जब चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे तो वे अक्सर कहा करते थे कि सत्ता सख्ती से चलती है। उनका दावा था कि उनकी इसी सख्ती के चलते राजीव गांधी की हत्या के बाद देश में किसी तरह के दंगे नहीं हुए। तब शायद वे एक बात कहना भूल गए थे कि सत्ता सख्ती और एकजुटता के साथ चलती है। जब कोई शासक कुर्सी पर बैठ जाता है तो उसकी भावनाएं और संवेदनाएं मर जाती है। जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश भर में सिख विरोधी दंगों में हजारों लोग मारे गए तब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें सही ठहराते हुए बोट क्लब पर आयोजित रैली में कहा था कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है।
वे यह बताना चाहते थे कि यह तो उतना ही सत्य है जितना कि न्यूटन का यह सिद्धांत की हर क्रिया के बराबर उतनी ही विरोधी प्रतिक्रिया होती है। तब मुझे लगता था कि कोई भी व्यक्ति खासतौर से जब कि वह किसी उच्च सिंहासन पर बैठा हो तो इतनी घटिया व प्रतिशोध से भरी बात कैसे कर सकता है? मगर जब गोरखपुर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में मात्र छह दिन के अंदर 63 बच्चों की मौत की खबर के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री को प्रतिक्रिया जताते देखा तो लगा कि चाहे सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा की शासक हमेशा संवेदनहीन ही होते हैं। उनका भगवान से दूर दूर तक कुछ लेना देना नहीं होता है। वे तो क्रूर और कठोर दिल वाले होते हैं।
वहां जो कुछ घटा उसकी कल्पना मात्र से ही शरीर सिहर उठता है। जब चैनलों पर अपने गोद में किसी दुर्भाग्यशाली बाप को बच्चे का शव ले जाते हुए देखा तो राजीव गांधी के सत्ता में आने के बाद हुए भोपाल गैस कांड की वो तस्वीर आँखों के सामने घुम गई जिसमें एक शिशु को दफनाते हुए उसके पिता को उसकी आँखों पर से मिट्टी हटाते हुए दिखाया गया था। वो तस्वीर तो मेरे दिलो दिमाग पर छप ही चुकी है। भोपाल गैस कांड के समय भी सरकार दोषीयों को बचाने और तथ्यों को तोड़ने मरोड़ने में जुटी थी।
उससे भी कहीं दो कदम आगे उत्तर प्रदेश व भाजपा में घट रहा है। जैसे आपातकाल के दौरान सभी कांग्रेसियों के दिलो दिमाग पर बीस सूत्रीय कार्यक्रम व नसबन्दी अभियान हावी था व उनसे देश की हर समस्या को सुलझाने वाला जादूई चिराग नजर आ रहा था वैसा ही इस मामले में भी दिखाई दे रहा है। नरेन्द्र मोदी की पहल पर शुरू किया गया स्वच्छता अभियान भाजपाइयों व पार्टी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर इतना हावी हो चुका है कि उन्हें शौचालय के सिवाय कहीं कुछ नजर ही नहीं आ रहा है। देश एवं राज्यों में भले ही स्वच्छता नजर आ रही हो मगर भाजपाइयों पर शौचालय इस कदर हावी हो चुका है कि उसके नेताओं के दिमाग सैप्टिक टेंक में बदल चुके हैं। जहां शौचालय व उसकी सड़ांध के अलावा कुछ और नजर ही नहीं आ रहा है।
जैसे आपातकाल में हर नेता नसबन्दी के आंकड़े दोहराते हुए उसे हर समस्या का समाधान बताता था वैसे ही उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो कुछ कहा है उसे सुनकर सिर पीट लेने का मन करता है। इन बच्चों की मौत पर प्रतिक्रिया जताते हुए इसे स्वच्छता से जोड़ दिया और कहा कि इसके लिए गंदगी जिम्मेदार है। क्योंकि गंदगी के कारण पैदा होने वाले इंसेफ्लाइटिस रोग के कारण ये मौते हुई हैं। वह यह नहीं बता रहे हैं कि उनके अपने ही शहर में इतनी ही गंदगी थी तो उसके लिए कौन जिम्मेदार है? अब तो उनकी सरकार को सत्ता में आए हुए भी ठीक ठाक समय बीत चुका है।
यही नहीं उन्होने चंद रोज पहले खुद इस अस्पताल का दौरा किया था। सवाल यह पैदा होता है कि क्या तब उन्होंने यह जानने कि कोशिश नहीं की थी कि इसमें जीवनदान देने वाले आक्सीजन तक की सप्लाई पर्याप्त नहीं है।
दरअसल हमारे देश की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि चाहे शहर में बनने वाले पुल पुलिया हों, बिजली की आपूर्ति हो या पानी की, हम उसकी आपूर्ति में होने वाली देरी और उसकी किल्लत से पैदा होने वाली समस्याओँ को कभी गंभीरता से नहीं लेते हैं। जो तथ्य उभर कर सामने आ रहें हैं उनके मुताबिक अस्पताल में आक्सीजन की आपूर्ति खत्म होने का पता कुछ समय पहले ही चल चुका था। संबंधित कंपनी इस बारे में अस्पताल को लगातार पत्र लिख रही थी मगर किसी ने यह सुनिश्चित नहीं किया कि उसका समय पर भुगतान हो जाए और तो और जब अस्पताल के प्रमुख ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को वहां का दौरा करवाया तब भी उन्हें यह बताने की जरूरत नहीं समझी कि हमारे यहां आक्सीजन समाप्त होने वाली है।
अस्पताल और नगर निगम में कोई अंतर ही नहीं रहा है। वहां की समस्याएं तो मानो निगम का चीफ इंजीनियर हो गया जो कि ठेकेदार के बिलो का भुगतान करने में महीने लगा देता है। इस बीच लोग खुदे हुए गड्डो पर, खुले हुए सीवारों में गिर मर दम तोड़ते रहते हैं। आगे तो और खुलासे होते कि आखिर सत्ता में आने के बाद पुराने ठेकेदार का ठेका रद्द करके नए ठेकेदारों को क्यों ठेका दिया गया?
बताते हैं कि यह ठेकेदार इलाहाबाद का था जोकि नए स्वास्थ्य मंत्री का गृह जिला है। अभी तो आगे तमाम रहस्य उजागर होंगे। संयोग से हमारे प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री दोनों बेऔलद है। अतः हो सकता है कि उन्हें औलाद के खोने से होने वाले दुख का पता न हो मगर मुख्यमंत्री तो पूरे राज्य का व प्रधानमंत्री तो देश का पिता होता है। देखें 15 अगस्त के अपने भाषण में प्रधानमंत्री इस बालसंहार को कितना महत्व देते हैं। शौचालय तो तब इस्तेमाल में आएंगे जब पीढ़ी उन्हें इस्तेमाल करने के लिए जिंदा बचेगी। अगर यह बात उनके मन को छुएगी तो शायद वे मन की बात में इस पर कुछ बोले।
आज से 50 साल पहले हम लोग देश में लोगों व बच्चों के भूख, कुपोषण, मलेरिया, चेचक, टीबी, प्लेग सरीखी बीमारियों से मरने की बात सुनते थे। फिर भोपाल गैस कांड के दौरान गैस से लोगों के मरने की बात सुनी। आजादी के बाद हमने इतनी ज्यादा प्रगति कर ली है कि अब हमारे बच्चे आक्सीजन के अभाव में मर रहे हैं! स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह की बेहूदगी और बेशर्मी तो देखिए कि वे यह साबित करने पर आमादा है कि एक भी बच्चे की मौत आक्सीजन की कमी के कारण नहीं हुई। वे बेशर्मी के साथ पिछले सालों के आंकड़े सामने रखते हुए बता रहे है कि इससे पहले तो इन दिनों इससे भी ज्यादा लोग मरते थे। हमारे राज में तो महज एक हफ्ते में 63 लोग ही मरे है।
आम पाठक को बता दू कि सिद्धार्थनाथ सिंह देश के उस दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाती है जिन्होंने रेलमंत्री रहते हुए एक रेल दुर्धटना होने के बाद अपना इस्तीफा दे दिया था जबकि उनके नाती इस्तीफा देना तो दूर रहा उलटे यह साबित करने पर तुले हैं कि पिछली सरकार के कार्यकाल की तुलना में तो अभी भी कुछ और बच्चे को अपनी जान गंवाने का कोटा हमारे पास बचा हुआ है। वैसे भी अगस्त माह में ज्यादा बच्चे मरते हैं।
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