बुधवार, 16 अगस्त 2017

आजादी के 70 साल मुंह खोले खड़ी हैं ये चुनौतियां

भारत देश की आजादी के 70 साल हो चुके हैं। हमारे भारत देशने इन 70 सालों पर तमाम उतार चढ़ाव देखे हैं। इस देश ने आजादी के तुरंत बाद युद्ध झेला है, तो आजादी के दो दशकों में 3 युद्ध। ये अलग बात है कि भारत देश ने हमेशा हर चुनौतियों से निपटने में सफलता पाई, यहां तक कि साल 2008 की आर्थिक महामंदी का भी भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ा। हालांकि ये जरूर है कि देश आजादी के 70 सालों में भी कुछ मोर्चों पर फतह हासिल नहीं कर पाया है। आजादी के इस वर्षगांठ पर jagjahir  आपके सामने ऐसे ही 10 बिंदुओं को रख रहा है, जिनपर हमारे देश को काबू पाना है। तभी हम 'न्यू   इंडिया' के सपने को साकार कर पाएंगे।                                                
गरीबी: देश की आबादी का बड़ा हिस्सा अब भी ग्रामीण भारत में ही रहती है। प्रति व्यक्ति आय और व्यय की गणितीय गणना में हमारा देश भले ही तेजी से आगे बढ़ा हो और हमारे शहरी वर्ग की आय में तेजी से बढ़ोतरी हुई हो। पर सच ये है कि हम असल भारत यानि ग्रामीण भारत में विकास की गंगा नहीं बहा पाए हैं। ग्रामीण भारत में गरीबी प्रमुख मुद्दा है। इंदिरा सरकार ने तो 'गरीबी हटाओ' का नारा दिया, पर भारत की गरीबी नहीं मिट सकी। भारत देश सही मायने में तभी विकसित हो पाएगा, जब वो गरीबी मिटाने में सफल हो पाए।

बेरोजगारी: भारत देश की आजादी के 70 साल होने के बावजूद बेरोजगारी बड़ी समस्या बनी हुई है। बेरोजगारी की वजह से ग्रामीण भारत लगातार पीछे जा रहा है, तो पलायन की वजह से शहरी संसाधनों पर भार लगातार बढ़ रहा है। हालांकि नरेंद्र मोदी सरकार ने व्यापक पैमाने पर लोगों को रोजगार और स्वरोजगार से जोड़ने की बात कही है, पर ये कबतक अमल में लाया जाएगा, कुछ कहा नहीं जा सकता।

महंगाई: भारत की आजादी के 70 सालों और 65 सालों के लोकतंत्र में कई सरकारें बढ़ती महंगाई की वजह से अलोकप्रिय हो गईं। पिछली संप्रग सरकार रही हो या इंदिरा गांधी की सरकार। हालांकि इस वर्ष देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने दावा किया कि सरकार अगले साल मार्च तक महंगाई पर लगाम लगाने के अपने लक्ष्य को पा लेगी। पर उनका ये वादा कितना पूरा हो पाता है, ये देखने वाली बात होगी।

अर्थव्यवस्था में सुधार: अर्थव्यवस्था को व्यापक करना और उसे बरकरार रखना दुनिया के हर देश के लिए चुनौती है। भारत देश की अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। हम क्रय शक्ति के लिहाज के दुनिया के आठवें सबसे बड़े देश के तौर पर सामने आ चुके हैं। पर ये क्रय शक्ति देश के अंतिम व्यक्ति के पास जबतक नहीं पहुंच सकती, जबतक हम अपने देश की अर्थव्यवस्था को अग्रणी अर्थव्यवस्था के तौर पर नहीं गिन सकते।

विदेशों में जमा कालेधन की वापसी: कालेधन का मुद्दा दशकों से भारत की जनता के बीच रहा है। देश की जनता ने कालेधन की वजह से सत्ताएं तक बदल दी, पर मामला ढाक के तीन पात से अधिक कुछ नहीं रहा। हालांकि पिछले साल से नरेंद्र मोदी सरकार ने कालेधन को वापस देश में लाने की मुहिम छेड़ी है, जिसमें सरकार अंशत: सफल हो रही है। भारत सरकार ने कालेधन की जानकारी के लिए स्विट्जरलैंड की सरकार के साथ समझौते भी किए हैं, पर ये कितना अमल में लाया जाएगा, ये देखने वाली बात होगी।

भ्रष्टाचार: ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार भ्रष्टाचार के मामले में 176 देशों की सूची में भारत 94वें नंबर पर है। भ्रष्टाचार और घूसखोरी के नाम पर राजीव गांधी की सरकार गिराई जा चुकी है, तो पिछली संप्रग सरकार भी भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते जनता के दिलो-ओ-दिमाग से उतर गई। देश में भ्रष्टाचार सिर्फ ऊपरी स्तर तक ही नहीं, बल्कि ये जड़ों तक में समाया हुआ है। मौजूदा केंद्र सरकार भ्रष्टाचार रोधी कड़े कदम भी उठा रही है, पर इसपर काबू पाए जाने में शायद और समय लगेगा।

उच्च शिक्षा में सुधार: यूएन शिक्षा सूचकांक के अनुसार भारत 181 देशों में 147वें स्थान पर है। वैसे, पिछले कुछ सालों में देश में तमाम कॉलेज खुले हैं, विश्वविद्यालय खुले हैं, पर स्तरीय शिक्षा अब भी कुछ ही केंद्रों तक सीमित है।  आईआईटी और आईआईएम को विश्व भर में जाना जाता है लेकिन वे भारत के वर्तमान विकास में वो भूमिका नहीं अदा कर पा रहे हैं, जो पश्चिमी देशों के कैंब्रिज और ऑक्सफोर्ड जैसे शिक्षा के केंद्र करते हैं।

स्वास्थ्य: भारत मौजूदा समय में हेल्थ टूरिज्म के लिए सबसे मुफीद देशों में गिना जाने लगा है। पर सच क्या है, ये हम सभी को पता है। अकेले उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के छोटे से हिस्से पूर्वांचल में हर साल हजारों बच्चे जापानी इंसेफिलाईटिस की वजह से असमय काल के मुंह में समा जाते हैं। हाल ही में 5 दिनों के भीतर एक ही मेडिकल कॉलेज में 60 बच्चों की मौत की खबर आई है। आम देशवासी को स्तरीय चिकित्सा व्यवस्था नसीब नहीं हो सका है। ऐसे में देश की सरकारों के सामने बड़ी चुनौती पूरे देश के लिए आधारभूत स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना भी है।

आंतरिक सुरक्षा: भारत देश के वीर जवान सीमा पर तैनात खड़े हैं। वो दुनिया की सबसे ऊंची सामरिक भूमि पर भी देश का झंडा ऊंचा किए हुए हैं। पर आज देश के सामने बाह्य चुनौतियों से अधिक आंतरिक चुनौतियां हैं। भारत में दशकों का नक्सवाल है। उत्तरी-पूर्वी भारत का अलगाववाद है, तो कश्मीरी समस्या देश के सामने आज भी उसी तरह खड़ी है, जैसे देश की आजादी के समय खड़ी थी। ऐसे में आजादी के 70 सालों बाद भी क्या हमारी सरकारें देश को स्थाई शांति दे पाईं हैं, ये सवाल आप खुद से भी करें।

सांप्रदायिकता: आजादी के समय हम जिस सबसे बड़ी परेशानी से गुजरे थे, वो सांप्रदायिकता का भस्मासुर आज भी हमारे सामने मुंह बाये खड़ा है। आजादी के 70 सालों में देश अनगिनत सांप्रदायिक दंगे झेल चुके है। देश मंदिर-मस्जिद की राजनीति से गुजरा है, जिसकी तपिश आज भी उतनी ही ज्यादा महसूस होती है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर हमें इन सब चीजों से आजादी कब मिलेगी?
 

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