भारत की सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि तमाम विवादों और कलह के बाद भी लोकतांत्रिक प्रणाली में लोगों का भरोसा बरकरार है। चुनाव प्रक्रिया के जरिए लोग अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं और उनके जरिए अपनी दिक्कतों को लोकतंत्र के मंदिर यानि संसद या राज्यों की विधानसभा में रखते हैं। लेकिन चुनावी प्रक्रिया को अगर देखें तो जनप्रतिनिधियों को चुनने की यह कवायद देश के किसी न किसी हिस्से में निरंतर चलती ही रहती है। इससे न केवल विकास प्रक्रिया पर असर होता है, बल्कि आर्थिक बोझ भी बढ़ जाता है। चुनावों को एक साथ कराने की मांग अलग-अलग समय पर उठती रही है। ये कहा जा रहा है कि 2018 में सात राज्यों की विधानसभा के साथ ही लोकसभा के चुनाव कराए जा सकते हैं। लेकिन एक साथ चुनाव कराए जाने के फायदे और नुकसान को समझने से पहले ये जानने की कोशिश करते हैं कि पीएम मोदी ने क्या कहा था।
पीएम मोदी ने क्या कहा
लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने की बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई मौकों पर कह चुके हैं। 31 दिसंबर 2016 को राष्ट्र के नाम संबोधन में पीएम ने कहा कि विकास के पहिए में गति बरकरार रहे इसके लिए जरूरी है कि चुनावी प्रक्रिया एक साथ ही पूरी की जाए। ऐसा करने से आम लोगों के लिए सरकारों के पास पर्याप्त समय होगा। इससे पहले अप्रैल 2016 में दिल्ली में मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायधीशों के सम्मेलन में भी पीएम ने एक साथ चुनाव कराने का जिक्र किया था।
पीएम मोदी ने कहा था कि ज्यादातर दल उनसे कह रहे हैं कि चुनावों की वजह से बहुत वक्त बर्बाद होता है और चीजें रुक जाती हैं। आचार संहिता की वजह से 40-50 दिन तक फैसले लंबित रहते हैं। सार्वजनिक मंच पर प्रधानमंत्री ने पहली बार इस मुद्दे को उठाया और लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन से उन्हें समर्थन मिला था। स्पीकर ने कहा कि इससे समय और धन बचेगा।
चुनावों से जुड़ी खास बातें
- दिसंबर 2018 में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम में मौजूदा सरकारों का कार्यकाल पूरा हो होगा। इसके साथ ही अप्रैल 2019 में तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और ओडिशा का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। नियमों के मुताबिक कार्यकाल समाप्त होने से 6 महीने पहले चुनाव कराए जा सकते हैं। ऐसे में 2018 में लोकसभा के साथ साथ सात राज्यों में एक साथ चुनाव कराए जा सकते हैं।
- इस संबंध में नीति आयोग ने 2024 से लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराए जाने पर अपनी रिपोर्ट दी थी। नीति आयोग के मुताबिक इसे जमीनी स्तर पर उतारने के लिए कुछ राज्यों की विधानसभाओं के कार्यकाल में बढ़ोतरी और कुछ के कार्यकाल में कटौती करना होगा। एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान के कई अनुच्छेदों में संशोधन कराना होगा और संशोधन प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में पारित कराना होगा।
- 2019 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने के लिए करीब 14 लाख नए इवीएम की जरूरत होगी। सरकार ने चुनाव आयोग को इस संबंध में 1009 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
जानकार की राय
jagjahirnews वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार ने कहा कि एक साथ चुनाव कराए जाने से देश में विकास की रफ्तार पर ब्रेक नहीं लगेगा। ऐसा नहीं है कि ये सब पहली बार करने की कवायद की जा रही है। देश की आजादी के बाद चार चुनाव एक साथ ही कराए गए थे। लेकिन कुछ खास वजहों से ये परंपरा आगे नहीं बढ़ सकी। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि 2010 के बाद अगर आप देखें तो ज्यादातर राज्यों में पूर्ण बहुमत की सरकारें काम कर रही हैं। इसका अर्थ ये है कि भारतीय मतदाता परिपक्व हो चुका है। सच तो ये है कि मौजूदा समय में देश के किसी न किसी हिस्से में चुनाव प्रक्रिया चलती रहती है, जिसका खामियाजा आम लोगों के साथ-साथ भारतीय अर्थव्यवस्था को भी भुगतना पड़ रहा है।
ज्यादातर राज्य एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में
मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, बिहार, केरल, तमिलनाडु समेत 18 राज्य भी एक साथ चुनाव कराने के सैद्धांतिक रूप से पक्ष में हैं। भाजपा, असम गण परिषद, कांग्रेस, डीएमके, एआईडीएमके व इंडियन मुस्लिम लीग जैसी पार्टियां लोकसभा व विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का वैचारिक समर्थन करती हैं, अगर व्यवहारिक मुश्किलों को दूर कर लिया जाए तो। चुनावों को एक साथ कराने का तर्क इस बात से पुष्ट होता हैं कि विधि आयोग ने भी अपनी 170वीं रिपोर्ट में इसका समर्थन किया था।
पहले भी एक साथ हो चुके हैं चुनाव
भारत में पहले भी लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हो चुके हैं। लेकिन किसी विशेष कारणों से इसे बंद करना पड़ा था। चार लोकसभा और विधानसभा चुनाव लगातार साल 1952, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ हुए थे। लेकिन 1971 में इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर दी थी और तब से इसका सिलसिला टूट गया।
चुनावों पर कितना होता है खर्च
- राष्ट्रीय खजाने से साल 2014 के लोकसभा चुनाव में 3426 करोड़ रुपये खर्च किए गए, वहीं राजनीतिक दलों द्वारा 2014 के लोकसभा चुनाव में लगभग 26,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। वहीं साल 2009 के लोकसभा चुनाव में सरकारी खजाने से 1483 करोड़ रुपये का खर्च हुआ था।
- 1952 के चुनाव में प्रति मतदाता खर्च 60 पैसे था, जो साल 2009 में बढ़कर 12 रुपये पहुंच गया।
- चुनाव आयोग के अनुसार विधानसभाओं के चुनावों में लगभग 4500 करोड़ रुपये का खर्च बैठता है। लेकिन एक साथ चुनाव कराए जाने पर इस खर्च को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
- दोनों चुनावों को एक साथ कराने पर सरकारें लोकलुभावन वादों से बचेंगी।
- चुनावों की निरतंर चलती प्रक्रिया की वजह से देश के किसी न किसी कोने में आदर्श आचार संहिता लगी रहती है, जिससे योजनाएं प्रभावित होती हैं। अगर चुनाव एक साथ करा लिए जाते हैं तो सरकारी काम बाधित नहीं होते।
- सरकारी अधिकारियों, शिक्षकों व कर्मचारियों को चुनावी ड्यूटी लगती है, जिससे बच्चों की पढ़ाई व प्रशासनिक कार्य प्रभावित होते हैं उस पर अंकुश लगेगा।
- एक साथ लोकसभा व विधानसभा के चुनाव होने पर सरकारी मशीनरी की कार्य क्षमता बढ़ेगी तथा आम लोगों को इससे फायदा होगा।
- एक साथ चुनाव होने से राजनीतिक स्थिरता का दौर शुरू होगा, जिससे विकास-कार्यों में तेजी आएगी।
एक साथ चुनाव कराने की पहले भी उठ चुकी है मांग
भारत में एक साथ चुनाव कराने की मांग सबसे पहले लालकृष्ण आडवाणी ने रखी थी। उनकी बात का समर्थन पूर्व चुनाव आयुक्त एचएस ब्रह्मा ने भी किया था। उनका मानना था कि इससे सरकार के खर्चे में कमी आएगी तथा प्रशासनिक कार्यकुशलता में भी बढ़ोतरी होगी। भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी भी कहते हैं कि बार-बार चुनाव कराने से सरकार का सामान्य कामकाज ठहर जाता है। उदाहरण के तौर पर मध्य प्रदेश में नवंबर 2013 में विधानसभा चुनाव हुए, फिर लोकसभा चुनाव के कारण आदर्श आचार संहिता लग गई। इसके तुरंत बाद नगर निकाय के चुनाव कराए गए और फिर पंचायत चुनाव। इन चुनावों के चलते 18 महीनों में से नौ महीने तक आदर्श आचार संहिता के कारण सरकारी कामकाज कमोबेश ठप सा रहा।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने क्या कहा था
देश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि पार्टी का मत है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हों। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस विषय को सभी दलों के सामने रखा है, इस पर सार्वजनिक बहस करके चुनाव आयोग के पास सभी दलों को जाना चाहिए।
प्रणब मुखर्जी ने भी की थी अपील
जनवरी 2017 में राष्ट्रीय मतदाता दिवस के मौके पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने पर सरकारों के पास कामकाज के लिए पर्याप्त समय होगा। उन्होंने चुनाव आयोग से कहा था कि वो सभी राजनीतिक दलों को एक मंच पर लाने की कोशिश करें, ताकि आम सहमति बनायी जा सके।
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