केंद्र सरकार ने प्रवासी भारतीयों को वोटिंग का अधिकार देने की दिशा में एक कदम और बढ़ा दिया है। कैबिनेट ने इस बात की मंजूरी दे दी है कि दुनिया के दूसरे देशों में रहने वाले भारतीय नागरिक प्रॉक्सी के जरिए यानी अपने बदले किसी को अधिकृत करके वोट डाल सकते हैं। यह सुविधा सैन्यकर्मियों को मिली हुई है। सैन्यकर्मियों को पोस्टल बैलेट के जरिए मतदान की भी सुविधा है और प्रवासी भारतीयों के लिए भी इस सुविधा पर विचार किया गया, लेकिन इसे अव्यावहारिक मान कर खारिज कर दिया गया।
सैन्यकर्मियों को मिली सुविधा के मुकाबले एक बदलाव यह किया गया है कि प्रवासी भारतीयों को प्रॉक्सी चुनने की प्रक्रिया से हर बार गुजरना होगा। सैन्यकर्मियों के लिए हर चुनाव में एक ही व्यक्ति वोट डाल सकता है। लेकिन प्रवासी भारतीयों को हर चुनाव के लिए प्रॉक्सी चुनने की प्रक्रिया पूरी करनी होगी। लेकिन यह कोई बड़ी बात नहीं है। यह सिर्फ एक तकनीकी प्रक्रिया है, जिसे वे पूरा कर देंगे।
असली सवाल यह है कि प्रवासी भारतीयों को मतदान का फायदा किसको मिलेगा? आमतौर पर दुनिया के देशों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति दीवानगी है। वे जहां भी जाते हैं, वहां प्रवासी भारतीय बड़ी संख्या में जुटते हैं और उनके नाम के नारे लगाते हैं। पिछले चुनाव में मोदी की सुनामी लाने में उनकी बड़ी भूमिका रही है। इस लिहाज से भाजपा के नेता उत्साहित हैं। उनको लग रहा है कि उन्हें एक नया और बड़ा वोट बैंक मिल गया है। ध्यान रहे दुनिया में प्रवासी भारतीयों की संख्या एक करोड़ के करीब है, जिनमें से 60 लाख मतदाता बनने की योग्यता वाले हैं। एक बार मंजूरी मिलने के बाद वे मतदाता के तौर पर पंजीकरण कराएंगे।
हालांकि केरल आदि राज्यों से जहां से बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक खाड़ी देशों में हैं, वहां भाजपा को उतना फायदा नहीं मिलेगा। विकसित देशों के प्रवासी भारतीयों का फायदा भाजपा को हो सकता है। चुनावों में अब तक केरल और पंजाब के नेता प्रचार के लिए विदेश जाते थे, लेकिन अब अगर प्रवासियों को वोटिंग के अधिकार मिल गए तो सभी पार्टियों के नेता विदेश में जाएंगे प्रचार के लिए।
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