंत्री पी चिंदबरम ने अपने बेटे कार्ती के कारोबार में मदद करने और आईएनएक्स मीडया को विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड (एफआईपीबी) से मंजूरी के बदले विदेशों में भुगतान करने को कहा था। आईएनएक्स मीडिया की प्रवर्तक इंद्राणी मुखर्जी ने यह बात कंपनी से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार मामले की जांच कर रहे जांचकर्ताओं को बतायी थी। मुखर्जी ने मनी लांड्रिंग निरोधक कानून (पीएमएलए) के तहत अपना यह बयान रिकॉर्ड कराया।


इंद्राणी मुखर्जी ने जांचकर्ताओं को दिये बयान में कहा था कि उन्होंने और उनके पति पीटर मुखर्जी ने चिदंबरम से दिल्ली के नॉर्थ ब्लॉक स्थित उनके दफ्तर में मुलाकात की थी। नॉर्थ ब्लॉक में ही वित्त मंत्रालय का कार्यालय है। हालांकि, पी चिदंबरम और उनके बेटे कार्ती दोनों ने इन आरोपों से इनकार किया है। इंद्राणी मुखर्जी ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के समक्ष दिये अपने बयान में कहा कि पीटर ने पी चिदंबरम से बातचीत शुरू की और एफडीआई लाने के लिए आईएनएक्स मीडिया के आवेदन का जिक्र किया। उन्होंने आवेदन की प्रति चिदंबरम को दी।

उसने कहा कि मुद्दे को समझने के बाद पी चिदंबरम ने पीटर से उनके बेटे कार्ती के कारोबार में मदद करने और एफआईपीबी मंजूरी के बदले विदेशों में धन भेजने को कहा। मुखर्जी आईएनएक्स मीडिया समूह की प्रवर्तक थीं। उन पर अपनी बेटी शीना बोरा की कथित तौर पर हत्या करने का आरोप है। उन्होंने बयान में कहा कि 2008 में जब उन्हें पता चला कि एफआईपीबी मंजूरी के आवेदन में कथित तौर पर कुछ अनियिमितताएं हुई है, तब पीटर ने फैसला किया कि उन्हें इन मसलों के समाधान को लेकर पी चिदंबरम से मिलना चाहिए।

समाचार एजेंसी पीटीआई-भाषा के अनुसार, उसने इंद्राणी के इस बयान को देखा है। मुखर्जी ने कहा कि पीटर ने कहा कि कार्ती की मदद से कथित उल्लंघन को ठीक किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि उसके बाद दोनों दिल्ली के एक होटल में कार्ति से मिले। मुखर्जी ने कहा कि कार्ती को मामले की जानकारी थी। 

उसने कहा कि अगर 10 लॉख डॉलर उसके या उसके सहयोगियों के विदेश स्थित खातों में भेजे जाते हैं, तो मसले का समाधान हो सकता है. जब पीटर ने कहा कि विदेशों में धन का हस्तांतरण संभव नहीं है, कार्ती ने विकल्प के तौर पर दो कंपनी चेस मैनेजमेंट और एंडवांटेज स्ट्रैटजिक का नाम सुझाया। 

उसने कहा कि राशि इन खातों में डाली जा सकती है और ये अपने को आईएनएक्स मीडया प्राइवेट लिमिटेड के परामर्शदाता के रूप में पेश करेंगे। हालांकि, उन्होंने अपने बयान में कहा कि ये सब भुगतान का जिम्मा पीटर ने संभाला था। उन्हें यह नहीं पता कि इस मामले में कितनी राशि का भुगतान किया गया। 

मुखर्जी ने कहा कि आईएनएक्स के समूह निदेशक (विधि और नियामकीय मामलों) ने कार्ती की कंपनी चेस मैनेजमेंट से एफआईपीबी संबंधित मामलों के बारे में बातचीत की थी। इस मामले में जहां तक मैं जानती हूं कि कार्ती से जुड़ी एक अन्य कंपनी एडवांटेज स्ट्रैटजिक कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड (एएससीपीएल) ने आईएनएक्स मीडिया प्राइवेट लिमिटेड को कोई सेवा नहीं दी। 

ईडी ने जांच में पाया कि आईएनएक्स मीडिया ने 9.96 लाख एएससीपीएल को 2008 में चेक के जरिये दिये। जांच एजेंसी के अनुसार, यह आईएनएक्स मीडिया को एफआईपीबी मंजूरी देने को लेकर एक-दूसरे को लाभ पहुंचाने के एवज में था। अपने बयान में पीटर मुखर्जी ने ईडी से कहा कि उसने चिदंबरम से दो-तीन बार मुलाकात की और हर बार बैठक मीडिया कारोबार के बारे में जानकारी देने को लेकर शिष्टाचार मुलाकात थी। 

हालांकि, उन्होंने कहा कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए भी चिदंबरम से मुलाकात की कि उनके आवेदन में कोई देरी नहीं हो. इस पर चिदंबरम ने उनके बेटे के कारोबारी हितों को ध्यान में रखने को कहा। पीटर मुखर्जी ने कहा कि उन्होंने अपनी पत्नी और एक अन्य व्यक्ति के साथ दिल्ली के हयात होटल में कार्ती से मुलाकात की थी।

चिदंबरम-शाह का इतिहास दोहरा रहा है

कहते हैं कि इतिहास अपने को दोहराता है- त्रासदी की शक्ल में या तमाशे की शक्ल में। कम से कम पी चिदंबरम और अमित शाह के मामले में इतिहास दोहराने की बात जरूर कही जा सकती है। करीब नौ साल पहले यूपीए के दूसरे कार्यकाल में पी चिदंबरम को वित्त मंत्रालय से निकाल कर गृह मंत्री बनाया गया था। उस समय अमित शाह गुजरात के गृह मंत्री थे। तब सीबीआई ने कथित तौर पर फर्जी इनकाउंटर के मामले में अमित शाह को गिरफ्तार किया था। वे जेल में रखे गए थे और बाद में उनको गुजरात से बाहर रहने का आदेश दिया गया था। उस निर्वासन का काफी समय उन्होंने दिल्ली में गुजारा था। तभी उन्होंने दिल्ली में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का मूड समझा था और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दिल्ली कूच की योजना बनाई थी। 

बहरहाल, अब नौ साल के बाद अमित शाह देश के गृह मंत्री हैं और पी चिदंबरम एक नहीं, बल्कि दो-दो केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर हैं। सीबीआई और ईडी दोनों उनके और उनके बेटे कार्ति चिदंबरम के पीछे पड़े हैं। मंगलवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने चिदंबरम की अंतरिम जमानत खारिज की और उसके दो घंटे के भीतर सीबीआई और ईडी दोनों चिदंबरम के घर पहुंच गए। सीबीआई ने तो दो घंटे में उनको अपने सामने हाजिर होने का नोटिस दिया। भाजपा के नेता इसे प्राकृतिक न्याय कह रहे हैं और कांग्रेस के नेता बदले की कार्रवाई बता रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि दिल्ली में भाजपा की राजनीति का केंद्र रहे एक वरिष्ठ नेता के बीमार होने और राजनीति व सरकार से दूर होने का सबसे बड़ा नुकसान चिदंबरम को हुआ है। चिदंबरम के खिलाफ जांच करने वाले ईडी के अधिकारी को इनाम के बदले उन्हें दिल्ली से बाहर भेज देने की घटना का जिक्र करके सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी इशारों इशारों में इसका जिक्र किया है। 

सीपीआइ का पहला दलित महासचिव

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआइ) के लगभग सौ वर्षों के इतिहास में पहली बार उसे एक दलित महासचिव मिला, जब विगत 21 जुलाई को दोराईसामी राजा सीपीआई के महासचिव बनाये गये। 

इसे एक इत्तेफाक कहा जाये या विचित्र संयोग कि समाजवाद, प्रोलेतेरियत (सर्वहारा) का अधिनायकवाद, लोकतंत्र और आजादी के बाद भारत के संविधान और सामाजिक न्याय का जाप करनेवाली सीपीआइ और 'पिछड़े पावें सौ में साठ' का नारा लगानेवाली सोशलिस्ट पार्टियों का प्रमुख (अध्यक्ष या महासचिव) कोई दलित, आदिवासी, महिला या मुसलमान नहीं हो सका। सीपीआइ अपनी स्थापना का वर्ष 1925 (कानपुर में 26-28, दिसंबर, 1925 को पार्टी का स्थापना सम्मलेन हुआ) बताती है। लेकिन भारतीय मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीआइ(एम) 17 अक्तूबर, 1920 को अपना स्थापना वर्ष बताती है, जब एमएन रॉय और उनके कुछ साथियों ने ताशकंद में सीपीआइ की स्थापना की थी।

इस तरह देखें, तो 1925 से लेकर 1964 तक (जब सीपीआइ में पहला विभाजन हुआ और दो कम्युनिस्ट पार्टियां बन गयीं) और तब से लेकर जुलाई 2019 तक दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों का महासचिव कोई दलित, आदिवासी, महिला या मुसलमान नहीं हो सका। गौरतलब है कि सीपीआइ और सीपीआइ(एम) के अधिकतर महासचिव सिर्फ ब्राह्मण ही रहे।

साल 1964 से आज तक जितने महासचिव (पार्टी सुप्रीमो) चुने गये या बनाये गये उनमें पी सुंदरैया, ईएमएस नम्बूदरीपाद, हरकिशन सिंह सुरजीत और सीताराम येचुरी में से सिर्फ हरकिशन सिंह सुरजीत को छोड़कर अधिकतर महासचिव सिर्फ ब्राह्मण ही रहे और कोई भी दलित, आदिवासी, महिला या मुसलमान पार्टी का महासचिव नहीं बन सका।

अब बात सामाजिक न्याय का दंभ भरने और हर वक्त 'पिछड़े पावें सौ में साठ' का नारा लगानेवाली महान सोशलिस्ट पार्टियों के नेतृत्व की। आचार्य नरेंद्र देव, संपूर्णानंद, जेपी, मीनू मसानी, ए पटवर्धन, लोहिया, अशोक मेहता, एसएम जोशी और एनजी गोरे, 1934 में कांग्रेस पार्टी के भीतर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्य थे। 

साल 1934 से लेकर 1950 तक यानी कांग्रेस पार्टी में रहने और उससे बाहर निकलने के दो वर्षों बाद तक (1948 में सोशलिस्ट पार्टी का गठन हुआ) जयप्रकाश नारायण लगभग 16 वर्षों तक लगातार पार्टी के महासचिव बने रहे।

मार्च 1950 से लेकर सितंबर 1952 तक आचार्य नरेंद्र देव पार्टी अध्यक्ष और अशोक मेहता महासचिव हुए। सितंबर 1952 में सोशलिस्ट पार्टी और किसान मजदूर प्रजा पार्टी का विलय होने के बाद जब प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का गठन हुआ, तो आचार्य जेबी कृपलानी पार्टी अध्यक्ष और अशोक मेहता, और एनजी गोरे और बाद में जेबी कृपलानी के साथ राममनोहर लोहिया पार्टी महासचिव बनाये।

1954-55 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में विभाजन हो गया और 1956 में राममनोहर लोहिया ने अपनी अलग सोशलिस्ट पार्टी बना ली और तब से लेकर 1977 तक जब दोनों-तीनों सोशलिस्ट पार्टियों (बीच में कुछ अरसे के लिए प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी को मिलकर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया गया) का जनता पार्टी में विलय होने तक, यानी 43 वर्षों की अवधि के दौरान सोशलिस्ट पार्टी और दलित, आदिवासी, महिला और मुसलमानों के हितैषी और हिमायती होने का दावा करनेवाले महान समाजवादी नेता लोग अपनी पार्टी का अध्यक्ष किसी दलित, आदिवासी, महिला या मुसलमान को नहीं बना सके। 

अलबत्ता बिहार और उत्तर प्रदेश में चुनाव जीतने के मकसद से दो-एक बार (एक-दो साल के लिए) भूपेंद्र नारायण मंडल, कर्पूरी ठाकुर और रामसेवक यादव जैसे पिछड़ी जातियों के लोग सोशलिस्ट पार्टी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष और महासचिव बनाये गये। 
कम्युनिस्ट पार्टियों में काॅमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत और सोशलिस्ट पार्टियों में जॉर्ज फर्नांडीज को छोड़कर अल्पसंख्यक समुदाय का कोई व्यक्ति कभी भी पार्टी के सर्वोच्च पद तक नहीं पहुंचा। 

वामपंथी और समाजवादी दल तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय जनसंघ/भारतीय जनता पार्टी जैसे राष्ट्रीय दलों पर दशकों तक यह आरोप लगाते रहे कि ये दल सवर्णों और अगड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व करते हैं और इनमें दलित, आदिवासी, महिला या मुसलमानों के लिए कोई स्थान नहीं है। यह भी सुना गया कि वामपंथी दलों में पीसी जोशी, बीटी रणदिवे, अजय घोष, श्रीपद अमृत डांगे, पी सुंदरैया, नम्बूदरीपाद, सी राजेश्वर राव, इंद्रजीत गुप्त और एबी बर्धन से बड़ा दलित कोई हो नहीं सकता। 

यही तर्क समाजवादी नेताओं अशोक मेहता, एसएम जोशी, गंगाशरण सिन्हा, एनजी गोरे, नाथ पाई, मधु दंडवते तथा राजनारायण, मधु लिमये, मामा बालेश्वर दयाल, रवि राय और किशन पटनायक जैसे नेताओं के बारे में भी दिया जाता रहा है कि वे दलितों से भी बड़े दलित थे, लेकिन जब भागीदारी देने का सवाल आया तो दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और मुसलमानों सहित दूसरे अल्पसंख्यकों की भी अनदेखी की गयी और सरकार, संसद या विधानसभाओं में उन्हें प्रतिनिधित्व देना तो दूर, अपने दलों में भी उन्हें समुचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक कहावत है, जिसमें सास अपनी बहू से कहती है- 'कोठी-कुठले से हाथ मत लगाइयो, बाकी घर-बार सब तेरा ही है!' इन दलों पर यह कहावत चरितार्थ होती रही है।

बुधवार, 21 अगस्त 2019

मंदी का असर: पारले कर सकता है 10 हजार कर्मचारियों की छंटनी

1929 में स्थापित पारले में लगभग एक लाख लोग काम करते हैं। कंपनी के कैटेगरी हेड मयंक शाह ने कहा कि 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से कंपनी के सबसे ज्यादा बिकने वाले 5 रुपये के बिस्किट पर असर पड़ा है।
भारत में बिस्किट बनाने वाली बड़ी कंपनियों में से एक पारले प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड आर्थिक मंदी और ग्रामीण क्षेत्रों में मांग में कमी आने के बाद उत्पादन में कटौती के कारण 10 हजार लोगों की छंटनी कर सकती है।  कंपनी के एक अधिकारी ने इसकी जानकारी दी।

 एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में गिरावट के कारण कार से लेकर कपड़ों तक हर तरह की बिक्री कम हो गई है। इसके कारण कंपनियों को अपने उत्पादन में कटौती करनी पड़ रही है और वे उम्मीद जता रही हैं कि अर्थव्यवस्था की रफ्तार को बढ़ाने के लिए भारत सरकार कोई कदम उठाएगी।

कंपनी के कैटेगरी हेड मयंक शाह ने बताया, ‘पारले बिस्किट की बिक्री में कटौती का सीधा मतलब है कि कंपनी को अपने उत्पादन में कटौती करनी पड़ेगी, जिसके कारण 8000-10000 लोगों की नौकरियां जा सकती हैं।

उन्होंने कहा, ‘हालात इतने बुरे हैं कि अगर सरकार ने तत्काल कोई कदम नहीं उठाया तो हम यह कदम उठाने के लिए बाध्य हो जाएंगे।’

1929 में स्थापित पारले में लगभग एक लाख लोग काम करते हैं। इसमें कंपनी के 10 प्लांट और 125 थर्ड पार्टी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में प्रत्यक्ष और कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कर्मचारी शामिल हैं।

शाह ने कहा, ‘2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से पारले के पारले जी बिस्किट जैसे ब्रांड की बिक्री में कमी आ रही है। कर बढ़ने की वजह से कंपनी के सबसे ज्यादा बिकने वाले 5 रुपये के बिस्किट पर असर पड़ा है। कंपनी को प्रति पैकेट बिस्किट कम करने पड़ रहे हैं। इससे बिस्किट की मांग कम होती जा रही है।’

अत्यधिक करों के कारण पारले को हर पैकेट में बिस्किटों की संख्या कम करनी पड़ रही है, जिसकी वजह से ग्रामीण भारत के निम्न आय वाले ग्राहकों की मांग पर असर पड़ रहा है।

 पारले के राजस्व का आधा से अधिक हिस्सा ग्रामीण भारत के निम्न आय वर्ग वाले ग्राहक से आता है, जहां पर देश की दो तिहाई आबादी रहती है।

शाह ने कहा, ‘यहां पर ग्राहक कीमत को लेकर बहुत संजीदा रहते हैं। वे इसको लेकर बेहद चौकन्ने रहते हैं कि एक निर्धारित कीमत में उन्हें कितने बिस्किट मिल रहे हैं।’

उन्होंने कहा, ‘पारले ने पिछले साल सरकार की जीएसटी परिषद के साथ पूर्व वित्त मंंत्री अरुण जेटली से बात की थी और उनसे कर की दरों की समीक्षा के लिए कहा था।’

पारले का सालान राजस्व 4 बिलियन डॉलर से अधिक का है। इसका मुख्यालय मुंबई में है। पारले ग्लुको का नाम पारले-जी रखने के बाद 1980 और 90 के दशक में यह देशभर में एक चर्चित बिस्किट बन गया था। साल 2003 में पारले-जी को दुनिया के सबसे अधिक बिस्किट बेचने वाले ब्रांड के रूप में पहचान मिली थी।

शाह ने कहा, ‘भारत की आर्थिक वृद्धि में मंदी के कारण पहले से ही इसके महत्वपूर्ण मोटर वाहन उद्योग में हजारों लोगों की नौकरी चली गई है और यह मांग में गिरावट को तेज कर रहा था।’

मार्केट रिसर्च फर्म नीलसन ने कहा कि पिछले महीने भारत के उपभोक्ता वस्तु उद्योग को मंदी की मार सहनी पड़ी क्योंकि ग्रामीण इलाकों में खर्च में कमी देखी गई और छोटे निर्माताओं को इस सुस्त अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ में नुकसान उठाना पड़ा।

हालांकि, पारले एकमात्र खाद्य उत्पादन कंपनी नहीं है, जिसकी मांग कम हो रही हो।

पारले की मुख्य प्रतिद्वंदी ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक वरुण बेरी  ने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि मात्र 5 रुपये का सामान खरीदने के लिए ग्राहक दो बार सोच रहे हैं।

विश्लेषकों के साथ एक कॉन्फ्रेंस में बेरी ने कहा था, ‘निश्चित तौर पर अर्थव्यवस्था में कुछ गंभीर समस्या है।’

मंगलवार, 20 अगस्त 2019

इमरान खान की पूर्व पत्नी का दावा, अनुच्छेद 370 पर पाक पीएम ने मोदी से की डील

इमरान खान की पूर्व पत्नी ने इमरान पर लगाए गंभीर आरोप । रेहम खान ने कहा कश्मीर मुद्दे पर इमरान ने की भारत से डील । रेहम खान ने इमरान ने किया मोदी से कश्मीर डील ।साक्षात्कार से जुड़ा वीडियो वायरल।
जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के हटने के बाद से ही पाकिस्तान में बैचेनी का माहौल है। जहां पाकिस्तान में इमरान खान को विपक्ष इस मुद्दे पर संसद से सड़क तक घेर रहा है। वहीं इमरान खान की पूर्व पत्नी रेहम खान ने एक सनसनीखेज खुलासा कर इमरान खान की मुश्किलें बढ़ा दी है। उन्होंने जम्मू कश्मीर पर इमरान खान को लेकर बहुत बड़ा आरोप लगाया है।  दरअसल एक साक्षात्कार में रेहम खान ने इमरान खान पर आरोप लगाया है कि उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक गोपनीय समझौता किया है। उन्होंने दावा किया कि इमरान ने यह डील भारतीय प्रधानमंत्री को खुश करने के लिए किया है। इस कारण वह इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रहे हैं। 

इस बयान के बाद से ही पाकिस्तान में सियासी भूचाल आ गया है। इमरान खान पहले से ही अनुच्छेद 370 के हटने से विपक्ष के निशाने पर है। वहीं उनकी पूर्व पत्नी के इस बयान ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दी है। संसद में लगातार उनके खिलाफ बयानबाजी और नारेबाजी की जा रही है। रेहम के इस बयान ने पाकिस्तानी सियासत में आग में घी डालने का काम किया है। 



रेहम ने कहा कि मैं कहूंगी कि कश्मीर का सौदा हो गया है। हमें शुरू से ही सिखाया गया कि कश्मीर बनेगा पाकिस्तान। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर में जो भी हुआ है, वह पाकिस्तानी प्रधानमंत्री द्वारा भारत के प्रधानमंत्री को खुश करने के लिए की गई कोशिशों का नतीजा है। 

इमरान खान की पूर्व पत्नी रेहम खान ने इससे पहले भी उन पर कई गंभीर आरोप लगाए है। पिछले साल हुए चुनावों के दौरान रेहम की एक किताब प्रकाशित हुई। किताब में इस बात का जिक्र किया गया था कि इमरान खान समलैंगिक हैं। 

जिसके बाद इस बात की चर्चा दुनिया भर में हुई थी। इससे पहले रेहम ने इमरान को पाकिस्तानी सेना का कठपुतली भी बताया था। तलाक के बाद रेहम कई बार इमरान खान पर संगीन आरोप लगा चुकी है। 

सोमवार, 19 अगस्त 2019

कोई विपक्ष में नहीं रहना चाहता

ऐसा लग रहा है कि इस देश में विपक्ष की राजनीति खत्म हो गई है। कोई भी नेता विपक्ष में नहीं रहना चाहता है। जिसको जैसे मौका मिल रहा है वह वैसे ही सत्तारूढ़ दल में शामिल हो रहा है। इसमें सबसे हैरान करने वाली मिसाल सिक्किम के विधायकों ने कायम की है। सिक्किम डेमोक्रेटिक पार्टी का राज्य में 30 साल तक शासन था। पवन कुमार चामलिंग के नेतृत्व में एसडीएफ लगातार तीन दशक सरकार में रही। पर चुनाव हारने के बाद उनकी पार्टी के विधायकों को तीन महीने भी विपक्ष में रहना गवारा नहीं हुआ। 

मई में लोकसभा के साथ सिक्किम विधानसभा के चुनाव हुए थे। और नतीजों के तीन महीने पूरे होने से पहले एसडीएफ के दस विधायक पाला बदल कर भाजपा के साथ चले गए। भाजपा राज्य की सत्ता में नहीं है पर केंद्र में उसकी सरकार है और पूर्वोत्तर के ज्यादातर राज्यों में उसकी सरकार है। साथ ही एसडीएफ छोड़ कर गए विधायकों को लग रहा है कि सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा की सरकार ज्यादा नहीं चलने वाली है। बहरहाल, तीन महीने पहले विपक्ष में आई पार्टी एसडीएफ के दो विधायक सत्तारूढ़ सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा में चले गए हैं। 

उधर आंध्र प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी टीडीपी के चार राज्यसभा सांसदों को तोड़ने के बाद भाजपा ने दावा किया है कि राज्य में पार्टी के अनेक नेता उसके संपर्क में हैं। ऐसा लग रहा है कि विपक्षी पार्टियों ने मान लिया है कि अब देश में भाजपा की सत्ता स्थायी है। तभी कांग्रेस, टीडीपी, आप, सपा, एसडीएफ सबके नेता भाजपा में शामिल हो रहे हैं।